मैंने जिंदगी भर 'वो हमेशा खुशी खुशी साथ रहते हैं ' टाइप की रोमांटिक कहानियों और 'अटूट प्रेम' का मजाक उड़ाया है। सच कहूँ, अभी भी उड़ाती हूँ। लेकिन एक चीज़ है जो मेरे मन में कौतूहल पैदा करती है। वो कभी कभी फीलिंग आती है न कि 'बस यही सही है।' ये फीलिंग मुझे तब आयी जब मैंने K के साथ एक पूरी रात ट्रेन में सफर करते गुज़ारी। हम पूरी रात बात करते रहे। इतना कम्फ़र्टेबल मैंने आज तक किसी के साथ महसूस नहीं किया था। उस दिन मुझे लगा कि इस आदमी में वो सब है जो मुझे शायद पहले कभी किसी से नहीं मिला।
लेकिन रिश्तों का मतलब सिर्फ इतना ही नहीं है कि आपका पार्टनर चार्मिंग हो और आप उसके साथ समुद्र के किनारे खड़े होकर सपनों भरी आंखों से एक दूसरे को देखें और होठों के प्याले पीएं । है ना? रिश्तों में तर्क-वितर्क होता है, समझदारी से लिये गए फैसले होते हैं। लेकिन, अचरज ये है कि K के मामले में इन सब चीजों की कोई अहमियत ही नहीं रही। मेरी लगभग सारी उम्मीदों पे K खरा उतर रहा था। अच्छे आचरण वाला, औरतों की इज़्ज़त करने वाला, बहुत ही मज़ाकिया, आंखों में संवेदना रखे, दूसरों के सुख-दुख समझने वाला! यानी यूं समझो कि मैंने जो भी कुछ उस लड़के के लिए सोच रखा था, जिसके साथ मैं अपनी पूरी ज़िंदगी बिताना चाहूं, वो सब उसमें था।
और फिर आयी वो खूनी रात!
हमारे बीच सेक्सुअल संबंध तो बन ही चुका था और इस घटना के लगभग दो हफ्ते पहले हमने साथ रहना भी शुरू कर दिया था। मुंबई में जगह की कमी तो वैसे ही थी। ऊपर से जब हम होटल जाते तो वहां के स्टाफ शक भरी नजरों से हमें देखते थे। तो एक घर में एकसाथ रहना ही हमें सबसे अच्छा ऑप्शन लगा। घर की प्राइवेसी में हमारे बिस्तर का उपयोग कुछ ज्यादा ही होने लगा और हमारी उन्माद भरी आवाज़ें हमारे खर्राटों से ज्यादा सुनाई देती थीं । सब अच्छा चल रहा था। बिस्तर में हम नए-नए प्रयोग और खोज़ कर रहे थे। और फिर! हरामखोर पीरियड्स आ गए!
जब मैं छोटी थी, तो देखती थी कैसे सैनिटरी-पैड के पैकेट को एक गहरे काले बैग में बांधकर रखा जाता था। उन दिनों मेरी चचेरी बहनें अपने पापा से कहा करती थीं "मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं है"। और पीरियड्स के समय, औरतें मंदिर में नहीं जा सकती थीं। इसलिए मेरे दिमाग में ये ख़याल बैठ गया कि पीरियड्स गंदे होते हैं। कभो चादर में, तो कभी अपनी पेंट पे खून के धब्बों का डर। मुझे पीरियड्स से घृणा थी। औरतें (जिनकी कमर 28 से ज्यादा हो) वैसे भी अपने शरीर को बेकार समझती हैं। तो बिना कपड़ों के अपने पार्टनर के सामने आकर्षक दिखने के मंसूबे में, पीरियड तो कहीं फिट ही नहीं बैठता था।
तो पीरियड्स की एक रात, हम जल्दी सोने की सोचकर, बिस्तर पर एक दूसरे से अपनी पसंदीदा पोजीशन में एक दुसरे को चिमट के लेट गए। उस रात सेक्स जैसा कुछ भी नहीं होने वाला था, इसलिए मैंने अपना दिमाग अगले दिन सुबह होने वाले क्लास की तरफ लगा लिया। लेकिन इंसान का दिमाग! वो तो हर वक़्त अजीब-अजीब हरकतें करता है। बस, फिर क्या था। कुछ आर्टिकल जिनमें मैंने ये पढ़ा था कि पीरियड्स के दौरान औरतों के लिए सेक्स और भी मज़ेदार हो सकता है, मेरे दिमाग में परेड करने लगे। क्या ऐसा हो सकता है? लेकिन छी, क्या घिन नहीं आएगी? मैंने अभी ये सब सोचना शुरू ही किया था कि मैंने उसका हाथ मेरी टी-शर्ट के अंदर जाता महसूस किया। मेरे बालों को सूँघता, मेरी कमर को अपनी आलिंगन में और कसता हुआ। वही पुरानी चाल! कोई और दिन होता तो मैं मान लेती कि वो वही चाहता है। पर उस दिन! उस दिन तो मेरा पीरियड चल रहा था !
