मैं २८ साल का साधारण सा बन्दा हूँ जिसे Jio के आने से पहले भी इंटरनेट ऐक्सेस था l तो पोर्न/ कामोत्तेजक लेख, तस्वीरों आदि के ज़रिये मेरा सेक्स से इंट्रोडक्शन हुआ l शुरू शुरू में पोर्न देख कर बड़ा धक्का सा लगा ( आपको किसी दूसरे के साथ नंगा होना पड़ता है और फिर अपने शरीर का एक भाग उनके शरीर में डालना पड़ता है, आय हाय !)l पर फिर धीरे धीरे मैंने इन्कॉग्निटो मोड (incognito mode- जिसमें आप और प्राइवेट तरीके से ब्राउज कर सकते हैं, यानी आपकी ब्राउज़िंग हिस्ट्री दूसरे को नहीं दिखती ) में ब्राउज करना सीख लिया l और साथ साथ अब तक केवल पेशाब करने के लिए इस्तेमाल में आने वाले अपने शारीरिक भाग को छू कर अपने को सुख देना सीख लिया l
ये नया नया सा "नशा " थोड़ा ठंडा तब हुआ जब मुझे भी वही चिंता सताने लगी जो शायद कई लड़कों को सताती है, यानी अपने लिंग के साइज़ को लेकर चिंता l अब मेरे माँ बाप ने कभी मेरे साथ 'ज़रूरी बातचीत' की ही नहीं थी l स्कूल में भी 'ख़ास' जीव विज्ञान के पाठ पढ़ाये ही नहीं जाते थे या बड़ी फुर्ती से पढ़ाये जाते थे या फिर आपको कह दिया जाता था कि ये चैप्टर खुद पढ़ने होंगे l ( कभी इस बारे में सोचा है कि जिस देश यानी भारत में सेक्स की बात होती ही नहीं, उस देश की संख्या इतनी ज़्यादा कैसे हो गयी आखिर? ) l यानी ये सारी प्रॉब्लम भी रहीं l मैं तो जवान सा किशोर था, जो बड़े जल्दी प्रभावित जो जाता था, जिसे सेक्स के बारे में जानकारी केवल पोर्न से मिली थी l मैंने अगर कोई लिंग देखा भी था तो या तो वो मेरा था या फिर उन पोर्न स्टार्स का …l
कहने का मतलब ये, कि अगर आप अपने लिंग की तुलना जोहनी सिन या किसी और पोर्न स्टार के 'औजार' के करते हैं, तो आत्म विशवास की ऐसी की तैसी हो जाती थी!
इस समस्या से निपटने के लिए मैं वहीं गया जहां मैंने जाना थोड़ा आसान समझा- यानी गूगल पर l इंडियन मेडिकल काउन्सिल के एक आर्टिकल से मुझे पता चला कि आम भारतीय आदमी का लिंग ग्लोबल लेवल पर आम लिंग से छोटा ही होता है l अब ये पढ़कर मैं खुशी से झूमा तो नहीं l इसलिए भी क्यूंकि पोर्न वीडियो के एक्टर के लिंग तो अक्सर मेरी बांह जितने लम्बे दिखते थे l और यूं लगता है कि लोक प्रिय फिल्मों, लेखों आदि में छोटे लिंग वाले का मज़ाक उड़ाना/ उन्हें बॉडी शेम करना आम सी बात है l खैर, मैंने अपनी रिसर्च की और पाया कि पोर्न वीडियो वाकई में तकनीक का इस्तेमाल करके कई भ्रम पैदा करते हैं l और वास्तव में लिंग कई आकार और कई साइज में आते हैं, सो मुझे हताश नहीं होना चाहिए l
इस समय तक मैंने स्कूल, कॉलेज, दोनों की पढ़ाई ख़त्म कर ली थी, बिना किसी कामुक तजुर्बे को हासिल किये l हाँ
कॉलेज में ऐसे 'खिलाडी' लोगों का ज़िक्र सुना था, जिनकी एक टाइम पर तीन तीन गिर्ल्फ्रेंड्स होती थीं l अब तक
मैं काम पे जाने लगा और कमाने लगा था l मैंने ठान ली कि मैं अपनी अब तक की शांत किस्म की लाइफ को बदलने वाला हूँ l मैं केमिस्ट की दूकान में गया और कंडोम का पैकेट उठा लाया ( कितना आशा वादी था मैं, कि पहले कदम का कुछ न जान कर चौथे कदम पर बढ़ गया) l फिलहाल आगे जो हुआ उससे तो मैं पहले कदम के बारे में सब कुछ भूल गया :
