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एक पुराने स्टाइल की बुच* औरत के रंग बिरंगे सफर : डॉक्टर श्रुति चक्रवर्ती के साथ एक मुलाक़ात

श्रुति चक्रवर्ती के साथ एक इंटरव्यू

 *बुच: एक औरत जिसका अंदाज़, मरदाना लगता है - अक्सर ये शब्द इस अंदाज़ वाली लेस्बियन औरतों के लिए इस्तेमाल किया जाता है कुछ लोग श्रुति को डॉक्टर श्रुति चक्रवर्ती के नाम से जानते हैं, जो नॉन प्रॉफिट सेक्टर में एक थेरेपिस्ट का काम करती हैं | ये मानसिक स्वास्थ, जेंडर और सेक्शुआलिटी पे कुछ बीस साल से काम कर रहीं हैं | आजकल श्रुति ,मरीवाला हेल्थ इनिशिएटिव में, चीफ एडवाइज़र का काम कर रही हैं | साथ साथ मरीवाला के चलाये गये - क्वीयर अफ्फर्मटिव काउंसलिंग प्रैक्टिस में फैकल्टी हैं | ये अभियान, थेरेपी में क्वीयर पहचान का समर्थन कैसे किया जाए- ये सिखाने की एक बेहतर कोशिश है | कुछ और लोग, श्रुति को उनके इंस्टा हैंडल, @pawlyamorous, से पहचानते हैं : यहां उनकी रोज़ मर्रा ज़िंदगी के पल और उनके रिश्ते की ढेर साली झलक देखने को मिलती हैं - कभी सेल्फी, कभी पार्टनर की फोटो, कभी सैर की फोटो, या पालतू जानवर , या काम से सम्बंधित कुछ | कई जवान और क्वीयर लोगों को इस इंस्टा हैंडल से प्रेम है, क्यूंकि इसमें बहुत दिल है, और हर तस्वीर में क्वीयर ज़िंदगी की एक पॉजिटिव छवि है | यानी ये अकाउंट, इस दुनिया में क्वीयर ज़िंदगी को जी पाने की खूबसूरत संभावनाओं से भरा है | श्रुति अपने आप को एक पुराने स्टाइल वाली बुच, एक लेस्बियन, एक मर्दाना सिस (सिस : जिनकी जेंडर पहचान उनके जन्म पे दी गयी जेंडर पहचान से मेल खाती हो) औरत मानती हैं | AOI के साथ इस मुलाक़ात में, उन्होंने अपनी ज़िंदगी का सफर साझा किया: कैसे उन्होंने ये सारे रूप अपनाये… बल्कि और भी रूप अपनाये | कैसे प्यार, सेक्स, रोमांस, दोस्ती, समुदाय, पॉलिटिक्स, सबसे थोड़ी मदद मिलती रही | तो आगे पढ़िए और एक और #GrownAssWoman / गज़ब की मैच्यौर औरत को जानिये | इनसे मिल के, हम सबको अपने भविष्य की नयी कल्पना कर पाने में मदद मिलेगी | हम उन दायरों के आगे सोच पाएंगे, जिनमें हमें समाज बाँध के रखता है | 

आपका इंस्टाग्राम आपकी पार्टनर पूजा और आप, दोनों की खूबसूरत, रोमांटिक तस्वीरों से भरा हुआ है | आपके लिए, प्यार की परिभाषा क्या है ?

हाँ, हमारे लिए प्यार की एक ख़ास परिभाषा है | ये पूजा का सुझाव था जो मुझे बहुत ही भाया | तो हम प्यार के लिए चार शब्दों का इस्तेमाल करते हैं : 'जुनूनी', 'शायराना', 'समझदार' और 'घाव भरने वाला' | मैं अब भी इन को मानती हूँ | मेरे लिए प्यार का मायने बहुत सारा रोमांस भी है | तालमेल है | प्यार से मुझे अच्छी फीलिंग आनी चाहिए, है न | मैं जानती हूँ ऐसा हमेशा नहीं होता | पर मेरा मन कहता है, कि ऐसा होना चाहिए | अब क्यूंकी मैं बुच हूँ, तो मुझे तो लगता है कि मेरी वाली फम ( फम : बहुत औरताना अंदाज़ वाली, अक्सर लेस्बियन औरत ) सबसे खूबसूरत है और मैं उस से हमेशा -हमेशा के लिए प्यार करूंगी ( हंस के) |  

आपका सोशियल मीडिया का बायो कहता है, कि आप 'पुराने स्टाइल की बुच' हो | तो अपने आप को ये 'बुच' का लेबल देना, ये कैसे हुआ ? और अपनी ये पहचान बतलाना, आपके लिए क्यों ज़रूरी है ?

ये बात तो तुम इमेजिन कर ही सकते हो, कि किसी लेबल या पहचान तक पहुंचना, एक दम नहीं होता, टाइम लगता है |

पहले पहले मैं अपने को 'टॉमबॉय' कहती थी | मुझे 13 की उम्र से पता था कि मैं टॉमबॉय हूँ | तब से ये भी पता था कि मैं औरतों की ओर आकर्षित होती हूँ | जिस भाषा का आज इस्तेमाल कर पाती हूँ, वो तब मेरे पास नहीं थी, पर फिर भी, मैं अपनी क्लास की और लड़कियों के साथ अपनी बचकाना सी लेस्बियन ज़िंदगी जी रही थी, मेरा अपनी लेडी टीचरों पे दिल आता था |

