अपनी अश्लील बातों में, उसने कहा वो एक कमाल की सेक्स मशीन है | अब, वो घड़ी आ गई थी |
नाम: चित्रा
उम्र तब: 25
उम्र अब: 38
ये लड़का, जिससे मैं एक ऑनलाईन मिलन-स्थल (डेटिंग साईट) पे मिली थी, कुछ हफ़्तों तक हाथ धोकर मेरे पीछे पड़ा रहा | ये सब कुछ अजीब-सा था क्योंकि वो उम्र में मुझसे पाँच या छह साल बड़ा था और एक ज़िम्मेदार पेशे से ताल्लुक़ रखता था पर ऐसा लगता था कि उसके पास कभी ई-मेल और एस.एम.एस. पर और कभी साइटचैट पर, ढेर सारा वक़्त था, मेरा पीछा करने के लिए | उसके पास गन्दी बात करने का एक बहुत-ही प्रभावशाली तरीक़ा था जो मुझे उत्तेजित और परेशान कर जाता था | और इसी वजह से मैंने उससे मिलने की ठान ली | बतौर इंसान वो बल्कि कम आकर्षक लगा, या शायद मैं ऐसा पुनरावलोकन में कह रही हूँ , जो मेरे साथ हुआ उसकी वजह से, और इसलिए भी क्योंकि मैंने कुछ दूसरी औरतों से भी कुछ यूं ही सुना था, जिनके साथ वो हमबिस्तर हुआ था | नहीं, सच में वो उलझा हुआ-सा था। और सही में मैं उससे वासना के लिए मिल रही थी | अंततः जब हम मिले, वो मुझसे अपने पड़ोस में मिला और अपने घर तक मुझे ड्राइव करके ले गया | उसके अपने कमरे में ढेर सारी क़िताबें थीं, जिनमें संयोगवश कुछ ऐसे विषयों पर थीं, जिनमें मेरी रुचि थी। मैंने शेल्फ़ पर से एक क़िताब देखने के लिए खींची| उसने मुझे किताब के इर्द गिर्द छूना शुरू कर दिया, क़िताब के ऊपर, क़िताब के नीचे, क़िताब की चारों ओर से | ये वासनात्मक हो सकता था पर मुझे सिर्फ़ इतना याद है कि मैं महसूस कर रही थी कि ये हो क्या रहा है और इतनी जल्दबाज़ी क्यों भई | तब पांच मिनटों के अंदर वो मुझे पीठ पे उठाकर अपने घर में अपने बिस्तर पर ले गया | उसने तत्काल बड़ी निपुणता के साथ मेरे वस्त्र उतारे | मैं तब भी धीमी गति में थी इसलिए कुछ महसूस नहीं कर रही थी, नाराज़ भी नहीं थी, आप समझ सकते हैं | तब मुझे लगता है उसने घुटने टेककर मुझे बिस्तर के बगल में मेरे गुप्तांगों को सिर दिया और मैं सोचती हूँ कि मैं छत की ओर टकटकी बांधे देख रही होऊँगी | और फिर बड़ी तीव्रता से भेदन का वो पल आया | जो बात मैं इसमें बताना भूल गई वो ये कि उसकी गन्दी बातें कई तरह के सूझ बूझ वाले अनुमानों से भरी होती थीं जैसे ये कि उसके पास लाजवाब लिंग था और वो परिष्कृत सीधा संवाद कि वो एक कमाल की सेक्स मशीन था | अब जब वो अवसर आ गया तो उसने फटाफट भेदन किया और उतनी ही जल्दी बाहर भी आ गया। मैंने सब ख़ैरियत वगैरह जानने के इरादे से ऊपर देखा पर वो तो अंतरिक्ष में खोया हुआ जैसा दिख रहा था | उसने कहा: मैं अपनी पूर्व गर्लफ्रेंड के भूत से त्रस्त महसूस कर रहा हूँ | ठीक एक मिनट तक मैंने उसके बारे में बुरा मह्सूस किया क्योंकि इसके पहले कि मैं उसके हालात पे सहानुभूति जता पाती, उसने वही शुरुआती उधम उल्टी दिशा में दोहराना शुरू कर दिया था | दस मिनटों के बाद मैं अपने कपड़े पहनकर घर से बाहर आ चुकी थी और वो अपनी गाड़ी में मुझे मेरी जगह छोड़ने जा रहा था | सब कुछ इतना भावविहीन था कि मैं कोई हल्ला भी नहीं काट सकी जो मुझे काटना चाहिए था। इसलिए नहीं कि वो सम्भोग नहीं चाहता था, बल्कि इसलिए कि हफ़्तों तक मेरे पीछे लगने के बाद वो मेरे साथ ऐसे पेश आ रहा था जैसे कि मैं एकवागार्ड (Aquaguard) की कोई प्रतिनिधि हूँ | मुझे याद नहीं अगर कुछ समय तक हमने संपर्क रखा होगा | हो सकता है हमने रखा हो क्योंकि मुझे यक़ीन है कि अपने आप को शांत रखने का मैं काफ़ी दबाव-सा महसूस कर रही थी | हर चंद सालों में उससे मुलाक़ात हो जाती है, क्योंकि हम दोनों के कॉमन दोस्त हैं। इन अवसरों पर उसे मुझसे नज़रें मिलाने पर कठिनाई होती है। मैं जम कर बतियाती रहती हूँ। मैं नहीं सोचती हूँ कि वो इसलिए नज़रें चुराता है क्योंकि वो शर्मिंदा है | वो ख़ुद को एक सेक्स मशीन समझता होगा पर मेरे ख़्याल से वो औरतों के साथ बिलकुल भी अच्छा नहीं है, और सामान्यतः शायद किसी भी व्यक्ति के साथ नहीं | वो बस अश्लील शब्दावली में अच्छा था | उसका एक अच्छा एप (app) बनाया जा सकता था |
