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क्या बचपन में देखी गई हिंसा से मैं ये समझ बैठा कि बड़े होकर दूसरों पर हिंसा करनी ठीक है ? क्या इस तजुर्बे ने मुझे हिंसक वयस्क बना दिया?

बहुत सीधी साधी बातचीत चल रही थी। मीनू*, मेरी एक खास दोस्त - और शायद दोस्त से कुछ ज़्यादा - थोड़ी परेशान थी। वो मुझे  काम को ले कर अपनी कुछ दिक्कतें बता रही थी । मैंने कोशिश की कि उसकी बात ध्यान से सुनूं, उसे शांत करूँ,   और उसकी मदद करूं, पर कुछ फायदा नहीं हो रहा था । मेरे खुद का काम भी अधूरा पड़ा था, सो उसको लेकर मैं अलग परेशान था। अधूरे काम का फ़्रस्ट्रेशन और मीनू के शांत न होने पर मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी । आज पलट कर पीछे देखता हूँ तो मुझे खुद लगता है कि इतनी छोटी सी बात पर इतना ज़्यादा परेशान होने की  कोई ज़रुरत न थी । पर उस समय दिमाग में भयंकर उथल पुथल मची हुई थी ।  इस सब के बीच मुझे नहीं समझ आया कि मैं क्या करूं। और फिर मैंने एक बहुत भयानक चीज़ कर डाली। 

मैंने हाथ उठा दिया। अपनी दोस्त पर।

जो मैंने किया, उसका पछतावा मुझे अब भी अंदर तक हिला देता है। आज भी शर्म आती है । मैं किसी को झप्पी देते देते, प्यार से बात करते करते, एकदम से इतना हिंसक कैसे बन सकता हूं? वो भी इतनी आसानी से?इन सवालों के जवाब ढूंढते ढूंढते मैं खुद अपने अतीत में पहुंच गया। बचपन। घर पर देखी हुई मार पिटाई । और यूं पिटाई करना कैसे  मेरी   मेरे लिए भी आम बात बन गई। क्या इंसानी स्पर्श को लेकर मेरी यही ख़ास यादें हैं, यही सीखा मैंने छुअन के बारे मैं? 

पर बार बार ये सब सोचने के बावजूद,  मेरा मन नहीं  मानता कि मेरे किये के पीछे ये वजह थी । किसी पर यूं हाथ उठाने की  कोई भी बताई गयी वजह, शायद बहाना ही लग सकती है ।


हम किस तरह से किसी का स्पर्श करते हैं, उससे हम उससे  बिन शब्दों के  बहुत कुछ कह जाते हैं । चाहे प्यार दिखाना हो, किसी को डराना हो, या उसपर रौब डालना हो, या भले ही किसी को सांत्वना देनी हो, वो आपसी स्पर्श है, जिससे  कई बार लोगों के बीच के रिश्ते बनते और बिगड़ते हैं। तो अब बचपन में जो कुछ भी हम स्पर्श के बारे में सीखते हैं, क्या हमारे वयस्क होने के बाद, उसका असर हमारे रिश्तों पर पड़ता है ? ये सब समझने बूझने के लिए, मैंने सोचा कि मैं अपनी खुद की यादें टटोलूंगा और कुछ अन्य लोगों से भी बात करूंगा। 

* * *


जब आप परिवार के सन्दर्भ में स्पर्श या छुअन के बारे में सोचते हैं, तो आपको आराम और राहत की फीलिंग आती है? झप्पियाँ और सहलाने के ख़याल आते हैं?


मुझे ये सब याद आता है - बचपन में कभी कभी मेरे माँ बाप मुझे लाड़ प्यार देते थे। पर वही मेरे भाई को छोटी छोटी गलतियों के लिए बहुत ज़्यादा मार पिटाई भी करते थे। अक्सर इसलिए,  क्यूंकि उनके दिमाग में राई का पहाड़ बन जाता था। मैं ये देख, परेशान हो जाता था। 

फिर भी, पता नहीं क्यूं, मेरे अंदर ही अंदर ये चीज़ घर कर गई, कि किसी को मारना, किसी पे हाथ उठाना एक आम बात है। मुझे यहां तक कहा गया कि “तुम कैसे बड़े भाई हो जो अपने छोटे भाई को कंट्रोल नहीं कर सकते?”

