उस दिन दिल्ली के देवताओं ने हम पर रहम खाकर रोज़ “ख़तरों के खिलाड़ी: हमारा सामना कौन करेगा?” -का खेल खेलना बंद किया था। जिस वजह से थोड़ी बारिश आई और मौसम भी ठीक ठाक होने लगा था। पर किसे पता था कि बारिश के जाते ही हमें बम्बई वालों जैसे पसीना बहाना पडेगाl मैंने उन सारे देवताओं को मन भर कोसा l मुझे टाइट कुरता पहनने पर अब पछतावा भी हो रहा थाl ख़ैर, मेट्रो स्टेशन जाने के लिए मैं रास्ते के बग़ल में ई-रिक्शा के लिए रुकी रही।
कुछ दिनों से अपने एक जिगरी दोस्त से मेरा झगड़ा चल रहा थाl और आखिर एक दूसरे का सामना करने की घड़ी आ गयी थीl सयानेपन में दोस्तों से झगडे भी अजीब हो जाते हैं। प्रेमियों के साथ, प्रेमियों का ध्यान और उनका प्यार पाने के लिए हम लगातार झगड़ते रहते हैं। और दोस्तों से सहारा लेते हैं l ऐसे में, जब दोस्ती ज़रुरत मंद होने लगती है, हमें भारी लगने लगती है l हम उसे बोझ समझकर कंधे से उतार गिराना ही ठीक समझते हैं। पर ऐसा क्यों? शायद इसलिए कि हमने ज़िंदगी में अपने प्रेम संबंधों को ही ज़्यादा महत्त्व दिया है l कभी कोई ऐसी पिक्चर देखी है जो सच्चे दोस्त की खोज पर बनाई गई हो? नहीं ना ! सारी पिक्चरें सच्चा प्यार पाने की बात करती हैं l । ग्रेटा गरविग ने किसी इंटरव्यू में सही फ़रमाया था कि हम अपने सबसे अच्छे दोस्त से कभी शादी नहीं करेंगे, और यही हमारी ज़िंदगी का सबसे बड़ा दुर्भाग्य होता है। क्या ये सच है? बचपन से घर में हम ये सिखाया जाता है कि दोस्त तो आते जाते रहेंगे, सिर्फ़ घरवाले ही हैं जो हमारा साथ नहीं छोड़ेंगे। यूं समझा जाता है कि कि सभी दोस्त अपने दोस्तों को नहीं बल्कि अपने बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड (यानि की होनेवाले रिश्तेदार) को चुनेंगे। तो फिर तो यही लगता है कि किसी दोस्त से झगड़ने में और फिर उससे मुक़ाबला करने में वक़्त क्यों ज़ाया करें? क्या उस दोस्ती को अपने आप ख़त्म हो जाने देना और आसान नहीं होगा?
ई-रिक्शा में एक बूढ़े आदमी के पास में बैठते ही, मैंने मेरे मैसेज चेक किए। मेरा दोस्त मुझे कोनॉट प्लेस में मिलने की जगह बताने वाला था। हाँ, उसका मैसेज आया था। आम तौर पर इन छोटी मोटी चीज़ों के लिए हम एक दूसरे को फ़ोन करते थे, इसलिए मैसेज भेजने का मतलब था हमारे बीच दूरियां आ गयी थीं l ख़ैर! जवाब भेजते वक़्त रिक्क्षा एक कॉलेज के सामने रुका l १८ या १९ साल की उम्र का लड़का रिक्शा में चढ़ा और मेरे सामने की सीट पर बैठ गया। वो अपनी ही उम्र की लड़की को अंदर खींच लाया, उस लड़की के ना कहने के बावजूद। लड़की का कहना था कि उसे दूसरा रिक्शा लेना है, इस में बैठने से उसके बाल बिगड़ जाएंगे ! लड़के ने उसे हँसते हँसते शोशेबाज़ी बंद करने को कहा, और ना कहते कहते वो लड़की उसके पास आकर बैठ गई।
दिल्ली में रहने का एक मज़ेदार फ़ायदा ये है कि आप बड़ी बेशर्मी से दूसरे को घूर सकते हो l यहाँ तक की मेट्रो में ठीक बग़ल में बैठे शख़्स के फ़ोन को भी। बंबई में घूरने को असभ्य माना जाता है। सच पूछो तो मुझे ये दिल्लीवाला रवैया पसंद है - अजनबियों के बीच सभी दीवारें जलाकर राख कर देनी चाहिए, बिना किसी शर्म के। आख़िर किसी को घूरे बिना मैं उसे कैसे जान सकती हूँ? घर के बाहर, दूसरों के बीच अपनी निजी जगह बनाए रखना कितना आधुनिक विचार है, ख़ासकर भारत जैसे देश में !
