यह लेख हमारे #SexActually सीरीज का हिस्सा है। हमने औरतों से अपने सेक्स के सबसे यादगार किस्से को हमारे साथ शेयर करने को कहा था। इस कहानी की लेखिका कहानी के समय २० वर्ष की थी और अब २२ वर्ष की हैं। यह कहानी उनके पहले यौन सम्बन्ध के बारे में है, और कैसे वो उससे आगे बढ़ीं। मैं 20 साल की हो चुकी थी और अब तक मेरा पहला किस भी नहीं हुआ था। यह मेरे लिए बहुत शर्म की बात थी। मैं चिंतित थी कि समय के साथ जब मैं और बड़ी होती जाऊँगी तो ये और भी अजीब होता जाएगा। जहाँ मेरे अधिकांश करीबी दोस्त नियमित तौर पर सेक्स करते थे, वहाँ मुझे सिर्फ महिला मित्रों को नशे की हालत में दिए गए कुछ किस के अलावा कोई अनुभव नहीं था। लेकिन तभी फ्रेंड्स ग्रुप में टिंडर का दौर आया। सभी उस पर सक्रिय थे, मैं भी। हाँ, मेरे लिए, बिना किसी अनुभव के उस रास्ते जाना, थोड़ा डरावना था। यहाँ ऐसे लोग थे जो सीधे-सीधे सेक्स करना चाहते थे, और मैं उन्हें सचमुच ये कहना चाहती थी कि "पहले थोड़ी बातचीत करते हैं और हाई-स्कूल बच्चों की तरह ज़रा धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं।" खैर, अंत में मैं आर. (R) से मिली। हम बंगलौर में कहीं मिले। खाने के बाद जब हम एक पेड़ के नीचे बैठे, मैं भांप चुकी थी कि वो बातचीत तो बस एक बहाना था, दरअसल वो मुझे किस करने वाला था। हालांकि, मैं उससे उस हद तक जुड़ भी नहीं पाई थी। लेकिन फिर भी मैं तैयार थी, मैं अब अपने पहले किस में और देर नहीं करना चाहती थी। इसके बाद वो मुझे रेस्तरां से बाहर ले गया, और जब सड़क पर चल रहे थे, उसने मुझे कई बार होटल रूम में चलने को कहा। मैंने हर बार मना किया। तभी उसे एक पार्क दिखा, मैं भी थोड़ा और अनुभव करने को उत्सुक थी और इसलिए हम वहाँ चले गए। और फिर जैसे ही हम थोड़ा लो लपाटा, उसके हाथ सीधे मेरे जांघों के बीच चले गए। मैंने उसे रोका। उसके हाथ फिर मेरे शर्ट पे गए। मैंने उन्हें जाने दिया। लेकिन मुझे वो पसंद नहीं आ रहा था। वो मेरे स्तन को बुरे तरीके से दबोच रहा था, जैसे उन्हें खींचकर अलग कर रहा हो। मुझे दर्द हो रहा था, और इसमें कुछ भी सेक्सी नहीं था। उसके हाथ फिर से मेरी जांघों के बीच गए, फिर से मैंने उसे रोका। बार-बार वो वही करता रहा, जब कि मैंने बोलकर भी जाहिर कर दिया था कि मुझे वो सब पसंद नहीं आ रहा था। अब जब मैं 22 साल की हो गई हूँ, ये मेरे लिये एक लाल झंडे का संकेत बन गया है कि एक साथी छोटी-छोटी चीजों में भी सहमति का महत्व समझने में सक्षम नहीं है। इस सब की राजनीति अगर नज़रंदाज़ कर दें , फिर भी, मुझे ऐसी स्थिति, जहां सहमति का ध्यान ना रखा जाए, इसलिए परेशान करती है क्योंकि मैं खुद को उस जगह रख के देखती हूँ। अगर मेरा पार्टनर किसी भी तरह की असुविधा दर्शाता है, चाहे वो छोटा सा