एक दिन मैंने अपने एक करीबी रिश्तेदार के कंप्यूटर स्क्रीन पर एक दिलचस्प टैब को खुले हुए देखा और सिर्फ जिज्ञासा की वजह से उसे पढ़ने लगी। मेरी पॉर्न से मुलाक़ात कुछ इस तरह से हुई। मैं १७ साल की थी।
हमेशा से ही एक गुजराती माध्यम की छात्रा होने की वजह से, अंग्रेज़ी भाषा से मेरा सम्बन्ध और उस तक मेरी पहुँच, दोनों स्कूल की किताबों तक ही सीमित रहे थे। कुछ अन्य युवाओं की तरह, मैंने पॉर्नोग्राफी को अंग्रेज़ी वेबसाईट्स के ज़रिए नहीं पाया था। ऊपर से, उस दिन के पहले, सेक्स की दुनिया से मेरी पहचान कुछ अलग तरीकों से हुई थी।
पहला तो एक गुजराती अखबार के ख़ास औरतों वाले अंक में छपी कहानियां थीं। इनमें अक्सर एक शादीशुदा औरत के पड़ोस में किसी अविवाहित पुरुष से प्यार में पड़ने का मसालेदार वर्णन होता था। एक धमाकेदार चक्कर के बाद, औरत को आखिर पछतावा होता और वह अपने पति के पास लौट जाती। कहानियां चित्रों के साथ छपती थीं - हमेशा एक विषमलैंगिक, सिस-जेंडर्ड (ऐसा इंसान जिसकी व्यक्तिगत पहचान और जेंडर दोनों पैदाइशी लिंग से मेल खातें हों) जोड़ा - चुम्मा-चाटी या सेक्स करता हुआ। आज तस्वीरों ने इन चित्रों की जगह ले ली है। ध्यान से इन मुखर/स्पष्ट चित्रों और शब्दों को सोखते हुए, मैं सोचती कि क्या लोग सचमुच ऐसी चीज़ें करते थे, जैसे कि चुंबन और 'पूरी रात एक दूसरे की बाहों में सोना'। लेकिन इन तस्वीरों से मुझे ना कोई फरक पड़ता था और ना ही किसी तरह का कामुक उत्साह महसूस होता था। यह मेरे लिए अन्य साधारण तस्वीरों जैसे ही थीं।
फिर स्कूल की बायोलॉजी/जीव विज्ञान की किताबें थीं। बाक़ी कई सारे भारतीय स्कूलों की तरह, हमारे स्कूल में भी, सेक्स एजुकेशन का मतलब था: १०वी कक्षा की साइंस/विज्ञान की पुस्तक के १६वे अध्याय में प्रजनन प्रणाली, और अंडाशय, अंडा-शुक्राणुओं और सेक्स तक सीमित जानकारी। सिर्फ एक वाक्य था जो भगशेफ/क्लिटॉरिस के अस्तित्व का और महिलाओं को लैंगिक आनंद पहुँचाने का उसका एक मात्र काम का ज़िक्र करता था। मेरे लिए वही संकेत काफी था यह समझने के लिए कि सेक्स, कामोन्माद और आनंद पाने का भी ज़रिया था, ना सिर्फ बच्चे पैदा करने का। पाठ्यपुस्तक अंग्रेज़ी से संस्कृत में अनुवाद किए हुए शव्दों से भारी थी; वह मुझे बच्चों को कैसे पैदा किया जाता है, इसके सिवाय कुछ नहीं सिखा पाईं।
और फिर, गुजराती अखबारों के सलाह देने वाले कॉलम। खुदा जाने वह सवाल कौन लिखता था लेकिन सभी सवाल औरतों की सेक्स से जुड़ी तकलीफें जैसी कि योनी में दर्द, स्नेहन की कमी, बच्चे पैदा करने की असमर्थता आदि से सम्बंधित होते थे। इन कॉलम के ज़रिये मैंने 'संभोग', माने सेक्स के लिए गुजराती शब्द सीखा। इन प्रश्नों को पढ़ते हुए, मेरे पैदाइशी जेंडर से जुड़ी खुद की असहजता उभर कर ऊपर आती। जब से मैंने होश संभाला, तब से मैं जेंडर गैर-अनुरूपक (जेंडर नॉन-कन्फॉर्मिंग यानी कि ऐसी जेंडर अभिव्यक्ति जो समाज के मर्दाना या स्त्री जेंडर आदर्शों से मेल नहीं खाती) हूँ। मैं एक 'टॉमबॉय' जैसी थी - मुझे कभी भी वह ‘टिपिकल लड़की' नहीं बनना था। यह कॉलम मेरी इस भावना को और मज़बूत बनाते थे कि मर्द होना ज़्यादा आसान है क्योंकि सेक्स की बात जब आती थी, तो ऐसा लगता था कि मर्दों को कोई दिक्कतें ही नहीं थीं। मेरे किशोरी जीवन के उस मोड़ पे मैंने ‘इरेक्टाइल डिसफंक्शन ‘(स्तंभन दोष), शुक्राणु की कम गिनती, आदि के बारे में नहीं सुना था। अंग्रेज़ी अखबार और सेक्सपर्ट महिंद्रा वत्सा के कॉलम पढ़ना शुरू करने के बाद ही मैं समझी कि मर्दों को भी सेक्स से जुड़ी तकलीफें हो सकती हैं।
