बंबई की बारिश इस बात के लिए बदनाम है कि वो आपको बुरी तरह से चिपचिपा छोड़ देती है। ऐसी ही बारिश ने मुझे एक शाम पूरी तरह से सराबोर कर छोड़ा था। मैं बड़ी हड़बड़ी में, उस हालत में क़िताब खाना के अंदर गई। अंदर पहुँचते ही A.C. की ठंडी हवा से चंद लम्हों के लिए सुन्न हो गई। जब दुकान के कैशियर ने धीमी आवाज़ में मुझे याद दिलाया “मैडम, दुकान पंद्रह मिनट में बंद हो जाएगी” तब होश में आई। अपनी पेशाब को इतनी देर से रोकते हुए मुझे दर्द होने लगा था। इसलिए, उस अनूठी दुकान के दूसरे छोर में स्थित टॉयलेट की ओर तेज़ी से दौड़ी। और अपने पीछे पीछे, छोटे, भूरे, मेरे जूतों के निशान छोड़ती चली गई।
टॉयलेट जाते वक़्त मैंने रुककर कॉफ़ीशॉप में झांककर देखा। कुछ साल पहले, जब मैं रिसर्च करने बंबई आई थी, तब मैंने गर्मियों में कई दोपहरें यहाँ बिताईं थीं। मन में उन दिनों की यादें बिलकुल तरोताज़ा थीं। इतनी, कि अपने ऊपरी होंठ पर पसीने के तेज़ खारेपन के साथ चॉकलेट फ़ज ब्राउनी की मिठास, का स्वाद, घुलतामिलता सा महसूस हुआ। आस पास, कुछ वकील, काले कोट वाली यूनिफार्म में अपनी चॉकलेट फ़ज ब्राउनी का मज़ा उठा रहे थे। ब्राउनी की इस पुरानी याद से मेरे शरीर में एक धुंधली सी गर्माहट फैल गई। लेकिन मुझे टॉयलेट भी इतनी ज़ोर से लगी थी िक मुझसे सहा नहीं जा रहा था।
सांताक्रूज़ से इतने दूर, बंबई के दूसरे छोर पे, मैं क़िताब खाना क्यों आई थी? वो भी अचानक, बिना सोचे समझे? और यह अच्छे से जानती हुई कि मैं वहां दस मिनट से ज़्यादा नहीं बिता पाऊंगी? टॉयलेट में बैठी- बैठी, इन बातों पर ग़ौर करती हुई, मैं ख़ुद पे हंसने लगी।
लेकिन ख़ुद को थोड़ी रियायत देनी चाहिए, है ना? मैं कुल 1 ½ दिन के लिए बंबई आई थी! देखा जाए तो ये भी एक अजीब फैसला ही कहलाएगा। मेरे पास बंबई आने की कोई ‘ठोस’ वजह नहीं थी। मैं बस शहर देखने यहाँ चली आई थी। बंबई के मेरे पिछले सफ़र के बाद, मैं कुछ अधूरा सा महसूस कर रही थी। कुछ समझ में नहीं आ रहा था। कभी कभार ऐसे लगता, कि मैंने अपने पुराने प्रेमी को बराबर से अलविदा नहीं कहा था। कभी कभार ऐसे लगता कि मैं मेरे ज़हन का एक हिस्सा, यहां छोड़ आयी थी ।
मैंने फ़िक्शन की छह क़िताबें लीं, झट से फ़ोटो ली और तुरंत इंस्टा पर एक पोस्ट डाला - “मेरे पसंदीदा बुकस्टोर से पुनः मिलन!” - और क़िताब खाना को टैग किया।
हाथ में फ़ोन लिए मैंने एक काली पीली टैक्सी मँगाई और सांताक्रूज़ की ओर चल दी। पिंग! मेरे इंस्टा के पोस्ट पर किसी का जवाब आया था।
