Agents of Ishq Loading...

AOI ओर्गास्म वाली टेंशन सर्वे

लोग अपने सेक्स-लाइफ़ के बारे में क्या सोचते है? हमने पूछा. उन्होंने बताया.

हम ऐसे समय में रह रहे हैं जहां सेक्शुअल आज़ादी का बोलबाला है (हर जगह इसके चर्चे हैं, बड़ा ख़ुशक़िस्मत है ये) और जहां ऑर्गैज़्म में बराबरी के नारे, सोशियल मीडिया पे  छाए हुए हैं। लेकिन, एजेंटस, पिछले कुछ टाइम से, हमको आपके बीच 'ऑर्गैज़्म से जुड़ी टेंशन’ को लेके, फुसफुसाहट सुनाई दे रही है  ।

हमने इस खुसफुसाहट के बारे में और  पता लगाना चाहा। और इसलिए ए.ओ.आई, ऑर्गैज़्म के लेके टेंशन का  सर्वे करने का फैसला किया। हम लोगों से समझना चाहते थे कि जब वो ऑर्गैज़्म से जुड़े टेंशन का ज़िक्र करते हैं, तो वो कौन सी बात करना चाह रहे हैं, या कौन सी बात कह नहीं पा रहे ।

क्यों? क्योंकि, हम, एजेंटस, सेक्स को अच्छा नाम देना पसंद करते हैं। है ना!  लेकिन हम ये भी जानते हैं कि सेक्स की परिभाषा या अनुभव सबके लिए अलग-अलग होते हैं। तो जब हम ईमानदारी से, इसके नाज़ुक पहलुओं को सामने रखकर बात करते हैं, तभी हम खुद को और समझ पाते है। दूसरों की बात सुन पाते हैं, और  उनको भी समझ पाते हैं। और इस तरह सब साथ मिलकर सेक्शुअल हेल्थ और आज़ादी के नए रास्ते खोलते हैं, नए सफ़र तय करते हैं । 


तो हमने क्या जाना…

जो लोग  इस बात से घबरा रहे थे कि उनको ऑर्गैज़्म नहीं होगा तो क्या होगा, ऐसा नहीं है कि  उन्हें उसका सुख नहीं मिल रहा था। (और असल में ये सर्वे इस बात पर फ़ोकस नहीं कर रहा कि किसे ऑर्गैज़्म होता है और किसे नहीं)। लेकिन, हमने देखा कि ये जो सेक्स को लेकर हर् वक़्त पॉजिटिव रहने की  चर्चाएं हो रही हैं, वो काफ़ी ज़ोर पकड़ रही हैं। और यह लोगों में टेंशन  भी पैदा कर रही हैं । जैसे कि, 41.5% लोग इस बात को लेकर परेशान थे कि क्योंकि उनको कम ऑर्गैज़्म होते हैं, और इसलिए उन्हें चिंता थी कि उनको सेक्शुअल रूप से दब्बू,  या उन्हें 'सेक्शुअल तरह से कम आज़ाद ' माना जायेगा। 

जी हां, ये चौंकाने वाली बात है! ये जो ऑर्गैज़्म को लेकर हो-हल्ला है, "हेलो... किसको ज्यादा ऑर्गैज़्म हो रहे हैं और किसको एकदम पलंगतोड़ वाले "... ऐसी बातें,  लोगों को उस जत्थे से अलग महसूस करा रही हैं, और उनमें टेंशन  भी पैदा कर रही हैं।

ये सर्वे इस बात पर भी रोशनी डालता है, कि लोगों के लिए सेक्स और सुख का असली मतलब क्या है। और इससे हमें उनके अंदर छुपी नज़दीकियों, नाज़ुक पहलुओं, चाहतों और और  भी कई सारी भावनाओं का पता चलता है।


ये सर्वे किन लोगों पर किया गया?