ऐसे एक कॉलम में, मैंने कामासूत्र के सन्दर्भ में कुछ पड़ा। मेरी इतिहास की पाठ्यपुस्तक में भी मैंने खजुराहो और वहाँ की कामुक (इरॉटिक) मूर्तीयों के बारे में पढ़ा था। तो सेक्स पे सलाह देने वाले कॉलम, विज्ञान की पाठ्यपुस्तक और कुछ सूचक कहानियां ही मेरे कच्चे सेक्स एजुकेशन के स्रोत थे, उस दिन तक जब मुझे वह खुली हुई इंटरनेट की टैब मिली।
उस टैब के साथ ही मेरा अंग्रेज़ी पॉर्न कहानियों की दुनिया का पर्यटन शुरू हुआ। एक दिन मैंने सोचा कि गूगल गुजराती पे क्यों ना 'काम कथाओं' की खोज की जाए। कामकथाओं का सरल अर्थ है कामासूत्र की 'कामुक' कहानियां। बहुत सारे वेबसाइट्स खुल गए, उन्हें एक-एक करके देखते हुए मैं एक ऐसी कहानी पे आ पहुंची जो एक बहू, सास और उनकी घरेलू सेविका के बारे में थीं। यह मेरी पहली गुजराती पॉर्न कहानी थी। यह मेरी पहली लेस्बियन (समलैंगिक औरत) कहानी भी थी और पहली दफा मेरा थ्रीसम (त्रिगुट), वॉयरिस्म (यानी कि दूसरों को नंगा या किसी लैंगिक क्रिया में जुटे देख कर उत्साहित होना) और उभयलिंगी औरतों, इन संकल्पों से परिचय हुआ। इस्तमाल किए गए शब्द मेरे लिए बिल्कुल नए थे; मैंने इनमें से कुछ सिर्फ फिल्मों में गालियों के तौर पे एक या दो बार सुने थे।
मैं बस एक के बाद एक कहानी पढ़ती रही - एक खुलासा दूसरे की और ले जाता - गुजराती पॉर्न से भारी एक रंगीन दुनिया। मुझे कॉमिक स्ट्रिप किस्म की एक कहानी की शृंखला मिली जो कहने को तो कामासूत्रा से थी। एक राजकुमार था जिसकी शादी होने वाली थी। तो उसे यह कला सिखाने के लिए ख़ास ऐसी औरत को नियुक्त किया गया जो कामुकता में कुशल थी, खासकर ये सिखलाने में कि औरतों को लैंगिक सुख कैसे दिया जाए। वह राजकुमार से एकतरफा प्यार कर बैठती है। उसी कहानी में, एक शिक्षिका अलग-अलग 'कामासूत्र की कहानियां' सुनाती है, जिनमें से एक कहानी में तीन दोस्त होते हैं, उनमें से एक राजकुमार है, और वह औरतों के गुट को एक गुफा में मिलते हैं। औरतों के समूह में से एक राजकुमारी को इन मर्दों की जनन-क्षमता परखने का कार्य दिया जाता है। सारे पुरुष बखूबी इस इम्तिहान को पार कर देते हैं और उन्हें उस औरतों के गुट में से अपनी पसंद की औरत से विवाह करने का मौका मिलता है। किसी और कहानी में, एक औरत, राजकुमार के कमरे में बनी एक सुराख से, राजा और रानी के बेडरूम में झांकती है, और अपने आप को लैंगिक रूप से आनंदित करने के लिए छूती है।
मैंने एक कहानी पढ़ी जो सौराष्ट्रा-काठियावाड़ क्षेत्र में स्थित थी, एक ऐसी जगह जो अपने सामंती इतिहास और संस्कृति के लिए जानी जाती है। इस कहानी में एक प्रथा का वर्णन किया गया था जहाँ कोई राजा या राजकुमार किसी कुंवारी लड़की के साथ उसकी सुहाग रात पे सेक्स करते हैं। इस कहानी के चित्रण में पोशाक के लिए इस्तमाल किए गए रंग चमकदार और भड़कीले थे क्योंकि यह इस बात का जश्न था कि एक कुंवारी लड़की शाही परिवार के सदस्य के साथ सेक्स करने वाली है। हैरानी कि बात यह है कि इस कहानी में लड़की का कौमार्य भंग करने के कार्य को सम्मान की नज़रों से देखा जाता है और नया-नवेला दूल्हा भी खुश है कि उसकी पत्नी उनकी सुहाग रात किसी राजकुमार के साथ बिताने वाली है।
