जाति विरोधी प्यार प्रोजेक्ट की ज्योत्सना सिद्धार्थ ने एक इंटरव्यू दिया था l ये आर्टिकल वहीं से लिया गया है , ये उसका सम्पादित रूप है|
मैं एक पढ़ाकू बच्ची थी| हमेशा स्कूल में टॉप किया और स्टेट बोर्ड में मेरिट रैंक भी आई थी | इसलिए अखबारों में मेरा नाम भी आया था | मैं महाराष्ट्र के एक छोटे से शहर में बड़ी हुई | मैं बौद्ध धर्म मानने वाले, अनुसूचित जाति समुदाय से थी| लोग मेरे माता पिता को उनके नाम से जानते थे| पर जब मैं ग्यारवीं में थी, मेरे पिता चल बसे| यह हमारे लिए बहुत बड़ा झटका था | वो सिर्फ ४१ वर्ष के थे| उनके गुजरने पे, सब कुछ बदल गया!
मेरे रिश्तेदारों ने हमारा साथ छोड़ दिया| मेरी माँ ने घर से बाहर निकलना और दुनिया का सामना करना बंद कर दिया| उस वक्त हमें पता नहीं था कि माँ को जो हो रहा था, उसे डिप्रेशन कहते हैं| मुझे यूँ लगा जैसे मैंने एक ही साथ माँ और पिता, दोनों को खो दिया था| तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ी होने के नाते, मैंने अपने परिवार के लिए, पिता-जैसे होने की ज़िम्मेदारी उठा ली| मुझे अपने परिवार से जुड़े सभी बड़े फैसले लेने पड़े | और मेरे पास कोई नहीं था, जिससे मैं अपनी लाइफ के फैसलों के बारे में बात कर सकूँ, कुछ शेयर कर सकूं| धीरे-धीरे मुझे यूँ लगने लगा कि दुनिया में मेरे लिए, खुद के सिवा और कोई नहीं है|
इंजीनियरिंग करने के लिए मैं घर से दूर एक हॉस्टल में रहने लगी| वहाँ मेरी मुलाक़ात और लड़कियों से हुई | वो अलग अलग राज्यों से थीं | उनके घर की आर्थिक परिस्तिथियाँ अलग थीं| उन्हें देख कर मुझे लगता था कि उनके और मेरे जीने का तरीका कितना अलग है | वो कितने मज़े कर रही हैं| वो कॉलेज लाइफ एन्जॉय करना चाहती हैं | और इधर मैं, एक ज़िम्मेदार संतान, पढ़ाई पे फोकस कर रही हूँ| जल्द ही मेरे अन्दर की इन दोनों आवाजों के बीच झगड़ा चालू हो गया | एक आवाज़ ऐसी भी थी जो कहती थी, कि कभी कभी मस्ती करना ठीक है| वहीँ दूसरी खडूस आवाज़, मुझे लगातार पढ़ते रहने को कहती - क्योंकि मुझे जीवन में और भी बहुत इम्पोर्टेन्ट काम करने थे | आज जब मैं पलट कर खुद को देखती हूँ तो एक बात समझ आती है| मैंने उस सत्रह साल की लड़की (यानि अपने अपने आप) से बहुत ज़्यादा ही उम्मीद कर रखी थी | मेरी क्लास की हर लड़की का बॉयफ्रेंड भी था | पर मेरा मानना था कि बॉयफ्रेंड होना गलत बात होती है | मुझे लगता है कि इस ही दौरान मेरा मानसिक बीमारी से संघर्ष शुरू हुआ| ऐसे हालातों में जहाँ मुझे बार बार यही लगता रहता, कि मैं ज़िन्दगी में कितना कुछ कर ही नहीं पा रही हूँ |