258 लोगों ने इस सर्वे में हिस्सा लिया और यहां हम देखेंगे कि उन्होंने अपनी पहचान कैसे बयान की।

हम्म , आप जानने के लिए उत्सुक है! क्या कहा आपने ? ओहो, ये पूछा जा रहा है कि ऑर्गैज़्म को लेके टेंशन … असलियत में ऐसा कुछ है भी कि नहीं ? 


कुछ लोग सोच रहे हैं कि ये आख़िर, किस बात का हंगामा है? क्या ऑर्गैज़्म अच्छी चीज़ नहीं है?  या तो आपको ये होता है या नहीं होता है - और अगर नहीं होता तो होना चाहिए।  एक 23 साल की औरत, जिसे हस्तमैथुन और पार्टनर के साथ सेक्स, दोनों के दौरान ऑर्गैज़्म होता है- उसको तो यही लगता है । उसके शब्दों में-


“यार कभी-कभी लोगों के मन में ऑर्गैज़्म को लेकर इतना शोर होता भी नहीं है।  ठंड रखो ! मुझे इसे लेकर कोई टेंशन नहीं है- और ये ऑप्शन भी सर्वे में होना चाहिए । लोगों को ऐसा क्यों लगता है, कि पूरी दुनियां को ऑर्गैज़्म -टेंशन है?”


लेकिन हमारे सर्वे ने एक अलग कहानी बयान की...

क्या ज़्यादातर लोग ये कह रहे हैं, कि उनको ऑर्गैज़्म हो रहा है?  हाँ।

लेकिन साथ ही साथ, अजब बात ये है, कि काफी सारे लोग ये तय ही नहीं कर पा रहे, कि उनको कभी ऑर्गैज़्म हुआ भी है  या नहीं।

और इस बात पे ग़ौर करना सही होगा कि -  ज़्यादातर लोगों ने खुद के हाथों से ऑर्गैज़्म का सुख ज़्यादा पाया, किसी दूसरे से हाथों, कम । 

स्लाइड शो नीचे है:

अब एक ऑनलाइन सर्वे के आधार पर ये कह पाना तो मुश्किल है कि इस टेंशन का असर, सेक्शुअल सुख पे भी पड़ता है ? या फिर ऐसा होता है कि सेक्शुअल सुख मिलने में दिक़्क़त आने पे , ये टेंशन बेड पे बेधड़क बिछ जाती है? लेकिन, जिन 13 लोगों ने ये कहा कि उनको कभी ऑर्गैज़्म हुआ ही नहीं है, उनमें से भी 10 ने टेंशन महसूस की थी। और 34 वो लोग , जो तय नहीं कर पा रहे थे कि उनको कभी ऑर्गैज़्म हुआ भी है या नहीं, उनमे से 15 भी इस टेंशन का शिकार थे।

हमने देखा कि ज़्यादातर लोग इस बात को लेकर परेशान थे, कि सेक्स के दौरान, उनके पार्ट्नर उनके बारे में क्या सोचेंगे ? कुछ को अपनी बॉडी इमेज की टेंशन थी,  तो कुछ को ये डर है कि उनका पार्टनर कहीं उनको स्वार्थी, या उनकी ज़रूरतों पे खरा ना उतरने वाला, कमतर, या ठंडा या परेशानी की दुकान … ऐसा कुछ ना समझ बैठे। 

88 लोग सोच रहे थे कि वो ऑर्गैज़्म का सुख भोगने के क़ाबिल हैं भी या नहीं। ऐसा हो सकता है कि वो अपने सेक्शुअल पहलू को ज़्यादा पहचानते नहीं ? उन्होंने बिना कुछ पड़ताल किये, क्या बहुत जल्दी ये नहीं मान लिया कि सारी कि सारी ग़लती उनकी ही होगी ? 

