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पूरी तरह से क्वीयर महसूस ना कर पाने से, मेरा क्वीयर व्यक्तित्व और निखर गया

मुंबई की क्वीयर दुनिया आत्मविश्वास और चमक-दमक से भरी थी। मैंने हाल ही में अपने बाईसेक्शुअल/ उभयलिंगी व्यक्तित्व को अपनाया था और इसलिए डरी हुई भी थी। लेकिन यही उलझन कि मैं दरअसल कहाँ फिट बैठती थी, उसी ने मुझे उस जगह पहुंचाया जहाँ मैं जैसे चाहती, खुले दिल से वैसी क्वीयर बन सकती थी।

दोपहर की रोशनी मेरे हॉस्टल के कमरे भर मैं फैली थी । मणिपाल में गर्मी का मौसम था - पके आम और गुलमोहर खिले हुए थे। अंदर, मेरे लैपटॉप पर द हाफ ऑफ इट  नाम की फिल्म चल रहा था। उसमें एली और एस्टर पीठ के बल, चेहरे ऊपर की ओर करके, चट्टान के किनारे बने पूल में तैर रहे थे। उनके लगभग माथे छूते हुए, चुप्पी धरे सटकर घुमते हुए पल में कुछ तो फ़िल्मी और रोमांचक था।

मैंने आंखें भींचकर उनको देखा; मेरी सोच मेरी पकड़ से बाहर निकल रही थी। मैं उन क़िरदारों में से कोई एक भी हो सकती थी? क्या इसकी 1% भी संभावना थी? भगवान करे ऐसा ना ही हो।

ये पहली क्वीयर  फिल्म थी जिसे मैंने जे के ज़ोर देने पर देखा। मुझे घर से दूर मणिपाल के कैंपस शहर में आए हुए अभी छह हफ्ते ही हुए थे। हमारे कोर्स के पहले डेढ़ साल तो ऑनलाइन थे। अब अपने चौथे सेमेस्टर में, हम बोरिया-बिस्तर संभाले जब इस नई जगह पर उन सीनियर और पुराने छात्रों के बीच पहुँचे थे, जिनके लिए मणिपाल पहले से ही घर बन चुका  था। अचानक इस अलग जगह, अलग समा में धकेले जाने पर बड़ा अज़ीब लगा। यहां उम्मीद ये की जा रही थी  कि तकनीकी रूप से मुझे यहाँ होने के बारे में सब कुछ पता होना चाहिए। लेकिन ये सब मेरे लिए उतना ही अनजान लग रहा था, जितना कि कॉलेज की पहली ज़ूम क्लास के दौरान ।

कोविड के क्वारंटीन की जद्दोजहत और  अनजान लोगों के बीच होने से मेरे असहजता तो थी ही । लेकिन फिर जे और ए नज़दीकी दोस्त बन गए। वो दोनों रूममेट थे और एक ही हॉस्टल ब्लॉक में रहते थे। पहली बार अपने माता-पिता से दूर रहना और अचानक 'एडल्ट' बन जाना मेरे लिए काफी मुश्किल और अकेलेपन से भरा हुआ था। मेरे आस-पास के लोग अनजान भाषा में बात करते थे और मैं कैंपस के भूलभुलैया वाले रास्तों में खो सी गई थी। लेकिन जब ये तसल्ली हुई कि मेरे पास भी एक ऐसा कमरा है, ऐसे लोग हैं जिनके साथ मैं असाइनमेंट के तनाव बांट सकती हूँ, हंस सकती हूँ, देर रात तक गहरी बातचीत कर सकती हूँ, तो मेरी मुश्किलें भी आसान लगने लगीं । 

उन आधी रात की इकबालिया बैठकों और आपस में अपने अपने सदमों को साझा करने वाली मंडलियों के बीच, जे ने अपनी क्वीयर जागरूकता के बारे में बात की—कैसे वो अपनी स्ट्रेट (यक़ीनन) सबसे अच्छी दोस्त के प्यार में पड़ गई थी, कैसे उस एकतरफा प्यार ने उसे तोड़ दिया था, और इस नई पहचान के साथ उसका सफर कैसा कट रहा था । 

