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मुझे दो साल लगे यह समझने में की मेरा बलात्कार हुआ था

विजय, एक क्वीयर दलित इंसान, यौन हिंसा के कई पहलू के बारे में सोचते है

किसी भी एग्जाम वाले दिन की तरह वो अप्रैल 2019 की गरम सुबह थी।  हम  सो के उठे , तैयार हुए  और अप्पा को मेट्रो तक छोड़ने के लिए कहा।  मेरी दिनचर्या रोज़ की तरह ही थी।  रास्ते में , मैं साथ यात्रा करने वाले लोगों को छुप के निहारते थे  जिनके साथ में हम  कभी कल्पना में खो जाते  थे , जैसे उनके पास जाना , उनसे उनकी ID या नंबर लेना, उनके साथ डेट पे जाना , और जाने क्या क्या।  और फिर दोस्तों के साथ क्लास में एग्जाम से पहले घबराना , अंदर से परेशान होना , पेन से सर खुजलाना , गहरी साँसे छोड़ना , दोस्तों से बात चीत करना और फिर घर जाना।  लेकिन उस दिन हमने  एग्जाम के बाद सोचा और कहा ' भाड़ में जाये सब , चलो चलते है '. 

हमने अपने मैच को टेक्स्ट किया क्यूंकि एक महीना पहले उसने हमे  मिलने को बोला था और आज वो दिन था।  हम उससे किसी सार्वजानिक जगह मिलने जा रहे  थे ।  ताकि अगर हमे  लगे हम  उसके साथ उसके घर जाने को तैयार नहीं है , तो मैं बस वही से कट लें ।  

वो खाली था और मिलने को तैयार था।  बस फिर क्या था।  

हमारा दिल ज़ोरो से धड़क रहा था और हमे सास लेने के लिए एक पल लगा।  हम दोनों एक कई महीनों से एक दुसरे को कभी कभी टेक्स्ट कर रहे थे।  वो बहुत ही अच्छा था , और हमारे  दुबले पतले गेहुँए शरीर की बहुत तारीफ करता था।  जब भी हम  घबराते  थे  , वो हमसे कहता था हम दोनों वही करेंगे जो हम  ठीक लगे।  वो हमसे बस कुछ ही साल बड़ा था , जसका शरीर पतला लेकिन स्वस्थ था और बेशक काफी मज़ाकिया था। 

हमारे पहले सिस आदमी के साथ डेट को अभी ज़्यादा दिन नहीं हुए थे।  हम दोनों साथ साथ  एम जी रोड और चर्च स्ट्रीट के आस पास घूमें।  किताबों की दुकानों में रैक के बीच से एक दूसरे का हाथ पकड़ा।  एक दूसरे की  गर्दन को अपनी नाक से सहलाया और बस चूमते चूमते रह गए।  हम रंगोली मेट्रो आर्ट सेण्टर की प्रदर्शनी में गए और गुलाबी बोगेनवेलिया की छाओ में बैठे जहाँ उसने मुझे किस करने की पहल की।  बहुत ही क्रांतिकारी पल था वो।  जब कुछ नया और मज़ेदार।  

लेकिन फिर भी कुछ घबराहट थी।  ऐसा लग रहा था मानो बैंगलोर हम  पहली बार आये  है  लेकिन कुछ अलग अनुभव कर रहे  हैं ।  सवर्ण मर्दों के राज में अपने खुद के लिए एक सुरक्षित जगह बना रहे  हैं ।  खुद के लिए और उन पलों के लिए जगह बनाना काफी मज़ेदार अनुभव था।  

शायद उसको लगा होगा कि हम  जल्दी ही उसे बहुत ज़्यादा चाहने लगे   , तो इसलिए उसने हमारे टेक्स्ट का जवाब नहीं दिया और हमने भी इस बात की कोई ख़ास परवाह नहीं की।  फिर हम किसी दूसरे लड़के से मिले  - एक बहुत ही अच्छा इंसान जो मेरा दोस्त है।  हमने एक पार्टी में किस किया क्यूंकि जब हम  पहले जब थोड़ी देर के लिए मिले थे तो कुछ नहीं कर पाए थे।  और फिर एक दूसरा लड़का भी था , जिससे हम  उस दिन मिलने के लिए बहुत बेताब थे ।  

