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डिजिटल चाहत और कानून - एक खोज

डिजिटल आज़ादी और कामना पर कानूनी नजरिया

वो दिन बीत गए, जब इंटरनेट हमें एक आज़ाद दोहरी जिंदगी जीने का ऑप्शन देता था। जहां हम बहुत ही कम पैसे में एक ऐसा कोना पकड़ कर बैठ सकते थे जिसमें किसी से साथ डायल-अप कनेक्शन करना, अपनी पहचान गुप्त रख पाना,  फ़टाफ़ट कोई जानकारी संक्षिप्त रूप में पा लेना- सब आसान था। और तो और ,कुछ रोमांचक कनेक्शन बनने की भी संभावना रहती थी, जिसे हम साइबर अंतरंगता बुला सकते हैं आज के डिजिटल दौर में इंटरनेट की दुनिया में हमें कितनी आज़ादी है, ये, जिस देश में हम इंटरनेट इस्तेमाल कर रहे हैं, उस देश के गवर्नेंस/शाषन मॉडल पर निर्भर करता है। और जब बात सेक्सुअल अभिव्यक्ति की हो, तो डिजिटल स्पेस को कंट्रोल करने वाले कानून और अधिकार हमारी डेमोक्रेसी के बारे में बहुत कुछ ज़ाहिर करते हैं।  क्या आपके मन में कभी कभी ये ख़याल आता है , कि जब आप इंटरनेट पर अपनी मर्ज़ी और मन से  भ्रमण करते हैं, तो क़ानून आपको किस नज़र से देखता है ? वो कौन से अधिकार या कानून हैं जो आपकी साइबर गतिविधियों को प्रभावित कर सकते हैं? साइबर स्पेस में सेक्सुअल खोजबीन करने से संबंधी कानून पर एक नज़र मारते हैं:    

इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट (Information Technology Act) की धारा 67 के मुताबिक, इंडिया में किसी भी तरह की "अश्लील" जानकारी को इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रकाशित करना, या सेक्सुअल प्रक्रिया की कोई तस्वीर शेयर करना, एक अपराध है। भले ही आप अपनी या दूसरों की मर्ज़ी  से ही ये काम करें, आप फिर भी अपराध के दायरे में रहेंगे। तो समझ लीजिए- मर्ज़ी से शेयर किया गया सेक्सी सेल्फी या वीडियो भी अपराध माना जाएगा। लेकिन अश्लील है क्या? जैसा कि फिल्म निर्माता और एक्टिविस्ट बिशाखा दत्ता इस वीडियो में बताती हैं, कि बिना ये देखे कि कोई सेक्सुअल कंटेंट, उससे संबंधित लोगों की मर्ज़ी  से बनाया गया है कि नहीं, उसे 'अश्लील' करार कर दिया जाता है। ऐसे में लोग उसे देखने से हिचकिचाते हैं। पर ऐसा कर के लोगों की रक्षा नहीं होती है। बल्कि ये 'अश्लीलताका लेबल, अपनी मर्ज़ी से अपने लिए निर्णय ले पाने की ताकत को ख़त्म कर देता है, खासकर महिलाओं और क्वीयर लोगों के लिए । ऐसे कैसे? तो सुनिए। कानूनी किताब के हिसाब से ऐसे केस में, जिस व्यक्ति की तस्वीर बरामद होती है, उसी को अश्लील करार कर दिया जाता है। जो खुद पीड़ित है, उस पर ही "सार्वजनिक नैतिकता" को नुकसान पहुंचाने का इल्ज़ाम लगता है। येसमाज की नैतिकता’ वाली सोच, हर सेक्स संबंधी मामले को सेंसर करना चाहती है l इससे अक्सर पीड़ित ही समाज की नज़र में अपराधी बन जाता है। इस तरह, कानून ये देख नहीं पाता कि किसके साथ बुरा हुआ है, उलटा ऐसा हो सकता है कि वो पीड़ित को ही अश्लील कंटेंट का दोषी मानकर उसे और नुकसान पहुंचाने में शामिल हो जाए।   

बिल्कुल! आई.टी. अधिनियम की धारा 66E के अंतर्गत मर्ज़ी  को मान्यता दी गई है। ये धारा इसका उल्लंघन करने वालों को दंडित करती है। इसमें कहा गया है कि किसी की मर्ज़ी  के बिना उसके शरीर के प्राइवेट अंगों की तस्वीरों को शेयर करना दंडनीय अपराध है।  इसलिए, अगर आपकी तस्वीरें आपकी मर्ज़ी  के बिना शेयर या पोस्ट की जाती हैं, तो आप कानून की मदद ले सकते हैं। लेकिन एक स्टडी के हिसाब से 2009 के बाद से, बिना मर्ज़ी  के फोटो शेयर करने वाले अधिकांश मामलों को अश्लीलता कानून (आई.पी.सी. की धारा 292 और धारा 67) के तहत दर्ज किया गया। ये मामले नॉन-कंसेंसुअल (Non-consesual/बिन मर्ज़ी के) प्राइवेसी उल्लंघन कानून (जिसके बारे में हमने ऊपर बात की), के तहत नहीं दर्ज़ किये गए तो ऐसे में, और जैसे कि हमने इससे पहले बात की, पीड़ित को नुक्सान पहुँच सकता है।    