तो मैं भी उस लड़की को घूरने लगी। काफ़ी स्मार्ट थी वो। उसके लंबे नाख़ूनों पर काला नेल पैंट लगा हुआ था और आँखों में उसने पंखों की रेखा जैसे आईलाइनर लगाया था। उसका काले रंग का फ़ुल स्लीव शिफ़ॉन टॉप जो ‘सी थ्रू’ था, थोड़ा सा टाइट भी और टॉप में से हलकी सी क्लीवेज दिख रही थी। उसके बाल सबसे शानदार थे - लंबे, घने, रेशमी और चमकदार। कोई ताज्जुब कि उसे उनकी फ़िक्र थी ! फिर मेरा ध्यान लड़के पर गया, जिसने अपने कान के ऊपर के बाल शेव कर दिए थे और सामने के चंद बालों को हल्का भूरा रंगाया था। उसने लाल रंग की टी शर्ट पहनी थी जो टाइट थी और साथ में काली कार्गो पैंट। उसका बैकपैक अगली ओर, उसकी छाती पर लटका था। फिर मेरी नज़र उसके होंठों पर गई। बहुत सुंदर थे वो होंठ, काफ़ी अच्छा आकार था उनका। अचानक, मुझे समझ आया कि उस लड़के के रंग रूप लड़कियों से काफ़ी मिलते थे। मैं मुस्कुराई। वो दोनों एक दूसरे में इतने मग्न थे कि उनके ध्यान में नहीं आया कि उनके ठीक सामने बैठी एक बेढंगी सी लड़की, मुस्कुराते हुए उन्हें ताक रही थी।
लड़के को एन. सी. सी. में दाखला लेने के लिए पैसे कम पड़ रहे थे। लड़की ने बड़ी गंभीरता से पूछा , कितने पैसों की ज़रुरत थी। वो बोला, “यार, ५० या ५०० से काम नहीं चलेगा … ५००० तो लगेंगे ही।” जिस तरह लड़की ज़ोर से हंसी, उससे पता चल गया कि उतने पैसे देना उसके बस के बाहर था।
लड़का फिर बोला, “पता है तुझे कल क्या हुआ। मैं मेट्रो में थी। लेडीज़ सीट पे बैठी थी … एक लड़की चढ़ी और मेरे पास आके बोली, ‘ये लेडीज़ सीट है’। मैंने भी कह दिया … ‘मैं भी लेडीज़ ही हूँ’। आस पास के लोग हँसने लगे। थोड़ी देर बाद, मैं फिर से बैठी तो एक और आंटी ने आकर कहा कि ये लेडीज़ सीट है। इस बार उस लड़की ने आंटी से ज़ोर से हँसकर कहा, ‘आंटी ये भी लेडीज़ है।’”
तब मैं समझी कि उसके छोटे बाल और लड़कों जैसे कपड़ों की वजह से, मैं उसे ग़लती से लड़का समझ बैठी थी। पहले तो मुझे अपनी बेवकूफी का अहसास हुआ और फिर मैं उसकी बातें जानने के लिए बहुत उत्सुक हुई। वो बता रही थी कैसे मेट्रो में कोई शख़्स उसकी बातचीत सुनकर उसके पास आकर बोला कि वो LGBT समुदाय का था। जब उसने लड़की से पूछा क्या वह लेसबियन थी तब उसने ना कहा। उस आदमी ने अपनी पहचान के शख़्स का नंबर लड़की को दिया और कहा कि वो कभी भी उस नंबर पर फोन कर सकती है अगर उसे मदद की ज़रुरत लगी तो। उस लड़की को ये किस्सा बड़ा मज़ेदार लगा और इसी अंदाज़ में उसने वो किस्सा अपनी सहेली को बताया।
लंबे बालों वाली लड़की ज़ोर से हँस पड़ी और दूसरी लड़की से पूछा कि उसने उस आदमी को ये क्यों नहीं बताया “कि तू प्यूअर गर्ल है”। लम्बी बालों वाली को लगा कि उस आदमी का अनजानी को यूं आकर कि वो गे है, बड़ी अजीब बात थी। दूसरी लड़की ने ग़ुस्से में उसे चुप कर दिया और कहा कि उसकी ऐसी सोच ही ग़लत थी और इसलिए उसने उसे डांटा। “उसे लगा होगा कि मैं LGBT समुदाय की हूँ और मुझे मदद की ज़रुरत है, तो उसने बात की। उसमें क्या बड़ी बात है?” बात के इस मोड़ पर आने पर मैंने इन दोनों के झगडे की कल्पना की, और सोचा की अब एक मुँह पहला कर बैठ जाएगी l पर आश्चर्य की बात ये है कि वैसा कुछ भी नहीं हुआ। छोटे बालों वाली लड़की ने बिना धौंस दिखाए, अपनी सहेली को LGBT का मतलब समझाया। बिना लेक्चरबाज़ी किये l उसकी सहेली, जो शुरू शुरू में LGBT के बारे में अंजान