लेकिन जब मैं दिल्ली जैसे बड़े शहर आई थी, मुझे लगा कि यह एक नयी शुरुआत है | मैंने सोचा कि यहाँ पर बॉयफ्रेंड होना, डेटिंग करना, चलेगा | जल्द ही मेरी दोस्ती, मेरे ही क्लास में साथ पढ़ने वाले, एक लड़के से हो गयी| और दो तीन महीने की दोस्ती के बाद ,हमनें डेटिंग शुरू कर दी| हमारे दोस्तों को भी हमारे बारे में पता था| हमारा रिलेशनशिप दस साल तक चला| उसके बाद उसने मुझसे ब्रेक अप कर लिया|
अपनी बीती ज़िन्दगी के कारण मैं बहुत अकेला महसूस करती थी, शायद इसलिए वो मेरा सपोर्ट सिस्टम बन गया था| मैंने इस बात की गाँठ सी बाँध ली थी कि वो मुझे कभी धोखा नहीं देगा, ना ही छोड़ के जाएगा| हमारे बीच सब कुछ अच्छा था|
ग्रेजुएशन के बाद, हम दोनों को दूसरे शहरों में नौकरी मिली- मुझे आई.टी. (IT) में जॉब मिला| और हमारा रिश्ता लॉन्ग डिस्टेंस ( long distance) वाला बन गया | लेकिन तब तक, हम लोग का साथ कुछ साल पुराना हो चूका था, और नेचुरल है कि मैंने उससे हमारी शादी के बारे में पूछना शुरू कर दिया था| मैं जब भी इसके बारे में उससे पूछती, वो अनसुनी कर देता था या फिर घुमा फिरा कर जवाब देता|
जब हम पहली बार मिले थे तो उसने एक बार मुझसे कहा था, “मैं बहुत ही आज्ञाकारी हूँ और अपने माता-पिता के इच्छा के विरुद्ध नहीं जाऊंगा, वगैरह, वगैरह|” जब हमने डेट करना शुरू किया ,तब मुझे पता नहीं था कि वो ब्राह्मण है | और मुझे नहीं पता था कि वो मेरी कास्ट के बारे में जानता है या नहीं | लेकिन जब हम लोगों की पहचान एक दूसरे के सामने खुल कर आई, मुझे लगने लगा था कि इसका असर आगे हमारे रिश्ते पर पड़ेगा|
आज मैं अपने कास्ट के बारे में सामने से सब कुछ बता देती हूँ| पर उन दिनों, मेरे शहर में मेरी दलित पहचान को लेकर इतनी सारी नेगेटिव घटनायें हुई थीं | मैं अच्छे मार्क्स लाती थी तो लोग इसका कारण मेरा दलित होना बताते थे| अगर मैं कोई असाइनमेंट अच्छे से करती, तो मेरे सहपाठी बोलते: “अच्छा इसको स्कालरशिप मिला है, क्यूंकि इसका कास्ट है”- मतलब आरक्षण के कारण| इसलिए मैं अपनी जाति को छुपा कर ही रखती थी, पर मेरे सरनेम से पता चल ही जाता था| डेटिंग करने के कुछ समय बाद ही मुझे पता चल गया था कि वो ब्राह्ण है| पर मैंने जानबूझ कर उसको अपनी कास्ट के बारे में नहीं बताया था|
महाराष्ट्र में, दशहरा, धम्म परिवर्तन दिवस के रूप में मनाया जाता है| यानी वो दिवस, जब डॉक्टर अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाया था| उस दिन, जब हम मिले, तो उसने मुझसे कहा: “जय भीम|” मेरे दिमाग में तुरंत यह ख्याल आया कि “हे भगवान! इसे पता है|” पर हम दोनों ने इस बात पर कभी चर्चा नहीं की| पर दोनों इस बात को जानते थे| वो जानता था कि मैं बुद्धिस्ट हूँ और मैं जानती थी कि वो ब्राह्मण है|
जब मेरी माँ को इस रिश्ते के बारे में पता चला था तो वो काफी नाराज़ हुई थी| उन्होंने मुझे पर हाथ भी उठाया था | कह : “ मैंने तुमको इंजीनियरिंग कॉलेज पढ़ने भेजा था| इस उम्मीद में ,कि तुमको एक अच्छा जॉब मिलेगा| जिससे तुम परिवार का ख्याल रख सकोगी| पर देखो तुम क्या गुल खिला रही हो| वो ब्राह्मण है | वो पक्का तुम्हें छोड़ देगा|”
