मैं एक बस में बैठी हूँ गलियारे के बगल में, अंदर और बाहर के लोगों को देखती हुई। मौसम सुहावना है। मैंने मेरे नए सनग्लासेस पहने हैं।
मेरा सफ़र काफ़ी लंबा है और कुछ ही समय में, मैं १४ साल के एक लड़के को बस के अंदर आकर मेरे सामने खड़े होते हुए देखती हूँ। उसके बाद, मैं ५० साल के एक आदमी को वैसा ही करते हुए देखती हूँ, लेकिन उस लड़के के ठीक पीछे और उसके इतने नज़दीक खड़े होते हुए कि उस लड़के को उस आदमी को ढकेलना पड़ता है । अब बूढ़ा आदमी उन दोनों के ऊपर के दोनों हैंडल को पकड़ने के लिए अपने हाथ फ़ैलाता है, जिस कारण लड़के को कोई जगह नहीं बचती, वह घिर जाता है । अब, बच्चा होने के नाते, वह हिलने की कोशिश करता है, डर जाता है, उसके पसीने छूटने लगते हैं, वह आहें भरता है, आँखें घुमाता है। इसका कुछ असर नहीं होता - बूढ़ा कोई प्रतिक्रिया नहीं देता और बच्चे को नज़रअंदाज़ करता है। यह देखकर, मैं बच्चे की ओर यूँ देखती हूँ जैसे वह मेरे साथ है, और कहती हूँ (बड़ी सख्ती से): आओ, मेरे पास खड़े रहो।
बूढ़ा मेरी ओर देखता है लेकिन उसे सिर्फ़ मेरे बड़े, नए काले सनग्लासेस में अपनी परछाई दिखती है।
वह अपने हाथ छुड़ाता है, घेरा टूट जाता है, और लड़का मेरे पास आ सकता है। उसके चेहरे पर लिखी राहत का भाव मैं देख सकती हूँ। इस बस में उसकी तरफ़दारी करने वाली कोई तो है। वह अकेला नहीं है।
दुर्भाग्य से, मुझे बराबर पता है कि उस समय वह लड़का क्या महसूस कर रहा है। पंद्रह साल पहले (क़रीब क़रीब), मेरे बगल में बैठा एक पिया हुआ आदमी धीरे से मेरे घुटने पर अपना हाथ रखने लगा और यह बात स्पष्ट थी कि वहीं रुकने का उसका कोई इरादा नहीं था। गरमी का दिन था। मेरी सीट खिड़की के बगल पे थी, मैं चाहती थी कि स्कूल से घर के सफ़रभर में मुझे अच्छी हवा लगती रहे। बस की खिड़की से आती धूप से मेरी त्वचा जल रही थी। गर्मी इतनी थी कि मेरी आँखों को तेज़ किरणों से बचाने के लिए मुझे अपना हाथ उनके ऊपर रखना पड़ रहा था। उन दिनों, ए. सी. बसें नहीं थीं, इसलिए मेरे लाल चेहरे से पसीना एकदम टपकने लगा था। मैंने मेरे घुटनों के थोड़े ऊपर तक की काली स्कर्ट और एक टी शर्ट पहन रखे थे। जब यह आदमी मेरे बगल में बैठा, मुझे उससे शराब की बू आई थी और मैंने अपना मुँह खिड़की की ओर फेर लिया था। कुछ देर बाद, मैंने जाना कि उसने अपना हाथ हम दोनों के बीच सीट पर रख दिया था। फ़िर उसने मेरे घुटने को हाथ लगाया। मैंने उसकी ओर देखा लेकिन वह दूसरी ओर देख रहा था। उसे अपना हाथ वहां से निकालने को कह पाने में मैं बहुत असमर्थ थी, मुझे डर लग रहा था और मुझे शर्म भी आ रही थी। मैं लंबी साँसें लेने लगी और मुझे पता नहीं था मैं अब क्या करूँ। मैंने मेरा घुटना थोड़ा सा दूसरी ओर हिलाया, लेकिन इसका फ़ायदा उठाकर उसने अपना हाथ और थोड़ा ऊपर सरकाया। मुझे सारा जहान एक बड़े जलते हुए नरक सा लगने लगा था। मैं मदद के लिए लोगों की ओर देखने लगी। लेकिन लोग उस आदमी से इतना परेशान नहीं थे जितना कि वे गर्मी से थे।