मैंने सब सुना। पहली बार मैं किसी किस्म के क्वीयर रुझान का साक्षात सामना कर रही थी, लेकिन सच कहूँ तो मुझे कुछ नया या अलग नहीं लगा। मेरे लिए, जे बस एक  इंसान थी। शानदार, मज़ेदार, बड़े दिल वाली और भरोसेमंद। जे ने ए और खुद के बीच बढ़ती दूरी के बारे में बात की, कैसे हमेशा उसी जगह एक दूसरे के साथ रहने से उसे खीज़ होने लगी थी, और कैसे मेरे मिलने से वो खुश थी। हम बहुत तेज़ी से क़रीब आ गए, एक-दूसरे से अपने राज़, खुशियाँ और डर बांटने लगे।

चार अलग-अलग शहरों और स्कूलों में पले-बढ़े होने के कारण, मैं कभी भी अपने दोस्त और दोस्ती ना संभाल पायी ना निभा पायी। किसी से रिश्ता बनाने की कोशिश करना ही क्यों जब वहां टिककर रहना ही नहीं? उनके लिए, मैं सिर्फ एक बदलाव थी, वो मुझे याद नहीं रखने वाले थे।

मेरे लिए, जे के साथ ये रिश्ता, मेरे पूरे समीकरण को उलटने जैसा था।

मैंने कभी दोस्ती को इस तरह महसूस ही नहीं किया था।

और फिर, मुझे कुछ और भी एहसास हुआ।

*

*

अचानक, मैं जे से ज़्यादा बातें करने के बहाने ढूँढ़ने लगी, और मन ही मन खुश थी कि दोनों रूममेट्स के बीच की दूरी बढ़ रही थी। मुझे लगता था कि किसी की तरफ आकर्षित होने के लिए एक ख़ास तरह की “सुंदरता”होनी चाहिए। पर अब वो सोच ग़ायब हो गईं। मैं हाथ पकड़कर कैंपस में घूमने और कैंपस स्टोर की गलियारों में मूवी नाइट्स के लिए शॉपिंग करने के बारे में कल्पना करने लगी।

मेरी कल्पनाएँ—हालांकि मासूमियत भरी और सेक्स से परे थी—यक़ीनन प्लेटोनिक/विशुद्ध तो नहीं थीं। मेरे अंदर उमड़ती हुई खुशी और उत्साह जल्द ही उस बेचैन करने वाले अहसास में बदल गई, जब मैंने "सवाल उठाना" शुरू किया।

*

मुझे हमेशा से लड़के पसंद थे - असली दुनिया हो या सपनों की। मैं सीज़न 2 वाले चैंडलर पर फ़िदा थी। गिलमोर गर्ल्स और दिस इज़ अस के मिलो वेंटिमिग्लिया पर कुर्बान थी। मैंने ऐसे सपने देखे थे, जहां मैं पने चहेते हेरो के लिए उनकी थी। मुझे ऐसे लड़के पसंद थे जो मज़ाकिया, दिलदार और हंसमुख हों। मेरी किशोरावस्था के आख़िरी दिनों में एक लड़के के साथ मेरा पहला अफेयर हुआ। और वो बिल्कुल हेल्थी और सेफ था। लोगों से उनके पहले अफेयर्स के बारे में मैंने जो कुछ भी सुना था, हमारा रिश्ता उससे अलग था।

और इसलिए जे के लिए मेरी बेचैनी चौंकाने वाली थी। ऐसा लगा जैसे पूरी जिंदगी मैं स्ट्रेट रही हूँ, और अचानक ना जाने कैसे क्वीयर  बन गई। क्वीयर लोगों की कहानियाँ सुनकर मुझे यही लगा था कि उनका असली सफ़र तभी शुरू हुआ जब उन्होंने खुद की 'असलियत' को अपनाया। मैंने याद करने की कोशिश की कि ये सब महसूस करने से पहले मैं कैसी थी।

कॉलेज के कॉलेज के अपने पहले सेमेस्टर में ही, जब मेरी एक क्लासमेट ने एक ऑनलाइन क्लास के दौरान गर्व से खुद को बाईसेक्शुअल/उभयलिंगी घोषित किया था, तब जाकर मैंने क्वीयर धारणा के बारे में जाना। मैं मुश्किल कोर्स कर रही थी—जेंडर स्टडीज़, फिल्म, इतिहास, क्लासिकल और सांस्कृतिक समाजशास्त्र—यह सब ही  अल्पसंख्यक पहचान से जुड़े थे।

