कुछ कुछ होता है में शाहरुख ख़ान एक ठोस बात कहता है कि प्यार दोस्ती है।
मैं काफ़ी हद तक उससे सहमत हूँ। मेरे दो लंबे अंतराल के रिश्ते रहे हैं, और मुझे लगता है कि रिश्ता शुरू होने के कुछ समय पहले से लेकर रिश्ता ख़त्म होने के कुछ समय पहले तक, मेरा प्रेमी मेरा सबसे अच्छा दोस्त था। क्यों कि शाहरुख जैसे ही मैं भी मानती हूँ कि, “अगर वो मेरा सबसे अच्छा दोस्त नहीं बन सकता, तो मैं उससे प्यार कर ही नहीं सकती”।
मेरा पिछला ब्रेक अप हुए दो साल हो चुके हैं, लेकिन मेरी जिंदगी में प्यार की कोई कमी नहीं है, क्योंकि मेरी जिंदगी में दोस्ती की कोई कमी नहीं है। चूंकि अगर प्यार दोस्ती है - मुझे यह समझने में थोड़ा वक्त लगा कि - फिर तो दोस्ती भी प्यार है, सिर्फ उसमें हम एक दूसरे से कम अपेक्षाएँ रखते हैं।
दो साल पहले, मैं एक ऐसे रिश्ते में थी जिसकी वजह से मैं मेरी ज़िंदगी के निराशा के सबसे बुरे दौर से गुज़री। उस रिश्ते के दो साल के दौरान, मैं मेरे स्कूल के पुराने दोस्तों से धीरे धीरे दूर हटने लगी थी। बोर्डिंग स्कूल में हम सहपाठियों का एक छोटा सा गुट था जिसने दिल्ली के अलग अलग काॅलेजों में दाख़िला लिया। मेरे दोस्त अक्सर एक दूसरे को मिलते, एक साथ समय बिताते और साथ साथ सैरों के लिये जाते। दूसरी ओर, मैं काॅलेज की ज़िंदगी का आनंद उठाने में इतनी व्यस्त थी, थिएटर के ज़रिये और मास्टर्ज़ करते समय फ़िल्में बनाने के ज़रिये, कि मैंने ‘एक दूसरे के साथ समय बिताने’ को बहुत कम महत्त्व दिया। बीच बीच में मैं किसी की सालगिरह मनाने पहुँच जाती। पर धीरे धीरे यूँ हुआ कि मेरे दोस्तों की ज़िंदगी में ऐसा बहुत कुछ हुआ, जिससे मैं अंजान रही और अपनी ज़िंदगी के बारे में भी मैं उन्हें बहुत कम बता रही थी। ऐसा होते हुए भी मैं जानती थी कि तब भी वो मेरे करीबी दोस्त थे, बस मेरे पास उनके लिये फिलहाल समय नहीं था।
काॅलेज के पाँच साल काफ़ी आसानी से गुज़रे। मैं ख़ुद में ही व्यस्त रही, और यह मेरे लिये बहुत अच्छा रहा। मेरे दोनों काॅलेजों में मैंने अच्छे दोस्त बनाए, और रिश्तों और नए दोस्तों के बीच पुरानी दोस्ती कहीं बॅकग्राउंड में, अपनी जगह बनाए बैठी थी। मेरे पुराने दोस्तों के लिये मेरा प्यार तब भी मज़बूत था, लेकिन मैं दोस्ती में सब कुछ माफ होने के उसूल का काफ़ी फायदा उठा रही थी।
काॅलेज ख़त्म हुआ और काम शुरू हुआ। वयस्क कामकाज के जीवन में एक साल बिताने के बाद मैं बहुत बड़ी मुसीबत में पड़ गयी थी। मैं मेरे काम से नफ़रत करती थी, लेकिन उसे तुरंत नहीं छोड़ सकती थी। और तो और मैं एक अपमानजनक रिश्ते में थी, जिसे छोड़ने के लिये मैं हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। मैं समझ गयी कि मेरा मेरे दोस्तों से दूर होने का एक कारण मेरा रिश्ता था। मैं उसके साथ जितना भी समय बिताती, वो उसके लिये कम होता था। अगर एक शाम मैं मेरे दोस्तों