जब भी मैं घर, यानी इंडिया, आती हूँ, मेरी कामलिप्सा उजागर हो उठती है। मैं अमेरिका में रहती हूँ, पर वहाँ कुछ तो ऐसा है जो मेरी आंतरिक इच्छाओं से मेल नहीं खाता। जब मैं परदेस में होती हूँ तो मेरा एक महत्वपूर्ण हिस्सा सीतनिद्रा (हाइबरनेशन) में चला जाता है, और जैसे ही मैं इस जोशपूर्ण अव्यवस्थित माहौल, जिसे मैंं आज भी घर बुलाती हूँ, में कदम रखती हूँ तो वो आक्रामक रूप से जीवंत हो उठता है। ऐसा आज भी होता है जबकि मैं लगभग एक दशक से बाहर रहती आई हूँ। लोगों को अक्सर आश्चर्य होता है जब मैं ये कहती हूँ कि मेरी अधिकतर ऑनलाइन डेटिंग भारत में ही हुई है। हाँ, अमेरिका में पार्टनर बनाना या रंगरलियां मनाना, दोनों के लिए समान सुविधाएं प्राप्त होती हैं। मैं मानती हूँ कि अपने आस पास कम आलोचनात्मक अंकल और ऑन्टी का होना एक आशीर्वाद से कम नहीं है। और ये तथ्य भी, कि वहाँ मेरा अपना घर है, जहाँ लोग बिना किसी रोक टोक के आ सकते हैं- ये शानदार सी बात ही लगती है। फिर भी, सच तो यही है कि मेरे बहुत से रोमांचकारी अनुभव मेरे भारतीय घर के छोटे और लंबे दौरों के समय ही हुए हैं। 2016 की गर्मियां भी यूं ही थीं...। मैं 2 महीने के लिए घर आयी थी। मैं महीनों से इसका सपना देख रही थी - अपने प्यारे शहर की सड़कों पर घुमक्कड़ बनने का सुख, अतुलनीय कोलकत्ता बिरयानी का स्वाद, ’होल-इन-द-वॉल’ रेस्तरां का ‘चिल्ली पोर्क’, दोस्तों और परिवार से मुलाकात, गंगा को नमन, सब कुछ। कोलकत्ता प्रवास के अंतर्गत, मैंने अपने ओके क्यूपिड और टिंडर खातों को फिर से सक्रिय कर दिया। मैं डेटिंग के लंबे विराम से बाहर निकली थी, और सोच रही थी आगे कौन और क्या रखा है। एजेंट ऑफ इश्क़ की नियुक्ति मुझे उम्र के अंतर की बहुत अधिक परवाह नहीं रही है, बस संबंध वास्तविक होना चाहिए। इसलिए जब एक 19 वर्षीय लड़के ने मुझे बोकारो से एक धमाकेदार वन-लाइनर भेजा, तो मैंने भी एक दोस्ताने अंदाज़ में जवाब दे दिया। हांलाकि, जल्द ही ये स्पष्ट हो गया कि हमारे बीच के 12 साल बहुत ज्यादा थे। वो बच्चा चंचल था और हाज़िरजवाबी की चमक थी उसमें। लेकिन वो मुझे उन पूर्वस्नातक( अंडरग्रेजुएट) छात्रों कि याद दिलाता था जिनको मैं पढ़ाती थी। मैंने उसे ये बात बताई भी। इस बात ने तत्काल ही रोष पैदा कर दिया, "बच्चा? मैं कोई बच्चा नहीं हूँ। मैं 18 साल से अधिक का एक वयस्क हूं।" मैं अंदर ही अंदर हँसी। मुझे आश्चर्य नहीं हुआ जब, हाँफ-हाँफ कर अपनी जवानी का बचाव करते हुए, शर्मा कर मुझसे यौन संबंधी प्रश्न पूछते हुए, बीच में वो ये स्वीकार कर बैठा कि उसने कभी सेक्स नहीं किया था। और तो और, वह 'सेक्स-आब्सेसड’ था, एक लड़की के साथ कामुकता का स्वाद भी लेना चाहता था, लेकिन उसने इसे बीच में ही छोड़ दिया और इसका दिल टूट गया। अवज्ञा और अकेलेपन का यह मिश्रण - मुझे अपने अतीत की याद दिला गया था। इसलिए मैंने उसके साथ दोस्ती की, सेक्स, कामेच्छा और हस्तमैथुन के आनंद के बारे में बात की, और क्यों हम इंडिया में इन चीजों के विषय में खुल कर बात नहीं कर पाते हैं। यकीनन मैंने उसे एजेंट्स ऑफ इश्क़ वेबसाइट की ओर निर्देशित किया। और हाँ, वह एक कन्वर्ट था :)। हम आज भी ईमेल पर कभी-कभी बातें करते हैं। "क्या आप जानते हैं कि प्राचीन भारतीय बहुत बोल्ड थे?" 