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एक अन्जान इतिहास - मिलिए हिंदुस्तान के यौन शिक्षक सितारों से

‘आधुनिक’ भारत में कई ऐसे डाक्टर, एक्टिविस्ट, शोधक और लेखक रहें हैं जिन्होनें महत्त्वपूर्ण कार्य किये जैसे : गर्भ निरोध की योजनाएं शुरू करना; यह कहना कि औरतों को कामुक आनंद का अधिकार है और आम जनता की कभी न ख़त्म होने वाली सेक्स संबंधी दुविधाओं के बारे में बात करना

भारतीय दार्शनिक वात्स्ययन इतिहास में काम सूत्र के लेखक होने के कारण बहुत मशहूर हैं। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि भारत में सेक्स की शिक्षा उस किताब के साथ शुरू या ख़त्म नहीं होती। तीसरी सदी से लेकर, कई और किताबें लिखी गयी हैं, लेकिन वो सिर्फ प्राचीन लोग नहीं जो यौन शिक्षा प्रदान करते आ रहे थे। ‘आधुनिक’ भारत में - मूलतः १९ वी सदी से लेकर - कई ऐसे डाक्टर, एक्टिविस्ट, शोधक और लेखक रहें हैं जिन्होनें महत्त्वपूर्ण कार्य किये जैसे : गर्भ निरोध की योजनाएं शुरू करना; यह कहना कि औरतों को कामुक आनंद का अधिकार है और आम जनता की कभी न ख़त्म होने वाली सेक्स संबंधी दुविधाओं के बारे में बात करना, ठीक उसी तरह जैसे मास्टर्स और जाॅन्सन ने अमरीका में किया। तो हम आज आपके सामने यह मार्ग दर्शक ‘एजंटस आॅफ इश्क’ की सूची पेश करते हैंऔर यह बताते हैं कि कैसे इन सबों ने सेक्स का नाम रौशन करने की कोशिशें कीं।

1.रघुनाथ धोंडो कर्वे (१८८२ - १९५३)

ऐसा कम दिखने में आता है कि गणित का एक प्राध्यापक गर्भ निरोध में सुधार का भी मार्ग दर्शक बन जाता है, लेकिन कर्वे ने यही कर दिखाया। उन्होनें पुणे के फर्ग्यूसन काॅलेज में पढ़ाई की और बंबई के विल्सन काॅलेज में गणित सिखाया। उन्होनें स्त्रीयों के कामुक अधिकारों के बारे में, स्त्रीयों को अनचाही गर्भावस्था से मुक्त होने के बारे में और परिवार नियोजन जैसे विषयों पर खुलकर बात की। उन्हें  इसलिये काॅलेज से इस्तीफा देने के लिये भी मजबूर किया गया। अपनी पत्नी मालतीबाई रघुनाथ कर्वे के साथ, उन्होनें सन १९२१ में भारत का पहला गर्भ निरोधक दवाख़ाना शुरू किया। वो पहले शख़्स थे  जिन्होनें इस दवाख़ाने में डायाफ्रॅम और सरवायकल कॅप का इस्तेमाल किया। लेकिन उन्हें यह दवाख़ाना गोपनीय रखना पड़ा, ये भी कहा जाता है कि शायद इस वजह से उन्होंने अपने मरीजों के कोई रेकार्ड भी नहीं रखे । उन दोनों ने सन १९२८ में समाज स्वास्थ्य नाम की  एक विवादात्मक मैगज़ीन शुरू किया की सेक्स, गर्भनिरोधक, हस्तमैथुन, सम लैंगिक प्यार, और स्त्रीयों का कामुक आनंद पर अधिकार जैसे विषयों पर वैज्ञानिक जानकारी थी। और उनके जीवन पर आधारित एक नाटक के अनुसार, जो मार्च में प्रदर्शित किया गया (और जिसका नाम मैगज़ीन के शीर्षक से लिया गया था), कर्वे पर ‘अश्लीलता’ के तीन मुक़दमे लादे गये, और उनमें से एक के लिये उनके वकील ख़ुद डाॅ बी अार अंबेडकर थे। वो अब भी इतने मशहूर नहीं हैं, इसके बावजूद कि अमोल पालेकर ने उनकी ज़िंदगी पर ‘ध्यास पर्व’ नाम की पिक्चर बनायी। एक मामूली जानकारी - कर्वे के नाम से बंबई में एक रास्ता है - जो चर्चगेट के ओवल मैदान के बगल में है।  

