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औरतें अपनी मर्ज़ी या नामर्ज़ी कैसे जाहिर करें ।

चाहे कुछ भी हो जाए कम से कम मर्ज़ी मर्ज़ी मर्ज़ी होनी चाहिए

चाहे कुछ भी हो जाए कम से कम मर्ज़ी मर्ज़ी मर्ज़ी होनी चाहिए हो सकता है आपने हमारा नया वीडियो देखा है :लव इन द गार्डन ऑफ कंसेंट / इश्क़ के गार्डन में मर्ज़ी है मिनिमम,जो सेक्स को लेकर लड़कियों की मर्ज़ी होने या नहीं होने के टॉपिक पर एक आइटम नंबर है ? यह एक ऐसा आइटम नंबर है जिसके सामने और आइटम नंबर टिक ही नहीं सकते। अभी तक नहीं देखा आपने ? अरे, तो अभी के अभी देखिए!   यह एक ऐसा गाना है जो सहमती/मर्ज़ी के बहुत ही नाज़ुक विषय पर है। यह गीत नशीली घुन और चुलबुले लवज़ों में बात करता है । इसकी फिल्मिंग एक मिनिएचर पेंटिंग की तरह दिखते हरे-भरे बगीचे में हुई है, जहां तारों- सितारों के नीचे लोग प्यार में नाच रहे हैं ।इस वीडियो में बहुत से ख़ास मेहमान भी हैं और वीडियो का ‘दी एन्ड’ भी बहुत ख़ास है। 2016 में हमने एक वीडियो बनाया था जो आप सबको बहुत पसंद आया था- The Amorous Adventures of Megha and Shakku in the Valley of Consent  (मर्ज़ी की वादियों में शक्कू और मेधा के प्रेम और जोखिम भरे कारनामे) यानी #SuperhitConsentLavani। ये वीडियो हमने संगीत बारी (एक एन. जी.ओ) के साथ मिलकर बनाया था। और इस बार अपने इस नए वीडियो (“प्यार के लिये इच्छा /मर्ज़ी के बगीचे में”) के लिए, हमने “निरंतर” से हाथ मिलाया है। “निरंतर” एक नारीवादी एन. जी.ओ. है। हाल ही में उन्होंने जेंडर बेस्ड हिंसा पर एक जांच की थी। हमने उनकी इस जांच के आधार पर अपनी बात कही। उनकी रिपोर्ट के मुताबिक़ हमें इस बात पर भी बात करनी चाहिए की किस तरह, जिन लोगों की सेक्शुालिटी को लेकर लीक के हटकर  पहचान है ( वो समलैंगिक लोग, क्वीर लोग, या एक मरदाना सी लगने वाली औरत या फिर ऐसा कोइ आदमी जो बहुत नरम है, भी हो सकते हैं) , उन्हें अक्सर इसकी वजह से हिंसा का सामना करना पड़ता है । इस सब को ध्यान में रखते हुए,  इस वीडियो के ज़रिए हम मर्ज़ी के विषय पर बातचीत को और आगे ले जाते हैं । इस टॉपिक को और गहरा करते है । और यूँ, मर्ज़ी के मुद्दे पर आगे कदम दर कदम बढ़ते हुए, उसके मुश्किल पहलुओं पर बात करते हैं। यूँ समझ लीजिए कि हम एक कमल के फूलों के तालाब में उतर रहे हैं। विषय को गंभीरता से लेते हुए इसके उन पहलुओं पर भी बात करते हैं  जो पानी में तैरती जड़ों की तरह उलझे हुए हैं। जैसे कि: अलग- अलग रिश्तों और हालातों में मर्ज़ी के भिन्न चहरों को समझना । कई महीनों के काम के बाद,12 अगस्त को हम सब कला स्टूडियो में इकठ्ठे हुए। उन सभी लोगों के साथ जिन्होंने इस मज़ेदार वीडियो पर हमारे साथ काम किया था। और वहां  आप में से कुछ हमारे प्यारे एजेंट्स भी थे। जो इस विडीओ के लॉन्च से पहले ही उसे चोरी छुपे देखने को आये थे । इस समारोह का एक खास हिस्सा था, इस गाने को लिखने वाले अविनाश दास और इस वीडियो की डायरेक्टर (एजेंट्स ऑफ इश्क़ की फाउंडर) पारोमिता वोहरा से बात-चीत।