कभी कभी हमें पता होता है कि अगर हमने फलां फैसला लिया, तो हमको सेक्स का नेगेटिव चेहरा देखना पड़ेगा | हम फिर भी नहीं रुकते, अपने को जोखिम में डालते हैं l हम ऐसा क्यों करते हैं ? शायद इसलिए ,क्यूंकि हमारे अंदर लाचारी, बेपनाही की बड़ी सारी फीलिंग्स हैं, और ये हमारे फैसलों पे असर करती हैं | केवल जानकारी होने से, या स्लोगन पढ़ने से, हम अपने सेक्सुअल फैसले नहीं बदल पाते - हमें अपने अंदर की फीलिंग्स, अपनी घबराहट, अपने हालात, सबपे ध्यान देना पड़ता है, उनका सामना करना पड़ता है | अगर इन सबको दबा के रखा, इनपे ध्यान नहीं दिया, तो कभी क़ानून, कभी सामाजिक बहिष्कार, हमारी अपनी सीमित सोच, या हमारा किसी बात पर यकीन न होना, सब एक दूसरे पे असर कर जाते हैं | नतीजा - ऐसा फैसला, जिससे हमें बाद में बुरा लगता है, चोट पहुँचती है | हमारा खुलापन इस तरह नेगेटिव रूप ले लेता है |
लेकिन अगर हम अपनी अंदर की फीलिंग्स को प्यार और समझ से देखें, तो फिर हमें बड़े बड़े नारों या जोशीले शब्दों की ज़रुरत नहीं | क्या पता, एक दूसरे के साथ अपनी फीलिंग्स को खुल के शेयर करने से, हम ऐसे फैसले ले पाएं, जो अपने लिए और दूसरों के लिए भी, बेहतर हों | फिर तो आपस में दिल खोल पाना, एक पोजिटिव लहर बनके, हमारी ज़िंदगी में मिठास लाएगा |
खुलेपन की खुशी, बेपनाही की चोट और- सेक्स
Why do we make sexual choices that make us vulnerable? Can one #VulnerABILITY lead to another?
चित्रण: देबस्मिता दास
अनुवाद: प्राचीर
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