के साथ बिताती, तो वो खिसिया कर मुझ पर गुस्सा करता । । इसलिये मैं मेरे दोस्तों से और भी दूर रहती। ऊपर से यह बात भी थी कि मेरे किसी दोस्त को नहीं पता था कि मेरा उस लड़के के साथ रिश्ता था। चूंकि हम दोनों एक काॅलेज में थे, हमने उस समय तय किया था कि हम हमारे रिश्ते को छिपा कर रखेंगे। तो हमारा रिश्ता बहुत देर तक सबसे छिपा रहा और फिर ऐसे लगने लगा कि इतने वक्त तक इसे राज़ बनाकर रखा है, अब बताना तो बहुत ही देर से बताना होगा। ऊपर से उसे इस बात का खुलासा करने से मानो एक किस्म का भयंकर ड़र था।
तो जब मुझे उदासी ने घेर लिया, मुझे राह दिखाने के लिये कोई नहीं था। ऐसा नहीं कि मेरे कोई दोस्त नहीं थे, लेकिन मैं इतने समय तक उनके प्रति स्वार्थी रही थी (ऐसा मेरा मानना था) कि मैं अब उनसे किस मुँह से मदद माँगूँ, मुझे समझ नहीं आ रहा था। एक रात, आॅफ़िस में बुरे दिन के बाद, मैं मेरे बिस्तर पर बैठी थी, रोने जैसी हालत में और अकेला महसूस करती हुई। इसलिये कि मेरे प्रेमी ने मुझे मिलने से इंकार किया था चूंकि मुझे आॅफ़िस से घर आने में देरी हुई थी (ऐसा बर्ताव निंदापूर्ण रिश्ते की जड़ है)। मैंने फ़ोन उठाकर कीरत को मेसेज भेजा, मेरी स्कूल की दोस्त जो नज़दीक रहती थी लेकिन जिसे मैं कम ही मिलती थी।
‘हाय, क्या चल रहा है’?
‘कुछ नहीं। तुम बताओ’।
‘कुछ नहीं, घर बैठे ऊब रही हूँ’।
‘घर आओगी’?
‘ठीक है’!
बात इतनी आसान थी। मैं उसके घर गयी, थोड़ी वाइन पी, और ज़्यादातर मेरे काम को गालियाँ दी।
फिर अगले दिन मैंने वापस उसे मेसेज भेजा।
‘क्या मैं थोड़ी वाइन लेकर आऊँ’?
कीरत का घर ‘फ़्रेंड्ज़’ धारावाहिक में सेंट्रल पार्क के सोफ़े जैसा है।
वहाँ हर समय लोग रहते, उसके दोस्त, उसकी बहनों के दोस्त, जो सब आगे जाकर एक दूसरे के दोस्त बन गये थे। इस प्रकार उसके घर पर हरदम जाने पहचाने लोगों का एक समूह सा रहता, जो नित्य बढ़ता और बदलता रहता। यहाँ मेरे एकांत से मुझे बड़ी राहत मिलती। इधर, मैं जो करती थी उसकी सारे वक्त कोई निंदा नहीं करता रहता, उल्टा, यहाँ लोग मेरे चुटकुलों पर हँसते। मैं हँसती, ऐसा लगता अरसों बाद। यह लोग मुझसे बहुत अलग थे, कभी कभी वो ऐसी फिल्में और किताबें पसंद करते जिनसे मैं अपरिचित थी और शायद अपनी ज़िंदगी में वो अलग चीज़ों को महत्त्व देते हों। लेकिन मुझे उसकी परवाह नहीं थी, वो आकस्मात् उस रूम में रहते और मुझे वहाँ रहकर मज़ा आता। तब तक मुझे लगता था कि मुझे ऐसे लोगों के बीच रहने की ज़रूरत थी जो मेरी सोच जागृत करें, जिनकी वजह से मेरा मानसिक और व्यावसायिक विकास हो, लेकिन मैं ग़लत थी। मुझे सिर्फ ऐसे लोगों के आस-पास होने की ज़रूरत थी जो मैं जैसी थी उसे स्वीकार करके, उस पर प्रतिक्रिया दें, जिससे मुझे मुझ जैसे बनने की और प्रॅक्टीस मिले।