अब क्यूंकि मेरे स्कूल में मैं अकेली टॉमबॉय थी, तो मुझे लड़कियों से बहुत अटेंशन मिलता | ये 1992-93 की बात है | फिल्मी हीरो और हीरोइन से तुलना की जातीं | तुम (यानी श्रुति) एक जानी मानी फिल्म के हीरो हो और कोई दूसरी लड़की कहती "मैं तुम्हारी बीवी हूँ " या “मैं तुम्हारी हीरोइन हूँ" | आम तौर पे हम जो ये रोल प्ले करते थे, इनका आधार वही विषमलैंगिक आइडिया - हीरो और हीरोइन/ मियाँ बीवी- वाला होता | फर्क यही था, कि रोले प्ले करने वाली सब, लड़कियाँ थीं |

क्लास में, या डब्बा के टाइम पे, मेरे बगल में बैठने के लिए लड़कियों के बीच में झगड़े होते थे | वो मुझे प्यार भरे नोट्स लिखती थीं | मैं एक ही लड़की को अपना अटेंशन नहीं देती, बहुतों को देती थी, पर फिर भी, मन में मुझे पता रहता कि मेरी फेवरेट कौन है | मुझे याद है एक बार क्लास में मैंने बड़े स्टाइल से अपना हाथ काट के, अपने खून से ‘आई लव यू ' लिखा था | खूब किसिंग होती थी, छूना, छिप के हाथ पकड़ना | जब मैं आठवीं या नौवीं क्लास में थी, तो ब्रेस्ट को छूना, उस किस्म की चीज़ें ...लेकिन ओनली कमर के ऊपर वाले हिस्से | उसके आगे किसी को पता ही नहीं था कि क्या करना होता है | मैं तो सेक्स के मामले में काफी अल्हड़ थी | हमको ये सब बिलकुल नहीं पता था कि ओर्गास्म/ सेक्स में उन्माद क्या होता है - या ऐसा कुछ भी | पर हां, हवा में एक सनसनी सी रहती थी | वो सब रहता था जिसे आज मैं उत्तेजना बुला सकती हूँ , या चाहत |

21 साल की उम्र में, मैं बॉम्बे TISS/ Tata Institute of Social Sciences , में पढ़ने को आयी | तब मैं कुछ 22/23 साल की थी | मुझे एक औरत से प्यार हो गया और तब मैं ये समझी कि ये औरतों से आकर्षित होना, मेरी लाइफ का एक फेज नहीं था, ये मेरा हिस्सा था | पर मैं केवल इसके लिए 'गे' या 'समलैंगिक' किस्म के शब्द इस्तेमाल करती थी, क्यूंकि 'लेस्बियन' शब्द जैसे एक धब्बा था, कलंक |

24/25 की उम्र में, मैं एक क्वीयर नारीवादी समूह/ कलेक्टिव के सदस्यों से मिली | तब मुझे 'फम्म' और 'बुच' जैसे शब्द पता चले | शुरू शुरू में, 24-30 की उम्र में, मैंने अपने लिए इस शब्द, 'बुच' का इस्तेमाल किया | मेरे आजू बाजू भी ऐसे लोग थे जो इस पहचान को अपना रहे थे, और इससे मेरे में इस शब्द को लेके हौसला बढ़ा | सहीं मायने में मैंने 'लेस्बियन' शब्द का इस्तेमाल केवल 26-27 की उम्र में करना शुरू किया |  

मुंबई आने से आपके लिए क्या बदला ?

यहाँ, यानी मुंबई में आके ही, मैंने पहली बार इस बात का इकरार किया कि मैं दरअसल सेक्स कर रही थी | मुझे ये शहर बहुत -बहुत पसंद है | इसकी आज़ादी.. इसकी वैराइटी.. ये जो आपको गुमनाम ज़िंदगी बिताने का मौका देता है ... पब्लिक जगहों पे देर रात तक औरतों को देखना, जहां भी जाना चाहते हो, वहां जाने के लिए ट्रांसपोर्ट मिलना, इस सब से मुझे बहुत फरक पड़ा | एक औरत होने से, बॉम्बे ने मुझे बहुत आज़ादी दी |

मैं उन दिनों एक हॉस्टल में रहती थी | ऐसी सिचुएशन में, जब आपको स्ट्रेट/विषमलैंगिक औरतों से प्यार होता है, हो सकता है वो अपनी फीलिंग्स के हिसाब से अपना रिस्पांस दें | लेकिन अगर आपने और उन्होंने, अपनी सेक्शुअल पहचान का अपने आप से खुलासा नहीं किया है, तो फिर आपस में होने वाली फीलिंग्स के बारे में आप दोनों बात ही नहीं कर पाएंगे | आपके पास फिर कोई भाषा ही नहीं होगी | मुझे याद है, मैं एक आद साल इस औरत के साथ थी | हम रात को मिलते, बिस्तर शेयर करते, और बहुत कुछ होता, पर हम अगले सवेरे इस सब की बात ही नहीं करते थे | आप इमेजिन करो, ये दो साल ऐसे ही चला !

