खुद को लाजवाब खूबसूरत रांझणा मानने वाले एक किसी ने हाल में मुझसे कहा कि उसका औरतें उसे वास्तव में कभी आकर्षक नहीं लगी हैं। ना नाटी लड़कियाँ, पर दरअसल मैं इतनी ज़्यादा खूबसूरत हूँ कि वो मुझसे ख़ास रूप से आकर्षित है । एक नाटी भारतीय लड़की होते हुए भी मैं और भारतीय लड़कियों से अलग हूँ। अपने इस ईश्वरीयदंड को सोचते ही कह डालने में उसे कोई संकोच ना था... इस आम धारणा के निहित कि जब एक अमीर, खूबसूरत लड़का किसी लड़की से कहेगा की वो कमनीय है, तो वो उसकी बात सुनेगी ही।
मैं घंटों उसकी विवेचना पर हँसती रही। मैं इसकी तुलना किससे करूँ? सही ढंग में मैं इसकी तुलना उस पल से कर सकती हूँ, जब एक इक्कीस साल की लड़की, जिसने अपना ट्विटर अकाउंट सड़क परिवहन और हाईवे मंत्री को समर्पित किया था, एक सुबह उठी और उसने ट्विटर पर मंत्री का मेसेज पढ़ा, कि वो उसके सम्मान में गाज़ियाबाद के एक चुंगीनाका का उद्घाटन उसके नाम पर करने वाला था। जब आप किसी इस कदर बेतुकी बात का सामना करते हो, तो आप समझने लगते हो, कि आपकी आकस्मिक भेंट का लेखा जोखा रखते हुए किस किस्म की सामाजिक और भावनात्मक नींव हैं। कभी कभी तो आपकी उनपर नज़र पड़ने के लिए हालातों को बहुत अजीबोगरीब मकाम तक आना पड़ता है। इश्कबाज़ी में सजीलापन तो होता है, अभिव्यक्ति भी, पर कोई आपसे इष्कबाज़ी कर रहा हो, तो गौर कीजिए... आप पाएँगी कि ज़्यादातर जो चल रहा है , उसे ‘अनोखा-करण’ कह सकते हैं- यानि आपको अनोखा घोषित किया जा रहा है।
आप अगर विषमलैंगिक हैं, तब तो पुरुषों की नज़रों और लफ़्ज़ों में आपको आसाधारण होना होगा, एक वो ही तो आपकी कामुकता का राज़ हैं।
जब मैं सोलह साल की थी, मुझसे सात साल बड़े एक लड़के ने कहा कि वो मुझे इसलिए पसंद करता था क्योंकि मैं उसकी उम्र की लड़कियों से ज़्यादा स्मार्ट और मेच्यूर थी।
हाई स्कूल के मेरे बायफ्रेंड ने मुझसे कहा था कि वो मुझे इसलिए नहीं पसंद करता था क्योंकि मैं कमनीय, स्मार्ट और मज़ेदार थी ( किशोरावस्था पौरुष मानसिकता वाकई कमाल तरह से जटिल होती है), बल्कि इसलिए क्योंकि उसकी पहचान में, मैं वो अकेली लड़की थी जो ये सब थी ।व्यायाम में स्कूल में वो अव्वल नंबर पर था, ऐसे में ये तो आप जानते ही हो, कि ऐसे लड़के के लिए बहतरीन के कम कोई लड़की ना चलेगी। कौमार्यवस्था के बोझिल सच में एक ये भी है कि आप वो ही कामुकता का रस ले पाते हैं जो आप दूसरों में जागृत करते हैं। ये तो यूँ था जैसे इस मर्द एक्सरे (xray) समान दृष्टिकोण ने मुझे ढूँढ निकाला था, खुरदुरी अवस्था में छिपा हुआ हीरा थी ना मैं। पुरुष की कामना का मज़मून थी मैं, ( या पुरुष कामना का?)। यही एक ज़रिया था जिससे मैं अपनी बुद्धिमता को समझ सकूँ, क्योंकि पुरुषों के पक्षपात को अखंडनीय सत्य समझा जाता है।