उस अगली सुबह मैंने अपने आप को गूगल सर्च इंजिन पर ये पूछते हुए पाया, “ क्या मेरे बॉयफ्रेंड ने मेरा बलात्कार कर दिया ? ”
नाम: रीता के
उम्र तब: 22
उम्र अब: 27
मेरी बहन मेरे बारे में हमेशा ये मज़ाक़ बनाया करती थी, “ तुम जो हो, जैसे कि पूरी मुंबई के ब्रम्हचर्य का समाधान करने आई हो ” | ये कुछ एक अतिशयोक्ति-सी थी | इसके मायने थे कि 22 की उम्र होने तक, मैंने वासना के कुछ बेहतरीन तजुर्बे हासिल कर लिए थे, वो भी सभी ऐसे मर्दों के साथ जिनकी ये पहली कोशिश थी | कभी-कभी वो बहुत बढ़िया होता था और कभी-कभी बड़ा उबाऊ | कुछ भी तक़लीफ़देह नहीं, अक्सर चूक जाने जैसा, लेकिन ज़्यादातर सच्चा और मधुर |
अधिकांश भारतीय अभिभावक, माँ-बाप इत्यादि, से भिन्न, जो या तो इस विषय में बिलकुल बात ही नहीं करते या फिर युवा कन्याओं को शर्म-ओ-हया-गर्भाधारण-लोग-क्या-कहेंगे-अंतर्भास जैसे प्रचंड रंग-बिरंगे खयालातों से लाद देते हैं, मेरे पिताजी ने मुझे सेक्स के बारे में यूँ समझाया कि जैसे “ ये कुछ ऐसी बेहतरीन चीज़ है, जिसे दो व्यक्ति तब करते हैं जब वे एक-दूजे से प्यार करते हैं ” | हाँ, ये बात कानों को मधुर लगती है, मैंने सोचा |
इसलिए, जब मैंने सहवास करने का फ़ैसला लिया, तो वो मेरे एक किशोर बॉयफ्रेंड के संग था जिससे मैं बेइंतेहा सच्ची मोहब्बत करती थी | अपने रिश्ते में हमने समय का बाइज़्ज़त इंतज़ार किया, पहले और बाद में अपने अहसासों पर खुल के बातें कीं और गर्भनिरोधण पर गुप्त रूप से वेब-पृष्ठों के हर स्तम्भ को पढ़ा | मैंने अभी तक वासना से वंचित अपनी सभी सहेलियों को पूरी आत्मसंतुष्टि से बताया कि हमने कैसे पहली दफ़ा के दर्द को अखंड निपुणता से होने ही नहीं दिया | मैं भली-भांति एक सुखी, भरपूर, वासनापूर्ण, स्त्रीवादी जीवनशैली की ओर अग्रसर थी |
कुछ वर्षों के बाद, मैं इस लड़के से मिली, चलिए इसे हरी कहकर पुकारते हैं | हरी मेरा बेढंगा इंजीनिअर मित्र था | हरी मेरी बात सुनता था, तब, जब मैं महीनों अपने उस महान किशोरावस्था के प्यार के लिए रोती थी जिसने अपने लिए एक दूसरी महान किशोर-मोहब्बत ढूंढ ली थी | हरी मेरे उत्तेजक वासनात्मक अनुभवों को सुनने में विशेष दिलचस्पी रखता था | जब हम मिले, हरी कभी-कभी मेरी छातियों को घूरता था, मगर वो लज्जित होकर तबसे रुक गया जब मैंने कहा कि मैंने उसकी नज़र परख ली थी | हरी दुखी हो गया जब उसने मुझे उसके साथ डेट पर जाने को कहा और मैंने कहा कि मैं उसको उस नज़र से नहीं देखती हूँ | जब मैंने किसी दूसरे का चुम्बन लिया तो हरी नाराज़ हो गया | जब मैंने उससे कहा कि मैं किसी और के साथ हमबिस्तर हो चुकी हूँ तो उसने मुझे कुतिया कहकर मुझसे बातचीत बंद कर दी |
लेकिन मैं और हरी आख़िरकार फिर से दोस्त बन गए | हमने दूसरे लोगों से प्रेम-मिलन किया और कुछ साल गुज़र गए | एक दिन मैं और हरी एकसाथ एक पार्टी में गए | “ मुझपर मत गिर जाना, ठीक है, वहाँ और भी कई एकल महिलाएँ होंगी ”, मैंने उससे कहा | लेकिन मैंने और हरी ने बहुत ज़्यादा पी ली तो हमारे दरमियान वासना भड़क उठी | उस रात वो मुझे अपने घर ले गया | मैंने बहुत हल्के से पूछा, “ ओह, तो क्या हम सम्भोग करने जा रहे हैं ? ” हरी ने कहा,” हम्म ” | कई वर्षों तक टालमटोल करने के बाद मैंने ये पाया कि हरी के साथ हमबिस्तर होना उतना भयावह नहीं था जितना होने की मैंने कल्पना की थी | मैं हतप्रभ भी थी और इत्मीनान से भी |
