जब हम किराए के घर में रहते हैं, हम उसकी देखभाल करते हैं, उसे साफ़ रखते हैं, शायद उसे सजाते हैं, यानी उसे अच्छी तरह से रखने के लिए कुछ तो करते हैं। अगर एक किराए का मकान इतनी देखभाल के लायक है, तो क्या जो लोग आकस्मातिक रिश्तों में होते हैं, वह इसके लायक नहीं? मैं उन सवालों के बारे में लिख रही हूँ, जो मेरे मन में घूमते आएँ हैं पर जिन्हें पूछने में मुझे हिचकिचाहट महसूस हुई है, लेकिन अब मैंने पूछना शुरू कर दिया है। आकस्मातिक रिश्ते - बिन बंधन के कॅज़ुअल संबंध- जिनको मेरे आसपास के सभी लोग अपने जीवन में आत्मीयता लाने का आदर्श तरीका मानते हैं। सब दिखाते तो ऐसा हैं जैसे कि वह इसका मतलब समझते हैं। पर क्या सच में ऐसा है? मुझे नहीं यकीन। तो मैंने दूसरों से इस बारे में बात करने का फ़ैसला किया।
मैंने २४ वर्षीय, विषमलैंगिक आकाश से पूछा कि वह आकस्मातिक रिश्तों को कैसे परिभाषित करता था। उसने कहा - "रोमानी तरीके से एक दूसरे के साथ जुड़े होना, एक जोड़े की तरह एक दूसरे का साथ देना, साथ में घूमना-फ़िरना, लेकिन बिना प्यार की अभिव्यक्ति या शादी का वादा किए।" मैं सोच में पड़ गयी: क्या मेरा सेट-अप आकस्मातिक, यानि बिन बंधन का संबंध है?अपने अनुभव का वर्णन करते हुए, आकाश ने कहा, "मैं फ़िर कभी ऐसा नहीं करूँगा, यह मेरे लिए नहीं है। जब मैंने इस तरह के रिश्ते में प्रवेश किया, सब कुछ एकदम अचानक और कॅज़ुअल सा हुआ था; वह अपने बॉयफ़्रेंड़ से ब्रेक-अप करने के बाद आई थी और मैंने सोचा, अब यह फ़िर माथा खाएगी, पर फ़िर हम एक दूसरे के साथ सोए और यूँ, मैं इस रिश्ते में आगे बढ़ता गया। मुझे वह बेहद पसंद आने लगी पर उसे सिर्फ़ एक अस्थायी शारीरिक रिश्ता चाहिए था। एकदम घमासान लड़ाई हुई थी रिश्ता खतम करते समय, काहे का कम्यूनिकेशन, कैसी बातचीत! मेरी भावनाओं की कद्र नहीं की गयी; वह पूछती रही, " तुमने हमारे समझौते को कैसे तोड़ दिया !" अगर "भावनाएँ" नहीं होतीं, तो हम अब भी साथ होते। मैं इसमें ,बिना यह सोचे कि यह कहाँ जाने वाला था, पड़ गया था - हालांकि मैं आकस्मातिक रिश्ते की उसकी परिभाषा से सहमत भी हो गया था। मैंने इस तजुर्बे से यह सीखा है कि एक कामयाब आकस्मातिक रिश्ते के लिए परिपक्वता और स्पष्टता तो एकदम ज़रूरी है।”
