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अगर हम अभी भी एक-दूसरे की लाइफ में रहना चाहते हैं, तो क्या इसे प्यार नहीं कहेंगे?

मैं उससे मिलने के लिए तरसती थी। हम मिलते थे, हुक-अप करते थे। तब तक सब अच्छा चल रहा था, जब तक कि हमने "इसके बारे में बात करने" का फैसला नहीं किया।

हाल ही में मेरी जिंदगी ने एक चक्र पूरा किया, यानी जहां से शुरुआत की थी, वहीं वापस आ गई। जिस आदमी के लिए मैं दो साल से तरस रही थी, उसमें फीलिंग की कुछ झलक दिखाई दी... नहीं, मुझे नहीं लगता वो प्यार था। शायद सहजता वाली फीलिंग थी। या आराम !

ये थी एक छोटी अनोखी कहानी!

मैं महीनों से उसके लिए तरस रही थी, सीने में दर्द दबाए घूमती थी, अपने दोस्तों के सामने घंटों रोना रोकर उनकी जिंदगी जहन्नुम कर रही थी। मैं घबराहट, दिल टूटने से दर्द, दुख, गुनाह, खलबली,शर्म, इन सब के दौर से गुज़र रही थी।

वो मुझे अपना ले, ये ज़रूरत मानो मुझे खा रही थी। कई शर्मनाक और बेढंगे आई-लाइक-यू के बाद, जिनको उसने सीधा खारिज़ कर दिया था, मेरी लालसा मानो एक शांत, अनकहे इक़रार में ठहर गई ।  मैंने खुद को किस्मत के हवाले कर दिया।

और आख़िरकार, किस्मत ने मुझे मेरी उम्मीद से कहीं ज़्यादा दिया। एक साल तक हर महीने मिलने, पीने और हुक-अप करने के एपिसोड (जिसमें मेरी एकतरफ़ा दीवानगी भी साफ़ तौर पे दिखती थी) के बाद, हमारे रिश्ते ने अचानक ही एक सहज सी दोस्ती वाला मोड़ ले लिया। वो सुकून की खामोशी, छेड़-छाड़ और कभी-कभार सेक्स वाली मुलाक़ातों पर खड़ा रिश्ता- जिसकी मैं कद्र करती थी। मैंने ख़ुद को समझाया, कि इससे ज़्यादा का लालच रखना, सही न होगा। वो मेरी ज़िंदगी का हिस्सा था। हम अक्सर मिलते थे। घूमते-फिरते, सिगरेट पीते और टीवी देखते। ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरी देखभाल, मेरी परवाह करने वाला दोस्त बनने की पूरी कोशिश कर रहा था। मैं जो सोचा करती थी कि उसमें कोई भावना नहीं है, या उसे मेरी परवाह नहीं है और उसे बस सेक्स से मतलब है- सब गलत साबित हो रहा था। वो मेरे लिए खड़ा था। दिल टूटने या मेरी तबीयत पे कुछ भी खटका लगने पर वो सहारा देता। और बदले में उसे क्या चाहिए था, बस मेरा साथ। उसने अपनी मौजूदगी का एहसास कराया। इतना काफी होना चाहिए था, है न?

बेशक़, ऐसे मौके भी आये थे जब मेरी वो भावनाएँ जिनको मैं दिल में छुपाकर रखती थी, वो कूदकर  बाहर आ जाती थीं। लेकिन वो अक्सर उनको नरम-मगर-पक्के तौर पे मना कर देता था। ऐसा कई बार हुआ और हर बार मैंने खुद को याद दिलाया कि ये सिर्फ़ एक नज़दीकियों भरी दोस्ती है, इससे ज़्यादा कुछ नहीं।