काम्य होने की इस भावना का अभिवेदन उस नुकीले से सन्दर्भ पर होता जहाँ अपने सहपाठी लड़कों का मेरे साथ और मेरा, उनके साथ प्रतियोगात्मक प्रतिरोधी रिश्ता था। नौवी कक्षा में मैंने स्कूल से नियुक्त सलाहकार ( counsellor) से शिकायत की कि एक लड़के ने क्लास में मेरी ओर ब्लेड फेंका था। उसने जवाब दिया था " वो एक अपरिवर्तनवादी ब्राह्मण परिवार से आता है, एक मुसलमान लड़की के उससे ज़्यादा नंबर आएँ, उसे इस बात की आदत नहीं है- और शायद तुम उसको आकर्षक भी लगती हो।” जैसे मेरी उम्र बढ़ने लगी, मैं ये समझ गई कि मैं अपने शारीरिक बालों पर मज़ाक, या मेरे पिता के तालिबान का हिस्सा होने पर मज़ाक रोक नहीं सकती, सो मैंने निश्चय किया कि मैं अपना ध्यान हर उस चीज़ में उत्तीर्ण होने पर लगाऊंगी जिनमें मेरा हुनर था- और ऐसी बहुत सी चीज़ें थीं।लड़कों का ये सोचना कि मैं आकर्षक थी एक और किस्म की जीत थी, जैसे मैं भेड़ियों के झुंड की रानी मक्खी थी, या ऐसा ही कुछ संभ्रमित सा।
ये जो मेरी निज की छवि थी, जिसे मैं प्रक्षेपित करती थी, मेरे कौमार्य की मेरी दुर्बल चेतना का नतीजा थी। मुझे लगता था कि मैं लड़की बनने के फंडे को पार कर चुकी हूँ- क्योंकि प्रकट रूप से तो यूँ लगता था कि मेरे बारे में कुछ बहुत ज़्यादा अजीब और डरावना था। और मैं खुद भी इस ख़याल से जूझती रही हूँ, कि मुझे क्या वाकई में लड़की होना था, या कि मैं लड़की थी भी। मैं मामूली रूप से गोरी और पतली हूँ, और मेरे अनोखे मुस्लिम नाम के साथ कुछ यूँ होता है कि मैं आकर्षण या फिर फ़तह का मज़मून बना दी जाती। मुझे हमेशा इस विचार की लोई में समेट दिया जाता कि मैं प्यारी दिखती हूँ...मैं इस ख़याल से आतंकित सी हो जाती क्योंकि इसका मतलब था कि मैं पुरुषों को ख़ुशगवार थी, और मैं इस बात से भी चिढ़ती थी कि वो मुझे ये ‘विशेषाधिकार' प्रदान कर रहे थे।
यही कारण है कि मैं "तुम्हारा काम्य तुम्हारा अपना है" वाला मंत्र कभी सेल्फ़ -लव के मंत्र के रूप में अपना नहीं पाती हूँ। अगर पुरषों द्वारा निर्धारित ये 'हॉट गर्ल' होने के 'विशेषाधिकार' ना होते, मुझे शायद याद ही ना रहता कि मेरी बॉडी भी है। दूसरी बात ये, और ये तो बड़ा मसला है, कि मैंने वैसा आचरण नहीं अपनाया जैसा जवान, कनमीय लड़कियों को अपनाना चाहिए और मैं ये केवल क्यूट होने के लिए नहीं कह रही हूँ। जो उत्पीड़न मुझे हुआ है और जिस दादागिरी का मैंने सामना किया है, बिना उसका बखान करे, ये कहूँगी कि मैं ये बहुत जल्दी समझ गई थी कि लाजवाब समझे जाने में मज़ा तो है, पर उसके ठीक बाद वो हिंसा आती है, वो प्रायोज्य होने की अनुभूति, क्यूँकि आप उस कदर अदूषित नहीं हो, जैसे आपको होना चाहिए, उस तरह की 'भली लड़की' नहीं हो, जिसकी पुरुष संरक्षणा करना चाहेंगे। एक ऐसा समय आया जब विजय चिन्ह सी पत्नी की आधुनिक आकृति- यानि गर्लफ्रेंड बनने से मुझमे एक तेज़ चिड़चिड़ाहट होने लगी। आदमी मुझे जितना प्रबल समझते, मैं समझती कि मैं उतना ही प्रायोज्य बन गयी थी, क्योंकि मेरा काम्य होना इसपर निर्भर था कि मैं ठीक वैसी ही हूँ, जैसे वो चाहते थे, उससे आगे पीछे और कुछ ना होऊँ।शुरूआत में जो मज़ा भी आया वो इस बात से नहीं था कि मैं" और लड़कियों जैसी नहीं थी", ये था कि मैं लड़कों से बहतर थी। पर ये बस मेरी बेवकूफी और मेरा आशावाद था, लड़के इस तथ्य को क़ुबूल ही नहीं करते, और वो अपने को जितना जोखिम में पाते, उतना ही क्रूर हो जाते।
