क्या सेक्स को लेके पॉज़िटिव रहने वाली बातें, हमारे कई पहलू नज़रंदाज कर देती है?
Written by Paromita Vohra & Rama Srinivasan Illustrated by Shikha Sreenivas
Nov 10, 2023
कार्ड पर लिखा है:
कभी कभी लगता है कि सेक्स को लेके पॉज़िटिव रहने वाली बातें, हमारे कई पहलू नज़रंदाज कर देती है?
क्या आनंद की राजनीति उन पहलुओं को जगह दे सकती है?
सेक्स और मज़ा : एक खोज !
कार्ड पर लिखा है:
सेक्स पोजिटिविटी क्यूँ शुरू हुई:
क्यूँकि सेक्स को संस्कृति और संस्कारों में तौबा माना जाता है और उसपर चुप्पी साधी जाती है। लेकिन कभी कभी वो सोच उलटी दिशा में चली जाती है
पर आनंद को सेक्स तक सीमित रखना और सेक्स के अंदर के आनंद को ओर्गाजम तक सीमित रखना, आनंद और सेक्स के तजुरबों को इन डेफिनिशन में बाँध लेते हैं।
पर बिना सेक्स को ज़लील किए, इस बातचीत में यौन हिंसा
या एसेक्शुएलिटी की बात कैसे की जाए ?
ऐसे तो नहीं कि मामले को उलटने से, हम वापस दो तरफी सोच पे उतर आए हैं ? यानी वही अच्छे संस्कार बनाम बुरे संस्कार नए सिरे से लाए हैं?
जहाँ...
सेक्स पोजिटिव = प्रगतिशील, राजनैतिक तौर पे, खुले दिमाग के
और सब = दकियानूसी
कार्ड पर लिखा है:
अब अगर आनंद को पोज़िटिव माना जाए, तो हम ये समझने लगते हैं कि किसी भी संस्कृति में, मनाही या पाबंदी के साथ-साथ, कामुकता भी रहती है।
और हर कोई आनंद की अपनी इमारत बना सकता है,
आनंद ( या संस्कृति) का कोई एक रूप थोड़े ही है ।
तो शायद आनंद की राजनीति में और जिगर है (और ये अंग्रेज़ों द्वारा थोपी गयी सोच के खलाफ है) (और सभी पहचानों की गुत्थमगुत्था में पनपती है)
जबकी सेक्स पोजिटिविटी
की सोच में ये ख़तरा है कि वो आपको बताने लगती है कि 'नार्मल' क्या है। (वही निगोड़ी अंग्रेज़ी सोच)
कार्ड पर लिखा है:
सेक्स-पोसीटिविटी प्लेशर (आनंद) -पोसीटिविटी का हिस्सा है !
जब हम सेक्स करते हैं, हम अपने गुँथे हुए अलग पहलू और हमपे सामाज के असर को साथ लाते हैं। औरों के लिए आनंद क्या होना चाहिए, इसपे पंचायत बैठाने के बजाए, लोग अपने खुद के आनंद की परिभाषा ढूँढ सकते हैं।
खाना मेरे प्यार की भाषा है
मैं अलैंगिक हूँ, पर बर्फ की सिली नहीं
कविता से मुझे सेक्सी फीलिंज़ आती हैं
एमोशनल रूप से निश्चिन्त होने के लिए, मेरे लिए दोस्ती बहुत ज़रूरी है
हुक अप से मुझे कॉन्फिडेन्स मिलता है
कार्ड पर यह लिखा है:
मज़े की राजनीति
एक तरीका है जिससे हम जो खुद पेशक करते हैं, उसे समझ पाएँ
दूसरों के निर्णय और अच्छे-बुरे के दोहरेपन पे अपनी निर्भरता को समझ पाएँ
और अपनी इंद्रियों की जानकारी पर भरोसा करना सीख सकें
एक ऐसा समुदाय बना सकें जो ऐसी जानकारी पे भरोसा रखे खुली बुद्धि से सुनें, उसपे सही गलत का ठप्पा ना लगाएँ ।
पूरा प्लेशर मैनिफेस्टो पड़ने के लिए, लिंक इन बाइओ जाईए !