मुझे अच्छे से याद है कि उस समय मैं दस साल की थी, जब मेरी माँ की बड़ी बहन अमरीका से हमसे मिलने आई थीं । और कई दूसरे उपहारों के साथ, ट्रेनिंग ब्रा गिफ़्ट करके उन्होंने मुझे हैरान कर दिया था। अपने बाकी उपहारों की तरह, उन्होंने ब्रा को बेफ़िक्री के साथ उठा के हमें थमा दिया था। लेकिन इससे पहले कि वह मुझे वो दे पातीं, मेरी माँ ताज्जुब और शर्मिंदगी से गल गईं । वो तुरन्त मेरी आंटी से अकेले में बात करने के लिए उन्हें एक किनारे ले गईं।
मैं जिस जगह पर थी, वहाँ से उनकी बातचीत को सुन सकती थी। मेरी माँ साफ़ तौर पर घबरा गई थीं, उन्होंने कुछ हद तक उत्तेजित ढंग से मेरी आंटी को समझाने की कोशिश की कि मुझे ट्रेनिंग ब्रा की कोई ज़रूरत नहीं थी। मेरी आंटी द्वारा उनके फ़ायदे गिनाने की लाख कोशिशें के बावजूद, मेरी माँ टस से मस नहीं हुईं। यह साफ़ नज़र आ रहा था कि उनको दिक्कत ब्रा से नहीं, बल्कि "औरत होने" के उन दबे-छुपे पहलुओं से थी, जिनके बारे में उन्होंने अब तक अपनी बेटी से कोई चर्चा नहीं की थी।
वैसे तो दुनिया की हरेक चीज़ पर मेरी माँ के पास अनेक नज़रिए मौजूद थे, लेकिन इन मुद्दों पर बातचीत से वह ज़ाहिर तौर पर असहज हो जाती थीं और बातचीत को आनन-फानन में ख़त्म कर देती थीं। आख़िरकार, मेरी माँ ने ब्रा को सबकी नज़रों के सामने से हटाकर अपनी अलमारी के ख़ुफ़िया ख़ानों में छुपाने का फ़ैसला किया ।
वो इस बात से अनजान थीं कि उनकी बेटी हमेशा उनसे एक हाथ आगे रहती थी, ख़ासकर उन विषयों में, जिन पर अपने बच्चों के सामने बात करने में बड़े-बूढ़े शर्मिंदगी महसूस करते थे। मैंने ख़ुद को उन ब्रा से मोहित पाया, और मैं निराश हुए बिना नहीं रह सकी कि मेरे उन्हें ठीक से देख पाने से पहले ही मेरी माँ ने उन्हें कहीं छुपा दिया था। मैंने उन्हें फिर से हासिल करने की कोई कोशिश करने से पहले, मैंने इंतज़ार किया- हमारे मेहमानों के जाने का, और माँ के इस घटना को पूरी तरह भूल जाने का ।
आखिर मैं उन सभी ब्रा को ढूँढ पाने में कामयाब रही और उन्हें वॉशरूम में ले गई, रोमांच के साथ हरेक को नज़र भर के देखा। ग्रे, क्रीम, काली, नीली और सफ़ेद, अलग-अलग रंगों की पाँच-छह ब्रा थीं। वे गर्मियों के सूती कपड़ों-सी मुलायम थीं और उनके सिरों पर नाज़ुक सी इलास्टिक थी। बड़ा रोमांचक एहसास था वो - ये ब्रा औरत होने के मेरे आगे आनेवाले सफ़र का कितना सुंदर प्रतीक थीं।
इस प्रकार किशोरावस्था से पहले, मेरी पहली बगावत शुरू हुई। मैंने ट्रेनिंग ब्रा का सेट खिलौनों की अपनी अलमारी में छिपा दिया, यही एक ऐसी जगह थी जहाँ मेरी माँ पक्के तौर पर ढूँढने न आती। जब भी घर पर मेरी निगरानी करनेवाला कोई न होता, मैं चुपके से एक ब्रा निकालती और माँ की नज़र पड़ने से पहले उसे कुछ देर के लिए पहन लेती। मैंने इरादा किया था कि मैं ब्रा पहनने की अपनी छोटी-छोटी कोशिशों के बारे में किसी को कुछ भी नहीं बताऊँगी, यहाँ तक कि अपने दोस्तों को भी नहीं, मुझे डर था कि वे यौवन को अपनाने की मेरी बेताबी को समझ नहीं सकेंगे।
