मैं सिर्फ 18 साल की थी जब मैं दिल्ली पहली बार आयी थी। ( यह झूठ है। मैं अपने भाई के जन्मदिन पे, उसे सर्प्राइज़ करने दिल्ली आयी थी। उस समय मैं 15 साल की थी और वो ग्रेजुएशन कर रहा था। कहने की ज़रुरत नहीं है , कि ये उतना मायने नहीं रखता ) । हाँ , किसी भी 18 बरस वाले की तरह , जो कि अपने माँ बाप से हज़ार मीलों दूर रह रहा हो , मुझे भी प्यार चाहिए था ( एक संतुष्ट करियर भी , लेकिन यह लेख उस बारे में नहीं है ) । तो मैंने भी वही किया जो 21स्वी सदी में ,प्यार ढूंढ रहे हर इंसान से अपेक्षा की जाती है कि वो करेगा ... यानि मैंने डेटिंग एप्प डाउनलोड कर लिया।
मुझे मेरे प्यार की वो तालाश याद है । रिचर्ड्स रिकेन के शब्दों में, मुझे मेरे ' चाहे जाने की चाहत ' याद है। हालांकि इन सब कामनाओं का नतीजा बस हुकअप की लड़ी के रूप में ही निकला।
मुझे याद है जब मैं पहली बार किसी के साथ सोई थी। यह दिल्ली में हुआ।
मैं 'उन लड़कियों' की तरह बिलकुल नहीं होना चाहती थी, जो पहली बार बस उसी के साथ सोतीं, जो उनको वापस प्यार करे। इस चीज़ से बचने के लिए, सबसे बढ़िया तरीका था किसी अजनबी के साथ सोना । ऐसे किसी के साथ, जिससे मैं यूं ही किसी डेटिंग एप्प पे मिली थी। यादें भी सच में कितनी मज़ाकियाँ चीज़ हैं । कितनी पक्षपाती ! मेरी यादों में यह बात नहीं बसी कि उसने मेरे साथ सोने के बाद मुझे कभी पलट के कॉल छोड़ो, एक टेक्स्ट तक नहीं किया। यह भी कुछ ख़ास याद नहीं कि उसने उस रात जो भी बिस्तर पे हुआ, उसका गाना लोगों के बीच जा के गा दिया। यानी मेरे यादें उस अनुभव के बुरे पहलुओं की ओर ध्यान नहीं देतीं । जो चीज़ याद है, वो यह है कि मुझे उस अजनबी से किस हद तक, कितनी बुरी तरह से प्यार हो गया था। मेरा दिन बहुत ही खराब चल रहा था। तो जब किसी ने मिलने के लिया कहा, तो यह दर्द के बवंडर से निकलने का बेहतरीन तरीका लगा।
तो मैं जिस दिन उससे हिन्ज नाम के डेटिंग एप्प पे मैच हुई, उसी दिन उससे मिलने का प्लान बना लिया। मैं रात के दो बजे उसके घर पहुंची , और उसने अपने फ्लैट में , जिसमे और लोग भी रहते थे ,मुझे बहुत ही सहज महसूस करवाया।
शुरुआत थोड़ी असंतोषजनक थी , लेकिन जब हम बात करने लगे, तो बातों के पुल बंधने लगे । ऐसा नहीं था कि मैं पहले कभी डेट पे नहीं गयी थी ( गयी थी ) , ऐसा भी नहीं था कि मैंने अजनबियों , जिनके साथ तुरंत जान पहचान हो जाए , उनके साथ बेहद लम्बी बातचीत नहीं की थी, वो भी कभी कभी इतनी लम्बी बातें, जो थका देतीं। लेकिन कुछ तो खास था उस रात में, जब मैं उसके रूममेट के काऊच पे बैठ के, 8 मार्च 2023 यानी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पे, उसका हाथ पकड़ के कोल्ड कॉफी पी रही थी, जो हमने साथ मिल के बनायी थी। इसी चीज़ से मुझे शक हुआ , कि कहीं मेरे दिल पे तीर तो नहीं लग गया था ।
ऐसा लग रहा था हमने दुनिया भर की बातें कर लीं। अल्बर्ट कामू के निरर्थक दुनिया के नज़रिये से ले के, वृन्दावन की विधवाओं तक। हम इतनी देर से बात कर रहे थे, कि मैं सोचने लगी कि उसने मुझे अपने घर सिर्फ बात चीत करने के लिए ही बुलाया होगा।
