आरती दास की तस्वीर, जिन्हें मिस शेफाली के नाम से भी जाना जाता है, अपना दाहिना हाथ ऊपर उठाए हुए पोज दे रही हैं। उसने टू-पीस आउटफिट पहना हुआ है- एक ब्रा और एक पैंटी।
मिस शेफाली की कहानी - कलकत्ते की कैबरे रानी
साथ ही भारत में कैबरे का एक नन्हा इतिहास
(फ़ोटो: मिस शेफाली की एक बेहतरीन तस्वीर - या अगर उनके शो के विज्ञापन का कोई लाजवाब पोस्टर हो)
जब अंग्रेज आए, तो भारत में कामुक डांस की अपनी ही एक दुनिया थी।
मुजरा, नौच और बाईजी (और भी कई) का व्यापक रूप से अभ्यास किया जाता था और उन्हें बड़ा पसंद किया जाता था।
इस सहज कामुकता से अंग्रेजों के दिमाग गरम हो गए ।
एक ब्रिटिश अधिकारी कह रहा है : यहाँ के मूल निवासी सेक्शुअल रूप से भ्रष्ट हैं! हमें लुभाने की और अशुद्ध मिश्रित नस्ल के बच्चे पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।
अंग्रेजों ने इस डांस शैली - और डांसर्स - को सामाजिक गंदगी का लेबल दे दिया और उन्हें गैरकानूनी घोषित कर दिया। आने वाले लंबे समय के लिए, ये देसी सुख, शर्म और कलंक का कारण बन गए।
उपनिवेशीकरण/ colonisation एक आयात-निर्यात का धंधा ही तो है । इसलिए, इतना सब कहने के बाद, अंग्रेज़ अपने सेक्सी मनोरंजन को बाहर से लाने में जुट गए ।
पेरिस में मौलें रूज के चमकीले कपड़ों से लेकर, इंग्लैंड के संगीत हॉलों की चुटीली सेक्सीपने तक, सारे कैबरे भारत में आए और औपनिवेशिक शहरों के क्लबों में लोकप्रिय हो गए । कलकत्ता इस आयात का केंद्रबिंदु था।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, ब्रिटिश और अमेरिकी सैनिक कलकत्ता के एस्प्लेनेड के प्रसिद्ध होटलों - ओबेरॉय, मैक्सिम और शेहेरज़ादे में, कैबरे नाइट्स का आयोजन करते थे।
1947 में, ब्रिटिश चले गए। उसी साल, आरती दास का जन्म हुआ। वो आगे चलकर एस्प्लेनेड की रानी बनी। लेकिन कैसे?
आरती दास एक गरीब शरणार्थी परिवार से थी।
आरती का परिचय: बचपन में जब गवईयों की टोली हमारी बस्ती से गुज़रती थीं, तो मैं उनके पीछे पीछे चल दिया करती थी और अक्सर अपना रास्ता खो देती थी। मैं भूख-प्यास भूल, संगीत की लय पे झूमती -चलती रहती ।
जल्द ही, वो एक एंग्लो इंडियन घराने में काम करने लगी। पार्टियों के दौरान वो छुपके से मेहमानों को बैंड जैज़ और रॉक एंड रोल पर नाचते देखती थी, और उनके डांस की नकल करती थी।
इस तरह उसकी मुलाकात कलकत्ता के मोकैम्बो क्लब के गायक, विवियन हैनसन से हुई। उन्होंने उसे एक नया अवसर दिया।
स्वतंत्रता के बाद एंग्लो-इंडियन डांसर्स पलायन कर रहे थे। क्लबों को डांसर्स की ज़रूरत थी। लेकिन फिल्मों की तरह, कैबरे पे भी अनैतिकता के सवाल उठते थे, जिसकी वजह से बंगाली महिलाएँ उससे दूर रहती थीं । ऐसे में, क्या आरती,
फ़िरपोस नाम के क्लब में कैबरे डांसर बनना चाहती थीं?
