Agents of Ishq Loading...

दिमाग में शोर, पर बिस्तर पे चुपचाप पड़ा, मेरा बदन

What is intimacy like when it’s traumatic to live in your body/head?

 ' डेटटी डेटटी पिग। '(यानी, उफ़, गंदा, सुअर सा)     ये तो मुझे यूं भी हमेशा फील होता है। लेकिन अगर मैं कुछ सेक्सुअल किस्म का कर रही हूँ, फिर तो एरिक एफ़िओनग के गाने के ये बोल और भी ख़तरनाक रूप ले लेते हैं।  बिस्तर में एक विकलांग बदन/मन को कैसे देखा जाए? खासकर जब वो विकलांग बदन/मन मेरा अपना है? जब अपनी सच्चाई के साथ जीना यूं ही इतना दर्दनाक है, तो फिर दूसरे के करीब आते समय क्या होगा मेरे करीबी दोस्त कई बार अपने 20s की बात करते हैं जब  उनके लिए एक साथ कई संबंध बनाना आम बात थी। प्यार में पड़ना, निकलना। पॉलीऍमोरस (polyamorous- एक साथ कई लोगों से सेक्सुअल रिश्ता रखना), टॉक्सिक (toxic/ज़हरीले) बंधनों में बंधे रहना, या फिर एक मीठे, अच्छे, प्यार भरे मज़बूत रिश्ते में होना (जी हां, आज भी ऐसे संबंध बनते हैं) इन सब बातों के दौरान मैं चुप रहती हूं। वैसे आमतौर पर भी मैं एक चुप-चाप टाइप की इंसान हूं। जोश तभी आता है जब एंग्ज़ायटी का दौरा पड़ता है। जब किसी बात की इतनी तेज फिक्र हो जाती है, अक्सर बर्दाश्त के बाहर। मैं चुपचाप इसलिए भी रहती हूँ क्योंकि मेरे पास सारे लोगों जैसे प्यार वाली कहानियां ही नहीं हैं। अपनी एक कविता में, एरिन स्लॉटर लिखती हैंशायद लोगों को प्यार में पड़ने से ज़्यादा, प्यार टाइप के अफसाने में अपना नाम देखना पसंद है। जो उनको प्यार की किसी कहानी का हिस्सा होने का भ्रम दे। मेरी कहानी में लोगों और भावनाओं के होने से ज़्यादा, उनका न होना साफ़ साफ़ दिखता है। जब मैं अपने दोस्तों के साथ बैठकर उनकी कहानियां सुनती हूँ, तो सोचती हूँ कि अगर मैं वहां ना भी रहूँ, तो क्या वो लोग नोटिस करेंगे? फिर मैं ये सब क्यों लिख रही हूं? क्योंकि लड़कों के बारे में सोच-सोच कर अब तक और कुछ नहीं मिला है, बस पेट खराब हुआ है, नींद की दवाइयां लेनी पड़ी हैं। अब लगता है कि इसके आगे भी कुछ मिलना चाहिए। तो सुनिए! बिस्तर में मेरा बदन बस एक-  बदन है। एक बेढंगा बदन जो किसी की भी नहीं सुनता। किसी से फिज़िकल होते वक़्त मेरी बॉडी में कोई एहसास ही नहीं होता। तो फिर समझ ही नहीं आता कि जो हो रहा है मुझे पसंद भी रहा है या नहीं।  मेरा बदन किसी जन्नत का रास्ता नहीं है, बल्कि अपनी एंग्ज़ायटी को दबाकर बैठा, एक ज्वालामुखी है। हाँ बीच बीच में कंधों की जलन से ध्यान बंट जाता है।   एक बार, मेरे गुप्तांगों की तरफ अपने मुंह को बढ़ाते हुए, एक लड़के ने मुझसे पूछा था कि मुझे क्या पसंद है। मैं कहना चाहती थी कि इसके बारे में जितना तुमको पता है, उतना ही शायद मुझे । दूसरी बार, एक लड़के ने बहुत ही प्यार में पूछा, कि क्या मैं गले लगकर सोना चाहती हूं। मैंने मना कर दिया, जबकि हकीकत में, मैं वही चाहती थी। वो मेरी तरफ बढ़ा तो मैं अचानक पीछे हट गई। सच मानो उस समय मैं किसी का स्पर्श पाना चाहती थी। पाके शायद ऐसा लगता कि सब कुछ अपनी जगह पे है, ठीक ठाक l फिर भी, पता नहीं किस समझदारी से मैंने मना किया। मुझे खुद पे ही आश्चर्य हो रहा था कि आखिर मैं जो चाह रही थी और जो बोल रही थी, उनमें इतना अंतर क्यों था।  वैसे तो मैं शायद ही अपने बदन / दिमाग को रोजमर्रा की जिंदगी में बर्दाश्त कर पाती हूँ। लेकिन सेक्स के दौरान मुझे सबसे ज्यादा निराशा होती है। जब भी शारीरिक रूप से किसी के करीब होती हूँ, तो सच ये है, कि खुद पे शर्म आती है। अपने आप से घिन होती है मैं वहां रहना भी चाहती हूं, लेकिन वहां से ना जाने कितने कोसों दूर भाग भी जाना चाहती हूं। ये रुक पाने, नहीं रुक पाने के बीच का संघर्ष मुझे थका देता है। और आखिर में मैं वहां से भाग खड़ी होती हूँ। अगर मैं वहां रहती हूँ, तो हर पल,  हर एक चीज़ को बारीकी से परखती रहती हूँ।  