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वो (गुप्त) पोर्न जो मुझ में आग लगाता है

असल ज़िंदगी में मेरी जो भी सेक्सुअल पसंद है, क्या मेरी फेंटसी वहीं तक सीमित हो ?

मेरे कुछ राज़ हैं, खुद के सीक्रेट्स | जिन्हें मैं खासतौर पर अपनी फेमिनिस्ट दोस्तों के साथ शेयर नहीं करती| वो तो बस #loveislove वाले हैशटैग्स का ठप्पा लगा कर मेरी वासना पर ही पानी फेर देते हैं| पर मेरी इस सीक्रेट् दुनिया में विद्रोह की आवाज़ हर वक्त सुनाई देती है| जो समय समय पर मुझे कन्फेस करने को मजबूर करती है- कहने को तो मैं cis gender नहीं हूँ (cis gender: वो लोग जो खुद को अन्दर से उस ही जेंडर का मानते हैं, जिस जेंडर का उन्हें जन्म पर बतलाया गया)| मैं मर्दों की तरफ आकर्षित भी नहीं हूँ| पर मुझे हेटेरोसेक्सुअल(आदमी-औरत) पोर्न देखना काफी पसंद है| मेरा ज़मीर खुद इस बात को नहीं मानता| मैं एक लेस्बियन हूँ, और मैंने वासना और शारीरिक सुख से जुड़ी कई बातचीतों में जम कर हिस्सा लिया है | क्लासरूम में भी और पार्टी ख़त्म होने पर, धुएं से भरे कमरों में भी | मेरी सेक्स लाइफ समलैंगिक, फेमिस्निस्ट लोगों की आज़ादी के लिए आदर्श उदाहरण है | जिसका भार मैं खुद महसूस करती हूँ| मैं कभी सोचती हूँ कि मेरे साथ घंटो पलंगतोड़ सेक्स के बाद मेरी पार्टनर के बिस्तर पर बिछी चादर का जो हाल होता है, उसे देख कर पोर्न विरोधी फेमिनिस्ट लोगों की रातों की नींद उड़ जाएँ | उन चादरों सी उलझी हुई मेरी कामुक इच्छाएँ हैं|  चलो सीधा सवाल करते हैं : क्या हम जो पोर्न देखते हैं, उससे ये साफ़ साफ़ पता चल सकता है कि हमारी लैंगिक और जेंडर पहचान क्या है ? क्या हम में से कोई भी इतना सरल है? क्या अपने पोलिटिकल दायरों में चुपचाप बैठे रहने का कोई पोलिटिकल आदेश दिया गया है, और ये भी कहा गया है कि सब कुछ- रीयलिस्टिक /यथार्थवादी ही होना चाहिए ? वासना का विषय काफी उलझा हुआ है|  पहचान किसी भी केटेगरी में डाल कर नहीं समझी जा सकती|  मैं पोर्न जिस तरह देखती हूँ, अगर उस के अनुसार हर क्वीयर इंसान के पोर्न देखने को समझा जाए, तो ये गलत होगा | मेरा अनुभव मेरा  है | मैं ऐसी सोच से दूर उड़ जाऊंगी जो कि किसी एक क्वीयर इंसान के तजुर्बे को सारे क्वीयर लोगों का सामान्य सच माने| पाँच साल पहले मैंने पहली बार पोर्न गूगल किया था|  तबसे लेकर अब तक मैंने पाया है कि मैं बार बार वो वीडियो क्लिप्स देखती हूँ जिनमें एक पुरुष पोर्न स्टार एक महिला पोर्न स्टार से साथ सेक्स कर रहा है |  पता नहीं ये क्लिप्स मुझमे क्यों एक सेक्सी आग लगा जाते हैं  - शायद ये देखा पहचाना सा है, इसलिए l लेस्बियन पोर्न वाले वीडियोस मेरे अंदर अलगाव पैदा करते हैं |  वो पोर्न जो 'सिक्योर' होता है, पेमेंट दे कर देखा जाता है, ख़ास लेस्बियन्स और क्वीयर  लोगों के लिए बना होता है, वो भी मुझे उतना पसंद नहीं आता |  काश कि लेस्बियन पोर्न के प्रति मेरा अलगाव यूं समझाया जा सकता कि ये 'मेल गेज़/male gaze से वास्ता ना रखने का सरल सा मामला है| ( Male gaze: सांस्कृतिक तौर पर, औरतों की सारी तसवीरें, आदमियों के द्वारा बनायी जाती हैं, और उस तरह बनाई जाती हैं, जिससे आदमियों को मज़ा आये | लेस्बियन पोर्न भी अक्सर इस ही तरह, आदमियों से सुख के लिए बनाया जाता है ) | पर ट्रांस नारीवाद के आने से मर्दों की नज़र का मामला और उलझ गया है | अगर लेस्बियन पोर्न मर्दों को मज़े देने के लिए बनते हैं तो आदमी औरत वाले पोर्न का भी तो वही काम है? तो फिर मुझे लेस्बियन पोर्न से ज़्यादा आदमी औरत वाला पोर्न क्यों पसंद आता है? कारण सीधा सरल भी है और नहीं भी:  क्या यह मुमकिन है कि वासना, हमारी फैनटेसी और कल्पना की दुनिया और जिस तरह का पोर्न हम पसंद करते हैं, उसका हमारी सेक्सुअल