“अगर आप मलेरिया या डेंगू का टेस्ट करा सकते हैं, तो एचआईवी का क्यों नहीं?”
आपको कब पता चला कि आपको एचआईवी है?
मैंने सन 2000 में काम करना शुरू किया था। मैं पिछले 24 सालों से यही काम कर रही हूँ। उस समय मुझे नहीं पता था कि एचआईवी क्या होता है और इससे बचने के लिए किस तरह की सावधानियाँ बरती जा सकती हैं। मुझे कंडोम के बारे में भी नहीं पता था।
दो सालों तक, मुझे एक कमरे में बन्द रखा गया, केवल खाना और कपड़े दिए जाते थे। मुझे कुछ पता नहीं चलता था कि कब दिन हुई और कब रात हो गई। दो साल बाद जब घर की “मालकिन” ने कहा कि मेरा कर्ज़ चुक गया है, तब जाकर मुझे जाने दिया गया।
उसके बाद 2002 में मैं गर्भवती हुई और मुझे डॉक्टरों के पास ले जाया गया। 2003 में मेरी सिज़ेरियन डिलीवरी हुई। मुझे अपने बच्चे को अपना दूध नहीं पिलाने दिया गया, लेकिन उस समय किसी ने भी एचआईवी का नाम नहीं लिया।
2007 में मुझे लिम्फ नोड्स में टीबी निकली और मुझे इंजेक्शन और दवाइयाँ दी गईं। उसी समय, मुझे यह भी बताया गया कि मैं एचआईवी पॉज़िटिव थी। सहेली कार्यालय के लोगों ने मुझे बताया कि मुझे दवाइयाँ लेनी पड़ेंगी। इसलिए, मैंने टीबी और एचआईवी की दवाइयाँ लेना जारी रखा। लेकिन, 2008 में मैंने टीबी की दवाइयाँ लेनी बन्द कर दीं, मैंने एचआईवी की दवाइयाँ लेनी भी बन्द कर दीं! मैं दवाइयों से तंग आ चुकी थी। और शुरुआत में, दवाइयाँ लेने की वजह से भी मुझे बहुत से साइड-इफ़ेक्ट्स झेलने पड़े, जैसे-नींद न आना, जी मिचलाना और उल्टी आना। दवाइयाँ छोड़ने के तीन महीने तक कुछ भी नहीं हुआ। चौथे महीने के बाद, मुझे बुखार, सर्दी और बदन दर्द होना शुरू हो गया।
फिर मुझे डॉक्टरों के पास ले जाया गया और इस बार मुझे बताया गया कि मैं जब तक ज़िन्दा रहूँगी, तब तक दवाइयाँ लेनी पड़ेंगी।
मुझे यह भी बताया गया कि हर 15 दिन में मेरी दवाइयों की निगरानी की जाएगी।
2010 में अचानक से मेरा बच्चा मर गया। ऐसा क्यों हुआ इस बारे में स्वास्थ्य केन्द्र ने कुछ भी नहीं बताया।
मैंने पैसे देकर दो बच्चों को गोद लिया। उन बच्चों की माँ ने उन्हें छोड़ दिया था और उन्हें वेश्यालय को बेच दिया गया था। मुझे बच्चे चाहिए थे और मुझे पता था कि मुझे एचआईवी है इसलिए मैं बच्चे पैदा नहीं कर सकूँगी। इसी वजह से मैंने उन्हें गोद लेने का फ़ैसला किया।
लड़का निगेटिव है, लेकिन लड़की पॉज़िटिव है। मुझसे कहा गया कि मैं उसे गोद न लूँ, उसे किसी संस्था को दे दूँ। लेकिन अगर एचआईवी पॉज़िटिव व्यक्ति के तौर पर दुनिया मुझे अपना सकती है, तो मैं उसे क्यों नहीं अपना सकती?
