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अपनी बेटी के साथ सेक्स और शरीर के बारे में बात करते करते मैं कैसे बदल गई!

अलग अलग उम्र में एक माँ अपने बेटी के साथ सेक्स पर बातचीत करती है

"अम्मा , मैं कैसे पैदा हुई ? मैं कहाँ से आयी ? '

"हमने अपना परिवार शुरू करने के लिए बड़ा लम्बा इंतज़ार किया।  और जब हम तैयार हुए तो हमने दुआ में एक बच्ची मांगी  ।  तुम उसका दिया हुआ वही तोहफा हो।  "

 मेरी बेटी ने जब मुझसे यह सवाल पूछा तब वह पांच साल की थी। मेरा वही घिसा पिटा सा जवाब था, जो पीढ़ियों से माएं अपने बच्चों को दे रहीं थीं।  लेकिन मुझे लगा हमारी इस बातचीत से बहुत कमी है ।  मैं हम दोनों के लिए, इससे कुछ ज़्यादा चाहती थी।  मैं चाहती थी मेरी बेटी और सीखे, और सवाल करे।  और मैं उस टाइप की माँ बनना चाहती थी, जो उसकी बातों को सुन सके और प्यार और ईमानदारी से उनका जवाब दे सके।  

मैंने लोगों से सलाह ली। इस बारे में, जितना हो सका, उतनी पढ़ाई की।  मैंने मीटिंग्स ज्वाइन कीं जहां मैंने जवान होना , सेक्स, और बदन को ले के खुलापन स्वीकारना सीखा, ताकि मैं अपनी बेटी से बिना कुछ छिपाये बात कर सकूँ।  

एक मीटिंग में मैं पेरेंट्स के समूह और प्रोग्राम की एक मददकरता के साथ थी।  सबके ही पास अपनी झिझक और खुलेपन को ले के किस्से -कहानियां थीं।  

एक माँ ने बताया के उनके किशोर बेटे को जानवरों से बहुत प्यार है और उसने उनको कई बार सम्भोग करते देखा था।  वो किताबों और वेबसाइट की मदद से जानवरों में प्रजनन किस मौसम में होता है - ऐसे सवालों पे जानकारी लेता रहता है।  ' मुझे ऐसा लगता है कि सम्भोग के क़रीबीपन में एक तरह का भोलापन और रोमांच भी है और मैं अपने बच्चे से इस बारे में बात कर के ,उससे ये रोमांच नहीं छीनना चाहूंगी' उन्होंने दुःख जताया। 

 एक बाप ने बताया कैसे उनको बचपन में अपने नंगे बदन को देखने की वजह से, उनको  बुरा फील कराया गया था ।  

 एक और माँ ने बताया के उनका पांच लोगो का परिवार कभी -कभी बिना कपड़ों के सोता है ताकि वो एक दूसरे और अपने खुद के शरीर के साथ आरामदेह महसूस कर सकें।  ( मैं मानती हूँ , यहाँ मैं थोड़ा घबरा गयी थी , मुझे नहीं लगता मेरे घर में लोग एक दूसरे के साथ बिना कपड़ों के सोने को तैयार हैं ।  )

प्रोग्राम की एक सहायक ने फिर अपनी कहानी सुनाई कि उन्होंने कैसे और कब अपनी साढ़े चार साल की औलाद के साथ सेक्स के बारे में बातें कीं । 

 उन्होंने बताया ' अपने बच्चों से खुल के उनके बदन , उसमे आने वाले बदलाव और तरह तरह के हार्मोन्स जो उनके इमोशन्स के साथ खिलवाड़ करते है , के बारे में बात करने से उनकी दुविधा दूर होगी और उनमें कॉन्फिडेंस आएगा। 

 ' ऐसे खुल के बात करने से, माँ -बाप का नज़रियाँ भी बदलता है और वह चीज़ों को अलग अलग दृष्टिकोण से देखने लगते है।  असल में , बच्चों से ज़्यादा इससे माँ- बाप को फ़ायदा होता है। 