अब पीछे मुड़ के देखता हूँ, तो मुझे मेरे भाई के साथ मेरा बदलता बर्ताव साफ़ दिखता है ।एक समय था कि मैं अपने माँ बाप के भाई के साथ बुरे सलूक को लेकर झगड़ भी लेता था । पर धीरे धीरे वो समय भी आया... गणित के एक छोटे से सवाल पर जब बार बार समझाने पर भी वो समझ नहीं रहा था, तो मैंने उसपर हाथ उठा दिया। मेरे तरीके बदल चुके थे, हालांकि कहीं अंदर, मुझे ये भी पता था कि मैं गलत कर रहा था। मुझे नहीं लगता मैं खुद के अंदर के उस गुस्से का कभी कोई उचित कारण दे पाऊंगा। कभी कभी ऐसा भी लगता था कि मेरे पास कोई और रास्ता ही नहीं था - यही तो लोग मुझसे चाहते हैं। और धीरे धीरे अपनी भड़ास निकालने और परिस्थितियों को काबू करने के चक्कर में, हिंसा मेरे अंदर घर करती चली गई। 

मैं कुछ और लोगों को भी जानता हूँ,  जिनके लिए भी मार पिटाई और हिंसा, बचपन का एक आम हिस्सा थे। अभिजीत, जो कि कम्युनिकेशन के विद्यार्थी हैं, ने मुझे बताया कि उन्हें खुद के पिताजी से बहुत मार पड़ती थी। और इस सब के चक्कर में उन्हें अपने ही बाप से नफरत भी होने लगी थी। गीता* ,जो कि फैशन डिजाइन पढ़ती है, उनका भी अपने मां बाप के साथ रिश्ता कुछ नाज़ुक है। हालांकि उन्हें बचपन में कभी मार नहीं पड़ी, आखिर तीन बच्चों में सबसे छोटी जो है वो, पर अपने भाई बहन को पिटता देख, धीरे धीरे वो भी अपने माता पिता से दूर होती गयीं। आज उन्होंने अपने पिता के साथ सम्बन्ध तोड़ लिए हैं, और कुछ हद तक अपनी मां के साथ भी। 

मेरे खुद के मां बाप की हरकतें मुझे बहुत कठोर मालूम होती थीं। और मुझे आज भी नहीं पता कि वो ऐसा क्यूं करते थे। मैं जानता और समझता हूं कि हर परिवार में बच्चों को डांटने और अनुशासित करने का अपना तरीका होता है, पर मेरे परिवार के इस तरीके ने मेरी ज़िन्दगी देखने और जीने के नजरिए को बहुत अधिक प्रभावित किया है। मुझे पता है कि उनकी मार पिटाई - और मेरी इस सब में हिस्सेदारी - गलत थी। पर मैंने फिर भी वो सब किया। और इस वजह से काफी समय तक मैं बहुत अधिक परेशान और व्याकुल रहा हूं। बड़े होते हुए ,मेरे माँ बाप के साथ मेरा रिश्ता भी बहुत उथल पुथल से भरा रहा। 

मेरे, अभिजीत या गीता के साथ, हमारे मां बाप ने वो किया जो उन्हें अपने बच्चे के लिए सबसे सही लगा। और हां, शायद हम तीनों में हर एक ने खुद मार नहीं खाई, और ऐसा भी नहीं था कि सिर्फ हिंसा हमारे बचपन का हिस्सा थी। पर फिर भी, मार पिटाई के बीच में बड़ा होने की वजह से हमारे रिश्ते कमजोर होते चले गए। शायद ये हमारे मां बाप ने कभी  नहीं चाहा था, पर हमारे लिए तो यही सच्चाई थी, खासकर तब, जब हम थोड़े नासमझ थे। प्यार भरे स्पर्श की कमी ने परिवार में ऐसी दरार डाल दी, जो अभी तक भरी नहीं है।

