कुछ हफ्ते पहले, कुछ जवान लड़कियों के एक समूह से मोहब्बत, मर्ज़ी, रिश्ते और दिल टूटने जैसे विषयों पर चर्चा करने के लिए हम मुंबई से करीब दो घंटे की दूरी पे स्थित एक छोटे से गांव टिटवाला गए। जब हम वहां पहुंचे, तो हमारे सामने एक चुनौती थी: लंच के बाद वाले समय की चुनौती! वर्कशॉप एक बड़े कमरे में आयोजित की जा रही थी, जिसमें एक तरफ एक स्क्रीन था और बाकी सभी दीवारों से गद्दे लगे हुए थे।सारी लड़कियां, जो दोपहर के खाने और दिन भर की गतिविधियों के बाद सुस्त और आगे किसी कार्य में भाग लेने के लिए अनिच्छुक थीं, वह पीठ के आराम के लिए गद्दों का सहारा लेते हुए दीवारों से टेक लेकर बैठी हुई थीं। हम जानते थे कि उनका ध्यान आकर्षित करना कठिन होगा! प्रतिभागियों में श्रीमती पी. एन. दोशी महिला कॉलेज की एन.एस.एस. ( राष्ट्रीय सेवा योजना) यूनिट से 18 से 21 वर्ष की उम्र की लगभग 200 छात्राएं शामिल थीं । सब हफ्ते भर चलने वाली सेवा शिविर में शामिल थे। वे वहां के स्थानीय सरकारी स्कूल की दीवारों पर चित्रकारी कर रहे थे और पास की ही नदी के किनारे पेड़ लगा रहे थे, और वहीँ के एक स्थानीय स्कूल में अपना डेरा डाले हुए थे । जिन कक्षाओं में हमारा प्रोग्राम जारी था, उन्हें वहीं रात को सोना था। अपना खाना खुद बनाने के साथ-साथ बाकी सभी गतिविधियों (जिनमें वो शामिल थीं) के बाद वो थक गई थीं। हमें लगा कि हमारा वर्कशॉप उनके रोज़ के काम से उन्हें कुछ राहत देगा । पर, जब हम वहां पहुंचे तो हम समझ गए कि ज्यादातर लड़कियों का झपकी लेने का इरादा था। हमें बाद में पता चला कि ऐसा इसलिए था क्योंकि आम तौर पर दोपहर के सत्र के दौरान उनसे वो बातें बिलकुल नहीं की जाती थीं, जो वाकई उनके लिए मायने रखती थीं। लड़कियों ने हमें बताया कि ज़्यादातर उनसे बात करने के बजाय उन्हें लेक्चर दिए जाते थे। प्रतिभागियों में से एक ने हमें बाद में बताया, "ज्यादातर लोग आते हैं और हमें इस पर भाषण देते हैं, और हम सच में ऊब जाते हैं, यह पहली बार हुआ है कि कोई हमारे पास आया है और इन सभी चीजों के बारे में हमसे बात की है।" उनकी शुरुआती हिचकिचाहट के बावजूद, कमरा जल्द ही हंसी, गीत, नाच और नयी ऊर्जा के साथ गूँज रहा था, जिसने हम सभी को बदल दिया। क्योंकि जब मोहब्बत, यौन-सम्बन्ध और वासना पर ईमानदारी से, बिना किसी आलोचना के, बिना किसी निर्धारित निष्कर्ष के, चर्चा करने की बात आती है, तो कौन नहीं जागता है? शादी का ताम-झाम हमने वर्कशॉप की शुरुवात एक ऐसे सवाल से की जिस से भारत के सभी युवा वर्ग को सामना करना पड़ता है और जिसपे उनका काफी कुछ कहना भी है: "क्या आपका शादी करने का प्लान है?" और अगर है, तो क्या आप प्रेम-विवाह (love marriage) करना चाहेंगे या फिर सुसंगत विवाह (arranged marriage)? कुछ लड़कियां बिन कुछ कहे सिर्फ शरमाते हुए मुस्कुरा रही थीं, कुछ उत्साहित हो गयीं और बताया कि वे प्रेम-विवाह करेंगी, जबकि कुछ ने कहा की वो सुसंगत/अरेंज विवाह करना पसंद करेंगी। प्रेम-विवाह क्यों, हमने पूछा। "प्रेम के बगैर शादी करना तो थोड़ा लोभी सा लगता है," एक जवाब था। "एक सुसंगत/अरेंज विवाह में आप देखते हैं कि वह व्यक्ति कितना धनवान है, वह करता क्या है, और उसकी जाति क्या है, और इसी आधार पर उसे चुनते हैं, " यह जवाब एक ऐसी लड़की का था जिसके लिए प्रेम-विवाह ऐसी छोटी सोच का विरोध करने का एक तरीका है। एक और विचार ये था कि प्रेम विवाह अनुकूलता (compatibility) सुनिश्चित करता है। कुछ लड़कियों ने कहा कि सुसंगत/अरेंज विवाह में स्थिरता और सुरक्षा है। कुछ लोगों ने कहा कि प्यार में डूबे लोगों को अंत में घर छोड़ के भागना पड़ता है, और इस से काफी समस्याएं पैदा हो जाती हैं। हमने थोड़ा और निजी होने का फैसला किया। आपने कभी प्यार किया है, हमने पूछा। हवा गर्म सी हो गई। माहौल बदल गया। दुविधा से भरी मुस्कान और संकोच से भरी नज़र कमरे भर में थी। जो लोग कोने में आँखों को ढक कर सोने की कोशिश कर रहे थे,वो अब एक आँख खोल कर इस बात में दिलचस्पी दिखा रहे थे। वे उत्सुक थे कि दूसरे लोग अब क्या कहने वाले हैं। कुछ हाथ ऊपर उठे, फिर कुछ और। कुछ ने अपने दोस्तों को हाथ उठाने के लिए कोहनी मारी, कुछ ने अपने दोस्तों के लिए हाथ उठाया। हम, वर्कशॉप के सहायक, उनकी मदद करने के लिए अपने हाथ भी उठाने लगे। पहले हमने अपना एक हाथ उठाया, फिर दूसरा, फिर बारी बारी से दोनों हाथों को बार-बार उठाया। हम सब हँस रहे थे। अगर हर कोई प्यार में था, तब तो उन्होंने सेक्स के बारे में भी सोचा ही होगा, है ना? हमने पूछा। तो बताओ क्या सोचा? क्या सेक्स करना ठीक था? उन्होंने एक-दूसरे को घबरा और हिचकिचा कर देखा, और इन्तेज़ार कर रहे थे कि कोई और पहले जवाब दे। उन्होंने कहा कि सेक्स ऐसा कुछ है जो एक व्यक्ति को ख़ुशी देता है। हमने गौर किया कि लड़कियां एक दूसरे के प्रति आलोचनात्मक नहीं थीं, कि किसने कैसे, किसके साथ और कब सेक्स (जैसे विवाह से पहले या केवल विवाह के बाद) किया, लेकिन साथ ही यह भी गौर किया कि लडकियां दूसरों के बारे में एक मोटे तौर पर यूँ भी कह रही थीं कि क्या होना चाहिए और क्या नहीं। जब बात उनके खुद पे आयी, तो वे और फॉर्मल/औपचारिक सी हो गईं। जैसे वो बड़ी दूर से अपने बारे में बात कर रही थीं। कुछ ने साफ-साफ कहा कि जब अपने पर बात आती है, अपनी मर्यादाओं और सीमाओं का माप अलग होता है। आप औरों के लिए और उदारता से सोच सकते हैं। एक प्रतिभागी पिछली रात 'लिपस्टिक अंडर माई बुर्खा' नाम की फिल्म के कई मुख्य पात्रों में से एक के बारे में अपनी भावनाएं व्यक्त करने लगी। उसने महसूस किया कि हालांकि फिल्म में वह महिला सेक्स कर रही थी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं था जिसमें