मुझे टॉमबॉय कहा जाता था।
छोटे बाल वाली और स्पोर्ट्स खेलने वाली लड़की? पक्का टॉमबॉय होगी। कुछ को पसंद आता था। कुछ को नहीं। चार लोग जिन्हें बचपन में टॉम्बॉय कहा जाता था, उन्होंने इस शब्द के साथ अपने सफ़र को शेयर किया
अमृता पाटिल, ४४
लेखक और ग्राफिक उपन्यासकार
- जैसा उन्होंने पारोमिता वोहरा को बताया
जैसे-जैसे आप बड़ी हुई, क्या "टॉमबॉय" वो लेबल है जिसे आपने अपने लिए चुना? या उस नाम से बस दूसरे लोग आपको बुलाया करते थे?
किसी दूसरे शब्द के ना मिलने पर मैंने खुद को टॉमबॉय कहना शुरू तो कर दिया, लेकिन वो शब्द मुझे कुछ खास पसन्द नहीं था। उस वक़्त हमारे पास एंड्रो (गायनस) यानि जिसमें मर्द और औरत दोनों के लक्षण हो, या बुच यानि मर्दाना औरत जैसे शब्द नहीं थे। एंड्रो शायद मेरी स्थिति से मैच होता।
आज जब पीछे मुड़कर देखती हूँ तो लगता है कि ये बस एक तरीका था उन आज़ादियों को पाने का जो सिर्फ लड़कों को ही मिलती थी। मुझे इसका एहसास तब हुआ जब मैंने अफगानिस्तान और ईरान की लड़कियों से घुलना-मिलना शुरू किया। हमारी पीढ़ी का अनुभव एक जैसा ही था।
जब मासिक धर्म शुरू होता है तो ये सब खत्म हो जाता है। लेकिन उसके पहले तक अगर आप "लड़कियों के तेवर वाली बच्ची" नहीं हो, तो क़ाबू से बाहर जाकर खेल-कूद करने के मौके ज्यादा मिलेंगे। तो ऐसे में पता नहीं मुझे कुछ और चाहिए भी था या बस अपने आने-जाने, खेलने-कूदने की आज़ादी भर से मतलब था।
क्या आपको लगता है कि इस तरह आपने जिंदगी के एक अलग तरह के सफ़र की शुरुआत की?
हाँ, बिल्कुल। मुझे अब ये एहसास होने लगा है कि मेरे माता-पिता काफी प्रगतिशील थे। भले ही उनका इरादा मुझे एक 'जेंडर से बेसरोरकार' बच्चे की तरह बड़ा करना नहीं था।
मेरी माँ ने मुझे एक 'लड़की जैसी लड़की' बनाने के पीछे ज्यादा मेहनत नहीं की। किसी ने मुझपर कुछ थोपा नहीं और इसलिए मुझे दूसरे तरह से कपड़े पहनने, जो चाहे वो करने की आज़ादी मिली। आज जब आप फ़ोटोग्राफ़िक रिकॉर्ड देखोगे तो डर जाओगे - साइकिलिंग शॉर्ट्स, बम बैगस और अपने से चार साइज बड़ा फीफा का टी-शर्ट। लेकिन इनमें से किसी भी चॉइस के लिए यक़ीनन मुझे कभी फटकार नहीं मिली।
हालाँकि, जब आप इन आज़ादियों को हड़पते हैं, तो दूसरे लोग भी आपको लड़कों जैसे देखने लगते हैं, और इसके कुछ अनचाहे रिजल्ट भी होते हैं। बचपन की आख़िरी दहलीज़ और किशोरावस्था के दौरान की मुश्किल ये है कि आपको डेटिंग गेम में शामिल नहीं किया जाता है... । ये तो होना ही था क्योंकि मैंने अपना टॉमबॉय वाला रोल बख़ूबी निभाया था।
जिसका रिजल्ट ये हुआ कि मैं कई एकतरफा क्रश में उलझी। हालाँकि मैंने खुद को उस तरह नहीं देखा, पर जब तक मैं बड़ी नहीं हुई, दूसरों ने उसी नज़र से मुझे देखा।
बोले तो, लगभग 14-15 साल की उम्र में, मेरी लाइफ में औरत वाला अंतराल आया। लेकिन मुझे लगता है कि उसकी थकान बहुत ज़्यादा थी। इसलिए लगभग 17/18 की उम्र में मैं अपने पुराने स्वरूप में वापस आ गई। लगभग 22 साल की उम्र तक मैंने छोटे बाल रखे थे।