पर परिवार के प्यार भरे स्पर्श की कमी सिर्फ हम जैसे लोग नहीं महसूस करते, जो मार पिटाई के बीच पले हैं। 22 साल की राधिका*, एम. ए. की पढ़ाई कर रही है। उन्होंने अपने मां बाप को लडकपन में ही खो दिया था। उनके अभिभावक/guardian जिनके साथ वो रहती है, और जिनको मां बाप कहते हुए बड़ी हुई है, उसका बहुत ख्याल रखते हैं। पर फिर भी, वो स्पर्श, वो छुअन, बालों में उंगलियां फेरना या सिर्फ ज़ोर से गले लगा लेना - वो सब उनकी ज़िंदगी से जैसे गुम हो गए। राधिका को लगता है कि उनको, बड़े होते हुए, मां बाप के प्यार को महसूस करने का मौका नहीं मिला। तो ज़ाहिर सी बात है, कि इस प्यार के लिए वो तड़प उठती हैं। बचपन में ये प्यार और स्पर्श कितना ज़रूरी है, इस बारे में भी वो बात करती हैं। और इस सब की कमी ने उन्हें कितना कुछ सिखा भी दिया है। राधिका ने मुझे उस समय के बारे में भी बताया, जब बचपन में एक उम्रदराज आदमी ने उन्हें गलत ढ़ंग से छुआ। उस समय राधिका को ‘सही’ और ‘गलत स्पर्श’ की समझ नहीं थी, पर फिर भी इस हरकत से उनको बहुत ज़्यादा परेशानी हुई। आज भी इस घटना की याद उनको बुरा महसूस कराती है, पर इस सब ने स्पर्श को लेकर उनकी इच्छाओं को, उनकी चाहत को नहीं बदला, बल्कि और मज़बूत किया है। 

आपका बचपन ऐसा रहा है जहां आपको हमेशा सिर्फ और सिर्फ प्यार भरी झप्पियां मिली हैं? क्या ऐसा बचपन  अपने आप में काफी होता है ? इससे क्या इस बात की गारंटी हो जाती है कि आप बड़े होकर स्पर्श के सही और स्वास्थ्य मायने समझ लेंगे ?  मैं काफी बार इस बारे में सोच चुका हूं। मीनू, जो अभी अभी 21 की हुई है, जर्नलिज्म के कोर्स के आखिरी साल में है। वो खुद एक खुश, अच्छे परिवार से आती है। (जब मैंने उसके घर परिवार के बारे में उससे बात की, उसने एक ऐसी चीज बोली जिसे सुन कर मुझे अपनी हरकत के बारे में और ज़्यादा अफसोस हुआ। उसने कहा, "बचपन में कभी मैंने किसी तरह की मार पिटाई या हिंसा नहीं देखी और इस वजह से मुझे इस सब की आदत नहीं है। मुझे हमेशा से ही बहुत प्यार से रखा गया है।" )

मीनू अपनी माँ से, घर की और औरतों से भी, हमेशा से, झप्पियों से, गले लगके, खुल कर अपने प्यार का इज़हार करती आयी है । अपने परिवार के आदमियों से साथ वो शारीरिक रूप से थोड़ा रिज़र्व रहती है, पर प्यार की फीलिंग पक्की है ।  अब वो कॉलेज जाने लगी है, तो ऐसे कई मौके आते हैं जब दोस्तों के साथ, छूना, छुए जाना, आम बात हो गयी है। दोस्ती दोस्ती में किसी के कंधे पर हाथ रखना, झप्पी देना, प्यार से उन्हें अपनी और खींचना या धक्का देना ।  और उसे लगता है कि इन सभी मौकों पर वो अपने में एक सुलझापन पाती है .. अपनी मर्ज़ी और नामर्जी को समझती है और आराम से बयान भी कर पाती है। मेरे लिए वो एक उदाहरण है, कि कैसे माँ बाप के कोमल, प्यार भरे व्यवहार से, बच्चे बड़े होते हैं, तो आत्मविश्वासी और अपने आप में सहज होते हैं। 

मेरी करीबी दोस्त, नीलिमा, 22 साल की कम्युनिकेशन की स्टूडेंट, का भी यही अनुभव रहा है, एक खूबसूरत बचपन, जिसने उसे छुअन को लेकर एक स्वस्थ नजरिया दिया है। 