इसके बाद, जब भी मेरा प्रेमी मुझे गुस्से में मिलने से इंकार करता, मैं चैन की साँस लेती, मैं कीरत के घर जाती, वाइन पीने और गपशप करने के लिये तैयार। मैं ख़ुद को धीरे से वापस जोड़ने और समेटने लगी। मैं ऐसी स्थिति में थी जहाँ मेरा ख़ुद के बारे में मत मेरे प्रेमी के मत और आशाओं पर निर्भर था। अब मैं अपने बहुमुखी रूप को ख़ुद दाद देने लगी।
मैंने जब कीरत को बताया कि मेरा किसी के साथ रिश्ता था, तब वो चकित नहीं हुई। मैंने जब उसे कहा कि मैं मनश्चिकित्सा ले रही हूँ, तब वो चकित हुई। उसने मुझे पूछा कि क्या मुझे उससे मदद मिल रही थी, मैंने कहा हाँ मिल रही थी। उसे लगा कि उसे भी ऐसी मदद की ज़रूरत थी। मुझे पता चला कि वो भी एक जटिल रिश्ते से जूझ रही थी। मैंने मेरे चिकित्सक को और चंद दोस्तों को मेरे रिश्ते के बारे में बताया था। जैसे मुझे इन सबने सुझाया था, आख़िरकार मैंने मेरे बाॅय फ्रेंड के साथ ब्रेक अप कर दिया। मेरी उस कठिन परिस्थिति में मैंने मेरे दोस्तों की ओर हाथ बढ़ाया और उनसे भावात्मक सहारा लिया। मुझे नहीं लगता कि ऐसे किये बिना मैं मेरे बाॅय फ्रेंड के साथ ब्रेक अप कर पाती और अपनी तीव्र उदासी का सामना कर पाती। हम सब दोस्तों ने एक दूसरे को बड़ा सहारा दिया। उन आदमियों को गालियाँ देना जिन्होंने हमारा दिल दुखाया था, और एक दूसरे को आश्वासन देना कि हमारे मोटापे में भी हम अच्छे दिख रहे थे! मेरी सहेलियों की दोस्ती में मैंने बड़ी आत्मीयता महसूस की, क्योंकि हालाँकि हर एक की ज़िंदगी बहुत अलग थी, पर चूंकि हम एक ही उम्र के थे, हमारे अनुभव मिलते जुलते थे।
जब आप २५ या २६ के होते हो और ख़ुद से और अपनी ज़िंदगी से ख़ुश नहीं होते, तब अपने किसी साथी का आश्वासन आपकी बहुत मदद करता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि एक अच्छी दोस्ती में सिर्फ तुम्हारे अहम को आश्वासन मिलता है। एक विश्वसनीय दोस्त को तुम्हें तुम्हारी ग़लतियों और कमियों के बारे में बताना आना चाहिये, और सबसे करीबी दोस्तों को तुम्हारे साथ कभी कभार कड़वी बात या कठोर बर्ताव का साहस भी करना चाहिये।
जैसे वक्त बीतता गया मैंने मेरे कुछ और दोस्तों को मेरी उदासी और बेताबी के बारे में बताया, और ऐसा करने के बाद उन्होंने भी मुझे उनकी पीड़ा बतायी। किसी और की मुसीबतें जानने से और अपनी मुसीबतें उन्हें बताने से बड़ा आराम मिलता है।
कई लोग यह सोचते हुए बड़े होते हैं कि दोस्ती हमारे जीवन में एक कम दर्जे का रिश्ता है। वो मानते हैं कि दोस्ती के बजाय हम अपने काम में तरक्की और प्रेम संबंधों को प्राधान्य देते हैं। लेकिन दोस्ती बनाए रखने में भी परिश्रम लगता है। कई लोग, जो अपने परिवारों से दूर रहते हैं, दोस्ती के ऐसे बंधन बनाते है जो उनके परिवारों के साथ के बंधनों जितने, या उनसे भी ज़्यादा घनिष्ठ होते हैं।