उन्होनें  यह बात भी साफ़ -साफ़ बोली कि हर माँ -बाप को देखना पड़ेगा कि वो क्या चीज़ है जो उन्हें बच्चों से खुल के बात करने से रोक रही है।  इसको कोई एक बंधे हुए तरीके से से नहीं किया जा सकता। 

फिर बाद में मैंने अपने खुद के बचपन और किशोरावस्था के बारे में सोचा। वो तरह तरह के बदलाव जो बदन और मन दोनों में आएं, वो आकर्षण और चाहत , और फिर वो नाम का ' पहला प्यार '।  इन सब बदलाव के बारे में मुझे कोई बहुत जानकारी नहीं थी l और इन बातों से जो शर्म जुड़ी थी, जो कलंक की फ़ीलिंग थी, मैं  गुडक गयी, उन  सबको मानती रही  । 

लेकिन मैं आगे अपनी बेटी को इस अज्ञान के अंधेरे में नहीं रखना चाहती हूँ । 

 शुक्र है , मेरे पास अब ऐसे लोग और संसाधन है जिनसे मैं सलाह ले सकती हूँ।  जिन मंडलियों का मैं हिस्सा हूँ , उनमें  कई ऐसे परिवार हैं  जो सेक्स  और कामुकता को ले के जो आम समाज में गोपनीयता है , उसकी सीमा पार कर चुके हैं।  और मैं सलाह के लिए उनका दरवाज़ा कभी भी खटख़टा सकती हूँ। 

 Agents of Ishq (AOI) को मैं सेक्स और कामुकता के एक ऐसे नक़्शे के रूप में देखती हूँ।  इसको मैं शब्दकोष भी कहूँगी और कोर्स की किताब भी,  जहां एक संवेदनशील विषय एक सुरक्षित और प्यार भरे माहौल में खुल और खिल पाता है ।  सबसे ज़रूरी बात यह है, कि AOI भावनाओं और उनकी जटिलताओं से नहीं घबराता, बल्कि हर चीज़ को सामने रखता है, चाहे वो  असहजता हो या साफ़ साफ़ बात,  अधूरापन या किसी चीज़ का पूरा होना । 

 इस तरह से मैं अपनी बेटी से बदन और सेक्स के बारे में खुल के बात करना सीख रही हूँ।  मुझे लगता है मैं कहीं न कहीं खुद अपनी दबी हुई शर्मिन्दिगी और कुछ मामलों में सीमित सोच से पीछा छुड़ाना भी सीख रहीं हूँ। 

ऐसा करने का कोई एक बहतर तरीका नहीं है - लेकिन इस तरह से मैंने एक- एक टॉपिक के बारे में बात करना सीखा है। 

बच्चे का जन्म और स्तनपान

 उम्र  : 6

 मैंने बात जहाँ से शुरू होती है, वहीं से शुरआत की , मतलब पहले बच्चा पैदा होने की बात की।  मैंने उस टाइम की कहानियां अपनी बेटी को सुनाई जब वो मेरी कोख में थी। 

मैंने उसको बताया कि मैं प्रेग्नेंट होने पे कितनी खुश हुई थी , और यह जान के कि बेटी होने वाली है , कैसे और भी ज़्यादा ख़ुशी हुई थी। मैंने उसको बताया कि, जब मैं ट्रैन और बसों में यात्रा करती थी तो वो मेरे कोख में कितने आश्वस्त और  आराम से रहती थी।  और हर कोई, यानी पूरी दुनिया ही उसकी सुरक्षा की चिंता करती रहती थी। 

मैंने उसको जो नहीं बताया, वो वो हिस्सा था कि वो मेरे कोख में कैसे आयी ।  मैं उसको बताना चाहती थी कि मैंने  उसको नार्मल तरीके से ( नार्मल डिलीवरी ) पैदा करने के लिए कैसे तैयारी की। 

शुरुआत के लिए, मैं ऑनलाइन गयी और उसको कई जानवरों के जन्म देने के वीडियो दिखाए।  मैंने उसको थोड़ी बात- चीत के ज़रिये यह समझाया कि हर जीव -जंतु का जन्म होता है और वो जन्म देते है , और दुनिया ऐसे ही चलती है। 

 "अम्मा ,क्या मैं भी अपने आप ही बाहर आ गयी ?"