उसकी इच्छा या खुशी शामिल थी - पति उसे अपनी शारीरिक सुख के लिए इस्तेमाल कर रहा था - और वह गलत था। छात्रों में यह पक्का विश्वास था कि आपसी बातचीत शारीरिक सम्बन्ध का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा था, और ये भी कि बलात्कार (rape) और यौन सम्बन्ध दो अलग-अलग चीज़ें थीं। जीवविज्ञान से पहले, जीव विज्ञान के बाद कई वर्गों, कार्यशालाओं और सम्मेलनों और प्रोजेक्ट में , जो कामुकता से सम्बंधित होती हैं, वास्तव में सेक्स पर कोई भी चर्चा नहीं करता है। हम पोर्न वीडियो के अवास्तविक सेक्स की आलोचना करते हैं, लेकिन असलियत में - हम खुद- सेक्स की प्रक्रिया - के विषय को छूते भी नहीं हैं। लेकिन मुझे लगता है कि हम इश्क़ के एजेंट्स ऐसे ही तो नहीं बने हैं। इसलिए हमने उनसे सीधे-सीधे ही सेक्स के बारे में पूछ लिया। शुरुवात में, छात्रों से जो उत्तर हमें प्राप्त हुए वह काफी संक्षिप्त थे। कुछ लड़कियां जो कि सबसे सामने बैठी थीं, उन्होंने इसका बहुत मूलभूत जवाब दिया, शायद कर्त्तव्य की इस भावना में कि वह से कि वो अपने ग्रुप का प्रतिनिधित्व कर रही हैं और उनके ग्रुप को हमारे हर सवाल का जवाब देना चाहिये। लेकिन चूंकि वे सब वहां फैलकर बैठे हुए थे, इसलिए हमने जवाब इकट्ठा करने के लिए चारों ओर घूमने की कोशिश की,और तब कुछ और दिलचस्प बातें सुनीं, खासकर तब, जब हमने आम तौर पर चुप चाप बैठी लड़कियों की बात सुनने की कोशिश की। हमने पाया कि छात्रों को काफी हद तक विषमलैंगिक यानि, योनि-में-लिंग सेक्स की मूलभूत बातें पता थीं। कुछ जो शायद जीवविज्ञान (बायोलॉजी) का अध्ययन कर रहे थे वे "फैलोपियन ट्यूब" और "गर्भाशय" जैसे शब्दों का उपयोग करके इसका अधिक स्पष्ट रूप से विवरण देने में सक्षम थे। कुछ ने स्वीकार किया की वे सेक्स और बच्चे पैदा करने की सही प्रक्रिया के बारे में पूरी तरह से निश्चित नहीं हैं। इसलिए हमने SNEHA के सहयोग से एजेंटस ऑफ़ इश्क़ द्वारा बनाया गया एक हर तरह से धमाकेदार बंबइया इश्टाइल का वीडियो -"मैं और मेरी बॉडी" चला दिया - जिसमें बताया गया था कि शरीर की संरचना कैसे होती है, बच्चे कैसे होते हैं, लिंग कैसे निर्धारित होता है, आकर्षण कैसे होता है, और युवावस्था (पुबर्टी) होती क्या है। मजेदार संगीत और एनीमेशन ने कमरे की ऊर्जा को पूरी तरह से बदल दिया। लड़कियां हँस रही थीं और साथ गाने की भी कोशिश कर रही थीं। वीडियो में फेरोमोन (शरीर से ऐसी रासायनिक द्रव्य का स्त्राव जिस से विपरीत लिंगों में आकर्षण पैदा होता है ) का जिक्र था, और हमने फेरोमोन और आकर्षण के बारे में विस्तार से बात-चीत करने की कोशिश की। हमने पूछा कि क्या उनमें से कोई किसी के साथ संबंध में था - हमें इसके कई अलग-अलग जवाब मिले। कुछ लोगों ने हाँ कहा, कुछ ने ना कहा, और एक प्रतिभागी ने तो जोर से कहा कि उसने कभी प्यार महसूस