मैं सोचती रहती हूं कि क्या मुझे कभी ऐसा प्यार मिलेगा जो पल भर में छू ना हो। सिर्फ दो महीने में पूरे 30 की हो जाऊंगी। मुझे ये जानने की उत्सुकता है कि जिस लड़की के लिए खुद से प्यार करना भी मुमकिन ना हो, क्या उसको किसी और का प्यार मिल सकता है!
नमस्कार, मैं अरीना हूं, एक औरत जो नारीत्व की ओर चल पड़ी है। यहां सबसे ज़रूरी चीज मेरा जेंडर है।
हम कहते हैं कि प्यार को जेंडर से परे होना चाहिए, लेकिन अगर ऐसा है, तो फिर मुझे प्यार में ऐसे निराश अनुभव क्यों हुए?
मेरा पहला नशा-पहला प्यार क्लास के एक लडके से हुआ। तब मैं 14 साल की थी और पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गाँव के मुस्लिम समुदाय में रहते हुए अपनी लैंगिक पहचान तलाशने की कोशिश कर रही थी।
इस प्यार से सुकून मिलता था। एक छोटे से गाँव में औरतों जैसे हाव-भाव रखने वाला लड़का, यानि कि मैं! मुझे रोज़ाना ही नफ़रत और दादागिरी का सामना करना पड़ता था। जब मेरे परिवार में हर कोई मुझसे यही कहता कि मेरे में कुछ गड़बड़ है और मेरा मज़ाक उड़ना लाज़मी है, तब इसी लड़के ने मुझे समझा। जब भी वो बदमाश मेरे औरत वाले लक्षण का मज़ाक उड़ाते थे, वो उनसे भिड़ जाता था।
वह हमेशा से मेरा सहारा रहा। मेरी बहन की शादी के दौरान, ससुराल तरफ के शराबी भाई ने मुझे नंगा करके परेड करवाने की कोशिश की, ताकि ये देखा जा सके कि मेरे जननांग मर्द के हैं या औरत के। इस लड़के ने मुझे शादी के मंडप से बाहर निकाला, उस अपमान से बचाया और रोने के लिए अपना कंधा भी दिया। जब मेरे माता-पिता ने मुझसे कहा कि मैं इतनी हराम हूँ कि मेरी वजह से उनको कभी जन्नत नसीब नहीं होगी, तब भी इस लड़के का प्यार मुझे किसी जन्नत से कम नहीं लगा।
वैसे तो मैं एक ट्रांसजेंडर और एक सिसजेंडर इंसान की शारीरिक संरचना के बीच के अंतर को समझने की कोशिश कर रही थी, उस लड़के के प्यार ने मुझे पूरी तरह से लड़की होने का एहसास कराया। एक बहुत ही रूढ़िवादी मुस्लिम इलाके में क्वीयर के रूप में बचपन का सफर तय करना काफी मुश्किल रहा। बस उस लड़के की बाहें ही तो थीं, जिसमें मुझे चैन मिलता था।
लेकिन मुझे कहां पता था कि जिस प्यार ने मुझे पूरा किया, वही मुझे तोड़ देगा। वही मुझे वास्तविकता का एहसास कराएगा और मेरी कल्पना के गुब्बारों में सुई चुभो देगा।
17 साल की उम्र में उसे आर्मी में नौकरी मिल गई। वो बहुत खुश था। गांव छोड़ने से पहले वो मुझसे मिलने आया। हमने सेक्स किया और उसने मेरे माथे को भी चूमा। फिर धीमी गुनगुनाती हुई आवाज़ में फुसफुसाया, "प्लीज मेरा इंतज़ार करना!"
