मेरे पहले और सबसे बुरे रिश्ते का दोष मैं ट्विटर को देती हूँ। हम दोनों अलग शहरों में रहते थे, वह ज़रा ज़रा सी बात पर रोता था और शादी करने के लिए बहुत आतुर था, जबकि मैं नहीं थी। लेकिन वह कुछ और वज़हें थीं जिनके कारण हमारा रिश्ता असहनीय बना। जैसे कि हमारे ब्रेक उप को छह महीने लगे। जबकि हम नौ महीनों के लिए साथ थे।
मैं २३ साल की थी जब मैं चिन्मय* को ट्विटर के ज़रिये मिली। मैं एक नौसिखिया संवाददाता थी और सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वाले बैंगलोर के नौजवानों पर लेख के लिए उसकी प्रतिक्रिया चाहती थी। इसलिए मैंने उसके बदले में उसे एक ड्रिंक पिलाने का वादा किया। हम एक बार में मिले और हमनें दो बियर मंगाई। मैं बियर नहीं पीती हूँ (मुझे उसकी एलर्जी॔ है), लेकिन मुझे सभ्य पेश आना था, इसलिए मैंने उसके संग थोड़ी बियर पी ली।
मैं मेरे कॉलेज हॉस्टल लौटी और रात भर उल्टियाँ करती रही, और उसे मैसेज भेजती रही कि मैं ठीक हूँ। उसने मुझे डेट पर जाने का आमंत्रण दिया। उस समय, मैं उसके बारे में अनिश्चित थी। हाँ, मैं इस बात से रोमांचित थी कि कोई मुझे ध्यान दे रहा था, कि मैं उसे सुंदर और स्मार्ट लगती थी और वह मुझे डेट करना चाह रहा था। और फिर, मुझे डेट पर जाना एक मज़ेदार टाइम पास बात लगी, तो मैंने हाँ बोल दी।
जिस घड़ी से हमने डेट करना शुरू किया, उसने उस बात का ट्विटर पर ऐलान कर दिया - मुझे बिन बताये, मुझसे बिन पूछे। हमारी मुलाकातों के बारे में भी वह ट्वीट करता था (हम कहाँ गये, हमने क्या खाया, हमने क्या बातें कीं। यह बात मुझे खीझ दिलाती, लेकिन मैं एक नादान २३ वर्षीय थी जो अपने पहले प्रेम सम्बन्ध में थी (वह करीब ३० साल का था), तो मैंने इन बातों को नज़रअंदाज़ कर दिया।
कॉलेज के बाद, मैंने बंगलोर में नौकरी ली। कुछ दिनों तक, मैं एक दोस्त के साथ रही। चिन्मय ने सुझाव दिया कि जब तक मुझे दूसरी जगह ना मिले, मैं उसके साथ रहूँ। उस प्रकार, हमें एक दूसरे को मिलने के लिये लंबी दूरी तय करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। मुझे यह एक अच्छा सुझाव लगा। मेरा पहला प्रेम संबंध होने के साथ साथ, मैं पहली बार किसी और के संग रहने वाली थी और सेक्स करने का भी यह मेरा पहला अवसर था।
तो हमारे बीच सेक्स यूँ हुआ। चिन्मय को लगा कि हम बहुत देर से इसके लिये रुके थे: हम तीन महीनों से प्रेम संबंध में थे, हम अब साथ रह रहे थे और अब हमें सेक्स करना ज़रूरी था। लेकिन मैं बिलकुल भी सेक्स के लिए तैयार नहीं थी। यह बात मैंने बार बार दोहराई और वह उसे टालते गया, यह कहकर कि मुझे “तज़ुर्बा नही है”।
