मैंने शादी क्या की, अपने आधे से भी ज्यादा दोस्त खो दिए । इसकी वज़ह ना ही मेरा नया पति था, ना ही शादी से जुड़े नियम-कानून । ऐसा भी नहीं था कि दुल्हन बनके मैंने कोई नया अवतार धारण कर लिया था । इसकी वज़ह सिर्फ और सिर्फ मेरी शादी थी। शादी से एक हफ्ते पहले, मेरी मां मेरी शादी को लेकर अपनी बहन से झगड़ बैठी । इसलिए मेरे मौसेरे भाई-बहन शादी में नहीं आए । शादी से दो दिन पहले, मैं और मेरे दोस्त भी किसी बात पर बुरी तरह लड़ पड़े । मतलब हम एक दूसरे को काट खाने को तैयार थे। मुझे यूं लगा कि इसके बाद उनका शादी में आना या ना आना, बराबर ही था।
बचपन से सुना था कि औरतें शादी के बाद, अपनी दोस्तीयां कायम नहीं रखतीं । लेकिन मेरे मामले में ऐसा कुछ नहीं है। मेरी पहचान के ज़्यादातर स्ट्रेट/विषमलैंगिक शादीशुदा मर्द, किसी भी तरह के इमोशनल और सोशियल मामले में अपनी पत्नियों की तरफ ही मुड़ते हैं। उसके साथ ही मूवी जाना, मां-बाप के गुज़रने पर उसके ही कंधे सिर रखकर रोना, उसके साथ ही नए कपड़े खरीदना, खराब बाल कटाने की चिंता करना! बोले तो, सब कुछ! लेकिन जब इन्हीं हेटरोसेक्सउअल शादीशुदा मर्दों को अपनी बीवियों के बारे में किसी से बात करनी हो, तो उनको कोई नहीं मिलता है । और इस बीच, उनकी पत्नियां हमेशा अपने उस ख़ास दोस्त के साथ चैट करती , कॉल लगाती और प्लान बनाती दिखेंगी । वो जो बचपन की पक्की दोस्तियां होती है ना, जब आप एक साथ किंडरगार्टन में बाथरूम साथ जाया करते हो, और जिनके साथ कॉलेज में बाइक पर ट्रिपल सीट बैठते हो । वो उन दोस्तियों को बरक़रार रखती हैं ।
तो भले ही यक़ीन करना मुश्किल हो रहा हो पर शादी के एक साल के भीतर, 30 साल की उम्र में, मैंने अपने कॉलेज के और मेरी पहली नौकरी के सारे दोस्त खो दिए थे । मतलब जिन दोस्तों को मेरी माँ, मेरे भाई-बहन से कम नहीं समझती थी, सब टाटा बाई-बाई करके जा चुके थे । उनकी लाइफ़ में अच्छा-बुरा क्या हो रहा था, मुझे कुछ भी नहीं बताया जाता था। उनके लिए मेरी अब कोई एहमियत नहीं थी ।
मेरे ज़्यादातर दोस्त सिंगल हैं, उनकी ख़ुद की चॉइस से । उन सबमें बस एक अमृता है, जिसने शादी के बाद हमारे बीच के मनमुटाव को लेकर मुझसे बात की। दरअसल वो बड़ी सारी बातें पचा नहीं पा रही थी । पहली तो ये, कि मेरी छोटी सी शादी और उसकी साज सज्जा से वो नाराज़ थी । क्यों? ये उसने नहीं बताया । "अब तुम ये मत सोचो कि इसके पीछे मेरी कोई जलन या अकेलेपन वाली फीलिंग है ।" दूसरा ये, कि बाकी दोस्त मुझसे इसलिए खफ़ा थे क्योंकि मैंने सिंगल औरत की ज़िंदगी न चुन के, शादी को चुना । ये सब सुनकर पहले तो मुझे हैरानी हुई, फिर गुस्सा आया । मैंने कब कहा कि वो मुझसे जलती थी या अकेलेपन की मारी थी । उसने मेरे बारे में एक राय बना ली थी । और मुझे उसकी इस सोच पर गुस्सा आया ।