अपने बारे में इस तरह भूतापेक्ष में बात करना मुश्किल है, अपनी ज़िंदगी के कितने सालों को यूँ सूक्ष्म रैखिक रूप देकर, ताकि मैं वर्तमान के बारे में और आसानी से बात कर सकूँ।
इन पेचीदा घुमावदार तरीकों को अपनाना, ताकि अपने आप को पहचान सकूँ, इनको मैं हॅना ब्लाक Hannah Black के इंटरव्यू के इन शब्दों में शायद वर्णित कर सकती हूँ, कि " शायद मैं औरत ही हूँ, क्योंकि तुम मुझसे वैसा सुलूक करते हो जो तुम औरतों से करते हो "।
हाँ, यूँ लगता था, पूर्ण रूप से अशक्त होने का वो आभास। मैं नारी सुलभता का शक्ति और अभिव्यक्ति का स्त्रोत होने की बात समझ सकती हूँ, पर सच तो यह है कि मेरे कौमार्य में ऐसा कोई तजुर्बा नहीं था। मेरा दिल टूटने लगा था, ये सोचकर कि मैं लड़कों की हमजोली नहीं हूँ, कि मैं उनसे आकर्षक नहीं हूँ, कि मैं उनके लिए आकर्षक नहीं हूँ।
ये अजीब शर्मनाक अवस्था थी, "भाड़ में जाओ" और "मुझे अपना लो" के बीच में फँसी हुई। मैं अपने को आप ही बार बार ये समझाते हुई पाती हूँ कि मैं बेचारी नहीं हूँ, क्योंकि आदमियों को वो भी तो चाहिए।या मैं ये कहती हूँ कि एक बीस साल की लड़की आकर्षक ना होने की चिंता से ग्रस्त- ये तो दुनिया की सबसे आम समस्याओं में से है.. पर अपनी भावनाओं के आगे एक प्रौढ़ चिड़चिड़े आदमी का स्वर अपनाने से भावनाएँ कहीं चली नहीं जातीं ।
मसला ये भी है: मैं संभोग कैसे करूँ, जब कि मैं वो सारी अवधारणायें तोड़ने को आतुर हूँ, जिनके बूते पर आदमी मुझे काम्य पाते हैं- क्योंकि मुझे अब तक ये तो पता चल गया है कि काम्य लड़कियों का ये सूची पत्र बस इसलिए बना है कि तुम्हें और छोटा दिखाया जाए, वो तुम पर लेबल डाल देते हैं , ताकि उन्हें तुम्हें देखना ना पड़े। मैं सेक्स कैसे करूँ जब मुझे अपने में कुछ काम्य ही नहीं लगता? क्योंकि जब तुम ये स्पष्ट देखने लगते हो कि आदमी तुम्हें किस तरह से देखते हैं, संभव है तुम देखे जाने से ही आतंकित हो जाओ।
कुछ महीनों पहले मेरे दोस्त उस जोश का ज़िक्र कर रहे थे जिसमें तुम हर राहगुज़र को हम बिस्तर बनाना चाहते हो। उनकी पसंदीदा 'टाइप', कल्पना, इच्छा की वो तीव्रता, इच्छा की अश्लीलता। मुझे याद है मेरे पास कुछ कहने को नहीं था, इसलिए नहीं कि मैं इस सब से नाराज़ हो गई थी, बस मुझे नहीं लगता था कि कोई मेरे हम बिस्तर बनने की इच्छा का साझा बनेगा।तुम दूसरे से क्या मोल-तोल करोगे जब तुम अपने काम्य होने, किसी के हम बिस्तर बनने के लायक होने की बात अपने आप ही नहीं मान पा रहे? तुम औरों को काम्य कैसे समझोगे जब तुम अपने बारे में ये सोच ही नहीं पा रहे कि कोई तुम्हें काम्य समझ सकता है? दूसरों को कैसे देखोगे जब अपने को देखने से तुम हिचकिचाते हो?
