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नकटोरिया: सुहाग रात और मर्दों की बात का झन्नाटेदार प्रोग्राम

आजमगढ़ की यादव शादियों में. नौटंकी और स्टेज तोड़ नाच से, एक अलग ही दुनिया के रिवाज के पिटारे खुलते हैं ।

रंग-बिरंगे कपड़े और आभूषण पहने दो महिलाएं हैं। उनमें से एक ने पुरुषों की तरह कपड़े पहने हुए हैं। दोनों ने अपने कूल्हों को एक दूसरे के करीब ला दिया है और साथ में डांस कर रहे हैं। कार्ड के शीर्ष पर पत्तियों से ढ़की एक बेल है।

कार्ड पर लिखा है

आजमगढ़ यूपी में यादव शादियां कई बार 9 दिन तक चलती हैं। 8वें दिन जब बराती घर के बाहर होते हैं । तब औरतों का मजमा लगता है, और उनकी एक खास पार्टी होती है ।

पार्टी का खास आइटम, नकटोरिया नाम की एक सेक्सी रीत होती है, जिसमे क्या मरदाना है, क्या औरताना सब कुछ उल्टा पुल्टा है।

कार्ड 1 वाला जोड़ा उसी अवस्था में कार्ड 2 पर दर्शाया गया है।

कार्ड पर लिखा है: 

औरतें घर में जमा होकर जोड़ों में बंट जाती हैं।

उनमें से एक मर्द के कपड़े डालती है ।

एक दूसरे के साथ नाचते हुए

वो अपने कूल्हे पास पास ले आती हैं ।

और अभी ब्याहे जोड़े की 'नकल' उतारती हैं । वो अभी–अभी शादी किए जोड़े का खेल खेलती हैं।

मतलब वो 'पहली' यानी सुहाग  रात के वो सारे सेक्सी करतबों का नाटक करती हैं, जो कि होने वाले हैं ।  वो अपने पतियों या दूल्हे के बिस्तर के हुनर का मज़ाक उड़ाती हैं ।

“दूल्हा के हिले ना कमरिया, दूल्हा त मिलल लरकईयां”

गानों में इतना गाली गलोच होता है, तभी तो इन्हें गारी गीत कहा जाता है।

ये अगले दिन भी चालू रहता है!

पारंपरिक कपड़ों और आभूषणों में एक जोड़े को दर्शाया गया है। उनके गले में मालाएँ हैं। पृष्ठभूमि में महिलाओं के एक छोटे समूह को वार्ली कला-शैली के वाद्ययंत्र बजाते हुए दर्शाया गया है। उनके पास स्थित एक स्पीच बबल में लिखा है, 'जस्ट मैरिड!' कार्ड में एक ईंट की दीवार और एक घंटी भी है।

कार्ड पर लिखा है: 

9वें दिन तो एकदम अलग ही माहौल रहता है–

उस दिन होता है मौर सेरवाना ।

औरतें पहले तो मंदिर में पूजा करने जाती हैं और फिर उसके बाद, नाचती हैं और गारी गाती हैं।

इधर ये सब हो रहा होता है और उधर दूल्हा दुल्हन गांव के सभी मंदिरों में जाते हैं, ये ऐलान करने कि शादी सही से हो गई है !

जानना चाहोगे ये गाने कैसे होते हैं?

तो स्वाइप करो तड़ातड़ गाली वाले गारी गीतों के लिए>>

कार्ड में उसी जोड़ा दिखाया गया है जो इसके पहले कार्ड वाले में था। यहां पति को अब पसीना आने लगा है।

कार्ड पर लिखा है: 

सोने की थाल में खाना परोसा, दूल्हा खाता नहीं 

अरे दूल्हा के हिले ना कमरिया, दूल्हा त होई हें लरकईयां/दूल्हा तो बच्चा है ।

कपवा में भरल बा पनिया, दूल्हा पिए ना पईया पईया/ दूल्हा पानी से भरा कप पीता नहीं 

अरे दूल्हा के हिले ना कमरिया, दूल्हा त होईहें लरकईयां।

तकिया लगाई के बिस्तरा बिछायो, दूल्हा के लागे नाही निनिया/ दूल्हे को नींद नहीं आती  

अरे दूल्हा के हिले ना कमरिया, दूल्हा त होईहें लरकईयां।

अगर अभी भी समझ ना आया हो तो “हिले ना कमरिया” मतलब दूल्हे को सेक्स मचाना  नहीं आता!

कार्ड में एक दूल्हा-दुल्हन को हाथी पर बैठे हुए और दो अन्य महिलाओं को उनके साथ चलते हुए दिखाया गया है। दूल्हा थका हुआ है।

कार्ड पर लिखा है: 

एक काफ़ी है क्या? बिल्कुल भी नहीं! तो ये रहा एक और!

एक आखिरी गारी गीत

ये मौर सेरवाते वक्त गाया जाता है।

छिनरो (आलसी औरत/ वैश्या) गईल डीह बाबा (गांव के देवता) पूजे, डीह बाबा के चोदलस हजार हाली हो

[ छीनार गई डीह बाबा को पूजने, डीह बाबा के साथ हज़ार बार सेक्स मचाया]

पतोह के मउसी गईल डीह बाबा पूजे, डीह बाबा के चोदलस हजार हाली हो/

[दुल्हन की मौसी गई डीह बाबा को पूजने, डीह बाबा के साथ हज़ार बार सेक्स मचाया]

रुकुमिना (दुल्हन की मां) के माई गईल डीह बाबा पूजे, डीह बाबा के चोदलस हजार हाली हो।

[रुक्मिणी (दुल्हन की मां)गई डीह बाबा को पूजने, डीह बाबा के साथ हज़ार बार सेक्स मचाया]

कार्ड 1 पर दिखाए गए समान जोड़े को यहां दर्शाया गया है - दो महिलाएं कूल्हे से जुड़ी हुई हैं, एक साथ नृत्य कर रही हैं।

कार्ड पर लिखा है: 

शोध करने वाले लोगों का कहना है कि गारी गीत जेंडर के ऊंच नीच –जिसके आधार पे  शादियां होती हैं– को पलटने का एक  तरीका हैं।

भौंचक्का कर देने वाला ये उनका तरीका, ऊंच नीच के खेल की आलोचना या चुनौती है, पर साथ- साथ उनको मानना भी है – क्योंकि ये थोड़े समय के लिए होता है, और फिर, वही रोज के घिसे हुए रिवाज़ ।

पूरे दक्षिण एशिया में ऐसे रिवाज हैं, खासकर शादी और दूसरे त्यौहारों पर। तुम भी अगर ऐसा कुछ जानते हो तो कॉमेंट में लिख डालो या मैसेज करो।

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