वो बंद खिड़की, वो यादों की घुटन
बीते हुए सदमे से भरा कमरा और उसकी याद से सुलह करने की चाह |
लेख : शेरोन वर्गीज
अनुवाद : नेहा
चित्र : ज्योत्स्ना रमेश
TW: यौन उत्पीड़न
एक साल पहले, मार्च की गर्मी वाली रात, OYO के एक कमरे में मैंने अपना बदन किसी को सौंप दिया। मैंने इतनी ज़्यादा पी रखी थी, कि ना जाने उस सफेद दीवार वाले रूम तक पहुँचते पहुँचते, कितनी बार ज़मीन पे लोटी। बहुत ही छोटा कमरा था । बस एक खिड़की थी, वो भी बंद। उसके अंदर, मेरी सांसें जैसे घुटकर रह गयी थीं । मेरे ऊपर चढ़े शरीर को मैंने घुटन भरी एक ‘हाँ’ कही , लेकिन वो एक तरह से मेरी 'ना' थी। मानो मेरा मन ये भी चाह रहा था, कि मैं उस समय उस कमरे से निकल, किसी और कमरे में चली जाऊं।
मैं अगली सुबह जैसे ही उठी, उस कमरे से भाग निकली। अगर मैं रुकती तो शायद इस सच का सामना नहीं कर पाती कि किसी ने अपनी समलैंगिकता टेस्ट करने के लिए मेरा इस्तेमाल किया था। मैं उस गुस्से को जकड़ के रखना चाहती थी। क्योंकि मुझे पता था कि अगर गुस्सा गायब हुआ तो मुझे पूरे होशो हवाश में, अपने दर्द से निपटना पड़ेगा। इसलिए मैंने अपने आप को भरोसा दिलाया, कि बेटा, तुम ये सब भूल जाओगी और आगे बढ़ जाओगी। तो मैंने उस कमरे और उसकी बंद खिड़की की यादों को वहीं छोड़ दिया। और आगे बढ़ चली।
लेकिन सच तो ये है कि तब से मेरा बदन कभी उत्तेजित नहीं हो पाया है। एक साल तक तो मैंने कई बहाने बनाए। खुद को समझाया कि शायद मैं गलत इंसान के साथ हूँ, इसलिए उत्तेजित नहीं हो पा रही। या मुझमें सेक्स ड्राइव ही नहीं है। या ये कि मेरा पार्टनर पूरे तरीके से मुझे उत्तेजित करने की कोशिश ही नहीं करता है। मुझे लगा कि मेरा बदन एक तरह से टूट गया है, और मुझे बस उसको ठीक करना है। फिक्स करना है। लेकिन अंदर ही अंदर मुझे पता था कि ये सब उस कमरे के कारण था। जब भी मैं किसी के साथ बिस्तर में होती, मैं बस सोच में डूबी, आहें भरकर, पड़ी रहती । मैं उन चीजों के बारे में सोचने की कोशिश करती हूँ जो मुझे पहले उत्तेजित किया करती थीं। लेकिन उससे भी कुछ फायदा नहीं होता। तो बस मैंने मुस्कुराने का, तेज़ साँसें भरने का नाटक करना सीख लिया । लोगों को ये यकीन दिलाना बहुत आसान था, कि मैं उत्तेजित हो चुकी हूं ।
लंबे समय तक तो उस रात के लिए मैं खुद को ही गुनहगार मानती रही। खुद को यकीन दिलाती रही कि मैंने हामी भरी थी, इसलिए जो हुआ, मेरी मर्ज़ी से हुआ था। और जिसने ये किया, वो कोई और नहीं, बल्कि एक दोस्त थी। और भी कई सवाल खुद से किये और खुद जवाब भी दिए।
एक साल बाद एक करीबी दोस्त ने पास बिठाकर पूछ ही लिया, "अगर तुम्हें उस रात पता होता कि आगे क्या होने वाला है, तो क्या तुम किसी दूसरे कमरे में जाना चाहती?"
