नवीन क, 17, नासिक
काश हम सेक्स के बारे में बात कर सकते, ताकि मैं औरों के तजुर्बे से कुछ सीख सकता ।
हम बचपन के तीन दोस्त हैं, हम किसी भी मुद्दे पर बात कर सकते हैं ।
मेरा दोस्त सुधीर वो है जिससे मैंने सेक्स के बारे में सबसे पहले बात की । मैं आठवी में था, वो नौंवी क्लास में ( अब मैं ग्यारवीह में हूँ) । तब मैंने हस्तमैथुन अकस्मात् खोज निकाला था । चकित था मैं, धक्का सा लगा था, पहली बार, पर क्योंकि मज़ा आया था, खुश भी था । मैं अपने दोस्त के पास गया और मैंने उससे कहा, "मैंने कुछ अजीब सा किया और ये हो गया । तुम्हें इसके बारे में पता है, तुमने किया है? "
उसने कहा, " हाँ, ये सेक्स से संबंधित है, तुम्हारे लिंग को लेकर सब कुछ सेक्स से संबंधित है" ।
तरुण वो दूसरा दोस्त है, जिससे बात करना सहज है, पर वो हमेशा किसी उत्तेजना में रहता है । वो हर हफ्ते मुझसे पूछता है, "तुम हस्तमैथुन कर रहे हो?" । पता नहीं क्यों । पूछता है स्कोर क्या रहा, एक दिन का एवरेज क्या है, हफ्ते का एवरेज क्या है और अपने क़िस्से बताता है, (जैसे एक दफ़ा उसके दादा दादी जो बाहर गये थे, समय से पहले लौट आए और वो सोफे पर हस्तमैथुन करते समय पकड़ा ही जाता, पर बाल बाल बच गया) । कभी कभी उससे चिड़ भी होने लगती है, फिर भी मन करता है कि मेरे तरुण जैसे और दोस्त होते । औरों से बात करने पर प्रतिबंध सा लगता है, और बतिया पाने से बात खुल कर निकल पाती है, तो राहत मिलती है । अब मुझे ऑनलाइन फोरम पर जाकर "किशोरों के बीच के रिश्ते' और 'सेक्स', यानि जिन भी टॉपिक पर मैं बात करना चाहता हूँ, उन पर सवाल पूछने पड़ते हैं, फिर फीडबॅक मिलता है, किसी से सीखने को मिलता है...... । पर अधिकतर सन्दर्भ में बहुत अंतर होता है । कोई अमरीका से जवाब देगा, वहाँ पूरा सामाजिक और पारिवारिक ढाँचा ही यहाँ से अलग है, तो उनके जवाब संतोषजनक नहीं होते । मुझे लगता है मेरे लिए तो ये फ़ायदेमंद नहीं । मन करता है कि हम ये सब बातें डिस्कस कर पाते, क्योंकि उससे और टॉपिक्स पर भी हमारा दिमाग़ खुल जाता । सामाजिक वातावरण खुला सा होता जिसमें आपको अपनी बातों को आराम से सामने लाने का साहस मिलता । मैं इसलिए अपने छोटे भाई से ये बातें करता हूँ: वो अब पाँचवी में है । मैंने उसे हस्तमैथुन के बारे में बताया है, कि ये एक स्वाभाविक और खुश करने वाली क्रिया है, और उसने मुझे बताया कि वो पहले से सेक्स और हस्त मैथुन के बारे में जानता है (उसने चौथी कक्षा में पहली बार इसके बारे में सुना था) । जैसे जैसे वो बड़ा होने लगेगा और इन भावनाओं को खुद महसूस करने लगेगा, मैं उसे और बताऊँगा ।
रोहित व., 31, बंगलौर
पहली बार जब मैंने आदमियों से सेक्स की बात की, मेरा उनके साथ सेक्स करने का मन हुआ
पहली बार जब मैंने आदमियों से सेक्स की बात की, मेरा उनके साथ सेक्स करने का मन हुआ । समलैंगिक पुरुष हो तो, वो समय तुम्हारे कामेच्छाओं के जागने का होता है ।अब बात अलग है, जब आप ऐसे समलैंगिक पुरुष से बात करते हो जिसके साथ आप 'हुक अप' करना चाहते हो... और आप पूछते हो "आपका लिंग कितना बड़ा है?", "कौन सा आसन पसंद है?" "संभोग के दौरान चोदना पसंद करते हो या चोदा जाना? "।
अपने विषमलैंगिक पुरुष दोस्तों के साथ, बस थोड़ी इशारेबाज़ी के आगे नहीं जाता । मैं अपने कुछ विषमलैंगिक दोस्तों से कह सकता हूँ कि "डैडी ने मेरी ऐश करा दी" और बात निकल जाएगी, वो भी कह देंगे "चलो तुम्हारी किस्मत चमक गई", पर मैं और विस्तार से बात नहीं करूँगा ।यूँ बात का टालना स्वांग सा लगता है: मैं हमेशा सोचता रहता हूँ, कहीं सामने वाला असहज तो नहीं महसूस कर रहा?