‘र’ का।
मुझमें एक मुजरिम वाली फ़ीलिंग आ गई। बदन थोड़ा ठंडा पड़ गया। मुंह में एक खटास सी आ गई। 'र '।
सात साल पहले हम दोनों एक दूसरे से प्यार किया करते थे। तब एक दिन अचानक, बिना उसे कुछ बताए, मैंने हमारा रिश्ता यूँ ही तोड़ दिया था। मैं उस बात को बड़ी आसानी से भूल भी गई। इस पल तक। मुझे अब भी उसका मैसेज याद है “मैं बार में बीयर पीते तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ। कोई जल्दी नहीं है!”। मैसेज देखकर मैं तुरंत अपना फ़ोन बंद कर सो गई थी। मुझे आज भी याद है कैसे उस दिन मैं लगातार 13 घंटे सोई और उठने पर देखा कि उसने कुल मिलाकर 16 मिस्ड कॉल किए थे और घबराए हुए मैसेज भेजे थे। और उस बात का मुझपर कोई असर नहीं हुआ था।
मुझे चुनौतियाँ बेहद पसंद हैं। स्कूल और कॉलेज में मुझे असली मज़ा सिर्फ़ तब आता था जब कोई असाइनमेंट ख़त्म करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती और फिर मेरे रगों में एड्रेनलिन दौड़ता। कॉफ़ी के ढेर सारे प्याले पीकर, देर रात तक काम कर, हर चीज़ की बारीकियों में उलझ जाना मुझे एक्साइट करता था। पिछले कुछ सालों में मैं काफ़ी बदल गयी हूँ। लेकिन सात साल पहले, यदि कोई चीज़ हासिल करना मेरे लिए बहुत आसान होता तो मैं उसे छोड़, उससे बड़ी चुनौती खोजा करती थी। आख़िर किसी चीज़ को आसानी से हासिल करने में मज़ा कहां आता था।
ऐसे माहौल में 'र ' मेरी ज़िंदगी में आ टपका। उसका प्यार करने का तरीक़ा बड़ा बेझिझक और बिंदास था और सच कहूँ तो थोड़ा बेशरम भी। उसके मामले में सब कुछ बड़ा आसान था। उसे हँसाना बड़ा आसान, उसे मेरा नज़रिया समझाना बड़ा आसान, उसका मुझे चाहना, मुझसे प्यार करना, बड़ा आसान । उसकी शरारत, खुली हँसी और टेढ़ी नाक की बदौलत उसके प्यार में पड़ना भी बड़ा आसान था।
और इसलिए मैं उसे छोड़कर चली गई। उसे बिन बताए, मामूली सी माफ़ी भी मांगे बिना, मैं PhD करने शिकागो चली गई, एक ऐसी यूनिवर्सिटी में, जो अपने सीखने सिखाने के बड़े वैशीले माहौल के लिए जानी जाती है। मुझे हरदम लगता था कि मेरी कामयाबी में मेरी मेहनत का कोई हाथ नहीं था, जैसे मैं अपने को सज़ा देने को तत्पर थी । और ऐसा करते हुए, मैं उन सभी मर्दों को ख़ुश करने की कोशिश करने वाली थी, जिन्हें मनाना मुश्किल था। मुझे यकीन था कि वो सारे मुझे और मेरे काम को चाहने लगेंगे। अगर ऐसा करना आसान होता, तो फिर मेरे काम का क्या मोल था? मेरा क्या मोल था?