मैं हाल में 'टेक्नौलॉजी और प्रेम शृंगार' को लेकर एक पॅनॅल पर थी और एक लोकप्रिय विश्व व्यापी ऑनलाइन डेटिंग ऐप के भारतीय चॅप्टर के हेड ने कहा, कि बीस बीस और तीस के बीच की उम्र के नौजवानों ने अपने अब तक के जीवन में इतनी डेटिंग डाली है जो 40 के ऊपर के लोगों ने अब तक नहीं की ।
ये अफ़साना अक्सर सुनने में आता है कि उदारीकरण के पश्चात जन्मे हम बालकों के पास कामुकता के बारे में अभिव्यकित करने की और संपन्न शब्दावली है, और उन भावनाओं को संपन्न करने के नये रास्ते भी। पहले ये प्रेशर कि काम्य होने का सबूत संभोग करने से है, ऊपर से अब ये एक पीढ़ी का दूसरी को एक नया अजीब सा अपराध बोध देना " जब मैं तुम्हारी उम्र की थी तो एक ही चॅनेल आता था.: दूरदर्शन.."।
मुझे याद है मैं खूब हँसी थी ये सोच कर कि मैं किस कदर परिपूर्ण रूप से बिना सेक्स की भारतीय लड़की हूँ, उद्वत रूप से घूमते हुए टेकनीकलर डाइयल के पीछे एक ब्लॅक आंड वाइट चॅनेल के भाँति, छिपी हुई।
संभोग के आभाव में निलंबित सा होना, तब जब तुम्हारे दोस्त ह या तो मेशा किसी संबंध में होते हैं, या दो रिश्तों के दरमियाँ, या आकस्मिक संबंध जोड़ते हुए, जिसकी वजह से तुम जितना भी सेक्स के बारे में सकारात्मक सोच रखो, शरीर के बारे में सकारत्मक सोच रखो, स्वयं से प्रेम रखो- सत्यम् शिवम् सुंदरम् समान ये तीनोंविचार, सांत्वना पुरस्कार समान ही लगते हैं।
ललितता को नकारने के चक्कर में मैंने अपने को लैंगिकताहीन कर दिया था, अपनी काम्यता को उधेड़ देने की मेरी इच्छा एक तरीका बन गयी मेरा अपने आप से ये कहने का कि मैं सुंदर नहीं हूँ, और जब आप अपने आप से इस तरह की नफ़रत सी करने लगते हो, तो आप देखते हो कि कैसे सामाजिक और वैयक्तिक अंतः क्रियाएँ कुछ इस तरह से संरचित हैं, कि बार बार आपके अपने बारे में वो नकारात्मक ख़याल लौट आते हैं। मैं बगल में लक्ष्यहीन खड़ी रहती जब लोग मेरी दोस्तों को डेट पर बुलाते, कई बार ये सोचती कि आख़िर मुझ में क्या कमी है, कि मुझे कोई उस किस्म का ध्यान नहीं देता। ये भावना, रूप अदल बदल कर आती, अलग परिस्तिथीयों में लौटती, पर अंत वो ही होता, मेरा वो सदाबहार सा असम्मत भाव।