मैं अपनी स्त्री मित्रों से और वो पुरुष जो समलैंगिक हैं, पर इस बात का खुलासा नहीं करते हैं, उनसे ये बातें करना ज़्यादा पसंद करता हूँ । उन्हें तो मैं पूरा ब्योरा देता हूँ: उसने मुझे कैसे छुआ, कैसे मेरे बालों को अस्त व्यस्त किया और फिर मुझ पर झपट पड़ा, मैं उस पल क्या चाहता था कि वो रुके या एकदम चला जाए …
(सेक्स को लेकर ) अपनी उत्कंठाओं के बारे में मैं किसी से बात नहीं करता । चाहता तो हूँ कि अपने हमबिस्तर आदमियों से इनके बारे में बात करूँ, क्योंकि मुझे यकीन है वो भी इन उत्कंठाओं के शिकार होंगे । पर नहीं करता क्योंकि ऐसा करना ख़तरनाक साबित हो सकता है । समलैंगिक पुरुषों के साथ, मुझे यूँ लगता है कि जिस पल तुम एक साधारण इंसान सी असल बात करने लगो, यानि ग्राइंडर पे मिले दो बदन की स्तिथि के आगे बढ़ने की कोशिश करो, वो दूरी कायम करने लगते हैं । बात करने से जैसे वादों या प्रतिबद्धता की बू सी आने लगती है, हुक अप (आकस्मिक सेक्स का ज़रिया )महज़ हुक अप नहीं रहता । पर अगर फिर सोचता हूँ तो वो अन्य किस्म के समलैंगिक पुरुष भी याद आते हैं । वो जो बेडरूम जाने से पहले बस बात ही करना चाहते हैं । हाँ, मैं सोचता हूँ ये भी हर किस्म के हैं ।
नारायण न, बंगलौर, 40
उम्र के साथ साथ, टिक मारने वाले बॉक्स भी कम होते जाते हैं, यानि कुछ सांझा करने को बचता ही नहीं ।
जैसे जैसे लड़के बड़े होते हैं, उनके पहले अनुभव होते हैं,
और उनके बीच की बातचीत फिरसे कुछ वैसी जो जाती है, जैसे बचपन में, सेक्स के बारे में नये तथ्यों को लेकर होती थी ।
"तुम विश्वास ही नहीं करोगे कि मैंने क्या किया?" "कैसा लगा?" "ये, यूँ होता है" । ग्रूप में जैसे एक दूसरे के तजुर्बे पर निर्धारित नई नई खोज हो रही हैं, और एक सामूहिक सोच, "कि किसने पहले क्या किया?" । स्वाभाविक है कि बड़ी सारी बातें बड़ा चड़ा कर की जा रही हैं, और इससे ये हो सकता है कि सुनने वाले अपने को बहुत बेआड़ सा पाते हैं ।
एक ओर दोस्तों से अपनी बात साझा करने की इच्छा है, तो साथ में ये डर भी है कि वो मज़ाक उड़ाएंगे । भला ही आप किसी बात पर चिंतित हों, या फिर आप रोमांस या किसी भावनात्मक वास्ते के बारे में बात करना चाह रहे हों, मर्दानगी जैसे अदायगी पर ही ज़ोर डालती है, और फ़तह या दूसरे पर विजय को रोमांस से ज़्यादा अहमियत देती है । यानि एक व्यापक सा दबाव होता है, कि शेखी बघारी जाए, और सेक्स संबंधी अनुभव को और अनुभवों से ज़्यादा ज़ोर दिया जाए, और हम ऐसी कई बातों पर बात ही नहीं करते जिनपर हम वास्तव में बतियाना चाहते हैं ।