आख़िरकार वो पल आ ही गया जब मुझे यह एहसास होने लगा कि दूसरी तरंग उठ रही है । मैं खुद को उसकी मोहकता में खोने से रोक ही नहीं पायी। मैं उस टाइप के घर में बड़ी हुई हूँ जहा एक दूसरे को छू के प्यार जताने का कोई सिस्टम नहीं था। मेरा वजूद बस गुलाबी रंग की चार दीवारी के अंदर ही सिमट के रह गया था । बस मेरी यही चाह थी कि मुझे कोई देखे । तो आख़िरकार मुझे वो मौका मिला जहां मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मुझे कोई देख रहा रहा है , पाना चाह रहा है , और मेरी चाहत कर रहा है। तो मैं बिना सोचे, उस मौके पे कूद पड़ी।
मुझे पता भी नहीं चला कब वो मेरे कानों के पास आ के प्यार भरी बातें करने लगा और कब वो अपने हाथों से मेरे बाल सहलाने लगा। और जल्द ही मैं बिस्तर पे उसकी हर सनकी सेक्स की इच्छा को पूरा करने लगी। जब वो मेरे ऊपर चढ़ के सेक्स कर रहा था , तो मुझे ' लिटिल बीस्ट ' की बस यह लाईनें याद आ रही थीं ' वो बहुत ही खूबसूरत था, आँखे बंद कर के चूमता था , और तभी अच्छा लगता था जब वो हिलता था। तुम उन आँखों में डूब सकते थे , मैंने कहा। गर्मी का मौसम है , और यह आत्महत्या है , हमें नींद से बेबस हैं , हम मजबूर हैं और पानी के पुल की गहराई में आपस में जूझ रहे है ' । ( सच्ची कहूं तो , मैंने कविता का यह हिस्सा स्क्रीनशॉट के तौर पे उसके फ़ोन पे भी छोड़ दिया था। इस उम्मीद में कि किसी दिन वह उसे देखेगा और मुझे टेक्स्ट करेगा। बता दूँ ?: उसने नहीं करा )
हो सकता है , वो प्यार भरे इशारे और शब्द महज उसके चोचलों का हिस्सा हो, ताकि वो लोगों को बिस्तर तक ले जा सके। हालांकि मुझे इससे कोई बेचैनी नहीं हुई। उस पल में , मुझे बस यह चाहिए था कि मुझे कोई देखे और समझे और उसकी छुअन की गर्माहट से मुझे वो सब महसूस हुआ। वो काफी था। वो अच्छा था। वो प्यार था। छुअन भरे प्यार की भूखी मेरी ज़िन्दगी में, पहली बार ओर्गास्म हुआ, इसमें कुछ तो बात थी। ऐसा लग रहा था कि मैं प्यार की चर्म सीमा पे पहुंच गयी हूँ और जितनी बार उसे किस किया, उतनी बार लगा कि भगवान् से मुलाक़ात हो रही है। मुझे अपने दिल में उसके लिए लगाव होते साफ़ महसूस हो रहा था।
इससे कुछ अच्छा निकल के तो आने वाला था नहीं, लेकिन फिर भी मैं कुछ रोक नहीं पा रही थी । मुझे एक अजनबी से प्यार हो रहा था और मैं इस बारे में कुछ नहीं कर सकती थी। जैसे ही सेक्स ख़तम हुआ , कमरे की रंगत ही बदल गयी। वो मीठी बातें बुझ गईं और सन्नाटा छा गया । वो मुझसे बात चीत करने के बजाय हिन्ज पे स्वाइप करने लगा । उसके व्यवहार में इस तरह के बदलाव से साफ़ ज़ाहिर हो गया था कि अब मुझे निकल लेना चाहिए। ( ऐसा नहीं था कि उसने मुझे हिन्ज या कोई और डेटिंग ऐप्प इस्तेमाल करने के लिए मना कर दिया था। मैं करना नहीं चाहती थी। जब मैं उसके साथ थी , यह याद करना मुश्किल था कि दुनिया में और भी चीज़ें मौजूद है , वो भी उस ही समय , उस ही पल में ) ।
जब मैं जा रही थी, तो आँखों से इज़हार करने से अपने को नहीं रोक पाई । उसको यह अंदाज़ा देना चाह रही थी कि मेरे दिमाग में क्या चल रहा है। मैं बाहर बाहर से यह जता रही थी कि मुझे बिलकुल भी परवाह नहीं है , लेकिन मैं चाह रही थी कि वो मुझे रुकने को बोले।
मैं पूछना चाहती थी ' क्या ये फिर से होगा ' । शायद मुझे परवाह नहीं थी कि वो हाँ कहेगा या नहीं । मुझे तो बस एक पक्का सा जवाब चाहिए था जिसपे मैं भरोसा कर सकूँ। फिर भी मैं चुप रही , और बिना अपने प्यार का या किसी भी चीज़ का इज़हार करे , वहाँ से चली गयी। काश मैं उस बारे में ' कूल , बेपरवाह , या ठन्डे दिमाग वाली ' हो सकती। काश मेरे अंदर इस बात को बड़ा न बनाने की क्षमता होती , लेकिन , नहीं , मैं ये न कर पायी ।