मैं उसे चार साल से जानता हूँ, वो एक मस्त मौला है, और बहुत लाड़ दिखाने वाली लड़की है । 

तो ऐसे में तो आप समझ सकेंगे कि मैं कितना चकित हुआ जब उसने मुझे बताया कि एक्चुअली जब कोई उसे छूता है, तो उसे बड़ा अजीब लगता है । और ये भी कि वो हर किसी के साथ छूने या छुए जाने से  सहज नहीं है, बस कुछ चंद ख़ास करीबी लोगों के साथ। कहीं पर उसको ये पता है, कि वो दूसरों के सामने लाड़ दिखाने वाली इसलिए पेश आती है, क्यूंकि उसे लोगों को खुश करने की आदत है और ज़रुरत भी।  वो वही कहती- करती है जो लोग  सुनना- देखना चाहते हैं, और इस चक्कर में वो अपनी फीलिंग्स को भी नज़रअंदाज़ कर देती है। उसको अपने करीबी लोगों को खो देने का बड़ा डर है, ये उसकी इन्सेक्युरिटी  है ।  और मुझे कभी कभी ये भी लगता है कि वो लोगों को खो देने के डर से अपने आस पास के लोगों को बहुत लाड़ देती है । 

जो भी हो, नीलिमा का उदाहरण मुझे याद दिलाता है, कि  बड़े होकर हमारा छुवन को लेकर जो रवैय्या है, वो ज़रूरी नहीं है कि बहुत सरल तरीके से बचपन में हमारे छुवन से रिश्ते से जुड़ा हो  । या इसपर सीधी तरह से निर्भर हो कि बचपन में हमें कितना लाड़ मिला, या नहीं मिला ।  इनके बीच में कोई सरल सीधी लकीर खींचना गलत होगा ।  यानी एक सुन्दर बचपन होने के बावजूद, ये संभव है कि बड़े होने के बाद आपको फिर भी स्पर्श से अपना स्वस्थ रिश्ता बनाने में मेहनत लगे  ।  फिर तो ये भी संभव है कि बचपन में भला आपका स्पर्श से अस्वस्थ रिश्ता रहा हो,  बड़े होकर उस रिश्ते को बदलना आपके हाथ में हो ।  है न?


* * *

अलग अलग लोगों से बात करते हुए मुझे ये समझ में आया कि हम में से कईयों के लिए, किशोरावस्था बड़ा मुश्किल समय रहा ।  उन सालों में जब हमारे 'स्व' की रचना होती है , मुझे ऐसे घाव मिले जो अभी तक भरे नहीं हैं, मुझमें आत्मविश्वास की कमी रही, और ये कमी मेरे और रिश्तों पर भी बुरा असर कर गयी ।  मुझे लगता है कि और लोगों के साथ भी ऐसा हुआ । मेरे एक दोस्त का कहना है , कि अपने माँ बाप की हिंसा को सहते हुए, हम उत्पीड़ितों के उत्पीड़न का शिकार हुए ।  और जाने अनजाने में हमारे अंदर ये सारे रवैये समा गए । मैं अपने इर्द गिर्द ऐसे लोगों को देखता हूँ जो अपने माँ बाप की सोच और तरीकों को अनजाने में दोहराते हैं और मुझे पता है कि मैं भी ऐसा कर जाता हूँ । 

मैंने मिनू पर हाथ क्यों उठाया- इस सवाल का जवाब ढूंढने जब मैंने अपने बचपन में एक डाइव मारी, मेरा मकसद ये नहीं था कि अपने माँ बाप पर अपने किये का दोष लाद दूँ ।  मैं ये भी नहीं कहना चाह रहा था कि मैं बस एक, ये बर्ताव ही जानता था । समय के साथ बहुत कुछ बदला है- मैं उनके सामने रोया हूँ, मैंने अपनी सारी फीलिंग्स उनके सामने रखी हैं । उन्होंने भी मेरी बात सुनी है और अपने किये पर गौर किया है और मुझसे सहानुभूति रखी है । मुझे अब उनके तौर तरीकों के पीछे उनकी सोच समझ आ रही है । 