जब एक लड़के की गिर्ल्फ्रेंड होती है और वो साथ बाहर जाते हैं, उसके लौटने पर उसके दोस्त पूछेंगे, "तो, क्या किया, कितने आगे बड़े?" । अगर उसने जवाब में कहा कि उन्होंने केवल हाथ में हाथ डाल कर पिक्चर देखी, तो वो उसका मज़ाक उड़ाएंगे, ये कहकर कि वो 'असली मर्द' नहीं है, जिस वजह से वो खुद या आतीशोक्ति में अपनी बात बताएगा या सरासर झूठ बोलेगा ।
यही वजह है कि आदमी सेक्स पर बड़ी जनरल, सामान्य सी बातें करते हैं, ना कि विशिष्ट रूप से। हम कभी दोस्तों के सामने ऐसी विस्तारपूर्वक बात नहीं करेंगे जिससे हमारा मज़ाक उड़ाए जाने का ख़तरा बड़े, या हमारी आतिशयोक्तियाँ स्पष्ट हो जाएँ। तो हम बड़े अस्पष्ट रूप से 'गुदा' शब्द का प्रयोग करते हैं, या किसी नये आसान का ज़िक्र ।
उम्र के साथ साथ, सेक्स की जाँच सूचि पर टिक मारने के लिए बचे हुए डब्बे कम होते जाते हैं ।
कोई नयी खोज या नई फ़तह नहीं होती, सो दूसरों से साझा करने को भी कुछ नहीं रहता । हम उस पर बात करना छोड़ देते हैं।
ये भी है कि कोई नहीं चाहता कि दोस्त उसकी गर्लफ़्रेंड या बीवी को लेकर संभोग संबंधी मनोचित्रण करे ।
मैंने वयस्क मर्दों को सेक्स के बारे में केवल ब्रेक अप के टाइम बार बातें करते देखा है, जब वो घिनौनी सी बातें करते हैं, जैसे कि "वो बिस्तर में अच्छी थी ही नहीं" या फिर " उसे मुख मैथुन करना आता ही नहीं था" ।
कीर्तन, 27, ट्रिवांड्रम
पहली मर्तबा जब मैंने सेक्स किया, वो आखरी मर्तबा था जब मैंने उसके बारे में बात की ।
एक महीला के साथ मेरे पहले तजुर्बे ने दिमाग़ पर बड़ा प्रेशर डाला। ये सब कैसे काम करता है, मुझे पता ही नहीं था, और सब कुछ मेरी प्रत्याशाओं से बिल्कुल अलग था। मैं क्या उम्मीद लेके आया था, मुझे पता नहीं, मेरे सारे अनुमान पॉर्न से थे, लेकिन हक़ीकत से मुझे बड़ा धक्का लगा ।मैंने अचानक अपने को ऐसी स्तिथी में पाया जहाँ मुझसे उम्मीद थी कि मुझे सब कुछ पता होगा, क्या करना है वो भी। मुझे सबसे ज़्यादा उलझन इस बात से हुई, कि मुझे यह उम्मीद ना थी कि सब कुछ इतना गीला होगा । मुझे बिल्कुल पता नहीं था कि स्त्री के जनांग कैसे दिखते हैं, और पहली बार तो मैं झेंप ही गया । जब मैंने अपने प्रिय दोस्त से इसका ज़िक्र किया, तो उसने कहा "उफ़ तुम कितने समलैंगिक टाइप के हो"। मैं समलैंगिक नहीं हूँ । हालाँके मैं जानता हूँ की ऐसा होने में कोई दिक्कत नहीं, पर मुझे इस बात से बड़ा आघात लगा ।
तब मुझे समझ में आया कि निजी मामलों को क्यों निजी ही रखना चाहिए। दोस्त ऐसी बेकार सलाह देते हैं ।
