3 जुलाई 2010 की दोपहर थी और मैं अपने छोटे से ट्यूशन में आलू काट रहा था। इतने में तीन लड़के मेरे पास आए, बोले हमको ट्यूशन पढ़ना है, मैंने कहा ठीक है कल से आ जाना पढ़ने। वो सभी ग्यारहवीं क्लास के स्टूडेंट थे। वो तीनो मेरे सामने खड़े होकर बात कर रहे थे और मेरी नज़र सिर्फ बीच वाले पर टिकी। वो गौरव था। उसकी उम्र उस समय 19 साल थी और मैं 23 साल का। मैं उसकी आँखों का क़ायल बन गया था। मुझे ऐसा लगने लगा था जैसे मैं कहीं किसी ख़ुशी से भरे हुए कुएं में कूद गया हूँ। मैं उससे प्यार करने लगा था। वो एक नज़र का आकर्षण नहीं था। मैं गौरव के इश्क़ में था, कुछ दिनों तक थोड़ी थोड़ी बातें होती गईं और वो मुझे मोबाइल पर मैसेज भेजता था और मैं उसका रिप्लाई करता था। धीरे धीरे हम दोनों समझ गए थे कि हम दोनों प्यार में हैं। कभी भी किसी भी काम के लिए मैं उसको थैंक्स बोलता तो वो हमेशा हँसता ही रहता। एक दिन मैंने पूछ लिया “तुम हर बार थैंक्स बोलने पर हँसते क्यों हो?” वो बोला “आज आपको मैं इसकी फुल फॉर्म बताता हूँ, THANKS मतलब टेन हग्स एंड नाइन किसेस।” मैं स्तब्ध हो गया, कहीं न कहीं वही टीचर और स्टूडेंट की फॉर्मेलिटी और वही नैतिकता। यही सब सोच कर मैं पीछे हट जाता था।
एक बार बहुत तेज़ बारिश हो रही थी। मैं अपनी एक्टिवा स्कूटर लेकर बारिश के मज़े लेने निकल गया। मैंने शॉर्ट्स और स्लीवलेस टी शर्ट पहनी हुई थी। मैं ज़ोर ज़ोर से हँस हँस कर वहाँ खड़े बच्चों के साथ बच्चा ही बन गया था। इतने में मुझे वहाँ गौरव नज़र आया और वो सीधे मेरे पास ही आ गया। मैंने पूछा “यहाँ कैसे?” वो बोला “मेरा घर यहीं तो है पीछे चलो”। मैं भी घर जाने को राज़ी हो गया। उसके घर पर सभी गाँव गए हुए थे। आज मुझे उसका रवैय्या बहुत अजीब सा लगा। मेरी तो धड़कने जवाब दे रही थीं। ऊपर से बारिश। उसने कैपरी और और टी शर्ट पहनी हुई थी। उसने मुझे पानी के लिए पूछा मैंने कहा “नहीं पानी की ज़रूरत नहीं है”। वो मेरे पास बैठ गया और बोला “आप बस 2 घण्टे मेरे टीचर हो और उसके बाद मेरे दोस्त”।
मैंने भी हँस कर “डन” बोल दिया। उसके बाद वो मेरे क़रीब आया मैं भी आज सारी मर्यादाओं को ताक पर रखकर वही सोच रहा था जो गौरव सोच रहा था। मैं झट से उसके गले लग गया, और मेरा जिस्म कांप रहा था, और मेरे होंठ भी कंपकपा रहे थे। मेरी धड़कनों का तो हाल ही बुरा था। उसकी साँसों में भी तेज़ी आ गई थी। उसने मेरा चेहरा ऊपर की ओर किया और मेरे होंठों को प्यार से चूमने लगा। यह मेरा पहला एक्सपीरियंस था किसिंग का। धीरे धीरे मैं बिस्तर पर लेट गया और वो भी। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं कोई ख़्वाब देख रहा हूँ। मेरे जिस्म से ज़्यादा मेरी रूह की प्यास मुझे तड़पा रही थी। हम दोनों की स्तिथि एक जैसी थी। मैं और वो उस वक़्त एक जिस्म दो जान बन गए थे। वो मेरी चादर बना हुआ था और उसकी बाँहें मेरा सहारा। उसने मेरे हर जिस्म को निहारा और मुझे अपनी आगोश में क़ैद कर लिया।