पहचान से कोई सीधा साधा लेना देना है ही नहीं ? हाल ही में  मुझे अपने पार्टनर से की हुई बातचीत याद आई| जब उसने अपने मोबाइल पर एक लेस्बियन कपल का क्लिप दिखाया था| और बोला कि घंटों और दर्जनों वेबसाइट खंगालने के बाद उसे समलैंगिक कपल को लेकर कुछ ऐसा मिला, जो हम दोनों एन्जॉय कर सकें |मुझे याद है उसने मेरा मायूस चेहरा देखकर जान लिया था कि मेरे दिमाग में उस किस्म का वीडियो चालू था जो मुझे ख़ास पसंद है| मैंने उसको बताया कि मेरी पसंद के आदमी -औरत वीडियो में जो मर्द होते हैं,  वो मेरी तरह ही दिखते हैं| छोटे बाल, चौड़े कंधे| लेस्बियन पोर्न में अक्सर मर्दाना व्यवहार को ज़्यादा दिखाया जाता है, मर्दाना स्टाइल कम दिखता है | अक्सर लेस्बियन पोर्न में समलैंगिक महिलाओं का ही जोड़ा रहता है, जिसमें औरतों वाली नाज़ुकता होती है| उसमें से एक थोड़ामर्दानाव्यवहार करेगी, ज़्यादा उग्र, रोबदार होगी और  दूसरी दबी दबी सी, बात मानने वालीलेस्बियन पोर्न का स्टाइल अलग होता है, जो थोड़ा नाज़ुक होता है पर वो आदमी-औरत वाले पोर्न की ही स्क्रिप्ट फोलो करते हैं | आसान शब्दों में बोलूं तो, मुझे स्क्रिप्ट पसंद है, पर उसको दिखाने का अंदाज़ नहीं | मुझे वो पोर्न पसंद है जिसमें नाज़ुकता, मर्दानगी पर हावी हो| यह लेस्बियन पोर्न में ढूंढना मुश्किल होता है| क्योंकि लेस्बियन पोर्न में मर्दाना पर्सनालिटी वाली होती ही नहीं हैं| और अगर कहीं एक आध मिल जाएँ, तो वो  मरदाना पर्सनालिटी हमेशा दूसरी औरत पर हावी रहती हैं| तो यानी सेक्स की ये कल्पना भी कुछ दायरों में सीमित रह जाती है  | पिछली गर्मियों में मैं छोटे से शहर में अपने घर गयी थी| जहाँ मेरे माता पिता मध्य भारत में स्थित उससे भी छोटे शहर से कई साल पहले शिफ्ट हुए थे| वहाँ मैंने अपनी माँ से इस बारे में  बात की थी| मुझे याद है मैं किचन में उनके बाजू खड़ी हुई थी और वो मेरे पिता, अपने पति के लिए चाय बना रही थी| तभी उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले ही उन्होंने इन्टरनेट पर पोर्न देखा |  “मैं बस औरतों को देखती रहती हूँ |  वो इतना परफेक्ट कैसी दिखती हैं?”, जैसे अपना कोई राज़ बताते हुए उन्होंने कहा| हाँ, मैं मानती हूँ, ये आम माँ-बेटी की बातचीत से कुछ अलग ही थी |मेरे ख्याल से ये मेरी माँ की तरफ से एक कोशिश थी| शायद वो मुझे भरोसा दिलाना चाह रही थी कि पोर्न में औरतों को देखने से उनके लिए वासना नहीं जगती | कि किसी को देखना और किसी को कामुक रूप से चाहने में फर्क है | शायद वो मुझे ये बताना चाह रही थी कि हो सकता है कि मैं अपनी वासना को औरत के शरीर और उसकी बनावट की प्रशंसा करने से कंफ्यूज कर रही हूँ (यानी मेरी समलैंगिकता महज़ एक दौर है, जो गुज़र जाएगा )| शायद वो अपने टेड़े मेढे तरीके से मुझे अंदर से समझने की कोशिश कर रही थी |  या फिर यह मेरी माँ क्वीयर होने का प्रमाण था |  ये सब मुझे साफ़ साफ़ कभी पता नहीं चल सकेगा |   शायद मुझे जल्दबाज़ी में  उसकी बातों का मतलब नहीं निकालना चाहिए|   क्वीयर होना वैसे भी किसी एक परिभाषा में नहीं बैठता| तो मुझे इस मामले के साथ बहुत सारे मतलबों वाली इस क्वीयर जगह पर रहना सीखना चाहिए | जैसे वो जगह होती है न, दिमाग और स्किन और गुप्तांगों के बीच | कल्पना और यथार्थ के बीच | हमारी चाहत और हमारी पहचान के बीच | तुम्हारे मेरे बीच |   रैना खुलकर बाहर नहीं आती है, वो अपने ही दुनिया में रहती है| वो आंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली में लैंगिक अध्ययन की पोस्ट ग्रेजुएट स्टूडेंट है| और उसने हाल में ही मोटरसाइकिल चलाना सीखा है जो उसकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है|  
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