२६ वर्षीय विषमलैंगिक ज़ारा के लिए भी 'भावनाओं' का मुद्दा उठा था। "हमारे बीच सेक्स तो नहीं हुआ था, लेकिन सेक्सटिंग (सेक्स के ज़िक्र से भीगे हुए टेक्स्ट ) हो रही थी। पहले सब मज़ेदार था, लेकिन फ़िर मेरे अंदर भावनाएँ पैदा होने लगीं और मुझे यह सही नहीं लगा - अगर मैं ऐसी भावनाएँ महसूस कर रही हूँ, तो मेरे लिए आगे यह भावनाएँ मुश्किलें खड़ी करेंगी। वह मुझसे सिर्फ़ तब बात करता था जब उसका मन होता। मुझे पहले मेसेज करने की अनुमति नहीं थी, और इस बात से मुझे ऐसा लगता था कि जैसे मेरा इस्तमाल हो रहा था। तो मैंने सोचा कि नहीं, यह ठीक नहीं है। मुझे नहीं लगा कि यह रिश्ता लंबा चलने वाला था, तो मुझे इसमें प्रवेश नहीं करना था। उसने मुझे इस रिश्ते को कायम रखने के लिए मनाने की काफ़ी कोशिश की, और उसे यह बात जमी नहीं कि मैं इस पर रोक लगाना चाहती थी। यह रिश्ता एकदम अचानक से खत्म हो गया।”
यह सुनकर मैं अशांत और परेशान हो गयी। क्या मैं भी वही कर रही थी जो दूसरे दो लोगों ने मेरे दोस्तों के साथ किया था - उनके भावनाओं से भरे इंसानी रूप को अनदेखा करना? या फ़िर क्या मैं अपने सेट-अप के उस छोर पे थी जहाँ मैं खुद की भावनाओं को अनदेखा कर रही थी? अब आप सोच रहे होंगे, यह कौन सा सेट-अप है जिसका ज़िक्र मैं करती रहती हूँ। तो यह है एक झलक:
मैं एक ऐसे माहौल में बड़ी हुई जहाँ आपस में गले कम मिला जाता था पर एक बच्चे की तरफ़ लैंगिक चालें ज़्यादा चली जाती थीं, इसलिए मुझे यह विश्वास हो गया था कि मेरा शरीर गंदा है; यह 'प्यार' के नहीं 'सेक्स' के लायक था। सो आगे चलकर, जितना ज़्यादा मेरे शरीर को एक लैंगिक रूप से स्वीकारा जाता, उतना ही मैं उस अनुभूति को प्यार से अलग करती जाती थी। पर शायद ऐसा इसलिए भी था क्योंकि मैंने प्यार को सेक्स से अलग कर दिया था - एक गंदी चीज़ (जो मैं सेक्स को मानती थी) किसी निर्मल चीज़ का हिस्सा कैसे हो सकता था? शरीर जैसी अस्थायी चीज़, प्यार जैसी स्थायी, मतलब आध्यात्मिक चीज़ का हिस्सा कैसे हो सकता था? मेरे लिए, प्यार एक ऐसी चीज़ बन गया जहां शारीरिक संबंध होना बिल्कुल ज़रूरी नहीं था; असल में, मैंने एक लड़के में काफ़ी साल इसलिए दिलचस्पी रखी क्योंकि उसके साथ मेरा बौद्धिक संबंध था। मेरे लिए प्यार का मतलब सिर्फ़ भावनात्मक तरीके से शामिल होना था। अगर मैं अपने शरीर को नहीं स्वीकार रही थी, तो मैं प्यार के रूप में शारीरिक आनंदों को कैसे स्वीकार सकती थी? कॉलेज में जब प्यार की इस परिभाषा के साथ आगे बढ़ी, प्यार के विभाग में मेरे नंबर गोल ही रहे। एक बार मेरे साथ रिश्ता अचानक तोड़ दिया गया क्योंकि मैं सेक्स करने के लिए तैयार नहीं थी और एक बार इसलिए क्योंकि मैं बहुत जल्दी उस रिश्ते के बारे में भावनात्मक तरीके से सोचने लगी थी।
