शुरुआत से ही हमारा रिश्ता रोमांचक उतार-चढ़ाव से भरा हुआ था, जैसे किसी बड़े पार्क में रोलर-कोस्टर ।
मैं रश्मी से कॉलेज में मिला (हम एक ही क्लास में थे) और कॉलेज के दूसरे साल में हम डेट करने लगे। हमारी कहानी एक पक्के कॉलेज रोमांस की कहानी की तरह थी। मैं पढाई के अलावा पाठ्यक्रम के बाहर की और क्रियाओं में भी भाग लेता था। इस वजह से मेरे काफी लेक्चर छूट जाते और रश्मी पढ़ाई में मेरी मदद करती। हम छुट्टियों में साथ घूमते और फिल्में देखने जाते। कॉलेज के बाद भी हमारा रिश्ता बना रहा - २००९ से २०१५ तक - यानी कि एक गहरी और लंबी रिलेशनशिप।
हम दोनों एक दूसरे पे हक़ जताते थे, और एक दूसरे के बर्ताव की ओर बिलकुल सहनशील नहीं थे। हम भावनात्मक रूप से एक दूसरे पर अत्याचार भी करते थे। छोटी-मोटी बात का बतंगड़ बन जाता था और हम एक दूसरे से बिल्कुल मेल नहीं खा रहे थे।
कॉलेज के बाद हम दोनों ने कोच्ची (Kochi) में नौकरी ले ली। हम क्या कर रहे थे, इससे हमें कोई फरक नहीं पड़ता था, हम बस एक दूसरे के साथ रहना चाहते थे। रश्मी को मेरी बहुत परवाह थी, लेकिन उसे मुझपर ज़रा भी भरोसा नहीं था। मेरा दूसरी लड़कियों से बातें करना उसे पसंद नहीं था।
मैं एक इंट्रोवर्ट (अंतर्मुखी किस्म का) इंसान हूँ और रश्मी वैसी नहीं थी। वह खुली सार्वजनिक जगहों में भी बहुत ही बिंदास थी, और इस बात से मुझे काफी असहजता महसूस होती थी। ऐसे मौकों पर ख़ास तौर से बात बिगड़ जाती। मैं उसको दिलासा देने की कोशिश करता, और कभी-कभी इस से बात फिर बन भी जाती।
एक बार, हम एक व्यस्त बस स्टॉप पर खड़े थे। वह किसी बात को लेकर उदास थी और वहीँ रोने लगी। क्योंकि कुछ लोगों का ध्यान हमारी तरफ आकर्षित होने लगा, मैंने उससे वहाँ से थोड़ी दूर चलने का सुझाव दिया। लोगों ने कुछ देर तक हमारा पीछा भी किया। मैं ऐसी परिस्थितियों को संभाल नहीं पाता था , इसलिए मैं उसे एक रेस्टोरेंट में ले गया।
एक बार वह मेरी सबसे करीबी दोस्त से मिली और जल्द ही उन दोनों के बीच इस ही बात को लेके लड़ाई शुरू हो गयी।
ऐसे बहुत से वारदात हुए और हर बार पीछे पड़ पड़ कर वह मेरी नाक में दम कर देती। मैं उसे अनसुना करने की कोशिश करता, क्योंकि वह वही बातें बार बार दोहराती, मसलन: "तुम उस लड़की के साथ वहाँ क्यों खड़े थे?" या फिर "तुम मेरे साथ वक्त क्यों नहीं बिता रहे हो?" उसके यह सवाल मुझे ज़्यादातर बेतुके लगते थे।
कभी-कभी मैं उसकी बातों को सुनके उनपर प्रतिक्रिया देता। फिर मैं कुछ देर शांत रहता और मेरी चुप्पी उसको चुभने लगती। अगर हम फोन पे बहस करते, तो कभी-कभी मिलने से मामला सुलझ जाता। अगर यह आमने-सामने होता, और बात बनती नहीं थी, तो कभी कभी एक दूसरे को छूने से तूफ़ान थम जाता।
उसका ध्यान कभी उपाय ढूंढने या मसले पर चर्चा करने और उसको साथ मिलकर सुलझाने पर नहीं होता। इस बात पर मुझे बहुत गुस्सा आता, ऊपर से अगले दिन वह ऐसा बर्ताव करती जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं था। जब मुझे लगता था कि छोटे मसलों से भी निपटने का और परिस्थिति को सुधारने का कोई भी रास्ता नहीं है, तब मैं उस से कुछ समय के लिए बात करना बंद कर देता। मेरे इस बर्ताव से वह बहुत परेशान और निराश हो जाती। वह मुझसे बात करने की कोशिश करती और सीधे मेरे घर पहुँच जाती। कभी-कभी मैं अपना आपा खो बैठता। इसी गुस्से के जूनून में मैंने उसे दो अलग मौकों पे थप्पड़ दे मारा था। जब भी मैं उस वक्त को याद करता हूँ, मुझे अपने आप पे काबू ना रख पाने पर बेहद शर्मिंदगी महसूस होती है।
