एक नार्मल मासिक धर्म/ पीरियड क्या है?
तुम्हें याद होगा अपने पीरियड को प्यार से किसी और नाम से बुलाना- मैं डाउन हो गयी, डेट आ गयी है, महीना आ गया है, लो, मेरी मासी फिरसे मिलने आ गयी- हम ऐसा क्यों करते हैं? क्यूंकि पीरियड/ मासिक धर्म का नाम खुल कर नहीं लिया जाता, शर्म आती है!
और जब पेट कस के ऐंठने लगता है, खून ज़्यादा बहने लगता है, यूं लगता है कि उल्टी हो जाएगी, तो तुम बस यही कहते हो कि " नहीं यार, तबियत ठीक नहीं है " क्यूंकि - ये सब होना तो नार्मल होता है, है न? लड़कियों को पीरियड होता है, दर्द भी होता ही है- आखिर ज़िंदगी है, कोई साफ़ सुथरा सेनेटरी पेड का विज्ञापन तो नहीं।
इसमें डिसकस करने की क्या बात है? पीरियड तब तक नार्मल ही कहलायेगा जब तक वो आएगा नहीं- नहीं आया तो डिस्कशन लाजमी है। सच है न ?
नहीं यार, इतना सिंपल भी नहीं है. तो चलो पीरियड्स की बात ये- पीरियड और शर्म- से आगे बढ़ाते हैं।
कहने का मतलब?? कि नार्मल पीरियड जैसा कुछ है ही नहीं?
आखिर नार्मल पीरियड किसे कहेंगे? हर एक को एक सा पीरियड तो होता नहीं। हाँ, ये कह सकते हैं कि अलग अलग मापों से हम एक ऐसा टेबल बना सकते हैं जिससे नार्मल पीरियड की एक विस्तृत परिभाषा मिल सके।
कितने दिन, कितना बहाव- नार्मल की हद क्या है? जिसके बाहर पीरियड नार्मल नहीं कहलायेगा?
खून का भारी बहाव
- ७ दिनों से लंबा चलने वाला पीरियड
- ऐसा पीरियड जिसमें रक्त का बहाव इतना भारी है, तुम्हारे आम पीरियड से दो या तीन गुना ज़्यादा. (तकनीकी शब्दों मैं, ८० एम्. ऐल. या १६ चमच्च से ज़्यादा )
- खून के बड़े बड़े थकी- क्लॉट्स का निकलना, जो ढाई सेंटीमीटर से बड़े हों
- इतना खून बहना कि तुम्हारे बाहर के कपड़ों पर अक्सर खून के दाग लग जाएँ, और तुम्हें पैड हर २ घंटों में बदलना पड़े, ४ घंटों के बजाये.
पीरियड के दौरान बहुत दर्द
थोड़ी बहुत पेट की ऐंठन या असुविधा तो कोई सह भी ले, एक पेनकिलर भी ले ले, पर अगर भयंकर दर्द, जो सहा न जाए, बार बार आये, जिससे हालत खराब हो जाए..इसे नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए. औरतों से अक्सर कहा जाता है, "मुकसकुरा के झेल जाओ" क्यूंकि इसी का नाम ज़िंदगी है। पीरियड के दौरान दर्द को भी यूं ही देखा जाता है. पर बार बार होता, लगातार होता दर्द जो असहनीय लगे, उसे डॉक्टर को दिखाना चाहिए, ना कि सहना।
अनियमित पीरियड
तुम्हारा पीरियड कई वजहों से और कई तरीकों से भी अनियमित हो सकता है
- पेट से होना. अगर पीरियड एक हफ्ता या उस से भी ज़्यादा लेट है, तो हो सकता है कि तुम प्रेग्नेंट हो. प्रेगनैंसी किट से पता लगा सकती हो, या डॉक्टर के पास जा सकती हो, या दोनों तरीके आज़मा सकती हो
- वजन का बड़े जल्दी घटना या बढ़ना एक वजह हो सकती है
-तनाव/स्ट्रेस ये भावुक/ मानसिक/ शारीरिक हो सकता है, जैसे लंबा सफर, जेट लैग , जो शरीर पर असर करता है
लम्बे समय तक अत्यंत एक्सरसाइज करना
-कुछ किस्म के गर्भ निरोधकों का इस्तेमाल। बर्थ कण्ट्रोल पिल की कुछ किस्में, शरीर में बैठाये गए कुछ गर्भ
निरोधक, और गर्भ निरोधक इंजेक्शन का इस्तेमाल, पीरियड कब आता और कब जाता है, उस पर असर कर सकता है
2) प्री मेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर (पीरियड के होने के पहले भारी असंतोष )- ये पी एम् एस का कभी कभी घटने वाला पर कष्टमय रूप है जो ३-८ % औरतों को होता है ।