हवा ए सर्द और हम दरमियाँ चलते हैं
बदन ये चाहता है एक बदन लपेटा जाए।
बदन पे वहशत ए शबनम का ठण्डा लम्स हुआ
रूह के मिलन को आओ कुछ लपेटा जाए।।
मेरे और उसकी ज़िन्दगी की शुरुआत हो चुकी थी। वह बारहवीं पास कर के इग्नू से ग्रेजुएशन करने लगा। इसी बीच मेरा बहुत अच्छे कॉलेज में बीएड की मैरिट लिस्ट में नाम आ गया। वो कोर्स रेगुलर था। इस बात से गौरव के ऊपर काफी नकरात्मक प्रभाव पड़ा। मैंने उसकी ख़ातिर वो कोर्स छोड़ दिया और उसके साथ ज़िन्दगी गुज़ारने लगा। वो पूरे दिन मेरे साथ ही रहता और बस रात को सोने के लिए घर जाता। उसके पैरंट्स को मेरे पास रोकने से कोई आपत्ति नहीं थी। कई बार जगह न मिलने की वजह से मैं अपनी बहन के घर जाकर उसके साथ अच्छे पल गुज़ारता था। मेरे जीजा ऑस्ट्रेलिया में वर्किंग थे तो मेरी बहन अकेलेपन की वजह से हमारे साथ ही रहती थी। हम उसके घर जाकर प्यार के पल गुज़ारा करते थे। साथ में टीवी पर मूवी देखना, साथ में नहाना फिर अपने हाथ से मैं कुकिंग करता और वो खाता। मेरे दिन खुशियों से बीत रहे थे। पूरे तीन साल यही सिलसिला चलता रहा, गौरव ने मुझे बोला हम जल्दी ही चंडीगढ़ शिफ्ट हो जाएंगे। मैं जॉब करूँगा आप घर पर रहना। हम एक दूसरे के साथ एक पति पत्नी की तरह रहने लगे थे। इसी बीच मुझे स्कॉलरशिप के लिए कॉल आया। यह कॉल किसी NGO के द्वारा किया गया था। मैंने वहाँ पैसों के लिए अप्लाई किया था ताकि मैं बीएड किसी प्राइवेट यूनिवर्सिटी से कर सकूँ। मगर उस समय मैंने काफी सोचा और निर्णय लिया कि गौरव को स्कॉलरशिप दिलवा देता हूँ वो ग़रीब भी है और ग्राफ़िक डिजाइनिंग में उसको इंटरेस्ट भी है। तो उसके लिए 1 लाख 32 हज़ार रुपए की ज़रूरत थी। मुझे स्कॉलरशिप से 1 लाख रुपये मिले और 32 हज़ार मैंने अपनी बहन से माँग कर उसके एडमिशन के लिए दे दिए। उसका ग्रेजुएशन पूरा हो चुका था। एक बहुत ही नामी इंस्टिट्यूट से ग्राफ़िक डिजाइनिंग 1 साल का डिप्लोमा करने लगा। उसमें लगन थी और मेहनती भी था। उसने 2016 से 2017 के अक्टूबर तक यह कोर्स किया और अपने काम में वह बहुत माहिर हो चुका था।
मैं उसी जगह पर खड़ा था जब वह 12वीं कक्षा में था, वह बहुत ऊपर पहुंच चुका था और मैं सिर्फ ग्रेजुएट्स। बहरहाल! हम दोनों अच्छी तरह से अपनी ज़िंदगी गुज़ार रहे थे। 30 दिसम्बर 2017 को सुबह गौरव नहीं आया। मैंने फ़ोन किया तो फ़ोन स्विच ऑफ था। मैं बिल्कुल घबरा गया। उसी घबराहट में मैं उसके घर भागा, देखा वहाँ पर ताला लगा था। मैंने उसकी माँ को फोन लगाया वहाँ से भी कोई ख़ास जवाब नहीं मिला। पूरे 1 घण्टे बीतने के बाद मेरे व्हाट्सएप्प पर हाथ से लिखा हुआ लेटर आता है और उस पर लिखा था।