मैं उसकी तरफ घूमी और पूछा कि इरादा क्या है? उसने मुझे अपने पास खींचकर एक जोरदार किस दिया। मैंने भी उसे वापस चूमा। उसके होठों का वो मीठा और जाना-पहचाना स्वाद हमेशा मेरे शरीर में जैसे बिजली की लहर दौड़ा देता है। मेरी भूख बढ़ गई। और इससे पहले कि हम कुछ सोचते-समझते, हमारे शर्ट खुल चुके थे। मैं उसके उपर बैठ गयी थी। मेरे शरीर का ऊपरी हिस्सा बिना कपड़ों का था। हम धीरे-धीरे जंगली हो रहे थे। ये तो तय था कि एक दूसरे के शरीर से दूर रहना हमारे लिए मुश्किल था। और फिर जैसे ही मैं इस उत्तेजना को बढ़ाने के लिए उसके कानों को चूमने के लिए झुकी, उसने मुझे रोक दिया। मेरे गालों से मेरी लटों को कानों के पीछे ले जाते हुए, मेरी आँखों में देखा और कहा, "क्या तुम मुझे अपने अंदर चाहती हो?"
मैं दंग रह गयी! क्योंकि इसके लिए तैयार नहीं थी। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दूं। तो मैंने सीधे बोल दिया, “क्या? नहीं!"
उसने पूछा "क्यों नहीं?" और सच कहूँ तो मेरे पास कोई जवाब नहीं था। किसी ने ऐसा सवाल कभी किया ही नहीं। कि क्यों नहीं?
"पता नहीं", मैंने कहा। "घिन आएगी!"
"ऐसा कुछ नहीं है बेबी। सिर्फ खून है वो।"
"पर डिअर, तुम्हें अच्छा नहीं लगेगा। गंदा फील होगा"।
“ऐसा नहीं है। मैं तैयार हूं। और तुम?"
"पर क्यों? सब गंदा हो जाएगा। चादर, कंडोम ....! नहीं करते हैं। "
"तुमने ही तो कहा था कि तुम्हें पीरियड्स में इसमें ज्यादा मज़ा आएगा। है ना? मैं चाहता हूं कि तुम इसे महसूस करो। यकीन करो, मैं ये चाहता हूं। और ये गंदा बिल्कुल नहीं है l”
ओह। मैंने तो यूं ही चलते-फिरते एक बार उस आर्टिकल के बारे में इसे बताया था। अभी थोड़ी देर पहले उसी के बारे में तो सोच रही थी। और इसने याद रखा।
“सुनो, तुम सच में तैयार हो? मैंने पैड पहना हुआ है। मेरे कूल्हे/बम भी गंदे होंगे। मुझे अभी भी लगता है हमें ये नहीं करना चाहिए।"
"बेबी, मुझे गंदगी से कोई दिक्कत नहीं। और मैं कैलेंडर देखकर तुमसे प्यार नहीं करना चाहता हूं!"