मैं एक साथ कई नए तरह के लोगों से मिल रही थी। मुझे दुनिया के बारे में अपनी समझ को बढ़ाने और "राजनीतिक रूप से सही" बनने की ज़रूरत रही थी और इसका दबाव भी था ।

जैसे कि सही राजनैतिक दृष्टिकोण के लिए कहा जाता है, मुझे एक "अच्छा सहयोगी" बनना था। क्योंकि एक लेखक या पत्रकार  बनने और सामाजिक परिवर्तन पे दिल ओ दिमाग से समर्पित होने की मेरे इच्छा के लिए ऐसा करना मुझे जरूरी लगा। महामारी के दौरान, मैंने क्वीयर से जुड़े सारे  शब्द और क्वीयर इतिहास को चाट डाला। मुझे यूं लगता कि थ्योरी को "परफेक्ट" करने के लिए ये ज़रूरी था ।  शायद खासकर इसलिए भी यूं लगता था क्यूंकी  असली जिंदगी में मैं किसी भी क्वीयर इंसान को  जानती ही नहीं थी।

तो अब क्या ऐसी नौबत आ गयी थी कि मुझे ये भी कबूल कर लेना होगा  कि मैं अब खुद एक "असली क्वीयर इंसान" थी? एक तो वही आम डर था जो सभी क्वीयर बच्चों को होता है—अरे, मैं अपने मम्मी-पापा को क्या बताऊँ?" "क्या मैं समाज की वो 'दूसरी कैटेगरी' बन जाऊँगी? एक और डर था- अंदर ही अंदर, मेरे  मन में समलैंगिकता को लेकर असहजता  को लेकर। मैं उस समुदाय का हिस्सा होने से कैसे डर सकती थी, जिसे समझने और जिसका समर्थन करने की मैंने इतनी कोशिश की थी?

मैंने इसे तब तक दबाए रखा जब तक इसे छुपाना मुमकिन नहीं रहा। आखिर मैंने झूल के अपने इस वज़ूद को अपनाया- उस ही के सामने। यानि ...  जे के सामने। जी हां! मुझे उस रात के बारे में ज़्यादा याद नहीं। मैं हॉस्टल की बालकनी में थी, रात के अंधेरे में पहाड़ियों पर उभरी लकीरों को देख रही थी। मुझे बस इतना याद है कि मैं तीन घंटे तक रोती रही। बार-बार वही उलझे सवाल पूछती रही। मुझे याद है कि वहाँ बहुत सारे मच्छर थे। मुझे ये भी याद है कि जे पहली वो इंसान थी जिसने मुझे रोते हुए देखा था। उसने मेरी कलाई को पकड़ के रखा, उसे छोड़ा नहीं ।

कुछ दिनों बाद मैंने जे को बता दिया कि उसके लिए मेरी फीलिंग्स क्या थीं । हालांकि उसने प्यार से मेरे प्रस्ताव को मना कर दिया। हमने वादा किया कि उस दौरान हम एक-दूसरे से दूरी बनाए रखेंगे, लेकिन हम अपने रिश्ते का सम्मान करेंगे और कुछ टाइम बाद वापस इस दोस्ती को जिंदा करेंगे। उसके पीछे दरवाज़ा बंद हुआ और मैं रोते हुए नीचे आयी। उसने कुछ नहीं सुना। मुझे पता था कि हमारे बीच अब चीजें फिर कभी पहले जैसे कभी नहीं होंगी।

मैं दिल टूटने की इन तकलीफों को लेकर गर्मी की छुट्टियों में वापस पुणे पहुंची। इसके तुरंत बाद ही, ए (जिसके साथ मेरी दोस्ती हमेशा से ही गड़बड़ाती रही थी) के साथ मेरा झगड़ा हो गया। मुझे यक़ीन था कि जे या तो उसके सामने मुझे चुनेगी या कम से कम समझदारी से बात सुलझाने की कोशिश करेगी। लेकिन इसके बजाय, उसने मुझसे सारे रिश्ते तोड़ लिए।