अमृता और मेरी दोस्ती में अब वो करीबी तो नहीं, लेकिन कभी-कभार बात हो जाया करती है । कुछ हद तक हम एक-दूसरे को पसंद भी करते हैं । अभी कुछ साल पहले ही उसे प्यार हुआ है । और जैसा कि हम आमतौर पर मूवी में देखते हैं, वो खुश रहने लगी है । आपको यक़ीन नहीं होगा, अपने पार्टनर के साथ खुले आम इश्क़ भी करती फ़िरती है (यानी खुले आम झप्पियाँ, उस टाइप का व्यवहार)! पब्लिक में उसका इस तरह अपना प्यार ज़ाहिर करना, मुझे थोड़ा खटकता है । मुझे उसपे हंसी भी आती है। मन तो बहुत करता है, कि मेरी शादी के कुछ सालों तक जो उसने मुंह बना रखा था, उसको लेकर उसे चिढाऊँ । पर डरती हूँ कि वो बुरा ना मान जाए।या अपने को लगी चोट पे फोकस न करके, अगर मैं उसके बारे में सोचूँ, कि सिंगल होने या कपल में होने के कौन से पहलू उसको परेशान करते होंगे। शायद उसने सोचा कि शादी करके, मैं यूं ही उससे अलग हो जाऊंगी, सो वो पहले ही अलग हो ली। क्या पता ।
शायद इस दुनिया में, जब तुम्हारे दोस्त की शादी हो जाए, तो इस बात को कैसे पचाया जाए, ये नहीं सिखाया जाता है । अनु ने मुझे एक अज़ीब दास्तान सुनाई। उसका एक एक्स बॉयफ्रेंड था, जिसके साथ बाद में वो सिर्फ एक दोस्त थी । और फिर कुछ यूं हुआ कि ना जाने कब, वो उस एक्स बॉयफ्रेंड की नई गर्लफ्रैंड की भी दोस्त बन गयी । उन दोनों का ब्रेकअप हो गया। फिर एक्स बॉयफ्रेंड ने किसी और से शादी कर ली। उसने अनु को फ़ोन भी किया । सॉरी बोलकर बताया कि उसकी पत्नी ने उसे अनु या उस दूसरी लड़की, दोनों से बात करने से मना किया था । अनु हैरान थी । इतनी हैरान कि उसे कुछ कह भी नहीं पाई । वादे मुताबिक़ उस लड़के ने तब तक अनु या दूसरी लड़की से बात नहीं की, जब तक अपनी पत्नी से अलग नहीं हुआ । और फिर- फिर उसका फोन आया। बोला कि पत्नी की बात मानकर, उसने गलती की और अब वापस उसका दोस्त बनना चाहता था । अब हमारी अनु तो दया की मूर्ति थी। उसने उसे माफ कर दिया। कुछ साल बीते और उस लड़के ने फिर शादी की । और आप मानो या ना मानो, फिर से एक कॉल आया । "सॉरी, मेरी वाइफ नहीं चाहती कि...।" आख़िरकार अनु को होश आया और उसने उस लड़के को हमेशा के लिए अलविदा कर दिया। अनु की मां ने भी राहत की सांस ली । एक बेकार लड़के से उसकी बेटी का पीछा जो छूट गया था ।
जब मैंने अपनी दूसरी दोस्त, मोनी, को ये कहानी सुनाई, तो वो बहुत हंसी । मैं जानती थी कि उसके साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था, फिर भी वो हंस रही थी। कई बार उसने अपने उन क़रीबी फ़्रेंडस (लड़कों ) को खोया है, तब, जब उनके लम्बे चलने वाले रोमांटिक रिश्ते कायम हो गए । एक ऐसा दोस्त तो रातों-रात गायब हो गया। ऐसे दूसरे, गहरे दोस्ती के रिश्ते और अज़ीब तरीके से, धीरे-धीरे खत्म हुए । 'अचानक उनको ऐसी खामियां नज़र आने लगती थी, जो पहले कभी ना दिखी हो । या शायद दिखी भी, तो उन्होंने मुझे बताया ना हो। कुछ भी कर के, उनको मुझे अपनी ज़िंदगी से निकालने का बहाना मिल ही जाता है'। "मैं पहले से एक रिश्ते में हूं, तो तुम मुझसे कैसे कुछ मांग सकती हो ।" जैसे कि उनका रोमांटिक रिश्ता, मुझको अपनी ज़िंदगी से निकालने का बहाना बन जाता है । जब वो ये कहते हैं, तो मुझे लगता है कि उनका मतलब ये होता है - "तुम्हारे साथ कुछ प्रॉब्लम है । और मुझे तुम्हारा दोस्त बनकर रहने में अब कोई दिलचस्पी नहीं ।" मानो मैं, एक बेवकूफ़ लड़की, उस जगह को तब तक भर रही थी, जब तक कि उनको कोई कूल पार्टनर नहीं मिल जाता ।