यह बात मुझे एकदम साफ़ हो गयी थी कि मैं भी और लड़कियों , और लोगों जैसी ही थी। मैं सेक्स को उससे जुड़ी स्वाभाविक भावनाओं से अलग नहीं कर सकती थी।
मैंने उससे बात करने की कोशिश की , लेकिन उसने कभी जवाब नहीं दिया। यह अनुभव मीठा भी था, कड़वा भी । कड़वा हिस्सा ज़्यादा साफ़ दिख रहा था। मीठा इसलिए, क्यूंकि मैं उसकी यादों को जब मन करे, अपने हिसाब से ढाल सकती थी। मैं उसके बारे में अपने दिल में, प्यारे भ्रम पाल सकती थी। हालांकि , मैंने यह तय किया कि अगली बार मैं बेहतर रहूंगी। मुझे क्या चाहिए और मुझे किस चीज़ की ज़रुरत है, सब कुछ एकदम साफ़ बोलूंगी। मैं अपना नाज़ुक पहलु तो दिखाऊँगी , लेकिन होशियारी के साथ। अगली बार , मैं हिचकिचाऊंगी नहीं। अगली बार , मैं चोट नहीं खाऊँगी। अगली बार , मैं जीतूंगी। बात दरअसल ये है, कि जब तक ' अगली बार ' पे सब कुछ टिका रहे, तब तक अपने आप से बहुत सारी चीज़ों का वायदा करना आसान होता है।
बेशक , 'अगली बार' हुआ , जैसा कि डेटिंग ऐप्प का चलन है , लेकिन किसी दूसरे आदमी के साथ , और उसी नतीजे के साथ। मेरी तरफ से वही तड़प , उनकी तरफ से लाड़ का मुखौटा डाले हुई वही प्यास । और नतीजे में, वही असंतोष। सच कहूं तो मैं इस दलदल से तंग आ चुकी थी। लोगों के साथ इस उम्मीद में सोना, कि आगे कुछ और भी होगा ( बता दूँ ? कभी नहीं हुआ) । यह बात तो मुझे पहले से पता थी कि ज़िन्दगी या डेटिंग ऐप्प का कोई सीधा तोड़ तो होता नहीं। बस कोशिश करनी होती है और तुक्का भिड़ाना होता है। बस मेरी ज़िन्दगी में सिर्फ गलतियाँ ही गलतियाँ हो रही थीं , और कोई भी तुक्का नहीं भिड़ रहा था।
लेकिन यह जान के मुझे बड़ी तसल्ली मिली कि अपने इस परेशान करने वाले अनुभव में मैं अकेली नहीं थी। बहुत से लोग थे , ऑफलाइन भी और ऑनलाइन भी, जो डेटिंग ऐप्प से दुखी थे। जब मेरी एक और लव स्टोरी शुरू होने से पहले ख़तम हुई, तो मैंने खुद ही मोर्चा संभाला और इसके पीछे का कारण खोजने की सोची, और डेटिंग के समुद्र में गहरी छलांग लगा दी। साथ साथ, इस मसले पे बुद्धिजीव बनके, अपने को थोड़ा सलामत रखा ।
मैं जल्दी ही इस बात को समझने लगी। कि बात चीत के दौरान इतने सारे दावे, और बायो में इतना कुछ लिखने के बाद भी, डेटिंग ऍप्स क्यों असफल होते हैं ? डेटिंग एप्लीकेशन, प्यार और रोमांस के लंबे, करीबियों के सफर को छोटा बनाने की कोशिश करते हैं । वो एक संस्था जैसे काम करते हैं... वो भी अपनी कंपनी के मुनाफे के लिए।
ये उनका असली मकसद है। न कि हम को सच्चा प्यार दिलवाना, जैसा कि वो दावा करते हैं।
तुम्हें सुन के तो अच्छा नहीं लगेगा , लेकिन अंत में यह सारा खेल बस पूंजीवाद का ही है। इसे कहते है ' डेटिंग को गेमिंग सा बना देना ' । इसलिए तुम और हम सब लोग ' लिखी हुई कहानी/ स्क्रिप्ट ' के हिसाब से ही चलते हैं,
21वी सदी के इस खेल को ' जीतने के लिए ' खेला जाता है । अपनी कुछ चुनी हुई फोटो हैं हमारे पास , जिनको हम डेटिंग ऐप्प पे इस्तेमाल करते है, क्यूंकि हमें लगता है इनमें हम सबसे सही दिखते हैं । सामने वाले को इम्प्रेस करने की कोशिश में हम बस वही घिसी पिटी लाईनें मारते रहते हैं , एक दूसरे को हम बस चीज़ों की तरह देखते हैं , जिनको कभी भी छोड़ा जा सकता है। खासतोर से अगर एप्प पे कोई नया मैच मिल जाये जो ज़्यादा आकर्षित हो और ज़्यादा दिलचस्प ।