जो बाहर हो रहा है, वो सब भूल के, अपने दिमाग के हर बिगड़े हुए तार का सुर सुनती, महसूस करती हुई। और फिर मेरे दिमाग की कशमकश मुझे थका देती है और मैं उसके सामने घुटने टेक देती हूँ। कुछ देर बाद बदन  भी हार मान लेता है। फिर मैं अपने आप को उन कपड़ों में छिपाने की कोशिश करती हूं जो आसानी से उतरे नहीं। या उन चादरों में घुसने की कोशिश करती हूँ जो आस पास ही पड़ी हैं। इस दिमागी उधेड़बुन के बीच, जब कोई मुझे छूने को आगे बढ़ता है, मुझे ऐसा लगता है कि खुद को काट लूँ। अपनी स्किन को घायल कर दूँ। और मुलाक़ात ख़त्म होने पे अक्सर ऐसा कर भी बैठती हूँ। मेरे बदन  के कई हिस्सों पर आपको उस शर्म के निशान मिलेंगे।  पैनिक अटैक (panic attack- पूरे बदन  में कंपकंपी, तेज़ धड़कन, अनजान डर), लड़खड़ाते कदम और दवाईयों के कभी ना खत्म होने वाले दौरबताओ, किसी अकस्मात हुई सेक्सुअल मुलाक़ात के दौरान, इन सबसे कैसे जूझा जाए? क्योंकि इस तरह की मुलाक़ात में इस बात की उम्मीद रखना लाजमी है कि आपकी इज़्ज़त की जाएगी, पर देखभाल की उम्मीद रखना? मुझे नहीं लगता! मुझे यकीन नहीं कि कैज़ुअल नज़दीकी पलों में देखभाल की बात सामने भी रखी जा सकती है। जब आप विकलांग हैं, उससे बढ़कर, जब आप खुद से घृणा करते हैं, तो  कैज़ुअल संबंधों से क्या और कहाँ तक उम्मीद रखनी चाहिए, मुझे नहीं पता । क्योंकि कुछ मायनों में, ये  मेरी बीमारी की मांग है कि मैं अपने बारे में कुछ ना छुपाऊं, या ‘ धीरे-धीरे राज़ ना खोलूं  इसलिए मैं अपनी सुरक्षा के लिए सामने वाले को जरूरी बातें बता देती हूँ। किसी एप्प (app) पे मेरा 'हेलो' करने का तरीका ये है कि मैं सबसे पहले ये कहूँ - देखो भई, मुझे एंग्ज़ायटी इशू है। अगर मैं बीच में भाग गई तो पर्सनली मत ले लेना।' यानी कि पहली  डेट में जितना बोलना चाहिए, उससे काफी ज्यादा बोल जाती हूँ। और इस तरह, अपनी बात कहते हुए, खुद उसके पीछे छिप जाती हूँ ‘न रहा जाए न छोड़ा जाए’ वाली अपनी अजीब सी हालत तो मैंने बयान कर दी, पर ये नहीं बताया कि जब मैं डटे रहने की कोशिश करती हूँ ,तब क्या होता है l न ये, कि मैं आखिर क्यों भाग जाती हूँ lयानी जिस बात के बारे में लिख रही हूँ, उसको लिखा ही नहीं, उसका सामना  किये बगैर पतली गली से निकल गयी l सेक्स के दौरान भी यही होता है lअब मैं अपनी बेचैनी तो किसी को दिखा नहीं सकती। कोई मुझे ध्यान से देखे, ये मुझे गवारा नहीं lइसलिए अगर छुपने के मेरे आम साधन ना दिखें, तो या तो मैं सुन्न पड़ जाती हूँ या भाग खड़ी होती हूँ। फिर आधी रात को घर आती हूँ और खुद को चोट पहुंचाती हूँ, अपना स्किन काटने लगती हूँ।  ये अपने आप को काटना जैसे एक रिवाज़ बन गया है। ये सारे दाग इस बात की गवाही देते हैं कि मेरे बारे में दूसरों को कितना पता चल पाया है। मेरे एक दोस्त ने एक बार मुझसे कहापर तुम कभी अपनी कहानी की नायिका नहीं बनती।लो ! तो मैं लिख रही हूँ। अपनी कहानी डॉक्यूमेंट कर रही हूँ। और यहां मैंअपनी कहानी की नायिकाहोना चाहती हूँ। भले ही  वो कहानी अभावों और अनुपस्तिथियों के बारे में है!     करिश्मा हमेशा उदासीन रहती है। अभी वो बॉम्बे में एक फुल टाइम जॉब करती है। लेकिन उम्मीद रखती है कि उसे शहर के एक सरकारी आर्काइव/ लेखागार में मक्खियों को मारने की तनख्वाह मिलेगी ।
Score: 0/
Follow us: