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स्कूल में दूसरों की धौंस का सामना, और उसका मेरे आज के काम पर प्रभाव!

जब मैंने बोलना शुरू किया, तो मैं ख़ुद के लिए 'खाऊँगी', 'जाऊँगी' जैसे सर्वनामों का इस्तेमाल करता था। इसकी वजह से मैं अपनी क्लास के बच्चों, शिक्षकों और यहाँ तक कि अपने पिता तक की फब्तियों और बदतमीज़ी का शिकार हुआ।

जब भी ५ सितम्बर को अध्यापक दिवस मनाया जाता है, सोशल मीडिया पर सब लोग अपने अध्यापकों स्कूल कॉलेजों को याद करते हैं, पर मेरे अंदर पूरा दिन उथल-पुथल चलती रहती है | मुझे पूरा दिन अपने स्कूल के दिनों की याद आती है, मैं सोचता हूँ मैंने चुपचाप इतने साल इतना सब क्यों सहन किया | आज जो हिम्मत है तब क्यों नहीं थी | मुझे मेरे क्लास के बच्चे छक्का, लड़की, हिजड़ा और न जाने किन-किन नामों से बुलाते थे | मुझे अपनी ज़िन्दगी से घिन आती थी | और लगता था की मुझे भगवान ने ऐसा क्यों बनाया | मुझे आज भी अपने स्कूल के बारे में बुरे सपने आते हैं, और डर के मारे नींद खुल जाती है पर अब, जब भी नींद खुलती है तो मैं खुश होता हूँ, और सोचता हूँ, अब ज़िन्दगी कितनी अच्छी है | 

आज मैं अपने पैरों पर खड़ा हूँ, मैं घर, पैसे और अपनी ज़िन्दगी की सुरक्षा के लिए अपने माँ बाप का मोहताज़ नहीं हूँ | आज जब स्कूल कॉलेजों में बच्चों को जाते हुआ देखता हूँ तो सोचता हूँ की जो मेरे साथ हुआ वो किसी और बच्चे के साथ न हो | 

जब मैं पैदा हुआ तो मैं अपने माँ बाप का पहला बच्चा था, मेरी माँ ने मेरे लिए कई सपने देखे थे जैसे की पहला बच्चा कुछ ख़ास होता है, तो शायद, मैं भी अपने माँ बाप के लिए ख़ास था।

मेरी माँ का सपना था कि वो हर महीने, जैसे-जैसे मैं बड़ा हो रहा हूँ, मेरी फ़ोटो खींचे और उस फ़ोटो के कोने में काग़ज़ पर में कितने महीने का हो गया भी लिखे, ताकि यादें संजो सके । 

जब मैं एक डेढ़ साल का था, और बोलना शुरू किया, तो मैं ख़ुद के सर्वनाम खाउंगी, जाऊंगी, नाचूंगी आदि इस्तेमाल करता था l

मुझे लगता था कि मैं लड़की हूँ पर समाज के हिसाब से मैं एक लड़का था, शुरू शुरू में माँ बाप को क्यूट लगने लगा पर जैसे जैसे मेरी उम्र बढ़ी मेरे पिताजी और परिवार के लिए मैं एक शर्म बनता गया l

जब मेरे पिता जी जब भी घर के बाहर जाते, मैं माँ की साड़ी ले कर नाचता और खेलता। कई बार मेरे पिताजी ने मुझे पकड़ लिया और बहुत पीटा और कहा कि लड़का बन जा। 

चार- पाँच साल के बच्चे को क्या पता होता है कि लड़का क्या है और लड़की किया है?