'ए' उन लोगों में से एक था जिनके साथ मैं कुछ डेट्स पे गई । उड़िया, एक तकनीकी विशेषज्ञ , जो कि कोलकत्ता की एक बड़ी आईटी कंपनि में काम करता था। मुझे याद है कि वह शरीर सौष्ठव पर बहुत ध्यान देता था। उसने बताया कि पहले वो काफी पतला था, लेकिन एक बार जब उसकेे बॉस ने वरिष्ठ सहयोगियों के सामने उसके वजन को लेकर मज़ाक उड़ाया, उसने उस शर्म की भावना के कारण ही वर्कआउट करना शुरू कर दिया। उसका आहार थोड़ा आश्चर्यजनक था - मुख्यतः एक हिंदू शाकाहारी होने के बावजूद, वो अपनी मांसपेशियों को बनाने के लिए रोज 12 अंडे खाता था। मैं फिटनेस की कोई मिसाल नहीं हूँ (मेरे डॉक्टरों से मेरीे बीएमआई के बारे में पूछिए, आप जान जाएंगे), लेकिन इन सबसे ए बिल्कुल भी परेशान नहीं दिखा। जबकि ये सब बहुत अच्छा था, हम बातचीत में थोड़ा लड़खड़ाते थे। वो चुप रहने वाला इन्सान था, और केवल मेरे अकेले बोलते रहने की भी एक सीमा थी। हालांकि, एक बार जब उसने खुलकर बात की, वो यादगार दिन रहा। मैं अपने परिवार के साथ कोनार्क और पुरी की यात्रा की योजना बना रही थी और वह कटक के आस-पास का रहने वाला था। यह तीसरी मुलाकात थी, और उस समय तक वह एक आदर्श सज्जन व्यक्ति बनकर रहा था, सेक्स से संबंधित किसी भी विषय को उसने कभी बढ़ावा नहीं दिया था। लेकिन जब मैंने कोनार्क के दौरे का जिक्र किया, तो वह झेंप गया, और फिर झटक कर कहा, "क्या तुम्हें पता है प्राचीन भारतीय बहुत ही बोल्ड था? मुझे ये ज्ञात नहीं था लेकिन कुछ वर्ष पहले जब मैं कोनार्क गया और वहाँ की कुछ मूर्तियों को देखा, तब ये समझ पाया! शायद तुम परिवार के साथ वहाँ नहीं जाना चाहोगी।" मैंने भौचक्का होकर उसकी ओर देखा। हे भगवान! जबकि वो खुद ओडिशा से था। उसने मेरी चुप्पी को प्रोत्साहन के रूप में लिया, और वो व्यक्तिगत सवाल जो पूछने के लिए वो काफी दिनों से झटपटा रहा था, पूछ गया। उसकी सूची में सबसे पहला सवाल ये था कि 'मुख्य चीज़ के बिना' दो महिलाएं एक दूसरे के साथ यौन संबंध कैसे बना सकतीं हैं। (मेरा ओ.के.सी प्रोफाइल स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि मैं पैन सेक्सुअल हूँ)। इसलिए मेरी इस तीसरी मुलाकात के बीच, जो एक अनभिज्ञ आदमी के साथ थी, मैंने अपने आप को एक अप्रत्याशित, अप्रस्तुत भाषण मंच पर खड़ा पाया, इच्छा की राजनीति और स्त्रीलिंग-पुल्लिंग की धारणाओं के बारे में बात करते हुए! और ये भी की कैसे सेक्स के लिए लिंग की आवश्यकता नहीं होती है। अंत में, उसकी एकमात्र प्रतिक्रिया थी, "तुम सेक्स के बारे में बहुत कुछ जानती हो। क्या मुझे भी सीखा सकती हो?" मैं ज़ोर से हँस पड़ी। मैं मतलबी नहीं होना चाहती थी, लेकिन यह (अनजाने) में मिला हुआ सबसे मजेदार प्रस्ताव था। यह बताना जरूरी नहीं होगा की चौथी मुलाकात कभी हुई ही नहीं। कंडोम, कृपया 'डी' दिल्ली का एक स्टाइलिश लड़का था, जो कुछ दिनों के लिए कोलकत्ता आया था। वह सुंदर था, लंबा - एक ठेठ पंजाबी मुंडे की सारी खूबियों वाला। हम शुरुआत से ही बहुत अच्छे घुल-मिल गए। कुछ मैसेज के ऑनलाइन हेर फेर, कॉफी की कुछ बैठकें और उसके बाद विस्तारित बातचीत, और मेरी बालकनी पर लौंग का पैकेट और चरस के सुट्टे का लेन देन। हमने काफी बातें की, राजनीति और धर्म के बारे में, डेटिंग वरीयताओं के बारे में, और इस दौरान वो मुझे अपने लिए बिल्कुल सटीक लगा। मैंने उसे ये भी बताया कि मैं हर साल एस.