ही इशारा हो, मैं समझ जाती हूँ, रुक जाती हूँ। जिस चीज़ से मेरे पार्टनर को आनंद ना मिले, मुझे भी वो करने में कोई प्रसन्नता नहीं होगी। हाँ, ये एक लाल झंडे वाला इशारा होना चाहिए, लेकिन उस समय मैं इतनी समझदार नहीं थी, और इसलिए दोबारा उससे मिली। और मुझे वो थोड़ा बहुत पसंद भी था। वो मज़ाकिया था। मैं अपना पहला किस भी कर चुकी थी। टिंडर के माध्यम से मैं और पुरुषों से भी मिली, लेकिन किस से आगे कभी बात आगे बढ़ी ही नहीं। और मुझे लगा कि मैं अब आगे बढ़ना चाहती थी। लेकिन मैं ये भी मानती हूँ कि इसके पीछे मेरा रवैया अभी भी वैसा ही था- "बस अब ये करके देख लेना चाहिए, देख लेना चाहिए कि ये सब होता कैसे है ताकि मैं आगे के लिए तैयार रहूँ।" मुझे नहीं लगता है कि यह पूरी तरह से बेवकूफी वाली सोच थी। ठीक ही थी। कभी-कभी आप इंतजार करना चाहते हैं और कभी-कभी बस सीखने-समझने के लिए कुछ चीज़ें कर जाते हैं। यह सब आप पर निर्भर करता है। लेकिन मैंने महसूस किया कि इस परीक्षण-प्रक्रिया के साथ मैं पूरी तरह से सहज नहीं थी। सच कहूँ, तो भले ही मैं शर्ट और पेंट उतरने के बाद जो चीज़ें होती हैं उनके लिए तैयार थी, लेकिन मेरी इच्छा थी कि सबकुछ धीरे-धीरे आगे बढ़े, कोमलता से, एक दूसरे के स्पर्श और एक दूसरे के शरीर के अन्वेषण में डूबते हुए। जब हम होटल के कमरे में घुसे, उसने बिना देर किए मेरी शर्ट और ब्रा खोल दी। ये ऐसा जोश था जिससे मैं सम्बद्ध नहीं हो पा रही थी। वो मेरे लिए नया था। ये सब भी मेरे लिए नया था। मैंने उससे कितनी बार कहा था कि मैं बिल्कुल धीरे -धीरे आगे बढ़ना चाहती थी। उसने मेरा हाथ पकड़कर कर कहा भी कि "हाँ, ठीक है।" फिर कुछ देर की यौन संलग्नता के बाद वापस वो मेरी पेंट खोलने लगा। मैंने मना किया। उसने मुँह घुमाकर, नाक-भौं चढाकर कहा, "ओह, मैं शायद बहुत बदसूरत हूँ, इसलिए तुम अब ये सब और नहीं करना चाहती हो।" आज मुझे अफसोस होता है उसकी बकवास रिरिआहट पर मैंने उसे उसी समय क्यों नहीं डांटा। लेकिन पता नहीं, उस समय मैं इतनी परेशान थी, घबड़ाई हुई थी कि मैंने एक ऐतिहासिक डायलॉग का सहारा लिया, जो वास्तव में सच भी था- तुम नहीं, इसकी वजह मैं हूँ! लेकिन उसने अपना नाटक जारी रखा, और आखिर में मैंने हार मान ली, मेरी पैंट नीचे आ गयी। उसी नियमितता से मेरी पैंटी भी नीचे आ गयी। उसने पूछा कि मैं गीली क्यों नहीं हुई हूँ। उस समय तक मैं इतनी उलझी और घबराई हुई थी कि मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। अब यह स्पष्ट था कि ये सब मेरे लिए बिल्कुल सेक्सी नहीं था। और अब तक तो उसे भी ये स्पष्ट हो जाना चाहिए था। और ये कि उसकी चिढ़ाने वाली लाईनें कि वो बदसूरत है या उतना अच्छा नहीं है, अजीब तरह की एक भावनात्मक जोड़-तोड़ थी। मैं आज भी शर्मिंदा महसूस