नहीं किया और ना ही किसी रिश्ते में रही। उसके बाद हमने अलैंगिकता के बारे में बात की, क्यूंकि वह भी इश्क़ के इस विस्तार का एक हिस्सा है। जब हम आकर्षण के भाव के बारे में बात कर रहे थे, ऐसी अनुभूति जो हमें तब महसूस होती है जब हम किसी को पसंद करते हैं, तो लड़कियों ने सिर हिलाते हुए अपनी स्वीकृति दी। एक लड़की ने अपनी दोस्त कि तरफ इशारा करते हुए कहा, "वह घंटों तक फोन पर बात करती है।" इतना कहते ही लड़कियों ने एक श्रृंखला में अपने दोस्तों की तरफ इशारा करते हुए उनको चिढ़ाना शुरू कर दिया। कुछ लड़कियां शर्मा गयीं और अपने दोस्तों को चुप कराने लगीं, जबकि कुछ लड़कियां बस हंसने लगीं। प्यार में बाधाएं "मैं और मेरी बॉडी" तक तो सब ठीक-ठाक ही भाग ले रहे थे, लेकिन हमारी चर्चा अभी भी पारंपरिक सेक्स के क्षेत्र में ही हो पा रही थी। लेकिन जब हमने 'एजेंट्स ऑफ इश्क' का पॉडकास्ट चलाया, तो सब कुछ बदल गया- अचानक सभी लड़कियां आंखें फाड़कर उठ बैठीं और विषय में अपनी रुचि दिखाने लगीं। क्यों? पॉडकास्ट "लवज़ोन फ्रेंडज़ोन" (Lovezone Friendzone) में, 19 वर्षीय लुब्ना बताती है कि कैसे वह किसी और लड़की से डेटिंग कर रहे लड़के से प्यार कर बैठती है। वह उस लड़के को किस करने पर हो रहे पछतावे की बात करती है। वह बताती है कि उसने उसे अपनी माँ से भी ज्यादा प्यार किया था, और कैसे उस लड़के ने उसे छोड़ दिया क्योंकि वह मराठी नहीं थी। लुब्ना ने बताया कि वो इस पर कितना रोई थी और उसे कोई भी भावनात्मक गीत सुनने पर उस लड़के की कितनी याद आती थी। और अब वह एक दूसरे लड़के को पसंद करती है, वो जो उसे "वैसी वाली भावनाएं" देता है। लड़कियां, जो तब तक अपने आप में ही लगातार बात कर रही थीं, उन्होंने पूरे ध्यान के साथ पॉडकास्ट को सुना और साथ ही साथ गाया भी! जब हमने उनसे पूछा कि क्या उन्हें लगता है कि असल जिंदगी में यह कहानी संभव है, तो उन्होंने एक आवाज़ में कहा "हाँ"। उनमें से कई, जाति और समुदाय को जटिलताओं और परेशानी के साथ जोड़ रहे थे, और इस बात का समर्थन कर रहे थे कि लुब्ना इस घटना को भुलाकर अब किसी और के साथ थी। उस समय, लड़कियों ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों को बांटना शुरू किया, पिछले और वर्तमान संबंधों के बारे में बात करनी शुरु की, खासकर वो जो कि पॉडकास्ट की कहानी जैसे ही थे या उससे संबंधित थे। जैसे कि "एक लड़के ने मेरे साथ भी ऐसा ही किया था, लेकिन अब मुझे भी कोई और पसंद है।" मेरे लिए, वो शुरुआती संकोच समाप्त हो जाने के बाद, उन्हें अपने अनुभव बांटते देखना, बहुत उत्साहजनक था। शायद यह अन्य लोगों की कहानियों और व्यक्तिगत अनुभवों को सुनने से हुआ था कि इन लड़कियों का स्विच भी ऑन हो गया। एक दूसरे की कहानियों से संबंध रखने वाली लड़कियां अपने अनुभव बताने के लिए आगे आने लगीं और इस तरह अधिक