वैसे तो इंडिया में प्राइवेट तौर पर पोर्नोग्राफी देखने पर कोई पाबंदी नहीं है।  लेकिन 2015 में, सरकार ने 800 से ज्यादा पोर्न और फ़ाइल-शेयरिंग वेबसाइटों को ब्लॉक कर दिया। फिर वापस 2018 और 2019 में नए सिरे से कई और पोर्न साइटों को ब्लॉक करने की कोशिश में लगी। शायद, यहां भी मर्ज़ी  को मद्देनजर रखकर, जबरन पोर्न बनाने या देखने-दिखाने पर रोक होनी चाहिए। किसी की निजी नैतिकता को इससे नहीं जोड़ना चाहिए। किसी भी इंसान की धारणाओं को और उसके हर तरह की जानकारी हासिल करने के अधिकार को, ध्यान में रखना चाहिए। क़ानून को अपराधियों को सज़ा देनी चाहिए l लेकिन नैतिकता की आड़ में सार्वजनिक रूप से सेंसरशिप लगाना, ये सही नहीं! वैसे तो इंडिया में प्राइवेट तौर पर पोर्न देखना कानूनी है, लेकिन पोर्न बनाना नहीं।  हालाँकि, अगर आप अपने घर पर, अपने प्राइवेट काम के लिए, पोर्न बनाते हैं, तो वो कानूनी है। बस उसे आप किसी के साथ शेयर नहीं कर सकते। यानी पोर्न तब कानून के दायरे में है जब:  - आप अपने पोर्न में खुद ही लीड रोल में है (और उसे देखने वाले दर्शक भी सिर्फ आप हैं)  - आप किसी की मर्ज़ी  से उसके साथ पोर्न बनाते हैं। (दर्शक सिर्फ वही हों जो उस वीडियो में खुद मौजूद हों) और वीडियो कहीं पोस्ट करने के इरादे से ना बनाया गया हो। किसी को जानबूझकर या अनजाने में उसकी मर्ज़ी  के बिना पोर्न दिखाना भी एक दंडनीय अपराध है। और अगर आप मर्ज़ी  लेकर भी किसी सार्वजनिक/सोशल मीडिया पर उसे शेयर करते हैं, तो भी उसे अश्लीलता माना जायेगा और आप कानून के लपेटे में सकते हैं।   

वैसे तो पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल 2019 (PDP बिल, 2019) के अंतर्गत किसी की निजी, ‘सेंसिटिव व्यक्तिगत जानकारी' हासिल करने के लिए, उस व्यक्ति की स्पष्ट रूप से मर्ज़ी और मंज़ूरी लेना, अनिवार्य है। लेकिन जब वो डेटा सरकार और राज्य सम्बन्धी मामलों के लिए ‘ज़रूरी’ है, तो फिर मर्ज़ी को ये माना जाता है, तो मंज़ूरी को उतना महत्त्व नहीं दिया जाता। मतलब? प्रस्तावित बिल की धारा 35 के हिसाब से, जहां बात राज्य सुरक्षा या पड़ोसी देशों से सांठ-गांठ की हो, सभी सरकारी एजेंसियों को नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा छानने की पूरी आज़ादी  है। इससे राज्य बिना कारण बताए किसी की भी प्राइवेसी तितर-बितर कर सकता है। यानी कि डिवाइस पर उपलब्ध हमारी प्राइवेट जानकारी का दुरुपयोग भी किया जा सकता है। जैसा कि हाल ही में एक मामले में देखा गया था जब व्हाट्सएप ने कार्यकर्ताओं, वकीलों और पत्रकारों के खिलाफ स्नूपिंग (बिना मर्ज़ी  के किसी की प्राइवेसी में झांकना) की सूचना दी थी।

9 नवंबर 2020 से पहले, OTT स्पेस (जैसे कि नेटफ्लिक्स, यूट्यूब आदि) में ऑनलाइन या डिजिटल कंटेंट पर सिर्फ IT अधिनियम लागू होता था। लेकिन अब, डिजिटल मीडिया स्पेस को सूचना और प्रसारण मंत्रालय के दायरे में डाल दिया गया है। अब हम सबने ये तो देखा ही है कि फिल्म, टी.वी. या रेडियो पर सेक्सुअल कंटेंट को लेके सेंसरशिप का एक इतिहास रहा है ! तो लगता है बस यही हाल अब OTT का होगा।  
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