करती हूँ कि मैंने इतनी आसानी से हार मान ली। लेकिन समय के साथ मैंने खुद को ये सब ना समझ पाने के लिए माफ़ करने की कोशिश की है, ये सोचकर कि इस आकस्मिक मुठभेड़ से ही मैं ये सब समझ भी पाई। जब मैंने हाल ही में एक लड़की द्वारा अज़ीज़ अंसारी के साथ उसके सबसे बुरे डेट की कहानी पढ़ी, तो मैं रो पड़ी थी। मैं रोई जब उसने उस समय का वर्णन किया जहाँ अज़ीज़ उसे धकेलकर अपने शिश्न तक ले जाता था। मैं इस बात पे रोई कि ना चाहते हुये भी उसे मुखमैथुन देना पड़ा था। मैं रोई जब ये सब होते ही उसने अपनी दोस्त को मैसेज भेजा ,"मुझे पुरुषों से नफरत है।" क्योंकि आर. (R) के साथ मुझे भी ऐसा ही महसूस होता था। मैं इस सब में कुछ हद तक शामिल ज़रूर थी, लेकिन ऐसा लगता था कि उसके लिए जो जरूरी था, वो बस वही था- सेक्स। उसे कोई मतलब नहीं था कि मैं कैसा महसूस करती हूँ, वो इस सब पर बिल्कुल ध्यान नहीं देता था। रात भर वो मेरे हाथ को अपने शिश्न की ओर खींचता रहता था, भले ही उसे छूने का मेरा मन ना हो। मेरे सिर को धक्का देकर नीचे ले जाता था, जबकि मैं वहाँ नहीं जाना चाहती थी। मैं गीली नहीं होती थी तो वो चिकनाई (lubricant) का इस्तेमाल करता था। और आख़िरकार वो मेरे अंदर घुस जाता था, मेरे दर्द पूरी तरह से नज़रंदाज़ करते हुए। इस रात के बाद मैं काफी दिनों तक किसी पुरुष से मिलना नहीं चाहती थी। सेक्स की जो तस्वीर मेरे मन में बन चुकी थी, वो मुझे पसंद नहीं आ रही थी। मैं अपनी कल्पनाओं और उंगलियों के साथ ही बेहतर थी। मैं मानती हूँ कि कुछ समय के लिए तो मुझे खुद से ही घृणा हो गई थी। खासकर जैसे-जैसे मैंने महसूस किया कि कैसे वो मुझे वो सब करने के लिए मजबूर करता था, जो उसे संवेदनशीलता और नैतिकता के आधार पर करना ही नहीं चाहिए थी, और कैसे मैं इतनी बेवकूफ थी कि ये सब समझ नहीं पाई। मुझे लगा कि अगर मेरी जगह मेरे दोस्त होते तो जब पहली बार उसने रोना-धोना शुरू किया था- "ओह, तुम आगे नहीं बढ़ना चाहती क्योंकि मैं बदसूरत हूँ", तभी उसे छोड़कर वहाँ से निकल पड़ते। लेकिन मैंने भी अपने आप को माफ़ कर दिया है। इस अनुभव से मुझे ये सीख मिली कि आप कितना क्या चाहते हैं उसके बारे में ज़रूरत से ज्यादा स्पष्ट होना ही बेहतर है। अगर आप शिश्न नहीं छूना चाहते हैं, आपको कोई ज़रूरत नहीं है छूने की (अगर वो ऐसा दिखाए कि इससे वो आहत है, या ऐसा सोचे कि आप लज़्ज़लु हैं, तो सोचने दीजिये। भाड़ में जाये, साला! क्या फर्क पड़ता है।) अगर आप कुछ अपने मुंह में कुछ नहीं लेना चाहते हैं, तो मत लीजिये। ऑनलाइन डेटिंग के युग में, आकस्मिक (casual) संबंधों के प्रति खुले रहने का एक दबाव है। मुझे लगता है कि आकस्मिक रिश्तों की परिभाषा, जो कि ज्यादातर टिंडर के माध्यम से मिले पुरुष समझ पाते हैं, वो लगभग भावनाहीन