फिर, एक तेज़ छिड़ी बहस और एक नए साल की शुरुआत के हफ़्तों बाद, मैंने फैसला किया कि मुझे शायद उम्मीद के उस दरवाज़े को हमेशा के लिए बंद कर देना चाहिए। तो मेरी कभी खत्म ना होने वाली बेकरारी को खत्म करने का पहला कदम क्या था? सेक्स के लिए न कह देना। कुछ समय के लिए ये काम भी आया। लेकिन मैं किसे धोखा दे रही थी? एक बार फिर मुझे ही हार माननी पड़ी। लेकिन इस बार, ऐसा लगा, कुछ बदल गया। बाद में उसने मुझे बताया कि वो सेक्स होने के बाद, थोड़ी देर और साथ ठहरना चाहता था ।  मुझे आश्चर्य हुआ। लेकिन एक पल के लिए, खुशी भी हुई। मुझे तो इतने की भी उम्मीद न थी।

इसलिए, हमने एडल्ट्स की तरह, इस बारे में बात करने का और आगे क्या करना है, ये तय करने का फैसला किया।

जैसे-जैसे उससे मुलाकात की घड़ी करीब आती गई, मैं खुशी और घबराहट से भरती गई। मैंने खुद को ईमानदार रहने को कहा: अपनी उम्मीदों और अपेक्षाओं को बांटते समय भले कमजोर पड़ जाऊं, लेकिन अपनी इच्छाओं और जरूरतों से समझौता बिल्कुल ना करने की चेतावनी दी ।  लेकिन जिस मैच्यूर और एडल्ट  तरीके की बातचीत होने की उम्मीद थी, वो तो बस दूसरे को दोष देने और खुद का बचाव करने की कोशिश रही। जैसे हम एक दूसरे को वो वज़हें बताते रहे, जिनके कारण हमारे बीच का रिश्ता कभी चल ही नहीं सकता था। ऐसा लगा जैसे हम उन कारणों की लिस्ट बना रहे थे, जिनकी वज़ह से हम एक-दूसरे के लिए दरअसल बिल्कुल सही नहीं थे: पारिवारिक परिस्थितियाँ, लगाव के अलग-अलग तरीके, हमारा अतीत और इन सबके बीच की हर चीज़।

उस उजाड़ दिन, मेरे दो साल के बेमतलब दुःख-दर्द को मतलब मिल गया।  वो सच ही तो कहते हैं: आपको अपनी घबराहट पर यक़ीन करना चाहिए - ये आपका शरीर है जो आने वाली किसी आपदा के लिए तैयार हो रहा है। पता चला कि मेरा भी तैयार था । 

मैं देख पायी कि आख़िर वो कौन था। वैसे याद दिला दूं कि वो तो हमेशा ऊपर से भी वही रहा है, जो कि वो अंदर से है। उल्टा मैं अपने दिमाग में इतनी उलझी हुई थी, कि गुलाबी रंग का चश्मा उतार ही नहीं पाई।

उस आदमी में भी उतनी ही कमियां थीं, जितनी कि मुझमें। उसे नज़दीकियों से डर लगता था, भरोसे की कमी थी। लेकिन वो अपने आकर्षण और रसीले स्वभाव के आड़े, इन कमियों को बड़ी अच्छी तरह छुपा लेता था। आख़िरकार मुझे वो देखना पड़ा जो मैं हमेशा से ही जानती थी। हम एक दूसरे के लिए बिल्कुल सही नहीं थे। एक तरफ मैं प्यार और स्नेह की भूखी, और दूसरी तरफ वो, जिसे ये तक कहने में शर्म आती थी कि वो मुझे पसंद करता है। मैं हर मौके पर उसके अपनेपन, उसके यक़ीन को तलाशती और वो खुद पर थोपी हुई इन किस्म -किस्म की मांगों के जाल में अपने को फंसा पाता।

हमारे रिश्ते का कोई मतलब नहीं- उससे संबंधित हर मौजूदा वज़ह की लिस्ट बना लेने के बाद, वक़्त आया एक बड़े सवाल का सामना करने का। 

“तो, हमें अब क्या करना चाहिए?” उसने पूछा। “इसे आगे बढ़ाने का कोई फ़ायदा नहीं,” मैंने तपाक से, और इतने सीधे तरीके से फैसला सुनाया कि खुद भी चौंक गई।

सब कुछ देखकर फैसला लिया जा चुका था। लेकिन उस वक़्त सही यही लगा कि हमारे बीच किसी रिश्ते की उम्मीद को अलविदा कहने से पहले "एक आखिरी सेक्स” तो बनता है। इतना तो वाज़िब था।

