बहुत हुआ, अब सेक्स करते हैं - कला और कामना के बारे में कविताएं
लेखन : शारदा
चित्र: आलिया सिंहा
अनुवाद: प्राचिर कुमार
1. आर्ट और वासना जा मिलते हैं
शेयर मत करो
गिड़गिड़ाने दो, उन्हें
घुटने पे उनके आने दो
शेयर ना करो
उन्हें देखने दो
जब तुम औरतों से नफरत और कट्टरपन, दोनों की एक साथ लेते हो | ज़िम्मेदार तिकड़ी इसे तो कहते हैं|
शेयर मत करो
मुठ मारने दो लड़के को
उस लड़की को ऊँगल करने दो
उसके लल्लूपने को कस के झटक डालो
उसकी अधपकी नकली फेमिनिज्म को ऊँगली करो |
शेयर मत करो
अपना बनाये रखो
तुम्हारा ख़ास कुछ, कहानी सुनाने और रिटेक्स के बीच में तुम जिसके सपने बुनते हो
तुम्हारा ख़ास कुछ, जिसे तुम सब कुछ देर से या कैंसिल होते हुए, सीने से लगाए रखते हो
तुम्हारा ख़ास कुछ, तुम जिसके पास घर लौटते हो, दिन भर आर्ट फैक्ट्री में गूंगे पुतलों से बात कराने
की लड़ाई लड़ लड़ कर,
शेयर मत करो क्यूंकि, जानेमन, तभी तो तुम चरम-आनन्द चुप्पी में ही पाते हो l
अनुवाद: प्राचिर कुमार
2.बहुत हुआ, अब सेक्स करते हैं।
अच्छा लग रहा है? उसके मन और पैरों के बीच अपनी उंगलियाँ फिराते, उसने कहा ।
कोई पछतावा तो नहीं है? उसके कानों में 'वाली' के गाने गुनगुनाते,
उसने पूछा।
जो मैं कर रही, वो पसंद आ रहा है? उसकी उंगली की नोक को गुदगुदाते और उसका अंगूठा चूसते (जैसे बचपन वाले नए-नए दांत आये हों), उसने कहा ।
क्या तुम चाहते हो, मैं धीमे चलूं? उसके घुंघराले बालों में अपनी उंगलियां नचाते, उसने पूछा ।
कल सुबह क्या मैं तुम्हें याद भी रहूंगी? उसके ऊपरी होंठ को किस करते हुए, उसने पूछा ।
क्या तुम चाहते हो मैं दोबारा किस करूं? उसकी गर्दन को अपने दाहिने हाथ से पकड़ते हुए, उसने पूछा ।
इस चूसने, चाटने, किस करने, गले लगने, सांस लेने के बीच उसने उसे अपने मन में घर करने दिया। उसे अपनी सुरक्षित सीमाओं में आने दिया। और सबसे जरूरी बात ये, कि उसने खुद को ना रोका, ना बदला ।
ये प्यार नहीं है। ना! वो जो नियम और शर्तों के साथ आता है।
ये प्यार नहीं है। ना! वो जो यकीन और गोपनीयता के साथ आता है।
ये प्यार नहीं है। ना! वो जो इच्छाओं और जरूरतों के साथ आता है।
ये वासना नहीं है। ना! वो जो पैरों के बीच शुरू होकर गर्म गालों पे खत्म होती है।
ये वासना नहीं है। ना! वो जो सिर्फ रातों में जाग उठती है।
ये वासना नहीं है। ना! वो जो लालच और रोष की सोच पैदा करती है।
ये क्या है? ये हम हैं।
बिन लेबल के।
बिन हैशटैग के।
बिन सीमाओं के।
बिन नाम ।
बिना सामाजिक बंधनों के।
चलो, बहुत हुई कविता। अब सेक्स करें?