“इमरान सॉरी! मैं तेरे साथ नहीं रह सकता। मेरे साथ बहुत सी मजबूरियाँ हैं। तू सनी (जो हमारा दोस्त था) को अपना लाइफ पार्टनर बना लियो। और मुझसे कभी कांटेक्ट करने की कोशिश मत करियो वरना मैं ख़ुद को ख़त्म कर लूंगा”।
यह पढ़ते ही मैं ज़मीन पर ही बैठ गया और तेज़ तेज़ रोने लगा इसके अलावा मेरे पास बचा ही क्या था। मुझे ऐसा लगने लगा था मुझे किसी ने ठग लिया हो। मैं ऐसी स्तिथि में आ गया था जहां से मुझे कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। मैं बिल्कुल अकेला रह गया। लगभग 12 दिन ही बीते होंगे। मैंने खुद को मज़बूत बनाने का निश्चय किया। उसके जाने के बाद मैंने सबसे पहले जॉब के लिए अप्लाई किया। अजीम प्रेमजी फाउंडेशन में मैंने उत्तरकाशी के लिए टीचर की जॉब के लिए अप्लाई किया। साथ के साथ डिप्रेशन का मरीज भी बन गया। बचपन तो था ही बहुत तक़लीफ़ों से भरा उसके बाद ये वाला एपिसोड भी ज़िंदगी में आ गया था।
गौरव के बाद मुझे बहुत समय तक लगा की मैं दोबारा प्यार में नहीं पडूंगा। क्वीयर लोगों के लिए प्यार ढूंढना और खुलके प्यार करना काफ़ी मुश्किल हो सकता है। शायद इसीलिए जब गौरव और मैं थे, मैं इतना खुश होगया की खुद को खो दिया उस रिश्ते में। ब्रेकअप के बाद मैंने खुद पर खुद के करियर पर ध्यान दिया। आज मैं खुश हूँ कि मैं आत्मनिर्भर हूँ। पर धीरे धीरे जैसे मेरा दर्द और गुस्सा थोड़ा कम हुआ, मुझे एहसास हुआ कि प्यार करने में या किसी को खुश करने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन अगर हर बार सिर्फ़ आप ही मेहनत करते हो, अगर वो दूसरा कभी मेहनत न करे तो वो रिश्ता बराबरी का नहीं है। क्वीयर रिश्तों में कई बार जब रिश्ते टूटते हैं, तो दोस्तों से या परिवार वालों से इसके बारे में बात नहीं हो पाता है। मगर जब खुद की ज़िन्दगी हो - जैसे नौकरी हो या पढ़ाई, तो संभलने में थोड़ी मदद मिल जाती है। सच पूछो तो आज भी मुझे ये डर है की कोई मेरे साथ ऐसे फिर न कर दे। पर ये सीख भी है की प्यार के साथ मुझे बराबरी की भी उम्मीद करनी चाहिए। मैं खुद को इतना ना खो दूँ कि वो दूसरा इंसान ही मेरी पूरी दुनिया बन जाए। उस दूसरे इंसान के साथ खुद का भी उतना ही ख्याल रखूँ। मैं आज एक राइटर के तौर पर काम करता हूं और साथ के साथ गौरव का शुक्रिया भी करता हूँ कि उसके जाने से मैं एक आत्मनिर्भर इंसान बन सका, जो आज आत्मविश्वास से भरा हुआ है।
इमरान खान एक योग्य पोस्ट ग्रेजुएट हैं। वह महिला सशक्तिकरण और मानसिक स्वास्थ्य के साथ काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन के लिए
पेशेवर अनुभव वाले युवा एनिमेटर के रूप में पढ़ा रहे हैं। वह एक शोधकर्ता, सामग्री निर्माता (प्रिंट और ऑडियो) और अनुवादक भी हैं।