हम क्वीर ट्रांस* बच्चों के लिए स्कूल और कॉलेज के अनुभव अक्सर कड़वे होते हैं | मैंने भी अपने स्कूल में बहुत सारी हिंसा और छेड़-छाड़ झेली है | अगर समाज ने आपको लड़का बोला है और आपकी आदतें लड़कियों जैसी हैं, तो आपके साथ स्कूल में शोषण किया जाता है | इसी तरह से अगर समाज ने आपको लड़की बोला है और आपकी आदतें लड़को जैसी हैं तो आपके साथ भी शोषण किया जायेगा | 

इस हिंसा और भेदभाव के कारण हमारी पढ़ाई-लिखाई और बचपन पर बुरा असर पड़ता है, हम मानसिक तनाव में रहते हैं, मैंने भी ऐसे ही कई साल गुज़ारे, स्कूल के बाद कभी कॉलेज नहीं गया | मुझे लड़को और मर्दो से डर लगता था, आगे की पढ़ाई मैंने डिस्टेंस लर्निंग्स के द्वारा की और धीरे धीरे अपने आत्मविश्वास को फिर से जोड़ा और अपने पैरों पर खड़ा हुआ | 

इसी कारण से हमने सतरंगी साथी कार्यक्रम का आगाज़ किया | हम स्कूल कॉलेजों में जाते हैं, बच्चो से और अध्यापकों से जेंडर समानता , यौनिकता , पितृसत्ता और क्वीर ट्रांस* ज़िन्दगियों के बारे में बात करते हैं | हम जेंडर के २ डबे ले जाते हैं, एक नीला और एक गुलाबी, इन डब्बों में हम लड़के और लड़कियों को दिए जाने वाले खिलौने डालते हैं | लड़कों  को बन्दूक और गाडी दी जाती है, और लड़कियों को गुड़िया और किचन सेट दिया जाता है | इसके बाद हम सेक्स और जेंडर की बात करते है, हम इंटरसेक्स बच्चों की बात करते हैं | हम कहते है इंटरसेक्स बच्चों को या तो पैदा होते ही मार दिया जाता है, या उनके जननांगो की सर्जरी कर दी जाती है, या उन्हें उनके माँ बाप से अलग कर दिया जाता है | ऐसे बच्चों के साथ जो हिंसा होती है, उसके बारे में कभी बात नहीं की जाती | 

जो बच्चे / लोग समाज द्वारा दिए गए जेंडर के नियमों को नहीं मानते, उनको भी तरह तरह से प्रताड़ित किया जाता है, बड़े होते-होते ये बच्चे या तो खुदखुशी कर लेते है, या मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाते हैं। परिवार माँ बाप हम जैसे बच्चों / लोगो को प्यार करने और अपनाने से मना कर देते हैं | हम कहते हैं, कि जब हम स्कूल में पढ़ते थे, तो हमारे सुरक्षा के लिए कोई कानून नहीं था, पर २००९ में शिक्षा का अधिकार कानून आया, जिसमें कहा गया की हर बच्चे को पढ़ने का समान अधिकार मिलना चाहिए | एंटी बुलिंग और हर्रास्मेंट कानून, यानि बच्चे पे धौंस जमाके उसको प्रताड़ित करने के खिलाफ बना कानून,  बच्चों/व्यक्तिओं की सुरक्षा के लिए बनाया गया | और २०१९ में ट्रांसजेंडर पर्सन प्रोटेक्शन और राइट कानून भी बनाया गया | जिसके अनुसार हर शिक्षण संस्थानों में बच्चों और अध्यापको के साथ जेंडर पर बातचीत करना बहुत जरुरी है | इन् कानूनों में क्वीर ट्रांस* और अन्य कमजोर वर्ग के बच्चों की सुरक्षा के लिए प्रावधान है | हम जैसे बच्चो को तंग करने और शोषण करने वालों के लिए सजा और जुर्माने का भी प्रावधान है | 