मैं दिमाग से तो नहीं, पर अपने बदन में समझने लगी थी, कि क्या हो रहा है | मेरा बदन ओर्गास्म के ज़रिये, या एक दूसरे को और खुल के छूने के ज़रिये, अपने सच कह रहा था | पर उस समय हमको यही पता था कि ये सब गन्दा है, बहुत गन्दा और मैं बहुत बुरी हूँ क्यूंकि मैं अपने को ये सब करने से रोक ही नहीं पा रही हूँ |

मैं कुछ 23, 24, साल की थी जब मैंने सेक्स पाजिटिविटी के बारे में जाना - यानी सेक्स के बारे में पॉजिटिव सोचना, ये समझना कि सेक्स का सुख मेरा हो सकता है, मैं अपने तरीके से उसकी खोज कर सकती हूँ | फिर क्वीयर कलेक्टिव के सदस्यों से मिलने के बाद, और अपनी सेक्शुआलिटी की खोज बीन करने के और मौके पाने के बाद, मैं ये समझ पायी कि सेक्स क्या- क्या हो सकता है : उसमें कितनी जगह है, कितना विस्तार है | कि ये बस एक शिश्न का एक योनि में जाना भर नहीं है | सेक्स दरअसल अंतरंगता की मेरी परिभाषा हो सकता है | सेक्स वो है, जो मुझे आनंद देता है | क्वीयर नारीवाद कलेक्टिव के साथ, अब मुझे दिन -दहाड़े, शहर के रास्तों पे चलने वाली, क्वीयर रोल मॉडल भी मिल गयीं थीं | ये सब कुछ गज़ब था !

आप अपने आप को 'पुराने स्टाइल की बुच' भी बुलाती हैं | इससे आपका क्या मतलब है ?

मेरे हिसाब से, पुराने स्टाइल की बुच- जो कि मैं हूँ - थोड़ी जेंटलमैन टाइप की होती हैं, औरतों की तरफ अदब रखने और ज़ाहिर करने वाली | वो मरदाना कपडे ज़रूर पहनती है | मुझे तो टाई जैकेट वाले रूप से कोई परहेज़ नहीं | बहुत छोटे छोटे बाल जैसे मेरे, कुछ सफ़ेद, कुछ काले | पुराने स्टाइल से मेरा मतलब, मेरे नज़रिये का भी है - कि मैं अपनी फम्म को किस नज़र से देखती हूँ, उससे किस तरह रिलेट करती हूँ |

क्वीयर समुदाय के अंदर ही अंदर, हमारा एक और लेबल भी होता है - 'फुल सर्विस बुच' | यानी ऐसी बुच, जो हर तरह से, अपनी फम्म की सेवा में अपने को हाज़िर कर दे | मैं उस लेवल की तो नहीं हूँ, न ही होना चाहती हूँ | मेरे लिए ये मामला, आपके नज़रिये के बारे में है, कि किस तरह आपकी फम्म आपके लिए सबसे ज़रूरी है, और आप अपनी ज़िंदगी में हर वो दिलदार काम करेंगे जिससे उसको अपने बारे में बढ़िया फीलिंग आये | अब हम रोज़ -रोज़ तो ऐसे नहीं जी पाते (हंसती हैं ) | पर फिर भी, मेरे लिए एक औरत से प्यार करने से और हसीन कोई तोहफा ही नहीं हो सकता |  

आप अपने को फ्लिर्टिंग के मामले में कामयाब कहेंगी ?

मुझे लगता है, ज़रूर कहूंगी | किशोरावस्था में, मेरा अपने आप में इतना कॉन्फिडेंस था, मैं अपनी इतनी कदर करती थी, ये सब इसलिए क्यूंकि मुझे स्कूल में बहुत अटेंशन मिल रहा था | ये फीलिंग बनी रही, तब भी जब मैं तीस के करीब थी, और उसके कुछ सालों बाद भी | मैं एक पॉप्यूलर बुच थी, और स्ट्रेट औरतों और फम्म के लिए तो एकदम स्टड थी, चुम्बक, ये खींची चली आती थीं (हंसती है ) |

बॉम्बे में, मैं कई गे आदमियों की पार्टीज़ में जाती थी, वहां पे कुछ औरतें भी होती थीं | उस समय, मैं अपनी बॉडी से बहुत खुश थी | लचीला बदन था, खुद को लगता था कि मैं अट्रैक्टिव हूँ | अपने बॉडी को मूव करते वक्त, डांस करते वक्त, एक दम कॉन्फिडेंस से करती थी | खूब बातें कर लेती थी | साथ साथ एकदम जेंटलमैन का अंदाज़ था, दिलकश स्टाइल, और अगर कोई औरत पसंद आती, तो सामने से कह देती | अगर उसने न कहा, तो एक दम पीछे हट जाती | हां, हमेशा डायरेक्ट 'यस' या 'नो' का मामला नहीं होता, फिर भी, मैं चाहती और यही कोशिश करती थी, कि शुरू से सब कुछ क्लीयर रहे - ये ज़्यादा सही होता है | कभी कभी ऐसी बातें होतीं कि 'देखते हैं बात आगे कैसे बढ़ती है ', या फिर 'आगे चलके देख लेंगे' | पर मेरे लिए वो डायरेक्ट तरीका काम करता था | पैंतीस की उम्र के आस पास, मेरे लिए ये सब काफी बदलने लगा |  

क्यों? फिर क्या हुआ ?

जैसे जैसे मेरा बदन बदलने लगा, मेरी मर्दाना फीलिंगस पे असर हुआ | बॉडी थोड़ी गोल मटोल होने लगी, मुझे लगने लगा मैं वैसे नहीं लग रही थी, जैसा लगना चाहती थी | मुझे लगने लगा कि मेरी बुच ज़िंदगी अब ख़त्म हो गयी और मेरी तरफ औरतों को जो खिंचाव फील होता था, वो ख़त्म हो जाएगा |