 "हाँ और न। हर एक औरत को यह पता नहीं होता है कि अपने आप बच्चा कैसे पैदा करना है।  लेकिन हमारे पास डॉक्टर्स और नर्स है जो इस प्रक्रिया में हमारी मदद करते  हैं।  और मैं ज़रूर खुशनसीब थी कि मुझे एक ऐसी डॉक्टर मिली जिसने मेरे नार्मल डिलीवरी करने के फैसले का ख़ुशी ख़ुशी साथ दिया।"

 इस बात चीत के बाद मैंने एक वीडियो चलाया जिसमे एक औरत हॉस्पिटल में बच्चा पैदा कर रही थी।  यह पहली बार था जब मेरी बेटी  ने ' वजाइनल डिलीवरी ' और ' सी - सेक्शन ' जैसे शब्दों को सुना था। 

 आश्चर्यचकित हो के उसका मुँह खुला का खुला रह गया और उसने पूछा "दस घंटे दर्द में रह के कैसा लगा"

 "मीठा दर्द :) , प्रसव के दौरान डॉक्टर ने इस बात का पूरा ख्याल रखा के मुझे ज़्यादा तकलीफ न हो। और फिर ज़्यादा दर्द इसलिए भी नहीं हुआ क्यूंकि मुझे पता था कि तुम भी कहीं न कहीं मेरी मदद कर रही हो इसमें।  मेरी अगली इच्छा यह थी कि मैं तुमको कम से कम एक साल तक दूध पिलाऊँ ।  यह एक अलग अनुभव था जो कष्टदायी भी था और ख़ुशी से भरा हुआ भी ।"

 उसके पैदा होने के करीब डेढ़ साल तक मैंने अपना दूध पिलाया, स्तनपान किया । ये वो अगला विषय रहा जिसके बारे में मैंने उससे धीरे धीरे बातें की।  मैंने उसको स्तन के दूध के फायदे बताये , कि कैसे वो बच्चों को बीमारियों और रोगों से बचाता है।  फिर मैंने उसको यह भी बताया कि कैसे स्तन का आकार बड़ा हो जाता है और बाद में लगातार महीनों तक दूध पिलाने से लटक जाता है। 

 एक बार हमारे घर में एक नयी -नयी माँ रहने आयी ( मेरी बहुत ख़ास और प्यारी दोस्त ) । मेरी बेटी इस चीज़ ने बड़ी आकर्षित थी कि बच्चा किस ख़ूबसूरती से, अपनी माँ से चिपका रहता था ,उसके ब्रैस्ट से दूध पीता था और फिर पीते पीते सो जाता था। 

 उसने देखा कि बच्चे को बार बार दूध पिलाने से कितनी तकलीफ होती है।  पीठ पे कितना ज़ोर पड़ता है और ब्रैस्ट में कैसे लगातार दर्द होता है। 

मुझे अपने खुद के मुश्किल दिन याद आए जो मैंने महसूस किये थे।  और फिर मैंने अपनी दोस्त को ब्रैस्ट में, दूध पिलाने की वजह से हो रहे जलन और दर्द से निजात पाने के लिए गरम पट्टी लगाने की सलाह दी।  यह सुन के मेरी बेटी झटपट किचन में गयी  और  मेरी दोस्त की मदद करने के लिए पत्ता गोभी का गरम पैक बनाने लगी।  ऐसा उसने कई बार किया। 