प्री मेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर के आसार
डिप्रेशन, खौफ के दौरे, आत्महत्या के ख़याल, रात को नींद ना आना, बार बार रोना आना, पीरियड आने के कुछ १० दिन पहले चिंता की लहर
3) एनीमिया/ अरक्तता - यानी खून में हीमोग्लोबिन प्रोटीन की कमी, जो आयरन/ लौह के आभाव से होती है ।
एनीमिया के आसार
थकान, ज़र्द त्वचा, चक्कर आना, सांस का रुकना, दिल का असाधारण रूप से तेज़ धड़कना, खासकर एक्सरसाइज के बाद, खून का भारी बहाव, बालों का झड़ना । कभी कभार जो बहुत ऎनेमिक हैं, को बर्फ खाने की तलब होती है
4) पोली सिस्टिक ओवेरियन डिसीस (पी सी ओ डी) : इसे पोली सिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम भी कहते हैं। ये एक आम हार्मोन सम्बंधित गड़बड़ी है, जिससे अंडाशय फूलसकते हैं, और साथ में कई छोटे पुटुक (सिस्ट्स) बन जाते हैं।
पी सी ओ डी के आसार
अनियमीत पीरियड, बहुत दर्द होना, मुंहासे होना, शरीर के बालों का बहुत बढ जाना, खासकर चेहरे के बालों का, सर के बालों का गिरना, वजन बढ जाना
5) एंडोमेट्रिओसिस
ये काफी दर्दनाक परिस्तिथि हो सकती है और अक्सर इस रोग को ठीक से पहचाना ही नहीं जाता ।इसमें होता क्या है कि जो ऊतक तुम्हारे गर्भाशय के अंदर की एक परत है, वो गर्भाशय के बाहर बढ़ने लगता है- या अंडकोष में, या फैलोपियन ट्यूब में या कोख- पेल्विस- के अंदर जो ऊतक की परत है, उसपर ।
एंडोमेट्रिओसिस के आसार
पीरियड्स में दर्द होना, निष्फलता/ इनफर्टिलिटी, भारी मात्रा में खून बहना, संभोग करने पर दर्द होना ।
6) फ़िब्रोइड- तंतुमय
गर्भाशय में या मटर के साइज के या संतरे के साइज के ट्यूमर हो जाते हैं. अक्सर ये कैंसर के कारण नहीं होते और अक्सर इनका पता ही नहीं चलता ।
फ़िब्रोइड के आसार
खून का भारी बहाव, लम्बे पीरियड, एक पीरियड से दुसरे पीरियड के बीच असाधारण खून का बहना, पेल्विस/ कोख/ पेडू में दर्द, कमर के निचले भाग में दर्द ।
7) पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज़ : (पी आई डी)
पेल्विस- पेडू- का सूज जाना। ये बीमारी एक बैक्टीरिया- जीवाणु से होती है। इसकी शुरुआत अक्सर योनी में होती है।और फिर ये कोख के सारे ऑर्गन में फैलती है। अगर ये खून तक फैल गयी तो ये खतरनाक हो सकती है, जान तक को ख़तरा हो सकता है।
पी आई डी के आसार।
पेट के ऊपरी या निचले भाग में दर्द, बुखार, उल्टी, सेक्स या पेशाब करते वक्त दर्द, खून का अनियमित रूप से बहना, योनी से बदबूदार बहाव
8) टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम (टी इस इस) एक कभी कभी होने वाला पर खतरनाक संक्रमण। ये तब होता है, जब जीवाणु खाल पर घाव या कहीं टूटी चमड़ी के रस्ते खून में आ जाते हैं। अक्सर पीरियड के दौरान बहुत सोख लेने वाले टेमपौन ( टेमपौन यानी फाहा जिसे पीरियड के दौरान खून सोखने के लिए योनी में बैठाया जाता है) । टी. एस. एस. से शरीर के अंग का काम करना रुक सकता है, इस से मौत भी हो सकती है ।
टी इस इस के आसार
अचानक तेज़ बुखार, ब्लड प्रेशर - रक्त चाप( ब्लड प्रेशर) का गिर जाना , सर दर्द, झटके, मसल्स- मॉस पेशियों में दर्द, सकपकाहट, हथेलियों और पाँव के तलबों में लाल चक्के ।
जल्दी जल्दी इलाज बताओ!