इस हरकत में ऐसा कुछ था, जो मुझे औरत होने और वयस्क औरत होने के और क़रीब ले आया, मानो थोड़े समय के लिए ही सही, मैं किसी बहुत बड़े बदलाव से गुज़र रही थी। मेरी अधखिली छाती के लिए डिज़ाइन की गई ब्रा ने जल्द ही उभरने वाली छातियों की ओर संकेत देते हुए, उन्हें हल्का सा सहारा दिया। एक रेगुलर ब्रा की तरह ट्रेनिंग ब्रा में फ़ोम की मोटी परतें और चौड़ी पट्टियाँ नहीं होतीं। ट्रेनिंग ब्रा अकसर हल्के सूती कपड़े और लचीलेपन के लिए थोड़ी सी इलास्टिक से बनी होती हैं। इनके रंग और डिज़ाइन ज़्यादा आकर्षक और सरल से होते हैं। वयस्कों की ब्रा के विपरीत, जो पूरी तरह विकसित हो चुकी छातियों को सहारा देने के लिए और ज़्यादा जटिल डिज़ाइन वाली होती हैं, इन्हें किसी लड़की के बढ़ते हुए शरीर के हिसाब से तैयार किया जाता है। मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे किशोरावस्था की एक झलक के लिए मैं बचपन की मासूमियत के एक हिस्से का व्यापार कर रही थी, और मैं इस सौदे के लिए तैयार थी।
रविवार की एक अलसाई दोपहर को, मैंने उस झुंड में से अपनी एक पसंदीदा ब्रा निकालकर पहन ली। हल्के-नीले रंग और पतली-पतली, इंद्रधनुष के रंग की उभरी हुई पट्टियों वाली यह ब्रा इकलौते रंगीन विकल्प के रूप में सामने आई। हालाँकि, जल्द ही मेरी माँ ने देख लिया कि मैंने नीचे क्या पहना है और मेरा राज़ खुल गया। मेरे सामने सवालों की झड़ी लगा दी गई और मेरे से ऐसी उम्मीद न होने के ताने दिए गए! मेरी हिम्मत कैसे हुई उन्हें चोरी-छिपे निकालने की? उनका मानना था कि मेरा शरीर अभी इन चीज़ों के लिए तैयार नहीं था। उन्होंने इस वादे के साथ मुझे बाकी सभी ब्रा उन्हें देने का हुक़्म दिया कि जब उन्हें लगेगा कि उन्हें पहनने का सही वक़्त आ गया है, वो मुझे बता देंगी।
मैं उदास हो गई थी और रातोंरात किसी ऐसे चमत्कार के होने की उम्मीद कर रही थी, जिससे जादुई ढंग से मेरा खजाना मुझे वापस मिल जाए। लेकिन यौवन के क़रीब आने और निकट भविष्य में स्कूल में ब्रा पहनने की सम्भावना के बारे में सोचकर, मैं बेसब्री से इंतज़ार करने लगी।
दो साल बाद मैंने उन्हें पहनना शुरू किया । यौवन के बदलावों को अनुभव करने की बात करूँ, तो मैं देर से बड़ी हो रही थी, मुझे हमेशा इस बात का मलाल रहता था कि मेरी छाती मेरी उम्र के हिसाब से छोटी थी। मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैं रेगुलर ब्रा की ज़रूरत के बिना ही हाई स्कूल पहुँच गई, ट्रेनिंग ब्रा से ही मेरा काम चल जाता था। उस दौरान, कई बार मैंने चाहा कि काश मेरी छाती भरी-पूरी होती। यूं लगता कि उनके होने से शायद लोग मेरी ओर आकर्षित होते, मेरी कामुकता खुलकर बाहर आ पाएगी। मैं जब भी भरी-पूरी छाती वाली औरतों को देखती, तो सोचने लगती कि काश मैं उनके जैसे होती। साथ ही, अन्य यौन रुझानों के बारे में जान पाने से पहले ही, मैं महिलाओं की ओर आकर्षित होने के अपने रुझान को महसूस करने लगी थी।
भले ही मुझे उनकी ज़रूरत नहीं थी, फिर भी हाई स्कूल और कॉलेज के शुरूआती सेमेस्टर्स के दौरान मैंने सुंदर और रंगीन डोरी वाली ब्रा, पैडेड ब्रा, लेसी लेट्स, और झमेले वाली स्पोर्ट्स ब्रा वगैरह, हर तरीक़े की ब्रा ख़रीदकर अपनी हसरतों को पूरा किया और अपनी पिछली अधूरी इच्छाओं की भरपाई की। हालाँकि, जल्द ही मुझे यह एहसास हो गया कि भरी-पूरी छाती होना तो ठीक है, लेकिन उन्हें सहारा देने के लिए ब्रा पहनना काफ़ी परेशानी भरा था । ब्रा पहनना एक दर्दनाक और मायूस करनेवाली कोशिश बन गई, और जैसे-जैसे मेरी छातियाँ भरती गईं, मैं उन्हें ब्रा के बंधनों से आज़ाद करने के लिए तरसने लगी।