2. शकुंतला परांजप्ये (१९०६ - २०००)

शकुंतला परांजप्ये बहुत गुणी थीं। वो एक नाटककार, एक लेखिका, एक समाज सेविका, महाराष्ट्र वैधानिक सभा और राज्य सभा की सदस्या, और महाराष्ट्र की परिवार नियोजन नीति तय करने वालों में से एक अग्रगण्य हस्ती थीं। उन्होनें कई मराठी और हिंदी फिल्मों में अभिनेता का भी काम किया, और केम्ब्रिज में गणित की पढ़ाई की। और ऐसा कहा जाता है कि वो पहली स्त्री थीं जिन्होनें पुणे की सड़कों पर सायकल चलायी और  धूम्रपान किया। ज़ाहिर रूप से, उनके चचेरे भाई डाक्टर कर्वे ने, जिनका ज़िक्र हमने ऊपर किया है, परिवार नियोजन की दुनिया से उनका परिचय कराया। वो चाहते थे कि शकुंतला उनकी सहभागी बनें, ताकि वो स्त्रीयों से गर्भ निरोध के बारे में बात कर सकें। फिर शकुंतला ने अपने घर में दवाख़ाना खोला, और सन १९३३ में, गर्भ निरोध के बारे में बात करने के लिये, ग्रामीण महाराष्ट्र के दौरे किये। लेकिन नवंबर १९६४ में उन्होनें एक भयानक बिल, स्टेरिलायज़ेशन आॅफ द अनफिट, की प्रस्तावना भी की, जिसमें कहा गया कि कुष्ठरोगियों को बच्चे नहीं पैदा करने चाहिये। और हालांकि यह बिल तुरंत अपनाया नहीं गया, वो अगले दशक के विवशकारी जीवाणुनाशन/ स्टेरिलायज़ेशन अभियानों की शुरुआत थी। इसलिये उनके योगदान भले और बुरे, दोनों रहे हैं ।  

3. अलयापिन पद्मनाबा पिल्लय (१८८९ - १९५६)

डाक्टर पिल्लय महाराष्ट्र में स्थित सेक्स विशेषज्ञ थे, जिन्होनें आखिरकार फॅमिली प्लॅनिंग असोसिएशन आॅफ इंडिया स्थापित करने में मदद की। उन्होनें लैंगिकता पर कई किताबें प्रकाशित कीं, जिनमें से एक किताब थी सेक्स नाॅलेज फाॅर गर्ल्ज़ एॅन्ड अडोलसंट्ज़, जिसमें उन्होनें कहा था कि स्त्रीयों को भी कामुक संतुष्टि मिलने का अधिकार था। उन्होनें कहा कि हस्तमैथुन ‘सुख पाने का एक सीधा-सादा तरीका’ था, और वो सेक्स के बारे में ‘विचारपूर्वक रूप से’ सोचने को और सेक्स संबंधी कलंकों को नकारने को बहुत महत्त्व देते थे। उनकी एक सुप्रसिद्ध किताब, द आर्ट आॅफ लव एॅण्ड सेन सेक्स लिविंग, १५ संस्करणों में प्रकाशित की गयी, और उसमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि “दुःखदायी, कठोर धार्मिक विचारों और लैंगिक विरोधी निषेधों का अब तक क़ायम रहना, जैविक ज़रूरतों और वैज्ञानिक खोजों के खिलाफ है”।  

4. शकुंतला देवी (१९२९ - २०१३)