 मुझे उसका एक नयी माँ और उसके बच्चे पे इस तरह प्यार बरसाते देख, बड़ा आश्चर्य हुआ।  एक साफ़ ईमानदार बात चीत ने कैसे मेरी बेटी के अंदर की अच्छाई बाहर निकाल दी थी ।  इसके बा,द बच्चा पैदा करने और दूध पिलाने के बारे में बात चीत को ले के मेरी जो भी दुविधा थी , वो शांत हो गयी। 

बदन और गुप्तांग

( उम्र -  3 से 7 )

बहुत लोगों की तरह, मैं भी उसी माहौल में बड़ी हुई हूँ जहां गुप्तांग और नंगा होने को ' छी ' बोला जाता था।  मुझे इस चीज़ से बाहर आने और अपने शरीर के अंगों के बारे में बुरा न महसूस करने में काफी टाइम लगा। 

 मेरी दोस्त ने करीब दस साल पहले मुझे एक शब्द सिखाया ' प्राइवेट पार्ट्स ' और बताया कैसे उसने अपने बेटे को प्राइवेट पार्ट्स के बारे में सिखाया। 

 तो बदन की बात करते -करते हमने बात की, कि अपने प्राइवेट पार्ट्स को ढकना कितना ज़रूरी है और ये, कि उसको हर  किसी को दिखाते नहीं है।  अपनी गुड़ियाओं के साथ खेलते खेलते, यह बात उसको बड़े आराम से समझ आ गयी।  खेलने के बाद वो कभी भी उनको बिना कपड़ो के इधर उधर नहीं फेंकती थी।

 मैंने अपनी बेटी को करीब करीब वैसे ही बड़ा किया जैसे मैं  हुई , फ़र्क़ ये कि  मैंने  कभी ' शर्म'  शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। 

 "याद है हम उस शहर में दादा जी से मिले थे जो कि बिस्तर पे पड़े हुए थे ?"

 "हाँ ?"

 "तुम्हे याद है उनकी बेटी और एक महिला सहायक उनकी रोज़ मदद किया करती थी ?"

"हाँ ?"

 "खाना खिलाने और जूस पिलाने के साथ साथ वो उनका पेशाब वाला बैग भी खली करतीं थीं और पॉटी के बाद उनको पोंछती भी थी।  वो स्पंज से उनका शरीर साफ़ करतीं थी और उनके कपड़े भी बदलती थी।  अगर सहायता करने वाले को घिन या घृणा होने लग जाए, तो वो अपने काम के साथ कभी भी पूरी तरह न्याय नहीं कर पाएंगे।" 

 "ओह अम्मा, क्या तुम कभी ऐसा  काम कर पाओगी ?" 

"पता नहीं, कहना मुश्किल है , लेकिन उम्मीद करती हूँ कि अगर मुझे कभी किसी की इस तरह से मदद करनी पड़े, तो  मैं खुद में इतनी स्वेच्छा ला सकूं।"

 नग्नता से प्राइवेट पार्ट्स के बारे में इस तरह की बातें करते हुए मुझे धीरे धीरे ये समझ आया  कि मैं खुद ही अपने शरीर को नहीं स्वीकार पा रही हूँ।  मेरा पेट हमेशा से ही बाहर निकला था, चाहे मैं कितना व्यायाम कर लूँ  या स्पोर्ट्स खेल लूँ। 

 मेरी ऑनलाइन रिसर्च बताती है कि इसके पीछे कई कारण हैं, जैसे आसान या  पाचन को ले के गड़बड़ी, चर्बी का जमा होना , बच्चा पैदा होने के बाद पेट निकलना , और भी जाने क्या क्या।  जब लोग मेरे पेट को देखते या कोई सवाल पूछते हैं,  तो मैं उनको बोलती हूँ कि यह मुझसे इतना प्यार करता है कि छोड़ने को ही तैयार नहीं है। 