मुझे लगा जैसे मेरे क्वीयर व्यक्तित्व को कुचल दिया गया हो। मैं इस नए ब्रह्मांड, जिसका रास्ता जे ने खुद मुझे दिखाया था, की बारीकियों को परखने का हौसला ही खो चुकी थी। मैं ये भूल जाना चाहती थी कि जिस इंसान के संग मैंने अपने डरऔर निजी पहलू भरोसे के साथ साझा किए थे, उसने ही मुझे छोड़ दिया था ।

मैं आख़िर कैसे जिंदा रहती। सबने अपने दोस्तों के ग्रुप पहले ही बना लिए थे। ऐसा लग रहा था जैसे मणिपाल में मेरा जीवनकाल खत्म हो चुका था। मेरे अंदर चिढ़ मची थी। अभी-अभी तो मैंने अपने क्वीयर पहलू को अपनाया था, और शुरुआत में ही सब गलत हो गया था। अगर मैं जे के प्यार में नहीं पड़ती, तो हम अभी भी सबसे करीबी दोस्त होते। अगर मैं थोड़ा और सब्र करती, जल्दबाजी नहीं करती, या उसके सामने अपनी फीलिंग्स नहीं रखती, तो शायद सब ठीक रहता। मैंने इतनी जल्दी सब कुछ क्यों समझ लिया था?

अगले कुछ हफ्तों में मैं के से मिली। मणिपाल की उस मूसलाधार बारिश में छतरियों के नीचे साथ छुपते-छुपाते, मेस में खाने की एक जैसी प्लेटें उठाते, एक तरह का म्यूज़िक सुनते, पसन्द करते - हमारे बीच कुछ तो पनप रहा था। मुझे एहसास था कि वो मुझे पसंद करती है। लेकिन मुझे इस बात का यकीन नहीं था कि मैं भी उसे पसंद करती हूँ। और मान लो अगर मैं उसे पसंद करती भी थी तो - सेमेस्टर 4 की उस दुर्घटना के बाद आज जाकर एक दोस्त बनाने में कामयाब हुई थी। मुझे फिर से अपना सब कुछ दांव पर नहीं लगाना था। मेरे प्रेमी मेरे सबसे अच्छे दोस्त बन गए, मेरे सबसे अच्छे दोस्त मेरे प्रेमी बन गए - नियति, तुम अपना सबक कब सीखोगी?

के और मैंने डेटिंग शुरू कर दी। थोड़ा अज़ीब तो था - मैंने कुछ महीने पहले ही अपने क्वीयर पहलू को अपनाया था, गर्मी की छुट्टियों के दौरान जे के लिए अपनी भावनाओं को दबाया था, और खुद को भरोसा दिलाया था कि बहन ये क्वीयर महसूस करना,  बस एक दौर है, जो बीत जाएगा। मैं डेढ़ साल से किसी भी रिश्ते में नहीं पड़ी थी। लेकिन के के साथ मेरे इस सफर ने मुझे ये अहसास कराया कि मैं हमेशा से ही क्वीयर थी। मुझे लगा था कि किसी औरत को चूमना कितना अज़ीब लगेगा। पर ऐसा नहीं हुआ। (बस ऐसा करने से दरअसल मैं बुरी तरह से  डर रही थी )।

हम लंबी सैर पर जाते थे। इतिहास , विज्ञान  और राजनीति पे  चर्चा करते थे, एक-दूसरे को दिलासा देना जानते थे। वो नासमझ थी, मैं उसे संभालती थी। मैं बेचैन रहती थी, वो हमेशा मुझे हंसाती थी। किसी औरत से कुछ भी या सब कुछ ही शेयर करना आसान था। मेरे दिल के किसी हिस्से से अपनापन महसूस किया और उसकी मौजूदगी को अपना लिया।

पूरे साल, निजी तौर पर मैं अपनी पहचान को अपनाने के लिए संघर्ष करती रही। मुझे दुनिया के सामने या यहाँ तक कि अपने कई दोस्तों के सामने भी इसे चिल्ला-चिल्ला कर बोलने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई। आख़िरकार, मैं अभी भी वही पुरानी "मैं" थी– और मेरा क्वीयर होना मेरी बढ़ती दुनिया का एक हिस्सा था।