मैं सेक्स से नफ़रत करती थी। मैं इस बात से नफ़रत करती कि मुझे ऐसे आदमी के सामने नंगा होना पड़ रहा था जो मेरे कहने को नज़रअंदाज़ करता था। धुंधली नारंगी बत्ती की चमक में सेक्स करने से मुझे घृणा थी। मुझे घृणा थी कि कोई मुझे पूछे बिना मुझे हाथ लगा रहा था। हर बार जब मैं सेक्स के बारे में मेरे विचार पेश करती, चिन्मय कहता “प्रेम संबंध में सब लोग सेक्स करते है”, और यह भी कि सेक्स की बात मेरे लिए “नयी” थी। मैं झगड़ती रहती कि मुझे सेक्स के बारे में सोचने के लिए समय चाहिए था और मेरी अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए भी। एक समस्या यह भी थी कि मैं उन दिनों इस बात से बहुत परेशान रहती थी की औरों की नज़रों में मेरा शरीर कैसा दिखता है, खरा उतरता है कि नहीं। और चिन्मय की प्रतिक्रिया होती -- रो पड़ना। अब जो मैं वह दिन याद करती हूँ, उसके रोने से मुझे लगता था कि जैसे मैंने कोई अपराध किया हो। और मैं सकपकायी हुई सी खड़ी रहती, यह न जानती हुई कि ऐसे में मैं क्या करूँ।
तीन महीने साथ रहने के बाद, मैं रिश्ते से छुटकारा पाने का बहाना ढूंढ़ रही थी। हालांकि उसे छोड़ने के लिए मेरे (अच्छे) कारण थे, सच्चाई यह थी कि मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं वो कैसे करूँ। चूंकि वह तुरंत ही रोना शुरू कर देता, मैं तर्क तैयार करके, जितनी भी सावधानी से ब्रेक अप की बात को छेड़ती, उसके आँसुओं की वजह से लड़खड़ा जाती। और तो और, यह मेरा पहला प्रेम संबंध था - मेरी एक करीबी सहेली ने मुझे “सलाह” दी कि मुझे बना बनाया रिश्ता बिगाड़ना नहीं चाहिए। अगर आप उसका रोना, सताना और भावुक ब्लैकमेल नज़रअंदाज़ कर दें, तो वह सचमुच में एक अच्छा इंसान था जो मेरी परवाह करता था और मेरी अच्छाई चाहता था। मैंने सोचा कि जल्दबाज़ी में कुछ करने से पहले मुझे कुछ समय रुकना चाहिए।
लेकिन शुक्र से उसका तबादला दिल्ली में हो गया और मैंने चेन्नई, यानी घर लौटना तय किया। यह दूरी, मुझे लगा, हममें दरार लाएगी और आख़िरकार मैं उससे छुटकारा पा जाऊंगी। मैं इस बात पर पक्की थी कि उस समय उसे खुले आम यह सब बताने की मेरी कोई इच्छा नहीं थी। मेरी यह आशा थी कि हमारा रिश्ता बिना कुछ किये बिना ख़त्म हो जाएगा। अब जो मैं सोचती हूँ, महसूस होता है कि मेरा ऐसा सोचना स्वार्थी और द्वेषपूर्ण था।
लेकिन बातें बिगड़ती ही गयीं। मेरे घर लौटने के एक दिन बाद, उसने फ़ोन पर घोषित किया कि वह मुझसे प्यार करता था, जो उसने मुझे पहले कभी नहीं कहा था। एक पल की ख़ामोशी के बाद, मैंने मेरा फ़ोन छज्जे की दीवार पर ज़ोर से दे पटका। वह टूटा नहीं, लेकिन वैसा करने से कॉल बंद हो गया और मुझे उससे दो दिन तक छुटकारा मिला। दो दिन बाद, पछतावे में, मैंने लैंडलाइन से उसे कॉल किया और कहा कि फ़ोन मेरे छज्जे से नीचे गिर गया था। फिर उसने दोबारा कहा कि वह मुझसे प्यार करता है और मुझसे भी वो वह शब्द सुनना चाहता था। “चार महीने होने वाले हैं। क्या मैं वह तीन जादूई शब्द सुन सकता हूँ?” मैं झिझकी और सिर्फ यह बोली, “मुझे तुम बहुत पसंद हो। तुम एक अच्छे, दयालु इंसान हो, लेकिन मुझे पता नहीं …” और मेरी बात ख़त्म होने के पहले, मैंने दूसरी ओर से धीमी सिसकियाँ सुनी। वह बोला, “मैं तुम्हारे साथ केवल अच्छे से पेश आया हूँ और मैं जानता हूँ कि तुम भी मुझसे प्यार करती हो। अगर तुम उसे शब्दों में बयान नहीं कर सकती, फिर भी मैं मानूंगा कि तुम मुझसे प्यार करती हो। मैं महसूस करने लगी कि मुझ पर घबराहट का दौरा सवार हो रहा था और मैंने वह शब्द “आई लव यू टू” बड़बड़ा डाले।