वो चाहते थे कि मेरा भाई और मैं सब कुछ सलीके से करें,  ताकि हम समाज के तानों और निन्दाओं से बचे रहें । हालांकि मुझे लगता है कि उनकी ये जो चिंता थी, वो उसको बयान करने के और बेहतर तरीके अपना सकते थे । वो हमें समझा सकते थे कि वो हमारे साथ इतनी सख्ती से क्यों पेश आ रहे थे, वो हमें आश्वासन दे सकते थे कि वो सचमुच हमसे बहुत प्यार करते हैं ।  बड़े होते हुए मैं इस बात से कभी आश्वासित नहीं होता था, कि वो सचमुच हमसे बहुत प्यार करते हैं  । 

कबीर सिंह के डायरेक्टर संदीप रेड्डी वांगा मानते हैं कि हिंसा भी प्यार को इज़हार करने का एक तरीका है ।  मैं ये नहीं मानता ।  हम देख नहीं पाते कि कब प्यार ख़त्म हो जाता है और किसी को अपनी जकड में रखना उस प्यार की जगह ले लेता है । मुझे लगता है कि ये, किसी को अपनी जकड/काबू में रखना, हिंसा का एक रूप ही है, ।  ये औरों को कण्ट्रोल करने के लिए इस्तेमाल की जाती है । 


अपने बचपन में देखी हिंसा से मुझे सदमा हुआ था, पर मुझे लगता है कि मुझे इसे पीछे छोड़ कर आगे बढ़ना होगा।  और लोग भी यूं आगे बढे हैं । 

अभिजीत का कहना है कि जैसे जैसे वो बड़ा हुआ, उसके माँ बाप ने उससे कम सख्ती की और वो उनके और करीब आया ।  गीता ने कहा कि बचपन में देखी हिंसा का उसपर बड़ा बुरा असर पड़ा । फिर भी, समय के साथ, उसने अपने को सम्भाला ।  वो कहती है कि उसने बचपन में जो कुछ देखा, उसका असर उसके आज के चरित्र पर है- वो चुपचाप है, अडिग, शांत । 

उसने मुझे बताया कि जब उसने अपने को इन सारे मुद्दों से जूझते हुए पाया, तो उसने चार दिन का एक योग शिविर जॉइन किया, जिससे उसे  अपनी फीलिंग्स और अपने तौर तरीकों पर सोचने का मौका मिला । उसे अपनी उलझनों को समझने का मौका मिला और इससे वो बेहतर बन सकी । 

आपस में बैठकर अपनी परेशानियों को सुलझाने का मौका उसे अपने परिवार से नहीं मिला ।  पर उसने अपने परिवार के बाहर ये मरहम देने वाले रिश्ते ढूंढें ।  इस प्यार और समझ से पुराने घाव भी भर पाते हैं  । मैं इस बात से बहुत प्रभावित हूँ कि वो ये कर पाई ।  ये कैसे हो सकता है, मैं भी सीखना चाहूंगा और खुद ऐसा कर पाने  की उम्मीद रखता हूँ । 

 मैं इस बात से बहुत खुश हुआ कि गीता , अपने बुरे तजुर्बों के बावजूद, अपने वयस्क जीवन में, स्पर्श के साथ एक स्वस्थ रिश्ता बना पाई ।  उसको पहले पहल मिलो तो ऐसा नहीं लगता कि उसे गले लगके प्यार पाना पसंद होगा।  पर अगर तुम उसके करीब के कोई हो, तो वो प्यार भरी झप्पियाँ देती है, तुम्हें अपने लाड़ का आँचल देती है । अगर उसको किसी से थोड़ा सा भी लगाव हो, तो वो उसे बयान करने में बिलकुल नहीं हिचकती ।  वो या उन लोगों को बता देती है, या बयान करती है, या ये बात एक चिट में लिख छोड़ती है, ताकि वो, जिन्हें प्यार करती है, उन्हें उसकी बातों से खुशी मिले।  अजीब बात ये है कि उसको लगता है कि अगर वो किसी बच्चे की माँ बनी, तो वो "बड़े विरोधी बर्ताव ज़ाहिर करेगी । ऐसी माँ जो बहुत प्यार देती है पर बच्चा सब कुछ ठीक ठाक करे, इसके लिए , बच्चे को डांट -मार भी देगी ।  “