मैंने इस बात पर विचार किया कि प्यार में कॅज़ुअल होने का यह कौन सा गुण था जिसकी मुझमें कमी थी। क्या शारीरिक आनंद अपने आप में कॅज़ुअल थे या संबंध का अस्थायी स्वभाव उन्हें कॅज़ुअल बना देता था। क्योंकि ज़ाहिर तौर पर मुझे ऐसा रिश्ता चाहिए था जो भावनात्मक रूप से सम्पन्न और स्थायी था। एक बार भावनात्मक रूप से टूटने के बाद, मैंने फ़ैसला किया कि मैं अब से रिश्तों में भावनात्मक रूप से प्रवेश नहीं करने वाली थी। लेकिन फ़िर मैं कोई भी संबंध कैसे बना सकती थी? शारीरिक इच्छाएँ तो बुरी थीं ना? मैं भावनात्मक रूप से थक चुकी थी । बिना भव्य प्यार वाला सेक्स कुछ खास नहीं लगता था, क्योंकि मैं एक हिस्से को (शारीरिक भावनाएँ) अंदर दबा के रखती, और अपने आप को पल में पूरी तरह से बहने नहीं देती।
मतलब मैं आकस्मातिक रिश्तों की लोकप्रिय परिभाषा को अपने जीवन में लागू नहीं कर पायी थी। तो अब मैं क्या कर सकती थी? मैंने तरकीब निकाली - इसे बिना नाम दिए, 'सेट-अप' बुलाने की। मैं कहती रही कि "रिश्ता उलझा हुआ था"। अपनी शारीरिक इच्छाओं को फ़िर से अनदेखा करती रही, (क्योंकि यह तो गंदी हैं, सिर्फ़ बौद्धिक और भावनात्मक इच्छाएँ शुद्ध होती हैं!)
आकस्मातिक रिश्तों का सेट-अप (जिसकी आकस्मातिक्ता को मैं असल में अपना नहीं पा रही थी) गड़बड़ होता रहा, क्योंकि मैं उससे नाखुश रहती। मैं यूँ ही जताती रही जैसे मुझे इससे कोई फ़रक नहीं पड़ रहा था और 'असली भावनात्मक भागीदारी' को उस रिश्ते के बाहर ढूँढ़ती रही। हालांकि मेरा यह दावा था कि मैं लैंगिक रूप से मुक्त थी, कहीं पे मैं खुद अपने फैसलों को इज़्ज़त नहीं दे रही थी। साथ में, मैं अपने साथी और सिर्फ़ शारीरिक रूप से जुड़ने के विचार, दोनों को ही इज़्ज़त नहीं दे पा रही थी। मैं ‘कूल’ बनने का नाटक कर रही थी, लेकिन सच में ‘कूल’ महसूस नहीं कर रही थी।
इस परिस्थिति के साथ संघर्ष करते समय, मैंने सोचना शुरू किया कि क्या आकस्मातिक रिश्ते यूँ ही होते हैं? क्या इनमें लोग या अपने साथी को बुरा महसूस करवाते हैं या खुद बुरा महसूस करते हैं? क्या दूसरे लोग भी लेबल में विश्वास नहीं करते थे? क्या वह उसे लेबल करके उसे अलग तरह से परिभाषित करते थे? क्या प्यार की शारीरिकता को उसकी भावावेशता की तरह देखा जा सकता है? आखिर यह आकस्मातिक रिश्ता किस चिड़िया का नाम है और लोग इसपे कैसे बातचीत करते हैं? अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि, क्या मैं इस विचार से सहमत हो सकती हूँ? क्या शारीरिक आनंदों जैसे क्षणिक एहसास प्यार कहलाए जा सकते हैं ? क्या प्यार का अमर होना ज़रूरी था?
