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अपने पार्टनर्स को वाइब्रेटर से मिलवाना… और सुख के कुछ रोमांचक किस्से

स्ट्रैप: ये है मेरा सफ़र- वाइब्रेटर चुनना सीखने से लेकर ये समझने तक कि वाइब्रेटर हमेशा ओर्गास्म की गारंटी नहीं देते, और सुख शेयर करना कैसा होता है।

मैंने किशोरावस्था में ही हस्तमैथुन करना शुरू कर दिया था और एक बार तो माँ ने मुझे पकड़ भी लिया था। मैंने ये कहकर टाल दिया कि, "मैं तो बस मच्छर के काटने पर खुज़ली कर रही हूँ"। माँ ने मुझे ज़्यादा डांटा नहीं और जाने दिया। लेकिन बोली (ज़ाहिर है कि उन्हें मेरे मच्छर काटने वाले बहाने पर यक़ीन नहीं हुआ था) ये सब तुम्हारी हेल्थ के लिए सही नहीं है। इस घटना के बाद, कुछ टाइम के लिए, मैंने खुद को "कंट्रोल" करने की पूरी कोशिश की । हस्तमैथुन करने की चाह उठती तो मैं खुद को ही डांट कर उसे दबा देती। बेशक, ये कंट्रोल ज्यादा दिन चला नहीं, और मैं वापस हाथ गाड़ी चलाने लगी। उस वक़्त, जो मैं कर रही थी, उसका नाम क्या था, मुझे न पता था, लेकिन मुझे इसे करने की बेक़रारी पता थी।

मैं चुपके से इधर-उधर घूमती रहती, स्टोररूम में घुस जाती और मेरे भरे-पूरे परिवार में सभी की आने जाने  पर नज़र रखती। तब जाकर खुद को सुख  देने के लिए जगह और समय मिल पाते।  हालाँकि, मुझे तब भी शर्म सी महसूस होती, जैसे मैं कुछ गलत कर रही हूँ। मुझे उस गलत प्रभाव का डर था जिसके बारे में मां ने आगाह किया था। आख़िरकार जब मैं बड़े शहर शिफ्ट हुई, तो काफी हिम्मत जुटाकर स्त्री रोग विशेषज्ञ से मिली और उनको पूछा अगर हस्तमैएच.एल: अपने पार्टनर्स को वाइब्रेटर से मिलवाना… और सुख के कुछ ऐसे रोमांचक किस्से

थुन का हमारी हेल्थ पर कोई बुरा असर पड़ सकता है। उन्होंने कहा- बिल्कुल नहीं।

ऐसे समाज में, वाइब्रेटर का आना, यानि सनसनी, और जानने की तेज़ इच्छा । उनको लज़्ज़ाजनक माना जाता था। कॉलेज में, दोस्तों के बीच खुस-फुस में बात भले हो जाये, खुलकर इसके बारे में बात करने की ज़ुर्रत किसी की नहीं थी। हम भले उसको लेकर मज़ाक करते, एक-दूसरे को चिढ़ाते, लेकिन हममें से कोई भी वाइब्रेटर के बारे में अच्छी तरह नहीं जानता था। मुझे वाइब्रेटर से भी डर लगता था, ख़ासकर इसलिए क्योंकि मैं एक लॉ स्टूडेंट थी और मुझे पता था कि इंडिया में अश्लीलता को लेकर कठोर कानून हैं। ऐसे में क्या वाइब्रेटर जैसी रोमांचक चीज़ कानूनी हो सकती थी ?  ये मुमकिन ही नहीं लगता था ! मैंने हस्तमैथुन के लिए अपनी उंगलियों और हाथों का सहारा लेना जारी रखा।