जब आपने एकतरफा इमोशन अनुभव किया तब क्या आपको लड़कियों वाले तौर-तरीके अपनाने का मन हुआ? इसके अलावा, आपको डेटिंग पूल में गोते खाते इंसान की तरह नहीं देखा गया, इसकी और भी कई वजहें हो सकती हैं। लेकिन क्या एक अनकही वज़ह ये भी हो सकती है कि जब आप उस राह निकल पड़ें जहां आप जो चाहें वो मुमकिन करने की क्षमता आप में हो, तो यही समय लाइफ का एक रोमांटिक हिस्सा बन जाता है।
बिल्कुल! मुझे लगता है कि मैं लोगों की नज़र का केंद्रबिंदु इसलिए बनी क्योंकि मैं अपनी किशोरावस्था वाली ऊर्जा को जाया नहीं जाने दे रही थी। असल में मैं लिखना चाहती थी, और उसके लिए जो चीज़ें छोड़नी पड़ती, मैं उसके लिए तैयार थी।
मेरा भाई गज़ब का सुंदर रहा है। सबको मैंने यही कहते सुना है कि, "तुम दिलचस्प हो, और वो यक़ीनन सुंदर है।"
लेकिन इससे मेरा आत्मविश्वास और बढ़ा कि मैं कितनी कमाल की थी। ये जो धूप-छांव सी तुलनात्मक टिप्पणियां थी, वो मेरे अंदर की आवाज़ को और बुलंद करती थी, "हां, इस छोटे से तालाब, जिसका मैं खुद एक हिस्सा थी, उसकी दूसरी मछलियों के मुकाबले मैं सही में काफी दिलचस्प थी।" तो हां, यक़ीनन इससे आंतरिक जिंदगी को निखारने में मदद मिलती है।
मुझे एक औरत या लड़की की तरह न समझे जाने का एक उल्टा ही सफ़र तय करना पड़ा। इसलिए नहीं कि मैं एक टॉमबॉय थी, बल्कि इसलिए क्योंकि मैं बहुत तेज़ दिमाग, घमंडी, मनमौजी थी। मैं चाहती थी मेरे होने का मह्त्व हो, मुझे गंभीरता से लिया जाए।
हाँ, और भी कुछ चल रहा था। यहां तक कि मेरा शारीरिक विकास भी बहुत देर से शुरू हुआ, इसलिए 19-20 साल की उम्र तक मैं एक तरह से वक्ष-रहित मर्दाना लड़की थी। तो शारीरिक बनावट भी इस सफ़र में मेरी नेचुरल सहयोगी बनी। लेकिन साथ ही, मैं क्लास में काफी स्मार्ट थी, स्वच्छंद विचार रखती थी - ये सब चीजें भी थीं।
आपने कहा कि आप अपने अंदर मर्दाना/औरताना, दोनों भाव को साथ मिलाकर रखना चाहते हैं। वो सफ़र किस बारे में था?
मुझे लगता है कि इसमें ऐसे भी तत्त्व हैं जो इमोशनल हैं, और कुछ जो विज़ुअल हैं। अंदर से मानो बस एक ज़िद थी 'अपनाने की', लोग क्या कहते हैं वो बिना सोचे। प्रोफेशनल तरीके से खुद को समझने से काफी चीजों में सामंजस्य बिठाने में मदद मिली। मैं हमेशा अपनी शर्तों पर काम करती थी, लेकिन अब और ज्यादा कर पा रही थी।
मुझे सच में ऐसा लगता है कि कई मायनों में मैं किसी भी एक जेंडर के अंदर फिट नहीं हूं। मुझे नहीं पता किस तरह बयां करूं, यूं समझ लो कि अब बस इसके साथ खेलती हूँ। जिस रूप के साथ, जिस टाइम के साथ, जैसी बॉडी जाए। अब ज्यादा दिमाग नहीं लगाती हूँ कि हूं कि क्या कैसे हो रहा है।
ये जो आप इतने जेंडर्स से जुड़ी हो, तो अगर इस सफर को एक मैप में उतारा जाए, जहां शुरुआत आपके टॉमबॉय बनने से हुई, तो बीच के सफऱ में आप कहाँ थी और अब आप कहाँ हैं?