मोनी ने जाने पहचाने से ऐसे और भी वाक़ये बताए, जिसमें किसी के साथ रिलेशनशिप में आते ही दोस्तों के तेवर बदल गए । "अपने बेस्ट फ्रेंड से आप मिल तो सकोगे, लेकिन उसका लवर/पार्टनर हमेशा साथ होगा । तो आप जो भी बात करोगे, उसमें उसे भी शामिल करना पड़ेगा ।" मोनी को याद है, एक बार उसके बर्थडे पर उसका एक करीबी दोस्त आया जिसकी नई-नई शादी हुई थी । उसके पुराने सारे के सारे तोहफ़े बिल्कुल बेकार होते थे । लेकिन इसबार अचानक ही उसने एकदम सुंदर, प्यारा तोहफ़ा दिया । फिर पता चला कि अब से तोहफ़े खरीदने की ज़िम्मेदारी उसकी बीवी ने ले ली है । ठीक वैसे ही जैसे उसका घर सजाने-संवारने की। बस उस एक पल में मोनी को एहसास ही गया, कि वो ये दोस्ती भी खो चुकी थी ।
जब मैंने मोनी को अनु के एक्स की उसकी लाइफ में एंट्री-एग्जिट वाली कहानी बताई, वो बहुत हंसी । फिर नई-नई प्यार में पड़ी अमृता के बारे में सुनकर थोड़ा और हंसी। पर जब मैंने उसे बताया कैसे शादी के टाइम अमृता ने अज़ीब बर्ताव किया था, तो थोड़ा हिचकिचाते हुए बोली, 'हर बात ज़ोर से कहना मुश्किल है ।' पर ज़ोर से कहने वाली ऐसी कौन सी बात थी, मैंने पूछा । "अरे," उसने कहा, "अमृता तुम्हारी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा थी । उसे उस एहमियत की आदत हो चुकी थी । तुमने तो उसे यहां तक कह दिया था, कि उसके आने से तुम्हारी लाइफ मे बहन की कमी पूरी हो गई। ऐसे में जब तुम्हारी शादी की बात आई होगी, तो वो उसे लगा होगा कि शायद उसके बाद उसकी एहमियत पहले जैसी ना रहे । अब ये बात वो खुलकर तो नहीं कह सकती थी ना । अगर कहती तो सब कहते कि बिना बात के चिड़चिड़ा रही है। वैसे भी शादी के टाइम, कपल की खुशी के आगे सबका गम फ़ीका पड़ जाता है। वो तुमसे कुछ कहती, तो तुम्हें लगता कि वो तुमपर कोई इलज़ाम लगा रही है ।" फिर मोनी वापस अपनी कहानियों की ओर मुड़ी- “सच कहूँ, पहले मुझे किसी की शादी का सुनकर, ऐसा कुछ लगता नहीं था। लेकिन अब इतने सारे दोस्तों को रिलेशनशिप में पड़ते ही ग़ायब होते देखा है, कि क्या बताऊँ । वैसे, जब तक आप अपने किसी दोस्त के साथ खुद ऐसा कुछ फील नहीं करेंगे, तब तक इसको समझना मुश्किल है । ऐसे में सामने वाले का ज़ोर से चिल्लाकर इक़रार करना, और भी मुश्किल है ।" कहकर मोनी मुझे देखने लगी ।
उसकी ये बातें सुनकर, मानो पुराने दिनों में से एक वाक़या वापस जिंदा खड़ा हो गया।
जब मैं 9 साल की थी, तब से मेरी स्कूल की फ्रेंड टीना और मैं, अक्सर एक-दूसरे के घर आया-जाया करते थे। ऐसे अतरंगे त्यौहार जिनमें सिर्फ फैमिली वाले शामिल होते थे, वहां भी हम एक दूसरे की फॅमिली के साथ शामिल होते थे । हम दोनों ही, एक दूसरे से प्यार करते थे । जब मैं पहली बार कॉलेज की एक पार्टी में जाने वाली थी, जो कि दरअसल मेरी लाइफ की पहली पार्टी थी, कपड़े चुनने में ,उसी ने मदद की । यहां तक, कि उसने मेरे अंडरआर्म्स (कांख) को भी शेव किया । मुझे तो वो सब आता भी नहीं था। मैं उसे तब भी अच्छे से समझ पाती थी, जब वो खुद को बदसूरत लेकिन अक्लमंद समझती थी । और उसके बाद भी, जब वो खुद को बहुत सुंदर, और बेहद समझदार मानने लगी थी ।