आखिरकार 2021 में मैंने वाइब्रेटर खरीदा।

दरअसल वाइब्रेटर खरीदना, एक तरह से मर्दों के प्रति मेरे आक्रोश (जो कि मेरे अंदर भरा पड़ा है), का परिणाम था। मेरे डेटिंग के इतिहास में काफी उतार-चढ़ाव रहे हैं। और उसी दौरान मैंने एक फ़ालतु डेट के कारण प्रैग्नेंट होने का ख़तरा भी झेला था। मुझे अपने शरीर का कंट्रोल अपने हाथ में लेना था। वाइब्रेटर खरीदना उस आज़ादी की ओर उठाया पहला कदम जैसे लगा। ऐसा लग रहा था जैसे कि कोई दुनिया के सामने ये ऐलान कर रहा हो कि, "देखो, मेरा सुख मेरे अपने हाथों में है"। मैंने तो मज़ाक में ये तक कहा कि मैं मर्दों की जगह वाइब्रेटर से काम चला लूँगी, कभी भी उनकी तरफ देखूँगी भी नहीं। (माफ़ कीजिये: मैंने मर्दों से मिलना जारी रखा!)

वाइब्रेटर खरीदते समय, मैं कई मज़ेदार स्थितियों में फंसी हूँ। सबसे पहले तो मुझे पता ही नहीं था कि इसे कहाँ से खरीदना है। पता ही नहीं था कि इसे आसानी से ऑनलाइन ऑर्डर किया जा सकता है। वाइब्रेटर को तो सबकी नज़र से बचाकर किसी ख़ास तरीके से बेचा जाना चाहिए था। है ना? मुझे तो लगता था कि जितना हराम उनको माना जाता है, उस हिसाब से तो उनको शहर के बाहर किसी रहस्यमयी महिला के घर की छोटी सी खिड़की से बेचा जाना चाहिए था। लेकिन शुक्र है, आप उसे ऑनलाइन खरीद सकते हैं! (मैं उस समय यू.के. में थी, लेकिन आप इसे इंडिया में भी ऑनलाइन खरीद सकते हैं)। बाद में मुझे ये भी पता चला कि यू.के. में ऐसी वास्तवविक दुकानें हैं जहाँ से आप इन्हें खरीद सकते हैं। हालाँकि, मुझे उनमें जाने का मौका नहीं मिला।

दूसरा, मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि कौन सा खरीदना है। इतने तरह के वाइब्रेटर्स थे। अलग-अलग आकार और साइज़। कुछ नुकीले दिखते थे, पुराने अंग्रेज महलों की तरह। कुछ ऐसे डिज़ाइन थे जिनको देखकर लगा कि वो मेरी योनी  में जाकर खो जाएंगे। और फिर उनकी खोज़ के लिए मुझे बचाव दल को नीचे भेजना पड़ेगा। और कुछ इतने बड़े थे, जैसे कि रिमोट-कंट्रोल वाली छड़ी पर चढ़ा हुआ माउंट एवरेस्ट। इन हालातों में मैंने अपने एक समलैंगिक दोस्त की मदद ली। बहुत सारी तस्वीरों के आदान-प्रदान के बाद, हमें एहसास हुआ कि मुझे उस आकार और साइज़ की चीज़ ढूँढ़नी होगी जिसे मैं अपनी योनी में डालकर भी सहज  महसूस करूँ। हमने बात की कि जब वो मेरे अंदरूनी हिस्सों को छुएगा तो कैसा लगेगा। और आख़िरकार हमने एक वाइब्रेटर चुन लिया। एकदम साधारण डिज़ाइन। कोई खुरदरी सतह नहीं। मुलायम। सुंदर। और गहरा गुलाबी।

तीसरा, आख़िरकार जब वाइब्रेटर आया, मैं उसका इस्तेमाल नहीं कर सकी। मुझे पता ही नहीं था कि वाइब्रेटर्स भी बैटरी पे चलते हैं, और वो आपको अलग से खरीदनी होगी। अलग-अलग बैटरी को आज़माने और ये पता लगाने में एक और महीना लग गया कि कौन सा उसमें फिट बैठेगा। अब टीवी रिमोट की तरह इसे भी दुकान में ले जाकर सारी बैटरी ट्राय करके तो नहीं देख सकती थी ना।