मेरा शरीर बदल रहा है, इसलिए सब आंशिक रूप से है। पहले मैं अलग किस्म की चीजें पढ़ रही थी- मैं फेमस फाइव के 'जॉर्ज', लिटिल वुमेन की 'जो' जैसा बनना चाहती थी। शुरूआत के लिए , ये कहानी के सबसे दिलचस्प लोग हैं। तो कुछ हद तक उन 'आत्मिक जानवरों' (राशि के हिसाब से जिन पशुओं के साथ आपकी चाल-ढाल मैच हो) के साथ मिलकर रहने का मन था।
एक बार जब उन आत्मिक जानवरों के गुण मेरे अंदर समा गए, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मेरा बाहरी रूप कैसा है। अब अभिव्यक्ति इस बात से मेल खाती है कि मैं इस उम्र में किस तरह की सुंदरता/रूप चाहती हूं।
इससे मुझे कई रंग, कई तरह की सजावटों के साथ खेलने का मौका मिलता है। मुझे शब्दों को चुनने में मुश्किल होती है। शायद जेंडर-लेस होने से ज्यादा, ये एक ख़ूबसूरत तरीके से उभयलिंगी होने जैसा है। ये दोनों चीजें एक मज़बूत आत्मविश्वास से एक साथ सामने आई हैं।
अंजना शर्मा, ५८
सह-संस्थापक, द गुड लाइफ गोवा
विजयालक्ष्मी द्वारा लिया गया इंटरव्यू
जैसे-जैसे आप बड़ी हुई, क्या "टॉमबॉय" वो लेबल है जिसे आपने अपने लिए चुना? या उस नाम से बस दूसरे लोग आपको बुलाया करते थे?
इसकी शुरुआत कुछ ऐसे हुई कि किसी ने मुझे टॉमबॉय कहकर बुलाया और मैंने झट से उसे अपना लिया। मेरी माँ मुझे शॉर्ट्स और छोटा सा पटका पहनाती थी। इसलिए किसी ने कभी कुछ कहा नहीं। उन्हें लगा मैं भी छोटे लड़कों में से एक हूं।
वहां से चीज़ें जैसे कभी फिर उलझी नहीं। ऐसा कोई वक़्त नहीं था जब मैंने खुद को एक लड़के की तरह देखा। लेकिन मैंने इसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए किया, उन चीजों को करने की आज़ादी के लिए किया जो मैं करना चाहती थी।
टॉमबॉय होने के बारे में क्या ऐसा कुछ अलग या खास था जो आपने समझा?
मैंने महसूस किया कि अगर आप टॉमबॉय हो, तो आपको प्रगतिशील माना जायेगा। एक लड़की से जिस व्यवहार की उम्मीद की जाती है, आप उस सीमा को पार कर पाओगे। कभी-कभी अगर आप दूसरों का अपमान भी कर दो या ज़ोर से बोल दो, तो भी चलेगा। यहां तक कि आप थोड़ा और आक्रामक भी हो पाओगे।
मैं बहुत स्पोर्टी किस्म की इंसान थी। तैरना, क्रिकेट खेलना, फुटबॉल खेलना और कैन किक मारना मेरे शौक थे। एक टॉमबॉय के रोल में, आपको शारीरिक तौर पर मेहनत करने की भी आज़ादी है।
आपका स्टाइल क्या था? उस वक़्त आपका सिग्नेचर पहनावा क्या था?