फिर करीब 35 साल की उम्र में, मुझे एक स्ट्रेट, शादी शुदा औरत से प्यार हो गया और मुझे इस बात का गम है कि इससे मुझे बहुत नुक्सान हुआ | वो मुझसे ऐसे रेलेट कर रही थी जैसे मैं उसका आदमी हूँ | एक पारम्परिक औरत की ज़िंदगी में पारम्परिक आदमी का रोल: हमारे रिश्ते में उसने मुझे वैसा ही पावर दे रखा था, उस ही तरह का सुलूक था उसका | अब मैं अपने को उस जेंडर के चश्मे से देखने लगी, तो अपनी मर्दानगी के बारे में और भी बुरा लगने लगा | मैंने कभी अपने को उस तरह से, यानी इस कदर सीरियस्ली आदमी नहीं समझा था, और मुझे असहज लगने लगा | अपने जेंडर को सामने कैसे रखूँ, इस बारे में भी परेशानी होने लगी | मुझे जिस बात में मज़ा आता था, मेरा अंदाज़, जिसको मैंने कैसे सोच समझ के स्टाइल किया था... यूं लगने लगा जैसे सब कुछ टूट के ढह जाएगा | उन कुछ सालों, मैंने अपने को बुच कहना भी बंद कर दिया ..| जब आखिर कर, मैं उस रिश्ते से बाहर निकली और अपनी पार्टनर, पूजा से मिली, तब जाके धीरे धीरे अपने को फिर से ढूंढ पायी | और अपने उस मर्दाने जज़्बे को फिर से एक पॉजिटिव तरीके से अपनी पर्सनालिटी में समेट पायी |

हम अपने आप को कैसे देखते - समझते हैं, मुझे लगता है हमारे करीबी पार्टनर का इसपर बहुत असर होता है | खासकर एक बुच औरत के लिए | खासकर ऐसी हालत में, जब बाहर दुनिया में वैसे भी इतने रोल मॉडल नहीं हैं , जो हमसे कह सकें कि देखो, “बुच होना ग्रेट है !" "बुच यानी खूबसूरत ", "बुच होना बदसूरत हरगिज़ नहीं है "|

आपको कभी और जनाना होने को प्रेशर किया गया है ?

जब तक मैं करीब 18 साल की थी, टॉमबॉय होना एकदम सही था, और सब इसकी कदर तक करते थे | 18-25 के बीच, मेरे पे 'औरत बनने’ का प्रेशर था | मुझसे कहा जाता कि आदमी की तरह न बनो, आदमी के कपड़े न पहनो | मेरे साथ वाले मुझपे प्रेशर डालते कि बाल लम्बे करो, नाख़ून पेण्ट करो, साड़ी पहनो, कुरता पहनो ... मैं वो सब करती | अपनी बात कहूँ तो, मुझे विंड चीटर पहनना बहुत अच्छा लगता, गले पे बारीक चेन के साथ | मैं यूं अपने टू व्हीलर पर घूमती | छोटे शहर से होने की वजह से, मेरा फैशन सेंस उतना स्ट्रांग नहीं था, पर मेरे लिए, चलता था |

एक बात ये भी है, कि जेंडर को इन दो छोरों में बाँध दिया जाता है, है ना ? इस सोच के हिसाब से, अगर आप जनाना टाइप के नहीं, तो आप आदमी ही हैं | तो 'बुच' शब्द को अपने लिए, मर्दाना औरत के रूप में इस्तेमाल करना, मेरे लिए एक स्ट्रगल रहा है | ये मर्दानगी को आदमी के साथ जोड़ देना एक सामाजिक आदत है, मुझे दम लगा के इससे जूझना पड़ा है | जैसे -जैसे मैं अपने काम में और घुसने लगी, जेंडर, सेक्शुआलिटी और पॉलिटिक्स की बात करने लगी, सब कुछ थोड़ा और आसान होने लगा | मुझे अपने पे फक्र होने लगा और मैं जैसी हूँ, उसको मैं और एक्सेप्ट भी करने लगी |  

आपके सर्किल के बाहर के लोगों का क्या ? वो कैसे रियेक्ट करते हैं ?

अक्सर जब मैं पार्टी में लेडीज़ बाथरूम जाती हूँ, औरतें चौंक जाती हैं, क्यूंकि उनको लगता है कि एक आदमी आ गया है.. वो असहज हो जाती हैं तो इससे मैं भी असहज फील करने लगती हूँ | तो मैं तरह -तरह की तरकीब निकालती हूँ | अगर मेरे साथ एक जनाना किस्म की औरत साथ चले, तो इससे आसानी बढ़ जाती है |

जब मैं कुछ 20-22 साल की थी, तब एक स्त्री रोग विशेषज्ञ/gynaecologist के साथ बड़ा मज़ेदार किस्सा हुआ | मैं अपने उस टाइम की पार्टनर के साथ वहां गयी थी | उसने एक के बाद एक, दोनों का चेक अप किया, फिर बोली 'अरे! हैरानी की बात है ! तुम दोनों को एक ही इन्फेक्शन हो रखा है " | मतलब, मैं ऐसे दिखती हूँ और फिर भी वो हमारे रिश्ते को भांप नहीं पायी? बहुत ही फनी था ( हंसती हैं ) |

मरदाना औरत होने से आपको मर्द होने वाले कोई फायदे हुए ?