टीना 23 साल की थी, जब उसे प्यार हुआ। फिर तीन साल बाद, उस ने उस लड़के से शादी कर ली । अब देखती हूँ तो लगता है, जैसे उसने सब प्लान किया हुआ था। नौकरी, पहुंच से महंगे गहने, बालों की सुंदरता पर ढेर सारा खर्च, पति और अच्छा घर । मैंने अपनी लाइफ के लिए ऐसा कुछ प्लान नहीं किया था । पर पूरे उत्साह के साथ उसकी शादी में गई । शादी के एक या दो हफ्ते बाद, जब वो अपना कुछ सामान समेटने घर वापस आई, तो मुझे फोन किया। मैं मिलने पहुंच गई । हमने साथ लंच किया। फिर उसके कमरे में बैठ कपड़े तह करने लगे । तभी उसका पति अंदर आया। मैं उसे ज्यादा जानती नहीं थी, पर मुझे वो पसन्द था । नेक दिल लगता था। उसने अंदर आकर मज़ाकिया तरीके के इशारे से बताया, कि लंच के बाद उसे बहुत नींद आ रही थी। मैं मुस्कुराई । पर वो उम्मीद भरी नज़रों से मुझे देखता रहा । पूरे एक मिनट बाद मुझे समझ में आया, कि उसे वो बिस्तर खाली चाहिए था । अब उसपे जनाब का पहला हक़ बनता था। लेकिन हेलो, जब सुबह 6 बजे हम पास वाले योगा टीचर को बोलते सुनते थे कि 'अपने कूल्हे (buttocks) उठाओ', तब क्या तुम भी इस बिस्तर पर हमारे साथ हंसते-हंसते लोट-पोट हुआ करते थे? और कॉलेज की पहली पार्टी के बाद जब मैं टीना को बता रही थी कि कैसे बिना उल्टी की फीलिंग के, मैं अजनबियों से बात करना सीख गई थी, तो क्या आप भी यहीं लेटे थे ।
मुझे ये नहीं समझ आ रहा था कि मैं क्यों कमरे से बाहर निकलूँ? वो कहीं और नहीं जा सकता था क्या! सोफे पे सो जाता। टीना और मैं आराम से कमरे में बात करते । एक मिनट के उस गुस्से में जाने कितने ख़्याल मन में आये । लेकिन फिर चुपचाप कमरे से बाहर निकल गयी । बाद में टीना दूसरी कंट्री चली गई और अब तो हमें बात किये सालों हो गए। मैंने सुना, उनका तलाक हो गया है । वैसे अब शायद ही कभी टीना के बारे में सोचती हूं । पर अचानक वो गुस्से वाला पल मानो आंखों के सामने आ गया।
मोनी ने मेरे सिर के अंदर हड़कंप मचा दी थी । टीना के पति ने मुझे बिस्तर से उतारकर गुस्सा दिलाया था । अमृता ने ये मानकर मुझे नाराज़ किया था कि मैं उसे बिस्तर से गिरा दूंगी । फिर ये भी ख्याल आता है कि वो कौन से तरीके रहे होंगे, जिनसे मैंने अपनी शादी के समय अपने दोस्तों को बिस्तर से धक्का दे दिया होगा? मुझे नहीं पता । लेकिन कुछ तो ज़रूर हुआ होगा। मुझे नहीं लगता कि मैंने अपने पति को अपने दोस्तों से ज़्यादा अहमियत दी । लेकिन कुछ किया होगा, जिससे वो लोग नाराज़ हुए। मैंने तो ये भी नहीं चाहा कि मेरा पति मेरे सारे दोस्तों के साथ दोस्ती कर ले । ये तो और अजीबोग़रीब बात होती । और मुझे तो इस चीज़ से खास नफ़रत है । शायद मेरे दोस्तों को भी मेरा पति या मेरा नया अवतार पसंद नहीं आता होगा ।
उस समय मुझे टीना का पति अच्छा ही लगता था । और अपनी दोस्त का पति पसंद आना तब भी आम बात नहीं थी, और अब भी आम नहीं है। ज्यादातर मुझे ये लगता है, कि मेरे दोस्तों के पति और बॉयफ्रेंड उनके लायक नहीं हैं । बल्कि कई बार मुझे उनसे खतरनाक अंदेशे मिलते हैं । जैसे कि "भले ही तुम्हारी दोस्त तुमको संज़ीदगी से लेती है, मैं नहीं लेने वाला । देखना मैं कैसे तुमको बिल्कुल भाव नहीं दूंगा ।"