उस वक़्त आपके पास ज्यादा ऑप्शन नहीं होते थे। दूसरों की उतरन पहनना भी कोई बड़ी बात नहीं थी। लेकिन अगर मेरी चलती तो मेरी स्कर्ट भी डिवाइडेड वाली होती थी। ये सब नहीं, तो आप ब्लूमर पहन सकते थे। मेरी माँ तो हर समय मेरे लिए ब्लूमर ही बना देती थी।
तो ऐसे सपोर्ट करने वाले माता-पिता का होना अच्छा था?
ओह, बिल्कुल पूरी तरह से। मेरे पिता बहुत सख़्त और रूढ़िवादी थे, लेकिन उन्होंने कभी भी किसी लड़के और मेरे में फर्क नहीं किया। उसकी दो बेटियां थी। वो हम दोनों पर गर्व महसूस करते थे और हम जो चाहें वो करने के लिए प्रेरित करते थे।
मुझे याद है एक दिन जब मैं डरी-डरी घर आयी क्योंकि मुझे सच में स्कूल से निकाल दिया गया था। और मैंने अपने माता-पिता को बातचीत करते हुए सुना। माँ कह रही थी, “तुम्ही ने उसे बिगाड़ रखा है। तभी ये सब बकवास काम करती फिरती है।' पिताजी ने जवाब दिया, 'हाँ, ठीक है, अगर वो बेटा होती, तो मुझे उस पर गर्व होता। तो बेटी पर क्यों नहीं?''
एक टॉमबॉय होने से आपकी बाकी जिंदगी किस तरह प्रभावित हुई? क्या उसके और आप आज जो हैं, दोनों के बीच कोई कनेक्शन है?
उसने मुझे निडर बना दिया। मैं सिंगल हूं। मैंने कभी समझौता नहीं किया। मैंने अपनी पूरी एडल्ट लाइफ दरअसल अकेले ही गुज़ारी है। मेरी एक बड़ी बहन है जो एकदम ख़ूबसूरत तरीके से औरताना है। वो मिस इंडिया रह चुकी हैं। लोग हमेशा मेरी तुलना उससे करते थे। लेकिन मुझे लगता है कि बहुत कम उम्र में ही मैं मोती चमड़ी की थी।
मैं पुराने तरीकों के कपड़े नहीं पहनती हूँ।
मेरी अपनी स्टाइल है। मुझे इसके लिए जाना जाता है। और अब ये मेरे बिज़नेस का भी हिस्सा है। इसलिए मुझे लगता है कि इसने मुझे अपने व्यक्तिगत रंग-ढंग को आकार देने में मदद की। मुझे भेड़चाल का हिस्सा बनने से नफरत है। मैं जो हूँ सो हूँ।
अब आपका स्टाइल क्या है?
अब तो मैं औरताना हूँ- एकदम फेमिनिन। मर्दों की तरह कपड़े नहीं पहनती हूँ। लेकिन अब जैसे, जिंदगी के अब तक के इस सफ़र में, मैंने तीन बार अपने बाल मुंडवाए हैं। और ऐसा करने की ताकत भी इसी सच से मिलती है कि आप सुंदरता के पुराने मानदंडों से अपनी पहचान नहीं बनाते हैं।
जब मैं गंजी थी, उसी दौरान सबसे अच्छे और सबसे आकर्षक मर्दों मुझ पर फ़िदा हुए थे।
मैंने एक से एक शानदार रिश्ते बनाए। सबसे हॉट मर्दों के साथ रही। मुझे नहीं लगता कि टॉमबॉय होने से मेरी फेमिनिटी में कोई कमी आयी। सवाल ख़ुद को अपनाने का है। तभी हम आकर्षक भी बन सकते हैं।
जिस पल आप जैसे हो उसे पूरी तरह से अपना लेते हैं, फिर आप वैसे ही संकेत, वैसा ही आभास देते हैं। और यही तो है आकर्षक होने का मतलब।
आपको लगता है कि इस टॉमबॉय शब्द का आज भी कोई औचित्य है? आज की ये दुनियां, ये उम्र दोनों अलग है। ऐसी बहुत सारी चीज़ें जो लड़कियों को बचपन में नहीं करने दी जाती थी, आज औरतों को वो सब करने की इजाज़त है।
उस समय ये एक और लेबल था। अगर आप शादी की उम्र के थे, साथ ही टॉमबॉय थे, तो ये नेगेटिव था, है ना? यह एक बुरे किस्म का लेबल था। लेकिन अगर आप चालाक हो तो इस स्थिति को अपने हित में मोड़ भी सकते हो। ये समाज के बनाये लेबल हैं। अब, एक इंसान के रूप में, आपके चरित्र में इतनी ताकत होनी चाहिए कि आप क्या नेगेटिव है और क्या नहीं ये जान सको।
आर्यन सोमैया, ३६
मनोचिकित्सक, जेंडर और सेक्सुअलिटी ट्रेनर और डी.ई.आई सलाहकार
हर्षिता काले द्वारा लिया गया इंटरव्यू
जैसे-जैसे आप बड़े हुए, क्या "टॉमबॉय" वो लेबल है जिसे आपने अपने लिए चुना? या उस नाम से बस दूसरे लोग आपको बुलाया करते थे?
