कार्ड पर लिखा है:
एक ज़माने में मैं टॉमबॉय थी।
मैंने जब ये बात किसी को बताई, तो उसे यकीन नहीं हुआ। उनके हिसाब से मैं बहुत शर्माली थी। पर असल में मैं शर्मीली कभी न थी। हां, मुझे लोग पसंद नहीं थे। पर शर्मीली, मुझे नहीं लगता ।
कार्ड पर लिखा है:
बचपन में, घर में कई युवा रिश्तेदार साथ थे, मर्द। उनके साथ इतना समय बिताया कि उनके शर्ट्स ही पहनने लगी। भले ही वो मुझ पर शर्ट कम ड्रेस ज्यादा लगते।
जूं के डर से मेरे बाल भी हमेशा छोटे ही ख्खे जाते।
हरकतों में थोड़ा बॉलीवुडपना भी आ गया था।
रोड साइड रोमियो की तरह गले में रुमाल बांधे रहती।
और एक पेशेवर सीटीबाज़ की तरह सीटी मारना भी सीख लिया था।
कार्ड पर लिखा है:
फोटोज़ के मुताबिक मेरी टॉमबॉय अवस्था, दो तीन साल की उम्र में ही शुरू हो ग थी।
ऊस समय और उसके कई साल बाद तक भी, मुझे टॉमबॉय शब्द के बारे में ही मालूम न था। अब जाके बचपन के बारे में बात करते वक्त, उसका इस्तेमाल करती हूं।
मुझे याद है कि कैसे मेरी हरकतों को देख, सब बोलते, ये सब लड़कियों को शोभा नहीं देता।'
कार्ड पर लिखा है:
जवानी फूटी तो किस्मत भी बदली। सभी मर्दों को हिदायत दी गई मेरे पिता को भी, कि अब वो मेरे साथ नम्रता के साथ पेश आयें। अब गले में कोई रुमाल नहीं,
मुझे पैरों को सय कर बैठने को कहा गया। बड़े शर्ट्स की जगह सलवार कमीज़ ने लेली थी।
मैं खुद के शारीरिक और दूसरे बदलाव से अचंभित थी
पर मैं कहना मानने वाली बच्ची थी ।
कार्ड पर लिखा है:
समय बीता और जितने युवा मर्द थे, या तो सब काम की तलाश मैं घर से निकल लिए या खुद का घर बसा लिया।
ऊसी समय मुझे छोटा भाई हुआ। अब सबका ध्यान ऊसी पर था। मुझे समझाया गया कि अब मैं लड़की नहीं, औरत बन गयी थी। तो अपनी हरकतों पर ध्यान देना और बड़ी बहन होने के नाते एक अच्छा उदाहरण पेश करना होगा।
कार्ड पर लिखा है:
नतीज़ा ये रहा कि आज तक जब भी किसी मर्द से बात करती हूं तो अटपटा सी जाती हूं।
मैं लड़कियों के साथ ज़्यादा सहज हूं। पर आज भी मैं खुद के औरतपने को समझ नहीं पाई हूं कि उसे क्या नाम दूं या कैसे बयान करूँ।
माता पिता के रोक टयेक वाले नियमों की छाप आज भी मेरी बातों में दिखती है
कार्ड पर लिखा है:
और मेरा फैशन सेंस? अब तक ठीक से समझ नहीं पाई हूं कि मेरा पर्सनल स्टाइल क्या है। इस बात से पहले मैं बहुत परेशान होती थी। पर अब उम्र के साथ, मैं खुद को अपनाने लगी हूं।
मेरे लंबे घने बाल ही हैं, जिनका मैं ध्यान खती हूं। हाल ही में, झुमके और ड्रेस मुझे पसंद आने लगे हैं।
थोड़ा बहुत मेकअप पर भी हाथ आजमाया। पर मामला जमा नहीं। मेरे पास इतना समय नहीं है ।
कार्ड पर लिखा है:
जॉब से आर्थिक स्वतंत्रता मिली। एक नई आज़ादी। क्या पहनूं, कहां और कैसे रहूं जैसे निर्णय लेने की आज़ादी। इससे मुझे अपनी जिंदगी जीने का सौभाग्य मिला।
समाज की रूढ़िवादी सोच और उम्मीदों के बोझ तले झुक कर नहीं।
कार्ड पर लिखा है:
मैंने जेंडर पे पहले भी नहीं सोचा था और ना अब सोचती हूं पर जब भी अतीत के बारे में सोचती हूँ।
सोचती हूं कि काश मेरा ये रूप लेना, और स्वाभाविक तरीके से हुआ होता। और एक किस्म की 'लड़की बनने' की ज़बरदस्ती ना होती।
कार्ड पर लिखा है:
आज भी मेरे दिल के कोने में, वह गले में रुमाल बांध, लड़कियों के स्कूल में सीटियां मारती हुई लड़की मौजूद है। उसके बारे में सोच कर, चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।
अपेक्षाओं के बोझ से दूर, वो चेहरा कितना मासूम लगता है ।
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