छोटा ‘प’ बड़े ‘प’ को चुनौती देता है, और पीनिस के अलावा दूसरी जगहों में भी उत्तेजना हो सकती है।
दसवीं कक्षा की जीव-विज्ञान/ बायोलॉजी की क्लास में मनुष्यों की प्रजनन तंत्र/ रिप्रोडक्टिव सिस्टम में आपने ये सब सीखा होगा। हाँ, ‘वही स्पेशल’ चैप्टर जो आधा अधूरा सिखाया जाता है। उस चैप्टर में जितनी भी मज़ेदार, कामुक बातें थीं, उन सबको टीचर फ़ट से ख़त्म कर देती। और तो और चैप्टर सिखाते समय, वो अपना चेहरा सीरियस बनाकर हमारे चेहरों को ग़ौर से देखती। और यहाँ हम थे कि अक्सर खुलेआम मुस्कुरा रहे होते या अपनी मुस्कुराहट दबा रहे होते।
प्रॉस्टेट ग्रंथि /prostate gland का काम है सेमिनल रस/seminal fluid बनाना। यह रस शुक्राणुओं (sperms) के साथ मिक्स होकर, वीर्य /semen में बदलता है। मेरे हाई स्कूल के अंग्रेज़ी के टीचर एक बार एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में इंटरव्यू के लिए गए। उनका कहना था कि उन्हें नौकरी सिर्फ इसलिए नहीं मिली क्योंकि उन्होंने कंपनी के नाम, यानी सीमेंस/Siemens का उच्चारण ग़लत किया, उसे सीमेन, यानी वीर्य के नाम से पुकार लिया ! बरसों बाद जो मैं उस बात को याद करता हूँ, तो मुझे लगता है, कि उस चुटकुले के ज़रिए वे हमारे साथ घुल मिलना चाहते थे। वीर्य का ज़िक्र करने के लिए सारी भाषाओं में अलग अलग शब्द इस्तेमाल किया जाते हैं:कम/cum, मिल्कशेक, दही, पाल, कांजी, इत्यादि जैसे इतने सारे नाम, कि इस विषय पर क़िताब आसानी से लिखी जा सकती है। बदन, टिश्यू, शौचालय, बिस्तर, चड्डी, पैंटी और आप जहाँ भी चाहो उसपर वीर्य को गिराने का ज़िम्मा भी प्रॉस्टेट के हाथों में है।
दसवीं कक्षा में मैंने पहली बार बदन के कामोत्तेजक हिस्सों के बारे में सुना। लेकिन प्रॉस्टेट के बारे में सिखाया जाना मुझे याद नहीं है। भोला भाला प्रॉस्टेट, इतने ज़ुल्म सहे हैं उसने कि कोई उसे याद तक नहीं करता। दो साल बाद जब मैंने कुछ आर्टिकल के हेडलाइन पढ़ें, तब मैं जान गया कि पुरुषों में प्रॉस्टेट, औरतों की योनि के अंदर, जी स्पॉट/G Spot कहे जाने वाले संवेदनशील हिस्से के समान कार्य करता है। हालाँकि यह प्रॉस्टेट बड़ी दिलचस्प चीज़ है, पर वो बदन में काफ़ी मुश्किल से मिलने वाली जगह पे है। प्रॉस्टेट को टटोलने के लिए अपने गुदा/anus में जाना पड़ता है। जो मर्द अअक्सर वो मर्द जो विषमलैंगिक हैं और साथ में सिस* भी, वो अक्सर उस तरफ बढ़ते ही नहीं l यही मेरे साथ भी हुआ l कई विषमलैंगिक सिस मर्दों जैसे, मैंने भी कुछ समय के लिए प्रॉस्टेट की ओर इस आकर्षण को नज़रअंदाज़ किया।
मैं किसी डेटिंग एप्प का मेंबर बना। दो साल पहले अपनी क्वीयर पहचान के बारे में मैंने और जानना शुरू किया। उस एप्प पर मुझे कुछ ऐसे मर्द मिले जो चाहते थे कि मैं या तो विडियो कॉल पर अपनी गुदा में ऊँगली डालूँ, या उसकी रिकॉर्डिंग उन्हें भेज दूँ। मैं उन्हें मना करता, अक्सर उस बात इस बात पे घिन भी लगती । इन पागल लोगों को मिलने के बहुत बाद मैंने गुदा में नल पानी के प्रवाह(douching) से मिलने वाले मज़ों के बारे में जाना। कभी कभार, ऐसा होता कि