तो अब, मेरा वाइब्रेटर इस्तेमाल करने के लिए पूरी तरह से तैयार था। मेरे शानदार खिलौने में मेरी जादूई छतरी/ भगशेफ के लिए साइड में एक खास हिस्सा भी बना था। 

मेरे मन में सब सेट था- आपके पास एक वाइब्रेटर है; आप इसका इस्तेमाल करते हैं और पैरों तले ज़मीन खिसकने जैसा उन्माद पाते हैं, और फिर पुरुषों को रफ़ा दफ़ा कर उसे ही अपना सबकुछ मान लेते हैं। पितृसत्ता को जड़ से उखाड़ फेंकने की तीन लेवल की प्रक्रिया। दोस्तों के साथ हुई बातचीत  से भी ऐसा ही कुछ सामने आया।

लेकिन ये अपने-आप नहीं हुआ। शुरुआत में तो, मैंने इसे सिर्फ अपने योनी की बाहरी/ खुलते हिस्सों पर रखा; अंदर लिया ही नहीं। थोड़ा डरी हुई थी। "कहीं अंदर ही अटक गया तो?"

मैंने इंटरनेट पर कुछ ऐसी ही कहानियां पढ़ी थीं, जहां वाइब्रेटर्स अटक जाते थे और लोग शर्मनाक परिस्थितियों में फंस जाते थे। (पीछे मुड़कर देखूँ तो मुझे लगता है कि मेरे पास जो भी जानकारी थी, वो किसी विश्वशनीय सोर्स से तो आयी नहीं थी। मुझे तो जो जैसे बताता गया, मैं मानती गई।)

पहली बार जब मैंने इसका इस्तेमाल किया, मेरे शरीर में बिजली तो दौड़ी, लेकिन उसके आगे कुछ भी नहीं हुआ। मुझे जिसकी उम्मीद थी, वो पैरों तले ज़मीन खिसकने वाला उन्माद तो इसने मुझे नहीं दिया। शायद उस दिन मैं वैसे मूड में नहीं थी।

धीरे-धीरे, एक सुनहरा सफ़र शुरू हुआ। कभी-कभी, मैं इसे सिर्फ योनी  के बाहरी दीवारों पर रगड़कर खुद को ललचाती थी। तो कभी-कभी, मैं इस तरह खो जाती या विचलित हो जाती कि उसे पूरी तरह से अंदर भी नहीं लेती थी। बाहर ही चहलकदमी करती मानो अंदर जाने के रास्ते में घेराबंदी हो। और कई बार तो मैं इतनी उत्साहित हो जाती कि मुश्किल से खुद को कंट्रोल कर पाती। कभी-कभी लगता कि बस इतना काफी है। और कभी-कभी लगता कि कुछ कमी है, और मैं बीच में ही रुक जाती।

 कभी-कभी, मुझे दिमाग में अलग-अलग मर्दों, अलग-अलग कहानियों की रूप-रेखा, अलग-अलग भूमिकाएं निभानी पड़ती। और कभी-कभी बिना किसी तीसरे क़िरदार के सिर्फ मैं और मेरा वाइब्रेटर मज़े करते। जैसे-जैसे टाइम बीता, मैं उसे और अंदर लेने लगी। और धीरे-धीरे, मैंने इसे इतना भीतर लिया जिससे वो मेरे अंदरूनी हिस्सों को छू सके और मुझे चरम सुख दे सके। कभी-कभी ये एक बार में ही सही जगह पे हिट करता, और मेरी सांसें ऊपर की ऊपर ही रह जाती थी, आह!  

कभी-कभी मैं इतनी थकी रहती कि इसका इस्तेमाल ही नहीं करती। बीच में एक ऐसा वक़्त भी आया जब मैं अपने वाइब्रेटर का इस्तेमाल नहीं कर पाई। एक ऐसे इंसान के साथ ब्रेकअप हुआ, जिसे मैं बेहद प्यार करती थी। उस वक़्त जब भी मैं वाइब्रेटर इस्तेमाल करने की कोशिश की, तो उसका चेहरा सामने आ जाता, और मैं रोते-रोते रूक जाती।.