प्रतीक विस्वानी, 30, दिल्ली
मुझे सेक्स के बारे में औरतों से बात करना कहीं ज़्यादा सरल लगता है ।
मैने ऐसी-लड़कियाँ-जो-दोस्त-हैं से सेक्स के बारे में बात करनी शुरू की थी, क्योंकि वो मुझसे बतियाती थीं ! लड़कियाँ सेक्स के बारे में इतने विस्तार से बात करती हैं, इतनी सहजता के साथ कि मैं असहज हो जाता था । पर फिर भी मुझे उनसे बात करना कहीं ज़्यादा आसान लगता है। आदमी इस बारे में एक दूसरे के साथ ये बातें करने में बिल्कुल भी सहज नहीं होते ।दो परिदृश्य हो सकते हैं। एक तो ये कि मुझे पता लगे की मेरी जोड़ीदार हमारे सेक्स लाइफ के बारे में कुछ, ऐसे किसी से कर आई है जो हम दोनों की मित्र है।अगर मैं उस मित्र को अच्छे से जानता हूँ तो उससे पता लगाता हूँ कि मसला क्या है।
मुझे ये समझ नहीं आता की वो औरतें जो आपकी हमबिस्तर हैं, जब आप उनसे पूछते हैं कि सेक्स कैसा था, तो वो साफ़ साफ़ आपसे बात क्यों नहीं करतीं? बस अपनी दोस्तों को बता आती हैं । तो फिर तो ये यूँ हुआ कि आप एक किस्म की तहकीकात कर रहे हो । तो सेक्स को लेकर सबसे साफ़ और सार्थक बातचीत मेरी उन औरतों से होती है, जो दोनों की दोस्त हैं, अगर वो सामने से मुझे बताएँ तो. ..
दूसरा सच ये है कि केवल वो दोस्त जो औरते हैं, आपको वाकई सच्चा फीड बेक देती हैं । औरतों का शरीर एक गुप्त पाठ्य पुस्तक के सामान है, जिसके बड़े सारे अध्याय हैं। ऊपर से एग्ज़ाम में सब कुछ 'आउट ऑफ सिलबस' ही आता है। अगर सेक्स के दौरान कुछ अजीब हो जाए, या मैं कुछ नया करने की कोशिश करूँ, मैं अपने दोस्तों से पूछता हूँ कि, "मैंने ऐसा किया, तुम्हें ये अच्छा लगता? मैं कैसे पता कर सकता हूँ कि उसे ये वास्तव में कैसा लगा? " और वो सच सच जवाब देती हैं, या बताती हैं कि कहाँ सुधार संभव है, या कि उन्हें क्या पसंद है जो और लड़कियाँ भी पसंद करती हैं।
सच कहूँ तो एक और वजह से मैं अपनी औरत-दोस्तों से सेक्स का ज़िक्र करता हूँ, उन्हें जलाने के लिए । मेरी कई सारी लड़कियाँ-जो-मेरी-दोस्त-हैं वास्तव में वो हैं जिन्होंने मुझे दोस्त की उपाधि दे छोड़ा था- मुझे- फ्रेंड ज़ोन किया था । मुझे उसकी परवाह नहीं, हम दोस्त बन गये । पर कुछ अवशेष रह जाता है, और कभी कभी जब वो मुझे बताती हैं, कि जिस भी लड़के से साथ आख़िर उन्होंने रिश्ता बाँध लिया, उसके साथ वो सेक्स के दौरान कितने मज़े कर रही हैं, मुझे कभी कभी लगता है कि वो मुझे बता बता कर जलाने की कोशिश कर रही हैं । तो फिर मैं भी उनके साथ वही करता हूँ, अपनी सेक्स लाइफ की चर्चा करके ।