जब मैंने ग्रैजुएशन की पढ़ाई के लिए लड़कियों के एक कॉलेज में दाख़िला लिया, तो मैंने न सिर्फ़ ख़ुद को औरतों से घिरा हुआ पाया, बल्कि जेंडर और सेक्शुआलिटी पर व्यापक सिद्धांतों और चर्चाओं में भी डूबे हुए पाया। वहाँ मैंने ऐसी औरतों को देखा जो अपनी सेक्शुआलिटी को लेकर, और ख़ुद को एक महिला के रूप में पेश करने या न करने को लेकर, एक मज़ेदार ढंग से, बेफ़िक्र और बिंदास थीं।
मेरे भीतर की युवा महिला को उस माहौल के भीतर और बाहर आख़िरकार अपनी आवाज़ मिल गई। मुझे खुद लगने लगा कि मेरी छातियों और सेक्शुआलिटी के साथ मेरा रिश्ता, मुझे तकलीफ़ देनेवाले किसी कपड़े से तय नहीं करना चाहिए।
ब्रा भले ही कई लोगों को सही लगे, और कुछ को इनके न होने की बात सोचकर डर लगे, लेकिन मेरे लिए, ब्रा उम्मीदों का भारी बोझ लेकर आई थी। ख़ुद को आईने में देखने पर मुझे कभी भी अपना बदन ब्रा का विज्ञापन करने वाली उन मॉडलों की तरह नहीं लगा, और इस वजह से मैं अकसर अपने शरीर और इसके विकास को लेकर हताशा महसूस करती थी। मुझे यह भी समझ आया कि कभी-कभी ये ब्रा, बिना मतलब के ही मेरी छातियों को कामुक दिखा रही थीं, जबकि मैं ऐसा नहीं चाहती थी। जितना ज़्यादा मैंने अपने शरीर के इस हिस्से को छिपाने की कोशिश की, उतना ज़्यादा ये दूसरों के लिए कौतूहल और ताक-झाँक का विषय बन गया, और इससे मुझे बहुत झुंझलाहट हुई। मेरे अंदर की की वो बगावती लड़की अपनी खुद की कामुकता को नियंत्रित करना चाहती थी । मैं अपने अधिकार का इस्तेमाल करके, मर्ज़ी से उन लोगों के नज़दीक जाना चाहती थी, जिनके नज़दीक जाने का मेरा मन था।
इस तरह, मैंने ब्रा पहनना पूरी तरह छोड़ने के बारे में सोचना शुरू किया। मैंने यह समझने की कोशिश की कि मैं अपना जेंडर किस तरह से पेश करना चाहती हूँ । मैंने बिना ब्रा के क्लास अटेंड कर, दुपट्टा पहनकर और किसी भी तरह के उभार को छुपाने के लिए सिंथेटिक के झीने ब्लाउज़ के बजाए मोटी सूती कुर्तियाँ पहनकर यह एक्सपेरिमेंट करना शुरू किया।
और आख़िरकार मैं कपड़ों के अंदर से कभी-कधार मेरे निपल्स के दिखाई देने की आदी हो गई। धीरे-धीरे ऐसा लगने लगा कि दुनिया को भी ख़ुद को पेश करने के मेरे तरीक़े की आदत पड़ गई। अब, मैं अपनी छातियों के नैचुरल तरीके से हिलने-डुलने और उनके आकार को लेकर ज़्यादा आत्मविश्वास से भरी हुई महसूस करती हूँ। और जब मैं अपने नज़दीकी पार्टनर्स के साथ होती हूँ, तो उन्हें सेक्सी रूप देने में भी सहज महसूस करती हूँ। इस आत्मविश्वास से मुझे अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी जीने में मदद मिलती है और मुझे हर समय इस बात की परवाह नहीं रहती कि लोग मुझे किस नज़र से देख रहे हैं, कहीं वे मुझे सिर्फ़ एक चीज़ की तरह तो नहीं देख रहे।
"हालाँकि, कभी-कधार मुझे लगता है कि इससे ताक-झाँक करनेवालों को और भी बेहतर नज़ारा दिखता है। लेकिन अब मैं इस सौदे के लिए तैयार हूँ।”
फ़िजाप्रीत बैंगलोर में रहनेवाली एक काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट/ सलाह देने वालीं मनोचिकित्सक हैं। वे क्वीयर हैं और पॉलीएमोरस हैं, और वे कविता, लेखन और कला सृजन के लिए और ज़्यादा समय निकालने की कोशिश में हैं।