दो महीनों बाद, उसने तय किया कि वह उसके माता-पिता को हमारे बारे में बताएगा और उसने मुझे भी वही करने की विनती की। इस बार, मैं डटी रही और मैंने कहा कि अगर वह वैसा करेगा, तो मैं उसके साथ फिर कभी नहीं बात करूंगी (यह मेरा तरीका था ब्रेक अप करने का)। वह बोला कि वह मेरा परिचय एक अच्छे दोस्त के रूप में करेगा और मुझे मेरे माता-पिता को कुछ भी बताने की ज़रुरत नहीं थी। मैं चुप रही। मेरी चुप्पी का मतलब ‘हाँ’ समझते हुए, उसने मुझे कहा कि असल में उसने अपने माता-पिता को मेरी फोटो दिखाई थी और यह भी बताया था कि हम एक दूसरे को छह महीनों से मिल रहे थे। “उन दोनों को तुमसे मिलना है। जब मैं अगले हफ़्ते चेन्नई आता हूँ क्या हम एक साथ खाना खाने बाहर जा सकते हैं?” क्रोधित होकर मैं उस पर चीखी कि उसने मेरी ‘हाँ’ के बगैर यह सब कैसे तय किया। जैसे अपेक्षित था, वह रोकर बताने लगा कि कैसे उसके माता-पिता ने कभी यह बात मानी नहीं थी कि उसकी कोई गर्लफ्रेंड है, चूंकि शादी तक बात कभी बढ़ी ही नहीं थी और यह भी कि वह चाहता था कि मैं वह शख़्स बनूँ जो उसकी गर्लफ्रेंड से उसकी बीवी बने। यह सुनकर मुझे दूसरी भावनाओं से ज़्यादा धबराहट महसूस हुई -- ख़ासकर इस विचार से कि मेरी ज़िंदगी में जो हो रहा था, उस पर मेरा कोई काबू नहीं था -- इससे मुझे घुटन होने लगी।
मैं हमारी यह बातचीत ख़त्म करना चाहती थी, और इस हेतु मैंने उसके माता-पिता से मिलने के लिए दो शर्तें रखीं: १. हम यूँ ही डेट कर रहे हैं २. मेरे माता-पिता को इस बारे मैं कुछ पता नहीं। चिन्मय राज़ी हुआ। लेकिन मुझे जान लेना चाहिए था कि वह मेरी बात को महत्त्व नहीं देने वाला था।
चेन्नई में वुडलैंड्स के वह रेस्टोरेंट में मैं बहुत डरी हुई हालत में गई, इस आशा के साथ कि हमारी मुलाकात अंततः शादी की बात पर नहीं जा पहुँचेगी। लेकिन, उसके माता-पिता का पहला प्रश्न यही था कि मेरे माता-पिता का क्या कहना था, जब मैंने उन्हें बताया कि मैं उनके बेटे को डेट कर रही थी। मैंने मेरा सूप का चम्मच गिरा दिया और सूप का बोल भी गिराने में सफल रही। लेकिन मुझमें उन्हें यह बताने का साहस था - जो चिन्मय में नहीं था - कि मैंने मेरे माता-पिता को कुछ बताया नहीं था और बताने भी नहीं वाली थी। मैं यह समझ गयी कि उसकी माँ ने उस ही पल तय कर लिया कि वो मुझे पसंद नहीं करती ।
अगली रात चिन्मय और मुझमें क्रोधित वादविवाद हुआ और मैंने उसे कह दिया कि मैं इस संबंध से तंग आ चुकी थी। चिन्मय ने, बड़ी बेपरवाही से पूछा कि क्या मैं पिंटरेस्ट इस्तेमाल करती थी। “ताकि हम हमारा वेडिंग बोर्ड बना सकें।” तब मैं समझ गई कि मुझे हमारे रिश्ते का पर्दा फ़ाश करना ही होगा। पिंटरेस्ट के वेडिंग बोर्ड के बारे में कॉल (और दूसरे प्यार भरे कॉल जो मैं लेती रही, मेरी बेचैनी के बावजूद) आते गये। वह मुझे रात के १ बजे या फिर कभी कभार ३ बजे भी बुलाता था, यह पूछने कि क्या सतालू और बैंगन का काॅम्बिनेशन अच्छा था और क्या हमें थाम्बुला पै (नारियल, मिठाइयों और नमकीन के रिटर्न गिफ्ट जो तमिल शादियों में मेहमानों को दिए जाते हैं) के बदले चॉकलेट भेंट में देने चाहिए।