जब मैंने उसकी ओर देखा तब हमारी आँखें मिली थीं और मुझे पता चला कि वह नशे में कितना धुत था। उसकी आधी बंद आँखें मेरे आर पार देख रही थीं। मैं सिर्फ़ यह कह पाई: कृपया आपका हाथ हटाना। शराब की बू के साथ उसके मुँह से निकलने वाला जवाब मुझे याद है: चलो ठीक है। लेकिन बात कभी चल कर ठीक नहीं होने वाली थी, है ना? क्या टूटा हुआ शीशा फ़िर से जोड़ा जा सकता है? गरमी के बावजूद मैं काँप रही थी, इस बात से भयभीत कि वह मेरे घर तक मेरा पीछा कर सकता था। उस घटना की जलती हुई घबराहट एक ठंडे ज्वालामुखी जैसे मेरे साथ रही, जो अपने पर अगली दरार बनने के इंतज़ार में था।
अब, यह घटना याद करते हुए, मैं उस लड़के की ओर झुकती हूँ: किसी दिन, कोई आदमी, संभवतः कोई औरत, को तुम्हारी मदद की ज़रुरत पड़ेगी, तुम्हें आज जितनी ज़रुरत लगी उससे भी ज़्यादा। समझे? वह सर हिलाता है।
वह एक बस थी, एक शहर में, एक राष्ट्र में। विश्व भर में ऐसे कितने ही होटल के कमरे, ऑफ़िस, मॉल, सड़क, बिल्डिंग और इतनी सारी जगहों के बारे में सोचो जहां ऐसा कुछ इस पल घट रहा होगा। क्या आपको पता है क्यों? क्योंकि छेड़छाड़ करनेवालों को पता है कि उन्हें सज़ा नहीं मिलेगी। क्योंकि उन्हें पता है कि उनकी शिकायत करने के लिए कोई अपने ऑफ़िस या स्कूल कुछ घड़ी देर पहुँचने की जोखिम नहीं उठाएगा। और अगर यह आपके परिवार में होता है, तब आप क्या करोगे? क्या वे आप पर विश्वास करेंगे? या क्या ये बात पारिवारिक संबंधों के वज़न के नीचे गाड़ दी जाएगी? ?
क्या आपको लगता है कि मेरी बस से उतरने वाले बूढ़े ने दूसरी बस नहीं ली होगी?
यह साल उन तमाम औरतों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण रहा जो परछाईयों की दुनिया से बाहर आ निकलीं और जिन्होंने अपनी #metoo (मेरे साथ भी) की कहानियां बताईं। इसने फ़िल्म निर्माण और टेलीविज़न जैसे बड़े व्यवसायों को तहस नहस किया है। अलग अलग व्यवसायों के कई मर्द हमारे साथ कंधे से कंधा लगाकर खड़े रहे, इसके बावजूद कि ऐसा करने से उन्हें नुक्सान पहुँच सकता है। जितना ज़्यादा लोग हमारा समर्थन करते हैं, फ़िर वह स्त्री हो या पुरुष, उतना ज़्यादा हमें अपनी बात ख़ुद बताने का साहस मिलता है।
और कभी कभार एक एक कर के सिर्फ़ एक मामूली सा कुछ करने की ज़रुरत होती है - किसी और के लिए वह करना, जो आप चाहते हों कि किसी और ने आपके लिए कभी किया होता।
समीरा किडमैन आज़रबाइजानी फ़िल्म संपादक है जिसने FTII में पढ़ाई की। वह बंबई और बाकू दोनों जगह रहती है।
मैंने बस में एक आदमी को एक लड़के को सताने से रोका, चूँकि ऐसा मेरे साथ भी हो चुका था
विश्व भर में ऐसे कितने ही होटल के कमरे, ऑफ़िस, मॉल, सड़क, बिल्डिंग और इतनी सारी जगहों के बारे में सोचो जहां ऐसा कुछ इस पल घट रहा होगा।
समीरा किडमैन द्वारा
चित्रण देबस्मिता दासगुप्ता
अनुवाद: मिहीर सासवडकर
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