मेरा दिल धक्क करते रह गया। मुझे फिर से यकीन हो गया कि ये आदमी पागल हो चुका था और उसे पता भी नहीं था वो आखिर बोल क्या रहा था।लेकिन ... चाहती तो मैं भी वही थी। बस मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे लिए ये हो पायेगा। जैसे जब आप कोई प्रभावशाली मॉडर्न खयाल वाले आर्टिकल पढ़ते हैं या वैसी चर्चाओं में भाग लेते हैं, पर मन ही मन जानते हैं कि वो सब आपके साथ नहीं होयेगा। मैं भी ऐसी कई आज़ाद ख्यालों को बढ़ावा देने वाली, सेक्स में औरतों को आनंद मिलने के अधिकार वाली बुलंद चर्चाओं का हिस्सा बनी हूँ। पर उस दिन! मुझे सामने से मस्ती की दावत में बुलाया जा रहा था, और मैं उसे ठुकरा रही थी। आप ऐसे कितने मर्दों को जानती हैं जो आपको आपके असली रूप में पसंद करते हैं । आपको जानकर दुख होगा कि ऐसे शायद बस मुट्ठी भर मर्द हैं । और मेरे पास उस मुट्ठी भर से ही निकला हुआ एक मर्द था। जो मेरे शरीर को प्यार करना चाहता था, मेरे अंदर आने को तड़प रहा था। पर मैं तब भी सोच में थी!
भारत में ज्यादातर औरतों के लिए पीरियड्स एक ऐसा टॉपिक है जिसपे बात नहीं की जाती, वर्जित है, टैबू (taboo) । लेकिन बात सिर्फ ये नहीं है, कि पब्लिक बातचीत में इस टॉपिक को दूर रखा जाता है, बल्कि इसे अशुद्ध और गंदा भी तो माना जाता है। जैसे कि दुनिया में सबसे ज़्यादा घिन वाली बात ये हो कि मेरी चादर पे खून के दाग दिख जाएंगे ! ये मान्यताएँ समाज ने हमारे अंदर इस तरह कूट-कूटकर भर दी हैं कि हम, जो खुद पीरियड्स को झेलते हैं, इन बातों पर यकीन करने लगते हैं। इनके आगे झुक जाते हैं। तो अगर आपको पीरियड्स के दौरान दर्द नहीं है, तो सेक्स थोड़ा अस्त-व्यस्त हो सकता है, पर गंदा बिल्कुल नहीं। गंदगी होगी भी तो दूसरे टाइप की, अच्छी वाली। सच तो ये है, कि पीरियड्स के दौरान उन्माद से आपके पेट की ऐंठन (cramp) और सिरदर्द, दोनों को आराम मिल सकता है। क्योंकि खून तो एक तरह का नेचुरल तरल, लुब्रीकेंट ही है। प्यारी बात है न, कि प्यार क्या-क्या कर पाता है!
मैं खुशनसीब हूँ कि मुझे ऐसा पार्टनर मिला है जो मेरे अंदर घर कर गई सोच पे ऐसे सवाल उठाता है। लेकिन अब मैं ये डायलाग नहीं कहूंगी कि मैं इसलिए "धन्य" हूँ और मैं तो इस लायक भी नहीं हूँ या उसके एहसान तले दब गई हूं। बल्कि मैं खुश हूं। मुझे किसी बात पर शर्म नहीं हैं। मैं खुद के, अपने शरीर के साथ, सहज हूँ। शरीर की ज़रुरत है, उसका हक है कि कोई उसे हमेशा प्यार करे। इसलिए अगर आपको कोई ऐसा मिले तो सोचो मत, बस बह जाओ। बस खुद को कम मत समझो और ना ही कम से खुश हो जाओ। जो चाहो, उससे कम में समझौता मत करो। कभी नहीं!
अनन्या एक 25 साल की हेटेरोसेक्सयूएल (जो अपने अपोजिट सेक्स के लिए आकर्षण महसूस करे) नारीवादी औरत है। वो सोसिअल वर्क की पढ़ाई कर रही है और उसे सामाजिक मानदंडों पर सवाल उठाना पसंद है। वो बहुत ही ज्यादा रोमांटिक किस्म की है, जो खुश होने पर भी रोती है और गुस्सा आने पर भी। हालांकि उसे अपने इस स्वभाव पर गर्व है।
सेक्स को #पीरियड्-वाली-छुट्टी नहीं माँगता!
पीरियड सेक्स की क्या खासियत है ?
लेख – अनन्या
चित्र – देबस्मिता दास
अनुवाद – नेहा
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