उस मुलाकात के एक महीने बाद और हमारे रिश्ते के आठवें महीने में (वह महीना हमने विवादपूर्ण, उत्साहहीन फ़ोन कॉलों में गुज़ारा), यह महसूस करते हुए कि हमारे रिश्ते की नाव लड़खड़ा रही थी, चिन्मय उसकी नौकरी छोड़कर चेन्नई रहने आया। मेरी नौकरी तनावपूर्ण थी जिसके लिए मुझे जल्दी उठना पड़ता था, और १५ किलोमीटर के सफ़र के बाद देर तक काम करना पड़ता था। इसके ऊपर मुझे शहर भर ट्रेनों और बसों में भाग दौड़ करनी पड़ती । मेरी नौकरी की वजह से मैं पूरी थक जाती, लेकिन हमारे रिश्ते से मुझे सबसे ज़्यादा थकान महसूस हुई। मैं नहीं चाहती कि वह चेन्नई रहने आये।।
लेकिन वह आया और मैं उसे मिली। ब्रेकअप की तैयारी करते हुए, मैंने उसे मुझे सुबह सुबह एक भीड़ से भरे कैफ़े में मिलने कहा, सिर्फ इस उम्म्मीद से कि वह दूसरों के सामने रोएगा नहीं। मैं उससे पहले पहुँचाना चाहती थी, लेकिन वह पहले पहुँच गया था और उसके चेहरे पर सबसे बड़ी और शांततापूर्ण मुस्कुराहट थी। मेरे बैठ जाने के पहले ही, उसने मेरी चहेती दो किताबें मेरी ओर ढकेलीं - किताबें महंगी थीं ये जानते हुए मुझे और उलझन होने लगी थी। चिन्मय रिश्ते को बचाने के लिए तैयार होकर आया था। लेकिन मैंने वह किताबें वापस उसकी तरफ़ ढकेलीं और उसे बताने लगी कि हमारा रिश्ता टिकने वाला नहीं था। वह हँसा और बोला, “यही वजह है कि मुझे लगता है कि हमें यह रिश्ता नये सिरे से शुरू करना चाहिए। चलो निश्चय करते हैं कि हमारा रिश्ता और लंबा चले।”
अब मेरी रोने की बारी थी । लेकिन मुझे काम के लिए देर हो रही थी सो मैंने कहा कि मैं उसे शाम को मिलूँगी। उसने मेरी बात पर ध्यान ना देते हुए कहा कि वह मेरे साथ ऑफिस तक आना चाहेगा। मैं डर गई, और मैंने बहुत कोशिश की उससे छुटकारा पाने की, लेकिन चिन्मय अटल रहा। इसलिए मैंने उसे कहा कि मैं कुछ बोलना नहीं चाहती थी और यह भी कि मैं सफ़र भर सिर्फ गाने सुनूंगी। उसने चुप रहने का वादा किया। वह बोला, “मुझे सिर्फ तुम्हारे पास रहना है और तुम्हें देखना है”। तो हम आधी दूरी तक शेयर रिक्शा में गये और वहाँ से ऑफिस तक बस में गये। ऑफिस पहुँचने के बाद मैंने उसे बस स्टॉप तक वापस दौड़ कर जाने के लिए कहा, चूंकि उस समय एक ए सी बस आने का समय हो चुका था। उसने वहाँ से जाने से इंकार किया और बोला कि वह ऑफिस ख़त्म होने तक मेरी राह देखेगा, ताकि हम बात करके हमारी समस्या को सुलझा सकें। मैंने उसे चले जाने की बहुत विनती की, लेकिन वह बिलकुल नहीं माना। मैं रोने लगी और मुझे यह बात समझ में भी नहीं आई। वहाँ का चौकीदार यह सब देख रहा था, और उसने मुझे पूछा कि क्या सब ठीक था और क्या चिन्मय मुझे सता रहा था। मेरा मन तो बहुत हुआ ‘हाँ ‘कहने का, लेकिन मैंने उसकी मदद नकारी। मैंने पूरी फ़िल्मी स्टाइल में हाथ जोड़े और चिन्मय से चले जाने की भीख माँगी। आख़िर वह मान गया और बोला कि वह मेरी राह पहले वाले कैफ़े में ८ बजे देखेगा और यह भी कि मैं उसे मैं ७ बजे फ़ोन करूँ मुलाकात निश्चित करने के लिए।