पहली कुछ दफ़ा जब हम सम्भोग कर रहे थे, तो हरी पीठ के बल लेट गया और बोला,” चलो अब मुझे परोसो ” | मैं रुक गयी और मैंने ऊपर देखा, वो बेशक़ मज़ाक़ कर रहा था | “ दोबारा कहो और उसके बाद तुम मुझे कभी नंगा नहीं देख पाओगे ”, मैंने इतराते हुए कहा | “ शयनकक्ष में महिलावाद को मत घसीटो, तुम वासना को तबाहो-बर्बाद कर दोगे ”, उसका उत्तर मौत-सा गंभीर था | मैंने अपनी निगाहें गोल-गोल घुमाईं और अचम्भे में पड़कर सोचा, “ वासना की बर्बादी? लेकिन किसके लिए? “ लेकिन हरी एक बुरा इंसान नहीं था | बेशक़ हम कभी-कभी इस बात पे असहमत होते थे कि हमारे बीच इस दोस्ती का दायरा अच्छा था या नहीं, लेकिन उसने पिछले कई वर्षों से मेरे साथ एक लम्बा रास्ता तय किया था | कम से कम उसने ये कहना तो छोड़ दिया था, “ ये बलात्कार नहीं है, ये अप्रत्याशित वासना है, हा हा | ”
मैं पूरी तरह से आश्वस्त थी कि इस रिश्ते में लगाम किसके हाथों है | मैं जवान थी, दुबली-पतली और सामान्य रूप से आकर्षक समझी जाती थी और शर्तिया तौर पर आकर्षक थी भी | वो, चलिए कहते हैं, थोड़ा कम बहुप्रिय था | कभी-कभी मैं मज़ाक़ में उसको क्रूरता से कह देती थी कि मैं महीने भर तक अपनी समाज-सेवा उसकी तरह एक बेढंगे अभियंता (इंजीनयर) के संग सोते हुए कर रही हूँ | आखिरकार, हम प्यार में डूब गए | मैंने उससे उसका मज़ाक़ उड़ाने और उसके पास मिलन के लिए जल्दी नहीं आने की तहेदिल से माफ़ी मांगी |
अगले एक साल तक हरी और मैंने राजनीति और तमाम तरह की वासनाओं पर ख़ूब तर्क-वितर्क किए | हरी को सही मायने में कंडोम नहीं पसंद थे, इसलिए मैं एक स्त्री-रोग विशेषज्ञ के पास ख़ुद गई और वहाँ से गर्भ-निरोधक गोलियों के साथ ढेर-सा भाषण भी सुन आई, जो ऐसे मौकों पर मुफ़्त में मिलता है | हरी के साथ सम्भोग किसी ख़ास रूप से नर्म या ज़रूरतों का ख़याल रखने के बारे में नहीं था, लेकिन वो ठीक था | मुझे याद है, मैं वो बातें याद रखती जो हरी ने कहा था उसे पसंद थीं, और जब वो अपने ताज़े तरीक़ों का इस्तेमाल करता, तो कुछ ज़्यादा उत्तेजित होने का पाखंड करती। उसके किसी भी नए दांव में भगांकुर (क्लिटोरिस) पर महारथ हासिल करना शामिल नहीं था | “ मैं सोचता हूँ, इसे तुम ख़ुद-से कर लो ”, कुछ मिनटों तक उकसाने के बाद वो कहा करता था | “ इसकी फ़िक़्र मत करो ”, मैं मुस्कुरा के कहती | निर्भीक होकर हरी एक विजेता की तरह मुख्य प्रसंग को जारी रखने लगता | अपने चरम-आनंद को हासिल करने के बाद, वो हाँफ़ते हुए मुझसे पूछता, “ तुम्हारा हो गया ?” कभी मैं हाँ कह देती और कभी ना | दोनों सूरतों में, हरी मुझे चूमता और फिर मुझपर से ढलकते हुए कुछ ही देर में गहरी नींद सो जाता | आख़िरकार वो जब पूछता तो मैंने बस हाँ कहना शुरू कर दिया था | हालाँकि वो हर बार पूछता था | इसमें भी मेरी ज़रुरत का ख़याल था। ये सोचने लायक़ बात थी |
साल गुज़रते गए, हम संग-संग आगे बढ़ते गए और हरी की वासना में दिलचस्पी घटती गई | रिश्ते के लम्बे चलने पर तो ये स्वाभाविक है, मैंने सोचा | शायद हरी अब मेरे क़दम से क़दम नहीं मिला पा रहा था और मेरी उम्मीदें भी कुछ अवास्तविक हैं, मैंने सोचा। जब मैंने इस मुद्दे को उठाया तो इस विषय पर बात करते हुए उसने कहा कि ये उसे शक्तिहीन महसूस कराता है और बड़े दुखी भाव से बोला कि वो मुझे कभी ख़ुश नहीं कर सकता | कभी-कभी वो कहता था कि मैं वजह नहीं हूँ उसके आलस की, दरअसल उसने कुछ ज़्यादा ही बर्बाद पॉर्न देख लिया है या फिर उसे अपने शारीरिक प्रतिरूप से परेशानी है। उसका उत्साह बढ़ाने के लिए मैंने अपने को क़ुसूरवर महसूस किया, और उसे जताया कि मेरे ख़याल में वो कितना ख़ूबसूरत और आकर्षक था | मैंने बेहतरीन अंतर्वस्त्र ख़रीदे और अपने को फ़िट बनाया | लेकिन जब मैंने सेक्स का आग़ाज़ करने की कोशिश की तो मेरी नज़रों में ज़ाहिर तौर पर उसकी नाचाहत दिखाई दी | हालाँकि ये तब नहीं होता जब सेक्स में पहल वो करता | वो दुखी हो जाता था जब मैं कहती कि मैं थकी हुई हूँ, इसलिए मैंने फ़ैसला किया कि चलो, मैं उतनी भी नहीं थकी हूँ। आखिर मैंने ही तो रट लगाई थी कि हम बहुत कम सेक्स कर रहे हैं ?