जो आदमी हैं, ऊपर से सिस भी और विषमलैंगिक भी, उनको जो पावर मिलते हैं, वो मर्दाना औरतों को नहीं मिलते | क्यूंकि औरतों में मर्दानगी डरावनी या भयानक मानी जाती है |

पर मुझे लगता है जब अब जेंडर के रचे बसे ढांचों को तोड़ के बाहर निकलते हैं, आप अपने को और परमिशन देते हो | मैंने अक्सर पूजा को ये कहते सुना है, कि क्यूंकि वो अपनी आदतों में जनाना है, उसका एकदम लेडीज वाला जज़्बा है, इसलिए उसको यही लगता रहता था कि वो विषम लैंगिक है | उसको खुद लगता कि वो सजती संवरती है, इसका मतलब वो ये सब विषमलैंगिक सिस आदमियों के लिए ही करती होगी | मेरे केस में भी, मुझे लगता कि अगर मैं और जनाना हुई तो मैं विषमलैंगिक बन जाऊंगी | अगर मैं लेस्बियन हूँ, तो मुझे अपना जेंडर अलग तरीके से ही ज़ाहिर करना होगा | और उधर पूजा के लिए, उसका सफर ऐसा रहा है कि फम्म-लेस्बियन होना ही वो पहचान है जो उसपे फिट बैठती है, क्यूंकि उसके लिए लेस्बियन होना और फम्म होना, अलग अलग नहीं हैं |

जब जेंडर के पुराने तौर तरीकों के साथ साथ, तुम सेक्शुअलिटी के पुराने तौर तरीकों को भी तोड़ देते हो, तो अपने आप को अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ जीने देते हो, जैसे होना चाहते हो, वैसे बनने की परमिशन देते हो | तो देखा जाए, तो मुझे ये मौका ज़रूर मिला है |

फिर ये बात भी है कि जो बुच औरतें हैं, वो आम औरतों के जैसे, उम्र के साथ उस टिपिकल तरीके से बूढ़ाती नहीं.. क्यूंकि औरतों के लिए बूढाने के भी तो कुछ फिक्स्ड सिग्नल होते हैं | क्यूंकि मैं उस स्क्रिप्ट का हिस्सा ही नहीं, जनाना होने के वो नियम फॉलो करती ही नहीं, इसलिए वो स्टैण्डर्ड मेरे पे उस तरह से लागू नहीं होते | मेरे काला सफ़ेद बाल और सेक्सी लग सकते हैं, उनको ये आज़ादी है | लोग मुझे आके कहते भी हैं, "उफ़, उम्र के साथ तुम और सेक्सी होती जा रही हो" |

आपने बार बार ये ज़िक्र किया है कि जिस क्वीयर कलेक्टिव का आप हिस्सा बनीं, उसका आपके ऊपर कितना गहरा प्रभाव रहा है | आपको क्या लगता है, अपनी ज़िंदगी में ऐसे समूह या संस्थाओं से वास्ता रखने की क्या अहमियत होती है ?

वो कलेक्टिव मेरे लिए एक बहुत अहम् शुरुआत थी, जिससे मैंने अपने को अपनाना सीखा, जो मैं हूँ, वो बनना सीखा | 1995 में उसकी शुरुआत हुई, मेरे ख़याल से ये एक ऐसा ग्रुप था, जिसने हमेशा अपने आप को 'क्वीयर फेमिनिस्ट' का दर्जा दिया |

इससे ये हुआ कि मेरा क्वीयर या लेस्बियन होने का सफर और मेरा नारीवादी सफर, एक साथ चालू हुए | इससे मुझे मौक़ा मिला कि अपनी सेक्शुआलिटी और अपने जेंडर को फेमिनिस्ट नज़रिये से समझ सकूं |

उस टाइम हमारे पास एक ही शब्द था 'औरतें' | 'नॉन बाइनरी'/स्त्री पुरुष की पहचान से परे या 'जेंडर फ्लूइड' / जिसके जेंडर की पहचान पानी जैसी तरल हो, बदल सके - ये शब्द हमारे पास कहाँ थे | यानी कि ये सब तब भी होता था पर ये लेबल नहीं थे | उस समय मेरे पास किताबों या पढ़ाई तक ज़्यादा पहुँच नहीं थी | तो क्वीयर बनना या क्वीयर ज़िंदगी जीते हुए बच के आगे बढ़ने की संभावना या उस स्ट्रगल की जानकारी, लोगों से मिलकर होती थी या उनको स्ट्रगल करते हुए देखकर होती थी | मुझे याद है, मैं कुछ बीस एक साल की थी, एक थोड़ी उम्रदराज़ लेस्बियन थीं, कुछ तीस -एक साल की, हमारे कलेक्टिव का हिस्सा | मैं देखती थी कि वो ट्रेन स्टेशन और सड़कों पे, शर्ट और शॉर्ट्स पहन के चलती थी | मैंने उनसे पूछा भी था "आपको ऐसे करने की हिम्मत कैसे होती है ?"(हंसती हैं )| उन्होंने मुझे ऐसी नज़र से देखा जैसे कह रही हों "तुम्हारा सवाल ही क्या है? मैं क्यों छेड़ी जाऊंगी ?" पर मैं तो अपने बुच जीवन की बच्ची अवस्था में ही थी न, मुझे लगता था कि ये ऐसे दिखती हुई, दुनिया भर में कैसे घूमती हैं ? मुझे क्या पता था कि कुछ सालों में, मैं ठीक वही कर रही होउंगी |

उस समय की मेरी गर्लफ्रेंड के साथ, उन दिनों बहुत गड़बड़ चल रही थी | काफी मुश्किल समय था, मैं बहुत दुखी, टूटी हुई सी थी, और ये जो सारी उम्रदराज़ लेस्बियन्स थीं न, ये डाइक/लेस्बियन औरतें, जैसे चिड़ियों का झुण्ड बना के मेरी मदद को आ गईं | एक कहती 'तुम अगले तीन दिन मेरे साथ रहोगी ', और उन २/३ दिनों के बाद, कोई और कहती, 'चलो, अब तुम मेरे साथ रहो | अकेले मत रहो "| मुझे लगता है कि पूरे एक महीने मैं ऐसे ही रही और इस तरह धीरे- धीरे, वापस अपनी ताकत मिली, अपने को संभाल पाने का सहारा मिला | ये बात जानने भर से, कि ये डाईक औरतें मेरे पे नज़र रहीं हैं ताकि मैं अपने गम में डूब न जाऊं, …उस उम्र में मेरे लिए ये बहुत बड़ी बात थी |