मेरा जवाब था "हाँ"। और ये कहते ही, जैसे काफी चीजें साफ दिखने लगीं । हाँ, मैं उस रात दुनिया में और कहीं भी चली जाती, पर उस कमरे में नहीं। मेरे बदन ने मुझे धोखा दिया। मैं इतने नशे में थी कि बस सो जाना चाहती थी। और सुबह एक नॉर्मल हैंगओवर, जो एक कॉलेज स्टूडेंट के ज्यादा पीने पर अक्सर होता है, के साथ उठना चाहती थी । उस रात जो हुआ, मैंने ही अपने साथ होने दिया।
समय बीता। मैंने ग्रेजुएशन किया। टाइम के साथ सब भूल गयी। इस दौरान मैंने उस हादसे को कभी गंभीरता से नहीं लिया। खुद को किताबों में दफन कर लिया। मैंने शहर बदल लिया, और नए शहर में बीते कल की याद दिलाने वाला कुछ भी नहीं था। मेरे दिमाग ने सब भूलकर आगे बढ़ने की कोशिश की। उसने उस याद को जैसे एक कागज के टुकड़े में मरोड़कर दिमाग की किसी गहरी खाई में डाल दिया।
वो लड़की और मैं, हम अब भी दोस्त हैं। हमने उस हादसे के काफी टाइम बाद उस रात के बारे में बात भी की। दोनों ने एक दूसरे से माफी मांगी। उस हादसे में शर्म और घृणा थी, ऐसा उसने भी माना। मैंने उसे माफ कर दिया क्योंकि माफ़ करना ज़्यादा आसान लगा। लेकिन मेरा बदन आज भी कुछ भूल नहीं पाया है। इसकी अपनी ही यादों की दुनिया है। इसे किसी का छूना, किसी के हाथों का दबाव याद है। मैंने उन यादों को भुलाने के लिए जो जो किया, वो सब भी निशान बन कर, इस बदन पर रह गए । हाँ, मैंने अपने आप को उन चीजों को याद करने से रोक तो लिया है। लेकिन जब भी किसी के साथ बिस्तर में जाती हूँ, वो यादें दिमाग की खाई से निकलकर सामने आ जाती हैं। और बस, फिर मेरा बदन कुछ भी जानना समझना बंद कर देता है। वो गिर जाता है। बेबस सा पड़ा रहता है। गहरी सांसें भरने लगता है।
ऐसे में मेरा बदन जैसे मेरे दिमाग से कटकर अलग हो जाता है। मेरा दिमाग फिर से उसे उत्तेजित करने की, जगाने की, बहुत कोशिश करता है। एक बार तो मैंने अपने पार्टनर से यहां तक कह दिया कि वो मुझसे और मजबूत इमोशनल कनेक्शन बनाए। ताकि मैं ठीक हो सकूं, बेहतर तरीके से चीज़ें महसूस कर सकूं। मैंने उसे कभी भी उस कमरे के बारे में नहीं बताया। शायद इसलिए क्योंकि मैं खुद ये मानने के लिए तैयार नहीं थी कि मेरे बदन के सुन्न पड़ जाने का कारण वो रूम था। पर उसने तो साफ कह दिया कि मैं उससे बहुत ज्यादा की उम्मीद कर रही हूँ। उसने ब्रेकअप ही कर लिया - उसे लगा कि मैं अपने अतीत से बाहर नहीं निकल पा रही थी।
मैं भावनाओं के भंवर में ऐसी फंसी थी कि चाहकर भी बाहर नहीं आ पा रही थी। उसने कहा कि ऐसा लगता है जैसे मैं एक मरा हुआ बदन हूँ। और कि मैं अपने पार्टनर को कस के जकड कर अपनी भटकी हुई नाव का लंगर बनाना चाहती हूँ l क्योंकि बाकी सारी दिशाएं मुझे पुरानी बातों की याद दिलाती हैं।
काश मेरा बदन कुछ चीजें भूल पाता। मुझे आगे बढ़ाने के लिए एक पत्थर फेंकता, और मैं उसके पीछे दौड़ पड़ती और इस तरह इस सब से आगे निकल जाती। रास्ते में अपने पार्टनर का हाथ पकड़, उसे भी फिनिश लाइन, जहां एक सुखद अंत हो, दिखा पाती। पर ये सब तो तब हो पाता, जब वो मुझे और समय देता। तब मैं उस कमरे में वापस जाती और उस बंद खिड़की को खोल, अपनी साँसें बाहर छोड़ती। और उस याद को वहीं छोड़ आती, जैसे कभी कुछ हुआ ही ना हो।