2014 में, मैं दोबारा गर्भवती हुई। मैं बच्चा नहीं पैदा करना चाहती थी, लेकिन जब तक मैंने यह फ़ैसला किया और गर्भपात/अबॉर्शन कराने गई, देर हो चुकी थी। मेरी गर्भावस्था को कितना समय हुआ था, इस बारे में मैं तो डॉक्टरों से झूठ बोल सकती थी, लेकिन सोनोग्राफी झूठ नहीं बताती।
फिर मुझे बताया गया कि किसी एचआईवी पॉज़िटिव माँ का बच्चा भी एचआईवी पॉज़िटिव हो, ऐसा ज़रूरी नहीं। अगर मैं अपनी दवाइयाँ समय पर लूँगी, तो हो सकता है कि मेरे बच्चे पर कोई असर न पड़े।
और ऐसा ही हुआ, मैंने एक बेटे को जन्म दिया और उसका टेस्ट निगेटिव आया।
वैसे वह स्वस्थ है, मुझे बस इतना ही ध्यान रखना था कि मैं उसे अपना दूध न पिलाऊँ।
आपकी बेटी अब कैसी है? क्या उसे एचआईवी पॉज़िटिव होने का मतलब पता है?
फ़िलहाल उसकी दवा चल रही है। मुझे उसे बताना ही पड़ा क्योंकि वह अपनी दवाएँ छिपा देती थी। जब वह सातवीं में थी, तो मैंने बैठकर उसके साथ बात की और उसे समझाया कि यह एक मुश्किल और ज़िन्दगी भर चलनेवाली बीमारी है और इसमें रोज़ाना दवाइयाँ लेना बहुत ज़रूरी होता है। उसके दोस्तों को इस बारे में नहीं पता है, और उन्हें जानने की कोई ज़रूरत भी नहीं है।
मुझे लड़कों को भी नियमित रूप से जाँच के लिए ले जाना पड़ता था और इसलिए मुझे उन्हें भी इसके बारे में बताना पड़ा। संक्रमण कई सालों बाद भी शरीर में उभर सकता है, इसलिए मैं साल में कम से कम एक बार उनका टेस्ट करवाती हूँ।
मैंने अपने सभी बच्चों को इस बारे में भी खबरदार कर दिया है कि उन्हें स्कूल में दिया जानेवाला कोई भी इंजेक्शन या दवाइयाँ नहीं लेनी हैं। और अगर शिक्षक उन पर ज़ोर डालें, तो उन्हें अपने शिक्षकों को पहले मुझसे फोन पर बात करने के लिए कहना चाहिए। मैं उनसे कहा है कि उन्हें सावधानी बरतनी होगी।
क्या आपने अपने ग्राहकों को अपने पॉज़िटिव होने के बारे में बताया है?
मैंने किसी को भी नहीं बताया है कि मैं पॉज़िटिव हूँ। मेरे बहुत से ग्राहक शादीशुदा नहीं हैं और हो सकता है उनमें से कुछ के बच्चे हों। मैं उनसे कहती हूँ कि वे अपना टेस्ट ख़ुद कराएँ। इसके अलावा कोई एक ग्राहक हमेशा एक ही इन्सान के पास नहीं आता। अगर किसी दिन मैं नहीं होती, तो वे किसी और के पास जाते हैं।
मैं उनसे कहती हूँ कि वे ख़ुद अपनी जाँच कराएँ, ठीक वैसे ही जैसे कोई मलेरिया या डेंगू का टेस्ट करवाता है। सरकारी अस्पतालों में यह मुफ़्त में हो जाती है।
आगे चलकर एचआईवी के साथ जीने को लेकर आप कैसा महसूस करती हैं?