है- और मुझे इस भावहीन भाषा से परेशानी होती है । उस संदर्भ में किसी भी तरह का स्नेह दर्शाना भयानक सा माना जाता है। लेकिन पता है, मुझे एहसास हो चुका है कि इस तरह के आकस्मिक रिश्ते मैं नहीं बना सकती हूँ। मैं बस किसी को अपना बॉयफ्रेंड बुलाने के लिए रिश्ता नहीं बनाती हूँ, मुझे देखभाल और स्नेह की खोज रहती है। और मैं ये सच मानने में कोई शर्म नहीं महसूस करती हूँ। अब एक छोटी सी सकारात्मक कहानी के साथ मैं ये टॉपिक बंद करूँगी। मुझे किसी और को मिलने में 2 साल लगे। इस बीच मेरे कुछ छोटे-मोटे अफेयर हुए, पर मैं उन्हें लेकर कभी बिस्तर तक नहीं ले गई। लेकिन इस व्यक्ति के साथ, शारीरिक संबंध भी दैविक था। यह ऐसा अनुभव था जिसे बयान करने के लिए शब्द कम पड़ रहे थे, जैसे मेरे पास वैसी भाषा ही न हो। मैं उसे मेरे हाथ और मेरे मुँह से हर जगह छूना चाहती थी। कभी-कभी दरवाजा बंद होने के साथ ही मैं चाहती हूँ कि मिनटों में वो मेरे कपड़े उतार दे। मुझे उसका शिश्न छूना और उसे मुखमैथुन देना, दोनों ही पसंद हैं। हालांकि आर. (R) के दो साल बाद तक मुझे लगा था कि मुझे इस चीज़ से हमेशा नफरत ही रहेगी। और मुझे उसका हर जगह छूना भी पसंद है। बिस्तर में सब कुछ एक अन्वेषण सा लगता था, एक सीखने की प्रक्रिया, एक दूसरे के शरीर के रहस्य- कहाँ किसे गुदगुदी होती है, कहाँ तिल हैं, कहाँ जन्मचिन्ह हैं, गर्दन के कौन से भाग को चूसने से सबसे ज्यादा आनंद आता है। मुझे लगता है कि बिस्तर में मुझे हमेशा से इसी चीज़ की तलाश रही है और रहेगी। एक सह-अन्वेषण (co-discovery), जहाँ आमोद-प्रमोद से ये पता चले उसके छूने से या खुद को खुद ही छूने से क्या हो सकता है, अब सेक्स का मतलब तो मेरे लिए यही है। मुझे अफसोस नहीं है कि मैंने आर (R) के साथ वो सब हो जाने दिया। मुझे उस अनुभव से काफी कुछ सीखने के लिए मिला। सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि अब मुझे अच्छे से पता है कि मुझे क्या चाहिए। मैंने जाना है कि वास्तव में मुझे सेक्स की परवाह नहीं है अगर सामने वाला व्यक्ति मुझे बस मुखमैथुन देने की मशीन समझे। उन्माद के पलों से ज्यादा मेरे लिए वो महत्वपूर्ण है जिससे मैं उत्तेजित हो सकूँ, हम एक दूसरे को जान सकें, एक दूसरे को सहयोग दे सकें और एक दूसरे को समझ सकें। "हमने सेक्स की प्रक्रिया शुरू कर दी, जैसा कि हम हर बार मिलने पर करते हैं। पता नहीं मेरे दिमाग में क्या आया, और अचानक ही मुझे उसे ये बताने की तीव्र इच्छा हुई कि मैं उसे कितना प्यार करती हूँ।"
मैंने पहली बार सेक्स करके यह सीखा की सेक्स कैसे ' नहीं ' करते।
ऑनलाइन डेटिंग के युग में, आकस्मिक (casual) संबंधों के प्रति खुले रहने का एक दबाव है।
लेखन : जास्मिन
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