हम हमबिस्तर हुए, उसके बाद वो दरवाज़े से बाहर चला गया। तब ना जाने क्यों मुझे अचानक ही घबराहट महसूस हुई। क्या बस इतने तक ही था हमारा रिश्ता? नहीं! हमने सही से अलविदा नहीं किया। कुछ तो और चाहिए था। शायद एक किस? या एक बार ज़ोर से झप्पी? कुछ भी। इसलिए, मैंने उसे वापस घर बुलाया- एक आख़िरी गुडबाय किस के लिए। उसकी बड़बड़ाहट शुरू हो गई, कि उसे वापस दो मंजिल सीढ़ियां चढ़कर वापस आना पड़ेगा।

मैं निराशा की घोंट पी कर रह गयी। मुझे ये एहसास हो गया कि अगर हम अपनी भावनाओं को इसी तरह दबाते रहे, तो भविष्य में कुछ नहीं बदलने वाला। टीस देने वाला असंतोष और कभी ना खत्म होने वाली लालसा। मेरी भूख बढ़ती रहेगी और जो भी मिलेगा, कभी काफी नहीं होगा। ये प्यार फटे हुए दूध की तरह खटास से भरता जाएगा। अगर मैं आगे बढ़ने की जिद करूं, तो एक अच्छा दोस्त भी खो दूंगी।

इस रिश्ते को संभालना, किसी भी और रिश्ते से ज़्यादा मुश्किल  रहा है ।  हम दोस्त हैं, लेकिन ये हमेशा उससे कुछ ज़्यादा ही रहेगा। लेकिन जैसा कि मैंने बार-बार खुद से कहा: मैं लालची नहीं हो सकती। मुझे इस रिश्ते से आगे बढ़ना होगा। इस रिश्ते के लेन-देन को इतना महान मानने की ज़रूरत नहीं। अपने अभिमान को पी जाओ और जो जैसा है, उसे वैसे ही अपनाओ। यानि मान लो कि ये  एक प्यार है , जो हमेशा अधूरा रहने वाला है। कि अब वो इंसान हमेशा के लिए निःसंदेह मेरा "दोस्त" रहेगा, और हमेशा ही मुझे ये कहने में कुछ हिचक रहेगी ।

अब जबकि तीन महीने बाद मैं इस आर्टिकल को एडिट कर रही हूँ, तो ये बताना चाहती हूं कि उसके साथ, उस कम समय के रिश्ते में भी, मुझे मज़ा बहुत आया। हां, हमने कुछ पल साथ बिताए। फिर भले हमने हार मान ली। और वो पल ख़ूबसूरत थे - उनमें प्यार, स्नेह, खुशी और अपनापन था। अफ़सोस, वही डर जिसपर हमने देर तक चर्चा की थी, हम पर हावी हो गए। काश मैं उसके साथ और वक़्त बिता पाती। काश मैं उसे फिर से चूम पाती। काश मैं अपने उन निज़ी हिस्सों को उसके साथ बांटते हुए मुस्कुराती, जिनको मैंने पहले कभी किसी के साथ नहीं बांटा था ।

लेकिन हमने तय किया है कि हमें अपनी दोस्ती को बरक़रार रखने के लिए अलग हो जाना चाहिए। मुझे नहीं पता कि हमारे रिश्ते का समीकरण अब क्या रूप लेगा। हालाँकि मैं एक बात जानती हूँ: हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं। उस रोमांटिक तरीके से नहीं, जिसकी मैंने उम्मीद की थी। लेकिन हम एक-दूसरे की ज़िंदगी में रहने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। यक़ीन मानो, ये मुश्किल काम है। लेकिन हां, मैं चाहती हूँ कि किसी दिन, मैं हम दोनों को, अपने लिविंग रूम में एक साल पहले की तरह आराम से बैठे हुए पाऊँ: सिगरेट पीते, टीवी देखते, और जिंदगी में हमारे सामने आने वाली अजीबोगरीब चीज़ों पर हँसते।

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