अबतक, हमने सम्भोग तभी किया जब हरी ने फ़ैसला लिया कि हमें करना चाहिए | नाराज़गी के पलों में, मैंने उसे बताने की कोशिश की कि मुझे कैसा महसूस होता है कि मेरे पास वासना का कोई साधन नहीं है ना ही मेरे शरीर पर मेरा नियंत्रण है, लेकिन मेरी औरतानी बड़बड़ाहट ने हरी के दिल तक कभी अपनी राह नहीं बनाई | जब मैं रोती, तो वो अपनी आँखें गोल-गोल घुमाता, फिर मुझे अपनी बाहों में भरके मुझसे इसे बेहतर करने का वादा करता | अगर मैं कहती कि मैं इस वजह से मायूस हूँ कि वो अब मुझे और नहीं चाहता, तो ये दिखाने के लिए कि वो मुझे कितना चाहता है वो मुझे अपनी बाहों में उठाकर पूरे कमरे में उछालता फिरता | ऎसे एक अवसर पर मैंने अपने को ये सोचते हुए पाया कि क्या “ जिनका बलात्कार होता है, वो क्या ऐसा ही महसूस करती होंगी ?” फिर मैंने ख़ुद को डाँटा कि मैं उनकी ओर संवेदनहीनता दिखा रही हूँ | एक दिन, मर्दानगी के इन्हीं प्रदर्शनों में, हरी ने मुझे बदचलन कहकर पुकारा | एक पल के लिए मैं स्तंभित रह गयी, पर मैं वो समा तोड़ना नहीं चाहती थी | बाद में, जब हमदोनों “ दी हैंडमेडस टेल ” देख रहे थे, मैंने धारावाहिक को पॉज़ पे डाला, “ ए, तुमने मेरे लिए कल जो शब्द इस्तेमाल किया, तुम्हें लगता होगा कि तुम उसे नज़रअंदाज़ कर दोगे, पर मुझे वो ख़ास नापसन्द आया | ” उसने कहा, “ वो बस कुछ ऐसा था जो मैं कामोत्तेजना में कह गया था, तुमको ख़ुश करना असंभव है | ठीक है ठीक है, अच्छा, अब नहीं कहूँगा | ” मैंने उसे एक चुम्बन दिया और पॉज़ छुड़ा दिया|
आख़िरकार, हरी ने तय किया कि हम तभी संभोग करेंगे जबकि मैं नींद में रहूँगी | पहली कुछ दफ़ा, मुझे ये सब थोड़ा सेक्सी लगा। अगली कुछ दफ़ा यूँ लगा कि मैं वापस सो जाना चाहती हूँ। एक रात, मैंने सोचा कि शायद अगर मैं नींद में दिखूँगी तो उसे इशारा मिल जाएगा | लेकिन जब उसे नहीं मिला, तो मैंने उसे उसके काम-धंधे में लगे रहने दिया, ये सोचकर कि उसे बुरा ना लग जाए, हालाँकि मैं ये चाह रही थी कि वो ये सब फटाफट ख़त्म करे ताकि मैं वापस अपने सुहाने सपने में लौट सकूँ। सुबह में, मैं आश्चर्यचकित थी कि मैं अपने भीतर बीमार-सा क्यों महसूस कर रही हूँ | मैंने तय किया कि जब मेरे पास ऐसे बेतुके सवाल होते हैं तो मैं सामान्यतः जो करती हूँ, वही करुँगी, और मैंने गूगल किया, “ क्या मेरे ब्यॉयफ़्रेंड ने पिछली रात मेरा बलात्कार कर दिया? ” जवाब अनिर्णायक थे मगर कुछ स्वयं सहायता समूह ने कहा कि मैं उसको ज़रूर बताऊँ कि मैंने कैसा महसूस किया | उस शाम, जब हम दोनों काम से घर लौटे तो मैं ख़ासकर ख़ामोश थी | हरी के ध्यान में आया कि कुछ हो गया है |
“ क्या तुम फिर से दुखी हो ? क्या ये सेक्स के बारे में है ?”
“ उम्म ठीक है, पागल मत बनो, मैं ऐसा कुछ कठोर नहीं कहना चाह रही हूँ, लेकिन मैं ये भी महसूस कर रही हूँ कि शायद तुमने - मेरे कहने का मतलब है कि कल रात तुमने सही से मेरी सहमति नहीं ली थी। ”
“ ओह ”
“ देखो, मैं जानती हूँ कि तुम सही में निंदासे थे, हम दोनों थे, लेकिन मेरे अनुमान से मैंने इस बारे में बस कुछ बहुत अच्छा महसूस नहीं किया जब मैं आज सुबह जागी ”
“ ओ अच्छा, मैं बहुत क्षमाप्रार्थी हूँ कि मैंने तुम्हें ऐसा अहसास कराया। आज डिनर में हम लोग क्या खा रहे हैं ? ”
“ हम्म, शायद तुम इस बारे में कुछ ज़्यादा बात करना चाहते हो। ”
“ लेकिन मैंने कहा ना कि मैं क्षमा चाहता हूँ, मैं भी सच में बहुत थका हुआ था, मैं दोबारा ऐसा नहीं करूँगा, स्पष्टतः।”
“ हाँ, माफ़ करना, लेकिन जो हुआ ,मैं उस बारे में बहुत परेशान और भ्रमित महसूस कर रही हूँ ”
“ हे भगवान, मुझे एक बलात्कारी इंसान होने का अहसास दिलाना बंद करो ”
“ ठीक है ठीक है, हाँ, तुम सही हो, चलो कुछ बढ़िया ऑर्डर करते हैं ”
इसके बाद हरी और मैंने चंद महीने और प्रेम-मिलन किया। उस दर्मियान हमने बेहद सेक्स किया, जब मैं सोई रहती थी। कभी-कभी मुझे कुछ बार दोहराना पड़ता - रोक दो - इसके पहले कि वो मेरी बात सुनता। कभी-कभी मैं पेशाब करने को उठकर चली जाती और तब तक इंतज़ार करती जब तक वो मेरे लेटने के पहले फिर से न सो जाए। कभी-कभार मैं उससे कुछ भी नहीं कहती और उसे अंजाम तक जाने देती। जब उसने मुझसे नाता तोडा, उसकी पिछली रात, मैं वासना के लिए नींद से उठा दी गयी थी, और उसने बड़ी मुलायमियत से एक आख़री बार मुझे बदचलन कहा। मैं इसपर लड़ी नहीं, और फिर,मैं भी तो चाहती थी कि हम और सेक्स करें।