मेरे डिपार्टमेंट में कई दूसरे क्वीयर लोग भी थे। लेकिन उनके टैटू वाले बदन और रंगीन बाल थे ; उनकी राय- स्पष्ट और तीखी! उनके पास इंटरसेक्शनलिटी(इंटेरसेक्शनलिटी/ अंतरस्तरीयता  सब आर्थिक/ सामाजिक पहलुओं की उलझी हुई जड़ों के ताने बाने को समझने की कोशिश है)की इतनी गहरी और सटीक समझ थी कि मुझे मेरी अपनी समझ उनके सामने बहुत कमजोर लगती थी। भले ही मैं अपने दोस्तों को खोने के बाद बहुत अकेली हो गई थी, लेकिन मेरे मन में कभी ये नहीं आया कि मैं उनसे बात करूं या ये क्वीयर सफ़र उनके साथ तय करुँ।। मैं नई-नई क्वीयर बनी थी। मुझे क्वीयर पोलिटिक्स या असल में क्वीयर होने के बारे में क्या ही पता था? अगर मैं कुछ उल्टा-सीधा या कुछ ऐसा जो उनको बुरा लगे बोल देती तो?

उनसे दोस्ती करने से पहले ही, मैंने उनके द्वारा निकाल अलग किये जाने की कल्पना कर ली थी - ऐसा होता तो मेरा क्वीयर पहलू वापस चकनाचूर हो जाता। ऐसे में, मेरी नज़र के सामने खड़ी क्वीयर दुनिया से मुझे जोड़े रखने वाली एक ही कमजोर कमज़ोर कड़ी थी- 'के'। मैं उस हेल्थी रिश्ते में खुश थी। मुझे ऐसा एहसास हो रहा था कि एक क्वीयर इंसान की तरह जी पाने के लिए जो कम से कम जरूरतें थी, मैं उन्हें निभाते हुए जी रही थी ।

ग्रेजुएशन के बाद, मैं मुंबई आ गयी। यहां हर कोई भागदौड़ में व्यस्त था, मानो सबको ये पता हो कि उनको क्या चाहिए और जो चाहिए वो कैसे हासिल करना है। मुझे वापस वही डर हुआ कि यहां मैं फिट कैसे होउंगी। ऐसा इंसान, जो एक नए शहर से जुड़ना चाहता हो और उसे अपना घर मानना चाहता हो, लेकिन उसे ये नहीं पता कि ये  कैसे किया जाये ।

तब तक के और मेरा ब्रेकअप हो चुका था। क्वीयर लोक को मुझसे जोड़े रखने वाली वो अकेली कड़ी भी अब टूट चुकी थी। मैं सोचने लगी, इस रिश्ते के खत्म होने के बाद, मैं सच में क्वीयर रही  भी  थी या नहीं। भले ही मैंने अपने क्वीयर पहलू को जानने और समझने में एक साल से ऊपर टाइम लगाया था, मुझे फिर भी वापस ऐसा लगा जैसे मुंबई के 'गे/gay' माहौल में मैं नौसिखिया हूँ। मुझे पहले से कहीं ज्यादा अकेलापन महसूस हो रहा था। मैंने इंस्टाग्राम पर उन पार्टियों की स्टोरीज देखी थीं  जो कि इंस्टाग्राम की गेसी/ Gaysi जैसे क्वीयर संगठनों ने आयोजित की थी।  सभी ने चमकीले रंगों से चेहरे रंग रखे थे, झलफल कपड़े और चमकीली पोशाक पहनी थी। वो रात भर शराब पीते, सिगरेट पीते और डांस करते  दिखाई देते थे। 

ऐसे बड़े शहर में क्वीयर लोग अपनी आवाज़ उठा पाते हैं। जबकि मैं अभी भी एक शराब न पीने वाली उभयलिंगी/बाईसेक्सुअल औरत थी, जिसे देखकर कोई भी उसे 'स्ट्रैट' ही समझेगा। भीड़ में मुझे अलग कर कोई ये नहीं कह सकता कि मैं क्वीयर हूँ। मैं जो कि अबतक अपनी किशोरावस्था के टाइम वाले ठोस रंग के टी-शर्ट, जींस, छांटे जाने लायक पेंट्स- बोले तो बिना किसी पर्सनल स्टाइल के कपड़े पहन रही थी। मैं, जो किसी भी क्वीयर पॉप कल्चर के संदर्भों को जानती तक नहीं थी। और जिसने गलत होने के डर से कभी भी क्वीयर से जुड़ी राजनीति में हिस्सा नहीं लिया था। उस समय, अपने क्वीयर पहलू के बारे में ज़ोर से बोलने और गर्व करने की ज़्यादा ज़रूरत लगी थी, उन मामलों मे राजनैतिक तौर पे हिस्सा लेना कम ज़रूरी ।