दोपहर के एक या दो बज रहे होंगे।  सूरज मेरे सर के ठीक ऊपर तप  रहा था।  हमने अपनी सलेटी हूडि , शर्ट और पैंट  पहनी हुई थी और उससे मिलने जाने के लिए ऑटो बुक कर रहा थे ।  बेताबी , बेचैनी और कल्पनाओं में डूबे  हुए  , हम  ऑटो में बैठे ।  पीठ दुखा देने वाली सड़कें और गाड़ियों के हॉर्न आमतौर पे हमारे मुँह से गालियां निकलवाते थे , लेकिन उस दिन हम  शांत थे ।  जैसे ही ऑटो रेसीडेंसी , ब्रिगेड , ट्रिनिटी , उल्सूर , बँसवाड़ी होते हुए आख़िरकर जब हमारे ठिकाने , राममुर्ति नगर पंहुचा तो आगे क्या होगा सोच सोच के हमारा दिमाग चारो तरफ ऐसा घूमा जैसे एक बच्चे  का दिमाग मॉल में गेमिंग एरिया में जा के घूमता है।  

" हम दोनों  क्या करेंगे ? हम क्या करेंगे ? वो असल में कैसा दिखेगा और कैसा होगा ? उसे क्या चाहिए ? क्या हम उसको पसंद आएंगे  ? क्या वो मुझे चाहेगा ? क्या  दोनों हम ये य वो करेंगे ? ऐसे करेंगे या वैसे करेंगे ? क्या हम  तैयार हैं  ? क्या हम  अच्छा महक रहे  हैं  ? कैसा रहेगा सब कुछ ? क्या हमे  इसके बाद कोई टेस्ट कराना चाहिए ? "

हम ऑटो से नीचे उतरे ,जहां उससे मिलना था वहाँ पंहुचा और उसको फ़ोन लगाया।  वो रास्ते में था और उसको आने में बस कुछ और मिनट लगने थे।  वो स्कूटर पे आया , अपना हेलमेट उतारा , और उसके प्यारे से चेहरे पे बड़ी सी मुस्कान छा गयी, जिसने हमारे  चेहरे पे भी मुस्कान ला दी।  हमने थोड़ी बातें की , और फिर हमे  उसके साथ जाना ठीक लगा।  स्कूटर पे वो हमारी छोटी सी डेट थी , जहां हमने एक दूसरे को बेहतर जाना।  उसके घर ने हमारा  स्वागत पहले तो तेज़ पेंट की महक ने किया और फिर ठंडी हलके रंग की फर्श ने।  हम  दोनों काले लेदर के सोफे पे बैठे, थोड़ी देर बातें की , और फिर उसने हमे  अपने बैडरूम पे बुलाया।  

हमने उसको बोला हमे थोड़ा समय चाहिए।  हमने लोकल एनस्थेटिक और माउथ वाश उठाया और बाथरूम की ओर  में चला दिए ।  हमे  गूदे में कोई तकलीफ है , तो अगर बात सेक्स तक पहुँचती है , तो हम  ऐसा चाहते थे  कि कम से कम दर्द में ज़्यादा से ज़्यादा मज़ा आएं।  इसलिए   लोकल एनस्थेटिक की ज़रुरत थी।  हमने अपना काम किया और उसके साथ बिस्तर पे पहुंच गए ।  

हमने एक दूसरे की तरफ चेहरा किया , और एक दूसरे के शरीर को सहलाते हुए और कपड़े उतारते हुए तब तक किस किया जब तक उसने यह नहीं कहा ' हम कब तक सिर्फ किस ही करेंगे ' ।   उस वक़्त हम  उसके ऊपर थे ।  उसकी आँखे तिरछी हो गयी , और उसने ज़बान को अपने ऊपर वाले होंठ पे फेरा।  