जब मैंने उसपे पहली बार हाथ उठाया, कॉलेज के चंद आखरी दिन बाकी रह गए थे। मैं हमारे फेयरवेल की तैयारियों में व्यस्त था, और काम पूरा करने की भाग-दौड़ में उलझा हुआ था। मेरे ख़याल से उस वक्त वह एक मुश्किल दौर से गुज़र रही थी। शायद उसे लग रहा था कि हम एक युग के छोर पे आ पहुँचे थे, कि अब आगे उसे मेरी कमी महसूस होने वाली थी। शायद उसके दिमाग में हम दोनों को लेके सवाल घूम रहे थे क्योंकि कॉलेज अब ख़तम हो गया था। पर उस वक्त मैं इस बात से अनजान था। उस दिन उसे मेरी ज़रूरत थी। और यह बात मुझे अब समझ में आयी है। लेकिन उस दिन, हम दोनों की भावनात्मक स्थिति काफी अलग थी। वह परेशान होती रही, और मैं उससे नज़र बचाता रहा।
हम कॉलेज के मैदान पर बहस कर रहे थे, और अचानक मेरा पारा चढ़ गया। मैंने उसके चेहरे पे चांटा दे मारा।
इस बात को कई साल हो चुके हैं और मुझे पूरी बात ठीक तरह से याद नहीं है, लेकिन मैंने उससे माफ़ी माँगी और फिर से उसपर हाथ कभी ना उठाने का वादा किया। आखिर हमने सुलह कर ली। मुझे याद है कि उसपे हाथ उठाने की वजह से मैं बुरा ज़रूर महसूस कर रहा था, लेकिन शर्मिंदा नहीं। उसे चोट तो पहुँची मगर उसने मेरी इस करतूत पर अपनी आवाज़ नहीं उठाई। उसने इस मुद्दे का ज़िक्र फिर से नहीं किया और ना ही कभी मुझसे माफ़ी की माँग की। उसके मुताबिक़ मेरा उसे मारना ठीक था। आगे जाकर, जब कभी हमारे झगड़े हद से बाहर निकल जाते, वह मुझसे कहती, "मुझे मार लो, और इस झगड़े को यहीं निपटा दो।" उसने एक बार मुझे बताया था कि उसके पिता उसे मारते थे। शायद उसे लगता था कि एक लड़के का उसपर हाथ उठाना जायज़ था, खासकर अगर वह पिता या उसका पति था। मैं इस विचारधारा से बिल्कुल सहमत नहीं हूँ। मेरे पास किसी पे हाथ उठाने या उसके साथ किसी भी तरह की हिंसा करने का कोई अधिकार नहीं है। लेकिन उस परिस्थिति में मैंने उसे मारा, और यह बहुत ही गलत बात थी।
जब हमारे बीच बातें इतनी उलझी हुई थीं तो फिर हम एक साथ क्यों बने रहे? मैं झगड़ों के बाद के मीठे पल संजो के रखता।
मुझे याद है एक दफ़ा, जब मेरे कोच्ची में होते हुए, वह बेंगलुरु शिफ्ट हो गयी थी। एक दिन हमारी लड़ाई हुई और मैंने पूरे दिन उसके कॉल नहीं उठाए। अगले ही दिन वह बेंगलुरु से मुझे मिलने आ गयी। और उस पल में, जब हम साथ थे, ऐसा लगता जैसे सब कुछ सुलझ गया था। हमने अपने साथ बिताए वक्त का आनंद लिया था, और हम हमेशा एक दूसरे का सहारा बनने के लिए तैयार थे। हमारे बीच एक उदारता थी। दोनों को यूं लगता था कि हमारे बीच वह भाव था कि "मेरे लिए और मेरे साथ कोई है"। वह शायद एक ही ऐसी इंसान थी जिसके साथ मेरी गहरी और भावनात्मक बातचीत होती थी।