दिखी, आराम से और ध्यान से सुन रही थी। झगड़ों की बड़ी वजह अक्सर अपना ईगो - अहम् होता है, उसकी वजह से हम दूसरे की बात सुनना भूल जाते हैं। एक दूसरे की बात सुनने से ही झगड़े झट से ख़त्म हो जाते हैं। ये बात सुनने में जितनी भी घिसी पिटी लगे, सच यही है, कि ध्यान से किसी की बात सुनने से ही उलझनें फ़टाफ़ट सुलझ पाती हैं । उन दोनों को देखकर मुझे बिलकुल ऐसा नहीं लगा कि उनमें से कोई एक अब अपनी बात पर बुरी तरह से डट जाएगा, फिर झगड़ा होगा और उनमें दूरियां आ जाएंगी। मुझे नहीं लगा उन दोनों के बीच वैसा कुछ होने वाला था।
ई-रिक्क्षा से उतरने के बाद दोनों को जाते हुए देखकर एक अजीब अहसास मुझ पर हावी हुआ, जैसे कुछ खो दिया हो । मुझे मेरा बचपन याद आया, जब मेरे दोस्त ही मेरी ज़िंदगी थे। उनके होते लगता कि हम साथ में दुनिया जीत सकते थे और कुछ भी नामुमकिन नहीं था। हम सब - कुछ लड़के और कुछ लड़कियां - एक साथ एक दूसरे की देखभाल कर सकते थे l फिर प्यार और रिश्ते जैसी चीज़ें शुरू हो गयीं और दूरियां बाद गयीं। ई-रिक्क्षा में बैठे वो दोनों एक दूसरे में इतने खोए हुए थे मानो उन्हें छोड़कर दुनिया में कोई था ही नहीं। और जब ऐसा होता है तो आप भविष्य के बारे में भूल जाते हो। अपने दोस्त के बिना कोई भविष्य आप देख ही नहीं सकते। मुझे उनसे जलन हुई। किसी सिद्धांत पर अड़ कर झगड़ा नहीं कर रहे थे वो, यूं एक दूसरे से अलग नहीं हो रहे थे l
झगड़ों के बावजूद दोस्तों को प्यार करना, उनका साथ ना छोड़ना और सबसे अहम् बात, सारा झगड़ा भूल जाना- मुश्किल है। और ज़िंदगी के मकाम पर ये करना नामुमकिन है। मेट्रो के सफ़र में मैं यही सोच रही थी। उम्र के बढ़ते, दुनिया के बारे में कुछ ख़्याल सिद्धांत बन कर कस के मन में जगह बना लेते हैं। हम ये मानते हैं कि प्रेमियों के साथ झगड़ते रहने से हम उन्हें अपनी बात समझा पाते हैं l लेकिन दोस्तों पर हमें इतना वक़्त बिताना नहीं पड़ता। हम ऐसे लोगों के साथ रहना चाहते हैं जो हमारे ये ख़याल और सिद्धांत समझें। और अगर वो ऐसा नहीं कर पाते तो हम उन्हें भूल जाना चाहते हैं, मानो उनके साथ रिश्ता दुकान में ख़रीदी ऐसी वस्तु है जो हमें अच्छी नहीं लगी। सो हम आगे बढ़ना चाहते हैं l जैसे हम एक राह के हमसफ़र नहीं थे lकोनॉट प्लेस पास आते इन ख़यालों ने मुझे बेचैन किया। मुझे अपनी कमज़ोरियों को ज़ाहिर करते हुए नहीं पेश आना था और ये भी नहीं चाहती थी कि मेरा दोस्त वैसा पेश आए। बस यही चाहती थी मैं कि हम झगड़ा भूल जाए। दोस्ती में किसी शख़्स का अतिसंवेदनशील, अपनी कमज़ोरियों को ज़ाहिर करते हुए पेश आना पेचीदा मामला है। हम चाहते हैं कि दोस्तों के साथ हम अपनी कमज़ोरियाँ बयान कर पाएं। लेकिन उस कमज़ोरी के साथ कैसे जीना है, हम नहीं जानते। आपकी कमज़ोरियों का सामना करने के लिए दूसरे की समझ बूझ, देख भाल और मेहनत लगती है। ये आपके दोस्त के लिए बहुत मुश्किल हो जाता है। या शायद ये सिर्फ़ मेरे विचार हैं क्योंकि दोस्ती निभाने में मैं बिलकुल नाकाम रही हूँ। ख़यालों के इस तूफ़ान से मैं चकरा रही थी। और फिर मुझे तरक़ीब सूझी: अगर मुलाक़ात में मुझे बेचैनी हुई तो मैं माहौल हल्का करने के लिए ई-रिक्शा की वाक़या सूना दूंगी।