वह दिन बहुत बढ़िया था। मुझे बस यही उम्मीद थी कि वो मेरे लिए बॉर्डर का "तो चलु" गाना गाए। उससे बिछड़ने का वो पल और भी खास हो जाता।
आर्मी ट्रेनिंग के शुरुआती दिनों में, वो अक्सर कॉल करता और अपनी ट्रेनिंग से जुड़ी हर छोटी-बड़ी बात बताता था। लेकिन धीरे-धीरे, कॉल आने कम हो गए। उस समय मुझे उसकी बहुत ज़रूरत थी। मैंने उसे कई कॉल किये।कभी-कभी कॉल का जवाब मिलता था, लेकिन सिर्फ कुछ सेकंड के लिए।
मेरा परिवार मुझे "नार्मल" व्यवहार करने के लिए मानसिक तौर पर मजबूर कर रहा था, ताकि मैं सीस (cis) मर्दों के लिए समाज ने जो मानदंडों तय किये हैं, उनमें फिट हो जाऊं। मैं अपने दर्द को दूर करने के लिए खुद को हानि पहुंचाने वाले तरीके आज़माने लगी। जैसे कि अपने आप को काटना, सिर पीटना, साइकोएक्टिव ड्रग्स का इस्तेमाल करना और गोंद (सूंघने वाला ड्रग) का ओवरडोज लेना। लेकिन उसने अपनी ट्रेनिंग के बाद ना ही कभी फोन किया ना ही मिलने की कोशिश की।
मुझे पूरा यक़ीन था कि वो मुझसे मिलने आएगा। मैं उसके आर्मी कैंप से आने का ट्रैक तो रखती थी, लेकिन उससे मिलने से डरती थी। उसके व्यवहार में आये इस अचानक बदलाव ने मुझे चकरा दिया था।
खैर, एक दिन, मुझे हिम्मत मिली। मैं उसके घर गई। वो मुझे देखकर शर्मिंदा लग रहा था।
मेरा हाथ पकड़ वो मुझे बाहर ले गया। मैंने पूछा कि आख़िर ऐसा क्या हुआ था, मेरी आँखों में आँसू थे। वो नौ महीने से मुझसे मिलने क्यों नहीं आया था? मेरी कॉल का जवाब क्यों नहीं दे रहा था? वो शांत लेकिन निर्दयी लग रहा था। उसने "पाप" शब्द का इस्तेमाल किया। मैंने कहा कि जरा समझाओ। उसने कहा कि समलैंगिकता एक "पाप से भरा एक्ट" है। उसने कहा कि उसने मेरे साथ पाप किया है, लेकिन अब वो उसे आगे जारी नहीं रख सकता। मुझे नहीं पता कि आर्मी कैम्प में उसका मूल स्वभाव और उसकी सोच कैसे बदल गए। उसे नफरत करना कौन सिखा रहा था?
उसके शब्द तीर की तरह दिल में चुभे, सब तार-तार हो गया। सड़क पर किसी तरह लडखडाते हुए मैं घर का रास्ता पकड़ पाई। घर पहुंचते ही पीने के लिए एक फिनाइल की बोतल उठाकर बाथरूम में भागी। मुझे मेरे ट्रांसफ़ोबिक परिवार ने बचाया, वही परिवार जो कभी-कभी मेरे मरने की प्रार्थना करता था।
इस घटना के बावजूद, प्यार से उम्मीद खत्म नहीं हुई।
मैं अपने राजकुमार का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी, कि वो आएगा आउट मेरे समलैंगिक अस्तित्व को सहनीय और गवारा कर पायेगा। लेकिन मेरे लिए उस रूढ़िवादी मुस्लिम इलाक़े में प्यार पाना चुनौती से भरा था। वहां मुझे लोगों के सामने खुलकर बाहर आने में झिझक होती थी।
मुझे अपनी दूसरी डेट पर जाने में आठ साल लग गए। जब मैं चंडीगढ़ गई, तब जाकर ऐसे लोगों को ढूंढना आसान हुआ, जो छुप-छुपाकर समलैंगिक लोगों को डेट करना चाहते थे।
आप 100 मीटर के दायरे में भी किसी को ढूंढ सकते थे। उनका लक्ष्य सिर्फ मौज-मस्ती करना होता था। वो रिश्तों को गंभीरता से नहीं लेते थे। मैं उन लोगों को दोष नहीं देती जो मुंह पे ये बोल देते हैं। लेकिन मैं उन लोगों से नफ़रत करती हूँ जो सिर्फ़ मेरे साथ सोने के लिए प्यार की भावनाएँ जगाते हैं।
वे इतनी चिकनी-चुपड़ी बातें करते थे कि मुझे यक़ीन होने लगता था कि किसी समलैंगिक इंसान के लिए प्यार पाना मुश्किल नहीं। ये रिश्ते पल भर में छू हो जाते और मैं खुद को उनसे मेरे साथ रहने की भीख मांगते पाती।
लेकिन मेरे दिल में खंजर घोंपकर, वो चले गए। एक ऐसा घाव देकर, जो पहले से भी गहरा था। वो मेरे पूरे अस्तित्व को झंकझोरकर और अपने पीछे बहुत सारे सवाल छोड़ कर गए।
क्या मेरे जैसा क्वीयर इंसान कभी भी किसी का प्यार पा सकता है? क्या मुझे कभी ऐसा प्यार मिलेगा जो मुझे सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने में शर्मिंदा नहीं होगा? मैं कोई ऐसा इंसान ढूंढ रही थी जो मुझे अपनाकर मुझे मेरी कीमत का एहसास दिलाये। दूसरों के प्यार की मोहताज़ थी मैं!