टेंशन का पिटारा 

जो जवाब  हमें मिले, उसके आधार पे,  टेंशन  के चार अहम पहलू सामने आए।

इससे एक बारीक सी तस्वीर बनी जिससे पता चला कि लोग अपनी सेक्शुअल दुनिया के अंदर, आख़िर किन-किन चीज़ों का सामना करते हैं। ऐसी सरल धारणाओं से दूर, कि सेक्स में क्या माना है, क्या नहीं या किस बात पे शर्म आनी चाहिए   । 

सेक्शुअलिटी और नज़दीकियों के बारे में लेकर जो बातचीत होती है, वो काफी जल्दी और लगातार बदल रही है। ये बदलाव पेंचीदा हैं और इस बात की झलक सर्वे के जवाबों में दिखती है।


 A. हमारा शरीर,  हम, ख़ुद  

 

टेंशन  की सबसे बड़ी वज़ह जो सामने आई, वो थी बॉडी इमेज। काफी लोगों को फिक्र थी कि अगर वो अपने पार्टनर के सामने कपड़े उतारेंगे तो उनका शरीर दिख जाएगा। कई लोग इस बात पे बहुत ही कोंशियस फ़ील करते थे  कि उनका शरीर कैसा दिखता है, कैसा गंध देता  है और उनके पार्टनर बिस्तर में उनके बारे में क्या सोचते हैं। उनको ऑर्गैज़्म में कितना टाइम लगता है, और इसपर उसके पार्टनर की क्या प्रतिक्रिया रहती है, वो सोच भी कईयों को परेशान करती है। 


ट्रांसजेंडर और नॉन-बाइनरी (जो अपने आप को पुरुष या महिला किसी भी जेंडर की सीमा में बांधना नहीं चाहते हैं) लोगों में ये टेंशन, और कई गुना बढ़ जाती है। वज़ह है, जन्म पे उनको दी गयी लिंग पहचान और ख़ुद की जेंडर पहचान के बीच चल रहा द्वन्द, और उससे, उनकी मुश्किलें ।

वैजिनिस्मस (योनि संकुचन), योनि फटने का डर, दर्द, बेचैनी और रजोनिवृत्ति /मेनोपॉज़ के बाद आती मुश्किलें भी लोगों की ऑर्गैज़्म की टेंशन की सामान्य वज़ह बन रही थी। 


B) जेंडर से जुड़ी परेशानियां

 

जेंडर के हिसाब से लोगों से उम्मीदें जोड़ दी जाती हैं,  कि आपको अपने जेंडर के अनुसार, सेक्स के दौरान कैसा व्यवहार करना चाहिए, खासकर अगर आप विषमलैंगिक (cis/heterosexual) मर्द या औरत हो । इस नज़रिये का प्रभाव हर जेंडर पर पड़ा है। सर्वे में भाग लेने वाले लोगों में से लगभग एक तिहाई ने, मर्दों से वही पुरानी वाली  उम्मीदें रखी थीं,  जो सदियों से चलती आ रही थीं। जैसे कि एक 26 साल की औरत का कहना था कि अगर किसी लड़के का 'पेनिस खड़ा नहीं हो पा रहा है', तो उससे बुरी बात क्या हो सकती है। 

लेकिन मर्द जितना सोचते हैं, उनकी मर्दानगी से उस हद तक उम्मीदें भी  नहीं  होती हैं। जैसे कि:

मर्दों के ऊपर जो ये परफॉर्म करने का दबाव है, दरअसल सामाजिक कंडीशनिंग उसकी जड़ है। उनके पार्टनर ऐसा चाहें या मांगें, ये ज़रूरी नहीं है। काश ! अगर पब्लिक में उछल रही सेक्स संबंधी बातों पर अगर ध्यान ना देकर,  अगर लोग  प्राइवेट चाहतों को टटोल पाएँ, तो बहुत कुछ बहतर नज़र आएगा। 


C) मेन्टल हेल्थ ज़रूरी है 

 