अनुवाद- नेहा
3.पेंटिंग क्लास
वो आवाज़ सुनी? जब दो सितारे आपस में लड़ते हैं और फट कर हज़ार और सितारे बन जाते हैं? मेरी कोख का इस वक्त, कुछ वैसा ही हाल है|
यूँ सोचो, कि मेरे पैर तुम्हारे बगीचे के ताज़े कटे खरबूज़ हैं| अब, उन्हें फैला दो| हौले से| अन्दर के रंग दिखे? नारंगी, सुनहरे और लाल रंग के शेड्स| मेरी जाँघों के अन्दर के भाग में इन रंगों को दौड़ते हुए देखा है? मेरी वो जांघें, जो उस आसमान सी गहरी हैं, जो टूटते हुए तारों को ढके हुए है|
अब मेरे चेहरे को, मेरी आँखों में देखो| क्या दिखता है? क्या तुम्हें दो भगवान्, काम और काली, लड़ते दिखते हैं ? शरीर को राहत और मन की श्रद्धा के बीच की लड़ाई ? एक चाहता है कि हर हाल में दर्द मिले, ताकि उसके ज़रिये आनंद मिल सके | और दूसरा, इंसान की शारीरिक इच्छाओं को 4x4 के कपड़े से छुपाना चाहता है| तुम किसे चुनोगे?
थोड़ा नीचे देखो| मेरा मुँह दिख रहा है? जब भी मेरे टाँगों के बीच एक लाल रंग की लकीर पड़ती है, मेरे मुँह से भी आह निकलती है| किसी मोटे ब्रश के लिए, जो मुझे उस रंग से अन्दर तक रंग दे|
पास आओ और नीचे मेरे स्तनों को देखो| नाज़ुक | दर्द भरे | निप्पल जो मेरी बहिष्कृत की गयी योनी के दर्द से
भरे हैं और खड़े हुए हैं| उन्हें छुओ | क्या कहते हैं तुमसे? क्या उन्होंने तुम्हारे नाखूनों को
छेद दिया ? जिससे उन नाखूनों का रंग मेरे बहिष्कृत जेंडर सा दिखने लगा? जिसके खिलाफ पाप किये गए |
चलो वापस खरबूज़े जैसे पैरों की तरफ| क्या तुमने उन्हें काट कर एक दूसरे से अलग किया? क्या उसके बीज गिर गए? वो जितना पका है, उससे उसकी उम्र का अंदाज़ा लगा सकते हो? क्या वो शाम के खाने के लायक है? उसे अपने हाथों से साफ़ करो| क्या तुम्हारा हाथ गीला हुआ? क्या तुम उस कसाई की तरह दिख रहे हो जिसने अभी एक चिड़िया को काट डाला है ? जिसके पंख शाम के आसमानी रंग में डूबे हुए थे?
अपनी उँगलियों का समझदारी से इस्तेमाल करो| शायद दो उँगलियों का | क्या इस महक से तुम परेशान हो रहे हो? यह मेरी उम्र की गंध है | नई बेडशीट पर फैला हुआ लाल रंग दिख रहा है? इसी तरह तुम मेरे सपनों में दिखते हो | हर जगह पे छाये |
अब दो की जगह तीन उँगलियाँ इस्तेमाल करो | तुम्हें नीचे गिरता हुआ मेरा आँसूं दिख रहा है? उसे पोंछो | उसी हाथ से | मेरी आँखों में देख मुझे ऊँगल करो| वो बताएंगी कि वो मौत और जन्नत के कितना करीब महसूस कर रही हैं |
जानेमन,चलो पेंटिंग शुरू करते हैं |
अनुवाद: प्राचिर कुमार
शारदा सुब्रमणिय एक सैंतीस वर्षीय उत्पीड़न सर्वाइवर हैं| कलम और मन, दोनों से जुझारू | इन्होंने ‘ मेक इट टू’ नामक किताब लिखी है| यह बहुचर्चित रचनाएं रही हैं, शक्तिशाली, दिल को छू लेने वाली कामुक और प्रेम भरी कवितायें और कहानियां|
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