एक दिन मैं जम कर पोर्न देख रहा था और मैंने ऐसे में एक कंडोम का इस्तेमाल किया l बस, बचपन के जो भी डर थे, सब के सब साकार हो गए l कंडोम मेरे लिंग के लिए वाकई बहुत बड़ा था l ऐसा लग रहा था जैसे मैं एक प्लास्टिक बैग को अपने लिंग पर चढ़ा रहा था और फिर ये अपेक्षा कर रहा था कि वो फिट हो जाएगा l जिस आसानी से चढ़ा, उसी आसानी से कंडोम लिंग से उतर भी गया l जो भी हो, मैं (बहुत) मायूस नहीं हुआ, मैंने विश्वसनीय गूगल पर और रिसर्च की, और कुछ चिपट कर फिट आने वाले कंडोम (जिन्हें स्नूग फिट/snug fit कहते हैं), आर्डर कर लिए l
अगर आप में से कुछ ये जानना चाहें, तो मैं ये भी बता देता हूँ, कि मैंने कोहिनूर पिंक (Kohinoor Pink) आर्डर किये l इनकी ४९mm की चौड़ाई थी (+-२mm) और पहले खरीदे हुए कंडोम्स से बेहतर फिट था इनका l (उनकी चौड़ाई ५२ mm थी, +-२mm) l पर अभी भी ये कंडोम मेरे लिंग के उतने करीब से फिटिंग नहीं दे रहा था l मैंने अब तक सेक्स तो नहीं किया है l पर मुझे यकीन है, कि अगर सेक्स हो गया तो ये वाले कंडोम अपना काम ढंग से नहीं कर पाएंगे l
कल को अगर सेक्स करने का कोई मौक़ा मिले, तो आज की परिस्थिति में वो आसान न होगा
-पहले से लिंग के साइज पर चिंतित हूँ, पहली बार सेक्स करने से भी चिंतित होऊंगा l साथ साथ कंडोम के फिसलने का भी अगर डर हो तो- न न न, मैं ये एक्स्ट्रा चिंता पालना नहीं चाहता l
फिर भी, मैं अपनी इस बेबाक खोज में लगा रहा l गूगल को अपना गाइड बना कर l मुझे वाईस (VICE) का लिखा एक आर्टिकल मिला, जिसमें उसने कहा था कि रिपोर्टर दिल्ली की अलग अलग दवाई की दुकानों जाने के बावजूद भी, एक छोटे साइज के कंडोम का डब्बा नहीं खोज पाया l ऐसा ही कुछ मेरा तजुर्बा रहा है - जिन कोहिनूर कंडोम्स का मैंने ज़िक्र किया, मुझे वो ऑनलाइन मंगाने पड़े थे( जिसकी वजह अब मुझे अक्सर फ्लिपकार्ट और अमेज़न पर सेक्स सम्बन्धी सामान खरीदने के सुझाव बार बार झेलने पड़ते हैं ) l अचम्भे की बात कि रिपोर्टर को कई दुकानों में मैग्नम साइज वाले कंडोम आसानी से मिले l ये तो मुझे बाद में पता चला कि मैग्नम साइज रेगुलर साइज से बस थोड़ा ही बड़ा होता है l खरीदने वाले को मानसिक रूप से प्रोत्साहन देने के लिए इनका नाम यूं रखा गया है l काश मेरी परेशानी भी कुछ इस प्रकार की, थोड़े मानसिक प्रोत्साहन से सुलझ जाने वाली होती l
पर मेरी परेशानी तो कुछ अलग थी- अगर मुझे मेरे साइज के कंडोम नहीं मिल रहे, तो फिर मैं सुरक्षित सेक्स कैसे कर सकता हूँ ? सुरक्षित हो न हो, पर कंडोम बिना मैं सेक्स ही कैसे कर सकता हूँ? मानो कोई लड़की मेरे साथ सेक्स करने को तैयार हो जाए, पर बड़े लिंग के इतने बोल बाले हैं कि वो तो शायद मेरा लिंग देखकर, हंसकर, वहां से फूट लेगी, है न? मैं सच कह रहा हूँ, ऐसे ख्यालों का साथ बड़ा दर्दनाक होता है l