क़रीबी रिश्तों में, मेन्टल हेल्थ की अहम भूमिका है। और हमारे सर्वे के दौरान मिले ज़वाबों ने भी इस बात को सच साबित किया। कई लोग जिन्होंने जिंदगी के किसी पड़ाव पर बुरा बर्ताव सहा है,  या जिन्हें बार बार रिजेक्ट किया गया है और उसका डर उनमें बैठ गया है, उनके लिये ये सब और मुश्किल हो जाता  है ।


ऑर्गैज़्म की टेंशन सिर्फ सेक्स या उससे सम्बंधित चीजों की वज़ह से नहीं होती । और ना ही मेंटल हेल्थ में दिक़्क़त, हमेशा किसी बड़े हादसे या आघात का ही नतीजा होती है  । ये जो हमारी बीच-बचाव करती दुनियां है ना, उसमें हमारे सिर के ऊपर सैकड़ों तनाव और ध्यान भटकाने वाले अश्त्र-शस्त्र घूमते रहते हैं। सर्वे के दौरान कुछ लोगों ने माना कि कई बार एक छोटी सी सोच भी उनका ध्यान भटका देती है और वो ऑर्गैज़्म तक पहुंच भी नहीं पाते हैं।

शहर में दक़ियानूसी सोच बनाने को, नया  टॉपिक आया है: सेक्स को लेके केवल पोज़िटिव सोच । इसके बाद का मुद्दा होगा- पोर्न। यानी ‘लोग उसके बारे में क्या कह रहे हैं'।

एक टाइम था जब सेक्स पे बड़ी पाबंदी थी, सेक्स करते समय लोगों पे इसका असर होता था । अब इस सर्वे में भाग लेने वालों से हमें पता चला है, कि उनको सेक्स की ऑनलाइन दुनिया से भी टेंशन होती है । 


एक तरफ पोर्न और सेक्स को लेकर मेनस्ट्रीम (मुख्यधारा) बहस ने ये ऐलान कर रखा है कि 'ऑर्गेस्म तो मर्दों का मामला है  है'। अब ये ना सिर्फ लोगों में ऑर्गैज़्म की टेंशन पैदा करती है, बल्कि उनको अपनी बॉडी इमेज के बारे में भी टेंशन लेने पे मज़बूर कर देती है।


वहीं दूसरी ओर, इसका एकदम उल्टा! सेक्स-पॉज़िंटिविटी के बहाने  ये सोच जड़ लेती है कि 'हाय हाय ! ऑर्गैज़्म के बिना तो तुम्हारी ज़िंदगी बकवास होगी' । साथ साथ ये  इस बात की तरफ इशारा भी करती है कि आख़िर अच्छा सेक्स किसे कहते हैं। अधिकतर लोग दूसरों के सेक्स लाइफ और उनकी ऑर्गैज़्म की लम्बी चौड़ी कहानियां सोशिअल मीडिया पर देखते हैं, और  उससे मुकाबला करने में दिक्कत महसूस करते हैं।


लोगों की टेंशन  बढ़ाने वाली चीजें:

ये यक़ीनन एक अच्छी बात है, ख़ासकर जवान लोगों में, कि वो खुलकर सेक्स की बात करते हैं। लेकिन इन सबके बीच एक डर भी पनप रहा है। लोग घबरा रहे हैं कि कहीं उनको ''सेक्स-पॉजिटिविटी'' में कम ना आंका जाए... क्योंकि खुलकर बात करने का ये मतलब नहीं है,  कि सारी बातें सही और सच भी हैं ।

हमने लोगों से पूछा कि यहाँ कही बात के बारे  में उनका क्या ख़याल है!