मैं लगभग एक साल से अपने इस सुन्न बदन के साथ जी रही हूँ। टूटे हुए दिल का गम भुलाने और कुछ आराम पाने के लिए कई लोगों के साथ बिस्तर में गई हूं। अपने बदन को बार-बार चेक किया है, कि शायद अब वो जग गया हो। लेकिन ऐसा नहीं हुआ । एक बार सेक्स के दौरान ही मेरे पार्टनर ने, जो एक जवान लड़का था, रुककर पूछा, "तुम्हें कुछ महसूस नहीं हो रहा है, है ना"। आज तक किसी ने मुझसे ये सवाल कभी नहीं पूछा था । मैंने तो अपने मन में उठ रहे सवालों पर ताला लगा रखा था। लेकिन उस लड़के की बात सुनकर, जैसे वो सब खुलकर बाहर आने लगे।
एक समय ऐसा था जब मैं अपने अंदर उठ रहे सवालों को माप समझ कर उनका सामना कर पाती थी। लेकिन इस दौरान मैंने खुद को इतना तड़पाया है, अपने आप से इतने सवाल किये हैं, कि इन सवालों ने मेरे अंदर एक नया रूप ले लिया है। वो और बढ़ गए हैं, घने और गहरे हो गए हैं। मेरे दिल और दिमाग पे और भारी पड़ रहे हैं। जैसे सब पककर तैयार हैं, और मुझसे पूछ रहे हैं कि अब आगे क्या करना है।
मुझे गुस्सा आने लगा कि आखिर उस लड़के का ये एक सवाल, मुझे इतना कमज़ोर कैसे कर सकता है। मैं इन सवालों को अब अनदेखा क्यों नहीं कर पा रही थी ? उसके सवाल ने जैसे गड़े मुर्दे उखाड़ दिए थे। मुझे मेरे दर्द से वापस मिला दिया था।
तो मैंने उस लड़के को सफेद दीवार वाले गंदे OYO रूम की कहानी बताई। और इस पूरे दौरान, उसका हाथ कसकर पकड़ के रखा, ठीक उस कमरे की कसकर बंद पड़ी खिड़की की तरह।
मेरा बदन आज भी किसी के छूने पर सिहर उठता है। कभी-कभी मैं सामने वाले से उस एहसास जो छुपाकर, उस पल में बहती चली जाती हूँ। लेकिन हां, बदन की उत्तेजना क्या है, मुझे आज भी नहीं पता है
है। मुझे लगता है कि मेरा बदन मुझे दोबारा उस तरह इस्तेमाल होने से बचाना चाहता है। बदन का सुन्न पड़ना, जैसे उसका सुरक्षा कवच है। हालांकि मेरे दिमाग ने, जो कुछ भी हुआ उसके साथ समझौता कर लिया है। अब मेरे बदन को इससे उभरने की ज़रूरत है। काश दोनों एक राह पे चल पाते। काश दोनों एक दूसरे से हाथ मिलाकर मुझे उन्माद (orgasm) तक ले जाते। संभोग करते। पता नहीं, ऐसा होने में कितना वक़्त लगेगा?
काश, मैं उस रात में वापस जा पाती। काश सुबह उठते ही कमरे से भाग ना गई होती। वहीं बैठकर उस लड़की के उठने का इंतज़ार करती। उसे बताती कि जब वो आराम से सो रही थी तो कैसे मैंने आंसुओं में रात बिताई। और ये भी कि जो हुआ, मैं वैसा बिल्कुल नहीं चाहती थी और खुलकर "ना" नहीं कह पाई थी। उसे बताती कि उसे माफ करने में मुझे काफी वक्त लगेगा। और शायद उससे भी ज्यादा वक़्त ये सब भुलाकर आगे बढ़ने में। और इस दौरान उस खिड़की को भी खोल देती, ताकि घुटन ना महसूस हो।
शेरोन वर्गीज 22 साल की एक क्वीयर महिला हैं। वो हैदराबाद यूनिवर्सिटी में कम्पेरेटिव लिटरेचर (Comparative Literature) की पढ़ाई कर रही हैं। अपने प्रोफेसरों से सिगरेट चुराती हैं, और कभी-कभी तो बीड़ी भी जला लेती हैं।
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