उस दिन मेरा काम बहुत देर तक चला और मुझे शाम भर उसके कॉल सताते रहे। घर के सफ़र के दौरान मैं पूरे समय ज़ोरों से रोयी। बस कंडक्टर ने मुझसे बस का भाड़ा भी नहीं लिया और वह दो बार देखने आया कि मैं ठीक हूँ कि नहीं।
मैं थकी हारी, लाल आँखों के साथ घर लौटी, अत्यंत दुखी। मैंने उसे फ़ोन किया और इससे पहले कि वह कुछ बोले, मैंने झट से बोला: “यह ख़त्म हो चुका है। हमारा रिश्ता ख़त्म हो चुका है। कृपा करके मुझे अकेला छोड़ दो। मैं यह और देर सहन नहीं कर सकती,” और ज़ोर ज़ोर से चीखने लगी। चिन्मय भी रोने लगा और हम दोनों साथ में दो घंटों तकमन भर के रोते रहे। कुछ मिनटों की ख़ामोशी के बाद, आख़िर में वह बोला “ओके” और मैं आज़ाद थी।
हमारे रिश्ते को और उससे बात किये छह साल हो चुके हैं, लेकिन मैं अब भी ख़ुद को दोषी ठहराती हूँ। मुझे पता है कि मेरे दोस्तों के मुताबिक मुझे ऐसा लगना नहीं चाहिए (“उसने तुम्हारा दम घोटा था!”)। लेकिन मेरे अंदर का एक हिस्सा चाहता है कि काश मुझमें साहस होता सही समय पर रिश्ता ख़त्म करने का और कहने का, “ओये, शायद यह ठीक नहीं चल रहा है”, या फिर एक दूसरे की मौज़ूदगी में ब्रेक अप करने का। उसे इस बात और ऐसे बर्ताव का अधिकार था और मुझे भी, इतनी तकलीफ़ से गुजरने के बाद।
लेकिन इस तजुर्बे ने मुझे और शक्तिशाली बनाया है: मैंने लड़कों को यह बताया है कि रिश्ते में मेरे लिए क्या काम करता है और क्या नहीं और मैं शुक्रगुजार हूँ कि उन्होंने भी मेरी बात मानी। मुझे लगता है कि उस समय मेरे लिए ब्रेक अप करना कठिन था क्यों कि मुझे यह समझ नहीं थी कि हमारा रिश्ता उसके लिए इतने मायने क्यों रखता था और उसे यह समझ नहीं थी कि वह रिश्ता मेरे लिए क्यों मायने नहीं रखता था। चूंकि वह वाकई में एक अच्छा इंसान था, मुझे भी शक और दोष की भावनाओं ने घेर रखा था। कुछ बातों में वह अच्छा था। कभी कभार, मैं सोचती रहती हूँ कि क्या होता अगर मैंने उसके साथ ब्रेक अप नहीं किया होता, लेकिन वह विचार टिकता नहीं है। सिर्फ इसलिए कि हमारा रिश्ता टिकने के लायक नहीं था।
अनुषा एक पत्रकार है और उसे शब्दों का खेल इतना पसंद है कि इतना पसंद है कि वो घड़ी घड़ी ये खेल करती रहती है ।
आख़िर यह ब्रेक उप कब तक चलने वाला है
अगर आप उसका रोना, सताना और भावुक ब्लैकमेल नज़रअंदाज़ कर दें, तो वह सचमुच में एक अच्छा इंसान था जो मेरी परवाह करता था और मेरी अच्छाई चाहता था। मैंने सोचा कि जल्दबाज़ी में कुछ करने से पहले मुझे कुछ समय रुकना चाहिए।
लेखन: अनुषा स्रिनिवासन
चित्र: भव्या कुमार
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