टी.डी टेस्ट कराती हूँ, और कैसे पिछले सप्ताह मैं अपने भाई को भी अपने साथ इस टेस्ट के लिए खींचकर ले गई थी। (मेरा भाई टेस्ट के रिजल्ट से इतना डरा हुआ था को उसे मैंने ही रिपोर्ट पढ़ कर सुनाई)। डी ने थोड़ा ऐंठ कर कहा कि वो समझ सकता है मेरे भाई को कैसा महसूस हुआ होगा। यह मेरे लिए पहली चेतावनी होनी चाहिए थी। हालांकि उस समय, यह लाल झंडी दिखाने के लिए पर्याप्त नहीं थी। मैं उसके प्रति आकर्षित थी और ये मैंने उससे छिपाया नहीं। हम सहज सेक्स और कुछ नाईट-स्टैंड्स के लिए तैयार थेे, इसलिए हमने अगली मुलाकात में रात के लिए एक कमरा किराए पर ले लिया था। हमारा तालमेल अच्छा था, और सेक्स बेहद मजेदार और छेड़खानी से भरा हुआ था। मैं खोई हुई थी... लेकिन इतनी नहीं कि इस बात पे ध्यान न जा सके कि उसने कंडोम का उपयोग नहीं किया था, पर फिर भी मेरे अंदर जाने की कोशिश कर रहा था। इससे पहले कि वह ऐसा कर सके, मैं उसके नीचे से बाहर निकल आयी और ज़ोर से चिल्लाकर पूछा, " मेरे दोस्त, तुम्हारा कंडोम कहाँ है?" उसने झेंप भरी एक मुस्कान दी और स्वीकारा कि वो कंडोम ले कर नहीं आया था। क्लासिक। हालांकि मेरे पास कुछ कंडोम थे, (मैं हमेशा ही रखती हूँ!), और मैंने उन्हें अपने पर्स से निकाला, केवल उसे चिढ़ते हुए देखने के लिए। बात को लंबा ना खींचते हुए ये बताना बेहतर होगा कि उसने वो डालने से इनकार कर दिया। सच कहूँ तो मुझे उसके बेकार की वजहों को सुनने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। मैंने स्पष्ट रूप से संभोग करने से इंकार कर दिया। मेरे यौन संबंध के इतने वर्षों में, आकस्मिक या अन्यथा, कभी भी ऐसे पुरुष साथी का सामना नहीं किया है, जिसने कंडोम लगाने से इनकार किया हो। हालांकि कुछ ऐसे लोग थे जो आनाकानी करते थे। सच कहूँ तो, मैं थोड़ा दंग रह गई थी। ये वही लड़का था जो कुछ दिन पहले ही मेरे साथ कामुक सेक्स कहानियों की गामागमन कर रहा था! यह महानगर में रहने वाला तीस वर्षीय लड़का था! यह मेरे लिए अकल्पनीय था कि वह न ही केवल नियमित रूप से असुरक्षित सेक्स किया करता था, बल्कि उसने पूरी तरह से मुझसे भी यही उम्मीद की थी कि मैं उससे सहमत हूँ। मैंने उसे स्पष्ट किया कि जब तक वह कंडोम नहीं डालेगा, तब तक भेदक सेक्स का सवाल ही पैदा नहीं होता। "मैं महिलाओं के साथ भी सोती हूँ, दोस्त। मुझे किसी 'डी' की ज़रूरत नहीं है। शायद आज वो दिन है जब तुम्हें ये पता चलना था कि भेदक संभोग के बिना भी यौन संबंध कैसे बनाया जा सकता है। यह एक बेतुका, अवास्तविक गतिरोधक था। वो कभी रूठता, कभी मुझे मनाता, खुशामदें करता। लेकिन मैं एक शिकायती, गैर जिम्मेदार, बच्चे जैसे व्यवहार करने वाले व्यक्ति के लिए अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा से समझौता नहीं करने वाली थी। और बीच रात मैं उसके साथ होटल के कमरे में फँस गई थी। आखिरकार वह कंडोम लगाने को