चर्चा की शुरुआत परमेश शाहानी द्वारा हुई। परमेश गोदरेज इंडिया कल्चर लैब से जुड़ेे हैं। तो बातचीत में इस बात पर ख़ास ज़ोर दिया गया कि बॉलीवुड के गानों के स्टाइल में बना ये वीडियो आखिर-  कैसे बनाया गया? यह फैसले कैसे लिए गए कि जिस मुद्दे पर लोग इतनी कम बात करते हैं उसको किस प्रकार दिखाया जाए? ये वो मुद्दे हैं जैसे कि - मर्जी के अलग - अलग रूप, स्त्री की इच्छाएं,  यौन हिंसा । और आखिर में, इस पर भी बातचीत हुई कि कला के ज़रिये मर्ज़ी के इस पेचीदे मुद्दे पर कैसे बातचीत की जा सकती है । अगर हम सहमती / मर्ज़ी की बात करते हैं, तो आज की तारीख में भारत के रूमानी/सेक्स/यौन जीवन में ऐसे बदलाव आ रहे हैं जो पहले कभी नहीं आये थे। डेटिंग ऐप्स जैसे टिंडर ने चुनाव की, फ़ैसले की, और अनबोली तहज़ीब की एक पूरी नई दुनिया सामने खड़ी कर दी हैं । #मी टू जैसे आंदोलनों ने सहमती/मर्ज़ी से जुड़ी सारीे बातचीत को ही बदल दिया है। इसे बहुत निजी मामला बताकर और साथ साथ इससे जुडे कई जटिल पहलुओं को सामने लाकर। एक तरफ भारतीय युवा इस प्यार, मोहब्बत और सेक्स के खुले माहौल वाले बगीचे में बैठते हैं, पर वहां उन्हें नये रिश्तों के सही गलत और मर्ज़ी की उलझनों का भी सामना करना  पड़ता है। जिनके बारे में कभी भी आसपास बात होती ही नहीं। कुछ भी हो लेकिन मर्ज़ी/सहमती एक मुश्किल शब्द है। यदि हम इस पर बात भी करते हैं तो इसे किसी बने- बनाये ढांचे में फिट कर देते हैं । और इस पर बात भी हम तब ही करते हैं जब कहीं इसका उल्लंघन होता है, उस से पहले नहीं। पर मर्ज़ी देने या लेने को हम क्या पोसिटीवली नहीं देख सकते? किसी बात पर अपनी मर्ज़ी पोसिटीवली ज़ाहिर करना - यह आम जिंदगी में कैसे किया जाए ? मर्ज़ी आखिर क्या होती है- अक्सर हमारे पास  दिखाने के कोई उदाहरण ही नहीं होते हैं। अगर हम मर्ज़ी के अलग अलग उदाहरणों से दुनिया को भर दें, तो क्या हमारी दुनिया में और खुलापन और आराम आ जायेगा? सहमती के लिए एक सही वातावरण बन पायेगा? इस वीडियो में हम अलग-अलग स्तिथियों को दिखा रहे हैं , जहां लोग अपनी सहमती दे रहे हैं । हम चाहते थे कि वीडियो के ज़रिये एक ऐसी दुनिया की रचना करें जहां मर्ज़ी मांगना या देना, आम बात हो । इसलिए हम इस बात से ही शुरूआत करते हैं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस प्रकार के प्यार में हैं- गे, लेस्बियन, स्ट्रेट, पोलीअमोरोस - एक साथ कई रिश्ते निभाने वाले -  #MarziHaiMinimum। ‘मर्ज़ी’, हिंदी के इस शब्द का मतलब एक्टिवली हां करना है यानी पूरे मन से हां कहना। इस ‘हां’ में बेमन होकर अगले को सेक्स करने देने की इजाज़त देने को नहीं गिना जाता। तो खुशी से मर्ज़ी देने का  सेक्सी ख़याल इस वीडियो की खूबसूरत, रंगबिरंगी, रूमानी दुनिया में हमें ले जाता है । कला स्टूडियो में बातचीत के दौरान पारोमिता ने कहा,"अक्सर सेक्स की बात यौन हिंसा के संदर्भ  में की जाती है। एजेंट्स ऑफ़ इश्क़ में हम इस हिंसक नज़र का सामना सेक्स में खुशी, आनंद, मज़ा, इन पहलुओं पर फोकस बढ़ा कर करते हैं । पारोमिता ने बताया की कैसे निरंतर के सहयोगियों की एक बात ने उनपर गहरी छाप छोड़ी। सहयोगी ने कहा कि,”कई बार महिलाएं उसे भी हिंसा समझ लेती हैं जो वाकई में हिंसा करने की इच्छा से नहीं किया जाता।” पारोमिता : “मुझे भी लगता है कि ऐसा अक्सर होता है। तो ऐसा होने का कारण ये नहीं है कि वो औरतें रूढ़ीवादी हैं। इसका कारण ये है कि महिलाओं की परवरिश में कभी भी उनको इस बात का एहसास ही नहीं करवाया जाता कि उनको भी सेक्स की चाहत होती है या अलग-अलग तरीकों से सेक्स करने की भी इच्छा होती है।  