दूसरी दफ़ा, मैंने उसे एक सार्वजनिक जगह पर मारा, क्योंकि ऐसी जगहों पे अगर कोई रोता है तो मैं बर्दाश्त नहीं कर पाता। मुझे शर्मिंदगी होती है। मैं परिस्थिति को काबू में नहीं कर पाता, और ज़्यादातर समझ नहीं पाता कि मुझे क्या करना है। हमारे ब्रेक-अप के एक साल पहले, हमारी एक लड़ाई के दौरान, मैं प्रोजेक्ट साइट पर था जहाँ मैं बहुत लोगों को जानता था। उसने किसी तरह से जगह ढूंढ ली और वहाँ आ पहुँची। मुझे यह बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। उसे देख कर मैं अपने क्रोध पे नियंत्रण नहीं रख पाया और मैंने उस पर हाथ उठाया।
मैंने बाद में फिर से माफ़ी माँगी। लेकिन यह रिश्ता हमारे लिए बहुत ज़हरीला बन गया था। हम अपने काम पे ध्यान नहीं दे पा रहे थे, और सिर्फ इसलिए साथ थे क्योंकि कहीं कुछ प्यार अब भी बाक़ी था। उन अच्छे दिनों के वास्ते हम कई बुरे दिनों से गुज़र रहे थे। जून २०१५ में हमने रिश्ता ख़तम कर दिया। सच पूछें तो, ब्रेक-अप के कुछ महीनों बाद ही मुझे अपने हिंसक बर्ताव का एहसास हुआ और उसको लेके बेहद शर्मिंदगी महसूस हुई।
मुझे याद नहीं कि यह कब हुआ। मैंने एक फिल्म देखी जिसमें मार-पीट थी। मैं टूट गया। ऐसा तो मैंने भी किया था - मैं अपने आप को एक खराब इंसान नहीं मानता - और इस लिए मुझे यह इल्हाम हुआ। ब्रेक-अप के बाद मैंने उसे दो बार लंबे और विस्तृत ईमेल लिखे जहाँ मैंने अपने पश्चाताप को व्यक्त किया और जब हम फिरसे बात करने लगे, तब मैंने उससे फिर माफ़ी माँगी।
ब्रेक-अप के डेढ़ साल बाद तक हमारी बात नहीं हुई, लेकिन वह समय बीतने के बाद, हम कभी-कभार एक दूसरे का हाल-चाल पूछ लेते। वह कहती है कि उसे अब भी मेरी याद आती है। कभी-कभी मुझे इस बात का बहुत दुख होता है कि एक साथ इतनी कठिनाइयों से जूझने के बाद भी, हम अपने रिश्ते को बचा नहीं पाए। कितना अच्छा होता अगर हम एक दूसरे के साथ रहे होते, और एक दूसरे की ओर अपने बर्ताव को सुधारने की अक्सर कोशिश करते, एक दूसरे का बेहतर ख़याल रखते। लेकिन मैं इस बात से भी वाक़िफ हूँ कि हमारे रिश्ते कि अवधि ख़तम हो चुकी है। मुझे हमारे रिश्ते पर अफसोस नहीं होता। हम दोनों के लिए इन अनुभवों का होना ज़रूरी था, लेकिन शायद हमें एक दूसरे के साथ इतने लंबे समय तक नहीं रहना चाहिए था।
मुझे एहसास हुआ है कि निरंतर खुद को कोसना और दोष देने का कोई मतलब नहीं है। अब मैं बस यह कर सकता हूँ कि आगे जाते हुए किसी और के साथ ऐसा बर्ताव ना करूँ जैसा मैंने उसके साथ किया।
मैं अपनी भावनाओं को आसानी से व्यक्त नहीं करता, और अपने घर ज़्यादा फोन नहीं करता जबकि मेरे बाकी दोस्त अपने माता-पिता से काफी बातचीत करते हैं। इसकी वजह मेरी परवरिश है, और कुछ हद तक मेरा मूल व्यक्तित्व भी। मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं अपनी भावनाओं को किसी और से ना बाँधूं, अपनी ख़ुशियों के लिए किसी और पे निर्भर ना रहूँ, और मेरी माँ से एक समय के बाद ज़्यादा जुड़ा हुआ ना रहूँ।