एक दिन मेरी नज़र एक '३-डी' गुजराती कॉमिक-शृंखला पर पड़ी। एक किस्सा किसी लड़के का अपनी गर्लफ्रेंड की मम्मी के साथ सेक्स करने के बारे में था। दूसरी कहानी एक फार्महाउस में स्थित थी जिसकी मालकिन 'आंटी' को दो युवा बालक एक थ्रीसम में 'फ़क' करते हैं।
लेकिन अजीब बात यह थी (या जो तब अजीब लगी थी लेकिन अब नहीं) - कि मुझे दूसरे लोगों जैसे लैंगिक उत्साह नहीं महसूस हुआ। हाँ, औरतों के कामोन्माद पहुँचते समय कराहने को वर्णन करने वाले ध्वनि अनुकरणात्मक शब्दों (किसी चीज़ की ध्वनि पर आधारित उसको दिया जाने वाला शब्द) से मुझे विचित्र तरीके का गीलापन महसूस हुआ। बस, उतना ही। उसके अलावा, मेरे अवलोकन केवल अवैयक्तिक थे। मेरा मन इन कहानियों को दूसरी साधारण कहानियों की तरह देख रहा था, और शरीर, जेंडर और जाति से जुड़ी बातों पर गौर कर रहा था।
मैंने देखा कि सेक्स ज़्यादातर महल की एकांतता में होता था या फिर किसी गुफा में। शाही खानदानों की कहानियाँ पुरुषों की मर्दानगी और जनन-क्षमता को मान देती थीं, और उनको अधिक-मर्दाने स्वरूप में दर्शाती थीं, औरतों को लैंगिक सुख देने में कुशल; औरतें सभी एक टाइप की थीं, बड़े स्तन, और भरे हुए शरीर, गोरी, और भड़कीले कपडे पहनी हुई। वह एक नीची जाति और वर्ग से थीं, जो उनकी बोली से ज़ाहिर था।
उदाहरण के लिए इस कहानी को देखिए। एक पुरुष वेश्यालय जाता है और उसे सिर्फ मुख्य सेक्स वर्कर के साथ सेक्स करना होता है। लेकिन पूरी रात वह अपने लिंग को पर्याप्त रूप से उत्साहित नहीं कर पाता, जिस वजह से सेक्स वर्कर उसे चिढ़ाती है। उसकी मर्दानगी को चोट पहुँचती है। सुबह वह इस औरत के गुदा में प्रवेश करने का निर्णय लेता है - लेकिन उसे सज़ा देने के लिए वह यह काम बिना किसी स्नेहन के करना चाहता है। दोनों को काफी दर्द और मशक्कत झेलनी पड़ती है, और फिर वह अपने लिंग को प्रोत्साहित करते हुए कहता है, "अब मेरा ठाकोर अपनी ताकत दिखा सकता है।" गुजरात में ठाकोर एक प्रभावी क्षत्रिय जाति है। इससे मुझे समझ में आया कि पॉर्न में जाति और मर्दानगी किस तरह से जुड़े हुए हैं।
मैं एक साथ गुजराती में लिखी वेलम्मा की कहानियाँ और अंग्रेज़ी में सविता भाभी कि कहानियाँ पढ़ रही थी। मैंने देखा कि पश्चिमी पॉर्न के मुकाबले, वेलम्मा और सविता भाभी एक लैंगिक रूप से आकर्षक औरत के अलग/नए आदर्श का निर्माण कर रहे थे। बार्बी जैसी पतली नहीं, थोड़ी भरी हुई, और उम्र में बड़ी।
लेकिन ३-डी कॉमिक कहानियों में, औरतों की 'साइज़ ज़ीरो' आकृति थी और वह रंग-बिरंगे कपड़े पहनती थीं, और आलिशान घरों में रहती थीं। ड्रॉइंग रूम और फार्म-हाउसेस में ही सेक्स होता था। पुरुष, अक्सर उम्र में छोटे होते थे, और इस शान-और-शौकत को देखकर चकित रह जाते थे। उन्हें ऐसे ही ऊँचे-वर्ग के ख़्वाब बुनते हुए दिखाया जाता था।
अब तक मैंने अंग्रेज़ी पॉर्न देखना और पढ़ना शुरू कर दिया था, लेकिन अंग्रेज़ी हो या गुजराती, मेरी प्रतिक्रिया एक ही होती थी: कुछ होता क्यों नहीं मेरे शरीर में? मुझे उस तरह का लैंगिक उत्साह और गीलापन नहीं महसूस हो रहा था जैसा कि सबने कहा था कि मुझे होना चाहिए।
फिर ईव एन्सलेर की 'वजाइना मोनोलॉग्स' से मेरा परिचय हुआ। यह मेरे लिए खुलासा था।