आखिरकार, वासना कुछ ऐसी बेहतरीन चीज़ है, जिसे दो व्यक्ति तब करते हैं जब वे एक-दूजे से प्यार करते हैं।
जैसे ही हमलोग सम्भोग में उलझने की कोशिश करते, उसका लिंग अपना तनाव खो बैठता। मैं इससे ज़रा भी परेशान नहीं होती थी।
नाम: कोई लड़की बोस उपनाम
तब: 22 - 23 वर्ष ( आप जानते हैं चीज़ें कैसी होती हैं )
उम्र अब: 25 वर्ष
ये मेरा पहला रिश्ता था, जिसमें, मैंने ज़िन्दगी में पहली बार एक लड़के को हाँ कहा था। दो हफ़्तों के अंदर, मैंने माना कि वो मालिकाना स्वभाव का था,और उसे अपने पूर्व के सम्बन्धों पर बात करना पसन्द था। इसने मुझे दुविधा में डाल दिया और सच में, इस रिश्ते पर उस वक्त तक मेरा इतना खिंचाव नहीं था। इसलिए मैं बड़ी तेज़ी से इसमें दिलचस्पी खोती जा रही थी और एकाध हफ़्ते में, एक मित्र का जन्मदिन था।
अब जबकि, हम सभी दोस्तों के एक बड़े दायरे से ताल्लुक़ रखते थे और मित्र-मंडली के लड़के उसके बचपन के दोस्त थे, तो हमने पार्टी में सभी से कह दिया कि हमारा अलगाव (जैसा) हो गया है। उसने बात को बड़े ही दुखी मन से कहा सो उसके भाई-बंद इसपर काम करने लगे। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हम अपने मतभेदों को भुला दें क्योंकि हम दोनों “ शानदार संगी ” थे। तबतक सभी ओल्ड मोंक रम के नशे में धुत्त हो चुके थे और मुझे और उसे हमारे पुनर्मिलन की बधाईयां दे रहे थे। ये बेहद अजीब व्यवहार था।
अचानक उन्होंने हमें एक कमरे में डाल दिया और “ बातों से मसला हल ” करने को कहा। और यहीं से वो मुसीबत शुरू हुई। उसने मुझे चूमना शुरू किया और मुझे टटोलते हुए मुझसे अपनी मोहब्बत का दावा करने लगा, जबकि मैं सिर्फ़ उसकी रम से लबरेज़ साँसों को सूँघती रही। मैं यौन-सम्बन्ध में बंधना नहीं चाहती थी क्योंकि मुझे मरहम-पट्टी करने पर दूसरों द्वारा मजबूर किया जा रहा था, साथ ही साथ ये वैसा नहीं था जैसा मेरे जीवन का पहला चुम्बन होना चाहिए था। वो बेहद कष्टदायक था और मैं किसी भी तरह उसे रोक नहीं पाई। पता नहीं क्यों, मैं इतनी असभ्य भी नहीं हो पाई कि बाहर निकल जाऊँ। और उससे भी वाहियात, जो मैंने बाद में जाना, कि हमारे दोस्त ख़ासकर उसके भाई-बंद, सब खिड़की से अंदर झाँक रहे थे और ख़ूब तेज़ हौसला-अफ़ज़ाई कर रहे थे। इतना अपमानित मैंने कभी महसूस नहीं किया।
इस बन्दे से मैं अपने कॉलेज की आख़री छमाही के दौरान यूँही वाबस्ता हुई थी, पर सेक्स के मामले में मैं बहुत आहिस्ता क़दम बढाती हूँ, इसलिए ज़्यादातर मैं चुंबन और मौखिक संभोग में ही ख़ुशी-ख़ुशी बँधी थी।
ग्रैजुएशन के बाद जब हमने एक दूसरे को एक ही शहर में पाया, तब ही हम अपने रिश्ते को सम्भोग के मुक़ाम तक ले गए। लेकिन जिस क्षण हम सम्भोग में संलिप्त होने की कोशिश करते, उसका लिंग अपना तनाव खो देता था। मैं उस बात से बहुत ज़्यादा हैरान नहीं हुई। वो उस वजह से बिलकुल बंद नहीं हुआ था। सम्भोग से मुझे उतना ख़ास सुख नहीं मिलता और मैंने कभी उसको शर्मिंदा नहीं किया, सम्भोग का उसपर ज़्यादा दबाव भी नहीं डाला। मैं आराम-से कहती थी, “ए, अगर ये काम नहीं कर रहा है, तो चलो कुछ और करते हैं।” हम बच्चे जनने की कोशिश नहीं कर रहे थे, साथ ही अंत में वो बड़ा कामोन्मादक मायने रखता था और वहाँ तक जाने के कई और रास्ते भी थे हम दोनों के लिए।