' हम्म , हाँ, क्यों नहीं।  चलो कोशिश करते है  ', हमारे दिमाग ने कुछ सेकंड सोच के कहा।  हमने उसका लिंग अपने मुँह में लिया , लेकिन वो मुलायम हो गया , और उसने हमसे  कहा हम  ठीक से नहीं कर रहे  है ।  तो वो हमारे ऊपर आ गया , और हमारे चेहरे के पास अपना लिंग ला के हमारे मुँह में डालने लगा।  हमने उसको ऐसा तब तक करने दिया जब तक हमारा दम नहीं घुटने लगा।  और फिर वो रुक गया।  

उसने मुझसे पूछा क्या हम  ऐनल सेक्स करना चाहेंगे ।  हम हिचकिचा रहे  थे  और लगातार यह कहते रहे  ' पता नहीं।  शायद।  हमे  दर्द नहीं चाहिए।  वो एकदम अड़ा  हुआ था , उसने हमे  पकड़ के किस किया और कुछ ऐसा कहा ' चिल।  कुछ नहीं होगा।  मैंने यह  वर्जिन लोगो के साथ पहले भी किया है' ।  

हमारा जवाब कुछ ऐसा था ' उम् , ठीक है , लेकिन अगर हमे दर्द होगा तो प्लीज रुक जाना।  ' आखिरकार' , यह बोल के उसने सर उठाया।  हम  घबराये  हुए  और उत्तेजित थे  , मगर इस बार हम  घबराये  हुये  ज़्यादा थे ।  उसने कंडोम पहना, खुद को और हम  दोनों को ल्यूब लगाया और अपना लिंग हमारे  अंदर डालने लगा।  हमने मना किया क्यूंकि उसके लिंग का निचला हिस्सा हमारे अंदर था और हमे बहुत ज़्यादा दर्द हो रहा था।  हमने उसको कहा के वो रुक जाये , उसने कहा हम  थोड़ा सब्र करें , बस अंदर जाने  ही वाला है  " एक बार और , बस जाने वाला है " , " बस सास लो. तब ठीक लगेगा " ।  हमने लगातार अपनी बाहें  छुड़वाने की कोशिश की  , उठने की कोशिश की , लेकिन फिर हमने हार मान ली , और जो हो रहा था होने दिया।  वो दो बार मेरे अंदर गया और बाहर आया।  लोकल एनस्थेटिक इतना असरदार   नहीं था , न ही हम ।  उसने हमे  उन गलियों में वापिस छोड़ दिया जिन्हे हम  अपना बोलते  थे ।  

 इस बात को बीते दो साल हो चुके है।  हम  नहीं जानते  कि क्यों यह घटना एक बिलकुल नयी तरह से हमारे दिमाग में बिलकुल ताज़ा हो गयी।  रुको, हमे पता है।  

मर्ज़ी , आग्रहिता, और नारीवाद को ले के जो हमारी सोच थी वो इतनी  विकसित और मज़बूत तो थी ही कि हम यह सोच पाये हमे क्या चाहिए और कैसे चाहिए और हमे किस चीज़ की ज़रुरत है।  हमे नहीं पता यह याद हमारे दिमाग में कहा से ताज़ा हो गयी।  लेकिन हम उस घटना की याद लिए बैठे, गहरी सोच विचार किये , उसपे रोशिनी डाले , और हर एक चीज़ को अलग तरह से देखे।  

एक बार हमारे दिमाग ने कहा ' क्या वो घटना बलात्कार नहीं थी ? ' यह बात हमारे दिमाग के किसी कोने में चलती रहती थी।  और एक दिन जाड़े की खुशनुमा सुबह में हमने अपने दोस्त को इस पर विचार प्रकट करने को बोला।  वह इस बात से सहमत था कि जो हुआ वह यौन हमला था और बलात्कार भी था।  उसने अपने पार्टनर के साथ हुए अनुभवों के बारे में बताया जहा उसका पार्टनर बस खुद को उसपे थोप देता था।  वह बिना पूछे बस खुद से ही सोच लेता था कि उसको मेरे दोस्त के बदन से क्या चाहिए , और मेरा दोस्त , ज़ाहिर है , उसको मना करता था।  