फिर, मैं एक संगठन से जुड़ी जो खास तौर पर क्वीयर लोगों की बहाली करता था। मेरे मन में तब भी वही उलझनें थीं - क्या मैं 'स्ट्रैट' और 'गे' होने या ना होने के एहसास की बीच वापस लटकने वाली थी? ऑफिस में मेरा पहला दिन तब था जब हर कोई सालाना क्रिसमस की छुट्टी से लौटा था। मुझे याद है कि कैसे एक के बाद एक इंसान दरवाज़े से अंदर आ रहा था, एक-दूसरे को कसकर गले लगा रहा था और गिफ़्ट की अदला बदली कर रहे थे । उनके कान वगैरह छिदे हुए थे और बाल में इंद्रधनुषी रंगों के छाप थे। उन्होंने पूरे कॉन्फिडेंस के साथ प्रिंटेड और सिल्क के सलवार कमीज या कुर्ती-पैंट पहने थे, चटकीले रंगों का आईलाइनर लगाया था। 

वो लोग बैगी पैंट और शॉर्ट्स पहनते थे और इस बात पर हंसा करते थे कि किस्मत का कैसा खेल था- एक सेक्स-एजुकेशन वाली स्पेस में कई ऐसे लोग थे जो अपनी अलैंगिक (जिनको सेक्सुअल आकर्षण महसूस ना हो) विशिष्टताओं से पहचाने जाते थे। उनको शहर के पॉपुलर क्वीयर लोगों का अंदर-बाहर सब पता था। वो शहर में होने वाले हर क्वीयर प्रोग्राम के बारे में भी जानते थे। लंच के टाइम, वो लोग मेरे दोनों ओर बैठते थे और मेरे साथ गेम खेलते थे। चमकदार गुलाबी आंखों वाला स्टिकर लिए उनमें से एक ने देखा कि मैं असहज महसूस कर रही थी। तो वो शर्माते हुए मेरे पास आये और मुझे एक खरगोश के शेप का स्क्रंची देते हुए कहा, "ये रहा तुम्हारा क्रिसमस गिफ्ट"।

मुझे इस जगह की गर्मजोशी और रोज़मर्रापन पसंद थी। ऐसा नहीं लगा कि वो जानबूझकर अपनी पहचान का कोई भी पहलू सामने कर रहे थे। हम हर रोज़ ही जेंडर, सेक्शुअलिटी, नारीवाद और क्वीयर होने  पर मन खुश कर जाने वाली बातें करते थे। तब तक मेरा क्वीयर पहलू सिर्फ़ मेरा अपना था। लेकिन इस जगह में जो एक संतुलन था, उसमें मुझे जिस तरह का भी क्वीयर बनना था, मैं बन सकती थी। मैं चाहे सीधे-सादे तरीके से रहूं, या अपने क्वीयर पहलुओं को अपना के चलूं, खुद में गुरुर महसूस कर रही थी। आख़िरकार मैंने महसूस किया कि मैं बड़े क्वीयर समुदाय के साथ जुड़ने के लिए अब तैयार थी। 

=लेबल मुझे अजीब लगते थे। स्ट्रेट, बायरोमांटिक, हेट्रोसेक्शुअल, बाइसेक्शुअल, डेमिसेक्शुअल - मैंने इन सबको जानने-समझने की कोशिश की ताकि पता तो चले कि इन सबमें मैं कौन हूँ। मेरा मानना ​​था कि अगर मैंने  खुद को पूरी तरह से खुलकर सामने नहीं रखा, तो मैं दुनिया को मेरे अस्तित्व को ना अपनाने का एक और मौका दे दूंगी। मैं पहले भी क्वीयर लोगों से घिरी रही हूँ और‘गलत होने' से भी डरती रही हूँ।