इस साल, जब मैंने 'ग्रेज़ एनाटॉमी' नामक लोकप्रिय वेब सीरीज़ देखना शुरू किया, तो उसकी एक बात मुझे बहुत पसंद आई । मेरेडिथ ग्रे, जो मेन हीरोइन थी, और उसकी सबसे अच्छी दोस्त, क्रिस्टीना यंग, जिस तरह एक दूसरे के बिस्तर पर अधिकार जमाते थे! वे एक-दूसरे के बिस्तर पर चढ़ जाते थे और ज़रूरी हो, तो मर्दों को रूम से निकाल बाहर करते थे । एक एपिसोड में, ग्रे का बॉयफ्रेंड उसके बेडरूम में आता है और उन दोनों से मुस्कुराते हुए कहता है कि वो अपनी पैंट उतारने वाला है । थोड़ा छेड़-छाड़ का माहौल बन जाता है । क्रिस्टीना ये कहते हुए रूम से निकल जाती है, कि उसे ये सब देखने में कोई दिलचस्पी नहीं। पर जो बात मुझे अच्छी लगी, वो ये, कि मेरेडिथ भी हंसते हुए क्रिस्टीना के पीछे-पीछे रूम से निकल जाती है । और जाते-जाते डेरेक से कहती है, कि वो वापस आएगी और फिर उसके साथ टाइम बिताएगी । यानी वो चाहे तो अकेले में अपनी पैंट उतार सकता था क्योंकि वो अपनी दोस्त के साथ बाहर निकलकर बातचीत करने वाली थी । मेरेडिथ ने ऐसे टाइम में भी क्रिस्टीना को भाव दिया । और मेरेडिथ को क्रिस्टीना और डेरेक के बीच दोस्ती क़ायम करने की ज़रूरत भी महसूस नहीं हुई ।
अनु को तो अपनी फीमेल फ्रेंडस के हस्बैंड से कुछ ज़्यादा ही नफ़रत है। उनको देखकर मानो उसके कूल्हों पर फोड़े उग जाते हैं ! इसी वज़ह से वह अपनी सबसे पुरानी दोस्त सारा की कोशिशों को सराहती है। सारा और वो एक-दूसरे को 40 साल से जानते हैं । जब भी सारा उससे मिलती है, तो सब कुछ ऐसे सेट कर देती है, कि सारा के पति के साथ कुछ भी कनेक्शन बनाने की कतई ज़रुरत नहीं पड़ती। कुछ हद तक मेरेडिथ और क्रिस्टीना की तरह। सालों से ये सिस्टम, अनु और सारा के लिए काम कर रहा है।
लेकिन पिछले साल जब अनु काफी सीरियस तरीके से बीमार पड़ी, तो उसने अपने स्वभाव को नापा-तौला। और उसके बाद एक बदलाव जो वो खुद में लाई, वो था सारा के पति को, कुछ छोटी-छोटी कोशिशों से अपनाना।! "मैं उसे अब बर्थडे मैसेज भी भेजती हूँ।'
भगवान का शुक्र है कि वो उसकी भक्त नहीं बन बैठी है । जब मैंने अपनी करीबी दोस्त के बेकार पति ('निकम्मे इंसान') की बात उठायी, तो शिकायतों का सिलसिला देर तक चला । लेकिन फिर उसने मुझे अपने उस अहसास के बारे में बताया, जिससे वो सारा के पति का सामना अब आसानी से कर पा रही थी। ऐसा क्या हो गया- मैंने पूछा? "देखो, जैसे मैं बदल गई हूँ, वो भी तो बदल गई है । वो वैसी नहीं है जैसी बचपन में थी । और शादी के बाद भी चीज़ें बदली हैं । लेकिन वो अब भी मेरी दोस्त है ।"
"तो तुम उसके पति को बर्थडे मैसेज भेजती हो?" मैंने पूछा ।
"हाँ, मैं उसे बर्थडे मैसेज भेजती हूं । उसमें कोई मेहनत थोड़े ही लगती है। मुझे नहीं लगता कि उसके लिए भी ये कोई मायने रखता है, लेकिन मेरी दोस्त के लिए तो रखता है । वो इस बात से बहुत खुश है। और मेरे लिए यही सबसे ज़रूरी है ।"
उसकी बात से मुझे याद आया, कि हालांकि मेरी शादी के बाद मैंने बहुत सारे दोस्त खो दिए और अमृता ने मुझे बहुत मुश्किलें दीं, फिर भी वो मेरी दोस्त है । और हमें आज भी एक-दूसरे का बर्थडे याद रहता है ।
अश्विनी डी. गपशप और गॉसिप पर, पी.एच.डी करना चाहती हैं।
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क्यों शादी के बाद दोस्ती निभाए रखना बन जाता है मुश्किल?
लेखन: अश्विनी डी
चित्र: योगी चन्द्रसेखरन
अनुवादक: नेहा
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