अब ये ख्याल आने के बाद तो आगे बढ़ने के अलावा कोई चारा ही नहीं था l तो फिर मैं अपने अकेले विश्वसनीय सहायक, यानी गूगल के पास वापस गया l गूगल की सहायता से मुझे IronGrip कंडोम्स मिलने में मदद मिली l वो मुझ जैसे छोटे साइज के आदमियों के लिए बने हैं पर एक पैकेट का दाम 2000 रुपये है ! इतने महंगे और फिर कभी कभी मिलते हैं l (लेकिन हमने तो पढ़ा था कि आम तौर पर भारतीय आदमी के लिंग पश्चिमी देश के आदमियों के लिंग से छोटे होते हैं l फिर भारत में बनाये जाने वाले कंडोम विदेशों में बनाये जाने वालों कंडोम से छोटे क्यों नहीं होते? दाल में कुछ काला है !) l अब मैं 2000 रुपये कंडोम के एक डब्बे पर क्यों खर्च दूँ, जब मुझे ये भी नहीं पता कि वो कभी फिट भी होंगे या नहीं? डब्बे पर लिखे हुए साइज और वास्तविक फिटिंग में काफी अंतर् हो सकता है l कहने को तो टेस्टर पैक मिलने चाहियें l ऐसे हर पैक में अलग अलग निर्माताओं द्वारा निकाले गए अलग अलग साइज के कंडोम्स होने चाहियें, पर लगता है कि ये पैक केवल इंग्लैंड और अमरीका में मिलते हैं l
लिंग के साइज वाली परेशानी तो भारतीय मुद्दा था, है न ? तो फिर इस परेशानी के सारे हल विदेश में ही क्यों मिलते हैं, और यहां पर बिलकुल नहीं?
अब इतना सब ब्राउज करने के बाद, मैंने इस मामले पर कई सारे रिसर्च किये हुए लेख पढ़े हैं l कुछ का कहना है कि दुनिया भर के मुकाबले, भारत के आदमियों के लिंग का साइज औसत है l कुछ और का कहना है कि दुनिया भर के लिंगों के मुकाबले में छोटे हैं l ऑनलाइन फोरम में कुछ गबरू लोग ये साबित करने में लगे हैं कि भारत के आदमियों के लिंग किसी और देश के लिंग से साइज में कम नहीं, कि लोग बेकार में उनके छोटे होने की झूटी अफवाह फैला रहे हैं l ये तो आंकड़े तक पहुँचने की गलती लगती है, कि जिन लोगों के पास बड़े लिंग हैं, और जो अपने साइज पर रहे हैं, उनके आधार पर और चुप जनता के लिंग के साइज को निर्धारित कर दिया जाए l
पता नहीं l पर हाँ, मेरा जो तजुर्बा रहा है, अगर ये आम तजुर्बा है और वाकई में हमारे देश में सही साइज के कंडोम नहीं मिल रहे हैं, तो हमारी भरपूर आबादी की एक वजह कहीं यही तो नहीं है?
" हेलो! मैं अभी अभी तुमसे मिला हूँ और ये कहने में थोड़ा अजीब लग रहा है, पर मेरा बुरी फिटिंग वाला कंडोम अभी फिसल गया, मेरे साथ एक बच्चा पैदा करोगी क्या? (मतलब शादी करने के बाद, ये ना भूलें कि हम बिलकुल संस्कारी हैं ) l"
चलिए बहुत मज़ाक हुआ l मैं मानता हूँ कि ऐसा हो सकता है कि ज़्यादातर लोगों का तजुर्बा वो न हो, जो मेरा रहा है l शायद मुझे ही इस बात का सामना करना पडेगा कि (हाय !) मेरा लिंग छोटा है l २०१९ चल रहा है, दुनिया भर के लोग बॉडी पाजिटिविटी (body positivity- अपने शरीर को, वो जैसा है, खुशी खुशी स्वीकारना ) की बात कर रहे हैं l ये कहा जा रहा है कि लोग अलग अलग आकार और साइज के होते हैं l फिर भी छोटे लिंग वाली बात स्वीकारना मेरे लिए मुश्किल है l
और अगर मैं ये बात स्वीकार भी लूं , फिर भी ये सवाल रह जाता है : मेरी कंडोम की प्रॉब्लम का हल कौन निकालेगा ?
क्या लिंग का साइज़ मायने रखता है? एक सच्ची कहानी
पोर्न और कंडोम मिलकर छोटे लिंग वाले आदमी का जीना दुश्वार कर सकते हैं
लेखन: हकीकत का खोजी
चित्र: पूर्वा गोयल
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