अब मुंबई में तो मुझे ऐसे सैकड़ों लेबल मिले। यहां कई लोग एक साथ कई लेबल का इस्तेमाल कर रहे थे।  इन लोगों की अलग-अलग पहचान और खुद को व्यक्त करने के अलग-अलग तरह के भाव थे। एक तरफ तो उन्हें इस बदलाव की स्थिति के बीच खुद को संतुलित करते देखना, आज़ादी और खुलेपन जैसा लगा। लेकिन दूसरी तरफ, मैं पहले से कहीं ज्यादा दवाब और डर महसूस कर रही थी। 

मैं इस खुफ़िया क्वीयर सर्किट में कैसे कपड़े पहनूं, कैसी दिखूं, और कैसे बात करूं? अपने 'हिंज़' प्रोफाइल पर क्या लिखूं? वो सीक्रेट कोड और शब्द क्या थे जिनके बारे में मुझे पता भी नहीं था? मैंने सोचा, अपने वज़ूद को खुलकर अपनाने का क्या फायदा, अगर मैं अपने से लगते उन लोगों से अलग रहूं या उनके सामने डरती रहूं?

शुरूआत में मुझे लेबल के पीछे लोग कैसे हैं, वो समझने में मुश्किल हुई। ये कुछ ऐसे शब्द और वाक्यांश थे जिन्हें क्वीयर लोगों ने समाज की अवधारणा से 'मुक्त' होने के लिए रचा था। ऐसे शब्द जो दुनिया में हमारे होने और रहने के तरीके को सही ढंग से दिखाते थे, वो तरीके जिसकी कल्पना एक विषमलैंगिक कभी कर ही नहीं सकता। जब मैंने खुलकर पहली बार अपनी पहचान अपनायी थी, तो ‘क्वीयर’ शब्द बहुत डरावना और भारी लगा था। 'उभयलिंगी'/बाईसेक्शुअल जैसे शब्द - दो या उससे भी ज्यादा जेंडर की तरफ आकर्षित होना (मैंने उस समय 'दो से ज्यादा' को नजरअंदाज कर दिया था - मेरे हिसाब से तो दो ही हद से ज्यादा थे) - एक लंगर जैसा लगा, संभालने वाला ।

लेकिन लेबल यक़ीनन इस बात का संचयी नहीं हो सकते कि एक क्वीयर इंसान आख़िर है कौन? अगर हमने बंधनों से मुक्त  होने के लिए ये लेबल इज़ाद किये, और फिर अपने लिए कई लेबल इस्तेमाल किये... तो क्या ऐसे में हम मानदंडों के एक खांचे  से निकल दूसरे खांचे  में फिट हो सकते थे? हां, क्वीयर होना मतलब है मज़ेदार किस्म का अनोखा और अप्रत्याशित (unpredictable) होना। क्योंकि ये किस्म, ये तरीके आपके खुद के बनाये हुए हैं। ये तो तय है कि क्वीयर व्यक्तित्व को किसी एक रूप में बांधा नहीं जा सकता। ये क्वीयर होने के लक्षण कुछ होते भी हैं या नहीं?

इन सभी सवालों के बीच, मैं ख़ुशनसीब थी कि मुझे अपने क्वीयर सहकर्मियों के पास जाने का मौका मिला - वो सहकर्मी जो जल्द ही मेरे करीबी दोस्त बन गए। सोचने का समय था, कुछ बनने का समय था, असमंजस में रहने का समय था। मेरे दोस्तों ने उस 'कूल' क्वीयरपना  को अपना लिया था, जिसके बारे में मैं अब तक बताने में झिझकती थी। वो शहर में होने वाले इवेंट्स में मस्त घूमते, मेकअप करते, सबसे अज़ीबोगरीब, सबसे खूबसूरत तरीके से कपड़े पहनते, सामाजिक अन्याय के बारे में जोश से बात करते। ये सब देख मुझे लगता था कि मैं ये सब करने की हिम्मत नहीं रखती हूं।

मैंने धीरे-धीरे खुद को और ज़्यादा समझने की कोशिश की, ये जानते हुए कि अब मैं थोड़ा शांत और स्थिर महसूस कर रही थी, और साथ साथ अपने को ये जगह भी दे रही थी  कि मैं  फिर कभी-कभी गलती कर सकती थी। मैं ये जानना चाहती थी कि मेरी क्वीयरनेस किस हद तक जा सकती है, और मैं एक इंसान के रूप में कितनी हद तक आज़ाद हो सकता हूँ। मैं उस विशाल, कमाल, धमाल आज़ादी को महसूस करना चाहती थी जो ये मानने से आती है कि हम इस दुनिया से अलग हैं।