एक सवाल जो हमने सर्वे के दौरान पूछा था वो ये, कि आख़िर ऐसी कौन से  पॉपुलर स्टैण्डर्ड हैं, ऐसी कौन सी चीज़ें हैं जो दूसरों से सुनकर आपमें ऑर्गैज़्म की टेंशन बढ़ जाती है। तो सबसे ज्यादा जिस ऑप्शन को चुना गया वो था  'लोगों का पलंगतोड़ सेक्स को लेकर शेखी बघारना'। सोशीयल जिंदगी में दूसरों से ख़ुद की तुलना करना तो वैसे भी टेंशन का सबसे पुराना कारण रहा है। लेकिन हाँ, सोशीयल मीडिया ने एक दूसरे से  तुलना  करने को, कई गुना बढ़ा दिया है।


हमारी ये सोच और खरी निकली, जब हमने लोगों को पूछा कि क्या आपको लगता है कि दूसरे लोग आपसे बेहतर सेक्स कर रहे हैं?। और उनका ज़वाब ‘हां, बिलकुल’  था।

और जब हमने उनको पूछा कि आपको क्या लगता है, ऑर्गैज़्म का सुख पाने के रास्ते में, आपको  कौन सी  अड़चन का सामना करना पड़ता  है? तब किसी ने कहा:

"एक पल की नोटिस पर ऑर्गैज़्मना हो पाने की टेंशन ! जैसे मुझे पता है कि मेरे सबसे अच्छे दोस्त को ऑर्गैज़्म के लिए सिर्फ 5 मिनट लगते हैं, पर मुझे उससे काफी ज़्यादा। कभी-कभी तो 30 मिनट से भी ऊपर। मैं कभी पूरे तरीके उत्तेजित हो पाऊं, ऐसा होता ही नहीं है। हमेशा एक टेंशन  रहती है। दिमाग इधर-उधर चला जाता है, और बस ऑर्गैज़्मके बिल्कुल नज़दीक जाके, हार के  वापस आना पड़ता है। और ये सब कोई सेक्सी तरीके से नहीं होता है। कभी तो- हे भगवान, बस होते-होते रह गया। और कभी जब हो गया तो वैसा जोश वाला अनुभव ही नहीं फ़ील होता । पता नहीं क्यों! मानो कुछ सेकंड में ही ख़त्म। जैसा मुझे चाहिए, ना ही वैसे होता है और ना ही वैसा महसूस कराता है।”

ये जो ऑर्गैज़्म की गिनती और उसकी क्वालिटी की तुलना की जा रही है, उसे देखकर वो ज़माना  याद आ जाता है,  जब हर बच्चे की तुलना पास वाले शर्मा जी के बेटे से की जाती थी! 

और शायद, ये एक ज़रूरी इशारा है, कि सेक्स पॉजिटिविटी पर नए सिरे से बातचीत की जानी चाहिए ।  


स्पेस, आख़िरी सीमा

अब  ऑर्गैज़्म को लेके  टेंशन  किसी खाली कुएं से तो बाहर आई नहीं है। हमारे सबसे प्राइवेट अनुभव में से भी कुछ, हमारी संस्कृति से संबंधित हैं,  तो कुछ, भौतिक/मटेरियल वास्तविकताओं से। कुछ लोगों के लिए टाइम और जगह भी एक प्रॉब्लम थी। समस्या: कुछ के पास इतनी प्राइवेसी ही नहीं थी।

यहाँ दो लोगों के ज़वाब काफी दिलचस्प थे: "बिल्लियाँ" "दरवाजे पर दस्तक देते लोग"।

"मुझे लगता है कि वैसे भी सेक्स करते समय, हम थोड़े  कम्फ़र्टेबल नहीं होते । तो अगर ऐसी तनाव रहित जगह मिल जाए, जहाँ हमें पता हो कि कोई बीच में आके परेशान नहीं करेगा , तो वो हमारे लिए बहुत अच्छा होगा ।"


तेरे मेरे बीच में क्या है? पार्टनर वाले  सेक्स की नज़दीकियों  और मुश्किलों से भरी दुनिया के अंदर