इन सब के लिए भिन्न इलाज हैं. अगर हर आसार के हिसाब इलाज किया जाए, तो डिप्रेशन के लिए गोलियां हैं, दर्द के लिए पेन किलर्स हैं, पी एम एस , पी सी ओ डी और एंडोमेट्रिओसिस के लिए हॉर्मोन थेरेपी/ उपचार है । पी आई डी और टी ऐस ऐस के लिए शायद एंटीबायोटिक की ज़रुरत पड़े, एनएमईआ के लिए आयरन की गोलियां, ( और हालत बहुत खराब है तो रक्त- आधान/ ब्लड ट्रांसफ्यूशन) । कुछ हालातों में फ़िब्रोइड के लिए ऑपरेशन की ज़रुरत पड़ सकती है। प्लीज़ इलाज के लिए इंटरनेट पर निर्भर मत होना, स्त्री रोग विशेषज्ञ से मिलना, उसे डिसाइड करने देना कि तुम्हें आखिर क्या चाहिए।
बचाओ!! मुझे बीमारी का इलाज नहीं , उसे रोकने का तरीका चाहिए!
यूं घबराने की ज़रुरत नहीं।मूल रूप से स्वास्थ्य और महावार रोज़ मर्रा की स्वस्थ आदतों पर निर्भर है ।पौष्टिक खाना खाना और नियमित रूप से व्यायाम करना तुम्हें स्वस्थ रखेगा, और इस से पीरियड भी समय पर आएंगे।
पर अगर तुम्हें लगे कि तुम्हारे पीरियड वैसे नहीं हैं जैसे होने चाहियें, तो इंतज़ार मत करो! डाक्टर के पास जाओ। जब आराम से रह सकते हो तो परेशानी में क्यों रहो?

- टाइम/ अवधि : आम तौर पर पीरियड हर २८- ३२ दिन के बीच लौट आते हैं. पर ये दो तीन दिन पहले या बाद में भी आ सकते हैं, ये कोई टेंशन की बात नहीं। पीरियड्स अक्सर ४-७ दिनों तक रहते हैं।
- बहाव : ये टिप टिपाहट से शुरू हो सकता है, यानी छोटे भूरे रंग के धब्बे जो एलान के तौर पर आते हैं।इसके बाद बहाव भारी होने लगता है। हर शरीर का हलके- भारी का अपना हिसाब होता है।और भारी बहाव के बाद, वापस वही टिपटिपाहट लौट आती है । ( और हाँ, गर पता न हो, तो बता दूँ- तुम्हारे शरीर से जो बाहर बहता है, वो केवल खून नहीं होता, इसमें टिश्यू ( ऊतक) शामिल होता है, म्यूकस (श्लेम) , खून के थक्के (क्लॉट) भी शामिल होते हैं. ये थक्के टिश्यू के छोटे टुकड़ों सामान लगते हैं।
- भावनाएं : कुछ लोगों के लिए पीरियड्स का आना, जाना, रेडियो में बजते हुए एक गाने सामान होता है। उस गाने की तरह ही, पीरियड्स आते हैं, जाते हैं, सरलता के साथ। कुछ लोगों पर पी.एम.एस .( प्री मेंस्ट्रुअल सिंड्रोम- पीरियड के आने के ठीक पहले या दौरान, मन और बदन पर उसका प्रभाव होता है - इसे पी.एम.एस. कहते हैं) ख़याल गायकी के सामान छा जाता है, शुरू होते ही बढ़ता ही जाता है, और धीरे धीरे वापस सम पर आता है ।पीरियड जब आने वाला होता है, किसी को फुंसियां हो सकती हैं, किसी के पेट में ऐंठन हो सकती है, या पीठ का निचला भाग दुःख सकता है, भावनाओं का उतार चढ़ाव हो सकता है, छातियाँ दुःख सकती हैं, थकान, चिड़चिड़ाहट, निराशा हो सकती है, मूड बार बार बदल सकता है।

- मेनोपॉज ( औरतों के शरीर में जब प्रजनन की सम्भावना रुक जाती है ) का करीब आना- जो कि अक्सर चालीस की उम्र के बाद कभी भी हो सकता है