उसकी फैमिली को हमारे बारे में तब तक नहीं पता था| हमारे रिलेशनशिप के 6-7 साल हो गए थे और मेरे रिश्तेदार मेरी माँ के ऊपर मेरी शादी कराने का दवाब डालने लगे थे| तो मैंने उससे, उसके माता-पिता से बात करने के लिए कहा| उसके माता-पिता सबसे ज़्यादा गुस्सा, कास्ट को ही लेकर थे| मुझे अभी भी याद है उसके पिता ने क्या बोला था: “तुम कोई मराठा या ओ.बी.सी. से भी कर लेते तो चलता| लेकिन एस.सी. नहीं होनी चाहिए क्यूंकि वो लोग ब्राह्मण से नफरत करते हैं और वो ब्राह्मण को गाली देते हैं| हम समाज में किसी को मुंह नहीं दिखा सकेंगे|” यह सिलसिला छ: महीने तक चला| पहले तो मामला कास्ट के बारे में ही था| लेकिन जब मेरे बॉयफ्रेंड को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा, तो बात हम दोनों की अलग परवरिश पर आ गयी| फिर हमारे कल्चर और जाने क्या क्या पर| जब वो तब भी टस से मस नहीं हुआ तो उसके घरवालों ने कुण्डलियाँ मिलवाने को कहा|
अब हम लोग इन सब में विशवास नहीं करते| मेरी तो पत्रिका भी नहीं थी| एक दिन, ऐसे ही, उसने मेरे जन्म के समय के बारे में पुछा | मैंने अपनी माँ से पूछकर उसे बता दिया| मुझे इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि उसका इस्तेमाल कुण्डलियाँ मिलाने के लिए किया जाना था| फिर उन लोगों ने एक ज्योतिषी से मेरी कुंडली बनवाई| और मेरे बॉयफ्रेंड को उससे मिलाने ले गए| उससे ये भी कहा कि हम तुम्हें साफ़ साफ़ सब कुछ बता दे रहे हैं l कुछ दशा- दिशा वगैरह ना मिलने की बात थी- तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी, तुम्हारे माता-पिता की मृत्यु हो जायेगी, तुम्हारे जो बच्चे पैदा होंगे या जन्म से ही अपंग होंगे, या मरे हुए बच्चे पैदा होंगे|
उसने तब भी उन सब बातों पर ध्यान नहीं दिया| उन लोगों ने उसकी बाकी फैमिली को भी इसमें शामिल कर लिया था| उसकी आंटी, अंकल, मामा लोग उसे कॉल करते और बोलते: ऐसा कैसे कर सकते हो? खानदान का नाम मिट्टी में मिल जाएगा | तुमसे यह उम्मीद नहीं थी|
इन सब बातों से मैं काफी डिस्टर्ब हो गयी थी और दोबारा डिप्रेशन में चली गयी| तब तक मैंने माँ को भी मना लिया था, लेकिन मेरे सामने एक और दिक्कत खड़ी गयी थी| मैं सबसे बड़ी हूँ! और मैं अपने लिए आये सभी रिश्तों को ठुकरा रही थी |इसलिए मेरे रिश्तेदारों को लगने लगा था कि कुछ तो गड़बड़ है| मेरी माँ का धैर्य भी टूट रहा था| फिर मेरी छोटी बहन ने कहा कि वो अपनी शादी के लिए ज़िन्दगी भर (यानी तब तक, जब तक मेरी न हो जाए) नहीं इंतजार करेगी| तब मेरी माँ ने मुझे अल्टीमेटम दिया: या तो मैं शादी करूँ या फिर वो मुझसे पहले मेरी बहन की शादी करा देंगी| मैंने कहा ठीक है और उसकी शादी करा दी| लेकिन मेरे परिवार के बाकी लोगों के लिए यह चौंका देने वाली बात थी|