कई मायनों में यह डायबिटीज़ के साथ जीने से कहीं ज़्यादा आसान है। जब आपको डायबिटीज़ होती है, तो आपको खानपान में परहेज बरतना पड़ता है, घाव भरते नहीं, शरीर में सूजन रहती है फिर भी आपको हर रोज़ दवाइयाँ लेनी पड़ती हैं। एचआईवी होने पर आप जो चाहे खा सकते हैं, और जो चाहे, जैसे चाहें कर सकते हैं। बस आपको दवाएँ समय पर लेनी होती हैं।
एक और बात यह है कि मेरी किडनी ख़राब हो गई थी और 2019 में मुझे इसे निकलवाना पड़ा था। ऐसा लम्बे समय तक एचआईवी की दवाइयाँ लेने की वजह से हुआ था। लेकिन अब मैं एक किडनी के साथ बिल्कुल ठीक महसूस कर रही हूँ। मैं रात नौ बजे काम पर निकल जाती हूँ और सुबह पाँच बजे वापस आती हूँ। उसके बाद मैं अपने बच्चों के लिए खाना बनाती हूँ, उन्हें स्कूल भेजती हूँ और सो जाती हूँ। फिर मैं जागती हूँ, अपने घर के काम करती हूँ, अपनी दवाइयाँ लेती हूँ, जब बच्चे स्कूल से वापस आ जाते हैं तो उनके साथ लंच करती हूँ। उनके लिए रात का खाना बनाती हूँ।
S, 36, महिला
पुणे, सेक्स वर्कर
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‘मैं किसी में यह संक्रमण नहीं फैला सकता, यहाँ तक कि असुरक्षित सम्भोग से भी नहीं’
आपने अपना एचआईवी टेस्ट कब करवाया?
एक समलैंगिक व्यक्ति होने के नाते, मुझे पता था कि मेरे कई सारे साथी हैं और हमें हर तीन महीने में टेस्ट कराने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
संयोग से, 2013 में दिसंबर, जनवरी और फरवरी के महीने के दौरान, मैं लड्डू दान करने हमसफ़र ट्रस्ट में गया था। मैंने यूँ ही सोचा, ‘चलो मैं भी अपनी जाँच करा लेता हूँ।’ मुझे यक़ीन था कि मुझे एचआईवी नहीं होगा। मुझे कोई भी लक्षण नहीं थे।
लेकिन एक काउंसलर ने मुझे फ़ोन किया और मुझसे कई सारे सवाल पूछे और मुझे पता चला कि मेरी रिपोर्ट के मुताबिक़ मैं पॉज़िटिव था। यह दिल तोड़नेवाला एहसास था। मैंने रिपोर्ट ली और घर की ओर चल दिया।
मेरी एक पड़ोसी थी, जो स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में काम करती हैं। मैंने उन्हें बताया कि मेरा टेस्ट पॉज़िटिव आया है। वो पहली इन्सान थीं, जिन्हें मैंने इसके बारे में बताया था। उन्होंने कहा कि हमें तुरन्त इलाज शुरू करना होगा।
वो मेरे लिए एक सहारा बनीं। मुझे लगता है कि वो मुझसे थोड़ी नाराज़ भी थीं क्योंकि उन्होंने मुझसे कई बार सावधान रहने को कहा था।
उस रात मुझे अपने पिता की मौत से जुड़ी एक क़ानूनी सुनवाई के सिलसिले में गुजरात के लिए निकलना पड़ा। मैं लगातार रोता जा रहा था।
बहुत शुरुआती चरण में ही मेरा टेस्ट ही पॉज़िटिव आ गया था। शुरुआत में मेरा वायरल लोड बहुत ज़्यादा था, लेकिन छह महीने या साल भर में ही, वायरल लोग (शरीर में वायरस की संख्या) बहुत कम हो गया। इसका मतलब यह भी है कि अब मुझसे एचआईवी संक्रमण किसी और में नहीं फैल सकता, यहाँ तक कि असुरक्षित संभोग से भी नहीं।
क्या उस समय आपके कोई साथी थे?
हाँ। उस समय मैं जिस इन्सान को डेट कर रहा था, वह एक कॉलेज में मेरा दोस्त था। मैंने उसे फ़ोन किया और बताया कि मेरा टेस्ट पॉज़िटिव है, और क्योंकि हम यौन सम्पर्क में रहे हैं, इसलिए उसे भी अपना टेस्ट करवा लेना चाहिए। लेकिन उस समय वह इसके लिए तैयार नहीं था। आख़िरकार कुछ महीनों बाद उसने अपना टेस्ट करवाया। मैंने उसे एक डॉक्टर के बारे में बताया और इस तरह से वह मामला ख़त्म हुआ।
इस मर्ज़ का पता चलने के बाद शुरुआत में आपको किस तरह के डर थे?