वो एक लेखिका और एक बाल विद्वान थीं, वो ‘मानवी कम्प्यूटर’ के नाम से भी जानी जाती थीं चूंकि वो अपने दिमाग से नामुमकिन आकलन मन में ही कर लेतीं थीं। इस ग़ज़ब की स्त्री ने सन १९७७ में समलैंगिकता पर भारत का सबसे पहला अनुसंधान लिखा। समलैंगिकों की दुनिया ने, जिसके विचार अपने समय से बहुत आगे थे, समलैंगिकता को अपराध नहीं मानने की मांग की और “संपूर्ण रूप से स्वीकारने की भी - ना कि बरदाश्त करने की और हमदर्दी जताने की”। उन्होनें यह किताब तब लिखी जब उन्हें पता चला कि उनके पति समलैंगिक थे, और वो समलैंगिकता के बारे में जानकारी हासिल करना चाहती थीं। यह किताब कई समलैंगिक पुरुष और एक समलैंगिक जोड़ी के साथ की गये बातचीतों का संग्रह है। इन पात्रों में कंपनी में काम करने वाला एक मैनेजर शामिल है , जो अपने पुरुष प्रेमी और अपने ख़ानदान ने चुनी हुई पत्नी के बीच दोहरी ज़िंदगी जीना चाहता है, एक आदमी जिसने अपने माता पिता को सब सच बताते हुए कहा था कि वो कैसे कभी किसी औरत के साथ विवाह नहीं करना चाहता था; और श्रीनिवासा राघवचरियार, तमिल नाडू के तिरुचिरापल्ली ज़िले में स्थित श्रीरंगम मंदिर के मुख्य पुजारी, जिनका मानना था कि समलैंगिक प्रेमी पिछले जन्म में पुरुष और स्त्री प्रेमी हुए होंगे। इस ऐतिहासिक किताब में नैतिकता और लैंगिकता पर उनकी ख़ुद की टिप्पणी थी, और इस किताब ने समलैंगिकता को अपराध न मानने की मांग की।   5. बानू जहाँगीर कोयाजी (१९१८ - २००४) कोयाजी एक भारतीय चिकित्सक थीं, एक प्रशिक्षित स्त्रीरोग विशेषज्ञ, समाचारपत्र की प्रकाशक और परिवार नियोजन की एक्टिविस्ट। वो पुणे के किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल की डाइरेक्टर थीं, जहाँ उन्होनें सन १९४४ में OB-GYN से शुरुआत की, लेकिन ५५ वर्षों तक चिकित्सा करती रहीं। जब वो अस्पताल से जुड़ीं तब वो एक - मंज़िला ४० बिस्तरों का बैरक था, और जब वो डाइरेक्टर बनीं, तब उनके निगरानी में वो बढ़कर ५५० बिस्तरों का मेडिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट बन चुका था। कद में ५ फुट से कम, वो ऑपरेशन स्टूल पर खड़े होकर करती थीं। उन्होनें ग्रामीण महाराष्ट्र के सामाजिक स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिये परिवार नियोजन की योजना शुरु की, और आखिरकार देश के सरकार के लिये सलाहकार बनीं। वो देश विदेश में पहचानी जाने वाली विशेषज्ञ भी बनीं, और उन्होनें पद्म भूषण पुरस्कार भी जीता। सन १९७२ में उन्होनें वादू ग्रामीण स्वास्थ्य योजना शुरू की, जहाँ से बढ़कर अब वो शिर्डी साईबाबा अस्पताल बना है, जो कई गाँवों की सेवा करता है। उसकी सफलता के बल पर, सन १९७७ में उन्होनें सामाजिक स्वास्थ्य केन्द्र योजना शुरु की, जिसमें आहार, आरोग्यशास्र और परिवार नियोजन में प्रशिक्षित ६०० लड़कियों ने काम किया।   १९८५ के करीब उनके ध्यान में आया कि नवयुवतियों और उनसे छोटी अन्य लड़कियों की ज़रूरतों को बिल्कुल भी महत्त्व नहीं दिया गया था। सन १९८८ में उन्होनें ‘यंग विमेंस हेल्थ अॅण्ड डिवलपमेंट प्राॅजेक्ट’ शुरू किया, और सामाजिक स्वास्थ्य कर्मचारियों की ११ गाँवों के साथ पहचान करायी। इस प्रोजेक्ट ने औरतों के स्वास्थ्य और पारिवारिक जीवन के बारे में लोगों को जानकारी दी, और जातियों के और स्त्री पुरुष के बीच के संबंधों के बारे में चर्चा को प्रोत्साहन दिया। क्या आपको इस महान महिला के बारे में एक दिलचस्प बात मालूम है? उन्हें मिल्ज अॅण्ड बून की प्रेम कहानियाँ बहुत पसंद थीं।  

6. सुनीति साॅलोमन (१९३८ - २०१५)

साॅलोमन, जिन्हें पद्म श्री पुरस्कार मिला था, एक मार्ग दर्शक एक्टिविस्ट, शिक्षिका, क्लिनिकल पाॅथोलोजिस्ट और मायक्रोबायोलोजिस्ट थीं, जिन्होनें भारत में AIDS के पहले रोगी का निदान किया और फिर देश में इस बीमारी पर अनुसंधान शुरू किया। शुरू में सुनीति के पति उसके लिये कुछ चिंतित थे। “उन्हें मेरा HIV के मरीजों के साथ काम करना नापसंद था, जो उस समय ज़्यादातर समलैंगिक थे, जो ख़ुद को ड्रग के इंजेक्शन लगाते थे और जो यौनकर्मी थे। मैंने कहा कि अगर आप उनकी कहानियाँ सुनोगे तो आप ऐसी बात नहीं करोगे” वो कहती हैं। १९८० के दशक में जब HIV ने पूरे विश्व में महामारी का रूप लिया, तब उन्होनें भारत में AIDS के  संकट  के  बड़ा होने पर काफी हद तक रोक लगायी। ऐसे वक्त में जब कि भारत सरकार AIDS के प्रसार को नज़रअंदाज़ करना चाह रही थी, साॅलोमन ने चेन्नई में १०० यौनकर्मियों की जाँच की और यह पाया कि ६ को HIV हुआ है। और १९९३ में उन्होनें भारत का पहला स्वैच्छिक परीक्षण केन्द्र शुरु किया, जिसका नाम था ‘वाय आर गाईतोंडे सेंटर फाॅर AIDS रिसर्च एण्ड एड्यूकेशन’, जिसने प्रारंभ से अब तक हज़ारों लोगों को AIDS पर जानकारी दी है।  

7. डाॅक्टर महिंदर वत्सा (१९२३/४ - आज तक)

९२ वर्षीय सेक्स विशेषज्ञ डाॅक्टर वत्सा हमें हमारे ज़िंदगी के लिये कुछ लक्ष्य देते है। उन्होंने बचपन पंजाब में गुज़ारा, और कुछ समय रंगून में। इसके बाद उन्होंने उनकी पढ़ाई बंबई में पूरी की, और कुछ समय इंग्लैंड में अस्पताल में जूनियर डाॅक्टर और रजिस्ट्रार का काम किया। हालांकि उन्होंने अख़बार में काँलम लिखना १९५० के दशक से शुरू किया था, उनका सबसे मशहूर काँलम शायद ‘आस्क द सेक्स्पर्ट’ रहा, जो उन्होनें ८० साल की उम्र में मुंबई मिरर के लिये शुरू किया। सन १९७२ में वत्सा ट्रेंड्ज़ नामक मैगज़ीन (जिसका नाम बाद में फेमिना रखा गया) के लिये एक काँलम लिख रहें थे। उन्हें सेक्स के बारे में सैकड़ों सवाल पूछे जाते, जो अक्सर युवतियाँ अपनी शादी से पहले भेजती, या वो महिलाएं भेजतीं जिनका मैथुनिक दुराचार हुआ हो। आखिरकार उन्होनें निर्णय लिया कि लोगों की परेशानियां इतनी गंभीर थीं कि उन्हें हल करने के लिये एक अलग मंच ज़रूरी था, और उन्होनें तय किया कि वो सेक्स्पर्ट बनेंगे। उन्हें पूछे गये वातोन्मादक और हिस्टेरिकल सवालों के उनके अक्सर कटू और मज़ेदार जवाबों ने उन्हें बहुत मशहूर किया है। उनकी किताब इट्स नाॅर्मल में वो कई घबराये हुए सवालों के उसी मिजाज के साथ उत्तर देते हैं। इन में से कुछ सवाल उन मर्दों से होते हैं जो उनके गर्लफ्रेंड के बदले ‘आय - पिल’ ख़ुद खा जाते हैं। यह रहा एक उदाहरण। “मैं इक्कीस साल का आदमी हूँ। पिछले हफ़्ते हस्तमैथुन करते समय मैं मेरे शिश्न को झुला रहा था। मैंने उसे उल्टा किया और उस पर बैठ गया। मैंने खट की आवाज़ सुनी, लेकिन कोई दर्द महसूस नहीं किया। क्या मेरा शिश्न टूट गया है?” इस सवाल का वत्सा का सीधा सादा जवाब था: “आप क्यों आपके शिश्न के साथ भांगड़ा करना चाहते हो? दुआ करो कि आपने उसे ज़ख़्मी नहीं किया है। दोबारा उस पर मत बैठना”।  