से अधिक लड़कियों के भाग लेने पर एक मिलने बांटने का माहौल बन गया था। उनके अंदर ये रुचि (और ऊर्जा), अपने जैसे लोगों के अनुभवों के बारे में सुनने से आ रही थी - वो सब पारंपरिक परिवारों की युवा लड़कियां थीं। इससे हमने भी अतिसंवेदनशील महसूस किया और अपने अनुभव बांटने लगे । जब हमने उन्हें अपने प्यार या दिल टूटने की कहानियां बतायीं, तो वे काफी चिंताशील तरीके से सलाह देते थे "उस लड़के को डंप कर दो" या "उनके बारे में भूल जाओ! वह उस लायक नहीं है!" और हम जो बात कर रहे थे, उसमें योगदान भी किया। जब हम दिल टूटने की बात को लेकर आगे बढ़े, तो पहले से भी (जब प्यार की बात की गयी थी) अधिक लोगों ने हाथ उठाए - वीडियो और पॉडकास्ट लड़कियों का ध्यान आकर्षित करने और उन्हें सहज करने में सफल हो चुके थे। हालांकि कार्यशालाबहुत आपसी बातचीत हुई थी, और निर्देश काम, बातचीत ज़्यादा रही थी, फिर भी इन पॉडकास्ट के उपयोग से बातचीत की नींव और मजबूत की गई। एक प्रतिभागी ने बताया कि उसका रिश्ता इसलिए टूटा क्योंकि उसका साथी दूसरी जाति का था। और हालांकि वह अपने माता-पिता को उससे शादी करने के लिए मनाने में सक्षम थी, लेकिन शादी के बाद उससे ये उम्मीद की जा रही थी कि वो घूंघट पहने, और उसे पता था कि उस लड़के के यहां उसे नौकरी करने की या किसी भी तरह की आज़ादी की अनुमति नहीं मिलने वाली थी। उसने लड़के और उसके परिवार के साथ इन शर्तों पर बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन वो हिले नहीं, इसलिए उसने इस रिश्ते को तोड़ने का फैसला किया, हालांकि वह उससे बहुत प्यार करती थी। जाति या वित्तीय स्थिति में मतभेदों के कारण ब्रेक अप होना, उन लड़कियों के बीच एक आम अनुभव प्रतीत हो रहा था। अधिकांश प्रतिभागियों ने महसूस किया कि आप जिस व्यक्ति से प्यार करते हैं, अगर वो ही आपको छोटा महसूस कराता है, तो वह आपके लायक नहीं हैं। एक और लोकप्रिय भावना यह थी कि अगर अपने प्यार के लिए आपको कुछ ऐसा करना पड़े जिससे आपके परिवार को दुख पहुँचे, तो आपको वो काम नहीं करना चाहिए। हर कोई परिवार को प्राथमिकता देने की बात से सहमत नहीं था, लेकिन हर कोई इस बात से सहमत जरूर था कि किसी से प्यार करना तो अच्छी बात है, लेकिन हमें हमेशा अपने आप से थोड़ा ज्यादा प्यार करना चाहिए। वह लड़की जिसने अपने प्रेमी को छोड़ने वाली कहानी बताई थी, जिसके परिवार ने उससे घूंघट में रहने की उम्मीद की थी, इस बात का एक बड़ा उदाहरण थी। जब वो बात कर रही थी, तो उसे अपने सपनों और महत्वाकांक्षाओं पर चर्चा करते देखना प्रभावपूर्ण था : उसकी ये समझ कि लड़के के परिवार में रहने के लिए उसे अपने सपनों को छोड़ना पड़ता, और उसकी खुद को इन सबके ऊपर रखने की भावना। किसी को अपने प्रेमी की अनुचित उम्मीदों के मुकाबले अपने सपने चुनते देखना हम सब के लिए सीख जैसा था। कार्यशाला