तैयार हुआ। लेकिन जब सब सही जा रहा था, तो मैंने देखा कि वो फिर से उसके बिना ही मेरे अंदर जाने की कोशिश कर रहा था। यह एक अच्छी बात है मेरा शरीर थोड़ा बड़ा है। हालांकि वह एक भारी-भरकम आदमी था, मैं शारीरिक रूप से उसे धक्का देने में सक्षम रही, और तैयार होकर निकल पड़ी, भले ही आधी रात रही हो। इन सब समयों में ‘ऊबर’ जैसी टैक्सी सुविधाएं काफी काम आतीं हैं। हाँ, डेटिंग मुश्किल है, चाहे आप दुनिया के किसी भी हिस्से में क्यों ना हों। ऑनलाइन डेटिंग और भी, क्योंकि आपके पास आमतौर पर सुरक्षा और अन्यथा बफर के रूप में आपके दोस्तों और परिचितों के जान-पहचान वाले नहीं होते हैं। कोलकाता में मेरी ये कुछ दुर्भाग्यपूर्ण मुलाक़ातें शैक्षिक रहीं, और कुछ मायनों में मज़ेदार भी। लेकिन, आप कुछ जीतते भी हैं। अंततः मुझे दो अन्य (एक ऑनलाइन, और एक पुराना दोस्त) लोग मिले जो उदार और अद्भुत प्रेमियों के रूप में सामने आए। वो यादें मेरे लिए बेहद कीमती हैं। अंत में ‘ओ.के.सी’ काम आया, कैसे! जैसे ही मैं साइट छोड़ने वाली थी, मेरे पास एक प्रोफ़ाइल आया जो मेरे साथ 99% मैच हो रहा था। मैंने उसे संदेश भेज दिया। और जैसा सब कहते हैं, यह एक खूबसूरत दोस्ती की शुरुआत थी। यह व्यक्ति गैर-बाइनरी था (यद्यपि इसका जन्म पुरुष का था, और पुरुष सर्वनाम का उपयोग भी कर रहा था), एक लेखक, और अपनी तरह की पहचान वाले किसी व्यक्ति से मिलकर मेरे ही तरह अचंभित। मेरे जैसे, वह भी पॉलिमोरस था, और मैंने खुशी से गर्मियों के बाकी बचे दिन उसकी बाहों में बिताए, और उसके परिवार को भी करीब से जाना। मेरी कहानी अधूरी रह जाएगी अगर मैंने अपने एक पुराने दोस्त के साथ होने वाली अनपेक्षित मुलाकात का उल्लेख नहीं किया, जिसे मैं पिछले 13 वर्षों से जानती हूँ। हमारे बीच कभी भी कोई रोमांटिक / यौन आकर्षण नहीं रहा था, इसलिए एक रात जब हम काफी पिए हुए थे, उसका प्रस्ताव अचानक से सामने आना आश्चर्यजनक सा लगा। इससे भी ज्यादा आश्चर्य की बात है, कि मैंने ‘हाँ’ कहा। (मैं अभी भी निश्चित नहीं हूँ कि मैंने हाँ क्यों कहा) हमारा साथ आना, मानो बिजली के करंट सा था... वो उन गिने चुने लोगों में से एक है जो मुझे ऊपर से नीचे तक प्रज्ज्वलित करता है। ऐसा प्रतीत हुआ कि दोनों एक साथ ही यौन संबंध की संभावना के प्रति उजागर हुए। ओह कोलकत्ता, तुमने मेरी पिछली गर्मियों में सबसे अच्छे आश्चर्यों का आयोजन किया था। मैं 2016 की गर्मियों को कोनार्क ग्रीष्म के रूप में सोचती हूँ, जिसमें दो महीने में मैं अनेक लोगों का चयन करके और कई अनुभवों के साथ, वापस घर आ गयी थी। तो कौन कहता है कि केवल प्राचीन भारतीय ही "बोल्ड" है! :) आलसप्रिय अभी भी दो महाद्वीपों के बीच फँसी हुई हैं, उनके लिए ऐसे लिखना ज़रूरी है, जैसे समय उनके हाथों से भागा जा रहा है- जो कि सच है, हाय भगवान! आप एजेंट्स ऑफ इश्क के लिए उनके लिखे अन्य लेख यहाँ पढ़ सकते हैं। यह वह गीत है जिसे उन्होंने ये कहानी लिखते समय बार बार सुना। [embed]https://www.youtube.com/watch?time_continue=11&v=YFYiTS46x-8[/embed]
गर्मी, कोनार्क और मैं
आलसप्रिया लिखित
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