सेंसरशिप करने के अलग अलग तरीके हैं। कभी-कभी सेंसरशिप अपनी बात का इज़हार करने पर रोक लगा कर की जाती है। या ऐसे कानून बनाकर जिसमें कुछ प्रकार के एक्सप्रेशन की मनाही हो। या कभी-कभी कुछ दृष्टिकोणों की उपेक्षा करके, या उनकी जरूरत को नकार कर, उन्हें बेतुका या मामूली बताकर ।
थिएटर निर्माता, नाटककार और बैंगलोर की एक कलाकार दीपिका अरविंद द्वारा लिखा गया एक नाटक 'आई ऍम नॉट हियर' (I am not here) ( यानी- मैं यहां उपस्थित नहीं हूँ ) (गोएथे-इंस्टीटूट/मैक्स मुएलर भवन बैंगलोर द्वारा समर्थित), इसी विषय की पड़ताल करता है कि कैसे औरतों के लेखन को अलग-अलग तरीकों से नीचा दिखाया जाता है।
नाटककारों का कहना है कि प्रत्यक्ष रूप से तो ये नाटक 8 चरण का गाइड आपको दिखाता है, जिनके ज़रिये आप औरतों के लेख को सेंसर कर सकते हैं !एक एक दृश्य यूं सामने आता है, मानो बॉक्सिंग रिंग का अलग-अलग राउंड हो। दो कलाकार, रोनिता मुखर्जी और शरण्या रामप्रकाश, अलग-अलग किरदारों को निभाने के लिए नृत्य, मूवमेंट और अपनी अविश्वसनीय क्षमता का उपयोग करते हैं । इस नाटक के कुछ किरदार हैं: शेक्सपियर की एक काल्पनिक बहन जिसे लिखने की आज़ादी नहीं थी, इंस्टाग्राम पर लिखने वाली एक कवियत्री जो कवि सम्मेलन में अपनी कविता की कठोर आलोचना खुद पढ़ कर सुना रही है। इनके ज़रिये मंच पर ऐसी अलग अलग परिस्थितियों का वर्णन होता है, जिनमें औरतों की आवाज़ और रचनात्मकता को दबाया गया है।
दीपिका ने एजेंट्स ऑफ़ इश्क़ से बात की और बताया कि क्यों और कैसे उन्होंने इस नाटक की रचना की।
आई ऍम नॉट हियर' लिखने का आईडिया आपके दिमाग में कैसे आया। आपका झुकाव औरतों के लेखन पे हो रही सेंसरशिप की तरफ कैसे गया?
2018 में रंगा शंकरा थिएटर ने लोगों से किसी भी तरह से प्रतिबंधित या सेंसर किए गए लिखित विषयों को वापस उजागर करने को कहा । वे समय के साथ इस तरह के नाटकों का प्रदर्शन करके इनका उत्सव मानना चाहते थे। मैंने महसूस किया कि अगर लोग सरकार के द्वारा डाली गई सेंसरशिप के बारे में बात करने जा रहे हैं, तो इसमें दूसरी तरह की सेंसरशिप तो शामिल नहीं हो पाएगी। खासकर वो जो महिला लेखकों के काम को लेकर मौजूद है। तो मुझे लगा कि इस बात को समझने के लिए एक दूसरा दिलचस्प तरीका है, जो इस विषय को गहराई से दिखा सकता है।
इस नाटक के लिए जब मैं कुछ चीज़ें पढ़ रही थी, तो 'द लेडीज़ फिंगर' (The Ladies Finger) की निशा सुसन ने जोअन्ना रस द्वारा लिखा 'हाऊ टू सप्रेस वीमेन'स राइटिंग (How To Suppress Women's Writing’- (यानी, औरतों की लेखनी पर बंदिश कैसे लगाई जाए) और साथ ही वर्जिनिया वुल्फ द्वारा लिखा 'अ रूम ऑफ वन'स ओन' (A Room of One’s Own- यानी, अपना एक कमरा) की तरफ मेरा ध्यान आकर्षित किया। इन सारे लेखों ने मेरी सोच को एक कारगर दिशा दी।
और कौन से तरीके हैं जिनसे औरतों की आवाज़ को सेंसर किया जाता है? अगर आपको दो उदाहरण देने हों, तो वो क्या होंगे?
इससे पहले कि महिला लेखक एक ऐसे मुकाम पर पहुंच सकें जहां उनका काम गंभीरता से लिया जाने लगे, उनको कई परिस्थितियों से जूझना पड़ता है। अगर आप केवल घरेलू चीजों के बारे में लिखने के कारण, या रसोई के संबंध में लिखने के कारण, या फिर बच्चों के ऊपर या सिलाई - कढ़ाई के बारे में लिखने के कारण, महिला लेखकों को खारिज कर देते हैं या उन्हें अयोग्य मानते हैं, तो ये भी एक प्रकार की सेंसरशिप है। जिस माहौल में वो रहती हैं, जिस चीज़ को करीब से जानती हैं, उनके बारे में ना लिखें तो क्या लिखेंगी। उनके लिए तो यहां घर भी एक राजनीतिक क्षेत्र है। ये कई तरह से दुनिया से उनके संबंध को दर्शाता है। ये हमें समाज की बनावट के बारे में भी बहुत कुछ दिखाता है।
अगर किसी महिला लेखक की तारीफ होती है, तो भी, अक्सर वो तारीफ ही दो मुंही हो सकती है l
सामने से कुछ कहती है पर वास्तव में उसका तात्पर्य कुछ और होता है। अगर आपको लगता है कि इस महिला की किताब बहुत अच्छी है क्योंकि उसके लिखने की शैली पुरुष लेखकों जैसी है, तो इसका मतलब ये है कि औरतों के लेखन का मूल्यांकन करने का सिर्फ एक ही तरीका है। और वो तरीका पुरुषों द्वारा निर्धारित होता है।
ये नाटक एक बॉक्सिंग रिंग के अंदर क्यों होता है?
बेशक ये इसलिए है ताकि दर्शकों को अलग-अलग कोनों से मंच को देखने में आसानी हो। इसे एक रूपक (metaphor) की तरह प्रयोग किया गया है - कभी एक खेल का मैदान, कभी एक अखाडा, कभी एक रणभूमि।
इसका रिश्ता देखे जाने से भी है। औरतों पर हमेशा दूसरों की नज़र लगी रहती है। मुझे लगता है कि ये एक किस्म की सोच है जो निर्धारित करती है कि औरतों की कृतियों और कला को कैसे पेश करा जाना चाहिए l
मैंने इस 'दूसरों की नज़र' के पेचीदा असर को दिखलाने की कोशिश की है। साथ-साथ दर्शक और कलाकारों के संन्दर्भ में भी, इस ‘देखने वाले’ और ‘देखे जाने वाले’ के जटिल रिश्ते को उभारने की कोशिश की है।
औरतों को मंच पर आने से पहले ही ये पता होता है कि वो मंच पर एक तरह कि लड़ाई लड़ने जा रही हैं। ये सब खेल का एक राउंड है। और खेल के नियम और शर्त कभी भी बदल सकते हैं।
आमतौर पर औरतों के काम और कला को किस तरीके से पेश किया जाता है और आपके हिसाब से उनके काम को ज़्यादा देखने या बारीकी से देखने में किस चीज़ का योगदान है?
अक्सर किसी वंचित समूह के लोगों को, खुद के लिए अपने आप ही खड़ा होना पड़ता है, हालांकि उन्हें समाज ने वंचित किया है। औरतों के मामलों में, हमें दर्शकों के सामने खड़े होने के लिए खुद के साथ एक किस्म की
कठोरता और निर्दयता बरतनी पड़ती है। वैसे भले ही खुद पर हिंसा ना बरतनी पड़े, फिर भी हर वक़्त अपने ज़ख्म दिखाने पड़ते हैं। ये कुछ ऐसा होता है जैसे जब हम महिलाओं के ऊपर हो रही हिंसा की रिपोर्ट पढ़ते हैं, खासकर यौन हिंसा की। होता क्या है कि रिपोर्ट हिंसा का जितना ज्यादा विवरण देती है, लोग और जानने की उतनी ही उत्सुकता दिखाते हैं ।
बॉक्सिंग रिंग में, मैं जो करने की कोशिश कर रही थी, वह ये था कि मैं उसे खेल के मैदान और अखाड़े, दोनों के रूप में दिखाना चाहती थी। ये एक ऐसी जगह है जहां दर्शकों के साथ हम भी खुद को देखते हैं। दर्शक होने का अहसास दोनों को है और कभी कभी इसका प्रभाव और तीव्र हो जाता है।
इस नाटक में कई भाग या परिदृश्य ऐसे हैं जिनमें औरतों की आवाज़ और उनके लिखने को दबाया जाता है। ये परिदृश्य किन बातों पर आधारित हैं, और इन परिदृश्यों को बनाने की प्रक्रिया क्या थी?