पता है, पैसे के मामले में भी | जो थोड़े बड़े क्वीयर लोग थे, वो पार्टी की एंट्री का पैसा दे देते | मीटिंग के बाद, वो हमें खाना खिला देते, क्यूंकि उनको पता था कि घर पे तो खाना होगा नहीं और खाने के पैसे तो हैं नहीं | वो हमारे ड्रिंक्स भी खरीदती थीं, क्यूंकि पीना भी आपस में मिलने जुलने और एक दूसरे का ख्याल रखने का तरीका है | इसका मतलब ये भी रहा कि मैं जवान, बेवकूफ और बेबाक बन पायी |

मैंने ये बात सीखी, और अपने से कम उम्र क्वीयर लोगों को ऑफर भी की | जब मेरे पास पैसा होता है तो मुझसे उम्र में कम क्वीयर लोग को हम कहते हैं "चिंता मत करो, दारू का खर्चा हम पे , चलो इस पार्टी में चलते हैं ", या 'टिकट के पैसे मैं दूंगी" |

एक समूह/ कलेक्टिव होने के नाते- हम परेशानी के आड़े आते हैं, उस समय में मदद करते हैं, अभी भी | औरतों को बुरी शादियों से बाहर निकालना, या भड़काऊ या हिंसक घरों से बाहर निकालना, उनके साथ पुलिस स्टेशन जाना.. सब का आधार यही है - कि उनके लिए एक ऐसी जगह बनाई जाए जो उनके पास पहले नहीं थी |

 ऐसा लगता है कि आजकल के जवान लोगों के मन में भी ऐसे कलेक्टिव/ समूह का आइडिया है ? 

मुझे नहीं पता कि वो क्या एक दूसरे से, क्वीयर होने के नाते ऐसे मिलते हैं, जैसे हम मिलते थे ? अक्सर अब मीटिंग्स, सोशियल मीडिया के ज़रिये होती हैं | ऊपर से आजकल तो पांडेमिक भी है | लगता तो है कि ये लोग कनेक्टेड हैं, पर फिर भी मैं इस बारे में सोचती हूँ कि आजकल के जवान क्वीयर लोग क्या अकेला फील करते हैं ? सोशियल मीडिया के होते, अलग अलग पहचानों का प्रतिनिधित्व करते हुए रोल मॉडल तो दिखने लगे हैं.. पर मुझे ये नहीं पता कि इस सब में किसी को जानने वाली फीलिंग, किसी के साथ टाइम बिताने वाली फीलिंग, किस हद तक आती है ?

अपनी बात कहूँ तो बहुत सारा कंटेंट, जो कि मैं सोशियल मीडिया पे डालती हूँ, मेरे ज़िंदगी जीने के तरीके से आता है, मेरे अब तक के सफर, उस सफर के स्ट्रगल का नतीजा है | बड़ी उम्र के होने के लिहाज़ से, मैं जो भी रोले मॉडल होने की भूमिका निभा सकती हूँ, मैं निभाना चाहूंगी | ये जैसे मेरा छोटा सा तोहफा है, अपने से जवान लोगों के लिए | और मैंने पाया है, कि जवान लोग इस पर पॉजिटिव रिस्पांस देते हैं |   

पर लोगों में एक बहुत बड़ा बदलाव भी आया है, है न ? वो इन लेबल्स के बारे में कैसे सोचते हैं, उनसे कैसे अपने को जोड़ते हैं- उसमें बदलाव आया है ? 

मुझे लगता है कि जेंडर की हमारी समझ - खासकर क्वीयर -ट्रांस समुदाय में- और विस्तृत हो रही है | हम जेंडर को दो विपरीत पहचानों/binary में बांटने वाली बात पे लगातार सवाल उठा रहे हैं, हम जेंडर के कई रूप होने की बात कर रहे हैं, हम ये कह रहे हैं कि जेंडर को इन दो खेमों में बांटना गलत है | इसकी वजह से, कुछ ऐसी पहचानें, जिनको किसी समय पे सिस/cis समझा जाता, यानी जन्म पे अपनी जेंडर पहचान के अनुकूल, या मरदाना या जनाना - इन पहचानों को अब थोड़ा दकियानूसी, दायरों में बंद, या और पहचानों को मिटाने वाला भी समझा जाता है |

मुझे पर्सनली ये लगता है, कि हम एक ऐसे समाज में रह रहे हैं जहां हमको बहुत कम रोल मॉडल्स हासिल हैं | एक मर्दाना औरत कैसे बना जाए, एक लेस्बियन जैसे प्यार कैसे किया जाए, ज़िंदा और ज़िंदादिल कैसे रहा जाए... हमें ये सब नहीं पता | कोई इसके बारे में बात नहीं कर रहा | हमको बस विषमलैंगिक बनना सिखाया जाता है, है न ? तो फिर, अगर हम ऐसी ही दुनिया में अपना रास्ता बना रहे हैं, तो खुद नए मतलब बनाते हुए, हम उनके लिए लेबल्स भी बनाते हैं | मुझे लगता है कि ये कहना थोड़ा गलत है कि कुछ लेबल्स दकियानूसी हो गए हैं, उनका मतलब नहीं रहा क्यूंकि आज हमारी जेंडर की समझ बदल गयी है | मुझे नहीं लगता कि अगर मैं 'बुच' कहती हूँ, तो मुझे ट्रांस लोगों या नॉन बाइनरी लोगों की सुध नहीं होती | मैं बस अपने लिए वो लेबल अपना रही हूँ, ये भी कह रही हूँ कि मैं सिस हूँ - मेरी जेंडर पहचान अब भी जन्म पे दी गयी जेंडर पहचान के अनुकूल है | इससे मुझे दुनिया में कई ख़ास पावर मिलते हैं , इसका भी होश है मुझे |