हम उनके अनुभव की सच्चाई को किस नज़र से देखें? हमें ये तो मानना ही होगा कि हम सब इस समाज में साथ बंधे हैं। और यहां ख़ुशियों भी हैं, चोट भी, कुछ बढ़िया हो पाने की संभावनाएं भी और असंभव लगने वाला बहुत कुछ भी। एक साथ एक जगह। “ मर्ज़ी, मजबूरी, मज़ा इस वीडियो ने सहमती के तीन अलग - अलग प्रकारों पर बात की है- मर्ज़ी (पसंद) , मजबूरी  (कमजोरी), और मज़ा (मस्ती)। जैसे रिश्तों के अलग रंग हैं, मर्ज़ी के भी अलग रंग हैं, या समझो एक रंग के अलग-अलग शेड्स।  यानी जैसे रिश्तों में शेड्स होते हैं, वीडियो उस ही तरह, मर्ज़ी के शेड्स को दिखाता है । बल्कि यूं कहें तो, "हां" सिर्फ एक शब्द नहीं है।  इस शब्द में एक पूरा संसार गुथा हुआ है। मर्ज़ी किसी एक पल में क्या गुज़रता है, बस उसकी कहानी नहीं है। यह हमारे रिश्तों का एक ईको सिस्टम/पार्टनर है, और इसमें जेन्डर और सेक्स को लेकर हमारे नज़रिये बंधे हुए हैं । जब उनसे वीडियो की बनावट के बारे में पूछा, पारोमिता ने बताया, "हम एक फॉर्मूला के हिसाब से वीडियो नहीं दिखाना चाहते थे। एक सीधा-सीधा वीडियो नहीं बनाना चाहते थे। जहां पहले आप मजबूर हैं, फिर आप जागरूक हो जाते हैं और सब कुछ मर्ज़ी से करने लगते हैं। हम हर किस्म के रिश्ते में मर्ज़ी कब और कैसे आती जाती है, उसे दिखाना चाहते हैं। वीडियो में  जो तीन सबसे अहम वाक़या दिखाए गए हैं, यह सभी एक ही औरत के भी जीवन के हिस्से भी हो सकते हैं। " "हमें लगा हम वीडियो को इच्छा की बात से शुरू करना चाहेंगे। सिर्फ मंजूरी/सहमती से नहीं, बल्कि इस बात से कि सबकी इच्छाएं होती हैं और लोग उसे पूरा करने की और आगे बड़ भी सकते हैं।”   मर्ज़ी पर बात करने के लिए इस नाच-गाने की क्या ज़रूरत है। अरे, तो फिर कैसे ? "इंडिया में गानो के जरिये इतना प्यार होता है।" पारोमिता ने कहा। “हम लोकप्रिय गानों जैसा कुछ बनाना चाहते थे। एक ऐसा गाना जो कुछ लोकसंगीत का सा, कुछ बॉलीवुड का सा महसूस होता हो । ऐसा गाना जिसे आपको सुनने में मज़ा आये। लेकिन वो साथ में ऐसी चीज़ें भी कहे जिसके कुछ अर्थ हों, जिसमें कोई गहराई हो। मुझे नहीं लगता है कि हम किसी कड़वी गोली को मीठी परत चढ़ा रहे हैं। मुझे सच में यही लगता है कि हम हमेशा से कविताओं के ज़रिये ही प्यार और रिश्तों के बारे में बात करते आये हैं। क्योंकि कवितायें कई भावनाओं और रिश्तों को महसूस कराने की ताकत रखती हैं। " संवेदना सुवालका जो वीडियो में काम कर रही एक एक्टर हैं, मानती हैं कि कला आपसे उन विषयों पर भी आसानी से काम करवा लेती है जो बहुत मुश्किल और सेंसिटिव होते हैं। यह वीडियो ऐसा बना है कि आप इसे देखकर इस बात पर सोचेंगे। पर यह विडीओ आपके दिमाग का फालूदा नहीं बना डालेगा और यह आपको बोर भी नहीं करेगा। सब्जेक्ट की इन्टेन्सिटी को बनाए रखते हुए, एक खास तरह के भारी बोझ को हटाना केवल कला - आर्ट -द्वारा ही संभव है।  “यह एक आसान तरीका है ज़रूरी बातचीत करने का।” शिखा तलसानिया ने सहमती दिखाते हुए कहा। शिखा की बात को ही आगे ले जाती उनकी को-एक्टर तुहिना वोहरा बोली, “किसी को भी लेक्चर सुनना नहीं अच्छा लगता, फिर चाहे वो “ज्ञान” सुननेवाले की अपनी सिटुअशन पर ही क्यों ना हो।” लेकिन कला में - फिल्मों, किताबें, स्टैंड-अप इत्यादि में -हम हमेशा पात्रों से जुड़ जाते हैं और खुद को उनकी जगह देखते हैं। इसलिये जब आप मर्ज़ी की बात को गाने और डांस के जरिये, मज़ेदार तरीके से सुंदर सा दिखाते हो, तो इस के ज़रिए अपनी जिंदगी में मर्ज़ी को लाना थोड़ा और आसान हो जाता है। और जो पहले इसे पाने की इच्छा नहीं रखते थे, वे भी अब इसे खोजने लगते हैं। " “या यूं कहिये कि एक नयी इमोशनल भाषा के ज़रिये हम हमारे सेक्सी/कामुक संस्कारों पर फिर से अधिकार जता रहे हैं। वीडियो इच्छा/कामइच्छा को  शानदार इमेजरी के ज़रिये दिखाता है । वीडियो में इस्तेमाल किए गए सेट को देख कर लगता है कि कहानीयों की किसी किताब के सुंदर-सुंदर चित्र सजीव हो गए हैं। यह बगीचा गार्डन ऑफ ईडन की तरह भी दिखता है, साथ साथ हमारी कामुक विरासत- यानी भारतीय मिनिएचर पेंटिंग की चांदनी रातों की भी याद दिलाता है। यानी हमारी संस्कृति में ही प्यार का पारंपरिक प्रदर्शन ", पारोमिता  ने बताया। "मुझे लगता है कि हम भारतीयों के लिए हमारे पुराने प्यार करने के अलग- अलग तरीकों को फिर से पा लेना बहुत ज़रूरी है। क्योंकि वो हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं और मर्ज़ी/सहमति से जुड़े हैं। यहां लघु चित्रों/ मिनिएचर पेंटिंग्स की बात करने का कारण ये है कि उनमें खुल कर यौन आनंद, अंतरंगता और रोमांस की पूरी दुनिया को दिखाया जाता है। कितने आराम से इनमें औरतों की इच्छा को दिखाया गया है। आदमियों और औरतों को एक साथ दिखाया गया है, कृष्ण लीला की रचना की गई है, आप इन चित्रों में कितना कुछ देख सकते हैं। और इस सारी कामुकता को इन चित्रों में नेचुरल बताया गया है, जो कि एक बड़ी बात है। यानी कि संस्कारी होने का मतलब नो सेक्स- बिल्कुल नहीं है । क्योंकि यह सच नहीं है - हमारे संस्कार बहुत सेक्सी हैं! इसलिए हम यह दिखाना चाहते थे और चाहते थे कि आप इन चित्रों की दुनिया में आकर  ऐसा महसूस करें कि, ‘हां! यह मेरा है, और मैं इसकी हूं’। " वह बताती हैं। बातचीत के दौरान, पारोमिता ने कहा कि जब वो और इस गाने के संगीतकार अविनाश और रोहित शर्मा, इस गीत पर काम करने के लिए बैठे थे, तो वे इन छोटी-छोटी बातों पर बात करने के लिए एक "नई इमोशनल भाषा" ढूंढ रहे थे। अविनाश  सरल हिंदी में ही कुछ अंग्रेजी शब्दों को यूज़ करना चाहते थे। क्योंकि कुछ भी नया कहने के लिए "जनतावाली हिंदी" का उपयोग करना, भारी भरकम भाषा से बेहतर है। पारोमिता ने बताया किया कि 'मज़ा' वाले सीन में अविनाश की लाइने उन्हें ख़ास पसंद हैं। महिला