उदाहरण के लिए, भरतनाट्यम वाला दृश्य (जहाँ अपने गुरु के सामने एक छात्रा नृत्य के माध्यम से उन रूपक को दर्शाती हैं जिसका इस्तेमाल हम महिलाओं के शरीर का वर्णन करने के लिए करते हैं। जैसे कि "वह एक मछली सा सजीला भाव लिए बगीचे से गुज़रती है")। यहां हमने ऐसी कृतियों को आधार बनाया है, जहां औरतों के शरीर को असंभव से लगने वाले मानकों पर रखकर, उनके बारे में ऐसे लिखा जाता है। ये भी महिलाओं को सेंसर करने का एक तरीका है, है ना?
कुछ देखी- पढ़ी चीज़ें थी, जो मैं काम के आरम्भ में साथ लेकर आयी थी और कुछ मैंने काम करने की प्रक्रिया के दौरान ही बनायीं। जैसे कि डांसर का सिंगल परफॉर्मंस, जहां वो दर्शकों से पूछती है, "क्या मैं अच्छा कर रही हूँ?" वो खुद एक डांसर है और उसने भरतनाट्यम और समकालीन (contemporary) डांस में शरीर से संबंधित सेंसरशिप का अनुभव किया है। ये उसके शरीर और डांस के बीच का उलझा हुआ संबंध है जो उसके व्यक्तिगत अनुभवों से निकल कर आया है। लेकिन इसमें एक नाटकीय वक्र, एक थियेटर का इतिहास भी है।
एक स्केच है जहां एक इंस्टा (इंस्टाग्राम) कवि की समीक्षा की गई है। ये सिर्फ कविता के बारे में नहीं है, बल्कि इस बारे में है कि उस औरत के बारे में कैसे बात की जाती है। और आप वास्तव में उसे एक कैरेक्टर के रूप में शायद बिल्कुल नापसंद करेंगे। आप उसकी कविता सुनकर शायद ये भी सोचें कि वो कितनी भयानक कविता है। लेकिन यहां बात ये नहीं है कि आप उसके काम को पसंद करते हैं या नहीं। यहां मुद्दा ये है कि हम उसके जैसी महिलाओं को क्या समझते हैं? अगर ऐसी स्थिति में हमारे सामने एक मर्द होता, तो हम कैसी प्रतिक्रिया देते? मुझे लगता है कि अपने आस पास की जातीय और सामाजिक विषमताओं में हम खुद हिस्सेदार होते है, हमारे होने भर से हम दुनिया की विषमताओं को जारी रखने का काम करते हैं। ये ज़रूरी है कि हम इस बात पर और गंभीरता से सोचे कि हम किस से नाराज़ हैं और क्यों और किसकी किस बात से हमें हर्ज़ हैं।
आपके विचार से ऐसे कौन से तरीके हैं जिससे हर रोज़ लोग जानबूझकर या अनजाने में औरतों की आवाज़ को दबाते हैं? एक कलाकार के रूप में आपने खुद ऐसा कुछ अनुभव किया है
ऐसा हर जगह और हर वक़्त होता है। चाहे वो बोर्डरूम हो जहां एक औरत को कुछ बोलने नहीं दिया जाता, चाहे वो पुरुष डायरेक्टर्स और फीमेल एक्टर का इंटरव्यू हो, जिसमें एक्टर से कुछ पूछा जाए, लेकिन डायरेक्टर उसे बार बार रोके या टोके। मुझे लगता है कि ऐसी परिस्तिथियाँ हर तरफ मौजूद हैं। इसके कई तरीके हो सकते हैं l किसी को बल से चुप कर देना, हिंसक तरीके से किसी की आवाज़ को दबा देना l फिर और छिपे हुए तरीके भी होते हैं, सांस्कृतिक तरीके l ये नाटक इन छिपे सांस्कृतिक तरीकों का परिचय देता है
क्या मैंने खुद ये सब झेला है? दरअसल, आज भी, अगर आप किसी थिएटर फेस्टिवल में जाते हैं और नाटकों की लाइन-अप को देखते हैं, तो आप पाएंगे कि नाटककारों और थिएटर निर्माताओं में औरतों की संख्या बहुत कम है। दोनों की संख्या में किसी तरह की बराबरी नहीं है