मुझे कोई बंदा अच्छा लगता और मैं चाहता कि कुछ भी करके उसका ध्यान मुझसे ना हटे। तब मैं उसका कहा कर देता था। मैं अपनी ऊँगली को बहुत नहीं घुसाता था। यह इसलिए कि ऐसा करना यूं लगता जैसे किसी पर्वत में पुराने ज़माने के औज़ार लेकर छेद कर रहा हूँ। गुदा की खोज और जांच करने के लिए उसे लचीला बनाने के लिए बहुत धैर्य, खुलेपन और सावधानी की ज़रुरत है। मैं अब तक उस मोड़ तक नहीं पहुंचा हूँ। मेरा गुदा अब भी दर्द करता है। और मेरे गुदा के अंदर की जगह में अक्सर वैसे भी फटन रहती है, जिसके कारण वह दर्द थमता नहीं है। काश किसी तथाकथित पिछड़े हुए देश के खान जैसे, प्रॉस्टेट में एंट्री पाना और उसका शोषण करना भी, आसान होता।
सिर्फ़ दो बार मैंने प्रॉस्टेट को सही से टटोला है और ओहो, सच कहूँ, मुझे काफ़ी, अच्छा लगा। जितना मज़ा पीनिस की उत्तेजना से मिलता है, उतना ही मज़ा प्रॉस्टेट की उत्तेजना में है। गुदा और पीनिस के बीच की जगह, जिसे पेरीनियम कहते हैं, उसे भी आप उत्तेजित कर सकते हो। बदन पर उत्तेजित होने को तैयार और भी मीठी मीठी जगहें हैं।
कुछ सिस मर्द, कभी विषमलैंगिक, कभी समलैंगिकता के बारे में और जानने की चाहत रखे, मेरे पास ये जानने के लिए उत्सुक होकर आए हैं कि उनके प्रॉस्टेट को उत्तेजित कैसे किया जाए। कभी कभार तो समलैंगिक लोग भी मुझसे पूछते हैं। मैं ख़ुश हूँ कि कम से कम मर्द इसके बारे में सोचकर बात तो कर रहे हैं। कुछ मर्द अपनी गुदा पर ऊँगली फिराने से डरते हैं, यहाँ तक कि सिर्फ़ उसे धोने के लिए भी। और दूसरों को डर लगता है कि वैसा करना, उन्हें अच्छा लगने लगेगा। मुझे ऐसा नहीं लगा था शायद। मेरे मन में धुंधली सी याद है कैसे एक बंदे ने मुझसे कुछ यूँ कहा था, ‘भई, ये किसी और को बताना मत... बस एक बार आज़माना चाहता हूँ’। पीनिस को किसी में घुसाने के बजाय, अपने गुदा में किसी और द्वारा पीनिस या ऊँगली घुसाया जाना, समाज की मर्दानगी की समझ के ख़िलाफ़ है। मेरे मन में किसी पुराने ख़यालात का लेखक यह कहते हुए आता है, “हालाँकि ये लगता तो गज़ब का है पर ...!
हे भगवान्, मेरे पाप धो डालो!” शायद भगवान् चाहते थे कि मर्द भी मज़ा करें। किसे पता। प्रॉस्टेट के होने की कोई तो वजह होगी, है ना? लेकिन वह इतना अंदर क्यों छिपा हुआ है? क्या हम इंसानों जैसे, भगवान् भी अपनी इच्छाओं को दबा रहे हैं ताकि उन्हें दस्त ना हो जाए? ऐसी कई घटनाएँ सुनने मिलती हैं जिनमें मर्द अपनी गुदा में न जाने कौनसी सब्ज़ियाँ घुसाए अस्पताल के इमरजेंसी रूम में आते हैं। मर्दों ने अपने आप को अपरंपरागत तरीक़ों से मज़ा देने में झिझकना नहीं चाहिए। कुछ औरतों को भी प्रॉस्टेट के साथ खेलना पसंद है, यदि उनके साथियों को भी वह पसंद हो तो।
आख़िर यह आपका बदन है। और मैं कोई मुफ़्त में ज्ञान बाँटने वाला डॉक्टर महिंदर वत्सा नहीं हूँ। हमपे थोपे गए नियमों, सत्ताओं और मानकों के बाहर भी कामुक मज़े मिल सकते हैं और
होते भी हैं। सेक्स खाना पकाने जैसा है - आप जैसे चाहो उसमें तड़का मार सकते हो ताकि तरह तरह की नई रेसिपियाँ बनती जाएं।
विजय, बेंगलुरु में रहने वाला दलित क्वीअर छात्र है, जो लगातार अपने अस्तित्व पर सवाल उठाते रहता है। उसे लिखना पसंद है, लेकिन अपने लेखन के बारे में उसे इतना आत्मविश्वास नहीं है।
( *सिस/cis- जिनकी जेंडर पहचान उस पहचान से मेल खाती है जो उन्हें पैदा होने के वक्त दी गयी थी)
प्रॉस्टेट और पितृसत्ता
प्रोस्टेट के मज़े से मर्दों को क्या झिझक है ?
लेख : विजय सी
चित्रण : एक्सोटिक डर्टबैग
अनुवाद : मिहिर सासवडकर
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