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दो रिलेशनशिप्स , चार साल , और नारियल पेड़ रहित बैंगलोर शिफ्ट होने के बाद मुझे कोई ऐसा मिला जिसका साथ मुझे नवंबर की सर्द सुबह में हल्की धूप जैसा लगता था। हम बेस्ट फ्रेंड्स थे , और जब मैंने उससे बैंगलोर की ट्रैफिक में अपना बॉयफ्रेंड बनने के लिए बोला, तो ऐसा लगा हमारा रिश्ता बाकी रिश्तों से एकदम हट के होगा। हम और पक्के दोस्त बनेंगे। हम वही सब करते थे जो रिलेशनशिप में आने से पहले करते थे। हंसी -मज़ाक , लड़ना , असाइनमेंट्स में एक दूसरे की मदद , बस फर्क इतना था कि हम बस एक दूसरे का हाथ पकड़ते थे।
वो छोटी छोटी इल्ली तितली बनने का नाम ही नहीं ले रही थीं - यानी पेट में वो प्यार वाली गुदगुदी नहीं हो रही थी। हाँ इल्लियों की संख्या बढ़ गयी थी ।
बैंगलोर मुझे सतरंगी दुनिया के दर्शन करा रहा था और मुझे कॉलेज के सेकंड ईयर में आके, एसेक्सुअलिटी (सेक्स की चाह न होना) का मतलब पता चला । उस वक़्त मुझे प्रेम सम्बन्धों या उससे मिलते जुलते संबंधों के बारे में बहुत कुछ नया पता चला । कि जो मेरे फ्रेंड्स सोचते है , मैं वैसा नहीं सोचती। उससे पहले मुझे लगा किसी के साथ सेक्स के बारे में सोच के, सबको वैसा ही लगता होगा जैसा मुझे लगता है - एक अजीब सा डर । पहले मुझे ऐसा लगने की वजह अपनी भारतीय परवरिश लगी, जहां सेक्स या सेक्शुअल हेल्थ को लेके किसी से बात करने की जगह ही नहीं थी । मुझे यह सोच के बड़ा आश्चर्य हुआ कि कैसे यह शब्द ' एसेक्शुअल ' मेरे पेट में जा के ऐसे बैठ गया और वैसा भरा भरा एहसास देने लगा, जैसे मुझे कटोरा भर के गर्म कांजी खाने के बाद होता है। मुझे दूसरो की फैंटसी/ख़याली पुलाओ में जीने की बजाय, अपनी खुद की फैंटसी बुनने का मौका मिला।
ऐसा लगा मानो मुझे प्यार हो गया हो। किसी और से नहीं , खुद के बारे में अपनी इस नयी सोच से। आख़िरकार उन तमाम इल्लियों ने अपना रूप बदल ही डाला था और उनकी जगह नीले रंग की तितलियाँ मेरे अंदर फुदक रहीं थीं, जो मुझे हौले हौले गुदगुदाने लगीं।
मैं खुद को शारुख की पिक्चर की हीरोइन समझ रही थी कि अचानक मुझे याद आया कि मेरा बॉयफ्रेंड इतना समझदार नहीं है। मैं उससे ब्रेकअप तो नहीं करना चाहती थी क्यूंकि वो अब भी मेरा बेस्ट फ्रेंड था। लेकिन मुझे यह बात बहुत अच्छे से समझ आ गयी थी कि अपने इस हिस्से को और अच्छे से समझने के लिए, वैसे ही मशक्कत करनी पड़ेगी जैसे अनु ने इरफ़ान के लिए की थी।
टाटा चा में बैठे बैठे यह बात ऐसे गोल गोल घूम रही थी जैसे मेरे चाय की कप में चम्मच। उसे यकीन था कि वो हमारे रिश्ते को बचा लेगा और मुझे यकीन था कि हम इस चक्कर में अपनी दोस्ती खो बैठेंगे।
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इस बात को दो साल हो चुके है। हालांकि अपने बारे में मुझे अभी बहुत कुछ सीखना है , लेकिन अपने आप को ले के मैं पहले से ज़्यादा कम्फ़र्टेबल तो हूँ ही।
आजकल मुझे अपना साथ, प्रेशर कुकर की तरह गरम और परेशां सा नहीं लगता। बल्कि अपने साथ बैठ के मुझे ऐसा लगता है, जैसे मुश्किल और लम्बे दिन के बाद रैमेन खाते हुए, कोरियन ड्रामा देखने के बाद लगता है।
वो हारमोन की झील , जिसमे मैंने खुद को ज़बरदस्ती धकेला था , मैं उससे बाहर आ चुकी हूँ और खुद को आज़ाद महसूस कर रही हूँ। मुझे लगता है, इस दिल की गुदगुदी से, मुझे साइकिलिंग ज़्यादा पसंद है। क्या पता ?
टीनाज़ अक्सर या तो ऊपर बादलो को निहारती नज़र आएँगी या नेटफ़्लिक्स पे आने वाले कोरियन ड्रामों का मुफ्त में प्रचार करती नज़र आएँगी। उसे रात के 2 बजे वाली चाय और किताबों की लिस्ट बनाना बहुत पसंद है। वो कभी कभी https://sosimplyunordinary.wordpress.com/ पे लिखती है।