मैंने अपने बाल काट लिए और एक टैटू भी बनवा लिया। अगर मैंने यही काम पहले किया होता, तो आप बोल सकते थे कि ये सिर्फ क्वीयर समाज में फिट  होने की कोशिश थी। थोड़ी उधेड़बुन तो थी, लेकिन मैं जैसा चाहूं वैसा महसूस करने की और अपनी शर्तों पर अपनी राह चुनने की आज़ादी ले रही थी  । इसके होते मुझे अपने शरीर और सोच के साथ एक्सपेरिमेंट करने का मौका मिला  ।

एक ऐसी दुनिया की कल्पना करना आसान लगा जहाँ मैं सिर्फ एक सीधी-सादी उभयलिंगी/ बाईसेक्शुअल औरत ही नहीं, बल्कि एक बिंदास क्वीयर इंसान भी हो सकती हूँ - अगर मेरा जी करे तो। मैं ये भी बन सकती थी, वो भी बन सकती थी, कहीं बीच में भी जगह बना सकती  थी, दोनों के बीच झूल सकती थी, या पूरी तरह से कोई तीसरा रूप भी अपना सकती थी । ना ही कोई रूप या पहलू  कम था, ना ही छोटा। मैं अपने हर अवतार में उतनी ही क्वीयर थी।

दोस्तों के इस गर्मजोशी भरे झुंड में घिरे रहने से मुझे हॉरिजॉन्टल रिश्तों के बारे में भी बहुत कुछ सीखने को मिला। (हॉरिजॉन्टल रिश्ते वो होते हैं जिनमें हर इंसान का एक दम बराबरी का रिश्ता होता है )। अब तक, मेरे पार्टनर्स ही मेरे सबसे अच्छे दोस्त रहे थे, वे लोग जिनके पीछे मैंने अपना सब कुछ लगा दिया था। मेरी क्वीयरनेस ने मुझे एक ऐसी दुनियां दिखाई जिसमें दोस्ती और रोमांस के बीच कोई बड़े-छोटे का अंतर नहीं था।

इन दिनों, मैं वीकेंड पर उनके घर जाती हूँ। हम साथ में पैनकेक बनाते हैं, एक-दूसरे के लिए कविताएँ पढ़ते हैं - सिर गोद में, और हाथ-पैर एक दूसरे के ऊपर रखकर लेटते हैं। कभी-कभी, हम कैंपी/ज्यादा ही चमक दमक वाले कपड़े पहन पार्टी के लिए निकल जाते हैं। जी, ये सब चीज़ें हम एक साथ कर पाते हैं। हम क्वीयर तो हैं लेकिन दरअसल साधारण दोस्तों का ही ग्रुप हैं - यहां हम अपने सपने, चाहतें और दुःख एक दूसरे से बांटते हैं।

हर साल अपनी 'कमिंग आउट एनिवर्सरी’ पर, मैं प्राइड वाला शर्ट पहनती हूँ। जो के ने मुझे वो गिफ्ट की थी। एक ऐसी दुनियां जो‘ज़ोर से और गर्व से’बोलने में खुशी महसूस करती है, मैं वहां अपनी खामोशियाँ बांटती हूँ।

आज, मुझे किसी के सामने अपने आपको खुलकर रखने में कोई दबाव महसूस नहीं होता। ऐसी कोई परेशानी अब मौजूद ही नहीं है। मैं अपनी ज़िंदगी में अलग-अलग लोगों के सामने अलग-अलग तरीकों और अलग तरह की गहनता से खुलकर सामने आ सकती हूँ। अब मैं खुद को इस क्वीयरनेस के समंदर में डुबोने से डरती नहीं बल्कि और ज़्यादा उत्तेजित महसूस करती हूँ। इंद्रधनुष के इन रंगों में नहाना, बार-बार खुलकर बाहर आना, पसन्द है मुझे।

नियति एक रीडर और राइटर हैं। वो जिज्ञासु हैं, समुद्र के किनारे घूमना पसंद करती हैं और उनका मानना ​​है कि नेकी से दुनिया को बदला जा सकता है।

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