२४ वर्षीय समलैंगिक पुरुष, रोहन, ड़ेटिंग अॅप्स के ज़रिए आकस्मातिक रिश्ते बनाने लगा, ख़ासकर इसलिए कि यह योजना उसे काफ़ी ‘कूल’ लगी थी। वह आकस्मातिक/कॅज़ुअल रिश्तों को कुछ इस तरह परिभाषित करता है: "मेरे कमरे के बाहर, ना आप मुझे जानते हैं, ना मैं आपको। आपको सिर्फ़ एक दूसरे की इच्छाओं को जानना ज़रूरी है, और कुछ नहीं। हम सिर्फ़ तब बात करेंगे जब हमारे पास समय हुआ और सिर्फ़ इस बारे में कि हम अगली बार कब मिलने वाले हैं।”
वह अपने अनुभव का कुछ इस प्रकार से वर्णन करता है: "आकस्मातिक रिश्तों के दो गतिरोधक हो सकते हैं - या प्यार हो जाना या ऊब जाना ।जब मैं किसी से ऊब जाता या यह देखता कि वह मुझे पसंद करने लगा था, मैं उन्हें ना मिलने के बहाने बनाने लगता और उनसे बचने लगता जिसका असर कुछ उलटा ही होता। अब दूसरा मुझ तक पहुँचने की बार-बार कोशिश करने लगता जिससे मुझे बहुत चिढ़ होती। मेरे प्रतिरोध के बावजूद मुझे उससे एक ईमानदार तरीके से बातचीत करनी पड़ी और एक आपसी सहमती से किए हुए फ़ैसले के बाद, रिश्ता ख़त्म हो गया।” वह आगे कहता है, "आप सिर्फ एक आकस्मातिक रिश्ते में नहीं रहने वाले हैं। जलन सेट-अप को खराब कर देती है और आपको आखिरकार किसी को चोट पहुँचानी पड़ती है। आपको सरल तरीके से लोगों से कहना चाहिए कि मुझे यह चाहिए और मेरी यह ज़रूरतें हैं।" जब उसने कहा, "आज कल के टाईम में, जब आपका काम आपको अलग-अलग जगह ले जाता है, आकस्मातिक रिश्ते एक अच्छा तरीका बन सकते हैं इच्छाओं को पूरा करने के लिए।", तब मुझे बहुत बढ़िया लगा कि कोई सच-मुच अपनी शारीरिक इच्छाओं को स्वीकार रहा है, पर जब मैं बात की गहराई तक गयी, उसने कहा, "इससे मैं कितना डे़स्परेट लगता हूँ, मुझे दुख होता है! आकस्मातिक रिश्ते प्यार के बारे में नहीं, शारीरिक इच्छाओं बारे में हैं।”
उसको अपने अनुभवों के बारे में बात करते सुन, मैंने सोचा क्या प्यार और कामना सच में दो बिल्कुल अलग चीज़ें हैं। क्या वह एक दूसरे का हिस्सा नहीं हैं? क्या छूना और गले लगना भी प्यार भरे तरीके से शारीरिक अभीव्यक्ति नहीं है? क्या हमारे शरीरों को समय-समय पर प्यार की भूख नहीं होती?
२२ वर्षीय, उभयलिंगी, पॉलीअॅमरस (कई लिंग/जेंडर के लोगों से आकर्षित हो सकते हैं पर सभी से नहीं), प्रिया ने मुझे बताया, "मैं एक पार्टनर के साथ बोर/ऊब जाती हूँ और पारंपरिक रिश्ते मेरे लिए नहीं बने हैं। मैं ऐसी इंसान हूँ जो एक किस्म के लोगों से जल्दी ऊब जाती हूँ। मुझे और अनुभवों की ज़रूरत है, फ़िर मैं जवान भी थी, मुझे एक इंसान के साथ हमेशा के लिए नहीं रहना था।” वह आकस्मातिक रिश्तों को ऐसे परिभाषित करती है: "बिना रोमानी भावनात्मक संबंध बनाए सिर्फ़ शारीरिक रिश्ता बनाना। आकस्मातिक रिश्तों ने मेरी चिंताओं का निवारण करके, मुझे अपनी पढ़ाई में फोकस करने में मदद की है।” क्या भावनाएँ हमेशा जटिलता की निशानी होती हैं? वह इसका जवाब यह कहके देती है, "मैं अब एक सीरियस रिलेशनशिप में हूँ, तो मुझे लगता है मेरे लिए सब इस पर निर्भर करता है कि इंसान अपने जीवन में अभी कहाँ है, और उसे जीवन से क्या चाहिए।”
अनेक रोमानी और लैंगिक पार्टनर को कामयाबी से संभालने की बात करते हुए उसने कहा, "सबका लूप में होना और जो हो रहा है उसके बारे में जागरूक रहना ज़रूरी है। मैं मालिकाना और ईर्ष्यालू किस्म की नहीं हूँ, पर कुछ लोग इन भावनाओं की चपेट में आकर काफी शोषण भी करते हैं। पहले ऐसों को संभालना अजीब लगता था, पर अनुभव के साथ यह आसान होता गया। अब मैं अपने जैसे नज़रिए वाले लोगों को ही चुनती हूँ, ऐसे लोग जिन्हें रिश्ते से वही चीज़ें चाहिए जो मुझे चाहिए।” वह अजनबी के साथ आकस्मिक रिश्ते जोड़ने और ‘अच्छी दोस्ती, सूद समेत’ की संकल्पना में फ़रक करती है। "अजनबी से काफ़ी कम अपेक्षाएँ होती हैं। जब आपकी प्राथमिकताएँ बदल जाती हैं, आप साफ-साफ शब्दों में कहकर बात ख़तम कर सकते हैं।"दूसरी तरफ़, २९ वर्षीय, विषमलैंगिक, अंजली को लगता है कि दोस्तों के साथ बात आसान हो जाती है। वह कहती है, "फ़ायदे वाले दोस्तों के साथ परिचित होने के कारण सहजता महसूस होती है।" वह आकस्मातिक रिश्तों को परिभाषित करते हुए कहती है, "सार्वजनिक जगहों में दोस्त, निजी जगहों में शारीरिक रूप से शामिल।” वह ७ साल से एक लंबे रिश्ते में है और पिछ्ले एक साल से उसी व्यक्ति के साथ एक ओपेन रिश्ते में। पिछले एक साल में उसके कुछ समानांतर पार्टनर भी रह चुके हैं। वह मानती है कि, "उन्हें यह जानने की ज़रूरत नहीं है कि मैं और किसके साथ सो रही हूँ, बस उनके लिए सिर्फ़ इतनी जानकारी काफ़ी है कि मैं उनके साथ भावनात्मक रूप से शामिल नहीं हूँ।” अपने संपूर्ण अनुभव के बारे में बात करते हुए वह कहती हैं, "मेरा अनुभव यहाँ, भारत के बाहर, काफ़ी आसान और सुलझा हुआ रहा है। मुझे शादी नहीं करनी पर इसका मतलब यह नहीं है कि मेरी कामनाएँ नहीं हैं। आकस्मातिक रिश्तों में मुझे अपने दम पे रहना अच्छा लगता है।" वह मानती है कि, "दूसरे व्यक्ति के साथ एक स्पष्ट, आदरकारी और ईमानदार संचार करना हमेशा सहायता करता है।"
प्रिया और अंजली की बातें सुनके, मुझे इस बात का एहसास होता है कि मैं अपने आकस्मातिक रिश्ते में ‘अच्छी दोस्ती, सूद समेत’ की स्थिति में हूँ। इससे मेरा मतलब है हमारा रिश्ता खुला है, मैं बिना 'स्थायी प्यार' में पड़े, अपने शरीर को संतुष्टि दे रही हूँ। यह मुझे एक दोष लगता है और इस भावना की वजह से मैं अपने दोस्त के प्रति मेरी स्नेह की भावनाओं को स्वीकार नहीं पा रही थी। यह दोनों औरतें अपने शरीर की जरूरतों को स्वीकारती हैं और अपनी कामनाओं को समझती हैं। प्यार स्थायित्व में नहीं, पर उन छोटी चीज़ों में है जो हम सब करते हैं यह दिखाने के लिए कि हमें परवाह है - जैसे गले मिलना, चूमना, एक कार्ड़ भेजना, एक दूसरे को छाती से लगाना या एक बिल्कुल आरामदायक ख़ामोशी। मैंने खुद को विभिन्न प्यार में पड़ने वाले व्यक्ति के रूप में देखने लगी हूँ और इसमें कोई हर्ज़ नहीं है। मैं यह समझने लगी हूँ कि मेरा शरीर प्यार की कामना रखता है और यह भी ठीक है। मैं यह समझने लगी हूँ कि प्यार किसी 'सदा खुशी खुशी' रहने का नाम नहीं, लेकिन वर्तमान के उतार-चढ़ाव के मज़े लेने का नाम है। मैं इस विचार से दोस्ती कर रही हूँ कि मैं जितना अपने शरीर से प्यार करूँगी, उतना ही बहतर प्यार को समझूँगी!