हालांकि दुनिया का बेडरूम में घुसना, तनाव की लाजमी वज़ह है, सर्वे से ये भी पता चला कि पार्टनर की नज़दीकियों में भी कई मुश्किलें छुपी होती हैं।  

"पार्टनर के साथ होते सेक्स में, कभी-कभी मुझे ऑर्गैज़्म आते-आते काफी टाइम लग जाता है, और इससे मेरी फिक्र बढ़ जाती है," ये भी एक सामान्य मुद्दा था।  

कुछ जवाबों ने इस बात की तरफ इशारा किया कि ऑर्गैज़्म की इस रेस में, हम अपनी तुलना बाहर वालों से तो करते ही हैं, पर अपने ख़ुद के पार्ट्नर से भी करते हैं ।

वैसे लोग ऐसा महसूस करते हैं, इसमें कोई चौंकने की बात नहीं है। खासकर अगर हम ऐसी सोसाइटी में हों, जहां सिर्फ मर्द और औरत के बीच का सेक्स (यानी विषमलैंगिक सेक्स-  जिसमें पिनिस वैज़ाईना के अंदर जाए) को ही बढ़ावा दिया जाता हो। सेक्स की इस सीमा में बंधी परिभाषा में, ऑर्गैज़्म वो आखिरी लाइन है, जिसे सबको सही तरीके से, सही समय पे पार करने का प्रेशर रहता है । यूँ लगता है जैसे तभी ये साबित होगा कि वो सेक्स की सही राह पर चल रहे हैं। ठीक वैसे जैसे आपको बोर्ड एग्जाम में 99% लाना होता है, ताकी ये समाज आपको अपनाए।

सवाल के जो ज़वाब आये, उनमें नंबर्स कुछ इस तरह के हैं-

लोगों ने माना कि अगर उनका पार्टनर ऑर्गैज़्म का सुख पा लेता है, लेकिन वे खुद ऐसा नहीं कर पाते हैं, तो वो बहुत बुरा महसूस करते हैं। कुछ ने तो ये तक कहा कि 'अच्छी तरह' ऑर्गैज़्म ना कर पाने की वज़ह से वो खुद को कसूरवार मानने लगते हैं। उनको लगता है कि कहीं इससे उनको ख़ुद में कमी लगती है और ये भी लगता है कि उनके पार्टनर को अपने बारे में बुरा लगता होगा ।

कई सारे ज़वाब में ये लिखा था, कि पार्टनर सेक्शुअल ज़रूरतों को या तो समझ नहीं पाते हैं, या उन्हें पूरा नहीं कर पाते हैं।

और घूम-फिरकर लोग वापस उसी जगह आ जाते हैं ,जहां वो ख़ुद को लेकर परेशान रहते हैं, क्योंकि उनके हिसाब से प्रॉब्लम उन्हीं में है।


पार्टनर के साथ वाले सेक्स में ऑर्गैज़्म को लेके टेंशनस, सवालों के सैलाब खड़े कर देती है । ये सवाल उस क़रीबी को लेके होते हैं, अपने को अपनाए जाने के बारे में होते हैं । कई लोग अपने पार्टनर से सेक्स के बारे में बात करने से झिझकते हैं। उनको फिक्र होती है  कि ना जाने क्या और कैसे ज़वाब मिलेंगे। और कहीं इस सब से उनके पार्टनर उनके बारे में कुछ नया और अजीब सा ना सोचने लगें ।

यानि कि हर कोई जलते तवे पर नहीं तैय्यार बैठा है कि उनका पार्टनर अभी के अभी  आये और उनसे ऑर्गैज़्मका अपडेट ले। 

जवाब देने वालों में से लगभग 40.5%  इस बात से बहुत उत्सुक नहीं हुए कि   "उनका पार्टनर आकर उनसे पूछेगा कि आपको ऑर्गैज़्म आया या नहीं?"