अपने प्रेमी के साथ सेक्स करने के बाद गा रही है, "प्यार पूरा हुआ तो मुलायम हुई।" "हमें औरतों की सेक्स की इच्छा को बताने के लिए कुछ शब्द ही नहीं मिल रहे थे-  यह वर्ड्स पोएटिक भी हैं और ठोस भी! और बढ़िया शब्दों में औरत के सेक्स एक्सपीरियंस के बारे में बात करते हैं”, उन्होंने बताया। वीडियो प्यार के ट्रेडिशनल देसी मेटाफर का इस्तेमाल करता है । साथ साथ अजेंट्स ऑफ इश्क की स्टाइल को भी निभाते हुए, पारंपरिक सेक्स रोल्स से चिपका नहीं रहता है। स्वाभिक तरीके से उनके धागे उलझाता सुलझाता हुआ एक नई दुनिया बना जाता है। जैसे मर्ज़ी सीन में महिला के शब्द, "मैं खुद अपनी मर्ज़ी की मालिक मकान" हैं।  या फिर पीली साड़ी में बालों में फूल लगाए आदमी के विकल्प को शामिल करके, एक नयी तरह की मरदानगी को हां कह जाता है। यह सीमित परिभाषाओं वाली मर्दानगी नहीं है। और सामान्य बॉलीवुड-शैली की कोरियोग्राफी के ज़रिये से, वो औरत ऐसे स्टेप्स करती है जैसे अक्सर पुरुषों करते हैं, जैसे साड़ी के पल्लू से प्रेमी को बांधकर नजदीक खींचना या शाहरुख खान का हाथ फैलानेवाला स्टेप । वीडियो इन छोटे-छोटे चीज़ों का ढिंढोरा नहीं पीटता, पर सामान्य सन्दर्भों में एक नयी झलक दिखा जाता है। इस तरह औरतों और आदमियों के बीच पावर की विषमता में थोड़ा बैलेंस ले आता है । हम संबंधों से जुड़ी सहमति के बारे में ही क्यों बात कर रहे हैं? भारत में यौन हिंसा पर बातचीत उन्हीं सन्दर्भों में होती है, जहां अपराधी एक अजनबी होता है। लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण और राहत जैसे समूहों ( data collected by the National Family Health Survey and groups like RAHAT ) के दिये आंकड़े चौंकाने वाले हैं । अपराधी अक्सर पीड़ित की जान-पहचान का कोई व्यक्ति होता है और ज़्यादातर तो उसका साथी ही होता है। इस संदर्भ में बात-चीत करने से और ज़रूरी क्या हो सकता है? कपल्स के लिए रिश्तों में सहमति,सेक्सुअलिटी, स्वीकृति, हिंसा और खुशी सहित सभी विषयों पर  ? यह वीडियो इन टॉपिक्स पर सभ्यता और प्यार से बात करने का रास्ता खोलता है। “निरंतर” की श्वेता राधाकृष्णन ने देश भर में अपने एन. जी. ओ. के कार्य के बारे में हमसे बात की। उनके मुताबिक कामुकता और लिंग आधारित हिंसा के बीच गहरा संबंध है। उन्होंने कहा, "लिंग और सेक्स सम्बन्धी हिंसा पर हमारी रिसर्च से यह बात सामने आई है कि कितने ही लोगों को अक्सर सिर्फ इसलिए हिंसा का सामना करना पड़ता है क्यूंकि वो जेंडर और सेक्स पर आम विचारधाराओं से कुछ अलग करते हैं या फिर उनकी अलग लिंग पहचान की वजह से। साथ में, महिलाओं के खिलाफ होनेवाली हिंसा, यौन संघर्ष से निपटने के लिए की गयी कोशिशें भी सेक्सुअल भेद/ मतभेद से जूझ ही नहीं पातीं । कार्यकर्ता भी अलग - अलग लिंग और यौन पहचानों वालेे नहीं होते हैं तो वे मुद्दे की गहराई में नहीं जा पाते। और ज़्यादातर क़ानून 'अच्छी महिला' यानी वो महिला जो विषमलैंगिक है, विवाहिता है,जिसका सेक्स पैदाइशी रूप से स्त्री बतलाया गया है, उस तक तक ही पहुंच पाता है। सेक्सुअलिटी की बात को सबके सामने लाने से और स्वीकार करने से, सहमति के मामलों में ये और साफ़ पता चल पायेगा कि कहाँ मर्ज़ी दी गयी है और कहाँ वो मर्ज़ी धमका फुसला के ली गयी है ।