एक व्यामोह कि लोग आपको घिनौना समझते है, संभोग करने के योग्य नहीं, ऐसी भावना जो बिल्कुल भी कुलीन स्त्री सुलभ नहीं।
मुझे डर लगने लगा कि सब मुझे देख रहे हैं, मुझ पर टिप्पणी कर रहे हैं। मेरे लिए सार्वजनिक जगहों पर घबराहट का दौरा पड़ना आम होने लगा, या मैं बेकाबू रूप से रोने लगती, और मुझे कहीं बाहर जाना होता तो मैं घंटोंअपने को तैयार करने में बिताती। कई दिनों तो मुझे अपने कमरे से निकल कर बाथरूम का प्रयोग करने से भी डर लगने लगता। एक दफ़ा मुझे किसी से अनुत्तरित प्यार हो चुका था, ऐसी कामना जो मुझमें एक चक्र छोड़ गयी थी, जो आशा, बेकरारी और बहिष्करण के बीच घूमता रहता। मैं सुंदर हूँ कि नहीं, ये सवाल मुझे इतना निचोड़ देता है, मुझे खुरछ कर मुझे इतनी हानि पहुँचाता है : मुझे ऐसी दुनिया में हम सबका रहना अच्छा नहीं लगता जहाँ ऐसे सवाल अहमियत रखते हैं।
मैं चाहती तो हूँ कि काम्यता या सुंदरता जैसी कोई चीज़ ही ना हो, पर मैं जानती हूँ कि ऐसा सोचना बेकार है, तो फिर हाँ, मैं भी बदसूरत होने से ज़्यादा सुंदर होना पसंद करूँगी, पर किसी से ये बात मत कहना, ठीक है, क्योंकि जैसा कि हम जानते हैं, हम सब ही सुंदर हैं…
नारीवादक होकर 'हॉट' होने की विडंबना को कैसे सुलझाएँ? जब तुम अपने 'आप' को पाने के सफ़र पर हो, इंसान होने के नाते, 'नारी' होने के नाते? या बदसूरत होने की कोशिश में अपने को समर्पण कर दो, उसे अपनी ज़िंदगी का व्याख्यान बना लो, या यूँ सोचो कि तुम्हारे बारे में सब कुछ सुंदर है, वो भी व्याख्यान के तौर पर। चाहो हालाँकि तुम्हें लगे कि खुद तुम चाहने योग्य नहीं। चाहो, भला अपने आप में तुम अपने को इस समय हद से बदसूरत पा रहे हो; चाहो, भला तुमने अपने को कभी इतना भद्दा, इतना सेक्स के लायक नही पाया है। अगर मैंने कोई एक चीज़ सीखी है, वो ये है कि अपने व्यामोह, अपने संविभ्रम की आवाज़ सुनना सीखूं, वो मुझसे क्या कह रहे हैं?