मुझे लगता है कि नाटकों का मूल रूप भी देखें तो लगेगा कि प्ले राइटिंग एक मर्दाना क्षेत्र है। और यही कारण है कि मेरा ये नाटक और पिछला नाटक 'नो रेस्ट इन द किंगडम' (No Rest in The Kingdom)’ थियेटर में एक नई आवाज खोजने के बारे में था। ऐसी आवाज़ जो असल में अपनी अभिव्यक्ति की स्वंतंत्रता रखती है । यानी मेरे काम का सम्बन्ध केवल औरतों की बात रखने तक सीमित नहीं है l पर नाटक के ऐसे रूप ढूंढने से है, जो नए हों, जिनमें नए प्रयोग हों, जो स्वतन्त्र हों l जिनका कथानक एक सीधी लकीर न पकडे न केवल पारम्परिक हो, पर जो अमूर्त (abstract) रूप ले पाए l यहां तक कि 'आई एम नॉट हीयर' (I am not here) भी एपिसोड की तरह दिखाया जा रहा है, जो बॉक्सिंग रिंग के अलग अलग राउंड्स के सहारे दिखाया जाता है। ये सिर्फ नाटक का प्रेजेंटेशन नहीं, बल्कि उसके मूल रूप के साथ एक प्रयोग है।
क्या आपको लगता है कि जेंडर (लिंग) के विषय में बात करने के लिए डांस और शरीर की हरकतों के बारे में बात करना उचित है
हां, मुझे लगता है कि डांस का शरीर के साथ बहुत गहरा सम्बन्ध है, और जेंडर और शरीर कई मायनों में एक-दूसरे से संबंधित हैं। व्यक्तिगत रूप से मुझे डांस करने वालों के साथ काम करना पसंद है क्योंकि वे अपने साथ एक नया ग्रामर (व्याकरण) लाते हैं। और इन डांस करने वालों के साथ काम करने से बहुत सारी चीजें मेरे लिए रोमांचक हो जाती हैं। जिसमें सबसे पहलीचीज़ है, किसी भी लिखी हुई चीज का ना होना
मुझे ये देखकर भी अच्छा लगता है कि इन नाटक के अभिनेता अपनी व्यक्तिगत संघर्ष को मंच पर दिखा पाते हैं। और उनका पात्रों को खुद में बसा लेना, या एकदम से कोई दूसरा व्यक्ति बन जाना, मुझे बहुत रोमांचित कर देता है। मेरी सारे कहानी महिला कलाकार के शरीर के इर्द-गिर्द ही रहती है। उनका शरीर जैसे आवाज़ उठाने और उसके बाद की संभावनाओं का प्रतिरूप हो
शरीर एक औज़ार के रूप में, एक स्थान के रूप में, इतिहास के संग्रह के रूप में, भविष्य के एक विचार के रूप में, मुझे प्रभावित करता है। इस शो में एक डांसर है जो काफी छोटी है लेकिन बहुत ही मांसल (muscular) है, लगभग द्विलिंगी लक्षण वाली। वो इतनी फुर्तीली है कि आप उसके शरीर को आश्चर्य और सम्मोहित होकर देखने लगेंगे और चाहेंगे कि काश आप भी ऐसा कर पाते। लेकिन वही शरीर उत्पीड़न की कहानी बयान करता है, उपेक्षित होने की बात बताता है, ठीक उसी तरह जिस तरह औरतों का लिखा इन बातों को सामने लाता है। यहां डांस और राइटिंग में कोई अंतर नहीं है, वही विचार, वही लड़ाई दोनों की है।
इस नाटक को देखने से आपके दर्शकों को क्या हासिल होने की उम्मीद है, और आप उनको कैसा महसूस कराना चाहती हैं
ये ज़रूरी नहीं है कि उन्हें वैसा ही महसूस हो जैसा मैं चाहती हूँ कि वो महसूस करें। लेकिन उम्मीद यही है कि उन्हें कलाकारों और उनके द्वारा दिखाए गए अनुभवों से फर्क पड़े। उन्हें लगे कि उन्होंने कुछ ऐसा देखा जिसका सम्बन्ध उनकी ज़िन्दगी से भी है।
किसी के आवाज़ उठाने पर लगे सेंसरशिप का विरोध कैसे किया जा सकता है
बस, और ज़्यादा काम करने के मौके पैदा कर के। जैसा कि हम हमेशा करते रहे हैं, किताबें लिखकर या फिल्में बनाकर। आप जो करने की कोशिश कर रहे हैं, उसे करते रहें और उसे करने के नए तरीके खोजते रहें। आपको किसी फॉर्मूले के तहत काम करने की ज़रुरत नहीं। आपके काम के लिए श्रोता या पढ़ने वाले कहीं न कहीं मौजूद हैं, आपको उन्हें ढूंढना है l
यह नाटक अब किस शहर में दिखाया जाने वाला है
फरवरी 2020 में इसे दिल्ली में हो रहे भारत रंग महोत्सव में दिखाया जायेगा।
औरतों की आवाजें कैसे सेंसर होती हैं? यह नाटक एक प्राइमर प्रदान करता है
थिएटर कलाकार दीपिका अरविंद से कुछ बातें
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