इन बातों से झटका तो लगा, लेकिन आज भी इस बात की खुशी है कि हमारे दोस्त ने हमसे खुलकर बात की। एक दूसरे सिसजेंडर मर्द, जिसपर उन्होंने आंख बंद कर भरोसा किया था,ने उनके साथ मार-पीट की थी। और, जब उन्होंने ये बात बताई, उसके बाद जब हमने दिमाग पर ज़ोर डाला, तो याद आया कि उस आदमी से तो हम मिले थे, उसके साथ कुछ हसीन वक़्त भी बिताया था।  और, ये जो अपनी दास्तां बयां कर रहा वो काफी करीबी दोस्त है। वो तो आज बात निकली तो इन्होंने अपने राज़ हमारे सामने खोले, वरना ये बात जल्दी बाहर नहीं आने वाली थी।

एक बार क्लास में हम गेस्टाल्ट थ्योरी को इंसान की नज़र से देख रहे थे। (गेस्टाल्ट- यानि सम्पूर्ण- किसी भी बात को पूरी तरह स्वीकार कर लेना)। अगर संपूर्ण / मुक्कमल गेस्टाल्ट अनुभव की बात करें तो वो सिर्फ उसको मानने या जान-समझ और तर्क-वितर्क करने, या दूसरों से शेयर करने तक सीमित नहीं है। बल्कि बात यहां उसे इमोशनली मानने और पूरी तरह से महसूस करने की है। हमने उस क्लास में अपने अनुभव को बहुत ही कम शब्दों में बयां किया और अपने प्रोफेसर से पूछा, "क्या हमें गेस्टाल्ट का अनुभव हुआ है, या हो रहा है?"  उन्होंने एक मिनट के लिए सोचा और फिर कहा, "नहीं।  मुझे तो नहीं लगता। क्योंकि मुझे लग रहा है कि तुमने उसे इमोशनल तरीके से अभी तक अपनाया नहीं है। शायद तुम्हें उसके साथ और वक़्त बिताना होगा। देखना होगा कि उस हिंसा और हमले की बात सोचकर तुम्हारी बॉडी क्या महसूस कर रही है। फिर देखो, क्या होता है।"

हमें नहीं पता कि हमें कभी वो अनुभव होने वाला भी है या नहीं। शायद इसके बारे में लिखना ही हमारे लिए एक पूर्ण गेस्टाल्ट का अनुभव करने जैसा है।

ये लिखते-लिखते आंसू के कतरे गालों पर आ गिरे। हमारा सीना जैसे खाली हो गया, सांसें सरल हो गई। इस घटना के कुछ महीनों बाद तक ये सवाल मन में आता रहा, "हमने ऐसा होने कैसे दिया?"

सवाल दोतरफा था। एक तो हम फेमिनिस्ट थे, कंसेंट की अहमियत समझते थे, फिर भी अपने साथ ऐसा होने से रोक नहीं पाए। मान ही नहीं पाए कि हिंसा हुई। दूसरा, फेमिनिस्ट होते हुए, कंसेंट की तरफ और भी जागरूक होते हुए भी, हम इस पूरे वाक़ये को भूल बैठे।  (क्योंकि जब भी लोग हमसे पहली बार हुए सेक्स के बारे में पूछते थे, हम आधा-अधूरा जवाब देते थे)। ना ही हम उस हिंसा को देख पा रहे थे और ना ही उसे अपना पा रहे थे। पूरा किस्सा आंखों के सामने था, शीशे की तरह साफ, फिर भी ना जाने क्यों उसे स्वीकारना मुश्किल लग रहा था?

हमारी सारी सीख ना जाने कहाँ गायब हो गई थी?ऐसे कैसे मुझे छोड़ गई? आखिर इंसान हैं हम।

हाल ही में, जब कुछ और बात चल रही थी, एक दोस्त ने हमें कहा- "जरूरी नहीं है कि हर चीज़ को मानसिक रोग की तरह ही देखा जाए।" ये बात तो हमारे मामले में भी फिट बैठ रही थी। इंसान हैं, खुद को हर बात के लिए क्यों लतारें। उस वक़्त सही चीज़ नहीं कर पाए, तो नहीं कर पाए। खुद को दोषी मानकर क्यों बैठें?