********
मैं कई बार उन मर्दों की शिकायत करती थी, जो अपनी गर्लफ्रेंड्स को बिना आगाह किए, यूँ ही छोड़ देते थे। किसी लड़के का उन्हें यूँ छोड़ना, लड़कियों के लिए कितना घटिया अनुभव था और कैसे उन मर्दों को जहन्नुम जाकर मर जाना चाहिए था। । मुझे मेरे इंस्टा पर डाले ढेर सारे पोस्ट याद आए, उन “फ़कबॉइज़” के बारे में, जो लड़कियों के साथ सेक्स के अलावा और कुछ नहीं करना चाहते थे।
वो पोस्ट देखकर 'र ' को ताज्जुब हुआ होगा। उसे पता था कि सबसे बड़ी फ़कबॉय मैं ही थी।
हिचकिचाते हुए मैंने उसका मैसेज खोला: “हेलो, तुम्हें क़िताब खाना में देखा और हाथ भी दिखाया...पता नहीं था कि तुम ही हो या कोई और, लेकिन फिर तुम्हारे कंधे पर टैटू देखा। तुमने हेलो
नहीं किया, इसलिए पता नहीं कि तुमने मुझे देखा नहीं या मुझसे बात नहीं करना चाहती थी। ख़ैर, दूर से ही सही, लेकिन तुम्हें देखकर अच्छा लगा। अगर मुझसे ज़्यादती हो रही हो, तो सॉरी।’
सात साल की चुप्पी के बाद एक पिंग। मुँह में कुछ खारा महसूस हुआ। पसीना। उम्मीद। शर्म।
मुझे उसका फ़ोन नंबर अपनी कॉन्टेक्ट लिस्ट में सबसे नीचे मिला। कॉन्टेक्ट के साथ एक फ़ोटो थी। फ़ोटो में 'र ' एक फ़िल्म के पोस्टर के बग़ल में खड़ा था। हमने वो फ़िल्म साथ में देखी थी। फ़ोटो दानेदार थी, लेकिन तब भी उसकी कोमल, भूरी आँखों में नम्रता दिख रही थी।
मैंने उसे मैसेज किया।
“मुझे माफ़ कर दो!”
“हाहा! माफ़ कर दूँ? किसके लिए?”
“आज के लिए। मैंने तुम्हें देखा ही नहीं। तुम बंबई में कैसे हो? क्या अब दिल्ली में नहीं रहते?”
“नहीं। मैं काम के लिए आया था। मेरी फ़्लाइट छूट गई और मैं नाराज़ था, तो मेरे दोस्त मुझे फ़ज ब्राउनी खिलाने क़िताब खाना ले आए । तुमने हमें देखा नहीं? हमारे सिवा वहां कोई नहीं था ।”
ओ। काले कोट वाले बंदे। वही तो ! 'र ' अब वक़ील बन गया था। मैं ये जानती थी। उसकी वो टेढ़ी नाक और वो, मेरी नज़रों से कैसे छूट गए?
“धत, नहीं, मैंने तुम्हें नहीं देखा।”
वो टाइप करने लगा। और फिर रुक गया।
मैंने टाइप किया।
“सुनो, मुझे सच में माफ़ कर दो।”
“किसके लिए?”
“सात साल की चुप्पी के लिए। जो कुछ भी हुआ उसके लिए।”
“कोई बात नहीं। तब हम सब नादान थे ।”
ऐसा था ये 'र ' । तुरंत माफ़ करता था, अपना प्यार झट से किसी पर बरसाता । उसके संग सब आसान था, कितना आसान…
ये सब बंद करो। भेजो भी उसे मैसेज!
“मेरे ख्याल से क़िताब खाना आना मेरी क़िस्मत में लिखा था। हालाँकि मैं क़िस्मत पर यक़ीन नहीं करती…”
भला कोई भीड़ भाड़ में इतने दूर, सांताक्रूज़ से क़िताब खाना क्यों आता, स्टोर के बंद होने के पहले के कुल पंद्रह मिनिट बिताने के लिए? भला कोई सिर्फ़ डेढ़ दिन के लिए बंबई क्यों आता?
“मेरे ख्याल से फ़्लाइट छूट जाना मेरी क़िस्मत में लिखा था। आमतौर पर मुझसे महत्त्वपूर्ण फ़्लाइट छूटते नहीं, पर…
भला कोई अपनी फ़्लाइट छूटने के बाद इतनी दूर, क़िताब खाना क्यों आता, वो भी महज़ ब्राउनी खाने के लिए?