मैंने कभी खुद को 'टॉमबॉय' की तरह नहीं देखा, ये वो शब्द था जो हमेशा औरों ने मेरे लिए इस्तेमाल किया। 80 और 90 के दशक में अगर कोई भी बढ़ती उम्र की लड़की 'लड़कों जैसी हरकतें करे' तो उसे या तो टीवी शो हम पांच की काजल भाई बुलाते या जानी मानी गरबा क्वीन फाल्गुनी पाठक। काजल भाई मेरी पसंदीदा क़िरदार थी। मुझे उसमें अपनी झलक दिखती थी।
क्या आप मुझे काजल भाई के साथ अपने रिश्ते की एक छोटी सी झलक दे सकते हैं?
काजल भाई एक ऐसा क़िरदार था जो बोलता था 'मैं एक मर्द हूं'। हर कोई सोचता था कि 'वो बस एक टॉमबॉय थी।' लेकिन मुझे लगता है कि वो उससे कहीं ज्यादा थी। शायद क्वीयर! भले ही उसने खुलकर कभी कुछ कहा नहीं।
ऐसा दिखाया गया कि वो प्यार के लायक़ नहीं थी क्योंकि वो 'एक मर्द की तरह' रहती थी। लड़का कहता है, 'तुम तो लड़के जैसे हो, तुमसे कौन प्यार करेगा?'
लेकिन लोग क्या कहते हैं, उसने इस बात की परवाह कभी नहीं की। और यही वो चीज़ है जो मुझे पसंद भी आई, और जिसकी सराहना भी मैंने की।
क्या आपमें कोई खास वाइब/आकर्षण था जो लोगों को काजल भाई में भी दिखता हो?
मैं हमेशा लड़कों/मर्दों के कपड़े पहने और मेरे बाल भी छोटे थे। मैं भी एथलेटिक था। क्लास 4 या 5 तक मेरे बाल लंबे थे, तब स्कूल में चोटी बनानी पड़ती थी। लेकिन जैसे ही मैं घर आता था, काजल भाई की तरह अपने बालों को टोपी में घुसा लेता था। मेरे दोस्त भी अक्सर लड़के ही रहे हैं।
लोगों को लगता था कि मेरा टॉमबॉय होना बस ऐसे ही कुछ दिनों की बात है। ये बस एक दौर था जो चला जाएगा। लेकिन यक़ीनन ऐसा हुआ नहीं। मुझे लगता है कि लोग टॉमबॉय शब्द को अपना पाते थे। कोई और शब्द इस्तेमाल करने से शायद कतराते थे।
हाँ, शायद कुछ 'ज्यादा' होने से ये कम डरावना शब्द था।
हाँ, ये कम डरावना था और ज्यादा लोग इसे अपना भी लेते थे- इस उम्मीद में कि धीरे-धीरे ये सब खुद ही खत्म हो जाएगा
और फिर जब मैं बड़ा हो गया, लगभग 15-18 साल की, तो उन्होंने मुझे फाल्गुनी पाठक कहना शुरू कर दिया।
लोगों जब आपको टॉमबॉय बुलाते थे, आपकी क्या प्रतिक्रिया रहती थी? और क्या उस लेबल में बांधे जाने से एक लड़के के रूप में आपकी आत्म-छवि/पहचान जाने-अनजाने रूप से और मजबूत हो गई?