इस बीच मेरे बॉयफ्रेंड का बर्ताव भी बदलने लगा था| जैसे अलग अलग इशारों से वो मुझे बताने की कोशिश करने लगा कि अब वो मेरे साथ रिश्ता नहीं रखना चाहता है| मेरी माँ तुम्हारी माँ से मिलने को तैयार नहीं है | मेरे पिता बहुत बूढ़े हैं, मेरे माता-पिता बूढ़े हो रहे हैं, तो मैं उनका दिल कैसे तोड़ सकता हूँ? वो बस गोल गोल बातें बना रहा था| मैंने कई बार सोचा कि ब्रेक अप कर लूँ| फिर सोचा कि उसकी स्तिथि भी थोड़ी पेचीदा है| मैंने और इंतज़ार किया|
असल में, दस साल साथ होने के बाद उसके बिना मैं अपनी जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर पा रही थी | मुझे अपने पर गुस्सा आता था कि मैं उससे ब्रेक अप नहीं कर पा रही हूँ| मैं डिप्रेशन की दवाईयाँ ले रही थी| और एक दिन उसने आ कर मुझसे कहा, “मेरे ऑफिस की एक लड़की ने मुझे प्रोपोज़ किया और मैंने हाँ बोल दिया|”
मतलब, ऐसा कैसे मुमकिन है! असल में उसका, उसके ऑफिस में काम करने वाली एक शादी शुदा महिला के साथ, अफेयर चल रहा था| और वो मेरे संग भी रिलेशनशिप में भी था| फिर उसने मुझसे कहा कि हम अब साथ नहीं रह सकते क्यूंकि उसने उस औरत को हाँ बोल दिया है और वो अपने पति को तलाक देने वाली है| फिर वो दोनों शादी कर लेंगे| मैंने उससे पूछा कि क्या उसके माता-पिता इसके लिए राज़ी हो गए? वो औरत उससे उम्र में बड़ी थी, पर ब्राह्ण थी|
आखिर में, उसने उससे शादी ना करके किसी और से ही शादी कर ली| मुझे उसकी कास्ट नहीं मालूम| बस इतना पता था कि वो भी लव मैरिज थी और उसके माता-पिता को इस बात से कोई दिक्कत नहीं थी|
वो मेरी लाइफ का बहुत ही कठिन वक्त था| मेरे लिए इस बात को मानना काफी मुश्किल था कि उसने किसी और के लिए मुझे छोड़ दिया था| मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था| मैं टिंडर पर गयी और कई लड़कों के साथ सोई भी, कई वन नाईट स्टैंड किए| मैंने अपने बारे में सोचना बिल्कुल छोड़ दिया था| तब तक, जब तक मुझे लगने लगा कि हाँ, वो लड़का मेरे दिलो दिमाग से बिलकुल निकल गया है |
एक-आध साल बाद, मैं टिंडर पर एक लड़के से मिली| बाकी लड़कों के मुकाबले वो समझदार और सपोर्टटिव था | शुरुआत तो एक कैज़ुअल दोस्ती से ही हुई थी| तीन चार महीने बाद हम डेट करने लगे| मेरे पिछले रिलेशनशिप से यह काफी अलग था| वो मुझसे उम्र में छोटा और दूसरे राज्य से था और काफी अच्छे खानदान से भी| और मैं कहना चाहूंगी कि वो पहला शख्स था जिसने मुझे, मैं जैसी हूँ, वैसे ही अपनाया| बिना किसी बोझ के | ये नहीं सोच के, कि मैं टूटा हुआ खिलौना टाइप हूँ|