57.3% ने कहा कि उन्होंने कभी ना कहबी ऑर्गैज़्म का नाटक किया। जबकि 9% के करीब ने ये कहा कि उन्होंने ऐसा दिखावा करने की कोशिश ही नहीं की क्यूँकि उनको लगा कि अगले को इससे कोई मतलब नहीं था कि उनको क्या लग रहा था   ।

ऐसा नहीं है कि हर कोई 'वो बात करने' से बच रहा था।  क्या चीजों के बारे में बात करने से मदद मिलती है, है ना ? पॉपुलर सलाह तो यही कहती है!

हमने पूछा: क्या आपने अपने पार्टनर/पार्टनर्स के साथ इस टेंशन  के बारे में बात करने की कोशिश की है? बताओ वो बात-चीत कैसी रही …

एक 28 साल की उभयलिंगी (bisexual- जो मर्द और औरत , या अपने जेंडर और दूसरे जेंडर,  दोनों की तरफ आकर्षित हो) औरत, जो हस्तमैथुन करते समय हमेशा ऑर्गैज़्म का सुख पा लेती है, लेकिन सेक्स के दौरान बस कभी-कभी, कहती है- , "सेक्स के बारे में बात-चीत या तो बहुत बुरी तरह से खत्म होती है या फिर आपसी समझ के साथ।"


ये चर्चा, कि सेक्स के दौरान ऑर्गैज़्म हुआ या नहीं, फिर पार्टनर से उसके बारे में बातचीत करनी चाहिए या नहीं.. इस सब को लेकर बड़ी उथल पुथल मची हुई है, पर यहां शायद एक और सवाल पूछने लायक है:

क्या हर किसी के लिए,,,  उनके सेक्शुअल और रोमांटिक संबंधों/जीवन में ऑर्गैज़्म का होना , बराबर का मायने रखता है ?

आप इस बारे में क्या महसूस करते हैं?

"पहले की तुलना में अब हालात बेहतर है। मुझे मेरे पार्टनर से प्यार है। वो पहला इंसान है जिसके साथ मैंने सेक्स किया। और अब डेढ़ साल बाद, मैं आख़िरकार उसके सामने ऑर्गैज़्म करने में सहज हूं। अब मैं ये भी नहीं सोचकर बैठती हूँ कि मेरा ऑर्गैज़्म उसकी ज़िम्मेदारी है। ना ही सेक्स टॉयज़ इस्तेमाल करने से झिझकती हूँ। मुझे ये तो नहीं पता कि मैं पारंपरिक तरीके से  ऑर्गैज़्म का लुत्फ़ क्यों नहीं उठा पाती हूँ। पर अब मुझे उसकी फिक्र कम, और ऑर्गैज़्म ज्यादा होते हैं। मुझे लगता था कि भगशेफ से (clitoral) और वैज़ाईना से, एक जैसा ऑर्गैज़्म की फ़ीलिंग आती होगी । पर अब मुझे पता है कि मेरी बॉडी के लिए ऐसा नहीं है। और इसमें कोई फिक्र की बात नहीं।"

सोचो, अगर एक समानांतर जिंदगी में, हम सब 'सेक्स' की उन गलत धारणाओं की जगह अपनी-अपनी सेक्शुअल सोच को सामने रखें, तो क्या हो। क्या फिर सेक्स की कहानी अलग होगी? क्या फिर सिर्फ ऑर्गैज़्म पर ही सारी नज़रें नहीं टिकी रहेंगी। क्या फिर हम सेक्स के अलग-अलग पहलू की ओर खुलेंगे। क्या हमारी जिंदगी और रोमांटिक और सेक्शुअल हो जाएगी? क्या इससे टेंशन  कम या खत्म हो जायेगी? क्या इससे, सचमुच, और ऑर्गैज़्म होने लगेंगे? 