लगातार दिल टूटने के बीच, मैंने अपने समुदाय के अंदर प्यार तलाशने की कोशिश की। हालांकि मैंने जानबूझकर ये नहीं किया, बस समझो कि नियति थी। बैंगलोर में पेरीफेरी द्वारा आयोजित एक कॉर्पोरेट ट्रेनिंग प्रोग्राम में शामिल होने से पहले मैं कभी किसी ट्रांसमर्द या बोले तो ट्रांस-मैन से नहीं मिली थी। बेलांदूर, बैंगलोर में इस्तारा नाम के एक लड़के-लड़कियों के साथ रहने वाले संस्थान में लगभग दो महीने तक रही।
वो लड़का अच्छी कद काठी का था। जब उसने मेरा सामान उठाया और मुझे मेरा कमरा दिखाया, मेरे दिल में हलचल सी मच गई। वो ट्रेनिंग प्रोग्राम में मेरी मदद करता था और मुझसे बहुत ही चुलबुले तरीके से बात भी किया करता था।
प्रोग्राम में शामिल हर कोई समझ गया था कि हमारे बीच कोई खिचड़ी पक रही थी। एक दिन, उसने अपना हाथ मेरे हाथ पर रख दिया। इतना मुलायम, सहानुभूति से भरा हुआ। हमने किस किया जबकि उसका हाथ मेरी छाती को दबाने की कोशिश कर रहा था। वो हँसा और फिर उसने अपना हाथ हटा लिया।
मैंने पूछा क्या हुआ। उसने कहा, "नज़दीक से देखने पर तुम्हारा चेहरा बहुत चौड़ा और मर्दाना दिखता है"। मेरा चेहरा मेरे दिल के टूटने की दास्तां बयां कर रहा था। उसे भी शायद ये महसूस हुआ। झट से उसने कहा कि वो तो बस मज़ाक कर रहा था। लेकिन, मुझे पता था कि वो कोई मज़ाक था। और बाद में वही सच साबित हुआ। जल्द ही, उसने मेरे रूप-रंग के बारे में बिना मतलब के ही टिप्पणियाँ करनी शुरू कर दी। जबकि वो मेरे साथ शारीरिक संबंध बनाता रहा।
उसने कहा कि उसके दोस्त हमारे रिश्ते का मज़ाक उड़ाते थे। “उन्हें लगता है कि हम एक कपल जैसे साथ में अच्छे नहीं लगते”।
इन शब्दों ने मुझे बहुत दुःख होता था।
उसने मुझसे कहा कि तो बस बोरियत से छुटकारा पाने के लिए टाइम पास कर रहा था। उसने ये भी कहा कि वो वैसे भी एक नार्मल लड़की से शादी करेगा। मैंने उससे पूछा कि उसके लिए नार्मल का मतलब क्या है। वो चुप रहा और चला गया। मुझे लगा था कि वो समझेगा।\
मुझे लगा था कि वही मेरे सपनों का राजकुमार, मेरे जीवन का प्यार है। हमारे संघर्ष और सफर एक जैसे रहे थे। ट्रांसजेंडर होना उसके लिए भी तो आसान नहीं रहा होगा। उसने भी तो वही लड़ाई लड़ी थी, जिसमें उसके परिवार ने उसे नहीं स्वीकारा और उसे घर छोड़ना पड़ा था। उसके साथ हर वो चीज हुई थी जिनसे मैं भी गुज़र चुकी थी। इसलिए मुझे यक़ीन था कि वो मेरा दिल नहीं तोड़ेगा।
इसलिए वो जो झूठ बोल रहा था उसे मआन पाना काफी आसान था। मुझे उम्मीद थी कि इस बार ये कुछ खास होगा, ना कि पहले के रिश्तों की तरह बिना किसी भावना या मतलब के।
मैं उस हाथों की चाहत रखती हूँ जो सार्वजनिक रूप से मेरा हाथ थामने से न डरें। मैं हमेशा किसी ऐसे इंसान के सपने देखती थी जो मुझपे गर्व महसूस करे ना कि मुझे अपने मनोरंजन के लिए मेरा इस्तेमाल करे।
और, जब मेरी सारी चाहतें टूट गई हैं, तो मैं अपने प्रेम से परे इस जीवन को अपने लिए कुछ खास करने के लिए कैसे समझाऊं। मुझे अब प्यार पर यक़ीन नहीं रहा।
अरीना आलम एक लेखिका हैं जिनका काम हमारे समाज में ट्रांसजेंडर लोगों के प्रति मौजूद पक्षपात से प्रेरित है। वो एक ट्रांसजेंडर इंसान के रूप में अपने पर्सनल सफर के आधार पर बनी अपनी गहरी सोच बयां करती हैं। कई ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म और न्यूज़पेपर में उनकी लेखनी छपी है।