और जैसे जैसे मैं अपने माँ बाप के बारे में और सोचता हूँ, मुझे ये लगने लगता है कि मार पीट के अलावा भी बहुत कुछ दिया उन्होंने हमें विरासत में। 

आप अपने आस पास के बच्चों के साथ कैसे पेश आते हो, कभी दो कदम पीछे हट कर इस बात पर सोचा है? जहां तक मेरा सवाल है, मैं अधिकतर वो ही हाव भाव जताता हूँ, जो मैंने अपनी माँ में देखे हैं।  वो जिन शब्दों का इस्तेमाल करती है, जिस तरह से खेलती है, अब मैं वैसे ही सब करता हूँ।  मेरे और दोस्त बताते हैं कि उन्होंने भी अपने आप में यही प्रवृत्ति देखी है। 

मुझे ये भी लगता है कि मैं रोमांस जिस तरह से करता हूँ, वो भी मेरे माँ बाप से सीखे तरीके हैं ।  मैंने अक्सर अपनी  प्रेमी से वैसे ही रोमांस करने के सपने देखे हैं, जैसे मैंने अपने पिता को अपनी माँ के साथ करते देखे : उसे चिढ़ाते हुए, आते जाते उसे चूमते हुए, उसे प्यार भरे नाम से पुकारते हुए ।  साहित्य और अन्य मीडिया का मेरी रोमांटिक कल्पना पर कुछ असर रहा होगा, पर अधिकतर कल्पना का स्त्रोत वही सब है जो मैंने अपने माता पिता या फिर उनके माता पिता के बीच होते देखा । 

मुझे लगता है कि मैं खुद नहीं जानता, कि मैं कब, किन तरीकों से, अपने माता पिता का अक्स बन जाता हूँ । 

और अपने हॉस्टल के रूम मेट, शिवम्, से बात करते हुए, मुझे एक खूसूरत बात समझ में आई- कि मेरे माँ बाप से ही  मुझे दूसरों से नम्रता और सहनशीलता से पेश आने की ज़रुरत समझ आयी है ।  यही वजह है कि मैं ये समझने की कोशिश करता हूँ कि मेरे हाव भाव और बातों से दूसरे पर क्या असर हो सकता है । 

आगे बढ़ते हुए, हम सभी जानते हैं कि सही क्या है और क्या गलत, और मैं उस समझ से काम लेने की कोशिश करूंगा ।  जब मेरे अपने बच्चे होंगे, जब मुझपर किसी इंसान की परवरिश की ज़िम्मेदारी पड़ेगी, तो मैं उम्मीद करता हूँ, कि मैं उन्हें सहारा दूंगा ।  अपना वक्त बुरे बर्ताव को सुधारने और अनुशासित करने में कम ज़ाया करूंगा।  मैं  ऐसी कोशिशें करूंगा जो बेहतर बर्ताव को बढ़ावा दें । 

उनकी गलतियों को और खुल कर समझने और मानने की कोशिश करूंगा । अपनी गलतियां भी और अपने पार्टनर, परिवार और दोस्तों की भी ।  आखिर हम सब सीखने की कोशिश में लगे हुए हैं । 

मीनू ने मुझे माफ़ करने का तोहफा दिया है।  मैंने उससे सीखा है कि बीती को पीछे छोड़ देना चाहिए ।  अपने आप को सुधारना चाहिए ।  उसने मुझे शीतलता और सहानुभूति सिखाई है ।  उससे मैंने ये सीखा है कि तनाव और द्वन्द से जूझने के और तरीके भी हैं ।    दूसरे पर बरस पड़ना अकेला उपाय नहीं है । और उसने मुझे दिखाया है कि आगे जाकर मैं जो इंसान बनना चाहता हूँ, उसका  निर्माण मेरे माँ बाप, या  मेरे बचपन पर निर्भर नहीं है, खुद मुझ पर निर्भर है  ।  



*नाम बदला गया है

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