मगर ये शख़्स लगा रहा ये दिखाने में मानो ये मेरी ग़लती है। कि वो मैं थी जो बहुत कसी हुई थी, या मैं बहुत ज़्यादा गीली नहीं थी, या मैं उसे अच्छी तरह से उत्तेजित नहीं कर रही थी। उसने मुझे तेल (लुब्रिकेंट) ख़रीद लाने को कहा ( वो मक्खीचूस भी था, मगर वो एक अलग कहानी है ), मगर एक ढीले लिंग के साथ तेल कुछ नहीं करने जा रहा था ! वो अपने तनाव को क़ायम रखने की नाक़ामी का दोष मुझे दे रहा था, ये सच में सही नहीं था। मैं जानती थी कि मैं दोषी नहीं थी, पर वो इसको लेकर आश्वस्त महसूस नहीं कर रहा था तो मैंने बात जाने दी। अगर मैं अपने बारे में यक़ीन नहीं रखती, या मेरे पास निम्न स्तर का स्वाभिमान होता, तो मैं शायद उसकी बात पे यक़ीन कर लेती, ऐसे हालात में जहाँ वो मेरी ग़लती दर्शाने पर तुला था। उसने आख़िरकार, कुछ महीनों बाद, क़ुबूल किया कि वो उसकी अदायगी की बेताबी थी जो तनाव को क़ायम रखने की नाक़ामी की वजह बनी। और जब मैंने उसे बताया कि उसका मुझे ग़लत महसूस कराना कितना घटिया था, तो उसने इस बात पर ज़रा भी ग्लानि नहीं दिखाई। हम अब एक दुसरे के साथ नहीं हैं, ये, और कई दूसरी वजहों से। लेकिन, मैंने जाना कि मर्दानगी कितनी विषैली होती है। मैंने जाना कि वो ये मुझपर इसलिए थोपना चाहता था कि मैं अपना आत्मविश्वास खो बैठूँ और नतीजनन उसके संग रहूँ और अपनी वासनापूर्ति के लिए किसी और को ना देखूँ। मैंने जाना कि कैसे मर्द अपनी जज़्बाती ख़ामियों को औरतों पर थोपते हैं और वो औरतों के लिए कितने निराशयुक्त होता है। मैंने जाना कि जब इस तरह के छल-कपट और सिकुड़ते हुए जज़्बाती प्रयास पर बात आए तो मुझे अपने लिए अपनी सीमा-रेखा कहाँ निर्धारित कर लेनी चाहिए।
हम जानते थे कि इसके संग हम किसी लक्ष्य की ओर अग्रसर नहीं थे, और बिना किसी बोझ, या चोट या ग़म या कुछ और के, अलग-अलग रास्तों पे जा सकते थे |
नाम: बेनाम
तो,सेक्स के बारे में एक गुफ़्तगू। अंततः एक वार्तालाप, जो व्हाट्सएप्प पर अपने परम मित्र से साझा न की जाए, और ना ही सस्ती व्हिस्की के दो-चार जाम पीकर उसपर विचारा जाए।
वासना बहुत कुछ हो सकती है। वो अच्छी, महान, भयानक, शर्मनाक, गर्म और वज़नी, घिनौनी, अर्थपूर्ण, अर्थहीन , भ्रामक हो सकती है, कुछ भी नहीं तो, असंगत हो सकती है। परन्तु ये मुठभेड़ ऐसी कुछ नहीं है। वो इतना सामान्य था कि उसे समझने में थोड़ा वक़्त लगा।
मैं हमेशा इसको साझा करना चाहती थी, कोमलता के साथ, कि ये कितना नाख़ास तजुर्बा था, एक अच्छे तरीके से । पाठकों को एक छोटी-सी रूपरेखा देते हुए, मैंने अपने पहले बॉयफ्रेंड के साथ क़रीब 16 की उम्र (वैसे, मानना आसान नहीं होगा) में सम्भोग करना शुरु किया था। वो एक अच्छा लड़का था और हमने पूरे चार वर्षों तक प्रेम-मिलन किया। गुज़रते वक़्त के साथ, चीज़ें बिगड़ गईं, हमारे रास्ते बदल गए और हम मुख़्तलिफ़ इंसानों में तब्दील हो गए, हमने विभिन्न विकर्षणों को स्वीकार किया और काफ़ी बुरे, ग़मगीन, भारी, अवयस्क वासना (दीर्घकालीन अलगाव की वासना जो हम करते हैं, वो) को अल्विदा कहा।
मैं कोलकता से बाहर चली गई, जहाँ हर कोई एक-दूसरे को जानता है, एक उस छोटी अगम्यगामी बुनियाद से जो कलकत्ते ने प्रस्तुत की थी। उसके बाद मैंने प्रतिशोध में जमकर सम्भोग किया। बदन से वज़न को ख़ूब घटाया जिसने मेरा जागृत होना, आत्मविश्वास से चलना (जितना बहुत कि आप दिल्ली-से शहर में चल सकते हैं) आसान किया बग़ैर अपने पैरों की वैक्सिंग करे हुए।
मैंने ढेर सारे अच्छे लोगों से अपनी मुलाक़ात मुक़म्मल की - दिलचस्प, महत्वाकांक्षी, रचनात्मक वग़ैरह वग़ैरह। तो, बात ये है, सेक्स हमेशा बहुत लदा हुआ होता है। इसके कई मायने होते हैं और ये कुछ कारणों से तेज़ी से बदलते हुए इन नियमों और मानकों में लिपटे होते हैं। जो शायद प्रतिक्रयाओं और अवलोकन या कुछ और पर आधारित होते हैं।
अपने लैंगिक रूझान को अपने जैविक लिंग पर ही आधारित करना - ये सबसे भद्दी बकवास है। पिछले एक दशक में मुझे यूँ लगने लगा है कि कुछ भी पावन नहीं है, मेरी कुछ बेवक़ूफ़ी भरी मान्यताएँ भी नहीं, वो भी रोज़ बदलती रहती हैं। मेरी और ना ही किसी की, कोई कमीनी क़ीमत है जो मेरे ज़ेहन में थी और वो हर रोज़ बदलती रहती है। ये बारीक़ियाँ टूट रही हैं और बन रही हैं, ये ख़ूबसूरत और रोमांचक शुरुआत की एक प्रक्रिया शायद कुछ हल्की असुविधाओं का कारण हों।
मैं बड़ी ख़ुशक़िस्मत रही हूँ (हालाँकि ये सामान्य होना चाहिए) कि मुझको हर वक़्त सेक्स करने की कभी मजबूरी नहीं रही। अगर मुझे कभी-भी करने का मन नहीं किया, तो मैंने नहीं किया। परिस्थितियों ने भी मेरा साथ दिया। पर एक सुखद रात का ठहराव मुझे दुविधा या संताप में या स्वयं से घृणा और आत्मविश्लेषण में छोड़ जाता । काफ़ी कुछेक बार।