मेरी बेटी देखती है कि मैं अच्छा दिखने और फ़ील करने  के लिए ज़रूरी कदम उठाती हूँ।  और ऐसा कई बार हुआ है कि जब मैं अपने आप के लुक से संतुष्ट नहीं होती हूँ, तो वो मुझे समझाती है।  मुझे याद है कई बार होता है कि मैं खुद को आईने में देखती हूँ और मुझे अच्छा नहीं लगता।  वो आती है और एकदम ईमानदारी से मुझे बताती है कि क्या करना है।  जैसे कहेगी कि यह पहन लो, या ऐसा हल्का मेकअप कर लो , या ऐसे बाल बना लो कि जिससे फर्क लगे। 

 ऐसे पल मुझे याद दिलाते है कि मैं खुद के साथ कितनी सख्त हो जाती हूँ और और ये भी कि मेरे लिए, खुद के पहनावें में थोड़ा सा बदलाव लाना कितना मुश्किल है।  अच्छा लगता है जब बच्चे आस पास होते है ल वो कि इतने मासूम और बिना किसी धारणा के होते है, और जो खूबसूरती को वैसे नहीं देखते जैसे मीडिया देखता है , सीमित और बंधी हुई सोच के साथ l

माहवारी 

(आयु: 5 -6  साल)

"अम्मा जब तुमको पीरियड्स होंगे तो मुझे अपने पैड दिखाओगी?"

"मैं अब पैड्स इस्तेमाल नहीं करती हूँ। उसकी जगह मेंस्ट्रुअल कप यूज़ करती हूँ। अगर तुमको माहवारी में निकलने वाला खून देखना है तो वो मैं दिखा सकती हूँ।"

"यस, प्लीज़ दिखाओ।"

मैंने सोचा कि अपनी बेटी से, सेक्स के बारे में बात करने से पहले,  माहवारी की बात करना ज़रूरी है । इसलिए बच्चा पैदा होने के ज़िक्र से भी पहले, मैंने मेंस्ट्रूपीडिया कॉमिक आर्डर कर दी।

ये किताब चार भाग में बंटी है। इसमें माहवारी से शरीर के अंदर होने वाले बदलाव के बारे में और  किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक और इमोशनल बदलाव के बारे में बताया गया है।

मुझे याद है जब भारत में नये नये 'केअरफ़्री' सेनेटरी पैड आये थे। उस समय मैं 8-9 साल की थी। हमारे घर पर मेहमान आये हुए थे। और टीवी पर उसका ऐड आया। मैंने तपाक से माँ से पूछा कि वो ऐड में वो नीला पानी क्या है, जिसे वो दिखा रहे हैं। मेरी माँ को इतनी शर्मिंदगी महसूस हुई कि उन्होंने तुरंत टॉपिक ही बदल दिया।

मैं एक रूढ़िवादी, पुराने ख्यालात वाली फ़ैमिली में बड़ी हुई । जहाँ माहवारी के साथ बहुत सारी मनाही और पाबंदियाँ जुड़ी थीं। लम्बे समय तक मैं भी इनको मानती थी। माहवारी के समय खुद को गंदा मानना, किसी से भी टच ना होना, और उन पांच दिनों घर में सबसे दूर एक अलग रूम में रहना। 

मुझे बहुत ख़ुशी है कि मेरी बेटी ने इसमें बिना कुछ गन्दा देख,  इसे प्रकृति का ही हिस्सा माना, सुंदर भी माना। मुझे इस बात की भी ख़ुशी है कि उसने नैपकिन बल्कि माहवारी का लाल खून को बनाया हुआ देखा, नीला रंग नहीं ।

कपड़े

(आयु: 7 साल)

जब मेरी बेटी सात साल की थी तब वो काफ़ी पारम्परिक लड़कियों वाले कपड़े ही पहनती थी। जैसे लहँगा, कुर्तियाँ, इत्यादि। टी शर्ट और शॉर्ट्स या पैन्ट्स तो उसे बिल्कुल ही पसंद नहीं थे।