स्कूल कॉलेजों में जेंडर की बात करने के लिए परमिशन नहीं मिलती, हम जेंडर समानता और मानसिक स्वास्थ पर बातचीत करने आये हैं, यह कह कर हम स्कूल कॉलेज के प्रिंसिपल से परमिशन लेते हैं। अधिकतर प्रिंसिपल और अध्यापक जेंडर समानता की बात को महिला सशक्तिकरण के रूप में देखते हैं, और इसी तरह हमें, स्कूल कॉलेज में बात करने की परमिशन भी मिल जाती है | क्वीयर  ट्रांस* ज़िन्दगियों और अधिकारों के बारे में बात करने के दौरान हमें डर भी लगता है, कि कहीं स्कूल प्रशाशन हमें बाहर न निकाल दें | अक्सर डेढ़  से २ घंटे की बात के बाद अध्यापक और विद्यार्थी काफी भावुक हो जाते हैं, उन्हें एहसास होता है कि उनके विशेषाधिकारों के होते हुए, उन्होंने जाने अनजाने में कितनी बार क्वीर ट्रांस* बच्चों/लोगों के साथ हिंसा और छेड़छाड़ की है | उन्हें एहसास होता है, किसी व्यक्ति के जेंडर के नियमों का पालन न करना उस व्यक्ति की गलती नहीं है ये तो कुदरती है | कुदरत कभी इंसानो को एक जैसा नहीं बनाती, कुदरत विभिनत्ता है, और अलग होना कोई अलग बात नहीं हैं | 

एक इंजीनियरिंग सरकारी कॉलेज में जेंडर की ट्रेनिंग के बाद कॉलेज के प्रिंसिपल से बातचीत की गयी, प्रिंसिपल सर हमारे उठाये गए मुद्दे से बहुत प्रभावित थे | हम ने उनको उनके कॉलेज में क्वीर ट्रांस* व्यक्तियों के लिए अलग शौचालय बनाने के लिए प्रेरित किया | इस शौचालय के जरिये वह जेंडर के इस मुद्दे को अपने कॉलेज में बार बार उठा पाएंगे और क्वीर ट्रांस* व्यक्तियों के लिए एक सुरक्षित जगह बना पाएंगे। प्रिंसिपल सर ने हमारी बात बहुत ध्यान से सुनी, और नॉन बाइनरी व्यक्तियों के लिए शौचालय निर्माण करवाया | 

कुल्लू में आशा वर्कर्स की ट्रेनिंग के दौरान एक औरत ने हमें सुझाव दिया कि हमें मर्दों और लड़कों का संवेदीकरण करना चाहिए। क्योंकि अधिकतर हिंसा मर्दों द्वारा ही की जाती है और जब भी जेंडर संवेदीकरण की बात होती है तो वही उठ कर बाहर चले जाते हैं की जैसे जेंडर तो सिर्फ औरतों का मुद्दा है। इसी सुझाव को लेते हुए व् अपने अनुभवों से सीख कर हमें भी यही लगा की मर्दों और लड़कों के साथ लम्बी व् गहरी चर्चा की ज़रुरत है। 

हिमाचल के छोटे कस्बों और गांव में क्वीर ट्रांस* आंदोलन की यह बहुत बड़ी जीत है | हमारी ट्रेनिंग से हमारे समुदाय के व्यक्तियों और बच्चो को बहुत हिम्मत मिलती है, सेशन के बाद अक्सर बच्चे हमें इंस्टाग्राम और व्हाट्सप्प में थैंक्यू का मैसेज करते है | वह कहते हैं, की आप बहुत जरुरी काम कर रहे हो, और यह क्वीर ट्रांस* समुदाय के लिए सेफ स्पेस बनाने का एक जरूरी कदम है, ताकि कभी कोई बच्चा अपने जेंडर पहचान की वजह से अपने स्कूल-कॉलेज में हिंसा और शोषण का शिकार न हो |  

शशांक एक पहाड़ी ट्रांसजेंडर व्यक्ति है, और हिमाचल क्वेयर फ़ाउंडेशन के सह-संस्थापक हैं l इनको चाय पीने, गप्पें मारने, नाचने-गाने और खाना पकाने का बहुत शौक़ है। यह एक नारीवादी हैं और हिमाचल में पहाड़ी गानों और कहानियों के माध्यम से लोगों को LGBTQIA+ अधिकारों के बारे में जागरूक करते हैं l

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