आरती: फ़िरपो के लीडो रूम के आलीशान माहौल ने मुझे अपने वश में कर लिया था। मैंने सब छोड़-छाड़ कर, उसके लिए पूरे दिल से काम करने का फैसला किया।
आरती ने यूरोपीय शिक्षकों से सांबा, चार्ल्सटन, ब्लूज़, हवाईयन सीखा। और खुद से, भारतीय नृत्य शैलियों की भी शिक्षा खोजी और ली।
और इस तरह, एक स्टार का जन्म हुआ। उनको नाम मिला: मिस शेफाली
क्योंकि मिस शेफाली ने अलग-अलग डांस की शैलियाँ सीखी थीं, उन्होंने डांस के लय को मिक्स-एंड-मैच किया, और 60 के दशक के कैबरे माहौल में, वो नाच की धारा को बदलने वाली एक खास ट्रेंडसेटर बन गईं।
उनका नाच देखने के लिए नया इंडो-वेस्टर्न जत्था उमड़ पड़ा। उनके प्रशंसकों में सत्यजीत रे, अमिताभ बच्चन और शशि कपूर शामिल थे।
आरती: दर्शक मेरी पिछली जिंदगी, मैं कहाँ से आई थी, सबके बारे में अनुमान लगाते रहे। विदेशी और भारतीय उच्च वर्ग के लोग, मेरे लुभावने डांस पर लट्टू होकर फ़िरपो में उमड़ पड़ते थे।
मिस शेफाली ने बड़ी फितरती तरीके से बदलते देश की इच्छाओं और संवेदनाओं को सामने पेश किया। उन्हें दर्शकों पर अपने प्रभाव का भी पूरा एहसास था।
आरती: बैंड मैनेजर ने मुझे सलाह दी कि डांस खत्म होने के बाद मैं कभी भी फ्लोर पर न रूकूं। लोगों में मेरी 'मांग' हमेशा बनी रहनी चाहिए।
“मेरे पास सुंदर बदन था जो दर्शकों की धड़कनों को कुछ सेकंड के लिए रोक सकता था। वही तो मेरी सबसे कीमती संपत्ति थी - उसमें कल्पनाओं को बेचने की शक्ति थी।”
“मुझे डांस करने का शौक था, भले वो किसी भी तरह का हो।”
लेकिन 1970 के दशक के आख़िर में, वो उच्च वर्ग वाली क्लब संस्कृति काफी कम हो गई। फ़िरपो का लीडो रूम बंद हो गया। कैबरे का वो माहौल, श्रमिक वर्ग के इलाकों में बसे ‘कैबरे थिएटर’ की ओर चला गया।
मिस शेफाली वहां भी आगे रहीं ।
आरती: वो थिएटर, ओबेरॉय ग्रैंड के शानदार नाइट क्लब से अलग थे। लेकिन मुझे हर महीने 7000 रुपये मिलने वाले थे। जहां दिमाग लगाकर की गई एक्टिंग जैकपॉट हासिल नहीं कर पाई, वहां मेरे ‘अश्लील’ कैबरे ने मुनाफा कमाया। क्या कोई और इतनी आसानी से, चमक-दमक की दुनिया से निकलके, गंदगी में यूं रम सकता था ? और हर बार उतनी ही हिम्मत के साथ सामने आके, अपने को यूं बचाए रख सकता था?
*बालों को झटकाते*
मिस शेफाली ने शहर के उच्च वर्ग और आम लोग, दोनों की इंद्रियों को अपने जाल में बांध रखा था। वो अक्सर इस बारे में बात करती थीं कि कैसे उनको भीड़ की भूखी निगाहों की खबर थी । लेकिन वो किसी के सामने झुकी नहीं, बल्कि अपने दर्शकों के साथ खेलती रहीं ।
आरती: जब तक मैं डांस फ्लोर पर हूँ, तुम मेरे बदन के नंगे हिस्सों को देख सकते हो। लेकिन मेरी हाँ के बिना इसे छूने की हिम्मत मत करना!”
लगभग उसी समय – अपसंस्कृति या ‘विकृत’ संस्कृति के खिलाफ एक सांस्कृतिक धर्मयुद्ध, बंगाली समाज पे हावी हुआ ।
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भद्रलोक की भ्रांतियों पर मिस शेफाली का करारा ज़वाब?
“मैंने अपने घाघरे को कमर से कुछ और नीचे किया। आओ और देखो जो भी तुम देखना चाहते हो! मुझे तुम्हारी नैतिकता की परवाह नहीं है!”
मिस शेफाली ने परफॉर्म करने से तो संन्यास ले लिया, लेकिन डांस से नहीं। उन्होंने बेघर लड़कियों को डांस सिखाया ताकि वो बार में काम करके कुछ पैसे कमा सकें। 2020 में पश्चिम बंगाल के सोदेपुर में हार्ट अटैक से उनका देहांत हो गया। उनके अंतिम संस्कार में सिर्फ क़रीबी परिवार और दोस्त शामिल हुए।
कुछ लोगों ने उनको शर्मिंदा करने की कोशिश की। कुछ ने उनको नारीवाद की बेधरक मिसाल के रूप में सराहा। मिस शेफाली ने दर्ज़ों और परंपराओं से परे, डांस का एक ख़ूबसूरत रास्ता अपनाया।
“मैं कैबरे डांसर के रूप में अपनी पहचान को न ही बदनाम कर सकती हूँ और न ही ख़ुद को देवता बना सकती हूँ, क्योंकि आपको मेरे यही पहचान कभी-कभी अश्लील तो कभी-कभी राजनीतिक रूप से सही लगेगी ।”
शायद सबसे ज़्यादा, उन्हें रात भर नाचने में मज़ा आता था।अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस की शुभकामनाएँ।