चूंकि मैं खुद एक पुराने ख़यालात रखने वाले  परिवार से हूँ, तो मुझे उसकी चॉइस से कोई परेशानी नहीं थी। पर ये भी सोचती थी कि कहीं एक तरह के पहनावे से ही वो अपनी पहचान न बना ले। और फिर इस के इर्दगिर्द बनाई हुई सोच में कैद हो कर रह जाये।

मैं चाहती थी कि वो ये देख पाए कि अलग अलग लोग अपने मन के मुताबिक कपड़े पहनते हैं, उनके ज़रिए अपनी अभिव्यक्ति भी करते हैं । मैंने उसे फ़ेसबुक पर अपनी दोस्तों के फ़ोटोज़ दिखाये। उन सबने अलग अलग तरह के कपड़े पहने थे, ऐसे,  जिसमें वो कम्फ़र्टेबल थे।

"तो कैसे लगे तुमको फ़ोटोज़?"

"मुझे तो सब पसंद आये। पर जिन फ़ोटोज़ में ज़रूरत से ज़्यादा स्किन दिख रही थी वो मुझे अच्छे नहीं लगे।"

"हम्म। मैं भी हमेशा कम्फ़्टर्बल फ़ील नहीं करती हूँ, पर मैं दूसरों की चौइस को स्वीकार करना भी सीख रही हूँ। उनके पहनावे से मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।  पर उन्होंने वो कपड़े क्यों पहने हैं, वो मेरे लिए मायने रखता था - किसी को इम्प्रेस करने के लिए या कोई बात रखने के लिए? क्या वो अपने शरीर को लेकर और खुद के बारे में  पॉज़िटिव फ़ील करते हैं? मैं बस ये चाहती हूं कि अगर तुमको भी अलग तरह के कपड़े पहनने हैं तो ज़रूर पहनो। बस इसका ध्यान रहे कि उसको पहनने के पीछे का कारण क्या है, वहाँ पे सतर्क रहो ।"

"अम्मा, क्या तुमने कभी शॉर्ट्स और टैंक टॉप्स पहने हैं?"

"हाँ, जब कुछ साल पहले मैं और अप्पा कैलिफ़ोर्निया और टोरंटो में थे। कभी खुद की पसंद से और कभी अप्पा का मन रखने के लिए। फ़्रॉक्स और स्कर्ट्स पहनना मुझे अच्छा लगता था। मैं उनमें खुद को आज़ाद और यंग महसूस करती हूँ।"

"तो आप अब  क्यों नहीं पहनती?"

"मुझे लम्बे स्कर्ट्स, कुर्तियों और सलवार की सादगी बहुत भाती है। और कपड़ों के मामले में, मैं अपने आसपास के माहौल से भी प्रभावित होती हूँ। पर मैंने अपने को ये आज़ादी भी दी है, कि अगर  और जब  मेरा मन करेगा, तो मैं फ़िर से वेस्टर्न कपड़ों के साथ एक्सपेरिमेंट करुँगी।"

"मुझे नहीं पसंद जब लोग मेरे हाथ पांव को घूरते हैं। इसीलिए मैं पूरे ढकने वाले कपड़े पहनती हूँ।"

"हाँ अपने माहौल को परखना ज़रूरी है । आप जिनके साथ हैं, क्या उनके साथ सेफ़ फ़ील करते हैं या नहीं, ये भांपना ज़रूरी होता है। मेरे ख़्याल से ये सबसे सही तरीका है।"

कई साल मुझे लगता था कि मेरे लम्बे बाल और मेरे ढके तुपे कपड़ों से मेरी पहचान थी। पर समय के साथ मुझे एहसास हुआ कि मेरे बालों की और कपड़ों की लंबाई का मेरी पहचान से दूर दूर तक नाता नहीं था। देखा जाये तो इन कपड़ो और बालों ने मेरी सोच को बदलने में काफ़ी मदद की। मैं सोच समझ कर अपने निर्णय लेना चाहती हूँ- क्यों और किसके लिये ले रही हूँ।