जब हम प्रौढ़ दुनिया में अपनी जगह बना रहे होते हैं, हम पाते हैं कि वहाँ हमारा मूल्य उतना ही रह जाता है जितना हम औरों के सामने पेश कर पाते हैं। इससे अलग, दोस्ती में हमें ‘हम’ बने रहने की छूट मिलती है। दोस्त तुम जो हो उसे प्यार करते हैं, ना कि उसे जो तुम कर पाने की क्षमता रखते हो। दोस्त तुम्हारे जीवन के लाॅग बुक जैसे होते हैं। उन्हें तुम्हारे बारे में इतना पता होता है पर वो तुम्हारी आलोचना नहीं करते, वो तुम्हारे विचित्रताओं और कमियों पर लगातार मज़ाक उड़ाते हैं, लेकिन वो तुम्हें दूसरों के इच्छा अनुसार बदलने के लिये कभी नहीं कहेंगे।
और, दोस्ती सिर्फ एक सहारे का माध्यम नहीं है जिसकी ज़रूरत हमें मुसीबत के समय लगती है, वो हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का एक अत्यावश्यक हिस्सा हैं। माना कि कभी कभी, हम हमारे दोस्तों के साथ सिर्फ उनके फेसबुक के मीम या स्नॅपचॅट या इंस्टा के पोस्ट के ज़रिये संपर्क करते हैं, लेकिन वो हमारे रोज़ की ज़िंदगी का हिस्सा हैं। दुर्घटना रोज़ नहीं होती और हालांकि मैं आभारी हूँ कि मेरे ऐसे दोस्त हैं जिनके कंधे पर सर रखकर मैं रो सकती हूँ, मैं इसलिये भी आभारी हूँ कि मैं उनके साथ गेम आॅफ थ्रोन्ज़ देख सकती हूँ। दोस्त यूँ ही तो होते हैं, कि उनके साथ फ़िल्म देख सको, नए रेस्टोरेंट में जा सको, साथ में पिज़्ज़ा खा सको, या फिर किताबों में से पसंदीदा उद्धरण और मीम बाँट सको - ताकि हम यह जान सकें कि हम कौन हैं, और फिर वो बन सके।
और अज़ीज़ रिश्तों जैसे, दोस्ती के रिश्तों में बहुत लगाव होता है। उनमें उतना ही काम भी करना पड़ता हैं। उनमें नियम और वादे होते हैं। और वो प्रेम संबंध या व्यावसायिक सफलता जितने या उनसे ज़्यादा मायने रखते हैं। और तो और, दोस्तों के होने से तुम और शांतचित्त और आत्मविश्वासी बन सकते हो, और उस वजह से शायद तुम्हारी ‘लव लाइफ’ भी बिन कारण जटिल होने के बजाय अच्छी, सुलझी हुई हो सकती है।
हाँ, मोहब्बत के रिश्ते में एक ख़ास बात है और ऐसा रिश्ता मुझे चाहिए, उस प्यार का इंतेज़ार करते हुए भी, ज़िंदगी अच्छी चल रही है। फिलहाल, मेरे सबसे घनिष्ठ संबंध मेरी सहेलियों के साथ हैं। हम कईतरीकों से वक्त ज़ाया करते हैं, जैसे ‘एली रे एली’ वाली शामें जहाँ हम लड़कों और कपड़ों के बारे में बात करते हैं। कभी कभी हम सारी रात जागकर हमारे स्क्रिप्ट पर चर्चा करते हैं जो आगे जाकर हमें भारत की ‘इंडी’ फ़िल्म इंडस्ट्री में मशहूर बनाएंगी। मैं अक्सर याद करती हूँ कैसे मैंने अपने आप को सबसे अलग, एक अकेले में ला छोड़ा था । तब मैं अनिश्चित थी कि क्या ऐसा कोई था जिससे मैं मदद मांग सकूँ, और मैं ख़ुश हूँ कि मैंने दोस्त बनाने की कोशिश में कोई कसर नहीं छोड़ी।
गीता एक २५ वर्षीय फ़िल्म निर्माता है।
दोस्ती प्यार हैः ख़ुद को खोया था पर दोस्त मिल गये
If pyaar is dosti, it took me a while to understand that that dosti is also pyaar, but more forgiving.
गीता द्वारा
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