में यह एक महत्वपूर्ण पल था - उस लड़की ने जब खुलकर अपने अनुभव बांटे, तो और लड़कियां अपनी कहानियां बांटने के लिए प्रोत्साहित हुईं। हमने दिल टूटने के बारे में भी बात की, और कैसे अगर ऐसा होता है, तो इस घाव को भर पाने के लिए के लिए समय देना चाहिए - इसके बारे में बात करनी चाहिए, रो भी लेना चाहिए, और अगर संतोष मिलता है तो कुछ दिन अपने पूर्वप्रेमी का पीछा करने में भी कोई बुराई नहीं है। लेकिन अगर महीने बीतते चले जाएं और चीज़ें बेहतर होती ना देखें, तो फिर मदद लेनी चाहिए। सुस्त पार्टी करने से डांस पार्टी 'लवज़ोन फ्रेंडज़ोन' पॉडकास्ट के बाद, हवा में एक बिजली सी दौड़ गयी। ऐसा लगा कि हमारा सत्र कार्यशाला की बजाय एक पार्टी में परिवर्तित हो गया था। हमने 'कायनात का रोमांसनामा' भी चलाया - इस पॉडकास्ट में एक युवा लड़की कायनात, अपनी रोमांचक कहानी के बारे में बताती है जो उसके प्रेमी पे ही खत्म नहीं होती है। वह बताती है कि किस तरह उसके प्रेमी ने आखिरकार किसी और से शादी कर ली, लेकिन वह इस बात से आज भी खुश है कि वो उस प्यार को अनुभव कर पाई। पॉडकास्ट में सभी लोग पूरी तरह से शामिल थे, गाते हुए (और कुछ तो जोरदार डांस करते हुए), इतने उत्साहजनक रूप से कि वे रुकना ही नहीं चाहते थे, और नए पॉडकास्ट की शुरुआत उनके इस हलचल में डूब सी गई। जब आखिरी गीत शुरू हुआ, उन्होंने डांस करना और गाना गाना फिर से शुरू कर दिया। ये सब कुछ मिनटों तक चलता रहा! आखिरकार जब वे शांत हुए, हमने उनसे पूछा कि उस पॉडकास्ट से उन्हें कैसा महसूस हुआ। कई ने कहा कि उन्हें लगा कि कायनात ने सही किया, उसने अपने माता-पिता के बारे में सोचा और खुद को चुना, खुद को ऊपर रखा। हमने अस्वीकृति (rejection) के बारे में कुछ और बात की और इस विचार को पेश किया कि कोई भी व्यक्ति संबंधों में मिली अस्वीकृति से उसी तरह आगे बढ़ सकता है जैसे कि हम अक्सर किसी और सपने या उम्मीद के पूरा ना हो पाने पर आगे बढ़ जाते हैं। तब हमने लड़कियों से पूछा कि क्या वे कभी ऐसी परिस्थिति में आयी हैं जहां वो अपनी भावनाओं के बारे में निश्चित नहीं रही हैं - क्या उन्होंने कभी किसी ऐसी चीज़ के लिए 'हाँ' कहा जिसके लिए वे पूरी तरह से हाँ नहीं कहना चाहती थीं, या कभी वहां 'नहीं' कहा जहां उनका मतलब 'कभी नहीं' ना रहा हो? कई ने स्वीकार किया। इससे हमें एजेंट्स ऑफ इश्क के लोकप्रिय गाने वाले वीडियो "द अमौरोस एडवेंचर्स ऑफ शक्कू एंड मेघा इन द वैली ऑफ कंसेंट” यानी मर्ज़ी की वादियों में शक्कू और मेघा के जोखिम चलाने का मौका मिला। इस वीडियो में दो लावणी डांसर सहमति की बारीकियों के बारे में सोचती हैं। चूंकि वीडियो मराठी में था, हमने महसूस किया कि इससे हमारी बात पहुँचाने में काफी हद तक मदद मिली। उन्होंने जोर से चीयर किया जब वीडियो में किसी व्यक्ति के प्रस्ताव पर शककू ने