जैसे-जैसे मैं बड़ा हुआ, मैं भी अपनी भावनाओं से दूर होने लगा। दैनिक रूप से मैं कभी इतना वेध्य नहीं होता, भावनाओं को असुरक्षित नहीं रखता, जितना कि मैं किसी के साथ रिश्ते में जुड़ के हो जाता हूँ। शायद इस लिए मैंने रश्मी के साथ बुरा बर्ताव किया, लेकिन मैं बदलने की कोशिश कर रहा हूँ। मेरे लिए, लगातार संचार बनाए रखना कभी ज़रूरी नहीं था, लेकिन अब मैं इन चीज़ों को थोड़ी और गहराई से समझता हूँ। अब, जब भी मैं किसी की ओर आकर्षित होता हूँ, तो अनुकूलता के इन संकेतों को ध्यान में रखता हूँ। मुझे नहीं मालूम...लेकिन मेरे अंदर अब भी एक दूसरा इंसान घर बना के बैठा हुआ है, जो जब लोग उसे गुस्सा करते हैं, उन्हें अपने से दूर कर देता है। लेकिन मैं इसे बदलने कि कोशिश कर सकता हूँ, मुझे यह कोशिश करनी ही होगी।
*नाम बदल दिए गए हैं
मैं अपने रिश्ते में हिंसक था, मेरे ब्रेक-अप ने मुझे बदल दिया।
मुझे एहसास हुआ है कि निरंतर खुद को कोसना और दोष देने का कोई मतलब नहीं है। अब मैं बस यह कर सकता हूँ कि आगे जाते हुए किसी और के साथ ऐसा बर्ताव ना करूँ जैसा मैंने उसके साथ किया।
विशाल द्वारा
चित्रण आयेंगबे मानेन
अनुवाद तन्वी मिश्रा
Score:
0/
Related posts
How To Smell And Taste Good Down There
Partner going down on your buffet? Tips for a yummy garnish!…
हम बस दुखड़ा रोने को तैयार ही थे कि हमने हॉकी स्टिक लिए एक छोटी लड़की को देखा।
एक मूवी के किरदार से अ…
मैंने खुशी-खुशी अपना दिल उनको दिया, लेकिन उनको चाहिए थे बच्चे और एक देसी बहू
स्थायी बीमारी में डेटि…
दुनिया की ऐसी जगहें जहाँ पब्लिक में सेक्स करना क़ानूनन जायज़ है ।
आज है #WorldTorismDay! जाने दुनिय…
If Life is Box Full of Chocolate Boys!
#HappyChocolateDay to the men who smile, are vulnerable, and…
What is Fellatio? The AOI Sex Glossary
Is it ice-cream ka flavour, like pistachio? Well, it does ha…
Sorry Thank You Tata Bye Bye - A Music Video About Age of Marriage In Collaboration With Oxfam India
Ammuma’s Haircut and Her Romantic Past
If Ammuma's hair was one to divulge, what would it reveal ab…
It Was ‘Twilight’. I Woke Up Bisexual.
How one can stumble upon one's (bi)sexuality with the help o…
To All the Boys I Couldn't Love Before
What fleeting connections with many interesting men tell you…
Tell Me Tarot, Will He Ever Come Back?
After Manjari is ghosted, all search for closure leads to he…
How My Girlfriend's Abortion Made Me A Better Man: A Comic
M's story about a life-changing incident.
Do You Know How to Give Women Orgasms?
This app will teach you how and we got some Agents to try it…
The AOI Queer Reading List: Desi Languages Version
Queer readings from non-English Indian languages.
What Makes Your Sexual Confidence Go Up and Down
Sexual confidence is like a Snakes and Ladders Game
KISS MEIN KITNA HAI DUM: 19 KISS POEMS
Kisses that go from sweet to saucy, tender to raunchy, misch…
Savita Bhabhi and I: A True Love Story
Here is something you should know about me. I wrote three st…
How Posing in the Nude Changed My Life
A young gay man who hates being touched, is awkward about ha…