8. प्रकाश कोठारी (१९४२ - आज तक)

“मैंने वायाग्रा का नुस्खा लिखके कितनी शादियों को बचाया है”, कोठारी यूं शेखी मारते हैं। आज भारत के सर्वश्रेष्ठ सेक्स विशेषज्ञों में से एक, वो इस क्षेत्र में ४० साल से ज़्यादा रहे हैं। उन्होनें बंबई के KEM अस्पताल में भारत का पहला लैंगिक चिकित्सा विभाग स्थापित किया, और वो इंडियन ‘असोसियेशन आॅफ सेक्स एड्यूकेटर्स’ के संस्थापक अध्यक्ष हैं। उन्होनें ‘इरेक्टाइल डिस्फंक्शन’ /शिश्न उन्नत होने में परेशानी और प्रीमॅच्यूअर इजॅक्यूलेशन’ यानि, समय से पहले वीर्यापात, के बारे में चिंतित लोगों का इलाज किया हैं। उन्होनें ऐसे NRIs को भी सलाह दी हैं जो इस चिंता से उन्हें मिलने भारत लौटते हैं कि चूंकि पहली बार सेक्स करते समय उनकी पत्नियों के शरीर से ख़ून नहीं निकला था, वो शायद पहले सेक्स कर चुकी  हैं। उनके पास कामुक साहित्य का भी संग्रह हैं, जो उन्होनें तब जमा करना शुरू किया जब लेखक मुल्क राज आनंद ने उन्हें कांगरा के कुछ लघु चित्र दिये। इतने दशकों के बाद, उन्होनें यह भी कहा, “लोग मुझे वही के वही सवाल पूछते आ रहें है”। सन २००२ में उन्हें पद्म श्री पुरस्कार मिला।  

9. कैलाश पूरि (१९२४ - २०१७)

कैलाश पूरि की जीवनकथा ‘पूल आॅफ लाईफ’ उनकी ग़ज़ब कहानी बताती है कि कैसे उन्होनें १४ साल की उम्र में स्कूल छोड़ा, १५ साल की उम्र में लंडन में स्थित एक भारतीय से विवाह किया, कैसे उन्हें रावलपिंडी छोड़ना पड़ा इंग्लैंड जाने के लिये, और फिर कैसे वो अपने पति के साथ पश्चिमी अफ़्रीका चली गयीं। उनके पति के साथ १९५० के दशक में उन्होनें सुभागवती नाम की महिलाओं की मैगज़ीन शुरू की, और डाॅक्टर वत्सा की तरह समझ गयीं कि महिलाएं प्रेमकथा और सेक्स पर सवाल पूछ रहीं थीं। जल्द ही पूरि एक जानी-मानी सलाहकार और सेक्स विशेषज्ञ बनीं, और ब्रिटिश रेडिओ और टी वी पर भी पेश आयीं। महिलाओं ने उन्हें प्रेम पत्र भेजे और फोन भी किया। एक दफ़े वो बोलीं, “उन दिनों लोग कितने दबे हुए थे। महिलाएं उनकी शिकायतें या मुसीबतें दूसरों के साथ नहीं बाँट सकती थीं। वो सिर्फ कष्ट झेलती रहतीं। वो मैं थीं जिनके साथ वो आत्मविश्वास के साथ बात कर सकती थीं। वो मुझे हर किस्म के सवाल पूछतीं, सेक्स और प्रेमकथा को लेकर”। साफ साफ हर बात कहने के कारण उनकी किताब सेज उलझाना को कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। उनकी मृत्यु के पश्चात एक प्यार भरी श्रद्धांजलि में यह लिखा गया कि कैसे गुप्तांग या लैंगिक स्वास्थ्य विज्ञान जैसे शब्दों के लिये कोई पंजाबी शब्द ना होने से उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ा था; उन्होनें ख़ुद से नये शब्द बनाये। जघन के बालों को पश्म (रेशम) और भग-शिश्न को मदन छत्री (कामदेव की छत्री) कहा। क्योंकि ‘हर किस्म’ के सवाल के लिये हर किस्म के निपुण अनुवाद की ज़रूरत है।
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