सेक्स 

(आयु: 5-7 साल)

मेरे लिये ये काफ़ी जटिल टॉपिक रहा । भले ही मैं अपने बच्चे से  हर दिन बात करूँ, उसके और उसके जैसे बच्चों के दिमाग में, मीडिया की छवियाँ हावी होती है। उनके दिमाग़ में क़रीबियों के ये आधे अधूरे चित्र बस जाते हैं   - प्यार, किस, ज़बरदस्ती करना :

जब मुझे लगा कि मैं उससे सेक्स के बारे में बात करने को तैयार हूँ, तो मैं ऑनलाइन गई। और ए.ओ.आई. की वेबसाइट में मैंने 'मैं और मेरी बॉडी' नाम की सेक्स एजुकेशन वीडियो पाई। उस वीडियो में ये सब समझाया गया:

इसके अलावा और भी जानकारियों को बहुत ही मज़ेदार ढंग से बताया गया। जिससे मेरा काम बहुत ही आसान हो गया।

"तुम जानना चाहती हो कि लोग तुमको मेरा और अप्पा का मिला जुला रूप बोलते हैं? या तुम्हारी नाक तुम्हारी दादी जैसी क्यों है?"

 "नो, अम्मा।"

"मैं तुम्हें एक वीडियो दिखाना चाहती हूँ। किसी भी समय अगर तुमको अजीब लगे तो बोलना। हम बाद में डिसकस कर सकते हैं।"

"ओके"

वीडियो देखने के बाद (जोकि उसे बहुत पसंद आया)

"देखो मैं जानती हूँ कि तुम्हें ये सब जानकर बहुत उत्साहित हो पर कुछ लोगों को इस टॉपिक पर बात करना अजीब लगता है।"

"ओके। पर क्यों?"

"सेक्स एक निजी मामला होता है। दो लोगों के बीच का। और सब लोग इसे खुलकर डिस्कस करने के लिये तैयार नहीं होते हैं। और तुम्हारी उम्र के बच्चों को तो इसके बारे में पता भी नहीं होता है। जब तक उनके पेरेंट्स या टीचर उनको बताते नहीं हैं।"

"क्या ये मैं अप्पा के साथ देख सकती हूँ?"

"बिल्कुल, अगर उनको कॉम्फर्टबेल लगे तो। उनको भी जानकर अच्छा लगेगा कि हमने इस टॉपिक पर बात की।"

उसने अपने अप्पा के साथ वीडियो देखा । पर समय समय पे सर हिलाने के सिवाये और वीडियो को अच्छा बोलने के अलावा उन्होंने और कुछ नहीं बोला।

मैंने अपनी बेटी के साथ गे, लेस्बियन और ट्रांसजेंडर रिश्तों के बारे में भी थोड़ी बहुत बात की। सच बोलूँ तो मुझे भी उनकी ज़िंदगी और दुनिया के बारे में कम ही पता है। मैं भी अपनी बेटी के साथ सीख ही रही हूँ।

ये सच है कि जटिल टॉपिक को बच्चों के साथ डिस्कस करने से हमारे रिश्ते और गहरे और सशक्त हो जाते हैं। बातों का छुपाना कम और खुल कर बात करना ज़्यादा हो जाता है। हम एक दूसरे वे ज़्यादा कनेक्टेड फ़ील करते हैं।

हमने बलात्कार/ यौन हिंसा, मानव तस्करी और बदन के व्यापार के बारे में भी लंबी बात की।

उम्मीद करती हूँ कि भविष्य में उनके ऊपर अलग से लिख सकूँ।

फ़िलहाल मैं एक माँ होना एन्जॉय कर रही हूँ।

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