शायद सबसे पहली बात मेरे मन में यह आई कि अब मेरी डेटिंग लाइफ़ ख़त्म। अगर मुझे कोई मिल भी गया, मैं उससे मिल भी लिया और छह महीने के लिए उनके साथ रिश्ते में भी आ गया, तो जब उन्हें मेरे मर्ज़ के बारे में पता चलेगा, वो मुझसे रिश्ता ख़त्म कर लेंगे।
भले ही एलजीबीटीक्यू लोगों को एचआईवी के बारे में जानकारी जा रही है, लेकिन किसी को भी ऐसे साथी नहीं चाहिए, जो एचआईवी पॉज़िटिव हों।
मुझे यह डर भी था कि अपने करियर को लेकर मैंने जितने भी सपने सँजोए हैं, सब चकनाचूर हो जाएँगे। मेरा बचपन का सपना था कि मैं कनाडा जाकर वहाँ से पीएचडी करूँगा। लेकिन कनाडा ने एचआईवी वाले लोगों के वहाँ जाने पर प्रतिबन्ध लगा रखे हैं और मुझे एहसास हुआ कि मेरा सपना टूट चुका था। बाद में नियमों में कुछ हद तक बदलाव किए गए, मैंने 2019 में दोबारा कनाडा जाने की कोशिश की, लेकिन कोविड की वजह से ऐसा करना नामुमकिन हो गया।
एचआईवी के साथ जीने के बारे में आपने ऐसी कौन सी एक बात जानी, जिसने आपको हैरत में डाल दिया?
लोग कहते हैं कि एचआईवी को लेकर कलंक का भाव और भेदभाव ख़त्म हो गया है, लेकिन यह सब बकवास है। एचआईवी वाले लोगों के साथ अच्छा सलूक कैसे करना है, हर किसी को इसकी जानकारी नहीं है और न ही हर कोई इसे लेकर जागरूक है।
मुझे स्वास्थ्य बीमा नहीं मिलता। मैं इसके पैसे देने को तैयार हूँ और अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित करना चाहता हूँ, लेकिन कोई भी बीमा देनेवाला आसानी से नहीं मिलता। एलजीबीटीक्यू समुदाय के बहुत से लोगों का बीमा है भी, लेकिन जब इलाज शुरू होता है, अस्पताल द्वारा व्यक्ति को एचआईवी है इसका उल्लेख किए जाते ही बीमा देनेवाले इलाज का ख़र्च उठाने से इन्कार कर देते हैं।
मेरे दोस्त भारत के अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं। वो लोग परेशानी झेलते हैं क्योंकि उन्हें सरकारी केन्द्रों में जाना पड़ता है और उनमें से सभी निजी चिकित्सा का ख़र्च नहीं उठा सकते। और सरकारी केन्द्रों में, एलजीबीटीक्यू लोगों के साथ अपराधियों जैसा सलूक किया जाता है।
अगर मेरे परिवार को इसका पता चल जाए तो हो सकता है कि वो मुझे घर से निकाल दें और धन-सम्पत्ति के मेरे अधिकार से मुझे बेदख़ल कर दें। लोग कैसे प्रतिक्रिया देंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता।
कोविड के दौरान आपकी ज़िन्दगी कैसी थी?