प्रतिक्रिया में हां या नहीं ना कहकर "शायद- maybe" कहा। और वह लड़का कहता है, "बेशक! मैं तुम्हारे लिए इंतज़ार कर सकता हूँ।" लड़कियां अभी भी पार्टी के मूड में थीं। हम कार्यशाला की शुरुआत से तब तक में एक स्पष्ट बदलाव देख रहे थे, जब प्रेम, लिंग और रोमांस के बारे में बात करना या उसमें रूचि दिखाना एक धीमी गति से बढ़ते हुए अब काफी हद तक मज़ेदार हो चुका था - सबको गले लगाता, आनंद फैलाता हुआ। इसके बाद, कुछ लड़कियों ने एक-एक करके हमसे अपनी दुविधाएँ बांटी। ज्यादातर लड़कियां जिन्होंने हमसे बात की, कॉलेज के तुरंत बाद या फिर कुछ सालों में शादी करने वाली थीं। फिर भी, उन्होंने अपनी शिक्षा और अपने करियर संबधी महत्वाकांक्षाओं को महत्व दिया था। कई लड़कियों ने जाति और आर्थिक स्थिति जैसी चीजों से रिश्तों में पड़ती बाधाओं के बारे में बात की, और कुछ लड़कियां यह कहने लगीं कि इस प्रयोगशाला उन्हें बात करने का मौका मिला और हमेशा की तरह ऐसे विषयों पर लेक्चर नहीं सुनने पड़े, जिनमें उनकी कोई रुचि न थी। इस कार्यशाला में, वे उन मुद्दों पर बात कर पाईं जो उनके दैनिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। उन्होंने बताया कि आम तौर पर रोजमर्रा की बातचीत में ये मुद्दे नहीं उठाए जाते हैं। सिर्फ उन लड़कियों के लिए नहीं, ये कार्यशाला हमारे लिए भी एक कभी न भूल पाने वाला अनुभव था, जिसमें हमने खुद भी बहुत कुछ सीखा। घर लौटते समय जब हम पूरे दिन की चर्चा कर रहे थे, हमने एये महसूस किया: अक्सर हम सभी इच्छाओं, प्रेम और दिल टूटने के बारे में ऐसे सोचते हैं जैसे कि वे सीखने-समझने की चीजों के अनुक्रम (hierarchy) में बहुत नीचे हैं, जबकि वास्तव में वे युवा लोगों के जीवन का अहम् हिस्सा है, और सेक्स की इच्छा मान्यता, प्रेम, लगाव और अंतरंगता की इच्छा के साथ से मिली बंधी होती है। हमें यह स्वीकार करने की आवश्यकता है कि ये भावनाएं और अनुभव मान्य हैं, और शायद बहुत आम भी हैं। लड़कियों के अनुभव में शर्म के परदे को हटाने से उन्हें कार्यशाला के मुद्दों पर बात खुलकर भाग लेने का प्रोत्साहन मिला। और माहौल में जो महत्वपूर्ण बदलाव पॉडकास्ट की वजह से आया, वो ये दर्शाता है कि इस तरह की बातचीत में व्यक्तिगत कहानियों का काफी महत्व है। शायद उस दिन का उत्साह और गर्मजोशी भरी विदाई अपने आप में इस बात का प्रमाण थीं कि हमारी वर्कशॉप कामयाब रही , और हाँ हमें ये भी बताया गया कि ये पहली कार्यशाला थी जिसमें लड़कियां सोई नहीं! हम उम्मीद करते हैं कि हम ऐसे और कार्यक्रम आयोजित कर सकें जो दोनों पक्षों के लिए उपयोगी हो और सबकी ऑंखें खोल दें। विशेष रूप से ऐसी वर्कशॉप जिसमें डांस शामिल हो।
जब मोहब्बत और मर्ज़ी की वर्कशॉप एक मज़ेदार पार्टी में तब्दील हो गई।
लेखन : उमंग सबरवाल
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