मुझे यह एहसास हुआ कि मैं अपने शरीर को कितना कम जानती थी, कैसे मैंने अपने सबसे सराहनीय अंगों पे ध्यान नहीं दिया था। मैंने इससे ऐसी बातें सीखीं जो मैंने कभी पॉर्न या किसी सेक्स से संबंधित साहित्य में नहीं पढ़ी थीं - कि हस्तमैथुन जैसी भी कुछ होता है जो औरतें कर सकती हैं और करती भी हैं। मैंने सिर्फ यह पढ़ा था कि मर्दों को पॉर्न से कामुक उत्साह होता था, और वही हस्तमैथुन करते थे। वजाइना मोनोलॉग्स की मदद से मैंने अपने ऐसे अंगों का अन्वेषण
किया जिनसे मुझे लैंगिक सुख मिल सकता था और मुझे लगा कि मुझे फिर से पॉर्न पढ़ना चाहिए। यूँ लगा की शायद अब मुझे उससे वह सुख और उत्साह प्राप्त होता होगा जो बाकी सबको होता है।
मुझे एक ऐसी कहानी भी मिली जिसमें एक औरत बैंगन और ककड़ी से हस्तमैथुन करती है, अपने आप और दूधवाले के बारे में सोचते हुए। लेकिन आश्चर्य से - और थोड़ी निराशा भी - मुझे कुछ नहीं महसूस हुआ, बस एक धक्का लगा कि इतनी बड़ी चीज़ें किसी के शरीर में कैसे घुस सकती थीं!
एक और बात थी। जिस तरह से मुझे पॉर्न देखते समय कुछ महसूस नहीं हो रहा था, वैसे ही मुझे किसी व्यक्ति के लिए किसी भी तरह का आकर्षण या लैंगिक इच्छा नहीं महसूस होती थी। मुझे किसी की लालसा नहीं महसूस हुई थी, ना मुझे किसी को छूने का मन हुआ था - असल में मुझे छूने से ही घृणा थी।
मेरे कॉलेज के पहले साल में, मुझे अपने से उम्र में बड़ी एक औरत से भावनात्मक लगाव हो गया था और मेरे साथियों ने इसे 'क्रश' का नाम दे दिया। इस चार साल के एकतरफ़ा लगाव के दौरान, सिर्फ एक बार, चार साल बाद, मुझे इस इंसान को छूने और उससे गले लगने कि ज़रुरत महसूस हुई। छूने से घृणा होने कि वजह से, गले लगना मेरे लिए एक बड़ी बात है और मुझे फिर भी इस व्यक्ति को गले लगने का मन हुआ! लेकिन सिर्फ कुछ मिनटों के लिए। यह लगाव एकतरफ़ा ही रहा और तब से अब तक, मुझे किसी के लिए इस तरह का लगाव नहीं महसूस हुआ है। मुझे आज तक किसी के लिए इस तरह का रोमानी आकर्षण नहीं महसूस हुआ है।
मेरे 'पोस्ट-ग्रेजुएशन' के दौरान ही मेरी एक दोस्त से बात हुई और उसने मुझे अलैंगिकता की रंगावली के बारे में बताया। मैं ऐसे लोगों के अनुभवों के साथ पहचान बना पायी जो अपने आप को 'ग्रे रंगावली' से जोड़ते हैं। जिसका मतलब यह है, कि मुझे अहसास हुआ कि मेरा लैंगिक आकर्षण स्लेटी रंग में, सफ़ेद और काले रंग की बदलती मात्राओं की तरह था। किसी व्यक्ति से मेरा लैंगिक आकर्षण उनके साथ मेरे भावनात्मक लगाव की सीमा पर निर्भर करता है। लैंगिक कल्पना करने की मेरी असमर्थता ने मुझे एहसास दिलाया कि किसी के साथ सेक्स करना या ना करना सिर्फ मेरे 'मूड' पे नहीं निर्भर था । यह सिर्फ लैंगिक आकर्षण की कमी थी, वह इसलिए क्योंकि मुझे उन लोगों से भावनात्मक लगाव नहीं था।
लेकिन अगर मैंने कामकथाओं की दुनिया में प्रवेश नहीं किया होता और इस बात को नहीं समझा होता कि पॉर्न का मैं सिर्फ विश्लेषण करती थी ना कि उससे उत्साहित होती थी, तो मुझे इस उत्साह की कमी का भी कभी एहसास नहीं होता। अगर मैंने पॉर्न नहीं पढ़ा होता, तो मैं इतनी अंग्रेज़ी भी नहीं सीख पाती। और अगर मैंने अंग्रेज़ी नहीं सीखी होती, तो मुझे बहुत अकेलापन महसूस होता, क्योंकि गुजराती में मेरी लैंगिकता का वर्णन करने के लिए कोई शब्द नहीं था!