मेरे आस-पास के लोगों ने मेरे कपड़े पहनने के तरीके, मेरे बोलने के तरीके और मेरी चाल-ढाल जैसे उपरी तस्वीरों को देखा और ऐलान कर दिया कि मैं एक 'टॉमबॉय' था। आमतौर पर, मैंने उनके साथ धैर्य रखने की कोशिश की - अब हर लड़ाई कौन लड़ सकता है और उन्हें बता सकता है कि मैं खुद को लड़के जैसा महसूस करता हूँ, या कि मैं ट्रांस हूँ? असल में, उस समय मेरे पास अपनी पहचान को बयां करने के लिए सही शब्द भी नहीं थे। मैंने 20 के बाद के कुछ सालों में ख़ुद को बेहतर ढंग से समझना शुरू कर दिया था।
'टॉमबॉय' शब्द कुछ हद तक एक वरदान जैसा था। कम से कम 'पुरुषत्व' को कुछ चीजों में मंजूरी तो थी। बस इसी वज़ह से मैंने इस शब्द के साथ थोड़ी शांति बना ली।
हालाँकि कुछ मंजूरी थी, लेकिन फिर भी क्या आपको 'औरताना'' ना होने के लिए किसी विरोध का सामना नहीं करना पड़ा? अगर काजल भाई और फाल्गुनी पाठक जैसी पॉप संस्कृति हस्तियां मौजूद नहीं होतीं, तो क्या आपको लगता है कि प्रतिक्रियाएं कुछ अलग होती?
मैं नहीं बता सकता कि ऐसा कितनी बार हुआ है - और आज भी होता है। जिन लड़कों से मेरी दोस्ती थी, उन्होंने ने भी मुझे कभी अपनी बराबरी का नहीं माना। अक्सर क्रिकेट और फ़ुटबॉल जैसे खेल खेलते समय वो कहते थे, "तुम एक लड़की हो, बेहतर होगा कि वही बन के रहो, ज़्यादा मर्द मत बनो।" दूसरे कहते, "तुम भले लड़को वाली हरकतें करो, लेकिन हो तो लड़की ही ना?" जितना मैं सीमाओं को लांघने की कोशिश करता,, उतना ही वो मुझे बांधने की कोशिश करते।
बहुत से लोग मेरी मां के पास आते और उनसे कहते, 'उसे लड़कियों के कपड़े पहनाओ।'
चूंकि मेरे जैसे दूसरे लोग मुख्यधारा/मेनस्ट्रीम में मौजूद थे, इसलिए 'टॉमबॉय' शब्द कुछ मायनों में बहुत सेफ सा लगता था। कम से कम वो एक ऐसी पहचान थी जहां लोग मुझे बदलने के लिए मजबूर नहीं कर सकते थे।
मुझे बहुत खुशी है कि काजल भाई जैसा कोई कैरेक्टर था। 'टॉमबॉय' मेरे लिए एक जरिया था उन झगड़ों और बहसों से भाग निकलने का कि मैं जैसा हूं वैसा क्यों हूँ। लोग पहले भी बोलते थे, आज भी बोलते हैं - लेकिन फिर कोई आता और कहता - 'अरे, वो तो टॉमबॉय है, फाल्गुनी और काजल भाई की तरह।'
लेकिन तब भी ये धारणा थी कि इसका 'इलाज' मुमकिन है - शादी के बाद, ये पति की परेशानी होगी - और स्वाभाविक रूप से, 'ये बेहतर/ठीक हो जाएगा'। और फिर सोच की दूसरी लहर - 'हम उसके लिए एक लड़की के लक्षण वाला लड़का ढूंढेंगे!' अगर ये लड़के जैसी लड़की है, तो हम शादी के लिए लड़की जैसा लड़का ढूंढेंगे।
सच ये है कि क्योंकि इसे बस एक खत्म हो जाने वाला दौर समझा जाता था, इसलिए उसकी इज़ाज़त थी। लेकिन इस रूप को अपना लिया गया था, ऐसा नहीं था।
क्या आपने दूसरे टॉमबॉयज़ को बड़े होते हुए देखा? क्या आपको कभी अकेलापन महसूस हुआ?
मेरे स्कूल में एक इंसान था जो आज ट्रांस है। अंदर से हम दोनों जानते थे, 'कि हम 'वो ही' हैं (ट्रांस)'। बस मन को एक तस्सली थी कि वैसा एक इंसान पास था।
लेकिन मेरे जैसा दूसरा ढूंढना काफी मुश्किल था। मुझे लगता है कि बस वही एकलौता इंसान था, जिससे मैं मिला था। चूँकि मैं लड़कियों के स्कूल में था, वहाँ बहुत सारी रूढ़िवादी 'मर्दाना' लड़कियाँ थीं जो स्पोर्ट्स में थी। लेकिन 9वीं या 10वीं क्लास तक आते-आते पारंपरिक तरीके से औरताना भी बन गईं।
जब आप एक औरत जैसा महसूस नहीं कर पाते हैं, जैसा कि आपकी चचेरी बहनें या माँ करती होंगी, तो एक अकेलापन सा महसूस होता है। मन में सवाल आता कि जब मैं औरत हूँ ही नहीं तो मेरे पास ऐसा शरीर क्यों है।काजल भाई जैसे किरदारों ने उस निराशा को कुछ हद तक कम किया और मुझे जीने की वज़ह दी।
कल्पना कार्डोसो, ५५
क्रिकेटर (सेलेक्टर, महिला सीनियर क्रिकेट टीम, एम.सी.ए)
विजयालक्ष्मी द्वारा लिया गया इंटरव्यू
जब आप छोटी थी तो क्या आपने खुद को टॉमबॉय कहना शुरू किया या ये दूसरों का दिया हुआ नाम था?
यक़ीनन ये ववो नाम था जिससे दूसरे लोग मुझे बुलाते थे। इतनी छोटी उम्र में तो हमें टॉमबॉय का मतलब भी नहीं पता था।
जब मैं अपने भाई के कपड़े पहनकर खेलने जाती थी, तो सोचती थी, "हे भगवान! इस तरह ये कितना आसान है।" कोई ये नहीं कहता था "अरे तू अकेली लड़की है जो इन लड़कों लोग के साथ खेल रही है।" इसलिए, मैंने यही आसान रास्ता अपनाने का फैसला किया, क्योंकि मेरा मक़सद था खेलना, फिर खेल चाहे कोई सा भी हो।
टॉमबॉय होने के बारे में क्या ऐसा कुछ खास था जो आपको समझ में आया हो?
मेरे लिए तो ये खेल में आने का सबसे आसान तरीका था। मुझे क्रिकेट में रुचि थी। जब मैं शॉर्ट्स और टी-शर्ट पहनती, लड़कों की टीम के साथ आराम से क्रिकेट खेल सकती थी ।
जब मैं क्रिकेट प्रैक्टिस के लिए ट्रेन से सफ़र करते थे, मुझे महिला डिब्बे में जाना पड़ता, है ना? जब भी हम उन बड़े बैगों और क्रिकेटिंग गियर के साथ ट्रेन में घुसते, औरतें कहने लगती, “नहीं, नहीं, ये लेडीज़ डिब्बा है। जेंट्स में जाओ।”
कई बार ट्रेन में हमारे साथ इस तरह के झगड़े हुए।
आपका स्टाइल क्या था? उस समय आप अक्सर किस तरह के कपड़े पहना करती थी?
जब हमने प्रोफ़ेशनल क्रिकेट खेलना शुरू किया, हमें पैंट और टी-शर्ट पहनना पड़ता था। कोई ड्रेस और फिर ड्रेस के हिसाब से जूते वगैरह पैक करने से काफ़ी आसान था जींस और टी-शर्ट पैक करना।
जींस और टी-शर्ट डालना आसान था और वो स्पोर्ट्स शूज़ तो आप पूरे दिन भी पहने रह सकते हो।
10वीं क्लास तक मेरे बाल लंबे थे, लेकिन क्रिकेट में घुसने के बाद बाल कटवाना भी कोई बड़ी बात नहीं थी।
जब भी मुझे किसी फैमिली इवेंट या शादियों में ड्रेस पहनने के लिए मजबूर किया जाता, मुझे असहज लगता था।
मुझे ऐसा लगता था जैसे मैं उन कपड़ों (जींस और टी-शर्ट) में वैसे रह पाती थी जैसे मैं दरअसल हूँ। मुझे नहीं पता कि मेरे लिए ये बताना मुमकिन है भी या नहीं कि मैं कौन हूँ, लेकिन ये तय है कि उन कपड़ों में मुझे आराम मिलता था।
एक टॉमबॉय होने से आपकी बाकी जिंदगी किस तरह प्रभावित हुई? क्या उसके और आप आज जो हैं, दोनों के बीच कोई कनेक्शन है?
पूरी लाइफ मैंने बड़े आराम से वो सब किया जो मैं करना चाहती थी। आपको पता है, टॉमबॉय होने की वज़ह से कभी लोगों ने उंगली उठाकर ये नहीं बोला कि- ओह, ये लड़की होकर ऐसी चीज़ें क्यों कर रही है।
बोला जाए तो मैं काफ़ी खुश थी। अगर कुछ होता तो मैं कहता कि मैं अधिक खुश हूं। हाँ, ऐसे छोटे-छोटे वाक़ये जरूर थे जब रिक्शा कोई सुंदर लड़की के लिए रुकता था, मेरे लिए नहीं। या किसी सुंदर लड़की की गुज़ारिश सुन ली जाती थी, जबकि हमें वापस भेज दिया जाता था।
तो बस कुछ ही ऐसे मौके थे, जहां हमारे साथ अलग बर्ताव किया जाता था। इसके अलावा सब ठीक था। और वैसे भी उन चीजों से मुझे कभी कोई दिक्कत नहीं हुई। मुझे हमेशा यही लगा कि मेरे पास जो कुछ भी है, उसका पूरा इस्तेमाल किस तरह करूं।
18 साल की उम्र में नौकरी करना शुरू कर दिया था। मेरे वेस्टर्न रेलवे ऑफिस में भी, हमारे अधिकांश क्रिकेटर्स और स्पोर्ट्स कर्मचारी सभी टॉमबॉयज़ थे। हमने कभी दूसरा कुछ सोचा ही नहीं। हम सबके बीच काफी अच्छा तालमेल था। किसी ने कभी भी हमें बदलने की कोशिश नहीं की।
आपकी लाइफ का पर्सनल हिस्सा कैसा रहा?
मैं चाहे जो भी करूं, मेरे पूरे परिवार ने हमेशा मेरा साथ दिया है। उन्होंने कभी मुझ पर शादी के लिए दबाव नहीं डाला।
मैं शुरू से ही जानता थी। अपना घर, अपनी आरामदायक जगह छोड़कर किसी और के घर जाने की बात से ही मुझे बेचैनी होने लगती थी। आराम तो मुझे ख़ुद के साथ ही आता था। इसलिए मुझे कभी भी शादी में कोई दिलचस्पी नहीं थी। मेरा मतलब है, अकेले रहने में ही मेरी है।
आपको लगता है कि इस टॉमबॉय शब्द का आज भी कोई औचित्य है? आज की ये दुनियां, ये उम्र दोनों अलग है। ऐसी बहुत सारी चीज़ें जो लड़कियों को बचपन में नहीं करने दी जाती थी, आज औरतों को वो सब करने की इजाज़त है।
अब मुझे ऐसा नहीं लगता। मुझे नहीं लगता कि लड़कियां उस साँचे में फंसकर बड़ी होना चाहती हैं या वो टॉमबॉय कहलाना चाहती हैं। उन दिनों हमें टॉमबॉय बनने में कोई शर्म महसूस नहीं होती थी। आजकल लड़कियों को लगता है कि अगर वे ज्यादा औरताना होंगी तो बेहतर है, क्योंकि तब उनको लड़कों के मुक़ाबले समान मौके मिल रहे हैं। और आस-पास की दूसरी लड़कियों से इतना दबाव मिलता है, कि वो अलग नहीं होना चाहते।