मैं अपने को किस जैसा बनने की नसीहत दे रही हूँ, ताकि मैं अपने आप को यूँ दंडित करना बंद करूँ? किसका सुख, किसका बल? मैं विषमलैंगिक रोमांस के ज़रिए अपने को चोट पहुँचाते आई हूँ। इन दो मस्तूल के बीच में झूलती रहती हूँ: एक ओर उस सब को अस्वीकार करना चाहती हूँ, जो मुझे बताया गया है, कि मुझे इस प्रकार से होना चाहिए। और फिर अपने आप को अस्वीकृत महसूस भी करती हूँ, क्योंकि मैं कभी 'वो' लड़की थी भी नहीं।
मुझे ‘ख़ास लड़की’ की इमेज से कुछ राहत मिली, पर फिर वो हिंसा भी तो है, वो दिल का टूटना, वो व्यग्रता, ये सोच कर कि तब क्या होगा जब ये खुलासा हो जाएगा कि मैं ख़ास नहीं हूँ। मैं चाहूँगी कि मुझे आदमियों की नज़र से रत्ती भर सुख ना मिले, क्योंकि तब मुझे आदमी ना होने के दुख से छुटकारा मिलेगा। पर अलगाव के बारे में बात करना ऐसी हालत में मुश्किल है जब ऐसा कुछ स्पष्ट नहीं है जिससे आप अनुरागित हो सको ।
फिर वो जटिल ख्वाब भी है जिसे मैं देखती हूँ, जिसमें बावजूद पित्त्रसत्ता के, और बावजूद विषमलैंगिकता के, मुझे प्यार हासिल होता है।मैं डेटिंग की इस दुनिया से बाहर रहना चाहती हूँ, इन चहरों और बदन को आँकने वाली नज़रों से दूर, इन झूठ और टालने की आदतों से परे जिनके अनुष्ठान बना दिए गये हैं।
तुम कितना सेक्स करते हो और कितनी जल्दी, मुझे इस सब से कोई मतलब नहीं।कई बार डेटिंग की आलोचना करते हुए लोग नैतिकता की भाषा का इस्तेमाल करने लगते हैं, और मैं, मैं एकदम कूल किस्म की लड़की हूँ, अविचलित, सच!
मैं बस ये पता करना चाहती हूँ की आख़िर काम्य होने का मतलब क्या है, और मुझे ऐसा क्यों लगता है, कि मेरा मेरे जैसा होना मुझे संभोग करने लायक ही नहीं छोड़ता। शायद सबसे ज़रूरी बात, मैंने ये सीखा है कि अस्वीकरण से मैं पुरुष अवसाद का कोई स्थिर नमूना ना बन जाऊं, ताकि अपने को अधिकार और दुरुपयोग के दो मस्तूलों के बीच फँसा ना पाऊँ । अस्वीकृति, शारीरिक रूप से बहुत तीव्र असर करती है। जिन दिनों तुम उसे महसूस करते हो, तुम उस अस्वीकृति की भावनाओं में डूब जाते हो और उसमें छिपी एक तीव्र हाजत होती है जो रस्ता मांगती है।
मैं इस बात से भी ख़ौफज़दा थी कि मैंने एक लड़के को बोल दिया कि मेरे मन में उसके लिए भावनायें थीं और मैं प्रतिबध होने के लिए भी राज़ी थी, (पर हाँ, वो विवाह किस्म की नहीं!) और उस प्रतिदान के आभाव में, जिसके मैं ख्वाब देख रही थी, मैं आसक्त, निर्विघ्न हो गयी थी, और उसकी लक्ष्मण रेखाओं का मान नहीं कर रही थी। इस सब को सुलझाने की एक ऐसी जगह भी है जो बदले के भाव से नहीं जुड़ी है, ना अपनी ओर, ना दूसरे की ओर।
मैं इस किस्म की इनायत को कस के पकड़े रहती हूँ, और इससे मुझे मदद भी मिलती है पर मैं ये भी सोचती हूँ कि कैसे गुस्से से भी पुश्तीकरण होता होगा। तो कुछ दिन मैं गुस्सा भी होने की कोशिश करती हूँ, पूर्ण रूप से क्षमाशील नहीं होती। मेरे पास सारे जवाब नहीं हैं, क्योंकि मैं खुद स्क्रिप्ट लिखने की कोशिश में हूँ, जो अपने आप में नारीवादता की विजय है। इससे एक मार्ग दर्शन होगा, या मेरी ये उम्मीद है, जो हमें अपने से उस उदारता और संरक्षण से प्यार करना सिखाएगा जैसे अपने ख्वाबों में हम औरों से करने का अभ्यास करते हैं।
मुझे हमबिस्तर कौन बनाएगा! ( या : 'तुम और लड़कियों जैसी नहीं)
लेख: ग्रुन्थस ग्रमपस
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