मैं जेंडर के अनुकूल चलने वाली औरत भी नहीं हूँ | तो मुझे लगता है कि मेरे लिए बस यही शब्द फिट बैठते हैं : सिस बुच लेस्बियन | आजकल लेस्बियन शब्द भी शायद पुराने ज़माने का माना जाता है, क्यूंकि अब आप कह रहे हैं 'औरत जो औरत से प्यार करे'| मुझे लगता है हमें इन बातों को और विस्तार देना होगा | एक क्वीयर जगह वो अकेली जगह है जहां इस तरह सब को शामिल करते हुए, हर एक के अलगपने की भी इज़्ज़त की जा सकती है | क्वीयर का मतलब ही यह है | तो मुझे इसलिए लगता है कि पुराने लेबल्स को नए लेबल्स जैसे इज़्ज़त मिलनी चाहिए, उनकी जगह बनानी चाहिए | 

हम ऐसे समय में रह रहे हैं जब जवान लोगों की तादाद बहुत बढ़ गयी है, दुनिया में कभी पहले इतने जवान नहीं रहे हैं | क्वीयर लोगों के सन्दर्भ में, आपको इसका क्या असर लगता है ? क्या इस वजह से उम्रदार लोगों के रूल्स के खिलाफ और आवाज़ें उठ रही हैं ? या ऐसा कोई और असर है ?

पर्सनल लेवल पे तो मैं ऐसा कुछ ज़्यादा एक्सपीरियंस नहीं करती, क्यूंकि अब मैं और समाज में काफी संकलित हो गयी हूँ | पर दुनिया में ट्रेंड देखने के हिसाब से, मैं कहूंगी हाँ, आजकल जवान लोगों पे बहुत फोकस है, जवान लोगों के प्रोब्लेम्स पे भी | और हाँ शायद जवान लोग अपने से बड़ों के दबाव से भिड़ रहे हैं, बड़ों पे हावी भी हो रहे हैं |

मुझे एक बार एक ईमेल मिला था जिसमें लिखा था " पुराने जनरेशन की प्रतिभाशील फिगर होने के नाते, हम आपसे बात करना चाहते थे..." ये तो हद ही हो गयी (हंस के ) | तो मुझे ये तो समझ आता है ,कि मुझे बूढ़े के रूप में देखा जा रहा है | पर एक बात ये भी है, कि मैंने खुद उम्र के बढ़ने को क़ुबूल किया है, क्यूंकि मुझे खुद लगता है कि अब मेरी उम्र बढ़ गयी है |

और जो उम्रदराज़ क्वीयर लोग हैं, वो अब कहाँ हैं ? हमारे क्वीयर नारीवादी सर्कल में, उम्रदराज़ क्वीयर लोग ज़रूर हैं | हममें से जो कुछ बीस साल के थे, अब चालीसवे दशक में जा चुके हैं | और जो तब चालीस के थे, अब साठ के ऊपर हैं | हम केवल अपनी एक्टिविज़्म के काम से जुड़े हुए हैं | पर इस एक सम्बन्ध को छोड़के, उम्रदराज़ क्वीयर बहुत कम दिखते हैं | सोशियल मीडिया हो या कलेक्टिवेस, ज़्यादातर जवान लोग ही दिखते हैं |

मुझे लगता है, इस से उम्रदराज़ क्वीयर लोगों में बहुत अकेलापन आ जाता है | हो सकता है वो इसलिए भी कनेक्ट नहीं कर पाते हों, क्यूंकि वो सोशियल मीडिया को ठीक से नहीं समझते, न ही इस्तेमाल करते हैं | वो इसलिए भी और डर सकते हैं, क्यूंकि उनके टाइम पे, वो परिवार का ही हिस्सा बनके रहे हैं, और ऐसी ज़िंदगी जिए हैं जिसकी वजह से, खुले आम अपनी सच्चाई सामने रखना उनके लिए मुश्किल है |

हाल में, एक दोस्त के गुज़रने पे, उसकी याद में हमने एक मीटिंग रखी | वहां मैंने देखा कि ऐसे बहुत से क्वीयर लोग थे, जिनको मैंने तब से नहीं देखा था जब मैं करीब 20 साल की थी | वहां हमने उनसे पुछा कि पिछले 10-15 साल, वो कहाँ थे ? उनकी ज़िंदगी में क्या चल रहा है ? कुछ लोगों ने कहा कि अब वो पार्टीज में नहीं जा पाते, क्यूंकि पार्टीज में जवान लोग ही भरे होते हैं | दिल टूटने की भी कहानियां थीं | कई उम्रदराज़ क्वीयर ऐसे थे, जिनके प्यार के रिश्ते थे, जब वो बीस या तीस के थे,पर जैसे उनकी उम्र और बड़ी, किन्ही वजहों से वो रिश्ते नहीं रहे | बहुत सारी औरतें को इतना प्रेशर का सामना करना पड़ता है, कि वो या विषमलैंगिक या फिर बिलकुल स्त्री पुरुष के फिक्स्ड रोल्स वाली शादी कर लेती हैं | या इसलिए शादी कर लेती हैं क्यूंकि उनको नहीं लगता कि इस समाज में क्वीयर ज़िन्दगी जीने की संभावना है | इसलिए बहुत सारे उम्रदराज़ क्वीयर लोग अकेले पड़ जाते हैं |

नेटवर्किंग करने के अलावा, और पार्टनर ढूंढने के अलावा, मुझे लगता है कि हम तबियत और स्वास्थ्य की बात ही नहीं कर रहे | मेरी जैसी मर्दाना औरतें क्या कर रही हैं ? उनको कहाँ से मदद मिल रही है ? उदाहरण के लिए, अगर हम गयनेकोलॉजिस्ट के पास गए, तो हमें किस किस्म के बैर या द्वेष का सामना करना पड़ सकता है ? इसपे बात क्यूँ नहीं होती ?  