हां, हमारा सेक्सुअल हनन हुआ। लेकिन शायद उस वक़्त खुद को बचाने के लिए हमारे दिमाग और शरीर को यही सही लगा। तो ठीक है ना! एक थेरेपिस्ट से इस बारे में बात की। उन्होंने पूछा अगर हम कंप्लेंट करना चाहते हैं। हमने कहा, "नहीं। एक, तो इसमें ऑफिसियल काफी सारा पेपर वर्क होगा। दूसरा, हम एक मर्द दलित क्वीयर हैं, जिसका बलात्कार एक दूसरे सिसजेंडेर मर्द ने किया था। अब जिस दुनियां में, सर्वना सिसजेंडेर औरत का किसी भी तरह का हिंसा का मामला गंभीरता से नहीं लिया जाता है, वहां हमारी कहानी का क्या हश्र होगा?

हमें न्याय की उम्मीद है? एक मर्द के शरीर को किस तरह परख जाए, किस पैमाने पे उसकी जांच हो जिससे पता चले कि सच में उसके साथ कुछ गलत हुआ है? और अब तो दो साल हो गए। तो, नहीं! अब कोई रास्ता नही। अब तो हम बस इसे शेयर करना चाहते हैं, इसका सामना कर इससे निपटना चाहते हैं। खुद को इससे आज़ाद करना चाहते हैं। उस एक नाज़ुक और कमज़ोर पल के अलावा भी हमारा कोई वज़ूद है। 

हमने महसूस किया है कि ना कहना और ये सुनिश्चित करना कि आपका पार्टनर आपके इनकार का सम्मान करे, या ऐसे पलों और लोगों से निपटना जो आपकी 'ना' को एहमियत नहीं देते हैं, काफी मुश्किल है। हमें बेशक ये सीखना चाहिये। वैसे प्रैक्टिस के बाद भी ये मुश्किल है कि हर समय, हर जगह हम सेफ रह पाएं। ज़रूरत है शर्म से परे, खुले, व्यापक तरीके से दिये गए सेक्स एजुकेशन की! साथ ही साथ ये भी सिखाया जाए कि अगर कोई और ऐसे हिंसक पलों से जूझ रहा है तो उसकी मदद कैसे करनी चाहिए। और ये सब सिर्फ बच्चों को नहीं बल्कि हर इंसान को सीखना है, ताकि वो दूसरों या अपने खुद के द्वारा की गई हिंसा, का सामना कर सके। क्योंकि सच तो यही है कि ऐसे पल ज़िंदगी के किसी भी मोड़ पर किसी भी रूप में सामने आ सकते हैं। तो दूसरों को और खुद को ऐसे हालातों का जितनी अच्छी तरह हो सके, सामना करने के लिए पहले से तैयार कर रखना ही सही है। 

समय आ गया है कि ऐसे हिंसक सिस्टम को उखाड़ फेंका जाए। यहां किसी की इज़्ज़त करना सीखना, सेफ फील करना, आराम से रहना, अपने या किसी और के शरीर-मन-समावेश में पनपना, और एक ऐसी जगह बनाना जो सबके लिए कारगर हो- कहां सम्भव है! शायद हमें पेप्पर/काली मिर्च स्प्रे रखना होगा, जितना हो सके अपने आपको मज़बूती से पेश करना होगा, और फिर समय के साथ दूसरों का सहारा लेकर उठना होगा। और फिर उस सबसे आगे निकलकर अपने और अपने पार्टनर की ज़रूरतों और चाहतों के बीच खुद के आनंद का भी ख़्याल रखना होगा। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे हैं, सीख रहे हैं, यही तरीका सही दिख रहा है।

विजय एक दलित क्वीयर है जो कि एक ट्रेनी मनोवैज्ञानिक हैं। वो पढ़ने, लिखने और लाइफ को, जितना संभव हो, अपने हिसाब से जीने की कोशिश करते हैं। और उम्मीद करते हैं कि दूसरे भी ऐसा ही करें।

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