इन सवालों ने सेक्शुअल आज़ादी और सेक्शुअल मज़े के और कई दरवाज़े खोल दिये।

हमने लोगों से कहा कि अपने ऑर्गैज़्म पर नोट्स लिखो। उनके लव-लेटर्स के कुछ नमूने देखो-

काफ़ी चौकाने वाली चीज़ें पता चलीं । जैसे कि लोग असल में ऑर्गैज़्म के लिए ज्यादा कम्फर्ट, लिपटना-चिमटना , नज़दीकियाँ , मसखरी, गहराई और फोरप्ले चाहते हैं। और हां, उनको एक चमत्कार की भी तलाश है, जिससे उनके कन्धों से दुनिया का भार हट जाए और वो आराम से ऑर्गैज़्म का सुख पा सकें। 

सर्वे से ये पता चलता है कि एक सेक्स-पॉजिटिव कल्चर बनाने के लिए, हम सिर्फ मकसद और मंज़िल लेकर नहीं चल सकते हैं। सबसे पहले, हमें सेक्स और नज़दीकियों के बारे में और खुलकर बात करनी होगी। लोगों को अपने सेक्शुअल अनुभव, उनकी दुविधाएं और चाहतों के बारे में बताने के लिए उत्साहित करना होगा। ऐसा सेक्स एजुकेशन जो आनंद की बात करे, उससे शायद धीरे-धीरे बदलाव आयेगा। नारों और #उद्देश्यों से परे, पब्लिक में, सेक्स के बारे में सही और सच्ची बातें होंगी।

"ऑर्गैज़्मना ही सब कुछ नहीं है और ना ही सभी सेक्शुअल अनुभवों का आख़िरी पड़ाव। नज़दीकियों में मुझे ज्यादा सुख मिलता है। हाँ, वैसे ऑर्गैज़्म में बहुत मज़ा  है। अगर वो हर समय हो रहा है तो उह... ला...ला!”


"मुझे लगता है कि मेरी जैसी कहानियों को जानने से, जहां लोग 20 साल की उम्र में हस्तमैथुन करना शुरू करते हैं, उसको लेकर घबराए रहते हैं, और क़रीबी रिश्ता काफ़ी टाइम बाद बनाते हैं- आपको अलग सा लगेगा। लेकिन ठीक है... हमारे पास अपनी चाहतों को जानने और पाने के अलग अलग रासे होते हैं। ”


"अगर सेक्स के दूसरे आयाम रोमांचक और मसखरी से भरे हों , कामुक हों,  बस पिनिस के योनी के अंदर ले जाने के बारे में ही न हों - तो ऑर्गैज़्म की फिक्र कम होगी।"


"ये हर किसी के लिए अलग है और अगर किसी को ऑर्गैज़्म नहीं होता है, तो ये कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन हां, इसकी वज़ह समझनी चाहिए और अगर पार्टनर शामिल हैं ,तो उनसे बात करने की भी कोशिश करनी चाहिए।  बिना किसी शर्म या बिना खुद को किसी बात का दोषी मानते हुए, अपने शरीर को समझना और उसके साथ एक्सपेरीमेंट भी करना चाहिए।


सामान्य जागरूकता कि यही कोई आख़िरी उद्देश्य नहीं है। घिसी-पिटी सोच से अलग। सॉरी, मैं समलैंगिक हूं... इस तरह के तनाव से दूर, आश्वस्त, कॉन्फ़िडेंट, मस्त ।


"पर्याप्त सेक्स और जेनेरल नज़दीकियां! हां, ऑर्गैज़्म अच्छा लगता है, लेकिन अगर मुझे प्यार मिल रहा है, सामने वाले को मुझसे सेक्स करने की चाहत है और सेक्स बढ़िया है- तो मुझे ऑर्गैज़्म के बिना रहने में कोई दिक्कत  नहीं। ”


साफ़ ज़ाहिर करना <3

Score: 0/
Follow us: