मैं मोटी हूँ, पचास के पार हूँ और मेरे नब्बे प्रतिशत बाल सफ़ेद हैं l मैं पिछले 23 वर्षों से अपने बालों को रंग रही हूँ, और मैं हर हफ़्ते अपने बालों को रंगने से अब निराश और थक-सी गई हूँ।
जब मैं एक स्कूलगर्ल थी, मेरी एक दोस्त, जो फ़ैशनपरस्त होना चाहती थी, ने मुझसे पूछा था कि क्या मैं अपने बालों को ब्लीच करती हूँ, क्योंकि मेरे बाल सामने से हल्के भूरे रंग के थे। ये 1980 के दशक की बात है, और तब तक मैंने ब्लीच के बारे में कुछ सुना भी नहीं था। मैं बीस-कुछ साल की थी जब वो हल्के भूरे रेशे सफ़ेद होने लगे, इंदिरा गाँधी स्टाइल, और मैं घबरा गई। सफ़ेद बाल रखना! यानी बुड्ढा हो जाना और अनचाहा बन जाना । इसलिए मैंने तीन रुपयों में काली मेंहदी का एक पैकेट ख़रीदा (गोदरेज हेयर डाई भी उपलब्ध था, और वो एक सुरक्षित विकल्प था, पर उस वक़्त वो मेरे हिसाब से बहुत मँहगा था) और मैंने यूं ख़ुशी-ख़ुशी प्रकृति के क्रम को दे पलटा। 24 साल की नाज़ुक उम्र में मेरे बालों को रंगने के दिन शुरू हुए।
जब मैं अधेड़ उम्र की हुई, तो मेरे सारे दोस्त भी अपने बालों को रंगने में जुटे थे। सबके मन का ये डर हमें एकजुट कर रहा था कि सफ़ेद बालवो बला है जो हमें झट-से एक फीकी-सी माता जी का दर्जा दे देगा । सामने के सफ़ेद बालों का सर पर से झाँकना, बिलकुल नहीं ! ये तो इशारा है कि चढ़ती उम्र पर कोई लगाम ही नहीं रखी। वो एक लाल झंडे की तरह है जो आपकी पराजय का ऐलान कर रहा है। इसलिए आप हम लोगों को अक्सर सुपर मार्केट की दराज़ों पर चुहिया-सी इधर उधर फुदकती हुई पाऍगे….अमोनिया युक्त, सैलून में डाई किये जैसे दिखने वाले बालों के रंग की खोज में, साथ-साथ शैम्पू और कंडिश्नर की भी खोज में जो उसके साथ इस्तेमाल किए जा सकें। हममें से ज़्यादा अमीर, ब्यूटी पार्लर्स में हज़ारों ख़र्च करती हैं, अपने जूड़ों में भूरे, सुनहरे और बरगंडी रंगों की धारधार रेखाएँ बनवाने में, ताक़ि उनके बाल भी फैशन के दौर अनुसार रहें। किसी के बालों को रंगना रेखाओं और झुर्रियों के अतिक्रमण को रोकने की सबसे आसान विधि है। जब तक देव आनंद की तरह आपके पास गहरे काले बालों का झुण्ड है, वो ज़माने को घोषित करता रहेगा कि आप जवान और जोशीले हैं - और साथ ही आकर्षक भी।
मुझे इस बात का गुस्सा भी है कि मेरे पति को जननिक/जेनेटिक वरदान-सा मिला है, जिसने उसके बालों और उसकी काया को जवान बना रखा है, इसके बावजूद कि वो मुझसे एक दशक बड़ा है। दूसरी ओर, मुझे, न चाहते हुए भी अजीबोग़रीब व्यायामों का सहारा लेना पड़ता है, अपने आप को जवान बनाए रखने की कोशिश में। मेरे वो सारे हमउम्र जो मेरी तरह अपने बालों को डाई करते हैं , और इसे पढ़ रहे हैं, समझ जाऍगे कि मैं किस बारे में बात कर रही हूॅ। आप रंग तैयार करते हैं, अपने शरीर को टेढ़ा-मेढ़ा करते हुए उसे लगाते हैं, जिससे कि हो सके आप अपने सिर के पिछले हिस्से को देख सकें (और आख़िर में उसे भगवान भरोसे छोड़ देते हैं), फिर रसायनों भरे अपने सिर को लेकर असंगत तरीके से टीवी देखते हुए इंतज़ार करते हैं, तब आप उसे धोते हैं, शैम्पू करते हैं फिर कंडीशन। ये सारी प्रक्रिया एक मुश्किल आज़माईश है। सोनम कपूर झूठ कहती है जब वो चहकती है कि “ बाल रंगना बड़ा मज़ेदार है। “ उसका यक़ीन मत करना। और जब मैं दिल्ली की नज़दीक आती सर्दी के बारे में सोचती हूँ, जबकि नहाने की कल्पना ही वीभत्स होती है, और मैं हफ्ते में सिर्फ़ एक ही बार नहाकर काम चलाती हूँ, ऐसे में बाथरूम में हेयर डाई के संग एक घंटे से ज़्यादा युद्ध करने का ख़्याल भी बोझिल लगता है।
और फिर, पिछली जुलाई, कुछ ऐसा हुआ जो मुझे इसे पूरी तरह से बंद करने के और क़रीब खींच लाया। मुझे ब्रेन एनुअरिज़्म (दिमाग़ी धमनी विस्फार) हुआ और मैं दस दिनों के लिए अस्पताल के बिस्तर पर लिटा दी गयी, ऑपरेशन के लिए और ख़ास देख-रेख के लिए भी, जिसने मेरे बाल-रंगने के कार्यक्रम को उलट-पुलट डाला। आई.सी.यू. में अपने ऊपर नलियों का बोझ लिए बिस्तर से बंधीहोने से अपनी जड़ों को टच-अप करना मेरे लिए ख़ासा नामुमकिन हो गया। मेरे बाल काफ़ी तेज़ी से बढ़ते हैं, इसलिए जल्दी ही डेढ़ इंच की एक गहरी सफ़ेद जड़ मेरे घने काले बालों के नीचे से झाँकने लगी। मैं आईने पर नज़र दौड़ाती - ओह - और तड़प के कहती, “ हे भगवान, मुझे मौक़ा मिलते ही अपने बालों को रंगना होगा “ | वो अंतराल लम्बे से लम्बा होता गया, तो बस आखिर में मैंने एकबएक ये फ़ैसला किया कि अब तो हद की भी हद हो गई है। और ये समझा कि यही अवसर है अपने भले के लिए उस बकवास से पीछा छुड़ाने का।
ये फ़ैसला लेना मेरे लिए तो बहुत आसान था, लेकिन मुझे इसकी कोई भनक नहीं थी कि मैं दूसरों की नज़रों में कैसी दिखूँगी। ऑपरेशन के बाद, बहुत से दोस्त मुझे देखने के लिए आए । मैंने उनसे ये सवाल किया, “ तुम्हारी क्या राय है? मैं अपने बालों को रंगना बंद करना चाहती हूँ “| मैं ये उम्मीद कर रही थी कि वो सब मेरा उत्साह बढ़ाते हुए कहेंगे “ ओह बहुत ख़ूब ! तुम ऐसे ही ज़्यादा अच्छी दिखती हो, डाई तुम्हारे बालों के लिए नुकसानदेह है वगैरह-वगैरह “ तो मैं अपने निर्णय से स्वयं को दोषमुक्त महसूस करुँगी।
ऐसा कुछ नहीं हुआ। उल्टा ज़्यादातर लोगों ने मुझे तिरछी निगाहों से देखा, और उनकी नज़र में कुछ ऐसा भाव था कि उनके साथ धोखा हुआ था … कि उन्हें अब सब कुछ समझ में आ रहा था। “ओह तो तुम बाल रंगती हो ?” हालाकि मेरे बालों की सफ़ेद जड़ें साफ़ नज़र आ रही थीं। मेरा जवाब हाज़िर था “ बीस कुछ साल की उम्र से ही मेरे बाल सफ़ेद होने लगे, बिल्कुल मेरी बेटी के बालों की तरह।” वो कहते, “ ओह अच्छा ? वैसे ये ख़राब तो नहीं दिख रहा पर मेरी समझ से तुम कलर करना जारी रखो। ” यानी मैं उनसे निराश हुई और वो मुझसे निराश हुए। मेरे पति और बेटी को छोड़कर, हर किसी की प्रतिक्रिया में नापसंदगी थी, ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं समूह से नाता तोड़ भाग निकल रही थी।
अपनी माँ के साथ फ़ोन पर, मैंने आशापूर्ण होकर इस पुरी कहानी को दोहराया। मैंने उसे अपना पूरा प्लान बताया तो जवाब में यही सुनने को मिला - “ तोर दिके आमी ताकते पारबो ना ! आमी बेंचे थाकते-थाकते तुई शादा माथा कोरिश न ( मैं तुम्हारी ओर देख नहीं पाऊँगी ! मेरे ज़िंदा रहने तक तुम अपना सर उजला नहीं करोगी।” ऐसे जैसे कि मेरा सफ़ेद हो जाना उसके बुढ़ापे को दोगुना कर देगा। और किसी स्त्री के लिए बूढ़ा हो जाना कुछेक वजह से सबसे बुरा भाग्य माना जाता है। उसके जवाब ने मेरा इरादा और मज़बूत कर दिया,सच कहूँ तो इसकी असली वजह मेरा जन्मजात अक्खड़पन है- जो कुछ माँ कहती है, मैं उसका ठीक उल्टा ज़रूर करुँगी, चाहे मैं पंद्रह की रहूँ या पचास की। और अब जबकि मैं वृद्ध हो चुकी हूँ, तो उम्र किसी भयावह मुक़द्दर के जैसी नहीं लगती जिसे कि छुपाया जाए।
लेकिन अपने आप को सफ़ेद बालों वाला होने देने की प्रक्रिया का मतलब है, हर दिन अपनी सफ़ेद लटों के प्रतिशत को मापना। इसी कुंठा में, मैंने अपने हेयर ड्रेसर को सारा ब्लीच कर डालने को कहा। वो ठिठक गया और बोला, “ नहीं नहीं, वो आपके बालों को बहुत खुरदुरा कर देगा, इनको ऐसे ही बढ़ने दीजिए। ” तब मैं समझ गयी कि बाल कटाने ही पड़ेंगे। मेरा प्लान था कि बालों को इतना छोटा कटवा लूँ कि सिर्फ़ सफ़ेद जड़ें ही बचें, कुछ यूं सपना देखते हुए कि मैं नफ़ीसा अली सी हो जाऊंगी, जिसने तिरुपति में अपने सारे बाल मुंडवा डाले और बाल रंगने को सदा के लिए गुडबाई कह दिया। मेरी बेटी ने विलाप किया, “ मॉम तुम्हें एक बज़ कट (इलेक्ट्रिक कटर से एकदम छोटे किये बाल) लेना होगा। तुम या तो एक नन्ही चिड़िया जैसी लगोगी या बहुत बुरा हुआ तो, सलमान ख़ान जैसी ! ”
मैं पिघल गई, पर नज़र बचाते हुए बग़ावत का एक मौक़ा ढूँढती रही। एक मॉल में यूँ ही घूमने जाने के दौरान, मैं एक काँच लगी दुकान के सामने से गुज़री जिसपर विज्ञापन था, “ फटाफट बाल कटवाएँ मात्र 99 रुपयों में ! ” मैं अंदर गई, अपनी बेटी को अपने पीछे खींचते हुए। मैंने आज तक का सबसे अजीबोग़रीब हेअरकट कराया, मगर अब, जैसे जैसे मेरा हेअरकट बढ़ा है और सुव्यवस्थित हुआ है , मेरा सर एक पेंगुईन चिड़िया सामान लग रहा है, आधा काला
और आधा काला, बिलकुल शतरंज के एक बिसात के जैसे। मुझे याद आती है वो कविता, जो मैंने एक ब्रिटिश चिल्ड्रेन्स पत्रिका में पढ़ी थी, जब मैं आठ साल की थी, और मैंने हेयर डाई के विषय में कुछ भी नहीं सुना था।
मैं एक छोटी पेंगुईन
नाटी और मोटी।
सफ़ेद मेरे आगे का भाग
और काला मेरे पीछे का भाग
अपने जीवन के अनुभवों के साथ, अब मैं इसमें कुछ फेर-बदल करना चाहूँगी।
मैं एक छोटी पेंगुईन
उजली और काली
मैंने रंगना बंद किया
मैं नहीं अब लौटने वाली।
मैं यूँ ही हूँ, यूँ ही दिखती हूँ, और पचास कुछ की मैं, अपने रूप-रंग से ख़ुश हूँ।
सुमिता 24 वर्षों से एक शिक्षिका रही हैं। अब, वे दूरस्थ/ ऑफ़ बीट जगहों पर जाती हैं और अपनी यात्राओं के बारे में लिखा करती हैं।
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मैं सोचती थी, डाई करके (बालों को रंगके) जवान दिखना मुझे ज़्यादा आकर्षक बना देगा। 23 वर्षों तक करके देख लिया, अब मैं ये रोकने के लिए तैयार हूँ ।
Trying to hide white hair now seems like an avoidable agony
लेखन : सुमिता भट्टाचार्य
अनुवाद: रोहित शुक्ला
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