लेकिन जब सेक्स संभावित हो, तो सामान्य व्यवस्थाओं की एक या दो आम बातें होती हैं, , आप जानते हैं, सही है न। एक दिन मैं एक मैख़ाने में गई। बिना इस इरादे से कि मैं किसी पे डोरे डालूँगी, या कोई मुझे पिक-अप करेगा या मैं पिक-अप हो सकने का आडम्बर करुँगी या इस जैसा कुछ भी नहीं। मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ गई थी जहाँ हम उसके कॉलेज के कुछ दोस्त और एक दूसरे लड़के से घुल-मिल गए। उनमें एक लड़का था, जो शायद औरों के संग यूँ ही हो लिया था । पर उसका जुड़ना एक बेहतरीन संयोग था। हमने संगीत पे बात की, वैसा घिसा पिटा नहीं, कि “ हम अपने आप को दुकेले पा रहे हैं, तो चलो कोने में बैठकर कुछ भी बतियाते हैं जिसमें दूसरों को दिलचस्पी हो ? ” बल्कि बस सरल, अच्छी बातें कीं । चुस्त और मेमेस की दुनिया से वाबस्ता। तो हम सब जमे रहे और किसी ने हमें इस सुन्दर मिलन को बनाए रखने के लिए उनके घर चलने की दावत दी।
दक्षिणी दिल्ली में दोस्त होने का अनुलाभ ये है कि उनके पास 4 BHK (बैडरूम/हॉल/किचेन) के घर होते हैं और एक पूरी तरह भरा हुआ मैख़ाना होता है (ये नहीं कि हम उसके साथ कुछ करने जा रहे थे, बस भरे हुए मैख़ाने लोगों को ख़ुश कर देते हैं) और बोस के स्पीकर जबकि उनके अभिभावक सप्ताहांत का आनंद उठाने अपने छत्तरपुर के फार्मों में चले जाया करते हैं। दक्षिण दिल्ली के दोस्त रखना मुझे बेहद पसंद है। वो ओल्ड मॉन्क भी पीते हैं। इसलिए हम वापस गए। हमने और बातें कीं ।
पीने की प्रतियोगिता में कुछ लोग हार गए तो बाद में हमने तय किया कि पसन्दीदा गाना बजाया जाए। मैंने मैरीनेड बजाया। बहुत-से लोग इस गीत को नहीं जानते हैं, पर अनुमान लगाइए क्या, उस एक दूसरे लड़के ने, जो औरों के संग हो लिया था, पहचान लिया, और हम एक दूसरे की तरफ़ देखते हुए “ कुनबे की रूह !!! ” (पढ़िए: आज रात के लिए सम्भोग का सामर्थ्य -) जैसा सोच रहे थे।
3 बजे तक लोग मदहोश हो गए, गाने ग़मगीन हो गए और एक मित्र टिनडर द्वारा मिलन के लिए चला गया और हर चीज़ का असर कुछ यूँ रहा कि सब कुछ बड़ा अच्छा महसूस हुआ। तो, उस दूसरे लड़के ने पूछा अगर मैं चाहती हूँ उसके घर जाना। मैंने सुविधा को इल्ज़ाम दिया क्योंकि वो परिसर के नज़दीक रहता था और उसके पास एक अलग गद्दा था। रात के वक़्त दिल्ली में अकेले कहीं भी नहीं जाने के पूर्वानुमान ने इज़्ज़त से मुझे अभिभूत किया और मैं तैयार हो गयी।
वो अपनी गाड़ी बाहर निकाल रहा था तो मैंने विनम्रतापूर्वक अनुरोध किया कि हम एक ऊबर (भाड़े की गाड़ी) कर लेते हैं और फिर हमने फूहड़ों की तरह टैक्सी के आने का इंतज़ार किया, सिगरेट की क़िस्मों (बेन्सन बनाम क्लासिक रेगुलर) पर विमर्श करते हुए (छिः !!) | हम उसके घर गए, साफ़-सुथरा और बहुत छोटा, फैसबैंडेर,ओज़ू, इस्माईल रोड्रिग्स की बकवास फिल्मों के पोस्टर। तो अब, मैं यहाँ उसके फ्लैट में हूँ, एक ढीठ चुप्पी भरी ऊबर की सवारी के बाद, जहाँ वासना के पूर्व के सहभोगी भूत बन कर साथ दे रहे थे।
क्या हुआ जो मेरी साँसें महकती हैं, क्या हुआ अगर उसकी महकती हैं, क्या फ़र्क़ पड़ता है अगरचे उसका लिंग बाईं ओर मुड़ा हुआ है, क्या हुआ जो वो मुझे मृत सा पड़े रखना चाहता है , क्या हुआ जो उसके पास कोई निरोधक नहीं था, क्या मुझे अभी उसके बाद फ़ौरन चले जाना चाहिए या सुबह नाश्ते तक रुकना चाहिए मगर वहाँ मैं एक जादुई आश्चर्य से अपने हाथ में बियर थामे फ़िल्मों के पोस्टर देख रही थी।