आपको ज़िंदगी के इस पड़ाव में कैसा लग रहा है ?

40 की उम्र तक पहुँचने से मुझमें बहुत जोश आया | एक फीलिंग आयी कि मेरे अलग अलग रूपों का, कहीं अंदर ही अंदर. एक दूसरे से सम्बन्ध है | मेरे सारे स्ट्रगल- या जेंडर, या सेक्शुआलिटी, या प्यार पाना, या मेरा करियर, या मुझे मेरा PhD. मिलना … यूं लगा जैसे ये सब कुछ एक साथ आ गए थे, कि मैं ज़िंदगी में ऐसे मकाम पे थी, जहां मैं होना चाहती थी | मुझे तो अब लगता है जैसे अब, 40 की उम्र के बाद, या 50 की उम्र के बाद, मैं नए सिरे से जीने वाली हूँ, उम्रदराज़ डाईक की नई ज़िंदगी |  

आज तक आपको सबसे बढ़िया कौन सा कॉम्पलिमेंट मिला है ?

मुझे कोई कहे, कि आप बहुत चार्मिंग हो, तो मुझे बहुत अच्छा लगता है | जब एक औरत मुझे कहती है कि वो मेरे से चार्म हो गयी है, मैंने उसका मन मोह लिया है , या कि मैं उसे बहुत अट्रैक्टिव लगती हूँ, क्यूंकि मैंने उसपे बड़े फोकस कर के ध्यान दिया .. आह, ये सुनके मुझे बहुत ही अच्छा लगता है | यही मेरा मकसद है | मुझे औरतों को खुश करना बेहद पसंद है |

 आपके बारे में कुछ ऐसा है, जो लोगों को नापसंद हो ? 

लोगों को ये नहीं पसंद, कि मैं अपनी बात सामने से कह देती हूँ | साफ़ साफ़ कहने का ये फायदा है, कि पता चल जाता है कि बातचीत में कौन सी लक्ष्मण रेखाएं बना के ही आगे बढ़ना है | लेकिन सामने वाले को ये भी लग सकता है, कि उसे रिजेक्ट किया गया है | अगर कोई बात मुझे अस्वीकार हो, तो मैं एक दम खुल के, जोर जोर से अपनी बात कहती हूँ | 

आपके बारे में कौन सी बात गज़ब है ? 

मेरे ख्याल से ये, कि मैं बहुत वफादार हूँ | दूसरों ने मुझे बताया है कि मैं चार्मिंग हूँ, लोग मेरे पे डीपेंड कर सकते हैं, मेरे आस पास रहना औरों को सहज लगता है, मज़े आते हैं | मैंने लोगों से ये भी सुना है, कि मेरे होने से किसी की लाइफ में थोड़ी ताकत आ सकती है |

शायद इसलिए क्यूंकि मैंने अपनी ज़िंदगी में जूझा है और सर्वाइव किया है, शायद इसलिए क्यूंकि मैं थेरेपिस्ट का काम करती हूँ, मैं किसी को थोड़ा आराम और थोड़ी ताकत दे सकती हूँ |   

ऐसा कुछ है जिसपे आप अगले दस साल में काम करना चाहेंगी ? आने वाले सालों के लिए कोई सपने ? 

मैं उम्मीद रखती हूँ कि जेंडर और सेक्शुआलिटी के साथ मेरा द्वन्द अब ख़त्म हो चुका है | अब मेरा ध्यान मेरे शारीरिक स्वास्थ्य पे है, क्यूंकि मेरी उम्र बढ़ रही है और मैंने जवानी में अपनी बॉडी की ख़ास देख भाल नहीं की है | उन सालों में मैंने बहुत दारू पी, देर देर रात जागी | मेरे सारे इमोशनल द्वंदों ने भी मेरी हालत बुरी करी | तो अब ज़रूरी है कि मैं थोड़ा बेहतर खाऊं, थोड़ी एक्सरसाइज़ करूँ |

अगले कुछ सालों का सपना .. कि मैं अपने करियर पे फोकस करूँ | मुझे लगता है, कि पहले, मैं क्वीयर होने की दिक्कतों में ,और उन सारे उतार चढ़ावों में फंसी हुई थी और मैंने अपने करियर को ठीक से ध्यान ही नहीं दिया | 

और उसके आगे ? जब आप 70 की हों, तब ? 

अब मैंने उतने आगे तो नहीं सोचा है | हो सकता है कि ये क्वीयर होने की निशानी हो, क्यूंकि अक्सर हम लोग अपने बारे में लम्बी रेस की सोच, नहीं रखते.. क्यूंकि अक्सर हर दिन एक स्ट्रगल बन सकता है | हां मेरा एक सपना है, कि मैं पूजा के साथ बूढ़ी होना चाहती हूँ |

मैंने कभी गौर से नहीं सोचा है कि 70 के करीब लाइफ कैसे दिखेगी | हालांकि मुझे नहीं लगता कि मैं बहुत बदलूंगी, मैं अपनी शर्ट्स पहनती रहूंगी और शायद मेरी पैंट ज़्यादा कम्फर्टेबल हो जाए |

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