उसका फ़ायदा ख़ासकर वहां होगा, जहां जवान लोग हैं और परिवार के “सम्मान”को दांव पर रखा हुआ मान कर तब फैसले किये जाते हैं।" वह कहती हैं, "यह वीडियो उस स्टडी मटेरियल का एक हिस्सा है, जो निरंतर ने विभिन्न इसी दिशा में काम करनेवालों के साथ इन ज़रूरी बातों को सबके साथ साझा करने के लिए बनाया है। जिसमें ये सब सम्मिलित हैं: वी.ए.डब्ल्यू. ( वायलेंस अगेंस्ट वीमेन- औरतों के खिलाफ हिंसा)पर काम कर रहे ग्रास रूट / ज़मीनी संगठनों और राज्य / राष्ट्रीय नीति बनानेवाले; और औरतों के अधिकारों पर काम करने वाले संघटन जो उन सब समूहों पर ध्यान देते हैं जिन्हें अधिकाररहित बना दिया गया है जैसे कि समलैंगिक और उभयलिंगी महिलाओं, ट्रांस व्यक्तियों आदि को । इस दिशा में काम करनेवालों में ये भी शामिल हैं : सेक्स वर्कर्स सहित जेंडर के संबंध से हिंसा को रोकनेवाले; और सेक्स वर्कर्स जो जेंडर के आधार पर होने वाली हिंसा को रोकने के लिए काम कर रही  हैं । म्यूजिक वीडियो के इस आकर्षक तरिके के इस्तेमाल से सरल विचारों को सरल तरीके से ही लोगों तक पहुँचने में मदद मिलती है। "   टिंडर के साथ भागीदारी वीडियो के लिए, हमने टिंडर इंडिया के साथ भी भागीदारी की, जो कि भारत में ऑनलाइन डेटिंग संस्कृति को आगे बढ़ाने में सबसे आगे है। इन इंटरैक्शन के नियम नए हैं और लोगों को पता नहीं हैं। इसलिए उन्हें व्यवस्थित करने की बहुत ज़रुरत है। इश्क के एजेंट, लोगों के अनुभवों को समझने और इन नई बातचीत और रिश्तों को समझने में सबसे आगे हैं। हम लोगों को इस संस्कृति का एहसास करने में मदद करना चाहते हैं, ताकि सभी लिंग और यौन विकल्पों के लोग आपसी सम्मान के साथ अपने तरीके से अपने आनंद को पा सकें, अपनी संभावनाएं जी सकें।और इसलिए टिंडर इंडिया के साथ भागीदारी हमें स्वाभाविक और सही लगी।   सारी दुनिया एक जश्न है! वीडियो के ग्रैंड फिनाले के लिए, हमने सोचा कि अंत करने का सबसे अच्छा तरीका एक वर्ल्ड पार्टी दिखाना होगा, क्यूंकि ऐसी पार्टी सहमति और पसंद की संस्कृति का प्राकृतिक निष्कर्ष है : प्रेम, खुशी, पसंद और सभी लिंगों के लिए स्वतंत्रता का जश्न, सभी यौन संबंधों का जश्न, सभी लोगों का भी। यही कारण है कि वीडियो का सुखद अंत गुब्बारे, झालर, डांस , और कुछ बहुत ही विशेष मेहमानों के साथ होता है! इश्क के एजेंटों ने अलग-अलग लोगों से पूछा जो लिंग और कामुकता पर काम करते हैं, कि वे अपने संगठनों से लोगों को इस दृश्य का हिस्सा बनने के लिए भेजें। प्रतिनिधि प्वाइंट ऑफ व्यू, सेक्सुअलिटी और डिसऐबलिटी , क्यू-निट,  डांसिंग क्वींस, हमफ़र ट्रस्ट और लेडीज़ फिंगर फर्स्ट से आए थे। मतलब, हमारे पास इश्क़ के कुछ सच्चे एजेंट थे जो हमारी रंगबीरंगी वीडियो पार्टी में शामिल हुए थे और इस वीडियो को आपके साथ साझा करने में  भी! हमें उम्मीद है कि आप भी हमारी शानदार पार्टी में शामिल होंगे।  
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