और मैंने एक और चीज़ सीखी। मैंने उस हलके से गीले एहसास को और गहराई से जानने की कोशिश की, वह एहसास जो मुझे ध्वनि अनुकरणात्मक शब्दों को पढ़के होता था, और इस दिलकश शब्द को पाया - 'कराहना'। मैं विडियो ढूंढने लगी और पाया कि जिस चीज़ ने मुझे आकर्षित किया, वह था ऑडियो पॉर्न - कराहने की आवाज। जब मैंने ईव एन्सलेर को एक हस्तमैथुन करती हुई औरत का अभिनय करते हुए देखा था, तभी मुझे नीचे ऐसे ही गीलेपन का एहसास हुआ था। वह लैंगिक आनंद की शिखर पर पहुँचने की आवाज़, कराहना और घुरघुराना, चिल्लाना, सिसकना और क्या कुछ नहीं, मानवीय शरीर का उस चरम सीमा तक पहुँचने का संघर्ष, यही वह कारक थे जो मुझे हस्तमैथुन करते समय कामोन्माद तक ले जाते थे। लैंगिक संतुष्टि की चरम सीमा तक पहुँचने के संघर्ष को हम सब समझते हैं और इसका अनुभव भी कर चुके हैं। बिना किसी की सहायता के हस्तमैथुन करना और चरमोत्कर्ष तक पहुँचना मेरे लिए बहुत ही स्वाधीन करने वाला एहसास है।
अब मैं अपने आप को एक ग्रे/डेमिसेक्शुअल (ऐसा व्यक्ति जो किसी की तरफ लैंगिक आकर्षण नहीं महसूस करता जब तक कि उनका इस दूसरे व्यक्ति के तरफ कोई भावनात्मक लगाव ना हो) और क्वीअर से जुड़ी हुई, पारस्परिक नारीवादी मानती हूँ, जो पॉर्न का समर्थन करती है और सेंसरशिप के खिलाफ है। लेकिन यह सोचते हुए कि कैसे, अपने ढेर सारे खुलासों के बावजूद, ज़्यादातर पॉर्न कुछ ही किस्म के विषमलैंगिक पुरुषों के हित में ही बनाया जाता है और सेक्स के बारे में इतनी बातों से हमें वंचित रखता है, मेरी आकांक्षा है कि मैं एक ऐसी पॉर्न-कामुक कहानी लिखूँ जो नारीवादी हो, क्वीअर को शामिल करे, और शरीर पे कम से कम गौर करे; क्योंकि एक हद तक, सेक्स और प्यार की तरह, पॉर्न भी हर एक के दिमाग में अलग-अनूठे रूप से पनपता है।
तो, दिल थाम कर बैठिये, मैं जल्द ही अपनी कहानी लेकर आ रही हूँ।
इस काजू (उपनाम) को काजू और किताबें पसंद हैं, और उसमें स्लेटी रंग की एक आभा है।
मैंने गुजरती पॉर्न देख कर जाना की मैं अलैंगिक हूँ
जिस तरह से मुझे पॉर्न देखते समय कुछ महसूस नहीं हो रहा था, वैसे ही मुझे किसी व्यक्ति के लिए किसी भी तरह का आकर्षण या लैंगिक इच्छा नहीं महसूस होती थी।
लेखन: काजू
अनुवाद: तन्वी
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