मेरे मन में कहीं न कहीं यह हमेशा चलता रहता है कि मैं आसानी से संक्रमित हो सकता हूँ, लेकिन पौष्टिक खाना खाने से, अपने शरीर और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखने से स्वस्थ रहने में काफ़ी मदद मिलती है।
कोविड के दौरान हम लोग दुनिया के बाकी लोगों जितना ही डरे हुए थे। मैं उसी कम्पनी में था, जिसमें मैं अभी हूँ, और सामाजिक काम करने के नाते हम आगे आकर पीपीई बाँटने का काम कर रहे थे। मेरी संस्था को मेरे मर्ज़ की जानकारी है। मैंने ज्वाइन करते समय ही उन्हें इस बारे में बता दिया था, ताकि अगर स्वास्थ्य सम्बन्धी दिक़्क़तों की वजह से मुझे लम्बी छुट्टी लेनी पड़े, तो मुझे वह मिल जाए (ख़ुशकिस्मती से मुझे छुट्टी नहीं लेनी पड़ी)।
मैं आगे आकर काम करके ख़ुश था। कोविड के तीनों दौरों में मुझे कोविड हुआ, वैसे ही जैसे बहुतों को हुआ।
लेकिन मैं ठीक भी हुआ।
दरअसल मैं कोविड के तीनों दौरों के बाद इससे संक्रमित हुआ। मेरे ख़याल से मुझे बहुत थकान महसूस हो रही थी और मैं अवसाद था, मेरा काम करने में बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा था।
ज़िन्दगी कोविड के पहले जैसी नहीं रह गई थी। मैं कनाडा शिफ्ट होने की कोशिश कर रहा था, लेकिन कोविड महामारी की वजह से ऐसा न हो सका। 2020 में, मैंने अपने 5 साल पुराने साथी से रिश्ता भी तोड़ लिया।
आप उससे कैसे मिले?
हम एक ही सपोर्ट ग्रुप का हिस्सा थे, वह भी पॉज़िटिव है।
क्या आप फ़िलहाल डेटिंग एप्स पर हैं?
हाँ।
क्या आप वहाँ मिले लोगों को अपने पॉज़िटिव होने के बारे में बताते हैं? उसके बाद क्या होता है?
ज़्यादातर मामलों में, आप जब उन्हें बताते हैं कि आप पॉज़िटिव हैं, तो लोग अच्छे से बात करते हैं, लेकिन फिर वो कहते हैं कि वो बस दोस्त बनकर रहना चाहते हैं। इससे आगे वो कुछ नहीं चाहते।
अगर आप उनकी जगह पर होते तो क्या आपको भी एचआईवी पॉज़िटिव इन्सान से रिश्ता रखने में झिझक महसूस होती?
उन्हें यह बात समझ में नहीं आती कि ख़ुद का बचाव हर इन्सान करना चाहता है। मेरा टेस्ट पॉज़िटिव आने से काफ़ी पहले, मैं कुछ समय से किसी को डेट कर रहा था। तीन महीने बाद उसने मुझे बताया कि वह पॉज़िटिव था। यह सुनकर मैं रोने लगा और मैंने उससे रिश्ता तोड़ लिया। हमने संभोग नहीं किया था। उस समय मुझे यह नहीं पता था कि एचआईवी असल में क्या होता है और यह भी नहीं पता था कि कोई इन्सान इसके साथ जी सकता है और अपने साथी को इससे संक्रमित भी नहीं कर सकता।
मैंने उससे कहा कि अब मैं उसे प्यार नहीं कर सकता। उसके बाद मैंने उससे बात करनी बन्द कर दी।
और फिर, जब मेरा टेस्ट पॉज़िटिव आया, मैं उसकी बिल्डिंग के नीचे खड़ा हुआ, उससे मिला और माफ़ी माँगी।
एचआईवी के साथ जीने को लेकर कौन सी बात ने आपको हैरत में डाला?
जब मुझे एचआईवी पॉज़िटिव होने का पता चला, तो मुझे लगा कि मुझे स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियाँ बहुत जल्दी होने लगेंगी। लेकिन अभी तक, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और मैं बिल्कुल ठीक हूँ। मेरे पास एक अच्छा मोरल सपोर्ट है, इससे उबरने के लिए आपको इच्छाशक्ति और सपोर्ट ग्रुप्स से जुड़ने की ज़रूरत होती है। भारत में कुछ सपोर्ट ग्रुप्स ही हैं, लेकिन उतने नहीं जितने विदेशों में हैं।
हमें एचआईवी को लेकर कलंक को ख़त्म करने की ज़रूरत है। अपना टेस्ट करवाइए। और अगर आपका टेस्ट पॉज़िटिव आता है, तो जितनी जल्दी हो सके इलाज शुरू कर दीजिए।
S, 35, पुरुष
मुम्बई, सीएसआर अधिकारी