मैं: "सुनो, तुम्हें क्या लगता है? ज़्यादा उचित क्या होगा- क्या हम अब रोमानी रिश्ते में रह सकते हैं, या फिर इस रिश्ते की आकस्मातिकता से परे जा सकते हैं? मुझे तुम्हारे लिए कुछ महसूस होने लगा है, और इसलिए मेरी तुमसे उम्मीदें बढ़ रही हैं।”
वह: "मुझे निश्चित रूप से इसे ख़त्म नहीं करना लेकिन रोमानी रिश्ता...पता नहीं, मैंने इस बारे में सोचा नहीं है ..हमारे पुराने समझौते की वजह से भी।”
यह वह बातचीत है जो मैंने इन कहानियों को सुनने के कुछ दिन बाद अपने 'सेट-अप' वाले पार्टनर के साथ की।आप देख रहें हैं, मैं आखिरकार "आकस्मातिक रिश्ते" वाक्यांश का इस्तमाल कर पायी ।और इसके साथ ही अपने शारीरिक सुख की मेरी लालसा को उन भावनाओं के साथ स्वीकारा जो बदल रहीं हैं। और उसपे चर्चा करने का जोखिम उठा के - मुझे बहुत अच्छा लगा।
इन कहानियों से मेरा निचोड़ सरल है; जितना ज़्यादा मैं अपने शरीर का आदर करती हूँ, उतना ही मैं अपने आप का आदर करती हूँ और दूसरे व्यक्ति का भी! और जहाँ तक दूसरे व्यक्ति की भावनाओं का सवाल है, हमें उसका ध्यान रखना चाहिए, भले ही हम उस जैसा महसूस ना करें।
और आखिर में, क्योंकि लोगों को टिप्स पसंद हैं, यह हैं कुछ टिप्स जो मेरी समझ से एक आदरपूर्ण और सुचारू रूप से चलने वाले कॅज़ुअल रिश्ते के लिए उपयोगी हैं:
"आपको रिश्ते से क्या चाहिए, इस बारे में स्पष्ट रहें।"
"ऐसे लोगों को चुनें जिनकी सोच आपसे मिलती हो।"
"अगर आपको आकस्मातिक रिश्तों में शर्म आती है या दोष लगता है, तो इनसे दूर रहिए।"
"परिस्थिति को परिपक्वता से संभालें।"
"सचमुच सरल रहें - खेल ना खेलें. अगर आपकी भावनाएँ बदलती हैं, तो उसके बारे में बात करें।"
"अगर दूसरे व्यक्ति की भावनाएँ बदलती हैं, उन्हें शर्मिंदा ना करें, पर उनसे बात करें ओर ध्यान से देखें, कि आगे बढ़ने का समय आ गया है या नहीं।"
नित्या मास्टेर्स प्रोग्राम (स्नातकोत्तर उपाधि) की छात्रा हैं, उन्हें अपने खाली समय में पुरानी जीन्ज़ से झोले बनाने का शौक है। उन्हें पहाड़ और रंग, दोनों बेहद पसंद हैं।
'कॅज़ुअल' संबंधों ने मुझे प्यार और सेक्स के बारे में क्या सिखाया
A young woman asks some 'un-cool' questions about NSA relationships
नित्या पवार द्वारा
चित्रण: अयंगबी मानेन
अनुवाद: तन्वी मिश्रा
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