इससे यह भी बात साफ़ होती है कि क्यों बड़ी मात्रा में लोग एप्प पे अक्सर अपने बड़े सारे मैच के साथ, बात चीत शुरू करने की भी ज़हमत नहीं उठाते। डेटिंग एप्लीकेशन पे इक्कठे हुए मैचों को लोग डेटिंग गेम में जीते हुए ' पॉइंट ' की तरह देखते हैं। अगर मैं अपने डेटिंग एप्लीकेशन के अनुभव को गेमिंग के तौर पे देखूं , तो अभी तक का स्कोर है
डेट : 78
शारीरिक सम्बन्ध : 28
प्यार और रिश्ता : 0
और इस तरह मैं न चाहते हुए भी आजकल के चलने वाले हुकअप कल्चर (यानि एक ऐसा प्रचलन जिसमें बिन बंधन छोटे समय के लिए शारीरिक सम्बन्ध बनाए जा सकते हैं ) का हिस्सा बन गयी। जबकि मेरा हुकअप करने का कभी मन भी नहीं था। उस वक़्त मुझे यह नहीं पता था कि मैं इस चीज़ के लिए मना भी कर सकती हूँ। मैंने इस चीज़ को ऐसा लिया कि - प्यार के लिए तो यह सब करना ही होगा ।
फिर भी हर हुकअप के बाद मुझे बहुत असंतुष्टि होती थी , शरीर से भी और अपने वजूद को ले के भी। इस बात को सोचते हुए भी डर लगता था कि अगर मेरा बदन मिलने की गारंटी न हो, तो मुझे कभी प्यार नहीं मिलेगा? क्या बदन के बिना प्यार हो सकता है ?
बहरहाल ऐसा जताना कि डेटिंग ऐप्प पे मेरा समय बस खराब ही रहा है, गलत होगा। और वो भी ऐसे में , जब मैंअभी तक हिन्ज पे हूँ। यह बात तो बिलकुल साफ़ है कि मुझे प्यार तो मिला , एकतरफा ही सही , लेकिन इसको झुठलाया तो नहीं जा सकता। अगर प्यार का दो तरफ़ा होना ही सच्चे प्यार का आधार बना दिया जाए, फिर तो तमाम प्रेम कहानियां दुनिया से ऐसे ही गायब हो जाएंगी । मेरे अंदर गज़ब का आत्मविश्वास और स्वेच्छा जागे। कुछ नहीं तो 78 अजनबियों के साथ डेट पे जाने से किसी भी इंटरव्यू की अच्छी तैयारी हो गयी । कुछ ढेर सारे किस्से कहानियां मिले और आर्टिकल लिखने के लिए माल भी। मेरी उन अनगिनत बेकार सिचुएशनशिप ( यानि ऐसी अवस्था जो रिलेशनशिप जैसी लगे, लेकिन होती नहीं ) का तो ख़ास ज़िक्र होना चाहिए।
अभी के लिए तो मैं प्यार / डेटिंग एप्प्स की गुरु बन बैठी हूँ, क्यूंकी डेटिंग एप्लीकेशन के ज़रिये मैं 78 लोगों के साथ डेट पे जा चुकी हूँ। मैंने अपने दिमाग में इस अब से मिली सीख की लम्बी लिस्ट बना रखी है , जो कि मैं नौसीखियों के साथ बांटना नहीं भूलती। लेकिन सच कहूं, मैंने कुछ भी नहीं सीखा है। मुझे यकीन है कि एक बार फिर मैं प्यार के लिए उन सारी सीखी हुई बातों को भाड़ में झोंक दूँगी, और प्यार का ऐसे पीछा करूंगी जैसे मैं कोई 18 साल की लड़की हूँ , जो घर से पहली बार दूर रह रही हो। शायद जब प्यार की बारी आती है तो हम हमेशा ही 18 साल के होते है। हम हमेशा ही एकदम नए और नौसिखिये होते है और प्यार की पहली, हंगामा कर देने वाली बूँद को चखने के लिए मरे जाते है। किसे पता ?
याना रॉय क्वीयर हैं और लेडी श्री राम कॉलेज कॉलेज में सोशियोलॉजी की थर्ड ईयर स्टूडेंट हैं। उन्हें सीमान्त जगहों के घुले मिले भिन्न संदर्भों में रहना पसंद है और उनके बारे में सरलता से लिखना भी। साथ में ,इंसानी रिश्तों और पूंजीवाद के बीच के आपसी सम्बन्ध, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मीडिया स्टडीज और ड्रामा के ज़रिये अभिव्यक्ति के पहलूओं पे भी सरलता से लिखना।