तो बात ये है कि, एक वाइब्रेटर कोई जादू की छड़ी नहीं है। वो एक उपकरण है। वाइब्रेटर इस्तेमाल करने से भले मेरे शरीर में हर बार हलचल मची हो, लेकिन हर बार वो चरम सुख नहीं मिला है।

मैंने तो सोचा था कि वाइब्रेटर मेरी दुनियां बदल देगा। हां, उसने बदला भी। लेकिन कुछ हद तक ज़िंदगी यूं ही रही । बल्कि वो मेरी लाइफ का एक  हिस्सा बन गया और मेरे हर तार से बंध सा गया। मेरे मूड, मेरी कल्पना, मेरे मानसिक और शारीरिक हेल्थ से! ये हर बार सही स्टेशन पर पहुंचाने वाली सीधी पटरी पर चलती ट्रेन नहीं है। ये तो एक सफ़र है, खुद को जानने-समझने का। मुझे क्या पसंद है, किस तरह पसंद है, कितनी तीव्रता से पसन्द है! कैसी कल्पनाएं मदद करती हैं और कैसी नहीं।

वाइब्रेटर से एक आज़ादी वाली फीलिंग आती है। इसलिए नहीं कि वो मुझे झंकझोर कर रख देता है, बल्कि इसलिए क्योंकि वो मुझे इस सफ़र का पूरा कंट्रोल देता है। अपने बारे में, अपने शरीर के बारे में जानना भी तो एक तरह की आज़ादी ही है। वाइब्रेटर इस सफ़र में मेरा साथी रहा है।

सेक्स, मेरे लिए, मुश्किल रहा है। खासकर, क्योंकि मेरे पार्टनर्स को जब भी मैं बताती कि मुझे क्या पसन्द है, वो ध्यान ही नहीं देते। यहां तक कि खुद को प्रगतिशील मानने वाले मर्द, जिनको मैंने डेट किया था, ये जरूर पूछते कि मुझे चरम सुख मिला या नहीं- लेकिन बस एक ज़िम्मेदारी से लहज़े से। अक़्सर मैं भी रोबॉट की तरह सिर हिलाकर हां कह देती। डर था कि ना कहने से उनके अहंकार को चोट पहुंचती। कई बार तो ऐसा लगता जैसे सेक्स कोई काम है जो में अपने पार्टनर के लिए कर रही हूँ । अक्सर, ऐसा लगता जैसे हमने साथ मिलकर इस सुख का सफ़र तय किया ही नही। वाइब्रेटर ने मुझे खुद को हर तरह के ढोंग या परफॉरमेंस के बिना,  आनंद हासिल करने की इजाज़त दी।

मैंने मर्दों की जगह उसे नहीं दी। बल्कि मैं तो चाहती थी कि मेरे मर्द पार्टनर्स मेरी इस प्रक्रिया का हिस्सा बनें। मैंने कल्पना करती कि मैं आराम से लेटी हुई हूँ और मेरा पार्टनर पूरे दिलोजान से मुझ पर वाइब्रेटर का इस्तेमाल कर रहा है। अभी तक मैंने ऐसा किया नहीं है। कुछ मर्दों को तो वाइब्रेटर का इस्तेमाल करने के ख़्याल से ही हिचकी आने लगी। मुझे याद है कि एक बम्बल डेट तो वाइब्रेटर को अपमान की तरह ले बैठा। उसने कहा कि उसके साथ मुझे वाइब्रेटर की ज़रूरत नहीं होगी। मानो यहां कोई प्रतियोगिता चल रही हो। मानो अगर वाइब्रेटर से मुझे सुख मिला तो वो कम मर्दाना हो जाएगा।