मैंने टैक्सी की खिड़की से बाहर देखा। नमी ने खिड़की को धुंधला कर दिया था। गाड़ियाँ, बिल्डिंगें, फ़्लायओवर, बारिश, बारिश, बारिश ही बारिश। बारिश की नदियों ने इस महानगरी के सख्त दिखावे को दयनीय कीचड़ जैसे बना दिया था। देखा जाए तो बाहरी दुनिया मेरे अंदर की दुनिया जैसे दिखने लगी थी। मेरा दिमाग़ धुल गया था, मेरा दिल यक़ीनन पिघलकर कीचड़ जैसे बन गया था और मैं अपराधबोध, उम्मीद, प्यार और इच्छा के तूफ़ानी समंदर में यहाँ वहां पटकी जा रही थी।
यह कितना आसान था।
रुको। जवाब दो!
“कल कॉफ़ी के लिए मिलना है? क़िताब खाना में? चार बजे?”
“पक्का। लेकिन इस बार मुझे लटकाकर ग़ायब मत हो जाना!”
“दोबारा कभी नहीं। कभी नहीं।”
कभी नहीं।
स्नेहा अन्नवरपु एकदम रोमांटिक है जो कि उन जगहों में प्यार ढूंढना चाहती है जहां प्यार की कोई उम्मीद नहीं है। इसके अलावा अंताक्षरी में वो आपके छक्के छुड़ा देगी।
मैंने जान के उसे अनदेखा किया, पर फिर एक और मौक़ा मिला
छूटे हुए से फिर मिलने का मौका मिला तो लेखक ने क्या अलग किया?
स्नेहा अन्नवरपु द्वारा लिखित
देबस्मिता दास द्वारा डिज़ाइन
अनुवाद: मिहिर सासवडकर
Score:
0/
Related posts
How To Smell And Taste Good Down There
Partner going down on your buffet? Tips for a yummy garnish!…
हम बस दुखड़ा रोने को तैयार ही थे कि हमने हॉकी स्टिक लिए एक छोटी लड़की को देखा।
एक मूवी के किरदार से अ…
मैंने खुशी-खुशी अपना दिल उनको दिया, लेकिन उनको चाहिए थे बच्चे और एक देसी बहू
स्थायी बीमारी में डेटि…
दुनिया की ऐसी जगहें जहाँ पब्लिक में सेक्स करना क़ानूनन जायज़ है ।
आज है #WorldTorismDay! जाने दुनिय…
If Life is Box Full of Chocolate Boys!
#HappyChocolateDay to the men who smile, are vulnerable, and…
What is Fellatio? The AOI Sex Glossary
Is it ice-cream ka flavour, like pistachio? Well, it does ha…
Sorry Thank You Tata Bye Bye - A Music Video About Age of Marriage In Collaboration With Oxfam India
Ammuma’s Haircut and Her Romantic Past
If Ammuma's hair was one to divulge, what would it reveal ab…
It Was ‘Twilight’. I Woke Up Bisexual.
How one can stumble upon one's (bi)sexuality with the help o…
To All the Boys I Couldn't Love Before
What fleeting connections with many interesting men tell you…
Tell Me Tarot, Will He Ever Come Back?
After Manjari is ghosted, all search for closure leads to he…
How My Girlfriend's Abortion Made Me A Better Man: A Comic
M's story about a life-changing incident.
Do You Know How to Give Women Orgasms?
This app will teach you how and we got some Agents to try it…
The AOI Queer Reading List: Desi Languages Version
Queer readings from non-English Indian languages.
What Makes Your Sexual Confidence Go Up and Down
Sexual confidence is like a Snakes and Ladders Game
KISS MEIN KITNA HAI DUM: 19 KISS POEMS
Kisses that go from sweet to saucy, tender to raunchy, misch…
Savita Bhabhi and I: A True Love Story
Here is something you should know about me. I wrote three st…
How Posing in the Nude Changed My Life
A young gay man who hates being touched, is awkward about ha…