उसी ने यह समझने में मेरी मदद की, कि मेरी दलित पहचान को अपनाने में कोई बुराई नहीं है| और ना ही मुझे अपने गरीब पारिवारिक परिस्तिथियों की असलियत छुपाने की ज़रुरत है| कुछ महीने तक सब काफी ठीक चला| फिर उसको अपने घर से जुड़ी कुछ प्रॉब्लम्स होने लगी थीं(ये हमसे सम्बंधित नहीं थीं) और वो ज़्यादातर डिस्टर्ब रहता था| इसीलिए उसने मुझसे कहा कि वो इस हालत में नहीं है कि कोई वादा कर सके ,इसलिए अच्छा होगा कि हम अभी ब्रेक अप कर लें| क्यूंकि ये भी तो हो सकता था कि मुझे कोई और मिल जाए| हम अभी भी टच में हैं, दोस्त की तरह| वो किसी के साथ नहीं हैं| और ना ही मैं|
सोचो अगर कास्ट का झमेला नहीं होता, तो मेरी शादी अपने पहले बॉयफ्रेंड से ही हो गयी होती| क्यूंकि और कोई अड़चन तो थी ही नहीं- ना जॉब की, ना मेरे लुक्स की और ना ही क्लास की|
काफी समय तक मैं अपने दिल टूटने का दोष खुद को देती रही| मुझे लगा मेरे में ही कोई गड़बड़ है| पर अब मैं समझ रही हूँ और जानती हूँ, कि सारी गलती मेरी नहीं थी|
मेरे आस पास के सभी दोस्तों और जानने वालों की शादी हो गयी है| मैं भी शादी करना चाहती हूँ| मेरे ब्रेक अप के बाद मेरे लिए काफी रिश्ते आये थे | पर मैं अरेंज्ड मैरिज नहीं कर सकती| मैं एक टिपिकल घरेलू बीवी का रोल नहीं निभा सकती| खाना बनाना, साफ़ सफाई और साथ में नौकरी भी | मैं अपनी बहन को यह सब करते हुए देखती हूँ और मुझसे यह सब नहीं हो सकता| मेरे ख्याल से मैं एक रोमांटिक इंसान हूँ|
रोमांटिक होता क्या है? एक दलित महिला होने के नाते अगर मुझे पूछा जाए कि एक परफेक्ट रोमांटिक रिलेशनशिप क्या होगी, तो मैं कहूँगी, इस बात से बिल्कुल फर्क नहीं पड़ना चाहिए कि हमारी जाति, हमारी कमाई, हमारा धर्म क्या है| इकरार होना चाहिए और आदर| खुद का पर्सनल स्पेस, आज़ादी होनी चाहिए| रिलेशनशिप में खुद की समझ होनी चाहिए| उसमें खुद को भुलाना नहीं चाहिए| प्यार और ख्याल के साथ, एक दूसरे पर विश्वास होना चाहिए|
जिस रिश्ते में मेरे विचार और ख्यालों का आदर हो, वही रोमांटिक है| रिश्ता उन दो लोगों के बारे में होता है, जो उसमें जुड़े हैं | उनको उस वक्त क्या महसूस हो रहा है, क्या लग रहा है, रिश्ता उसके बारे में है|
मैं जब किसी रिलेशनशिप में होती हूँ, तो मैं सिर्फ उस व्यक्ति के साथ होना पसंद करती हूँ| मैं इधर उधर दूसरे लोगों को नहीं देखती| लेकिन जब मैं सिंगल होती हूँ, मैं अपने ऑप्शन्स खुले रखना चाहती हूँ| अभी तक मैं किसी औरत के प्रति आकर्षित नहीं हुई हूँ | क्या पता आगे क्या हो?
अगर मैं किसी लड़के से मिलती हूँ जो मुझे, जैसी हूँ वैसे ही अपनाने को तैयार है, तो ठीक है| तब मैं शादी के बारे में सोचूंगी| वरना मैंने इस बात को मान लिया है कि शायद मैं अकेली ही ज़िंदगी बिता दूँगी और मुझे इस बात से कोई दिक्कत नहीं है|