हमारी मुलाक़ात ठीक ठाक थी। हमने बातें तो की, पर झगड़े पर नहीं। शायद हम दोनों ये समझ नहीं पा रहे थे कि अपनी दोस्ती को बरकरार रखने के लिए कितनी लड़ाई करने को तैयार थे। दोस्ती को यूं ही ख़त्म होने देना कितना आसान है, है ना? दोस्ती में झगड़ों और मुक़ाबलों से शायद हम उस रिश्ते की अहमियत समझते हैं। काश मैं रिश्तों में आसानी से झगड़ पाती, मेरे परिवार, मेरे प्रेमी, दूसरे लोगों के साथ और फिर मेरे दोस्तों के साथ भी। अपनी और कई और ज़िंदगियों में मैंने देखा है कि दोस्तों को सबसे कम अहमियत दी जाती है, सबसे पहले हम उनको खो देने को तैयार रहते हैं। ये बड़े दुःख की बात है। मैंने कई क़रीबी दोस्त खो दिए हैं और मैं उन्हें भूल नहीं पाई। शायद मेरे माता पिता ग़लत थे, दोस्त यूं ही नहीं आते जाते। क्या दोस्ती में झगड़ना उसे ज़िंदा रखने का एक ज़रूरी ज़रिया है? यह दिखाने को कि आपको दोस्ती इतनी प्यारी है कि आप उसके ख़ातिर दर्द सहने के लिए तैयार हो? शायद इसका जवाब उस भारी दुःख में है जो मेट्रो के पूरे सफर में मुझपर सवार रहा।
प्रिया नरेश दिल्ली रहतीं हैं और फिल्में बनतीं हैं।
एक नगमा, ढलती दोस्तियों के नाम
हम दोस्ती को इतने आसानी से क्यों पिघल जाने देते है?
प्रिया नरेश द्वारा लिखित
चित्रण - शिवानी परिहार
अनुवाद - मिहिर सस्वादकार
Score:
0/
Related posts
How To Smell And Taste Good Down There
Partner going down on your buffet? Tips for a yummy garnish!…
हम बस दुखड़ा रोने को तैयार ही थे कि हमने हॉकी स्टिक लिए एक छोटी लड़की को देखा।
एक मूवी के किरदार से अ…
मैंने खुशी-खुशी अपना दिल उनको दिया, लेकिन उनको चाहिए थे बच्चे और एक देसी बहू
स्थायी बीमारी में डेटि…
दुनिया की ऐसी जगहें जहाँ पब्लिक में सेक्स करना क़ानूनन जायज़ है ।
आज है #WorldTorismDay! जाने दुनिय…
If Life is Box Full of Chocolate Boys!
#HappyChocolateDay to the men who smile, are vulnerable, and…
What is Fellatio? The AOI Sex Glossary
Is it ice-cream ka flavour, like pistachio? Well, it does ha…
Sorry Thank You Tata Bye Bye - A Music Video About Age of Marriage In Collaboration With Oxfam India
Ammuma’s Haircut and Her Romantic Past
If Ammuma's hair was one to divulge, what would it reveal ab…
It Was ‘Twilight’. I Woke Up Bisexual.
How one can stumble upon one's (bi)sexuality with the help o…
To All the Boys I Couldn't Love Before
What fleeting connections with many interesting men tell you…
Tell Me Tarot, Will He Ever Come Back?
After Manjari is ghosted, all search for closure leads to he…
How My Girlfriend's Abortion Made Me A Better Man: A Comic
M's story about a life-changing incident.
Do You Know How to Give Women Orgasms?
This app will teach you how and we got some Agents to try it…
The AOI Queer Reading List: Desi Languages Version
Queer readings from non-English Indian languages.
What Makes Your Sexual Confidence Go Up and Down
Sexual confidence is like a Snakes and Ladders Game
KISS MEIN KITNA HAI DUM: 19 KISS POEMS
Kisses that go from sweet to saucy, tender to raunchy, misch…
Savita Bhabhi and I: A True Love Story
Here is something you should know about me. I wrote three st…
How Posing in the Nude Changed My Life
A young gay man who hates being touched, is awkward about ha…