एक दूसरा मर्द, वो तो इस बात पर नाराज़ हो गया कि मुझे ओर्गास्म क्यों जल्दी आ गया। उसकी शिकायत थी कि मैंने उसे अपनी "पूरी क्षमता" दिखाने का मौका नहीं दिया। मुझे समझ में नहीं आया कि ये पूरा ताम झाम हमने उसके सारे उपकरणों को देखने के लिए किया था या कि आनंद के लिए। मैंने उसके साथ वाइब्रेटर के बारे में बात ही नहीं की।

अच्छे से अच्छे मर्दों ने भी अब तक या तो सिर्फ उपदेश दिए हैं या तो भरोसे वाले मैसेज। किसी ने भी एक्टिव तरीके से इसके इस्तेमाल के बारे में नहीं पूछा, और ना ही उसमें रुचि दिखाई। तो फिर मेरा भी इस बारे में बात करने का मन नहीं हुआ। इसका मतलब ये नहीं है कि अब कुछ नहीं हो सकता।  मुझे उम्मीद है कि कोई तो आएगा जिसके साथ मैं ये बातें खुलकर कर पाऊंगी। जिसके साथ मुझे वाइब्रेटर इस्तेमाल करने और उस अनुभव को महसूस करने का मौका मिलेगा।

फिर मुझे यू.के. से इंडिया वापस आना था। कई दिनों तक मैं इस उलझन में रही कि वाइब्रेटर का क्या करूँ। मैं इसे इंडिया ले जाना चाहती थी। लेकिन फिक्र थी कि इंडियन एयरपोर्ट सुरक्षाकर्मी इसकी जाँच करेंगे, और मुझ पर अश्लीलता के विरुद्ध बने कानून का उल्लंघन करने का आरोप लगाएँगे। ऐसी न्यूज़ मैंने कहीं तो पढ़ी भी थी। गुस्सा तो आया, लेकिन मज़बूरी में मुझे अपना वाइब्रेटर फेंकना पड़ा। उसी दिन मैंने अपने एक दोस्त को मैसेज किया और बताया कि मुझे वाइब्रेटर की कितनी याद आ रही थी।

मैं वापस इंडिया आ गई थी। दो महीने तक घर पर थी। हमारे किराए के छोटे से घर में वाइब्रेटर का इस्तेमाल करना तो दूर, ऑर्डर करने का भी मौका मिलना मुश्किल था। लेकिन एक दिन, जब मैं अपने एक दोस्त से वाइब्रेटर के बारे में बात कर रही थी, तो पता चला वही वाइब्रेटर इंडिया में ऑनलाइन मिलता है। तब तक मैं दिल्ली आ चुकी थी। इसलिए, फ़टाफ़ट ऑर्डर कर दिया। यहाँ, उन्होंने गुमनाम रूप से डिलीवर नहीं किया। डिलीवरी लेते वक्त बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। लेकिन वो वही मॉडल था जो मैं पहले इस्तेमाल कर रही थी, इसलिए मिलाप मधुर था।

इस साल, मैं न्यूज़ीलैंड आ गई। इस बार, मैं अपना वाइब्रेटर फेंकना नहीं चाहती थी। मैंने हिम्मत जुटाई और एयरलाइन को फोन किया। एक दोस्त की सलाह पर, मैंने एयरलाइन को बताया कि मेरे पास "बैटरी से चलने वाला एक मसाज़र" है। उन्होंने मुझे उसकी बैटरी निकालने और चेक-इन बैगेज में रखने के लिए कहा। अब मैं अपना वाइब्रेटर यहाँ ले आई हूँ। काश किसी ने मुझे ये पहले बताया होता!

सुरभि कानून और जेंडर पर लिखती हैं। लेकिन उनका बस चले तो वो एक प्लस साइज़ मॉडल बनना और अपना टाइम इंस्टाग्रामिंग या बी.टी.एस के गानों के बोल पढ़ने में बिताना चाहेंगी।

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