तो, वो दूसरा लड़का मुझसे तबतक इंतज़ार करने को कहता है जबतक कि वो अपने कमरे से ना लौट आए और मैं बैठकर आधुनिक समय की अनौपचारिक वासना के भारीपन पर चिंतन करते हुए इंतज़ार करने लगी। लानत है, क्या होगा अगर मैं कल इससे प्यार करने लगूँ। क्या होगा जो अगर ये करने लगे। छिः छिः !! मुझे यक़ीन था कि मैं अपने सामने सिर्फ़ मोज़े पहने अपनी कमर पे हाथ रखे एक नग्न लड़के को देखने जा रही हूँ। लोगबाग ऐसी बकवास काफ़ी करते हैं। लेकिन यहाँ तो वो हाथों में लैपटॉप लिए वही सारे कपड़े पहने खड़ा था बिना मोज़े के चप्पल पहने। मैं हतप्रभ रह गई। प्रत्यक्ष रूप से ऊबर की सवारी के उसके ख़ामोश ख़याल इसी बारे में थे कि मैं उन साफ़-सुथरे वीडियो देखूँ जो वो मुझे दिखाना चाहता था। उसने मेरे लिए कॉफ़ी बनाई ताकि मैं इस शो के अवयस्क मनोरंजक हिस्से के लिए कम नशे में रहूँ और मैं विषम रूप से बहुत ख़ुश थी। मैं पूर्णतया वो होना चाहती थी, उस अहसास का सही शब्द होगा “ शांत ” | मैं सचमुच उस हालात में शांत महसूस कर रही थी।
हम हँसे और हँसे, इतना कि आँसू निकल पड़े। एक ख़ूबसूरत मिलाप की धुंध में रहे और सूर्योदय के लिए छत पर गए। इसमें काफ़ी वक़्त लगा और हम वापस आये और फिर कुछ और हँसे। उसने मुझसे पूछा कि क्या वो मेरा चुम्बन ले सकता है और मैंने कुछ ऐसा मूर्खतापूर्ण कहा जिसने ढेर सारे झिंगुरों की प्रतिध्वनियों के योगदान से मुझे मुग्ध कर डाला जिसके चलते मैं उसे पहले चूमने को आगे बढ़ गई। वो एक बहुत अच्छा चुम्बन था। उसने पूछा कि अगर मैं इसे आगे बढ़ाना चाहती हूँ तो मैंने फिर एक पूरी तरह बेढंगा-सा कहा (पढ़ो: मैं तो कबसे हूँ रेडी तैयार) और मैं माफ़ी चाहती हूँ, बुरा मज़ाक़ उन सवालों से फिर जाने में मेरी मदद करता है जिनका जवाब सीधा हो) हमने वो किया और हँसे, हम दुविधाग्रस्त हुए और अटके, हमने आहें भरीं और हाँफे और मैं आई और वो भी आया।
तब उसने कुछ अच्छी बात कहीं, जब हम नाटकीय अंदाज़ में सिगरेट पी रहे थे जैसे कि हमलोग किसी गोडार्ड ( फ्रेंच निर्देशक) की फिल्म में हों, वो दूसरा लड़का भी मेरी तरह दबाव महसूस करता था और वो नहीं जानता था उससे कैसे बाहर निकला जाए। हम इसके साथ कहीं अग्रसर नहीं थे और ये जो हो रहा था वो यहीं तक सीमित था और हम अपने रास्तों पे बिना किसी बोझ, चोट, दुःख या कुछ और के अहसास लिए जा सकते थे। हम दोनों में सिर्फ़ एक ही समानता हो सकती थी वो हो सकता है वो गीत, मैरिनेड हो और ख़ुमारी। वो सो गया। मैं बाथरूम गयी और आईने में अपना अक्स देखा और कुछ भी महसूस नहीं किया। एक इकलौता ख़याल भी नहीं आया। सुबह कुछ अजीब-सी आवाज़ों से उठी। वो अपनी रसोई में था।
“ मेरी कॉफ़ी लाओ, कुत्ती ”, मैंने कहा। लिंग पहचान पर आधारित घिसे-पिटे किरदार के मज़ाहिया उलटाव पर पीछे से जबरन ठहाका लगाकर।
“ ले आया। दोपहर के खाने में तुम क्या पसंद करोगी ? ”, उसने पूछा।
“ कुछ क्विकी (फटाफट)”, मैंने ज़ाहिर तौर पे कुकी शब्द का द्विअर्थी कहा लेकिन मैं वो चाहती भी नहीं थी।
वो मेरी ज़बरदस्त मज़ाहिया समझ पर हँसा और मेरी दृढ़ता पर भी। मैंने कहा मुझे जाना है और उसने हामी भरी। हमने आलिंगन किया और एक दूजे को फेसबुक पे शामिल किया और अपने को आराम से रहने दिया।
अब, उसके कुछ सालों बाद, हम अभी भी अपनी यादें और गीत साझा करते हैं, अपने जन्मदिन पर एक दूसरे को मुबारक़बाद देते हैं और अगर हम इक-दूजे से अकस्मात मिल गये, तो तो गप्पे मारते हैं।
मैंने सम्भोग किया। और यक़ीनन मुझे अच्छा लगा, और सम्भोग में ऐसी कुछ भी दूसरी चीज़ें नहीं थी जो संभोग को लेकर मेरे ज़ेहन में अक्सर होती हैं। इस सम्भोग के मायने कुछ भी नहीं थे, वो बुरा वाला कुछ भी नहीं नहीं (उदगार ‘!!”चिन्हों के साथ) बल्कि कुछ भी नहीं कुछ भी नहीं, और यही उसका सबसे बेहतरीन हिस्सा था। हमने कॉफ़ी पी, खाना खाया, अनुचित मात्रा में दारू ली, सम्भोग किया, और कॉफ़ी पी और एक अच्छा दिन बिताया। मैं ऐसा तजुर्बा सामान्यतः ढूँढने नहीं जाती हूँ देखने नहीं जाती हूँ। ये हुआ और दोबारा भी हो सकता है या नहीं। इन सारी संभावनाओं ने एक निश्चित भरोसे को पुनः संग्रहित किया।
वासना सम्भोग के लिए न कि आत्मीयता, प्रतिशोध, प्रजनन, क्रोध, कामुकता (शायद थोड़ी-सी), उग्रता, मोहब्बत, दोस्ती, या कुछ भी के लिएनहीं। वो दो सहमति देते हुए, होशियार, सुव्यवस्थित (भली-भांति) वयस्क थे। ये है मेरी सम्भोग की दास्तान। उबाऊ सम्भोग झूमता है।
सेक्स सच मुच
Women make sense of their diverse sexual experiences.
चित्र: देबस्मिता दास
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